10 जून 2020
इस्लामिक आक्रान्ता सालार मसूद को बहराइच (उत्तर प्रदेश) में उसकी एक लाख बीस हजार सेना सहित वहीं दफन कर देने वाले महान हिन्दू योद्धा राजा सुहेलदेव का जन्म श्रावस्ती के राजा त्रिलोकचंद के वंशज पासी मंगलध्वज (मोरध्वज) के घर में माघ कृष्ण 4, विक्रम संवत 1053 (संकट चतुर्थी) को हुआ था। अत्यन्त तेजस्वी होने के कारण इनका नाम सुहेलदेव (चमकदार सितारा) रखा गया। जैसा कि पहले भी कई बार कहा जा चुका है कि चाटुकार इतिहासकारों ने भारत के गौरवशाली हिन्दू इतिहास को शर्मनाक बताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। क्रूर, अत्याचारी और अनाचारी मुगल शासकों के गुणगान करने में इन लोगों को आत्मिक सुख की अनुभूति होती है।
लेकिन यह मामला उससे भी बढ़कर है, एक मुगल आक्रांता, जो कि समूचे भारत को हिन्दू विहीन बनाने का सपना देखता था।
विक्रम संवत 1078 में राजा सुहेल का विवाह हुआ तथा पिता के देहांत के बाद वसंत पंचमी विक्रम संवत 1084 को ये राजा बने। इनके राज्य में आज के बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, बाराबंकी, फैजाबाद तथा श्रावस्ती के अधिकांश भाग आते थे। बहराइच में बालार्क (बाल+अर्क = बाल सूर्य) मंदिर था, जिस पर सूर्य की प्रातःकालीन किरणें पड़ती थी। मंदिर में स्थित तालाब का जल गंधकयुक्त होने के कारण कुष्ठ व चर्म रोग में लाभ करता था, अतः दूर-दूर से लोग उस कुंड में स्नान करने आते थे। महमूद गजनवी ने भारत में अनेक राज्य को लूटा तथा सोमनाथ सहित अनेक मंदिरों का विध्वंस किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका बहनोई सालार साहू अपने पुत्र सालार मसूद, सैयद हुसेन गाजी, सैयद हुसेन खातिम, सैयद हुसेन हातिम, सुल्तानुल सलाहीन महमी, बढ़वानिया, सालार, सैफुद्दीन, मीर इजाउद्दीन उर्फ मीर सैयद दौलतशाह, मियां रज्जब उर्फ हठीले, सैयद इब्राहिम बारह हजारी तथा मलिक फैसल जैसे क्रूर साथियों को लेकर भारत आया। बाराबंकी के सतरिख (सप्तऋषि आश्रम) पर कब्जा कर उसने अपनी छावनी बनायी।
यहां से पिता सेना का एक भाग लेकर काशी की ओर चला, पर हिन्दू वीरों ने उसे प्रारम्भ में ही मार गिराया। पुत्र मसूद अनेक क्षेत्रों को रौंदते हुए बहराइच पहुंचा। उसका इरादा बालार्क मंदिर को तोड़ना था, पर राजा सुहेलदेव भी पहले से तैयार थे। उन्होंने निकट के अनेक राजाओं के साथ उससे लोहा लिया। कुटिला नदी के तट पर हुए राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हुए इस धर्मयुद्ध में उनका साथ देने वाले राजाओं में प्रमुख थे रायब, रायसायब, अर्जुन, भग्गन, गंग, मकरन, शंकर, वीरबल, अजयपाल, श्रीपाल, हरकरन, हरपाल, हर, नरहर, भाखमर, रजुन्धारी, नरायन, दल्ला, नरसिंह, कल्यान आदि। वि. संवत 1091 के ज्येष्ठ मास के पहले गुरुवार के बाद पड़ने वाले रविवार आज ही के दिन (10.6.1034 ई.) को राजा सुहेलदेव ने उस आततायी का सिर धड़ से अलग कर दिया।
भारतवासीयों का टीवी, फिल्में, सीरियल, अखबार, पढ़ाई, झूठे इतिहास आदि द्वारा ऐसा ब्रेनवॉश कर दिया है कि जिन मुग़लो ने देशवासियों को प्रताड़ित किया, देश की संपत्ति लूटकर ले गये उनका इतिहास पढ़ाया जाता है। लेकिन जिन हिंदू योद्धाओं ने इन मुग़लों को भगाने में और मुगलों की नींव समाप्त करने में अपने प्राणों की बलि दे दी तथा आज जिनके कारण हम इस देश में स्वतंत्र घूम रहे हैं ऐसे योद्धाओं को भुला दिया।
सरकार इन योद्धाओं का इतिहास शामिल करें तो अच्छा रहेगा जिससे भारतीय लोगो को सच्चे इतिहास का पता चलेगा।
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