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Friday, March 10, 2017

रासायनिक नहीं, प्राकृतिक रंगों से खेलें होली

रासायनिक नहीं, प्राकृतिक रंगों से खेलें होली...
आइये जानते हैं कैसे बनायें #प्राकृतिक #रंग?

#होली का त्यौहार पूरे देश में बड़े #उत्साह से मनाया जाता है। यह पर्व मूल में बड़ा ही स्वास्थ्यप्रद एवं मन की प्रसन्नता बढ़ाने वाला है लेकिन दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इस पवित्र उत्सव में नशा, वीभत्स गालियाँ और केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग करके कुछ लोगों ने ऋषियों की हितभावना,समाज की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और प्राकृतिक उन्नति की भावनाओं का लाभ लेने से समाज को वंचित कर दिया है।
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#प्राकृतिक रंगों से होली खेले बिना जो लोग ग्रीष्म ऋतु बिताते हैं,उन्हें गर्मीजन्य उत्तेजना, चिड़चिड़ापन, खिन्नता, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), तनाव, अनिद्रा इत्यादि तकलीफों का सामना करना पड़ता है ।

प्राकृतिक रंग कैसे बनायें ?

1- केसरिया रंग : #पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस #केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर, उसे ठंडा करके #होली का आनंद उठायें । 

लाल रंग : #पान पर लगाया जानेवाला एक चुटकी चूना और दो चम्मच हल्दी को आधा प्याला पानी में मिला लें । कम-से-कम 10 लीटर पानी में घोलने के बाद ही उपयोग करें ।

सूखा पीला रंग : 4 चम्मच बेसन में 2 चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें । सुगंधयुक्त कस्तूरी #हल्दी का भी उपयोग किया जा सकता है और बेसन की जगह गेहूँ का आटा, चावल का आटा, आरारोट का चूर्ण, मुलतानी मिट्टी आदि उपयोग में ले सकते हैं ।

https://youtu.be/DMVf3mo2Frs


गीला पीला रंग : (1) एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़नेवाले रंग जो खाने के काम में आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। (2) अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।

रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...

1 - काले #रंग
में लेड ऑक्साइड
पड़ता है जो
गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी
करता है ।

2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व
लाता है ।

3 - सिल्वर रंग में #एल्यूमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर करता है ।

4- नीले रंग में प्रूशियन ब्ल (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) से भयंकर #त्वचारोग
होता है ।

5 - लाल रंग जिसमें मरक्युरी सल्फाइड
होता है जिससे त्वचा का #कैंसर होता है ।

6- बैंगनी रंग में  क्रोमियम आयोडाइड
 होता है जिससे दमा, #एलर्जी
होती है । (यह लेख #संत #आसारामजी आश्रम से प्रकाशित ऋषि प्रसाद से लिया गया है)

त्वचा विशेषज्ञ #डॉ. आनंद कृष्णा कहते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सारा साल हम जो त्वचा और बालों का ध्यान रखते हैं वह होली के अवसर पर भूल जाते हैं और केमिकल रंगों से इनको भारी नुकसान पहुँचाते हैं । 


मीडिया सूखे रंगों से होली खेलने की सलाह देती है लेकिन सूखे #केमिकल #रंगों से होली खेलने की सलाह देनेवाले लोग वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ हैं । क्योंकि #डॉक्टरों का कहना है कि सूखे रासायनिक रंगों से होली खेलने से शुष्कता, एलर्जी एवं #रोमकूपों में #रसायन अधिक समय तक पड़े रहने से भयंकर त्वचा रोगों का सामना करना पड़ता है ।

दैनिक भास्कर की तो मुर्खानी की हद हो गई जो कई दिनों से केवल तिलक होली खेलेने का प्रचलन कर रहा है । 

लेकिन भास्कर को पता नही है कि जिन #ऋषि मुनियों ने #होली #त्यौहार बनाया है वो हमारे उत्तम स्वास्थ्य और शरीर में छुपे हुए रोगों को मिटाने के लिए बनाया है ।

केमिकल रंगों से होली खेलने के बाद भी बहुत अधिक पानी खर्च करना पडता है । एक-दो बार खूब पानी से नहाना पड़ता है क्योंकि रासायनिक रंग जल्दी नहीं धुलते । प्राकृतिक रंग जल्दी ही धुल जाते हैं ।

प्राकृतिक रंगो से होली खेलने से पानी की अधिक खपत का प्रलाप करने वाली #मीडिया को #शराब, #कोल्डड्रिंक्स, #गौहत्या के लिए हररोज बरबाद किया जा रहा #करोड़ों #लीटर पानी क्यों नही दिखता...???

महाराष्ट्र के नेता विनोद तावडे ने सबूतों के साथ पानी के आँकड़े पेश किये जिसमें #शराब बनाने वाली #कम्पनियां #अरबो लीटर #पानी की #बर्बादी करती हैं ।

‘डीएनए न्यूज’ की रिपोर्ट के अनुसार 1 लीटर कोल्डड्रिंक बनाने में 55 लीटर पानी बरबाद होता है ।

कत्लखाने में 1 किलो #गोमांस के लिए #15,000 लीटर पानी बरबाद होता है । #कोल्डड्रिंक्स और शराब के कारखानों में मशीनरी और बोतलें धोने में तथा बनाने की प्रक्रिया में #करोड़ों लीटर पानी बरबाद होता है ।

बड़े-बड़े #होटलों में आलीशान #स्विमिंग टैंक्स के लिए लाखों लीटर पानी की सप्लाई बेहिचक की जाती है।

हकीकत यह होते हुए भी मीडिया द्वारा कभी इसका विरोध नही किया गया ।

'प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ के अनुसार #रासायनिक रंगों से होली खेलना अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है ।

डॉ. #फ्रांसिन पिंटो के अनुसार रासायनिक रंगों से होली खेलने के बाद उन्हें धोने के लिए प्रति व्यक्ति 35 से 500 लीटर तक पानी खर्च करता है ।

यह केमिकल युक्त पानी पर्यावरण के लिए घातक है । #घर भी रंगों से खराब हो जाते हैं । उन्हें धोने में कम-से-कम 100 लीटर पानी बरबाद हो जाता है ।


पलाश के फूलों से होली खेलने की परम्परा का फायदा बताते हुए #आशारामजी #बापू कहते हैं कि ‘‘ #पलाश  कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है । पलाश के फूलों में वायुसंबंधी 80 व पित्तसंबंधी 40 प्रकार की तथा अन्य #अनेक बीमारियों को भगाने की शक्ति होती है । इनमें मन, रक्तकणिकाओं, सप्तरंगों व सप्तधातुओं का संतुलन बनाने की भी अद्भुत क्षमता है इसीलिए हमारे #ऋषियों ने होली खेलने के लिए पलाश के फूलों के रंग को विशेष माना है ।

#रासायनिक रंगों से होली खेलने पर प्रति व्यक्ति पर लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।

इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले #आदिवासियों को #रोजी-रोटी मिल जाती है । पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

#केमिकल रंगों का और उससे फलने-फूलनेवाला अरबों रुपयों का दवाइयों का व्यापार संत आशारामजी बापू के कारण प्रभावित हो रहा था।

#संत #आशारामजी #बापू के सामूहिक #प्राकृतिक होली अभियान से शारीरिक मानसिक अनेक बीमारियों में लाभ होकर देश के अरबो रुपयों का स्वास्थ्य-खर्च बच रहा है । जिससे विदेशी कंपनियों को अरबो का घाटा हो रहा था इसलिए एक ये भी कारण है उनको फंसाने का । साथ ही उनके कार्यक्रमों में पानी की भी बचत हो रही है ।

पर मीडिया ने तो ठेका लिया है समाज को गुमराह करने का।  5-6 हजार लीटर प्राकृतिक रंग (जो कि लाखों रुपयों का स्वास्थ्य व्यय बचाता है) के ऊपर बवाल मचाने वाली #मीडिया को शराब, कोल्डड्रिंक्स उत्पादन तथा कत्लखानों में गोमांस के लिए प्रतिदिन हो रहे करोड़ों लीटर पानी की बरबादी जरा भी समस्या नही लगती। ऐसा क्यों ???

कुछ सालों से अगर गौर करें तो जब भी कोई #हिन्दू त्यौहार नजदीक आता है तो #दलाल मीडिया और भारत का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग हमारे हिन्दू त्यौहारों में खोट निकालने लग जाता है ।

जैसे #दीपावली नजदीक आते ही छाती कूट कूट कर पटाखों से होने वाले प्रदूषण का रोना रोने वाली मीडिया को 31 दिसम्बर को #आतिशबाजियों का प्रदूषण नही दिखता। आतिशबाजियों से क्या ऑक्सीजन पैदा होती है?

ऐसे ही #शिवरात्रि के पावन पर्व पर दूध की बर्बादी की दलीलें देने वाली मीडिया हजारों दुधारू गायों की हत्या पर मौन क्यों हो जाती है?


अब होली आई है तो #बिकाऊ मीडिया पानी बजत की दलीलें लेकर फिर उपस्थित होंगी । लेकिन पानी बचाना है तो साल में 364 दिन बचाओ पर होली अवश्य मनाओं ।


क्योंकि #बदलना है तो अपना व्यवहार बदलो....त्यौहार नहीँ ।