सतत कई वर्षो से न्यायपालिका द्वारा दिए जा रहे ऊटपटांग, अनर्गल एवं नाटकीय निर्णयों द्वारा इस देश की जनता का न्यायपालिका पर से भरोसा उठता ही चला जा रहा है, जोकि स्वतंत्र भारत के लिए चिंता का विषय है ।
जिन आरोपियों से राजसत्ता को राग (अपनापन) होता है उनको निर्दोष बरी कर दिया जाता है या तो उन आरोपियों पर केस दर्ज होते ही तुरन्त जमानत दे दी जाती है और जिन आरोपियों से द्वेष (दुश्मनी) होता है, चाहे वह आरोपी निर्दोष भी हों, तो भी उन्हें दोषी घोषित कर दिया जाता है ।
Do you know whether the judiciary is doing independent work or not? |
ये रह गई है हमारे देश की न्याय व्यवस्था !!
#"काले हिरण शिकार मामले" में हाल ही में आये जोधपुर सेशन कोर्ट के निर्णय को लेकर भी देश की जनता में न्यायपालिका के प्रति रोष है । कैसे तो नाटकीय ढंग से सलमान खान को सजा सुनाई जाती है और फिर 2 दिन में जमानत भी दे दी जाती है । अगर जमानत ही देनी थी तो फिर कोर्ट ने सजा सुनाई ही क्यूँ ? क्या बस ढोंग करने के लिए ?
अगर सलमान खान दोषी घोषित हुए हैं तो उन्हें जेल में ही क्यूँ नहीं रखा गया ? जबकि 82 साल के वयोवृद्ध हिन्दू संत बापू आसारामजी को उम्रकैद की सजा सुना दी गयी और वो भी केवल छेड़छाड़ के मामले में ।
अगर सलमान खान दोषी घोषित हुए हैं तो उन्हें जेल में ही क्यूँ नहीं रखा गया ? जबकि 82 साल के वयोवृद्ध हिन्दू संत बापू आसारामजी को उम्रकैद की सजा सुना दी गयी और वो भी केवल छेड़छाड़ के मामले में ।
जोधपुर सेशन कोर्ट का निर्णय उसकी अपारगता एवं किसी के दबाब में कार्य करने की नीति को साफ दर्शा रहा है । सलमान खान के लिए अलग ट्रीटमेंट एवं एक 82 साल के हिन्दू संत के लिए अलग !
क्या यही है न्यायालय की निष्पक्षता ???
क्या न्यायपालिका के निष्पक्ष कार्य करने का क्या यही तरीका है ???
क्या जज साहब पर सलमान खान द्वारा नोटों की बरसात कर दी गयी थी ???
आखिर किसके दबाब में सलमान खान को जमानत दे दी गयी थी ???
सलमान खान पर ऐसा ही एक और नाटकीय निर्णय कोर्ट द्वारा दिया गया ।
"हिट एंड रन" मामले में सलमान खान को सेशन कोर्ट ने दोषी घोषित किया और फिर तुरन्त ही मुंबई हाईकोर्ट ने उसे जमानत भी दे दी और फिर कुछ समय बाद इसी मुंबई हाईकोर्ट ने सलमान खान को निर्दोष बरी भी कर दिया ।
"हिट एंड रन" मामले में सलमान खान को सेशन कोर्ट ने दोषी घोषित किया और फिर तुरन्त ही मुंबई हाईकोर्ट ने उसे जमानत भी दे दी और फिर कुछ समय बाद इसी मुंबई हाईकोर्ट ने सलमान खान को निर्दोष बरी भी कर दिया ।
आश्चर्य पर आश्चर्य !! कि ये सब कैसे संभव हुआ ??
लेकिन यहाँ तो सलमान खान एवं सत्ताधारियों ने खुलेआम पैसों एवं सत्ता के दम पर इस देश की सबसे सम्मानित संस्था का मजाक और नाटक बनाकर रख दिया ।
इस मुद्दे पर बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जिस न्यायपालिका को देश की जनता "निष्पक्ष" मानती है, क्या वह निष्पक्ष है भी सही या नहीं ??
क्या न्यायपालिका स्वतंत्र कार्य कर भी रही हैं या नहीं ? या न्यायपालिका केवल राजसत्ता एवं पैसो के लालच की एक कठपुतली मात्र बनकर रह गयी है ??
अगर न्यायपालिका निष्पक्ष होती तो किसी भी सत्ताधीश या पैसों के लालच में आकर निर्णय ना देती और जो लोग लोकतंत्र की बातें करते फिरते हैं, वही लोग इस देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था (न्यायालय) का दुरूपयोग करके अपने राजनैतिक एवं निजी मंसूबों को बड़ी ही चतुराई से अंजाम देते हैं और देश की जनता आसानी से उनके अनैतिक मंसूबों को समझ भी नहीं पाती हैं ।
#जिस "2जी स्पेक्ट्रम घोटाले मामले" में सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं माना था कि "2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाला हुआ है और उसका आवंटन भी रद्द कर दिया था, उसी मामले के मुख्य अभियुक्त ए. राजा एवं कन्निमोज़ी को स्पेशल कोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया ।
यहाँ फिर से वही बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर किसके दबाब में यह सब किया गया ?
कोर्ट स्वतंत्र कार्य कर भी रही हैं या नहीं ?.या फिर राजसत्ता की कटपुतली बन चुकी है ।
अगर ऐसा है तो राजसत्ता द्वारा इस देश की अस्मिता एवं लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है और यह प्रक्रिया आज से नहीं जब से देश आजाद हुआ है तब से हर सत्ताधीश ने अपने राजनैतिक मंसूबों को अंजाम देने हेतु न्यायपालिका का दुरूपयोग किया है और यह दुरूपयोग देश की जनता की पीठ में छुरा घोंपने के बराबर है ।
#आगे बात करते हैं "आरुषी मर्डर" केस की, इसमें भी केवल मिडिया ट्रायल के आधार पर ही सीबीआई कोर्ट ने पुख्ता जाँच किये बिना ही आरुषी के माँ-बाप को उम्र कैद की सजा सुना दी थी । लेकिन बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें निर्दोष बरी कर दिया ।
फिर से बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि कोर्ट स्वतंत्र कार्य कर भी रही हैं या नहीं ? या न्यायालय द्वारा मीडिया या किसी अन्य राजनैतिक आकाओं के दबाब में आकर ही निर्णय दिए जा रहे हैं ?
#आगे बात करते हैं हाल ही में जोधपुर सेशन कोर्ट से आये आशाराम बापू मामले के निर्णय की । इस केस में भी न्यायालय ने बड़ा ही उटपटांग निर्णय दिया है । जिस शिवा को कोर्ट ने निर्दोष बरी किया है वह तो मुख्य रूप से आशाराम बापू का सह आरोपी था । मतलब आशाराम बापू द्वारा किये गए तथाकथित गुनाह में पूरा का पूरा हिस्सेदार लेकिन कोर्ट ने शिवा को तो बरी कर दिया और आशाराम बापू को दोषी घोषित कर दिया । यह कैसे हो सकता है कि जिन दो व्यक्तियों ने मिलकर एक साथ तथाकथित गुनाह किया हो और उसमें से एक को तो निर्दोष और दूसरे को दोषी घोषित कर दिया जाए । इतना बड़ा विरोधाभासी, पूर्ण नाटकीय एवं आश्चर्यजनक निर्णय शायद ही पहले कभी इस देश की जनता के समक्ष आया होगा ।
इस निर्णय को देश की जनता पूर्णतया संदेहास्पद तरीके से देख रही है और भी बड़ा नाटक तो देखिये कि सजा भी सुनाई जाये 82 वर्ष के एक व्यक्ति को आजीवन सश्रम कारावास की, वो भी छेड़छाड़ के मामले में!
कोर्ट की नाटकीय, वाहियात मानसिकता एवं अपरागता की तो हद ही हो गयी । इस निर्णय के पीछे साफ-साफ षड़यंत्र नजर आ रहा है ।
जज साहब ने किसी के दबाब में आकर यह निर्णय दिया है । इस देश का दुर्भाग्य ही है कि इस तरह की कपटपूर्ण, भयपूर्ण, द्वेषपूर्ण एवं अनैतिक कार्यविधि न्यायपालिका अपना रही है । इस देश का नागरिक अब किस पर विश्वास करेगा ?
देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था भी सत्ताधीशों या मीडिया के दबाब में आकर कार्य करेगी तो देश की जनता न्याय कहाँ मांगने जायेगी ?
इससे तो देश में अराजकता, हिंसाचार, वैमनस्य एवं परस्पर टकराव ही बढ़ेगा ।
अगर अभी भी इस विषय पर इस देश के प्रबुद्ध नागरिक एवं बुद्धिजीवियों ने ध्यान नहीं दिया तो दिन प्रतिदिन यह स्थिति और भी भयावह होती जायेगी और वैसे भी इस देश की जनता आशाराम बापू के विरुद्ध जोधपुर कोर्ट से आये हुए इस राजनैतिक षड़यंत्र रूपी निर्णय को अब अच्छी तरह से समझ चुकी है । जनता के सामने देर सवेर इस राजनैतिक निर्णय की पोल भी खुल जायेगी कि इस निर्णय के पीछे किसका हाथ है !! -दुष्यंत साहू (पत्रकार)
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