Wednesday, January 2, 2019

औरंगजेब के पसीने छोड़ने वाले गोकुल सिंह का बलिदान दिवस भूल गए देशववासी

1 जनवरी 2019
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🚩भारतवासीयों का टीवी, फिल्में, सीरियल, अखबार, पढ़ाई, झूठे इतिहास आदि द्वारा ऐसा ब्रेनवोस कर दिया है कि जिन अंग्रेजों ने भारत को 200 साल गुलाम बनाकर रखा, देशवासियों को प्रताड़ित किया, देश की संपत्ति लूटकर ले गये उन ईसाई अंग्रेजों के नये साल पर बधाई दे रहे हैं, जश्न मना रहे हैं, लेकिन जिन क्रांतिकारीयों ने इन अंग्रेजों को भगाने में और मुगलों की नींव समाप्त करने में अपने प्राणों की बलि दे दी तथा आज जिनके कारण हम इस देश में स्वतंत्र गुम रहे हैं ऐसे योद्धाओं को भुला दिया  ।
🚩ऐसे ही एक भारत माता के वीर सपूत थे गोकुल सिंह, जिन्होंने विशाल मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए थे और औरंगजेब के पसीने छुड़वा दिए थे । उनका आज बलिदान दिवस है, इनका इतिहास पढ़कर आप भी अपने पूर्वजों की वीरता पर गर्व महसूस करेंगे तथा इन विदेशी आक्रांताओं मुगलों तथा अंग्रेजों से नफरत करने लगेंगे ।
Aurangzeb's persecutor Gokul Singh's sacrifice was forgotten

🚩सन् 1666  में #इस्लामिक राक्षस #औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी । मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, #हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था ।
औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिन्दू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे ।
🚩हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया । अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला ।
🚩सिनसिनी गाँव के #सरदार #गोकुल सिंह के आह्वान पर #किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह "पहला #असहयोग आन्दोलन" था ।
🚩दिल्ली के सिंहासन के नाक तले समरवीर धर्मपरायण #हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने आतताई औरंगजेब को हिंदुत्व की ताकत का एहसास दिलाया ।
🚩मई 1669 में अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया । उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे । भयंकर #युद्ध हुआ लेकिन इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे इस्लामिक पिशाच गाजर-मूली की तरह काट दिए गए ।
🚩गोकुल सिंह की #सेना में जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि सभी जातियों के हिन्दू थे । इस #विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राण फूँक दिए थे ।
🚩इसके बाद #पाँच माह (5 महीनों )तक भयंकर युद्ध होते रहे । मुगलों की सभी तैयारियां और चुने हुए सेनापति प्रभावहीन और असफल सिद्ध हुए । क्या सैनिक और क्या सेनापति सभी के ऊपर गोकुलसिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया । अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा । #गोकुल सिंह ने औरंगेजब का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए  कहा कि "औरंगजेब कौन होता है हमें माफ करने वाला, माफी तो उसे हम हिन्दुओं से मांगनी चाहिए उसने अकारण ही हिन्दू धर्म का बहुत अपमान किया है ।
🚩अब औरंगजेब 28 नवम्बर 1669 को दिल्ली से चलकर खुद मथुरा आया गोकुल सिंह से लड़ने के लिए। #औरंगजेब ने मथुरा में अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति होशयार खाँ को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए भेजा ।
🚩आगरा शहर का फौजदार होशयार खाँ 1669 सितंबर के अंतिम सप्ताह में अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आ पहुंचे । यह विशाल सेना चारों ओर से गोकुलसिंह को घेरा लगाते हुए आगे बढ़ने लगी । #गोकुलसिंह के विरुद्ध किया गया यह अभियान, उन आक्रमणों से विशाल स्तर का था, जो बड़े-बड़े राज्यों और वहां के राजाओं के विरुद्ध होते आए थे । #इस वीर के पास न तो बड़े-बड़े दुर्ग थे, न अरावली की पहाड़ियाँ और न ही महाराष्ट्र जैसा विविधतापूर्ण भौगोलिक प्रदेश । इन अलाभकारी स्थितियों के बावजूद, उन्होंने जिस धैर्य और रण-चातुर्य के साथ, एक शक्तिशाली साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति का सामना करके, बराबरी के परिणाम प्राप्त किए, वह सब अभूतपूर्व है
🚩औरंगजेब की तोपो,धर्नुधरों, हाथियों से सुसज्जित तीन लाख (3 लाख) लोगों की विशाल सेना और #गोकुल सिंह के किसानों की बीस हजार (20 हजार)की सेना में भयंकर #युद्ध छिड़ गया ।
चार दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और #गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारों के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी ।
🚩भारत के #इतिहास में ऐसे युद्ध कम हुए हैं जहाँ कई प्रकार से बाधित और कमजोर पक्ष, इतने शांत निश्चय और अडिग धैर्य के साथ लड़ा हो । #हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था। पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु #वीरवर #गोकुलसिंह का युद्ध तीसरे दिन भी चला ।
🚩इस लड़ाई में सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं, बल्कि उनकी #स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया ।
🚩चार दिन के युद्ध के बाद जब #गोकुल की सेना युद्ध जीतती हुई प्रतीत हो रही थी तभी हसन अली खान के नेतृत्व में एक नई विशाल मुगलिया टुकड़ी आ गई और इस टुकड़ी के आते ही गोकुल की सेना हारने लगी । युद्ध में अपनी सेना को हारता देख हजारों नारियाँ जौहर की पवित्र अग्नि में खाक हो गई ।
🚩गोकुल सिंह और उनके ताऊ उदय सिंह को #सात हजार साथियों सहित बंदी बनाकर आगरा में औरंगजेब के सामने पेश किया गया । औरंगजेब ने कहा "जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो और रसूल के बताए रास्ते पर चलो । बोलो क्या इरादा है इस्लाम या मौत ?
🚩अधिसंख्य धर्म-परायण #हिन्दुओं ने एक सुर में कहा - "औरंगजेब, अगर तेरे खुदा और रसूल मोहम्मद का रास्ता वही है जिस पर तू चल रहा है तो धिक्कार है तुझे,
हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना l"
🚩इतना सुनते ही औरंगजेब के संकेत से गोकुल सिंह की बलशाली भुजा पर जल्लाद का बरछा चला ।
🚩गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर बड़े ही घमण्ड के साथ जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो ।

🚩दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खड़ी जनता आर्तनाद कर उठी और फिर #गोकुल सिंह के शरीर के #एक-एक जोड़ काटे गए । गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद में गिरा तो मथुरा में केशवराय जी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया । यही हाल उदय सिंह और बाकि साथियों का भी किया गया । उनके छोटे- छोटे बच्चों को #जबरन #मुसलमान बना दिया गया ।
🚩*1 जनवरी 1670 ईसवी का दिन था वह।*
ऐसे अप्रतिम #वीर का कोई भी इतिहास नहीं पढ़ाया गया और न ही कहीं कोई सम्मान ही दिया गया । न ही उनके नाम पर न कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना ।
🚩*कितना एहसान फरामोश, कृतघ्न है हिंदू समाज!!*
कैसे वीर हुए इस धरा पर,जिन्होंने #धर्म के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये पर इस्लाम नहीं अपनाया ।
🚩गोकुलसिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे न उनका राज्य ही किसी ने छीन लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल-सत्ता, दीनतापूर्वक, सन्धि करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी ।
🚩शर्म आती है हमें कि हम ऐसे अप्रतिम वीर को कागज के ऊपर भी सम्मान नहीं दे सके ।
🚩शाही इतिहासकारों ने उनका उल्लेख तक नहीं किया । केवल जाट पुरूष ही नहीं बल्कि उनकी #वीरांगनायें भी अपनी ऐतिहासिक दृढ़ता और पारंपरिक शौर्य के साथ उन सेनाओं का सामना करती रही ।
🚩दुर्भाग्य की बात है कि #भारत की इन #वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख शाही टुकड़ों पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया ।
🚩 1669 की क्रान्ति के जननायक, परतंत्र #भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, #राष्ट्रधर्म रक्षक #वीर #गोकुल सिंह जी और उनके सात हजार क्रान्तिकारी साथियों के #बलिदान दिवस पर {1जनवरी} उनको शत-शत नमन ।
🚩कैसे वीर थे वो अलबेले,कैसी अमर है उनकी कहानी।
सरदार गोकुल सिंह जी की, आओ याद करें कुर्बानी।।
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Monday, December 31, 2018

भारत के कवियों का एलान अंग्रेजों का न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं

31 दिसंबर 2018

अंग्रेजी कैलन्डर के अनुसार 31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर दारू पीते हैं । हंगामा करते हैं, महिलाओं से छेड़खानी करते हैं, रात को दारू पीकर गाड़ी चलाने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी वारदात, पुलिस व प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश होता है और 1 जनवरी से आरंभ हुई ये घटनाएं सालभर में बढ़ती ही रहती हैं । इसलिए कवियों ने इसका बहिष्कार किया है और जो मना रहे हैं उनको फटकार भी लगाई है ।

British poets do not accept the New Year of the British
आइये जानते हैं क्या कहा कवि ने...

हवा लगी पश्चिम की
सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।

ईस्वी सन तो याद रहा,
पर अपना संवत्सर भूल गए ।।

चारों तरफ नए साल का,
ऐसा  मचा है हो-हल्ला ।

बेगानी शादी में नाचे,
जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।

धरती ठिठुर रही सर्दी से ,
घना कुहासा छाया है ।

कैसा ये नववर्ष है,
जिससे सूरज भी शरमाया है ।।

सूनी है पेड़ों की डालें,
फूल नहीं हैं उपवन में ।

पर्वत ढके बर्फ से सारे,
रंग कहां है जीवन में ।।

बाट जोह रही सारी प्रकृति,
आतुरता से फागुन का ।

जैसे रस्ता देख रही हो,
सजनी अपने साजन का ।।

अभी ना उल्लासित हो इतने,
आई अभी बहार नहीं ।

हम अपना नववर्ष मनाएंगे,
न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं ।।

लिए बहारें आँचल में,
जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।

फूलों का श्रृंगार करके,
धरती दुल्हन बन जाएगी ।।

मौसम बड़ा सुहाना होगा,
दिल सबके खिल जाएँगे ।

झूमेंगी फसलें खेतों में,
हम गीत खुशी के गाएँगे ।।

उठो खुद को पहचानो,
यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।

चिन्ह गुलामी के कंधों पर,
कबतक ढोते रहोगे तुम ।।

अपनी समृद्ध परंपराओं का,
आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।

आर्यावर्त के वासी हैं हम,
अब अपना नववर्ष मनाएंगे ।।

एक दूसरे कवि ने भी अपनी कविता के माध्यम से देशवासियों को जगरूकता किया है...

ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह–सुधा बरसायेगी
शस्य–श्यामला धरती माता
घर-घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं

भारतीय नववर्ष नवरात्रों के व्रत से शुरू होता है घर-घर में माता रानी की पूजा होती है ।
शुद्ध सात्विक #वातावरण बनता है । चैत्र प्रतिपदा के दिन से महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारंम्भ, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध है ।

भोगी देश का अन्धानुकरण न करके युवा पीढ़ी भारत देश की महान संस्कृति को पहचानें ।

1 जनवरी में सिर्फ नया कलैण्डर आता है, लेकिन चैत्र में नया पंचांग आता है उसी से सभी भारतीय पर्व ,विवाह और अन्य मुहूर्त देखे जाते हैं । इसके बिना हिन्दू समाज जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता इतना महत्वपूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग ।

1 जनवरी को केवल कैलेंडर बदलें अपनी संस्कृति नहीं...!!!

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Sunday, December 30, 2018

न ही क्रिसमस मनाएंगे और न ही अंग्रेजों का नया वर्ष : भारतवासी

30 दिसंबर 2018

🚩भारतवासियों में अब जागृति आ रही है, 25 दिसम्बर #क्रिसमस-डे का सोशल मीडिया पर इतना #विरोध #हुआ कि किसी ने भी क्रिसमस की बधाई नहीं दी और तो और क्रिसमस के दिन भारतवासियों ने तुलसी जी की पूजा करके #तुलसी #पूजन #दिवस #मनाया और कहा कि अब हम हर साल 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस ही मनाएंगे ।

🚩फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल साइट्स पर आज भी लोग चर्चा कर रहे हैं कि हम अंग्रेजों द्वारा थोपा गया नया साल नहीं मनाएंगे क्योंकि अंग्रेजों ने हमें आर्थिक रूप से तो कमजोर बनाया ही है साथ में हमारी संस्कृति पर भी कुठाराघात किया है ।
Neither will celebrate Christmas nor the new year of British: Indian
🚩#अंग्रेजों ने #भारत की दिव्य #परम्पराओं और त्यौहारों को #मिटाकर अपनी #पश्चिमी #संस्कृति #थोपी, अंग्रेज भी जानते हैं कि अगर भारत पर राज करना है तो हिन्दू देवी-देवताओं एवं साधु-संतों के प्रति हिंदुओं की आस्था तोड़ो, उनके धार्मिक रीति-रिवाजों को तुच्छ दिखाकर अपने कल्चर की तरफ मोड़ो और हमने ये देखा कि भारत का बहुत बड़ा वर्ग मानसिक रूप से आज भी अंग्रेजों का ही गुलाम है । 

🚩अब #सोशल #मीडिया के जरिये लोगों में #जागरूकता आ रही है । धीरे-धीरे ही सहीं पर लोग अब अपनी संस्कृति की तरफ मुड़ रहे हैं ।
ट्विटर ट्रेंड के जरिये भी लोग अपनी बात रख रहे हैं । लोगों का कहना है कि बाहरी चकाचौंध तथा कई प्रकार की बुराइयों से लिप्त अंगेजों का नववर्ष अब हम नहीं मनाएंगे । हमारी संस्कृति के अनुसार चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही अपना नया साल मनाएंगे  ।
समाज में बढ़ती इस कुरीति को रोकने का प्रयास करता आज का युवावर्ग
#कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं
हैशटैग के जरिये कुछ इस प्रकार अपनी बात रख रहा है ।

🚩उनका कहना है कि...
भारत को विश्व का सिरमौर बनाना है ।
विश्वगुरु के पद पर भारत को बिठाना है ।।
गौ-गीता-गंगा की महत्ता बता जन-जन को जगाना है ।
पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण से युवाधन को चेताना है ।।

कुछ ट्वीट आपके सामने रख रहे हैं, जिससे आपको भी पता चल जाएगा कि आखिर भारत की जनता क्या चाहती है...

🚩 1> हिन्दू योद्धा हैंडल से ट्वीट किया गया कि
अगर आप अब भी ईसाई नूतन वर्ष ही मनाते हो तो हमें मजबूरन कहना ही होगा👇
"मंगल, लक्ष्मीबाई, भगत बिस्मिल हम शर्मिंदा हैं😞🙏🏻लार्ड मैकाले की सेक्युलर औलादें अब भी भारत मे जिंदा हैं ।
#कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं, चैत्र शुक्ल नववर्ष अपनाएं ईसाई नववर्ष नहीं ।

🚩 2> शंकर जोशी लिखते हैं कि अंग्रेजी 31 दिसंबर को नव वर्ष मनाना यह एक प्रकार से एक दिन का अपना धर्मांतरण ही है हमारा नया वर्ष तो चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा को ही नववर्ष मनाना चाहिए ।#कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं

🚩 3> सुलेखा सिंह लिखती हैं कि 
31 Dec वाले नववर्ष पर 1 सर्वेक्षण के अनुसार 14 से 19 वर्षीय किशोर भी मादक पदार्थों की लत में पड़ते हैं, इन दिनों शराब की खपत 3 गुणा बढ़ जाती है । तो केवल #कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं, अपनाएं हिन्दू चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वाला नववर्ष ।

🚩 4> हरि प्रिया ने लिखा कि भारत के मॉडर्न युवा अपनी संस्कृति को भूल कर पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर पतन की ओर जा रहा है ।
एक सर्वे के अनुसार  क्रिसमस (25 दिसम्बर से 1 जनवरी ) के दिनों में नशीले पदार्थों के सेवन से #युवाधन की #तबाही व #आत्महत्याएँ #खूब होती हैं । इसलिए #कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं

🚩5> जय चौधरी ने लिखा कि जिसे आज आप नया साल कहते हैं वो असल मे मिशनरीज़ का नया साल कहलाता हैं । इन दिनों में शराब ,ड्रग्स व अन्य व्यसन पदार्थों का सेवन व युवा धन की तबाही बढ़ती है । इसलिए मनाएँ भारतीय संस्कृति अनुसार चैत्र प्रतिपदा का नववर्ष ।
#कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं

🚩 6>तेजस्वी ने लिखा है कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में जो लोग क्रिसमस एवं ईसाई नूतन वर्ष पार्टी,वेलेंटाइन डे,बर्थडे पर शराब का अधिक सेवन करते हैं, वे परिणाम स्वरूप असाध्य रोग  कैंसर,अल्सर,टी.बी.,एड्स आदि से संक्रमित हो जाते हैं ।
#कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं

🚩7>प्रवीण चौधरी ने लिखा कि New year पार्टियों में शराब सेवन, मादक पदार्थों की खपत बढ़ती है,युवाओं को भारी नुकसान होता है,शारिरिक व मानसिक बल कमजोर होता है । व्यवहार बदल जाता है । यानी जिंदगी बर्बाद,तो ऐसे new year को कहें Bye ओर अपनाएं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का नववर्ष ।
#कैलेंडर_बदलें_संस्कृति_नहीं

🚩इस तरह के हजारों ट्वीटस आज हमें देखने को मिल रहे हैं । आइये हम सब भी उनको उत्साहित करते हुए "विश्वगुरु भारत अभियान" का हिस्सा बनें ।

🚩गौरतलब है कि 25 दिसम्बर से 1 जनवरी  के दौरान शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन, आत्महत्या जैसी घटनाएँ, किशोर-किशोरियों व युवक युवतियों की तबाही एवं अवांछनीय कृत्य खूब होते हैं । इसलिए हिन्दू संत आसाराम बापू ने  आवाहन किया हैः "25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक #तुलसी पूजन, जप #माला पूजन, #गौ पूजन, #हवन, #गौ गीता गंगा #जागृति यात्रा, #सत्संग आदि #कार्यक्रम #आयोजित हों, जिससे सभी की भलाई हो, तन तंदुरुस्त व मन प्रसन्न रहे तथा बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रसाद प्रकट हो और न आत्महत्या करें, न गौहत्याएँ करें, न यौवन-हत्याएँ करें बल्कि आत्मविकास करें, गौ गंगा की रक्षा करें एवं स्वयं का विकास करें । गौ, गंगा, तुलसी से ओजस्वी तेजस्वी बनें व गीता ज्ञान से अपने मुक्तात्मा, महानात्मा स्वरूप को जानें ।"

🚩इसी लक्ष्य को लेकर बापू आसारामजी के अनुयायियों के साथ-साथ आम जनता एवं #हिन्दू संगठनों व #हिंदुत्वनिष्ठों की #ट्वीटस जनता में #जागृति #ला #रही है ।

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