Thursday, August 1, 2019

हिंदू मन्दिरों की लूट सिर्फ 11वीं नहीं, 21वीं शताब्दी में भी चल रही है

01 अगस्त 2019
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🚩पूर्व में मुग़लों एवं अंग्रेजों ने भारत के मंदिरों को लूटा, अरबों-खरबों रुपए लेकर चले गए । मंदिर में भक्त इसलिए दान देते हैं कि गरीबों, गायों के रक्षण में, धार्मिक कार्यों में, मंदिर की देखभाल एवं समाज और देश की सेवा के लिए काम आ सके, लेकिन आज उससे विपरीत हो रहा है, बड़े-बड़े मंदिरों को सरकार ने अपने अधीन करके रखा है उसके पैसे मंदिरों, गरीबों एवं देश की सेवा के लिए नहीं बल्कि चर्च, मस्जिद एवं मौलवी और इमाम के लिए खर्च किये जा रहे हैं । एक तरफ तो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश कहा जाता है लेकिन वहीं दूसरी तरफ हिंदू मदिरों को लूटकर चर्च और मस्जिदों का विकास किया जा रहा है फिर देश धर्मनिरपेक्ष कहाँ से हुआ?

🚩श्री जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने हाल ही में राज्य के बजट का प्रस्ताव रखा जिसमें एक महत्वपूर्ण घोषणा की गई है, जिसके कारण हिंदुओं में बहुत अधिक रोष है, विशेषकर जो धार्मिक रूपांतरण का विरोध करते हैं । आंध्र प्रदेश सरकार ने ईसाई पादरी, मुस्लिम इमामों को मासिक वेतन देने का प्रस्ताव किया है। इस योजना के लिए वर्ष 2019 - 20  के लिए कुल 948.72 करोड़ रुपये आबंटित किए गए हैं।
दूसरी ओर, हिंदू पुजारियों / पंडितों का इस योजना में कोई उल्लेख नहीं मिलता है ।
🚩उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश सरकार ने निम्नलिखित अनुदान दिया है । (परोक्ष सुचना स्रोत http://christianminorities.ap.nic.in/)
1. नया चर्च निर्माण: 1,00,000 रुपये तक
2. चर्च की मरम्मत: रु 30,000 तक
3. क्रिश्चियन अस्पताल: रु 10,00,000 तक
4. क्रिश्चियन स्कूल भवन: रु 5,00,000 तक
5. क्रिश्चियन अनाथालय: रु 5,00,000 तक
6. क्रिश्चियन ओल्ड एज होम: रु 5,00,000 तक
7. ईसाई समुदाय हॉल सह युवा संसाधन केंद्र: रु 5,00,000 तक
🚩कुछ लोग उस वेतन की तुलना कर रहे हैं जो हिंदू मंदिरों में काम करने वाले पुजारियों को श्री जगनमोहन रेड्डी की नई योजना के तहत मिलते हैं । यह अज्ञानता के अलावा और कुछ नहीं है । जो लोग ऐसा कर रहे हैं उन्हें और अन्य लोगों को भी पता होना चाहिए कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अधिकांश हिंदू मंदिर राज्य के हाथों में हैं और जो वेतन दिया जाता है वह मंदिर के पैसे से है राज्य के बजट से नहीं ।
🚩यह एक अलग कहानी है कि हजारों एकड़ मंदिरों पर अतिक्रमण किया गया था और सरकार द्वारा वैध रूप से या अवैध रूप से दोनों तरह से और मंदिरों की हजारों करोड़ की संपत्ति लूटी गई थी।
🚩विजयवाड़ा के पास दशरिपलेम नामक एक गाँव में एक और घटना घटी, जिसमें ईसाई धर्म से हिंदू धर्म में वापस आने वाली 3 महिलाओं को धमकी दी गई। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उनके जीवन को दयनीय बना दिया गया था और यहां तक ​​कि पुलिस भी उनकी शिकायत दर्ज नहीं कर रही है ये केवल वे घटनाएं हैं जो सामने आईं और हमें नहीं पता कि नए प्रशासन के कार्यभार संभालने के बाद से कितने और हुए।
🚩क्या भरत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है?
व्यावहारिक तौर पर देखें तो भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं है । परिभाषा के अनुसार एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को खुद को किसी धर्म विशेष से दूर रखना चाहिए। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है । भरत में, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अधिकांश पार्टियाँ बहुसंख्यक हिंदुओं को ठगती हैं और तथाकथित अल्पसंख्यकों को खुश करती हैं । शायद भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ बहुसंख्यक लोग समानता के लिए लड़ते हैं और लगभग 20 करोड़ की आबादी वाला धर्म अल्पसंख्यक माना जाता है। मुझे यकीन नहीं है कि हमारे राजनीतिक दलों ने धर्मनिरपेक्षता की इस परिभाषा को उधार लिया है, लेकिन भारत में जो हो रहा है वह सहीं मायने में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में नहीं हो सकता है।
🚩इसका हल क्या है?
जब तक मन्दिर सरकार के चंगुल से मुक्त नहीं होते तब तक चढ़ावा चढ़ाना बंद करें । पुजारियों के वेतन के लिए हिन्दू समाज वैकल्पिक व्यवस्था बनाए । सरकारों को अहसास कराएं कि हिन्दू समाज सरकारी पक्षपात को पहचानता है । अन्यथा हम यूं ही लुटते रहेंगे ।
https://www.pgurus.com/paying-salaries-to-pastors-and-imams-by-andhra-govt-robbing-paul-to-pay-peter/
🚩हिंदुस्तान हिन्दुओं का देश है, हिन्दू बहुसंख्यक है उनको पूरा अधिकार मिलना चाहिए हमेशा हिन्दुओं की आस्था पर ही कुठाराघात होता है ।
चर्चो या मस्जिदों में सेवा के नाम पर देशवासियों का धर्मान्तरण और दंगे करवाने के लिए विदेश से भारी फंडिंग होती है इस बात का खुलासा भी कई बार हुआ है, लेकिन सरकार उन पर कभी नियंत्रण नहीं करती है बल्कि जो समाज में अच्छे सेवाकार्य कर रहे हैं, समाज मे सुख-शांति पहुँचा रहे है, गरीबों कि मदद कर रहे है उन मंदिरों और आश्रमों पर ही सरकार कि नजर क्यों जाती है?
🚩मंदिरों और आश्रमों का पैसा केवल समाज में हो रहे अच्छे कार्यो में लगना चाहिए न कि सरकार की तिजोरियों में भरा जाना चाहिए ।  हिन्दू बाहुल देश मे हिन्दुओं की आस्था की रक्षा करनी चाहिए, मंदिरों और आश्रमो को खुद की स्वतंत्रता देनी चाहिए तभी देश-धर्म-समाज और संस्कृति कि रक्षा हो पाएगी ।
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Wednesday, July 31, 2019

अंडे खाते हैं तो हो जाइए सावधान, हो सकती हैं ये भयंकर बीमारियां

31 जुलाई 2019
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🚩भारतीय संस्कृति और भारतीयों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने का यह एक विराट षड्यंत्र है । अंडे के भ्रामक प्रचार के कारण ऐसे परिवार जो अंडे का छिलका तक देखना पसंद नहीं करते थे, आज बेझिझक अंडा खाते हैं । अंडे का प्रचार करके उसे जितना फायदेमंद बताया जाता है वह अपने अवगुणों के कारण उतना ही नुकसानप्रद होता है, अंडे में कई विषैले तत्व भी होते हैं, जो आपके स्वस्थ शरीर में जहर घोलने का काम करते हैं ।

🚩अंडा शाकाहारी नहीं होता है, लेकिन क्रूर व्यावसायिकता के कारण एवं ऊलजलूल तर्क देकर उसे शाकाहारी सिद्ध किया जा रहा है । मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पक्के तौर पर साबित कर दिया है कि दुनिया में कोई भी अंडा चाहे वह सेया हुआ हो या बिना सेया हुआ हो, निर्जीव नहीं होता । अफलित अंडे की सतह पर प्राप्त ‘इलेक्ट्रिक एक्टिविटी’ कोपोलीग्राफ पर अंकित कर वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि अफलित अंडा भी सजीव होता है । अंडा शाकाहार नहीं, बल्कि मुर्गी का वैनिक (रज) स्राव है ।
🚩यह सरासर गलत व झूठ है कि अंडे में प्रोटीन, खनिज, विटामिन और शरीर के लिए जरूरी सभी एमिनो एसिड्स भरपूर हैं और बीमारों के लिए पचने में आसान है । अब आप कहेंगे कि डॉक्टर्स भी तो अंडा खाने की सलाह देते हैं, तो यहां एक ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत में पढ़ी जाने वाली चिकित्सा की पढ़ाई MBBS यूरोप से ली गयी है और यूरोप एक ऐसा देश है जहाँ हरी सब्जियों की तुलना में मांस एवं अंडे अधिक पाए जाते हैं ।
🚩अब आप ही बताइये एक ऐसा देश जहाँ प्रोटीन का कोई और स्रोत न हो वहाँ तो किताबों में अंडे और मांस को ही एकमात्र स्त्रोत माना ही जाएगा, लेकिन भारत में तो भरपूर मात्रा में हरी सब्जियां उपलब्ध है ।
🚩शरीर की रचना और स्नायुओं के निर्माण के लिए जितने प्रोटीन की जरूरत होती है । उसकी रोजाना आवश्यकता प्रति किलोग्राम वजन पर 1 ग्राम होती है यानी 60 किलोग्राम वजन वाले व्यक्ति को प्रतिदिन 60 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है जो 100 ग्राम अंडे में से मात्र 13.3 ग्राम ही मिलता है ।इसकी तुलना में प्रति 100 ग्राम सोयाबीन से 43.2 ग्राम, मूँगफली से 31.5 ग्राम, मूँग और उड़द से 24, 24 ग्राम तथा मसूर से 25.1 ग्राम प्रोटीन प्राप्त होता है । शाकाहार में अंडे व मांसाहार से  कहीं  अधिक  प्रोटीन होता  है  इस  बात  को अनेक  पाश्चात्य  वैज्ञानिकों  ने प्रमाणित किया है ।
🚩केलीफोर्निया के डियरपार्क में ‘सेंटहेलेना’ अस्पताल के ‘लाईफ एण्डस्टाइल एण्डन्यूट्रिशनप्रोग्राम’ के निर्देशक डॉ. जोन ए. मेक्डूगलकादावा है कि शाकाहार में जरूरत से भी ज्यादा प्रोटीन है ।
🚩1972 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के ही डॉ. एफ. स्टेर ने प्रोटीन के बारे में अध्ययन करतेहुए प्रतिपादित किया कि शाकाहारी मनुष्यों में से अधिकांशको हर रोज की जरूरत से दुगना प्रोटीन अपने आहार से मिल जाता है । 200 अंडे खाने से जितना विटामिन ‘सी’ मिलता है उतना विटामिन ‘सी’ एक नारंगी (संतरा) खाने से मिल जाता है । जितना प्रोटीन तथा कैल्शियम अंडे में है उसकी अपेक्षा चने, मूँग, मटर में ज्यादा है ।
🚩ब्रिटिश हेल्थ मिनिस्टर मिसेज एडवीनाक्यूरी ने चेतावनी दी कि अंडों से मौत संभावित है क्योंकि अंडों में सालमोनेला विष होता है जो स्वास्थ्य की हानि करता है । अंडों से हार्ट अटैक की बीमारी होने की चेतावनी नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकन डॉ. ब्राऊन व डॉ. गोल्डस्टीन ने दी है क्योंकि अंडों में कोलेस्ट्राल भी बहुत पाया जाता है । साथ ही अंडे से पेट के कई रोग होते हैं ।
🚩डॉ. पी.सी.सेन, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारतसरकार ने भी चेतावनीदी है कि अंडों से कैंसर होता है क्योंकि अंडों में भोजन तंतु नहीं पाये जाते हैं तथा इनमें डी.डी.टी. विष पाया जाता है ।
🚩जानलेवा रोगों की जड़ है : अंडा
🚩अंडे व दूसरे मांसाहारी खुराक में अत्यंत जरूरी रेशातत्त्व (फाईबर्स) जरा-भी नहीं होते हैं । जबकि हरीसाग-सब्जी, गेहूँ, बाजरा, मकई, जौ, मूँग, चना, मटर, तिल, सोयाबीन, मूँगफली वगैरह में ये काफी मात्रा में होते हैं । अमेरिका के डॉ. राबर्ट ग्रास की मान्यता के अनुसार अंडे से टी.बी. और पेचिश की बीमारी भी हो जाती है । इसी तरह डॉ. जे.एम. विनकीन्स कहते हैं कि अंडे से अल्सर होता है ।
🚩मुर्गी के अंडों का उत्पादन बढ़े इसके लिए उसे जो हार्मोन्स दिये जाते हैं उनमें स्टील बेस्टेरोलनामक दवा महत्त्वपूर्ण है । इसदवावाली मुर्गी के अंडे खाने से स्त्रियों को स्तनका कैंसर, हाई ब्लडप्रेशर, पीलिया जैसे रोग होने की सम्भावना रहती है । यह दवापुरुष के पौरुषत्व को एक निश्चित अंश में नष्ट करती है ।
🚩वैज्ञानिक ग्रास के निष्कर्ष के अनुसार अंडे से खुजली जैसे त्वचा के लाइलाजरोग और लकवा होने की भी संभावना होती है ।
🚩अंडे के अवगुण का इतना सारा विवरण पढ़ने के बाद बुद्धिमानोें को उचित है कि स्वयं भी इस विष का सेवन न करें एवं जो इसके नुकसान से वाकिफ नहीं हैं उन्हें इस विष के सेवन से बचाने का प्रयत्न करें । उन्हें भ्रामक प्रचार से बचायें ।
🚩संतुलित शाकाहारी भोजन लेने वाले को अंडा या अन्य मांसाहारी आहार लेने की कोई जरूरत नहीं है ।शाकाहारी भोजनसस्ता, पचने में आसान और आरोग्य की दृष्टि से दोषरहित होता है । कुछ दशक पहले जब भोजन में अंडे का कोई स्थान नहीं था, तब भी हमारे बुजुर्ग तंदुरुस्त रहकर लम्बी उम्र तक जीते थे । अतः अंडे के उत्पादकों और भ्रामक प्रचार की चपेट में न आकर हमें उक्त तथ्यों को ध्यान में रख कर ही अपनी इस शाकाहारी आहार संस्कृति की रक्षा करनी होगी ।
🚩आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः ।
1971 में ‘जामा’ पत्रिका में एक खबर छपी थी । उसमें कहा गया था कि ‘शाकाहारी भोजन 60 से 67 प्रतिशत तक हृदयरोग को रोक सकता है ।उसका कारण यह है कि अंडे और दूसरे मांसाहारी भोजन में चर्बी (कोलेस्ट्राल) की मात्रा बहुत ज्यादा होती है ।’
केलिफोर्निया की डॉ. केथरिन निम्मो ने अपनी पुस्तक ‘हाऊ हेल्दीयरआर एग्ज’ में भी अंडे के दुष्प्रभाव का वर्णन किया है ।
🚩वैज्ञानिकों की इन रिपोर्टों से सिद्ध होता है कि अंडे के द्वारा हम जहर का ही सेवन कर रहे हैं । अतः हमें अपने-आपको स्वस्थ रखने व फैल रही जानलेवा बीमारियों से बचने के लिए ऐसेआहार से दूर रहने का संकल्प करना चाहिए व दूसरों को भी इससे बचाना चाहिए ।
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IIT मद्रास एवं अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल की सच्चाई जानकर हिल जायेंगे

30 जुलाई 2019
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🚩IIT मद्रास में बीफ फेस्ट का आयोजन किया गया। कुछ पाठक IIT के नाम से प्रभावित हो जाते है। उन्हें लगता है कि IIT में पढ़ने वाले गौहत्या पर प्रतिबन्ध का विरोध कर रहे हैं, तब तो अवश्य कोई बात होगी। सत्य यह है कि IIT मद्रास ने कुछ वर्ष पहले इंजीनियरिंग के अतिरिक्त कुछ अन्य पाठ्क्रम आरम्भ किये है। जैसे इतिहास, सामाजिक विज्ञान, विदेशी भाषा आदि में Phd आदि। इन पाठ्यक्रमों में भाग लेने वाले अधिकतर युवा JNU छाप होते हैं । यह संगठन अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल के नाम से बनाया गया है। यह संगठन कम, भानुमति का कुम्बा अधिक है। यह कुम्बा दलित, मुस्लिम, साम्यवादी, वंचित , शोषित, मूलनिवासी, अनार्य, दस्यु, द्रविड़, नवबौद्ध, नास्तिक, रावण और महिषासुर के वंशज, नाग जाति के वंशज आदि का बेमेल गठजोड़ हैं ।

🚩इस संगठन का मूल उद्देश्य हमारे महान इतिहास, हमारी संस्कृति, हमारे धर्म ग्रन्थ, हमारी सभ्यता और हमारी परंपरा का विरोध करना हैं। यह ठीक है कि कालांतर में जातिवाद, अन्धविश्वास, कुप्रथा आदि का समावेश हमारे समाज में हो गया है। मगर इसका अर्थ यह नहीं कि हम सभी श्रेष्ठ एवं उत्तम बातों का विरोध भी उसी समान करे जैसे हम गलत बातों का करते हैं। यह कार्य ठीक वैसा है जैसे एक ऊँगली पर फोड़ा निकल जाये तो उसमें चीरा लगाने के स्थान पर पूरे हाथ को काट दिया जाये। ध्यान देने योग्य यह है कि यह संगठन देश को तोड़ने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
🚩इस लेख में हम इस संगठन के मार्गदर्शक डॉ अम्बेडकर एवं पेरियार की मान्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन कर यह सिद्ध करेंगे कि कैसे यह बेमेल गठजोड़ है। जो स्वयं ही भटका हुआ है। वह अन्य को क्या मार्ग दिखायेगा।
🚩पेरियार द्वारा ईसाई बिशप रोबर्ट कैम्पबेल की आर्यों के विदेशी होने की कल्पना का अँधा अनुसरण किया गया। कैम्पबेल के अनुसार आर्यों ने देश पर आक्रमण किया, मूलनिवासियों को मारा और उन्हें शूद्रों के नाम से संबोधित किया। कैम्पबेल का उद्देश्य दक्षिण भारत में रहने वाले हिंदुओं को भड़का कर उन्हें ईसाई बनाना था। जबकि पेरियार का उद्देश्य द्रविड़ राजनीति चमकाने का था।
🚩रिसले नामक अंग्रेज अधिकारी ने भारतीयों की जनगणना करते हुए ब्राह्मणों और अछूतों के मध्य अंतर करने का पैमाना नाक के परिमाण के रूप में निर्धारित किया था। उसके अनुसार द्रविड़ मूलनिवासी 'अनास' अर्थात छोटी और चपटी नाक के थे जबकि आर्य विदेशी थे इसलिए तीखी और लंबी नाक वाले थे। इस अवैज्ञानिक और हास्यपद विभाजन का उद्देश्य भी ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों को विभाजित करना था। जिससे की हिन्दू समाज के अभिन्न अंग का ईसाई धर्मान्तरण किया जा सके।
🚩यहाँ तक भी जब दाल नहीं गली तो ईसाईयों ने नया खेल रचा। उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि जो श्वेत रंग के है वो आर्य और विदेशी है, जो अश्वेत रंग के है वो द्रविड़ और मूलनिवासी है। जो मध्य रंग के है वो आर्यों द्वारा जबरन मूलनिवासियों की स्त्रियों को अपहरण कर उनके सम्बन्ध से विकसित हुई संतान है।
🚩इस प्रकार से इन तीन मिथकों को ईसाईयों ने प्रचारित किया एवं पेरियार ने इनका सहारा लिया जिससे उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों में विभाजित कर वोटों को बटोरा जा सके।
🚩इतना ही नहीं अपनी इस महत्वकांक्षा के चलते पेरियार ने 1940 में दक्षिण राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आँध्रप्रदेश को मिलाकर द्रविड़स्तान बनाने का प्रयास भी किया था। जिसे अंग्रेजों और राष्ट्रभक्त नेताओं ने सिरे से नकार दिया था। पेरियार का प्रभाव केवल तमिल नाडु और श्री लंका में हुआ जिसका नतीजा तमिल-सिंहली विवाद के रुप में निकला।
🚩पेरियार ने तमिलनाडु के प्रसिद्द कवि सुब्रमण्यम भारती की भी जमकर आलोचना करी थी। कारण भारती द्वारा अपनी कविताओं की रचना संस्कृत भाषा में करी गई थी। जबकि पेरियार उसे विदेशी आर्यों की मृत भाषा मानते थे। सत्य यह है कि पेरियार को हर उस चीज से नफरत थी जिस पर हम भारतीय गर्व करते है।
🚩डॉ अम्बेडकर के नाम लेवा यह संगठन भूल गया कि पेरियार ने 1947 में डॉ अम्बेडकर पर देश हित की बात करने एवं द्रविड़स्तान को समर्थन न देने के कारण तीखे स्वरों में हमला बोला था। पेरियार को लगा था कि डॉ अम्बेडकर जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष कर रहे है। इसलिए उसका साथ देंगे मगर डॉ अम्बेडकर महान राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने पेरियार की सभी मान्यताओं को अपनी लेखनी से निष्काषित कर दिया।
🚩1. डॉ अम्बेडकर अपनी पुस्तक "शुद्र कौन" में आर्यों के विदेशी होने की बात का खंडन करते हुए लिखते है कि-
🚩नाक के परिमाण के वैज्ञानिक आधार पर ब्राह्मणों और अछूतों की एक जाति है। इस आधार पर सभी ब्राह्मण आर्य है और सभी अछूत भी आर्य है। अगर सभी ब्राह्मण द्रविड़ है तो सभी अछूत भी द्रविड़ है।
🚩इस प्रकार से डॉ अम्बेडकर ने नाक की संरचना के आधार पर आर्य-द्रविड़ विभाजन को सिरे से निष्काषित कर दिया।
🚩2. जहाँ पेरियार संस्कृत भाषा से नफरत करते थे, वही डॉ अम्बेडकर संस्कृत भाषा को पूरे देश की मातृभाषा के रूप में प्रचलित करना चाहते थे। डॉ अम्बेडकर मानते थे कि संस्कृत के ज्ञान के लाभ से प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ज्ञान को जाना जा सकता है। इसलिए संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है।
🚩3. पेरियार द्रविड़स्तान के नाम पर दक्षिण भारत को एक अलग देश के रूप में विकसित करना चाहते थे। जबकि डॉ अम्बेडकर सम्पूर्ण भारत को एक छत्र राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे जो संस्कृति के माध्यम से एक सूत्र में पिरोया हुआ हो।
🚩4. डॉ अम्बेडकर आर्यों को विदेशी होना नहीं मानते थे जबकि पेरियार आर्यों को विदेशी मानते थे।
🚩5. डॉ अम्बेडकर रंग के आधार पर ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण का विभाजन गलत मानते थे जबकि पेरियार उसे सही मानते थे।
🚩6. डॉ अम्बेडकर मुसलमानों द्वारा पिछले 1200 वर्षों में किये गए अत्याचारों और धर्म परिवर्तन के कटु आलोचक थे। उन्होंने पाकिस्तान बनने पर सभी दलित हिंदुओं को भारत आने का निवेदन किया था। क्योंकि उनका मानना था कि इस्लाम मुस्लिम-गैर मुस्लिम और फिरकापरस्ती के चलते सामाजिक समानता देने में नाकाम है। 1921 में हुए मोपला दंगों की डॉ अम्बेडकर ने कटु आलोचना करी थी जबकि पेरियार वोट साधने की रणनीति के चलते मौन रहे थे।
🚩7. डॉ अम्बेडकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी को आर्य मानते थे जबकि पेरियार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को आर्य और शुद्र को अनार्य मानते थे।
🚩8. डॉ अम्बेडकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते थे जबकि पेरियार स्वहित को सर्वोपरि मानते थे।
🚩9. डॉ अम्बेडकर नास्तिक कम्युनिस्टों को नापसन्द करते थे क्योंकि उन्हें वह राष्ट्रद्रोही और अंग्रेजों का पिटठू मानते थे जबकि पेरियार कम्युनिस्टों को अपना सहयोगी मानते थे क्योंकि वे उन्हीं के समान देश विरोधी राय रखते थे।
🚩10. डॉ अम्बेडकर के लिए भारतीय संस्कृति और इतिहास पर गर्व था जबकि पेरियार को इनसे सख्त नफरत थी।
🚩11. डॉ अम्बेडकर ईसाईयों द्वारा साम,दाम, दंड और भेद के नीति से विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर धर्मान्तरण करने के कटु आलोचक थे। यहाँ तक कि उन्हें ईसाई बनने का प्रलोभन दिया गया तो उन्होंने उसे सिरे से नकार दिया क्योंकि उनका मानना था कि ईसाई धर्मान्तरण राष्ट्रहरण के समान है। इसके ठीक विपरीत पेरियार ईसाई मिशनरियों द्वारा गाड़े गए हवाई किलों के आधार पर अपनी घटिया राजनीति चमकाने पर लगे हुए थे। पेरियार ने कभी ईसाईयों के धर्मान्तरण का विरोध नहीं किया।
🚩इस प्रकार से डॉ अम्बेडकर और पेरियार विपरीत छोर थे जिनके विचारों में कोई समानता न थी। फिर भी भानुमति का यह कुम्बा जबरदस्ती एक राष्ट्रवादी नेता डॉ अम्बेडकर को एक समाज को तोड़ने की कुंठित मानसिकता से जोड़ने वाले पेरियार के साथ नत्थी कर उनका अपमान नहीं तो क्या कर रहे है।
🚩निष्पक्ष पाठक विशेष रूप से अम्बेडकरवादी चिंतन अवश्य करे। - डॉ विवेक आर्य
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