01 अगस्त 2019
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पूर्व में मुग़लों एवं अंग्रेजों ने भारत के मंदिरों को लूटा, अरबों-खरबों रुपए लेकर चले गए । मंदिर में भक्त इसलिए दान देते हैं कि गरीबों, गायों के रक्षण में, धार्मिक कार्यों में, मंदिर की देखभाल एवं समाज और देश की सेवा के लिए काम आ सके, लेकिन आज उससे विपरीत हो रहा है, बड़े-बड़े मंदिरों को सरकार ने अपने अधीन करके रखा है उसके पैसे मंदिरों, गरीबों एवं देश की सेवा के लिए नहीं बल्कि चर्च, मस्जिद एवं मौलवी और इमाम के लिए खर्च किये जा रहे हैं । एक तरफ तो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश कहा जाता है लेकिन वहीं दूसरी तरफ हिंदू मदिरों को लूटकर चर्च और मस्जिदों का विकास किया जा रहा है फिर देश धर्मनिरपेक्ष कहाँ से हुआ?
श्री जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने हाल ही में राज्य के बजट का प्रस्ताव रखा जिसमें एक महत्वपूर्ण घोषणा की गई है, जिसके कारण हिंदुओं में बहुत अधिक रोष है, विशेषकर जो धार्मिक रूपांतरण का विरोध करते हैं । आंध्र प्रदेश सरकार ने ईसाई पादरी, मुस्लिम इमामों को मासिक वेतन देने का प्रस्ताव किया है। इस योजना के लिए वर्ष 2019 - 20 के लिए कुल 948.72 करोड़ रुपये आबंटित किए गए हैं।
दूसरी ओर, हिंदू पुजारियों / पंडितों का इस योजना में कोई उल्लेख नहीं मिलता है ।
दूसरी ओर, हिंदू पुजारियों / पंडितों का इस योजना में कोई उल्लेख नहीं मिलता है ।
उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश सरकार ने निम्नलिखित अनुदान दिया है । (परोक्ष सुचना स्रोत http://christianminorities.ap. nic.in/)
1. नया चर्च निर्माण: 1,00,000 रुपये तक
2. चर्च की मरम्मत: रु 30,000 तक
3. क्रिश्चियन अस्पताल: रु 10,00,000 तक
4. क्रिश्चियन स्कूल भवन: रु 5,00,000 तक
5. क्रिश्चियन अनाथालय: रु 5,00,000 तक
6. क्रिश्चियन ओल्ड एज होम: रु 5,00,000 तक
7. ईसाई समुदाय हॉल सह युवा संसाधन केंद्र: रु 5,00,000 तक
2. चर्च की मरम्मत: रु 30,000 तक
3. क्रिश्चियन अस्पताल: रु 10,00,000 तक
4. क्रिश्चियन स्कूल भवन: रु 5,00,000 तक
5. क्रिश्चियन अनाथालय: रु 5,00,000 तक
6. क्रिश्चियन ओल्ड एज होम: रु 5,00,000 तक
7. ईसाई समुदाय हॉल सह युवा संसाधन केंद्र: रु 5,00,000 तक
कुछ लोग उस वेतन की तुलना कर रहे हैं जो हिंदू मंदिरों में काम करने वाले पुजारियों को श्री जगनमोहन रेड्डी की नई योजना के तहत मिलते हैं । यह अज्ञानता के अलावा और कुछ नहीं है । जो लोग ऐसा कर रहे हैं उन्हें और अन्य लोगों को भी पता होना चाहिए कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अधिकांश हिंदू मंदिर राज्य के हाथों में हैं और जो वेतन दिया जाता है वह मंदिर के पैसे से है राज्य के बजट से नहीं ।
यह एक अलग कहानी है कि हजारों एकड़ मंदिरों पर अतिक्रमण किया गया था और सरकार द्वारा वैध रूप से या अवैध रूप से दोनों तरह से और मंदिरों की हजारों करोड़ की संपत्ति लूटी गई थी।
विजयवाड़ा के पास दशरिपलेम नामक एक गाँव में एक और घटना घटी, जिसमें ईसाई धर्म से हिंदू धर्म में वापस आने वाली 3 महिलाओं को धमकी दी गई। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उनके जीवन को दयनीय बना दिया गया था और यहां तक कि पुलिस भी उनकी शिकायत दर्ज नहीं कर रही है ये केवल वे घटनाएं हैं जो सामने आईं और हमें नहीं पता कि नए प्रशासन के कार्यभार संभालने के बाद से कितने और हुए।
क्या भरत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है?
व्यावहारिक तौर पर देखें तो भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं है । परिभाषा के अनुसार एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को खुद को किसी धर्म विशेष से दूर रखना चाहिए। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है । भरत में, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अधिकांश पार्टियाँ बहुसंख्यक हिंदुओं को ठगती हैं और तथाकथित अल्पसंख्यकों को खुश करती हैं । शायद भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ बहुसंख्यक लोग समानता के लिए लड़ते हैं और लगभग 20 करोड़ की आबादी वाला धर्म अल्पसंख्यक माना जाता है। मुझे यकीन नहीं है कि हमारे राजनीतिक दलों ने धर्मनिरपेक्षता की इस परिभाषा को उधार लिया है, लेकिन भारत में जो हो रहा है वह सहीं मायने में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में नहीं हो सकता है।
इसका हल क्या है?
जब तक मन्दिर सरकार के चंगुल से मुक्त नहीं होते तब तक चढ़ावा चढ़ाना बंद करें । पुजारियों के वेतन के लिए हिन्दू समाज वैकल्पिक व्यवस्था बनाए । सरकारों को अहसास कराएं कि हिन्दू समाज सरकारी पक्षपात को पहचानता है । अन्यथा हम यूं ही लुटते रहेंगे ।
https://www.pgurus.com/paying- salaries-to-pastors-and-imams- by-andhra-govt-robbing-paul- to-pay-peter/
https://www.pgurus.com/paying-
हिंदुस्तान हिन्दुओं का देश है, हिन्दू बहुसंख्यक है उनको पूरा अधिकार मिलना चाहिए हमेशा हिन्दुओं की आस्था पर ही कुठाराघात होता है ।
चर्चो या मस्जिदों में सेवा के नाम पर देशवासियों का धर्मान्तरण और दंगे करवाने के लिए विदेश से भारी फंडिंग होती है इस बात का खुलासा भी कई बार हुआ है, लेकिन सरकार उन पर कभी नियंत्रण नहीं करती है बल्कि जो समाज में अच्छे सेवाकार्य कर रहे हैं, समाज मे सुख-शांति पहुँचा रहे है, गरीबों कि मदद कर रहे है उन मंदिरों और आश्रमों पर ही सरकार कि नजर क्यों जाती है?
चर्चो या मस्जिदों में सेवा के नाम पर देशवासियों का धर्मान्तरण और दंगे करवाने के लिए विदेश से भारी फंडिंग होती है इस बात का खुलासा भी कई बार हुआ है, लेकिन सरकार उन पर कभी नियंत्रण नहीं करती है बल्कि जो समाज में अच्छे सेवाकार्य कर रहे हैं, समाज मे सुख-शांति पहुँचा रहे है, गरीबों कि मदद कर रहे है उन मंदिरों और आश्रमों पर ही सरकार कि नजर क्यों जाती है?
मंदिरों और आश्रमों का पैसा केवल समाज में हो रहे अच्छे कार्यो में लगना चाहिए न कि सरकार की तिजोरियों में भरा जाना चाहिए । हिन्दू बाहुल देश मे हिन्दुओं की आस्था की रक्षा करनी चाहिए, मंदिरों और आश्रमो को खुद की स्वतंत्रता देनी चाहिए तभी देश-धर्म-समाज और संस्कृति कि रक्षा हो पाएगी ।
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