Monday, August 12, 2019

हिन्दू द्वेष व भारत विभाजन की कार्यशाला- जे एन यू

08 अगस्त 2019
http://azaadbharat.org
🚩ाहरलाल नेहरु िश्िद्यालय में 370 हटाने पर आधी रात में देशिरोधी नारे लगे थे ऐसा मीडिया में आया था और कुछ समय पूर् भी देश िरोधी नारे लगे थे । ऐसी और भी कई घटनाएं मीडिया में आईं । जो देश  हिन्दू िरोधी कार्य JNU में हुआ है इसके पीछे का रहस्य क्या है े आप जानिए।

🚩बौद्धिक कर्म के लिए ‘अकाश’ एक प्राथमिक शर्त है I इसी अकाश को प्रदान करने के लिए एक आदर्श, कृत्रिम परिेश की रचना करने हेतु जाहरलाल नेहरु िश्िद्यालय कीपरिकल्पना की गयी I जे एन यू द्ारा परिसर के अंदर ही सस्ती एं रियायती भोजन, आास एं अध्ययन की सुिधा उपलब्ध है। यह सब भारत सरकार द्ारा उपलब्ध ित्तीय सहायता से संभ हुआ I कालांतर में गारंटी कृत ‘अकाश’ की परिणिति से एक ‘कृत्रिम पारिस्थितिकी’ या ‘कैम्पस-हैबिटस’ (Campus-Habitus) की रचना हुई है, जो कि ऐसी िचार प्रक्रिया में छात्र-समुदाय के ‘सामाजीकरण’ को बढ़ाा देने के लिये अनुकूल है, जो ास्तिकता में सभी सुिधाओं के लिए भारतीय राज्य पर निर्भरता को एक कृत्रिम परिस्थिति न समझ कर स्भािक िशेषाधिकार (या नैसर्गिक िधान) समझता है. समस्त संसाधनों के लिए राज्य पर निर्भरता, “समाजाद” की आड़ में अंततोगत्ा “राजकीय पूंजीाद” है, और यही िचारधारा अपने अतिादी अतार “माओाद” के रूप में प्रकट होती है। इस तरह के ैचारिक दृष्टिकोण का ‘परम लक्ष्य’, किसी भी प्रकार के साधन से ‘राज्य’ पर अपना कब्जा करना होता है।
🚩भारतीय सन्दर्भ में ऐसा ैचारिक दृष्टिकोण ‘हिन्दू-द्वेष’ तथा ‘भारत-तोड़ो’ अभियान के रूप में अपघटित हो जाता है, और ऐसा दो ऐतिहासिक कारणों से संभ हुआ है । प्रथम कारण था नेहरु एं उनके उत्तराधिकारियों का सोियत मॉडल की तथाकथित समाजादी अर्थ-्यस्था को भारत में लागू करने का निर्णय, एं सोियत ब्लाक से उनकी घनिष्ठता । इस कारण अकादमिक संस्थानों के ‘उत्पाद’ जो नेहरु एं इंदिरा के राजनितिक एं आर्थिक कार्यक्रम को एक ैचारिक कलेर पहना सकें, ‘समाजादी’ िचारधारा की फैक्ट्री के रूप में उच्च-शिक्षण एं शोध संस्थाओं को बढ़ाा दिया गया । यहाँ गौर करने की बात यह है कि भले ही साम्यादी/समाजादी िचारधारा के पक्षधर जो चाहे एक राजनितिक दल के रूप में कांग्रेस का िरोध करें या उनके अन्य िचलन ाले रूप (नक्सली, माओादी) एक अतिादी आन्दोलन के रूप में भारतीय राज्य से लड़ते हों, परन्तु भारतीय घरेलु राजनीति में कांग्रेसी राजनीति (िभिन्न र्गों को राष्ट्रीय-हित की कीमत पर तुष्टिकरण करने की नीति तथा ‘निर्धनतााद’  राज्याश्रित रख कर प्रश्रय की बंदरबांट) को प्रति-संतुलित करनेाली सांस्कृतिक  सामाजिक शक्तियों (यथा राष्टादी शक्तियां जो तुष्टिकरण की नीति की िरोधी हैं, तथा, मनो-ैज्ञानिक, अध्यात्मिक, सामाजिक स्लंबन की पक्षधर रही हैं ), से अँध-घृणा, अंततः साम्यादियों/समाजादियों को राजनैतिक दृष्टि से कांग्रेस को ही परोक्ष या प्रत्यक्ष समर्थन देने पर िश करती हैं ।
🚩और ‘हिन्दू-द्वेष’  ‘भारत तोड़ो’ अभियान में साम्यादियों/समाजादियों के अपघटन का दूसरा ऐतिहासिक कारण स्यं साम्यादी/समाजादी िचारधारा की दुर्बलता एं अन्तर्िरोध से उपजा है. राज्य-नियंत्रित अर्थ्यस्था एं िशाल-नौकरशाही तंत्र के इस्पाती ढांचे से उत्पन्न गतिरोध, निम्न-उत्पादकता  निम्न-कार्यकुशलता के बोझ से सोियत-मॉडल धराशायी हो गया । नब्बे का दशक आते-आते ामपंथ  समाजाद का किला, िश् में दो-ध्रुीय ्यस्था का एक स्तम्भ सोियत-संघ ध्स्त हो गया । भारत में भी राज्य-नियंत्रित अर्थ्यस्था से खुली अर्थ्यस्था की ओर दिशा-परिर्तन करने का कारण भी निम्न-उत्पादकता  निम्न-कार्यकुशलता ही थी । कुछ अंशों में राजी गाँधी की आर्थिक नीति  नरसिम्हा रा के अंतर्गत कांग्रेस द्ारा अपनाई गयी नीतियों के मूल में यही तत् प्रधान रहे । यह भारत में भू-मंडलीकरण की शुरुआत कही जाती है। साम्यादियों के लिए यह ैचारिक  राजनितिक पराजय थी ।
🚩भारतीय सन्दर्भ में साम्यादियों को राजनितिक दल के रूप में अन्तराष्ट्रीय समर्थन के िलोप होने से केल घरेलू राजनीतिक गुणा-भाग तक सीमित कर दिया । इस बीच घरेलू राजनीति में राजनीतिक शक्ति-संतुलन में आये परिर्तनों ने उन्हें राष्ट्रादी शक्तियों के उभार से कमजोर हुयी कांग्रेस को समर्थन देने की राजनीति या फिर कांग्रेस से इतर, ‘अस्मिता’ की राजनीति से उभरे दलों से तालमेल करने के दो भिन्न-ध्रुों में डोलने के लिए िश कर दिया. अस्मिताओं के आन्दोलनों के जोर पकड़ने पर साम्यादियों/समाजादियों को भी अपने राजनितिक नारे को “क्लास-स्ट्रगल” यानि “र्ग-संघर्ष” से बदलकर “कास्ट-स्ट्रगल” यानि “र्ण-संघर्ष” में परिर्तित करना पड़ा. अब उन्होंने एक नयी प्रतिस्थापना दी कि भारतीय सन्दर्भ में “र्ण” अथा “जाति-िभेद” ही सही अर्थों में “र्ग-िभेद” है, और इस तथ्य को न समझ पाने के कारण ही उनका राजनीतिक पराभ हुआ है. ठीक यही निष्कर्ष साम्यादी/समाजादी राजनितिक दलों के रूप में “क्रान्तिकारी” परिर्तन लाने में अपनी असफलता से निराश ामपंथी-अतिादी, हिंसक, भूमिगत आन्दोलन चलाने निकल पड़े ाम-समूहों ने भी निकाला. अस्मिता की राजनीति ने भारतीय संिधान  राज-्यस्था द्ारा नागरिक-अधिकारों के संरक्षण हेतु सृजित कोटियों (यथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा र्ग) को अपरिर्तनीय एं परस्पर संघर्षरत नस्ली समूहों (यथा “दलित”, “आदिासी, “बहुजन”, “मूलनिासी” इत्यादि) के अर्थों में रूढ़ कर दिया ।
🚩परन्तु क्या ास्त में “अस्मिता” की राजनीति बिना किसी ैश्िक राजनितिक सन्दर्भ के भारत में अचानक से हाी हो गयी ? और क्या यह राजनीति, एक-ध्रुीय, अमेरिकी र्चस्ाली निर्बाध-अर्थ्यस्था ाली भू-मण्डलीय, िश्-्यस्था में प्रेश करते भारत में उसकी िशिष्ट घरेलू, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ाली समाज-्यस्था से उत्पन्न तनाों की चरम परिणिति थी?
🚩परन्तु, जैसा कि, सोियत-संघ के पतन से भी पहले, साम्यादियों की ‘िश्-श्रमिकों की क्रान्तिकारी एकता’ का आह्ान, पश्चिमी-पूंजीादी राष्ट्रों द्ारा अपनाये गए ‘कल्याणकारी-राज्य’ की भूमिका अपनाये जाने के बाद उन राष्ट्रों में श्रमिकों के उच्च-जीन स्तर के कारण, फलीभूत न हो पाया । अतः पश्चिमी-राष्ट्रों में ‘ामपंथी िचारधारा’ ने आर्थिक आधार पर राजनितिक िश्लेषण के स्थान पर सामाजिक-सांस्कृतिक आधार पर िश्-दृष्टि िकसित कर नया राजनीतिक रूप धारण करना प्रारम्भ किया, जिसे “न-ामपंथ’ (New Left) के नाम से जाना गया. ‘न-ामपंथ’ ने अपना राजनीतिक आधार पूँजी  श्रम के संघर्ष पर न टिका कर, अस्मिता  पहचान के संघर्षों को मूल आधार बना कर खोजना शुरू किया । इसी दौर में न-साम्राज्यादी युद्धों (यथा ियतनाम युद्ध) से उपजी थकान  िश् तेल संकट के परिणामस्रूप अनिश्चितता  आर्थिक गिराट से उत्पन्न मोहभंग ने अमरीका,  पश्चिमी राष्ट्रों में कई छात्र  सामाजिक आन्दोलन, सामाजिक अशांति को ्यक्त करने लगे । ‘न-ामपंथ’ को श्रमिकों की क्रान्तिकारी िश्-एकता के अप्राप्य आदर्श के स्थान पर युा समूहों, जातीय समूहों, स्त्री मुक्ति आन्दोलनों,  बाद में समलैंगिक अधिकार के आन्दोलनों, पर्यारण आन्दोलनों इत्यादि में अपनी राजनीति के लिए सामाजिक आधार दिखने लगा ।
🚩और यहीं से पश्चिम-पोषित “न-ामपंथ” का भारत जैसे देशों में निर्यात अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए, पश्चिमी राष्ट्रों की िदेश-नीति के कूट-अस्त्र के रूप में शामिल हो गया । जे एनयू जैसे संस्थानों में इस नयी राजनीतिक िचारधारा का स्ागत जोर-शोर से हुआ, क्यूंकि एक तो सोियत संघ के असान  भारत की ‘समाजादी’ अर्थ्यस्था का प्रयोग क्षीण होने से कमजोर हुयी कांग्रेस के बदले नए आका पश्चिमी अकादमिक संस्थानों में संरक्षण देने में सक्षम थे, हीँ कुकुरमुत्तों की तरह उग आये एन जी ओ (गैर सरकारी संस्थाओं) के माध्यम से चारागाह भी उपलब्ध करा रहे थे । एक अन्य सुिधा यह भी रही कि ‘पुराने ामपंथ’ का ‘निर्धनताादी’, ंचितों की लाठी बने रहने का चोगा भी उन्हें नहीं उतारना पड़ा ।
🚩‘न-ामपंथ’ के आकाओं के शस्त्रागार में उनका एक और भी पुराना कूट-अस्त्र था, अंतर्राष्ट्रीय ईसाई मत में परिर्तन कराने ाली संस्थाओं का ृहद तंत्र. मतान्तरित भारतीय इन राष्ट्रों के राजनीतिक प्रभा के लिए एक मजबूत सामाजिक आधार प्रदान करते हैं. आपको शायद यह जानकर अटपटा लगेगा कि भारत के घरेलू मुद्दों पर अंतरष्ट्रीय मंचों पर हस्तक्षेप हेतु दबा डलाने के लिए, निपट कट्टर दक्षिणपंथी ईसाई संस्थाओं  उतने ही निपट, घोषित अनीश्ादी ‘न-ामपंथी’ अकादमिक बुद्धिजीियों  उनके सहगामी एन जी ओ का असहज तालमेल किस प्रकार संभ होता है?
🚩इन्ही दोनों कूट-अस्त्रों का प्रयोग कर अमेरिका के नेतृत् में जोशुआ प्रोजेक्ट 1, जोशुआ प्रोजेक्ट 2, AD 2000 प्रोजेक्ट, मिशनरी संस्थाएं सी आय ए (अमरीकी गुप्तचर संस्था) के मार्गदर्शन दिशा-निर्देश में मतान्तरण के काम में प्रृत्त हैं. (तहलका जैसी पत्रिका जो घोषित तौर पर कांग्रेसी संरक्षण में चलती है, उसकी 2004 की खोजी रिपोर्ट में इसका िस्तार से र्णन किया गया है). इन संस्थाओं के पास भारत में निास करनेाले असंख्य मान समुदायों की परंपरा, िश्ास, रीति-रिाजों तथा जनसंख्या ितरण को एक छोटे से छोटे क्षेत्र को भी पिन-कोड में िभाजित कर जानकारी एं उन लोगों तक अपने संपर्क सूत्रों की त्रित पहुँच रखने का िशाल तंत्र है ।
🚩नयी मतान्तरण रणनीति को दो चरणों में िभाजित किया गया है. प्रथम चरण में भारत की सामाजिक िभेद की दरारों को चौड़ा करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए ‘दलित’, ‘अनार्य’, ‘बहुजन’, ‘मूलनिासी’, इत्यादि नयी अस्मिताओं का निर्माण कर,’हिन्दू धर्म’ को तथाकथित आर्यों, ( जिन्हें बाहरी आक्रमणकारी प्रदर्शित किया गया  उनका साम्य आज के तथाकथित उच्च र्ण/जातियों से मिलाया गया), की अनार्यों ( जिन्हें मूलनिासी, बहुजन, माना गया  उनका साम्य आज के तथाकथित निम्न र्ण/जातियों से मिलाया गया है ) को सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से दास बनाये रखने की एक र्चस्ादी षड्यंत्र के रूप में प्रस्तुत करने का एक बलशाली अभियान चलाया हुआ है. इस यूह-योजना में हिन्दू धर्म के कुछ तत्ों को अंगीकार किया जाता है  उन तत्ों में नए अर्थों को प्रक्षेपित कर दिया जाता है. यथा महाराष्ट्र में “शूद्रों-अतिशूद्रों” के ‘बलि-राजा’, को ब्राह्मण देता ामन द्ारा एक शहीद राजा के रूप में प्रचारित करना, (इसके लिए ‘फुले’, जो eमिशनरी िद्यालय के पढे हुए  उनसे प्रभाित एक समाज-सुधारक थे, उनके लिखे साहित्य को आधार बनाया जाता है.) तदुपरांत ‘शहीद राजा’ का साम्य बलिदान हुए, क्रॉस पे लटके, स्र्ग के राजा यीशु से जोडना दूसरा चरण है. यही रणनीति महिषासुर को पहले जाति-िशेष (याद) जो मूलनिासी कही गयी, उसका राजा बताना, फिर दुर्गा देी को ब्राह्मणों की भेजी हुई गणिका बताना, फिर छल से न्यायप्रिय राजा महिषासुर के ध, को बलिदान हुए राजा यानि यीशु से साम्य स्थापित कर उत्तर-भारत में दुहरायी गयी है ।
🚩हिन्दू धर्मं की परम्पराओं से हिन्दू उप-समुदायों को िमुख करना प्रथम चरण है, और तब इन परम्पराओं में , न ईसाई साम्य-अर्थ भरना द्ितीय चरण है । परन्तु इस दुष्प्रचार से पहले जातिगत संगठनों का गठन मिशनरी रणनीति के हिस्से सदा से रहे हैं । ‘सामाजिक न्याय” के आदर्श का अपहरण मिशनरी अपनी कूटनीतिक चाल से कर चुके हैं ।
🚩जे एन यू में भी ‘प्रेम-चुम्बन’ अभियान अथा “किस ऑफ़ ल”, न ामपंथ का उदाहरण है,  ‘गो-मांस  शूकर मांस समारोह’ अथा “बीफ एंड पोर्क फेस्टिल” की मांग करना, “महिषासुर शहादत दिस” मनाना, िजयादशमी में भगान राम के पुतले को फांसी पर लटकाकर, रामजी की ग्लानि से भर कर आत्म-हत्या करनेाला परचा लिखना इत्यादि उदाहरण मिशनरी तंत्र द्ारा परोक्ष माध्यमों से संचालित, जे एन यू के जाति आधारित छात्र-संगठनों का न-ाम संगठनों के सक्रिय सहयोग से किया-धरा ितंडा-कार्य है । परन्तु, जे एन यू में यह सब कार्यक्रम होने से और भी बड़ी गंभीर समस्या देश के लिए उत्पन्न होनेाली है क्योंकि जेएनयू, पूर्-र्णित भारत िरोधी समूहों को ‘ैधता एं अभयारण्य’ दोनों प्रदान करता है. ऐसे समूहों के पक्ष में “सैद्धान्तिक-परिचर्चा” को जन्म देकर, जे एन यू के िद्ान्, देश के िद्यालयों की पाठ्य पुस्तकों, संघ लोक सेा आयोग के पाठ्यक्रम तथा न्यायपालिका के निर्णयों के लिए तार्किक आधार बनाकर; नौकरशाही, नागरिक समाज (सििल सोसाइटी)  संचार माध्यम (मीडिया) के द्ारा संपूर्ण भारतीय राजनीति की मूल्य-प्रणाली को प्रभाित करते हैं।
लेखक - रिन्द्र बसेरा सर (9 दिसम्बर 2014)
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जम्मू-कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान हमें लेना क्यों महत्वपूर्ण है ?

10 अगस्त 2019

🚩वास्तव में अगर जम्मू कश्मीर के बारे में मुख्यतः बातचीत करने की जरूरत है तो वह है POK और अक्साई चीन के बारे में l इसके ऊपर देश में चर्चा होनी चाहिए गिलगित जो अभी POK में है विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है अफगानिस्तान, तजाकिस्तान(जो कभी Russia का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और तिब्बत -चाइना l
"वास्तव में जम्मू कश्मीर की Importance जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं वास्तव में अगर इसकी Importance है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण l"

🚩भारत के इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित से हुए l हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार ही रखना होगा l किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना base गिलगित में बनाना चाहता था , Russia भी गिलगित में बैठना चाहता था यहां तक कि पाकिस्तान में 1965 में गिलगित को Russia को देने का वादा तक कर लिया था आज चाइना गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही था l
"दुर्भाग्य से इस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया समझती है केवल एक उसको छोड़कर जिसका वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान है और वह है भारत l"

🚩क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए l आज हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं क्या आपको पता है गिलगित से By Road आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं गिलगित से By Road 5000 Km दुबई है, 1400 Km दिल्ली है, 2800 Km मुंबई है, 3500 Km RUSSIA है, चेन्नई 3800 Km है लंदन 8000 Km है l जब हम सोने की चिड़िया थे हमारा सारे देशों से व्यापार चलता था 85 % जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी Central Asia, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम By Road जा सकते हैअगर गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे पास हो l आज हम पाकिस्तान के सामने IPI (Iran-Pakistan-India) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं ये तापी की परियोजना है जो कभी पूरी नहीं होगी अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते l

🚩हिमालय की 10 बड़ी चोटियों है जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से है और ये सारी हमारी है और इन 10 में से 8 गिलगित-बाल्टिस्तान में है l तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत(Alternate Water Resources) हैं वह सारे गिलगित-बाल्टिस्तान में है l
आप हैरान हो जाएंगे वहां बड़ी -बड़ी 50-100 यूरेनियम और सोने की खदाने हैं आप POK के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढ़िए आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे l वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्वहमको मालूम नहीं है और सबसे बड़ी बात गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग Strong Anti PAK है l

🚩दुर्भाग्य क्या है कि हम हमेशा कश्मीर बोलते हैं जम्मूकश्मीर नहीं बोलते हैं l कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान दिमाग से निकल जाता है l ये पाकिस्तान के कब्जे में जो POK हैउसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है और 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है जो कि गिलगित-बाल्टिस्तान है l यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था यह लद्दाख का हिस्सा था वास्तव में सच्चाई यही है l इसलिए पाकिस्तान यह जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उसको कोई यह पूछे तो सहीं कि  क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिस पर तुमने कब्ज़ा कर रखा है क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है ?? कोई जवाब नहीं मिलेगा l

🚩क्या आपको पता है गिलगित -बाल्टिस्तान, लद्दाख के रहने वाले लोगों की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा जीते हैं l
भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा कि "we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT" l उसने कहा कि देश हमारी बात ही नहीं जानता l किसी ने उससे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ?? तो उसने कहा कि 60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं l उसने कहा कि आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को IIT , IIM में दाखिला दीजिए AIIMS में हमारे लोगों का इलाज कीजिए l हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है हमारी बात करता है l गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है l आप हमें ये अहसास तो दिलाइये की आप हमारे साथ है l

🚩आगे उन्होंने यह कहा कि और मैं खुद आपसे यह पूछता हूं कि आप सभी ने पाकिस्तान को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा l वह बार बार कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है l लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम POK - गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे आपने यह कभी नहीं सुना होगा l कांग्रेस सरकार ने कभी POK - गिलगित-बाल्टिस्तान को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया प्रयास तो बहुत दूर की बात है l हालाँकि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय POK का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और फिर से नरेंद्र मोदी की सरकार आने पर स्वर्गीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया थाl

🚩आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है l वह यह पूछेगा क्या यह कोई चिड़िया का नाम है ?? वास्तव में हमें जम्मू कश्मीरके बारे में जो गलत नजरिया है उसको बदलने की जरूरत है l

🚩अब करना क्या चाहिए ?? तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए l एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी सेना क्यों है?? तो बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है जिसमें 2400 किलोमीटर पर LOC है l आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह 18 के 18 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं l

🚩इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं l अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं l
वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए- POK , वेस्ट पाक रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग , गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान -चाइना के कब्जे में है l जम्मूकश्मीर के गिलगितबाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाक विरोधी है वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है ऐसा उनको महसूस कराना चाहिए, देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा होनी चाहिएl

🚩वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए l जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है l इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए l पूरे देश में वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का दिवस मनाना चाहिए l और सबसे बड़ी बात है जम्मू कश्मीर को राष्ट्रवादियों की नजर से देखना होगा जम्मू कश्मीर की चर्चा हो तो वहां के राष्ट्रभक्तों की चर्चा होनी चाहिए तो उन 5 जिलों के कठमुल्ले तो फिर वैसे ही अपंग हो जाएंगे l

🚩इस कश्मीर श्रृंखला के माध्यम से मैंने आपको पूरे जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों से अवगत करवाया और मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है जम्मू कश्मीर के बारे में देश के प्रत्येक नागरिक को यह सब जानकारियां होनी चाहिए l
अब आप इतने समर्थ हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर आप किसी से भी वाद-विवाद या तर्क कर सकते हैं l किसी को आप समझा सकते हैं कि वास्तव में जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां क्या है l वैसे तो जम्मूकश्मीर पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैंने जितना हो सका उतने संछिप्त रूप में इसे आपके सामने रखा है l

🚩इस श्रृंखला को केवल LIKE करने से कुछ भी नहीं होगा चाहे आप पढ़कर लाइक कर रहे हो या बिना पढ़े लाइक कर रहे हो उसका कोई भी मतलब नहीं है l अगर आप इस श्रंखला को अधिक से अधिक जनता के अंदर प्रसारित करेंगे तभी हम जम्मू कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदल सकते हैं अन्यथा नहीं l इसलिए मेरा आप सभी से यही अनुरोध है कि श्रृंखला को अधिक से अधिक लोगों की जानकारी में लाया जाए ताकि देश की जनता को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सही तथ्यों का पता लग सके l

🚩Refrences :-
INDIA INDEPENDECE ACT 1947
INDIAN CONSTITUTION ACT 1950
JAMMU & KASHMIR ACT 1956
INDIAN GOVT. ACT 1935
Dr. Kirshandev Jhari
Dr. kuldeep Chandra Agnihotri
Jammu-kashmir Adhyan Kendra
Sushil pandit (kashmiri pandit)
SC & J&K HC Court judgements
News sources &
Various ACCORDS & Statement

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रक्षा बंधन पर वैदिक राखी बांधने से होंगे अनेक फायदे, जानिए कैसे बनाये

11अगस्त 2019
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🚩रक्षाबंधन पर्व समाज के टूटे हुए मनों को जोड़ने का सुंदर अवसर है । इसके आगमन से कुटुम्ब में आपसी कलह समाप्त होने लगते हैं, दूरी मिटने लगती है, सामूहिक संकल्पशक्ति साकार होने लगती है ।
🚩 वैदिक राखी का महत्व :
वैदिक राखी का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है । साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है ।

🚩 कैसे बनायें वैदिक रक्षासूत्र :
दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा । इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है । रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें । आपकी राखी तैयार हो जाएगी ।
नोट: वैदिक राखी आप ऑनलाइन  ashramestore.com से भी ख़रीद सकते है।
🚩रक्षाबंधन के दिन वैदिक रक्षासूत्र बाँधने से वर्ष भर रोगों से हमारी रक्षा रहे, बुरे भावों से रक्षा रहे, बुरे कर्मों से रक्षा रहे'- ऐसा एक-दूसरे के प्रति सत्संकल्प करते हैं ।
🚩रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि ‘जैसे #शिवजी त्रिलोचन हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, वैसे ही मेरे भाई में भी विवेक-वैराग्य बढ़े, मोक्ष का #ज्ञान, मोक्षमय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आये' ।  ‘मेरे भैया की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज-तेज अक्षुण्ण रहें ।'
🚩बहनें रक्षाबंधन के दिन ऐसा संकल्प करके रक्षासूत्र बाँधें कि ‘हमारे भाई भगवत्प्रेमी बनें ।' और भाई सोचें कि ‘हमारी बहन भी चरित्रप्रेमी, भगवत्प्रेमी बने ।' अपनी सगी बहन व पड़ोस की बहन के लिए अथवा अपने सगे भाई व पड़ोसी भाई के प्रति ऐसा सोचें । आप दूसरे के लिए भला सोचते हो तो आपका भी भला हो जाता है । संकल्प में बड़ी शक्ति होती है । अतः आप ऐसा संकल्प करें कि हमारा आत्मस्वभाव प्रकटे ।
🚩सर्वरोगोपशमनं    सर्वाशुभविनाशनम् । सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् ।।
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है ।'  (भविष्य पुराण)
🚩येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
जिस पतले रक्षासूत्र ने महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बाँध दिया, उसीसे मैं आपको बाँधती हूँ । आपकी रक्षा हो । यह धागा टूटे नहीं और आपकी रक्षा सुरक्षित रहे । - यही संकल्प बहन भाई को राखी बाँधते समय करे । शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय ‘अभिबध्नामि' के स्थान पर ‘रक्षबध्नामि' कहें ।
🚩उपाकर्म #संस्कार : इस दिन #गृहस्थ #ब्राह्मण व #ब्रह्मचारी #गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौ-मूत्र को मिलाकर पंचगव्य बनाते हैं और उसे शरीर पर छिड़कते, मर्दन करते व पान करते हैं, फिर जनेऊ बदलकर शास्त्रोक्त विधि से हवन करते हैं । इसे उपाकर्म कहा जाता है । इस दिन ऋषि उपाकर्म कराकर शिष्य को विद्याध्ययन कराना आरम्भ करते थे ।
🚩उत्सर्जन क्रिया : श्रावणी पूर्णिमा को #सूर्य को जल चढ़ाकर सूर्य की स्तुति तथा अरुंधती सहित सप्त #ऋषियों की पूजा की जाती है और दही-सत्तू की आहुतियाँ दी जाती हैं । इस क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं ।
( स्त्रोत: संत आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य ऋषि प्रसाद एवं लोक कल्याण सेतु से संकलित )
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इन खबरों पर न मीडिया हल्ला करेगी और ना ही न्यायालय संज्ञान लेगा

09 अगस्त 2019
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🚩जब किसी हिंदू साधु-संत पर साजिश के तहत झूठा आरोप लगता है तो इलेक्ट्रॉिक व प्रिंट मीडिया कई दिों तक खबरे चलाती हैं, लेकि जैसे ही किसी ईसाई पादरी या मौलवी परआरोप लगता है तो इसपर किसी कोे में छोटी सी खबर बताएंगे जिससे जता का उसपर ध्या ही  जाएं जिसके उका धर्मा्तरण का कार्य रुके हीं । मीडिया हिंदु धर्म को बदाम करे के लिए हिंदु धर्मगुरुओं के खिलाफ कई झूठी कहाियां बाकर जता को परोसती है जिसके कारण हिंदू धर्म की बदामी होती रहे और लोगो की श्रद्धा कम हो जाए यह भी भारतीय संस्कृति को तोड़े का एक षडयंत्र ही है।

🚩सिस्टर को चर्च से बाहर िकाला
🚩केरल में रेप के आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ मोर्चा खोले वाली सिस्टर लूसी को फ्रैंसिश क्लैरिस्ट कॉ्ग्रिगेश से बाहर कर दिया गया है।  फ्रैंसिश क्लैरिस्ट कॉ्ग्रिगेश केरल में काम करे वाली एक ईसाई संस्था है। सिस्टर लूसी इस संस्था की एक  हैं।  सिस्टर लूसी पर ये अुशासात्मक कार्रवाई  फ्रैंसिश क्लैरिस्ट कॉ्ग्रिगेश की सुपीरियर जरल े की है।
🚩बता दें कि पिछले साल जालंधर के बिशप फ्रैंको मुलक्कल को केरल पुलिस े गिरफ्तार किया था। बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर 2014 से 2016 के बीच एक  के साथ कई बार रेप करे का आरोप लगा था। पुलिस े पिछले वर्ष जुलाई में बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ केरल के कोट्टायम में रेप और यौ शोषण की शिकायत दर्ज की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि जालंधर के बिशप काम के सिलसिले में अक्सर केरल आते-जाते रहते थे। इस दौरा उ्होंे कई बार एक  के साथ रेप की वारदात को अंजाम दिया।
🚩बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर ये आरोप लगे के बाद सिस्टर लूसी े दूसरी ों के साथ कोच्चि की गलियों में उके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। सिस्टर लूसी बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ विरोध प्रदर्शों में शामिल हुई थीं, और उकी गिरफ्तारी की मांग की थी। स्त्रोत : आज तक
🚩विरोध करे वाली 4  को कॉ्वेंट से िकाला-
केरल के बहुचर्चित  रेप मामले में आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल का विरोध करे वाली चार  को हटा दिया गया है।
🚩इनमे से एक  े बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ रेप करे की शिकायत दर्ज की थी। बाद में इन सभी  े मुलक्कल की गिरफ्तारी को लेकर विरोध प्रदर्श किया था। चारों को तबादला पत्र थमाते हुए अलग-अलग कॉ्वेंट में जाे को कहा गया था।
🚩बया देे वाले फादर की मौत-
केरल के चर्चित  रेप केस के आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ बया देे वाले फादर कुरियाकोस की अक्टूबर 2018 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है। बताया जा रहा है कि कुरियाकोस को लगातार धमकियां मिल रही थी और हाल ही में उकी कार पर हमला भी हुआ था।गौर करे वाली बात यह है कि केरल उच्च ्यायालय से जमात मिले के बाद आरोपी फ्रैंको मुलक्कल 17 अक्टूबर को ही जालंधर पहुंचा है। उसके जालंधर पहुंचे के 5 दि के अंदर ही फादर कुरियाकोस की मौत हो गई।
🚩फादर कुरियाकोस की भाभी े ्यूज 18 से बातचीत में कहा कि, फ्रैंको की आेर से कुरियाकोस को लगातार धमकियां मिल रही थीं। उ्होंे कहा कि इस मामले में उ लोगों े पुलिस में केस भी दर्ज करवाया था।
स्त्रोत : ्युज18
https://www.hindujagruti.org/hindi/news/144306.html
🚩अब इती बड़ी खबरें है फिर भी किसी मीडिया े  इसको हाईलाइट हीं किया और ा ही किसी सेकुलर े इसपर हल्ला किया।
🚩आपको बता दें कि यह तो एक बिशप फ्रैंको की बात कर रहे हैं । बाकी तो ऐसे कई ईसाई पादरी हैं जि्होंे कई छोटे बच्चों के साथ और कई  के साथ रेप किया है पर मीडिया इस परमौ रहती है। दूसरी तरफ ्यायालय भी उको तुरंत राहत दे देती है। बिशप फ्रैंको को 21 दि में ही जमात हासिल हो गई थी जबकि 85 वर्षीय हिंदू संत आसाराम बापू के खिलाफ 5 साल तक ्यायालय में सुवाई होती रही पर 1 दि भी जमात हीं दी गई, हर बार खारिज कर दिया गया ।
🚩मीडिया द्वारा हिंदू साधु-संतों को बदाम करा और ्यायलय द्वारा जमात  हीं मिला और ईसाई पादरी और मौलवी के दुष्कर्म को छुपाा और ्यायालय से तुरंत जमात हासिल होा, यह भारतीय संस्कृति को खत्म करे का यह एक भयंकर साजिश ही है, हिंदुस्ताी इससे सावधा रहें।
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