Sunday, September 24, 2023

ऐतिहासिक अन्याय टॉप ट्रेंड क्यों कर रहा था ? जानिए.....

24 September, 2023


http://azaadbharat.org


🚩रविवार को ट्वीटर (एक्स) पर #ऐतिहासिक_अन्याय हैशटैग को लेकर टॉप ट्रेंड चल रहा था, इसमें हजारों ट्वीट हुई , ट्वीट के जरिए बताया जा रहा था की हिंदू संत आसाराम बापू को झूठे केस में फँसाकर 11 साल से जेल में रखा गया है, जबकि सबूत चीख चीख कर पुकार रहे हैं कि बापू आशारामजी निर्दोष हैं।


🚩आइए जानते है जनता क्या ट्वीट कर के बता रही थी


🚩निराली बहन लिखती हैं कि Asharamji Bapu का Jodhpur Case एक षडयंत्र ही है क्योंकि इसमें Too Many Flaws हैं जैसे कि

१. लड़की के कई विरोधात्मक जन्म साक्ष्य के बावजूद नाबालिग बना पोक्सो का दुरुपयोग करना

२. FIR की जगह और टाइम को ग़लत बताते कई गवाह और वीडियो साक्ष्य

३. कॉल डिटेल को इग्नोर करना

#ऐतिहासिक_अन्याय

https://twitter.com/DadhaniyaNirali/status/1705773603311304868?t=wK_irPxGQkccid-LWT4nog&s=19


🚩हरेश दुबे भाई लिखते हैं कि Sant Shri Asharamji Bapu के Jodhpur Case में सारे साक्ष्यों की अनदेखी की गई :

🍁मेडिकल रिपोर्ट नॉर्मल

🍁FIR में रेप का जिक्र नहीं

🍁थाना की रिपोर्ट की डायरी के पन्ने फटे हुए

🍁रिपोर्ट के समय की वीडियोग्राफी गायब

न्यायालय की कार्यवाही में Too Many Flaws हैं।

https://twitter.com/HarshDu32611429/status/1705772220591849524?t=DZ8ITXdLBLR4JDOnN6We1A&s=19


🚩आलोक भाई लिखते हैं कि

Asaram Bapu Ji के #ऐतिहासिक_अन्याय के लिए चेतनात्मक प्रतिकार करना ही वास्तविक साधक व सत्य पथिक के चैत्य परिशुद्धि परिपत्र है।गुरु ही वह किरण जो जीवन,समाज में मानवता की लौ जागृत रखता है।

We Will Defeat Jodhpur Case With Too Many Flaws & Conspirational International Claws In All Its Format

https://twitter.com/Aloksinghom/status/1705784627015872913?t=VtbyH5ZgnC9a4tUNU9IHLw&s=19


🚩नेहा बहन लिखती हैं कि Asaram Bapu Ji के Jodhpur Case में Too Many Flaws हैं।

जैसे आरोपित घटना के समय लड़की की कुटिया में मौजूदगी के कोई सबूत व गवाह नहीं। आरोप लगाने वाली लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में भी रेप प्रमाणित नहीं। फिर भी रेप की धारा लगाकर निर्दोष संत को 10 वर्षों से जेल #ऐतिहासिक_अन्याय है।

https://twitter.com/NehaSinghOm/status/1705779101834104897?t=56ujHCXuUFY0xbmvct7nhg&s=19


🚩संग्रामजित भाई लिखते हैं कि बिल्कुल, Asharamji Bapu   के Jodhpur Case में कोर्ट के पास ऐसा कोई सबूत या गवाह नहीं था जो कुटिया में लड़की की उपस्थिति बता सके। Too Many Flaws इस #ऐतिहासिक_अन्याय का अब अंत होना चाहिए और निर्दोष संत को अतिशीघ्र न्याय मिलना चाहिए।

https://twitter.com/SangramjitNaya1/status/1705781625035145556?t=th1ONdIMfbgyt3QGesAVbA&s=19


🚩शिव कुमार भाई ने लिखा कि Asharamji Bapu के खिलाफ

Jodhpur Case में 

Too Many Flaws पाए जाने के बाद भी कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट में क्लीन चिट होने पर भी #ऐतिहासिक_अन्याय करते हुए निर्दोष संत को आजीवन कारावास की सजा सुना दी।

पॉक्सो एक्ट में जेजे एक्ट से आयु क्यों निर्धारित नहीं की गई?

https://twitter.com/SHIWP/status/1705782760126955611


🚩परसराम काग लिखते है की Asharamji Bapu के Jodhpur Case में तथाकथित घटना के 5 दिन बाद FIR करवाई गई,

 वो भी जोधपुर की घटना बताकर

 दिल्ली में रात्रि 2:45 बजे।

Too Many Flaws इस केस के जाँच में भी। 

ये तो #ऐतिहासिक_अन्याय है 

एक निर्दोष संत के साथ😡

https://twitter.com/KukshiKag/status/1705773761713340464?t=I-d4ZkVcmFNGZ0Ivu-LePg&s=19


🚩पलव्वी बहन लिखती हैं कि Asharamji Bapu के 

Jodhpur Case में हुआ है #ऐतिहासिक_अन्याय❗

 क्योंकि इसमें है Too Many Flaws👇 

लड़की के स्कूल दस्तावेज़ के अनुसार वह बालिग है।

लड़की व उसके भाई की आयु में अंतर पाया गया।

केस पूर्णतःबोगस व बनावटी है! बापूजी को षड्यंत्र के तहत फँसाया गया है!

pic.twitter.com/bnDO5EvxiU


🚩गौरतलब है कि हिंदू संत आशाराम बापू पिछले 11 साल से जोधपुर जेल में बंद हैं, उनकी रिहाई की सतत मांग उठती रही है, अब देखते हैं- न्यायालय और सरकार उनको कब रिहा करती है???


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Saturday, September 23, 2023

सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर निराशा जाहिर की.....

 सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर निराशा जाहिर की.....



23 September, 2023

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🚩देश में न्याय इसलिए देरी से मिलता है कि देश में जजों की कमी, वकीलों द्वारा पैसे ऐठने के कारण लंबा खीचना, राजनीति हस्तक्षेप, अंग्रेजों के बनाए कानून , बदला लेने या, पैसा नोचने की नीयत से झूठे केस दर्ज करना, और देश के जजों में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि अपराधियों को सजा और निर्दोषों को न्याय मिलना ही मुश्किल हो गया है। कई जज तो रिश्वत लेते पकड़े भी गये है।


🚩सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता


🚩सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय किशन कौल ने न्याय व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर निराशा जाहिर की है। उनका कहना है कि कई गरीब सलाखों के पीछे सिर्फ इसलिए रह जाते हैं, क्योंकि वे खर्च नहीं उठा सकते। जबकि, वकील करने में सक्षम अमीरों को जमानत मिल जाती है। इस दौरान उन्होंने जेलों में सालों से बंद विचाराधीन कैदियों के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया।


🚩अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी स्पेशल कैंपेन 2023 की लॉन्चिंग के मौके पर जस्टिस कौल ने कहा कि गरीब और अशिक्षितों को हिरासत में लिए जाने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। उन्होंने कहा, 'न्यायाधीशों के तौर पर हमारी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि कानून का पालन और उनके साथ इस आधार पर भेदभाव न हो कि वे किस स्तर के वकील की सहायता ले पा रहे हैं।'


🚩इस अभियान के तहत उन कैदियों की पहचान और समीक्षा करना ह, जिनकी रिहाई पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक रखे जाने की बात डराने वाली है। उन्होंने कहा कि इसे लेकर कोई भी अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता। जस्टिस कौल ने कहा कि गरीब कैदियों को लगातर हिरासत में रखे जाने का असर उनपर और उनके परिवार पर पड़ता है।


🚩जस्टिस कौल ने कहा कि जेल में बंद ऐसे

 विचाराधीन कैदियों का मुद्दा न्यायपालिका के सामने उठता रहा है, जो रिहाई की समीक्षा किए जाने के योग्य इस दौरान उन्होंने न्याय व्यवस्था से गरीबों की मदद की भी अपील की और कहा कि वे कानूनी सहायता में लगने वाला खर्च नहीं उठा सकते।


🚩उन्होंने कहा, 'आज हिरासत को विकास के संदर्भ में देखा जा रह अगला दोष सिद्ध होने से पहले हिरासत में रखे जाना आपराधिक न्याय संसाधनों को भटका देता है और आरोपियों और उनके परिवारों पर बोझ डालता है।'


🚩सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े भी सवाल उठा चुके हैं कि ‘धनी और प्रभावशाली’ तुरंत जमानत हासिल कर सकते हैं । गरीबों के लिए कोई न्याय की व्यवस्था नहीं है ।


🚩कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस के एल मंजूनाथ ने कहा कि यहाँ सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए कोई स्थान नहीं है और इस देश में न्याय के लिए कोई जगह नहीं ।


🚩इसलिए आज न्याय प्रणाली से देश की जनता का भरोसा उठ गया है ।


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Friday, September 22, 2023

सनातन धर्म के उद्देश्य क्या हैं ? जानिए.....



22 September, 2023

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🚩सनातन धर्म से विचारधारा है जो हिंदू धर्म का मूल आधार है। इसके तत्व और सिद्धांतों में विभिन्न दर्शनशास्त्रों का समावेश होता है, जो मनुष्य के जीवन के संपूर्ण क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यह एक अनन्य धार्मिक परंपरा है जिसकी भूमिका है नैतिकता, दायित्व, आध्यात्मिकता, ध्येय सम्प्रेषण, समर्पण और सामरिकता की प्रोत्साहना करना।


🚩सनातन धर्म के उद्देश्य हैं- मनुष्य के सामर्थ्य और उद्यम को प्रोत्साहित करना, स्वाधीनता में जीने का हौसला देना, सभी जीवों के प्रति सम्मान और प्रेम का विकास करना, एकाग्रता स्थिति में संपूर्ण ब्रह्मांड के साथीपन अनुभव करना और मुक्ति की प्राप्ति के लिए मार्ग दर्शन करना।


🚩सनातन धर्म के चार मुख्य सिद्धांत हैं:


🚩1. योग: योग ध्यान और आध्यात्मिक एकाग्रता के माध्यम से मन, शरीर और आत्मा का मिलान करने का एक विज्ञान है। यह आत्म और परमात्मा के साथ मिलन करने का मार्ग प्रदान करता है, जिससे चित्तशांति, मनोवृत्ति का नियंत्रण और सामरिकता की अनुभूति होती है।


🚩2. कर्म: कर्मयोग धार्मिक कर्मों को समर्पित और ईश्वर के प्रति समर्पित रहने का मार्ग है। यह आदर्श है कि हम किसी भी कर्म को भाग्य के रूप में स्वीकार करें और भावना पूर्ण समर्पण से कार्य करें।


🚩3. ज्ञान: ज्ञान उद्घोष के माध्यम से हमारे अन्तरात्मा के साथीपन का विकास करता है। इसका अर्थ है कि हमें अपनी असली स्वभाव को पहचानना चाहिए, खोज करना कि हम कौन हैं और हमारा आध्यात्मिक स्वभाव क्या है।


🚩4. आचार्य: गुरु या आचार्य के मार्गदर्शन में रहकर हम सनातन धर्म के सिद्धांतों का सदुपयोग कर सकते हैं। उनके ज्ञान, प्रेरणा और परामर्श के माध्यम से हम आगे बढ़ सकते हैं और आध्यात्मिक विकास के पथ पर चल सकते हैं।


🚩इस प्रकार, सनातन धर्म का महत्वपूर्ण तत्व है स्वयं का सम्मान, कर्म, ज्ञान, ध्यान, साधना और सामरिकता के माध्यम से आपसी सद्भाव, प्रेम, शांति और पूर्णता की प्राप्ति करना।


🚩सनातन धर्म, भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण धार्मिक सिद्धांत है। इसमें विभिन्न वैदिक साहित्यों, जैसे कि वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत आदि के माध्यम से निर्मित धार्मिक आचारों और तत्वों का पालन किया जाता है।


🚩वैदिक साहित्य सनातन धर्म के मूल स्रोत हैं और वेदों में विभिन्न विधियाँ, मन्त्रों, उपास्यताओं और देवताओं के बारे में ज्ञान है। ये भारत की सबसे प्राचीन और पवित्रतम ग्रंथ हैं और हजारो वर्षों से यहां के धर्मीय जीवन का आधार रहे हैं।


🚩सनातन धर्म की धार्मिक प्रतिष्ठान अधिकांशतः मंदिरों में स्थापित होती हैं। ये मंदिर विभिन्न देवताओं के समर्पित होते हैं और साधकों को उन देवताओं की पूजा, आराधना और अनुष्ठानों के लिए आवंटित किए जाते हैं। इन मंदिरों में आरती, पूजा, हवन, प्रवचन आदि करने की परंपरा चलती है और ये आध्यात्मिक स्थान ही नहीं, व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान हैं।


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Thursday, September 21, 2023

क्या प्राचीन भारत में स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं था ?

 जानिए उन महान महिलाओं को....



21 September, 2023

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🚩पौराणिक समय में भारत में कई ऐसी स्त्रियां हुई हैं जो अपने साहस और बुद्धि के लिए जानी जाती हैं। आज हम प्राचीन भारत की ऐसी कुछ स्त्रियों के बारे में बात करने जा रहे हैं। आइए जानते हैं प्राचीन भारत की कुछ ऐसी ही 5 यशस्वी और बुद्धिमान महिलाओं के बारे में जिनके गुणों के चलते उन्हें आज भी याद किया जाता है।


🚩कई वर्षों तक स्त्री शिक्षा को यह कहकर नकारा गया कि प्राचीन भारत में भी स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। लेकिन यह बिल्कुल असत्य है। प्राचीन धर्म ग्रंथों को उठाकर देखा जाए तो पता चलता है कि पौराणिक काल में ऐसी कई ज्ञानवान स्त्रियां हुई हैं जिनके आगे बड़े-बड़े विद्वानों ने घुटने टेक दिए थे।


🚩विदुषी गार्गी


🚩बुद्धिमान स्त्रियों की बात की जाती है तो सबसे पहले विदुषी गार्गी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वेदों की रचना में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गर्गवंश में वचक्नु नामक महर्षि की पुत्री गार्गी का पूरा नाम 'वाचकन्वी गार्गी' है। जिस प्रकार महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण और अर्जुन के संवाद से गीता की उत्पत्ति हुई।


🚩ठीक उसी तरह राजा जनक के दरबार में हुए शास्त्रार्थ में ऋषि याज्ञवल्क्य और गार्गी के बीच हुए प्रश्न-उत्तरों से 'बृहदारण्यक उपनिषद' का निर्माण हुआ। विदुषी गार्गी के सामने महान ऋषि और दार्शनिक याज्ञवल्‍क्‍य भी नतमस्तक हो गए थे।


🚩विदुषी मैत्रेयी  


🚩विदुषी मैत्रेयी भी प्राचीन भारत की सबसे ज्ञानी स्त्रियों में से एक रही हैं। वह मित्र ऋषि की बेटी और महर्षि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी थी। महर्षि याज्ञवल्क्य पहली पत्नी भारद्वाज ऋषि की पुत्री कात्यायनी थीं। वह बहुत ही शांत स्वभाव की थी और अध्ययन, चिंतन और शास्त्रार्थ में रुचि रखती थीं। एक दिन ऋषि याज्ञवल्क्य ने गृहस्थ आश्रम छोड़कर वन में जाने का फैसला किया।


🚩ऐसे में उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों से कहा कि वह संपत्ति को आपस में बराबर हिस्से में बांट लें। कात्यायनी ने पति का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन मैत्रेयी को पता था कि धन-संपदा से आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए उन्होंने भी पति के साथ वन में जाने को कहा ताकि उन्हें भी ज्ञान और अमरत्व की प्राप्ति हो सके।


🚩माता सीता


🚩रामायण का मुख्य पात्र और श्री राम की धर्म पत्नी सीता पतिव्रता नारी तो थी ही साथ ही वह बहुत ही विद्वान भी थीं। माता सीता जी को विदुषी गार्गी से वेद-पुराणों का ज्ञान मिला था। आप उनकी वीरता का अंजादा इसी बात से लगा सकते हैं की उन्होंने बचपन में ही शिव धनुष उठा लिया था। इसी घटना को देखकर राजा जनक ने फैसला लिया कि जो भी शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देखा सीता जी का विवाह उसी से होगा। राजा जनक की इस शर्त को केवल राम जी ही पूरा कर सके और उनका विवाह सीता जी से हुआ।


🚩द्रौपदी


🚩महाभारत के मुख्य किरदारों में से एक द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री थी। वह पंच कन्याओं में से एक थी जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता था। द्रौपदी सुंदर होने के साथ ही बहुत बुद्धिमान भी थी। महाभारत में भी यह देखने को मिलता है कि जब भी पांडवों को कोई निर्णय लेने में संकोच हुआ तब द्रौपदी ने हमेशा उनकी सहायता की। द्रौपदी अपने सशक्त व्यक्तित्व के लिए जानी जाती है।  


🚩अरुंधति


🚩अरुंधति सात ऋषियों (सप्तर्षि) में से एक ऋषि वशिष्ठ की पत्नी थीं। वह एक तपस्विनी थी। अरुंधति को सप्तर्षि मंडल में वशिष्ठ के पास ही दिखाई देती हैं। जैसा कि वैदिक और पौराणिक साहित्य में उल्लेख किया गया है, अरुंधति भक्ति, शुद्धता जैसे कई गुणों का प्रतीक हैं। वह भी प्राचीन भारत की महान स्त्रियों में गिनी जाती हैं।


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Wednesday, September 20, 2023

तमिल नाडु में ब्राह्मण, हिंदू विरोधी मानसिकता का जनक कौन था ? किसने साजिश की??? जानिए.....

 20

September, 2023

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🚩चेन्नई की झुग्गी-झोपड़ी में एक दलित परिवार में जन्मे और वहीं पचीस वर्ष बिताने वाले ऐम वेंकटेशन एक आस्थावान हिंदू हैं। उन्होंने चेन्नई के विवेकानन्द महाविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है। जब वेंकटेशन ने महाविद्यालय में प्रवेश लिया तो उनके कथनानुसार उन्हें प्रतिदिन पेरियारवादियों के एक ही कथन का लगातार सामना करना पड़ा कि पेरियार एक महान दलित उद्धारक थे। चूंकि उन्हें पेरियार दर्शन का कोई ज्ञान नहीं था, उन्होंने पेरियार से संबंधित समस्त उपलब्ध साहित्य के अध्ययन और शोध करने का संकल्प लिया। इसके लिये उन्होंने पेरियार द्वारा स्थापित, संचालित और संपादित सभी पत्रिकाओं , विदुथालाई, कुडियारासु , द्रविड़नाडु, द्रविड़न, उनके समकालीन सभी नेताओं अन्नादुराई, ऐम पी सिवागन, केएपी विश्वनाथन, जीवानंदम आदि के भाषण और लेख तथा 'पेरियार सुयामरियादि प्रचारनिलयम' द्वारा प्रकाशित उनके समस्त साहित्य पर गहन शोध किया। एक आस्थावान हिंदू होने के कारण पेरियार द्वारा हिंदू देवी देवताओं पर लगाये गये बेबुनियाद आरोपों से आहत होकर पेरियार का सत्य सामने लाने के लिये वेंकटेशन ने एक पुस्तक तमिल में लिखी, 'ई.वी. रामास्वामी नायकरिन मरुपक्कम'(पेरियार का दूसरा चेहरा)।

वेंकटेशन के शब्दों में :

" मैं अपने ईष्ट देवी-देवताओं और हिंदू धर्म पर पेरियार के असभ्य और जंगली विचारों को सहन न कर सका। मुझे जिसने जन्म दिया उस प्रिय और पवित्र मां पर यह हमला था। पेरियार के संपूर्ण साहित्य पर शोध के बाद मुझे तीव्र सांस्कृतिक चोट पहुंची और उनकी हिंदू देवी-देवताओं और मेरे धर्म के प्रति घनघोर घृणा देखकर मैं अत्यधिक दुखी हो गया। पेरियार ने दलितों के लिये कुछ भी नहीं किया बल्कि उन्हें दोयम दर्जे का ही बनाये रखा। अगर पेरियार सौ प्रतिशत ब्राह्मण विरोधी थे तो अस्सी प्रतिशत दलित विरोधी भी थे।"

वेंकटेशन की पुस्तक पेरियार का संपूर्ण शव विच्छेदन करती हुई पेरियार वादियों के गले की हड्डी बन गई है। वेंकटेशन का दावा है कि जो भी सत्य का अन्वेषक है वह इस पुस्तक को पढ़ने के बाद पेरियार को त्याग देगा।


🚩इस पुस्तक का तमिल से अंग्रेज़ी और हिंदी में अनुवाद आज तक ना हो पाने के कारण पेरियार का असली चेहरा देश के सामने प्रकट नहीं हो पाया है। परिणाम स्वरूप पेरियार को दलित उध्दारक बताने और अंबेडकर के साथ जोड़ने का कुचक्र आज भी जारी है। 


🚩वेंकटेशन ने पेरियार दलित, राष्ट्र और धर्म विरोधी एजेंडे का बेरहमी से तथ्यों का संदर्भ देकर जो पोस्टमार्टम किया है वो आंखें खोलने वाला है। वेंकटेशन कहते हैं:

" अंग्रेजों ने हमपर शासन प्रारंभ करने के साथ ही यह समझने लिया था कि शायद वो भारत पर स्थाई रूप से शासन करने में असमर्थ होंगे। क्योंकि उनके विरुद्ध निरंतर विद्रोह होने लगा था और इन घटनाओं को लेकर वो बहुत चिंतित थे। उन्होंने मंथन किया कि यदि उन्हें भारत पर अपना शासन चलाये रखना है तो किसी भी तरह विरोध की आग को बुझाना ही होगा। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने विदेश से अनेक विद्वानों को भारत बुलाया। इन विद्वानों को यह पता लगाना था कि किन-किन उपायों और कार्यवाहियों से वो अनंत काल तक शासन कर सकते हैं।यही बात समझने के लिये सारे आयातित गोरे विद्वान देश के विभिन्न राज्यों में गये। एक ऐसे ही गोरे विद्वान के अनुसार :

"यदि हम भारत पर स्थाई रूप से शासन करना चाहते हैं तो हमें इस देश को विभाजित और तोड़ना पड़ेगा। भारत एक स्वाभिमानी राष्ट्र है और हमें सर्वप्रथम भारतियों के स्वाभिमान को नष्ट करना होगा। इस राष्ट्र की नींव हिंदू आध्यात्मिकता है जिसे सर्वप्रथम जड़ से उखाड़ फेंकना है। यदि हम ऐसा करने में असफल रहे तो हम भारत पर लंबे समय तक शासन नहीं कर पायेंगे। इसी हिंदू संस्कृति को हमें अपमानित, हीन और पूरी तरह ध्वस्त करना होगा। हिंदू देवी-देवताओं को लोगों की निगाहों से गिराना होगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनकी भाषा को नीचा साबित करना होगा। हमें यह भी पक्का करना होगा कि भारतीय हमारी इन बातों पर विश्वास भी करने लगे जायें कि उनकी संस्कृति नीच है। इसमें कुछ भी अच्छा नहीं है। इसप्रकार भारतियों को मानसिक रूप से अपना गुलाम बना लेना ही उनपर शासन करने का एकमात्र उपाय है। उपर्युक्त सारी संस्तुतियां

आयातित गोरे विद्वानों के शोध से निकल कर सामने आयीं और अंग्रेजों ने तत्परता से इसपर कार्य करना प्रारंभ कर दिया। 

सर्वप्रथम काल्डवेल ने 'ए ग्रामर औफ द्रविड़ियन लैंग्वेजेस' लिखी। साथ ही यह भी लिखा कि सारी भारतीय भाषायें तमिल से ही उपजी हैं और संस्कृत का तमिल से कोई संबंध नहीं है। इसके तुरंत पश्चात् ऐसे ही लेखों कि बाढ़ आने लगी। इसी समय अंग्रेजों ने निर्णय लिया कि भारत को तोड़ने के लिये उन्हें अपने भारतीय समर्थकों के साथ ही उन कतिपय नेताओं की भी आवश्यकता है जो उनकी साजिश को अंजाम दे सकें। इसलिये अंग्रेजों के इशारे पर तत्कालीन मद्रास प्रांत में टी एम नायर, सर पित्ती तेइगरिया आदि ने जस्टिस पार्टी का गठन किया। प्रारंभ में यह गैर राजनीतिक थी परंतु शनै: शनै: राजनीति में शामिल होने लगी। जस्टिस पार्टी ने ही सर्वप्रथम ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण की अवधारणा तमिलनाडु में पैदा की। ऐसी विभाजनकारी अवधारणा तमिलनाडु में इसके पहले अनुपस्थित थी। हमारे अपने ही लोगों के माध्यम से अंग्रेजों ने हमें कदम दर कदम तोड़ना शुरू कर दिया।

 1916 में जस्टिस पार्टी की स्थापना हुयी और 1919 में पेरियार राजनीति में आये। इससे पहले इन्हें राजनीति में कोई नहीं जानता था। राजनीति के प्रारंभिक दिनों में वो राष्ट्रभक्त और आध्यात्मिक थे। उन्होंने आर्य और द्रविड़ के विभाजन की अवधारणा को सिरे से नकारा भी। 1919 में एक पत्रिका 'नेशनलिस्ट' में लेख लिखकर आर्य-द्रविड़ विभाजन के सिद्धांत सिरे से नकारते हुये पेरियार ने इसे धोखा बताया। यहां तक कि जब उन्होंने अपनी प्रथम पत्रिका निकाली तो ये लिखा कि वो यह कार्य ईश्वर के दिव्य आशीर्वाद से कर रहे हैं। उन्होंने एक हिंदू संत से अपनी पत्रिका के कार्यालय का उद्घाटन भी करवाया। पेरियार ने जस्टिस पार्टी का विरोध सैद्धांतिक रूप से भी किया और अपने कार्यों से भी। पेरियार और थिरू वी के ने एक संगठन बनाकर जस्टिस पार्टी का तमिलनाडु में विरोध भी किया। फिर अचानक पेरियार ने जस्टिस पार्टी से संबंध बनाने शुरू किये जिसके सभी सदस्य अंग्रेजों के पिट्ठू थे। सच्चाई यह थी कि जस्टिस पार्टी बनाने में अंग्रेजों का ही हाथ था। जस्टिस पार्टी के कारण पेरियार की प्रसिद्धि और प्रचार बढ़ने लगा।


🚩पेरियार तमिलनाडु के सर्वाधिक धनी व्यक्ति थे। उन दिनों जितने भी राष्ट्रीय नेता तमिलनाडु आते थे वो पेरियार के व्यक्तिगत् अतिथि हुआ करते थे। उनका रहना, खाना-पीना सब पेरियार के घर पर ही होता था। पेरियार का परिवार इरोड का एक सम्मानित और संपन्न परिवार था। उनकी नेतृत्व क्षमता का आकलन कर अंग्रेजों ने उन्हें जस्टिस पार्टी में शामिल करने की योजना पर कार्य करना शुरू कर दिया। अंग्रेजों के इशारे पर जस्टिस पार्टी के कर्णधारों ने पेरियार से मिलना जुलना और उनसे संबंध बनाना चालू कर दिया। पेरियार ने भी उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और थोड़े ही समय में दोनों के मध्य नज़दीकी संबंध भी बन गये।


🚩तभी कतिपय आर्थिक अनियमितताओं को लेकर पेरियार और कांग्रेस में गहरी दरार पड़ गयी। अधिकतर लोगों को इस बात की जानकारी आज भी नहीं है। दरअसल आंध्रप्रदेश के संस्थानम ने चेरन मां देवी गुरुकुलम को पांच हजार का दान दिया था। पेरियार पर आरोप था कि उसने कांग्रेस के पैसे का दुरपयोग किया। पेरियार ने अपने बचाव में कहा कि यह पैसा उसकी अनुमति लिये बिना दिया गया। इसी आरोप के साथ पेरियार का कांग्रेस के साथ मतभेद गहराता चला गया और उसने 'सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट' की शुरुआत कर दी। इस मूवमेंट के पीछे अंग्रेजों की गहरी साज़िश थी और उनके और जस्टिस पार्टी के अतिरिक्त और किसी ने भी इसका समर्थन तमिलनाडु में नहीं किया। शनै: शनै: पेरियार अंग्रेजों के बौद्धिक प्यादा हो गये। अंग्रेजों के दृष्टिकोण का उन्होंने समर्थन करना शुरु कर दिया।


🚩यदि हम 1927 के पश्चात् पेरियार के दिये हुये भाषणों के देखें तो सब राष्ट्र और हिंदू विरोधी थे। यदि इन भाषणों को गहराई से देखें तो आश्चर्यजनक रूप से ये दलित विरोधी थे। इसका कारण यह है कि गांधी दलितों को मंदिरों में प्रवेश दिलाने के लिये उस समय सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे। गांधी ने अपील की चूंकि आगम नियमों के मुताबिक शूद्र मंदिर के मंडप तक जा सकते हैं, दलितों को भी मंडप तक जाने का अधिकार है। उनको भी यह अनुमति मिलनी चाहिये पेरियार ने तुरंत इस बात का प्रतिवाद किया कि शूद्र और दलित समान हैं। उस काल में शूद्रों मंडप तक जा सकते थे। पेरियार ने कभी यह नहीं कहा कि मंदिर प्रवेश के लिये सभी वर्णों को समान अधिकार है। वो शूद्रों को चौथा वर्ण मानते थे और दलित को पांचवां जो मंदिर प्रवेश के अधिकारी नहीं है। उन्होंने मरते दम तक यह माना कि शूद्र और दलित अलग-अलग है। इस बात को उन्होंने सार्वजनिक मंचों से कई बार बिना किसी शर्म के कहा भी। 

तभी चेतन मां देवी गुरुकुलम में हुयी एक घटना ने पूरे तमिलनाडु को झकझोर दिया। हुआ यह कि वी वी एस अय्यर ने विशेष रूप से पकाये भोजन को गुरुकुल के दो ब्राह्मण विद्यार्थियों को ही दिया। यह घटना तमिलनाडु में बड़ा मुद्दा बन गयी। तुरंत इसका बहाना खड़ा कर सर्वप्रथम पेरियार ने ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण का हौआ राज्य में खड़ा करना शुरू किया। यहीं से उसकी ब्राह्मण और गैर ब्राह्मण की राजनीति की नींव पड़ी। इस मुद्दे के समाधान और सभी को समान अधिकार देने के लिये एक राष्ट्रवादी कांग्रेसी गावियकंद गणपथि सास्त्रुगल अय्यर सामने आये। उन्होंने कहा कि यद्यपि गुरुकुल में एक भी दलित विद्यार्थी नहीं है फिर भी एक दलित को गुरुकुल का बावर्ची नियुक्त किया जाये। जिसके हाथों से पकाया भोजन सभी विद्यार्थी खायें। यही सामाजिक न्याय का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण होगा। अय्यर संस्कृत के उत्कृष्ट विद्वान भी थे। लेकिन सामाजिक न्याय के योद्धा पेरियार ने कहा कि वो इस सुझाव को कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने प्रश्न खड़े किये कि कैसे दलित का पकाया भोजन शूद्रों खा सकता है। यह उनकी दलित विरोधी मानसिकता थी जिसका पालन उन्होंने आजीवन किया। हास्यास्पद रूप से आज भी पेरियार को दलितों का मसीहा बताकर लोगों को बरगलाया जाता है। यह झूठ का पुलिंदा मात्र है।


🚩अपने दलित विरोधी विचारों के साथ ही उन्हें अब यह लगा कि हिंदुत्व का विनाश कर ही राष्ट्र को तोड़ा जा सकता है। इसके लिये जो रणनीति उसने बनायी उसमें प्रथम था रामायण को गालियां देना। रामायण को नीचा साबित करने के लिये अनेक पुस्तकें लिखी गयीं। महाभारत को भी नहीं बख्शा गया। हम सभी महान संत और कवि कंब से परिचित हैं जिन्होंने कंब रामायण लिखी थी। पेरियार ने एक पुस्तक 'कंब रस्म' लिखकर रामायण को बेहद अश्लील तरीके से प्रस्तुत किया। नीचता की पराकाष्ठा कर उसने संत कवि कंब, भगवान राम और देवी सीता को जी भर गालियां दीं।

पेरियार के इस कदम का शैव मतावलंबियों ने तालियां बजाकर स्वागत् और समर्थन किया क्योंकि पेरियार वैष्णव मत वालों पर हमला कर रहा था। शैव मठों के प्रमुख महंतों ने, जिसमे कुंद्राकुडी अडिगल भी सम्मिलित थे, इसी कारण पेरियार का समर्थन किया। यही स्थिति थी उस समय तमिलनाडु में। लेकिन कुछ समय पश्चात् जब पेरियार ने तमिल शैव 'पेरिया पुराणम्' पर भी हमला बोला तब शैवों को पेरियार की असल साजिश का एहसास हुआ। फलस्वरूप सभी मतावलंबी एकजुट होकर पेरियार के विरोध में आ गये। एक-एक कर सभी हिंदू ग्रंथ पेरियार के निशाने पर आने लगे। यहां तक कि उसने तिरुक्कुरल को भी हर संभव गालियां देनी प्रारंभ कर दी। पेरियार के शब्दों में तिरुक्कुरल "सोने की थाली में परोसी गयी मानव विष्ठा है।"


🚩प्राचीन तमिल महाकाव्य सिलापथिकरम के रचनाकार इलांगो अडिगल, तोल्कापियर आदि जितने महापुरुष, जिनको तमिल हिंदू हृदय से पूजते थे, उन सभी को पेरियार अपमानित करने लगा। पेरियार की इस साज़िश के पीछे एकमात्र कारण यह था कि इन महापुरुषों और इनके द्वारा रचित सभी ग्रंथों से हिंदू, जिन्हें वो पवित्र मानते हैं, गुमराह होकर इनसे घृणा करने लगें और इनसे विमुख हो जायें। पेरियार का शातिर दिमाग यह जानता था किसी भी व्यक्ति को उसकी संस्कृति से काट कर ही उसे किसी विदेशी संस्कृति को अपनाने के लिये सहजता से तैयार किया जा सकता है। यही उसका एकमात्र ध्येय भी था।


🚩इसके बाद उसने राम के पुतले का दहन किया। विनयागर (गणेश) मूर्ति को सलेम जिले में जनता के मध्य तोड़ा।पेरियार की कहने पर उसके गुंडों ने हर तरह के अत्याचार हिंदू मान्यताओं पर करना शुरू किया। किसी ने भी उसका विरोध नहीं किया। विनयागर मूर्ति तोड़ने के मामले पर सलेम जिले में हिंदुओं की धार्मिक आस्था आहत करने का मुकदमा पेरियार के संगठन द्रविड़ कड़गम पर दर्ज भी हुआ। अदालत में न्यायाधीश की टिप्पणी थी कि यदि मूर्ति तोड़ने से वास्तव में किसी की भावना आहत हुयी है तो कम से कम किसी एक ने तो इसपर मौके पर या बाद में अपनी प्रतिक्रया दी होती। चूंकि किसी ने भी विरोध नहीं किया तो इसका अर्थ है कि किसी को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी और सबने इस कार्य को स्वीकार किया।

उस समय सभी मौन थे। पेरियार की सभी हरकतों को हमने अपनी नियति मान ली थी। किसी ने भी विरोध में चूं तक नहीं की। एक ओर हमारा हिंदू धर्म था और दूसरी ओर हमारी भाषा जिसे हम देवी के रूप में पूजते थे। उसने संस्कृत और तमिल को बांट दिया। दलितों के दिमाग में यह बात ठूंस दी कि संस्कृत विदेशी भाषा है और दलितों और संस्कृत का कोई नाता नहीं है। लेकिन भला ऐसा कैसे संभव है ? दलितों और संस्कृत के मध्य सदा से गहरा और निकट का नाता रहा है। वाल्मीकि जी और व्यास ने संस्कृत में लिखा। किसने उन्हें संस्कृत पढ़ाई ? संस्कृत ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी जाता रहा। दलितों की एक उपजाति है वल्लुवर जो आज की तारीख तक हिंदू पंचांग संस्कृत में लिखते हैं। क्या कोई बिना संस्कृत ज्ञान के पंचांग लिख सकता है ? ध्यान देने की बात है कि आज भी वल्लुवरों को कोई ब्राह्मण संस्कृत नहीं पढ़ाता है। डा. अंबेडकर ने कहा था कि यदि कोई भाषा संपूर्ण राष्ट्र की साझा भाषा हो सकती है तो वो केवल संस्कृत ही है। ऐसा उन्होंने संविधान सभा की चर्चा के मध्य संसद में कहा था। सिलापथिकरम कोवलन संस्कृत के विद्वान थे। वो संस्कृत सहजता से बोला भी करते थे। एकबार किसी राहगीर ने उनसे संस्कृत भाषा में लिखा कोई पता पूछा तो उन्होंने संस्कृत पढ़कर उसे उत्तर दिया। कोवलन वनिबा चेट्टियार थे जो एक वैश्य उपजाति है। यह इस बात का प्रमाण है कि संस्कृत आमजन की भाषा भी थी। हर व्यक्ति के हृदय में संस्कृत के लिये भक्तिभाव था। अत: पेरियार के लिये यह आवश्यक था कि अपने कुटिल उद्देश्य की पूर्ति हेतु संस्कृत के प्रति आम जनता के भक्तिभाव को कैसे भी हो तोड़ा और नष्ट किया जाये।


🚩तमिलनाडु में दलित और अन्य जातियां सदा से मिलजुल कर रहा करती थीं। पेरियार इसी आपसी सद्भाव को तोड़कर समाज को दलित और गैर दलित में बांटने की साज़िश रच रहा था। इस साज़िश के तहत उसने योजनाबद्ध तरीके से यह घोषणा की कि समस्त जातिगत् झगड़े ब्राह्मणों के कारण ही हैं। तमिलनाडु के अनेक गांवों में जहां एक भी ब्राह्मण नहीं आबाद था वहां जातिगत् झगड़े और हिंसा हुआ करते थे। पेरियार ने इन सभी के लिये ब्राह्मणों को जिम्मेदार ठहराता था। आज भी तमिलनाडु में ऐसा ही होता है। मुडुकुलथुर दंगे तमिलनाडु की मझोली जातियों के समूह मुक्कलदोर और देवेन्द्र कुला वेल्लार दलितों के बीच ही हुये थे। इस दंगे में दो व्यक्ति मारे गये थे। एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर इन दंगों को लेकर कहा :

" तुम जातियों का विनाश चाहते हो या नहीं ! मन बना लो। फांसी की रस्सी के लिये तैयार रहो। सभी युवा खून से हस्ताक्षर कर इस बारे में घोषणा करें कि वो गांधी की मूर्तियों तोड़ेंगे और ब्राह्मणों को मारेंगे।"


🚩जबकि मुडुकुलथुर और ब्राह्मणों के बीच कोई संबंध ही नहीं था। साथ ही पेरियार ने यह भी कहा कि सभी प्रकार की जातिगत् झगड़े ब्राह्मणों के कारण हैं। 


🚩पेरियार ने एक हजार से भी अधिक निबंध और लेख लिखे हैं। अस्सी प्रतिशत से अधिक अपने लेखों में उसने सभी स्थानों में सभी प्रकार की समस्याओं का कारण केवल ब्राह्मणों को ही बताया है।

वर्ष 1962 में किलवेनमनि दंगों में नायडू जाति वालों ने 44 दलितों को जिंदा जला कर मार डाला था। इस पूरे क्षेत्र में एक भी ब्राह्मण नहीं रहता था। यहां भी पेरियार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दंगों के लिये ब्राह्मणों को दोषी मानते हुये मांग की:

" जातियों को तोड़ने के लिये ब्राह्मणों का समूल नाश कर दिया जाये। "

भारत का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। जो भी इस दिव्य राष्ट्र और हिंदुत्व की रक्षा करता है उसे हम उच्च पायदान पर रख कर उसको एक संत के समान पूजते हैं। यदि कोई भगवान वस्त्र धारण करता है तो हम उसका सम्मान करते हैं। हमारे हृदय में ब्राह्मणों के लिये सदा से सम्मान इसलिये रहा है क्योंकि वो भौतिक जीवन का त्याग कर राष्ट्रीय के लिये ही जीते रहे हैं। कुंज वृत्ति ! अर्थात् ब्राह्मणों द्वारा खेतों में गिरे अन्य के दानों को चुनकर उन्हें पकाकर खाना। यही वो ब्राह्मण थे जिनका तमिलनाडु में सभी समुदाय सदा से सम्मान करते थे। ब्राह्मणों की यही प्रतिष्ठा धूमिल और नष्ट करना पेरियार के जीवन का एक बड़ा लक्ष्य था। इसके लिये पेरियार ने समाज की सभी समस्याओं के लिये ब्राह्मणों को दोषी ठहराना प्रारंभ किया। वह और उसके लोग बहुत धूर्तता से इस साज़िश को मूर्तरूप देने लगे। अंततोगत्वा तमिलनाडु के निर्दोष ब्राह्मण पेरियार की कुटिल चाल की भेंट चढ़ ही गये। वह अपनी चाल में सफल हो गया।

तत्पश्चात् पेरियार ने वर्ष 1944 में एक प्रस्ताव पारित किया:

" अंग्रेजों को भारत छोड़कर वापस नहीं जाना चाहिये। लेकिन यदि ऐसा करना ही पड़े तो वो भारत के सभी राज्यों को आजादी दे दें। बस तमिलनाडु ही अंग्रेजों के राज्य के अधीन रहे।"

 इस प्रस्ताव के सामने आते ही तमिलनाडु की जनता की आंखें खुलीं और उन्हें एहसास हुआ कि पेरियार और उसके संगठन द्रविड़ कड़गम और जस्टिस पार्टी के समस्त कार्यकलापों के पीछे अंग्रेजी राज का ही हाथ है। ये दोनों संगठन ब्रिटिश राज की ही उपज थे।" -लेखक- अरुण लवानिया


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Tuesday, September 19, 2023

महिलाओं से अनजाने में कुछ गलतियां

 महिलाओं से अनजाने में कुछ गलतियां हो गई हो तो इस व्रत को अवश्य करे ,पापों से मिलेगी मुक्ति,पूरा लेख अवश्य पढ़ें......



19 September, 2023

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🚩भारत ऋषि-मुनियों का देश है। इस देश में ऋषियों की जीवन-प्रणाली का और ऋषियों के ज्ञान का अभी भी इतना प्रभाव है कि उनके ज्ञान के अनुसार जीवन जीनेवाले लोग शुद्ध, सात्त्विक, पवित्र और व्यवहार में भी सफल हो जाते हैं तथा परमार्थ में भी पूर्ण सफलता प्राप्त करते हैं।

ऋषि तो ऐसे कई हो गये, जिन्होंने अपना जीवन केवल ‘बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय’ बिता दिया।

हम उन ऋषियों का आदर करते हैं, पूजन करते हैं। उनमें से भी वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, अत्रि, गौतम और कश्यप आदि ऋषियों को तो सप्तर्षि के रूप में नक्षत्रों के प्रकाशपुंज में निहारते हैं ताकि उनकी चिरस्थायी स्मृति बनी रहे।

ऋषियों को ‘मंत्रद्रष्टा’ भी कहते हैं। ऋषि अपने को कर्ता नहीं मानते। जैसे वे अपने साक्षी-द्रष्टा पद में स्थित होकर संसार को देखते हैं, वैसे ही मंत्र और मंत्र के अर्थ को साक्षी भाव से देखते हैं। इसलिए उन्हें ‘मंत्रद्रष्टा’ कहा जाता है।


🚩ऋषि पंचमी के दिन इन मंत्रद्रष्टा ऋषियों का पूजन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएँ व्रत रखती हैं ।


🚩ऋषि की दृष्टि में तो न कोई स्त्री है न पुरुष, सब अपना ही स्वरूप है। जिसने भी अपने-आपको नहीं जाना है, उन सबके लिए ऋषि पंचमी का पर्व है। जिस अज्ञान के कारण यह जीव कितनी ही माताओं के गर्भों में लटकता आया है, कितनी ही यातनाएँ सहता आया है उस अज्ञान को निवृत्त करने के लिए उन ऋषि-मुनियों को हम हृदयपूर्वक प्रणाम करते हैं, उनका पूजन करते हैं।


🚩उन ऋषि-मुनियों का वास्तविक पूजन है- उनकी आज्ञा शिरोधार्य करना। उन्होंने खून-पसीना एक करके जगत को आसक्ति से छुड़ाने की कोशिश की है। हमारे सामाजिक व्यवहार में, त्यौहारों में, रीत-रिवाजों में उन्होंने कुछ-न-कुछ ऐसे संस्कार डाल दिये कि अनंत काल से चली आ रही मान्यताओं के परदे हटें और सृष्टि को ज्यों-का-त्यों देखते हुए सृष्टिकर्ता परमात्मा को पाया जा सके। उन ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनका पूजन करना चाहिए, ऋषिऋण से मुक्त होने का प्रयत्न करना चाहिए।


🚩वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह बात सिद्ध हो चुकी है कि मासिक धर्म के दिनों में स्त्री के शरीर से अशुद्ध परमाणु निकलते हैं, उसके मन-प्राण विशेषकर नीचे के केन्द्रों में होते हैं। इसलिए उन दिनों के लिए शास्त्रों में जो व्यवहार्य नियम बताये गये हैं, उनका पालन करने से हमारी उन्नति होती है।


🚩इस व्रत की कथा के अनुसार जिस किसी महिला ने मासिक धर्म के दिनों में शास्त्र-नियमों का पालन नहीं किया हो या अनजाने में ऋषि के दर्शन कर लिये हों या इन दिनों में उनके आगे चली गयी हो तो उस गलती के कारण जो दोष लगता है, उस दोष के निवारण हेतु, इस अपराध के लिए क्षमा माँगने हेतु यह व्रत रखा जाता है।


🚩ऋषि-मुनियों को आर्षद्रष्टा कहते हैं। उन्होंने कितना अध्ययन करने के बाद सब रहस्य बताये हैं! ऐसे ही नहीं कह दिया है। अभी भी आप अनुभव कर सकते हैं कि जिन दिनों घर की महिलाएँ मासिक धर्म में होती हैं, उन दिनों में प्रायः आपका मन उतना प्रसन्न और उन्नत नहीं रहता जितना और दिनों में रहता है।


🚩जिन घरों में शास्त्रोक्त नियमों का पालन होता है, लोग कुछ संयम से जीते हैं, उन घरों में तेजस्वी संतानें पैदा होती हैं।


🚩व्रत-विधि :


🚩ऋषि पंचमी का दिन त्यौहार का दिन नहीं है, व्रत का दिन है। आज के दिन हो सके तो अधेड़ा का दातुन करना चाहिए। दाँतों में छिपे हुए कीटाणु आदि निकल जायें और पायरिया जैसी बीमारियाँ नहीं हों तथा दाँत मजबूत हों- इस तरह दाँतों की तंदुरुस्ती का ख्याल रखते हुए यह बात बतायी गयी हो, ऐसा हो सकता है।


🚩इस दिन शरीर पर गाय के गोबर का लेप करके नदी में 108 बार गोते मारने होते हैं। गोबर के लेप से शरीर का मर्दन करते हुए स्नान करने के पीछे रोमकूप खुल जायें, चमड़ी पर से कीटाणु आदि का नाश हो जाय और साथ में एक्युप्रेशर व मसाज भी हो जाय- ऐसा उद्देश्य हो सकता है। 108 बार गोते मारने के पीछे ठंडी, गर्मी या वातावरण की प्रतिकूलता झेलने की जो रोगप्रतिकारक शक्ति शरीर में है, उसे जागृत करने का हेतु भी हो सकता है। अब आज के जमाने में नदी में जाकर 108 बार गोते मारना सबके लिए तो संभव नहीं है, इसलिए ऐसा आग्रह भी नही रखना चाहिए, लेकिन स्नान करो तब 108 बार हरिनाम लेकर अपने दिल को तो हरिरस से जरूर नहलाओ।


🚩स्नान के बाद सात कलश स्थापित करके सप्त ऋषियों का आवाहन करते हैं। उन ऋषियों की पत्नियों का स्मरण करके, उनका आवाहन, अर्चन-पूजन करते हैं। जो ब्राह्मण हो, ब्रह्मचिंतन करता हो, उसे सात केले घी-शक्कर मिलाकर देने चाहिए- ऐसा विधान है। अगर कुछ भी देने की शक्ति नहीं है और न दे सकें तो कोई बात नहीं, पर दुबारा ऐसा अपराध नहीं करेंगे यह दृढ़ निश्चय करना चाहिए। ऋषि पंचमी के दिन बहनें मिर्च, मसाला, घी, तेल, गुड़, शक्कर, दूध नहीं लेतीं। उस दिन लाल वस्त्र का दान करने का विधान है।

आज के दिन सप्तर्षियों को प्रणाम करके प्रार्थना करें कि ‘हमसे कायिक, वाचिक एवं मानसिक जो भी भूलें हो गयी हों, उन्हें क्षमा करना। आज के बाद हमारा जीवन ईश्वर के मार्ग पर शीघ्रता से आगे बढ़े, ऐसी कृपा करना।’


🚩खान-पान, स्नानादि तो हम हर रोज करते हैं, पर व्रत के निमित्त उन ब्रह्मर्षियों को याद करके सब क्रियाएँ करें तो हमारी लौकिक चेष्टाओं में भी उन ब्रह्मर्षियों का ज्ञान छलकने लगेगा। उनके अनुभव को अपना अनुभव बनाने की ओर कदम आगे रखें तो ब्रह्मज्ञानरूपी अति अद्भुत फल की प्राप्ति भी हो सकती है।


🚩ऋषि पंचमी का यह व्रत हमें ऋषिऋण से मुक्त होने के अवसर की याद दिलाता है। लौकिक दृष्टि से तो यह अपराध के लिए क्षमा माँगने का और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है, पर सूक्ष्म दृष्टि से अपने जीवन को ब्रह्मपरायण बनाने का संदेश देता है। ऋषियों की तरह हमारा जीवन भी संयमी, तेजस्वी, दिव्य, ब्रह्मप्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करनेवाला हो- ऐसी मंगल कामना करते हुए ऋषियों और ऋषिपत्नियों को मन-ही-मन आदरपूर्वक प्रणाम करते हैं।

(साभार- लोक कल्याण सेतु पत्रिका: अगस्त 2003)


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गणोशोत्सव भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी मनाया जाता हैं.....

18 September, 2023


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🚩गणेश चतुर्थी के दिन से पूरे देश में गणेशोत्सव मनाते हैं। लोग बड़े ही भक्ति भाव से गणेश की स्थापना कर रहे हैं । हिन्दुओं के साथ-साथ गैर हिन्दुओं में भी बप्पा के बहुत भक्त हैं। परंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान गणेश के जयकारे जिस तरह भारत में लगते हैं उसी तरह भारत से हजारों मील दूर कई देशों में भी गूंज रहे हैं। यहां गणपति की वैसी ही भक्ति, उतनी ही धूमधाम से पूजा और उतने ही उत्साह के साथ मूर्ति विसर्जन किया जाता है।


🚩अफ्रीकी देश घाना में गणपति बप्पा की पूजा अफ्रीकी लोग करते हैं। यहां हर साल भगवान गणेश की पूजा धूमधाम से की जाती है और भारतीय हिन्दू की तरह ये भी गणेश मूर्ति का विसर्जन करते हैं।


🚩नेपाल में गणेश मंदिर की स्थापना सबसे पहले सम्राट अशोक की पुत्री चारूमित्रा ने की थी। वहां के लोग भगवान गणेश को सिद्धिदाता और संकटमोचन के रूप में मानते हैं। परेशानियों से बचने के लिए वहां गणेश जी की पूजा की जाती है। 


🚩चीन के प्राचीन हिन्दू मंदिरों में चारों दिशाओं के द्वारों पर गणेश जी स्थापित है। 


🚩तिब्बत में गणेश जी को दुष्टात्माओं के दुष्प्रभाव से रक्षा करने वाला देवता माना जाता है।

 

🚩जापान - जापान में भगवान गणेश को 'कांगितेन' के नाम से जाना जाता हैं, जो जापानी बौद्ध धर्म से सम्बंध रखते हैं। कांगितेन कई रूपों में पूजे जाते हैं, लेकिन इनका दो शरीर वाला स्वरूप सर्वाधिक प्रचलित है। चार भुजाओं वाले गणपति का भी वर्णन यहां मिलता है।

 

🚩श्रीलंका - तमिल बहुल क्षेत्रों में काले पत्थर से निर्मित भगवान पिल्लयार (गणेश) की पूजा की जाती है। श्रीलंका में गणेश के 14 प्राचीन मंदिर स्थित हैं। कोलंबो के पास केलान्या गंगा नदी के तट पर स्थित केलान्या में कई प्रसिद्ध बौद्ध मंदिरों में भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित हैं। 

 

🚩इंडोनेशिया - माना जाता है कि इंडोनेशियन द्वीप पर भारतीय धर्म का प्रभाव पहली शताब्दी से है। यहां के भारतीयों के लिए भगवान गणेश की मूर्तियां ख़ासतौर पर भारत से मंगाई जाती हैं। यहां के 20 हज़ार के नोट पर भी गणेशजी की तस्वीर है। यहां उन्हें ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। 

 

🚩थाईलैंड - गणपति 'फ्ररा फिकानेत' के रूप में प्रचलित हैं। यहां इन्हें सभी बाधाओं को हरने वाले और सफलता के देवता माना जाता है। नए व्यवसाय और शादी के मौके पर उनकी पूजा मुख्य रूप से की जाती है। गणेश चतुर्थी के साथ ही वहां गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है।


🚩इन देशों के अलावा बर्मा, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, गुयाना, मारीशस, फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, कंबोडिया, न्यूजीलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो आदि में भी गणेशोत्सव मनाया जाता है।


🚩गणेशोत्सव की शुरूआत-


🚩गणेशोत्सव के इतिहास पर गौर करें तो कहा जाता है है कि पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया था। शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना की थी।


🚩लेकिन सन 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत की। तिलक के इस प्रयास से पहले गणेश पूजा सिर्फ परिवार तक ही सीमित थी। तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें।


🚩तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।


🚩तिलक द्वारा सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरूआत करने से दो फायदे हुए; एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया।


🚩इस तरह से हुई गणेशोत्सव की शुरूआत।


🚩बहरहाल आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस गणेशोत्सव को आज भी सभी भारतीय बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।


🚩इसलिए यह जरूरी है कि देशभर में आज भी उल्लास के साथ मनाये जाने वाले गणेशोत्सव में फ़िल्मी व पॉप आदि गाने नहीं बजाने चाहिए और ना ही दारू आदि का नशा करना चाहिए। यह मात्र तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये- इसका ध्यान रखना चाहिए।


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