Thursday, December 21, 2023

केवल श्रीमद्भगवद्गीता की ही जयंती क्यों मनाई जाती हैं ?

22 December 2023

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🚩गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसकी रचना हुए हजारों वर्ष बीत गए हैं किन्तु उसके बाद उसके समान किसी भी ग्रंथ की रचना नहीं हुई है। 18 अध्याय एवं 700 श्लोकों में रचित तथा भक्ति, ज्ञान, योग एवं निष्कामता आदि से भरपूर यह गीता ग्रन्थ विश्व में एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसकी जयंती मनायी जाती है।

इस साल श्रीमद्भगवद्गीता जयंती 22 दिसंबर 2023 को है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की, अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही है। गीता जीवन का दृष्टिकोण उन्नत बनाने की कला सिखाती है और युद्ध जैसे घोर कर्मों में भी निर्लेप रहने की कला सिखाती है। मरने के बाद नहीं, जीते-जी मुक्ति का स्वाद दिलाती है गीता!


🚩‘गीता’ में 18 अध्याय हैं, 700 श्लोक हैं, 94569 शब्द हैं। विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है।


🚩’यह मेरा हृदय है’- ऐसा अगर किसी ग्रंथ के लिए भगवान ने कहा है तो वह गीताजी हैं। ‘गीता मे हृदयं पार्थ।- गीता मेरा हृदय है।’


🚩गीता ने गजब कर दिया- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे… युद्ध के मैदान को भी धर्मक्षेत्र बना दिया। युद्ध के मैदान में गीता ने योग प्रकटाया। हाथी चिंघाड़ रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा प्रतिशोध की आग में तप रहे हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ता से उदास बैठे हुए अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं।


🚩आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के ही श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर लटक जाते थे।


🚩श्री वेदव्यास ने महाभारत में गीता का वर्णन करने के उपरान्त कहा हैः

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।


🚩‘गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात् श्री गीता को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अंतःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जो कि स्वयं श्री पद्मनाभ विष्णु भगवान के मुखारविन्द से निकली हुई है, फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है?’


🚩विदेशों में श्री गीता जी का महत्व समझकर स्कूल, कॉलेजों में पढ़ाने लगे हैं, भारत सरकार भी अगर बच्चों एवं देश का भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहती है तो सभी स्कूलों, कॉलेजों में गीता अनिवार्य कर देना चाहिए।


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Wednesday, December 20, 2023

निहंग सिखों की घोषणा : ‘हम सनातन के अंग, श्रीराम की आने की खुशी में लगाएँगे लंगर’

21 December 2023

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🚩जनवरी 2024 में अयोध्या में सिख समाज भगवान श्रीराम जी के मंदिर महोत्सव में 2 महीने तक लंगर लगाएगा। इसकी अगुवाई बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर करेंगे। बाबा रसूलपुर बाबा फकीर सिंह खालसा की आठवीं पीढ़ी के हैं। बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में निहंग सिखों ने सबसे पहले अयोध्या में बाबरी ढाँचे पर कब्जा किया था। बाबा ने कहा कि सिख समाज भी सनातन का हिस्सा है और उनके पूर्वजों ने इसकी रक्षा के लिए कुर्बानी दी है।


🚩इस दौरान बाबा हरजीत सिंह ने खालिस्तानियों और हिंदू-सिख के बीच दरार पैदा करने वालों को भी करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, “हम पूरी दुनिया को बताना चाहते हैं कि सिख और सनातन एक हैं। जो हमारा देश है, वह अलग नहीं है। जो हमें तोड़ने की बातें कर रहे हैं, उन्हें इसके माध्यम से एक अच्छा मैसेज देना चाह रहे हैं।” उन्होंने आगे, “इस राम मंदिर को मुस्लिमों से जिन्होंने सबसे पहले कब्जा लिया था, वे हमारे पूर्वज थे।”


🚩“हम भी सनातन का हिस्सा”


🚩अयोध्या में लंगर लगाने का निर्णय लेने वाले निहंग सिखों की अगुवाई करने वाले बाबा रसूलपुर ने कहा कि वह अयोध्या में लंगर लगाकर भगवान राम के प्रति अपने पूर्वजों की भक्ति को आगे बढ़ाएँगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाबा ने कहा, “अब जब 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है तो मैं कैसे पीछे रह सकता हूँ।” उन्होंने कहा कि वह निहंगों के साथ जनवरी 2024 में 2 महीने तक अयोध्या में लंगर चलाएँगे।


🚩मीडिया से बातचीत की शुरुआत बाबा हरजीत सिंह ने ‘वाहे गुरु जी की खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह’ और ‘जय श्रीराम’ के साथ की। उन्होंने कहा, “मैं समाज को गुरु तेग बहादुर सिंह की कुर्बानी को याद दिलाना चाहता हूँ। उन्होंने आज के दिन सनातन को बचाने के लिए बलिदान दिया था। उन्होंने चाँदनी चौक पर सनातन को बचाने के लिए शहादत दी।”


🚩बाबा ने आगे कहा, “मैं पूरी दुनिया को बताना चाहता हूँ कि हम भी सनातन का हिस्सा हैं। यही हमारा धर्म है। हम ही वो हैं, जिन्होंने सनातन को बचाया। अयोध्या में श्री रामलला जी 22 जनवरी को पधार रहे हैं। हम सिख और हिंदू भाई इस खुशी को मिलकर मनाएँगे।”


🚩बाबा रसूलपुर ने कहा, “हमारे बुजुर्ग थे जत्थेदार बाबा फकीर सिंह जी खालसा निहंग सिंह रसूलपुर। मैं उनकी विरासत में आठवीं पीढ़ी से हूँ। हम इसकी खुशी में अयोध्या में लंगर लगाने जा रहे हैं। मैं सबको यही बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि हम सब साथ हैं।”


🚩बाबा हरजीत सिंह ने कहा, “मेरा किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है और मैं केवल सनातन परंपराओं का वाहक हूँ। निहंगों और सनातन धर्म के बीच सद्भाव बनाए रखने के दौरान मुझे आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि एक तरफ मैं अमृतधारी सिख हूँ लेकिन दूसरी तरफ मैं अपने गले में रुद्राक्ष की माला पहनता हूँ”।


🚩30 नवंबर 1858 को निहंगों ने किया था बाबरी पर कब्जा


🚩अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े इतिहास के पन्नों में 30 नवंबर 1858 का दिन बेहद खास है। इसी दिन बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में 25 सिख निहंगों ने बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने कई दिनों तक बाबरी पर कब्जा बनाए रखा था और राम नाम का पाठ किया था। उन्होंने बाबरी ढाँचे पर राम नाम भी लिख दिया।


🚩बाबरी पर गैर-मुस्लिमों के कब्जे का पहला प्रमाण यही है। इसको लेकर अवध के थानेदार शीतल दुबे ने बाबरी के अधिकारी की शिकायत पर 25 निहंग सिखों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अवध के थानेदार की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है।


🚩राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी के पेज नंबर 164 पर इस एफआईआर का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि दो दर्जन निहंग सिखों ने बाबा फकीर सिंह खालसा के नेतृत्व में 30 नवंबर 1858 को बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था और हवन यज्ञ करने के साथ ही दीवारों पर राम नाम लिखा था।


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Tuesday, December 19, 2023

जय भीम जय मीम का नारा लगाने वाले, संत रविदास जी को भी समझ लीजिए

20 December 2023

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🚩आज जय भीम, जय मीम का नारा लगाने वाले दलित भाइयों को आज के कुछ राजनेता कठपुतली के समान प्रयोग कर रहे हैं। यह मानसिक गुलामी का लक्षण है। दलित-मुस्लिम गठजोड़ के रूप में बहकाना भी इसी कड़ी का भाग हैं। आजकल सन्त रविदास जी के अनेक चित्र अंबेडकरवादी संस्थानो मे मिलते हैं। उनपर सन्त रविदास के साथ बोधिसत्व लिखा होता है। अनेक चित्रों मे उन्हे महात्मा बुद्ध के साथ दिखाया गया है। एक स्थान पर दीवार पर महात्मा बुद्ध, और अंबेडकर के मध्य मे सन्त रविदास का चित्र बना कर नीचे लिखा था। 

जिस किताब मे उंच नीच का भेद है,

 उसका नाम वेद है।

जिस किताब मे सब समान हैं,

उसका नाम संविधान है। 


🚩यह एक साजिश है सनातन धर्म के स्तम्भ सन्त रविदास और कबीरदास जैसे महात्माओं को सेक्युलरिज़्म का बुर्का पहनाने की। 


🚩दलित समाज में संत रविदास जी का नाम प्रमुख समाज सुधारकों के रूप में स्मरण किया जाता हैं। आप जाटव या चमार कुल से सम्बंधित माने जाते थे। चमार शब्द चंवर का अपभ्रंश है। 


🚩चर्ममारी राजवंश का उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय वांग्मय में मिलता है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ विजय सोनकर शास्त्राी ने इस विषय पर गहन शोध कर चर्ममारी राजवंश के इतिहास पर पुस्तक लिखा है। इसी तरह चमार शब्द से मिलते-जुलते शब्द चंवर वंश के क्षत्रियों के बारे में कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ में लिखा है। चंवर राजवंश का शासन पश्चिमी भारत पर रहा है। इसकी शाखाएं मेवाड़ के प्रतापी सम्राट महाराज बाप्पा रावल के वंश से मिलती हैं। संत रविदास जी महाराज लम्बे समय तक चित्तौड़ के दुर्ग में महाराणा सांगा के गुरू के रूप में रहे हैं। संत रविदास जी महाराज के महान, प्रभावी व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग इनके शिष्य बने। आज भी इस क्षेत्रा में बड़ी संख्या में रविदासी पाये जाते हैं। 


🚩उस काल का मुस्लिम सुल्तान सिकंदर लोधी अन्य किसी भी सामान्य मुस्लिम शासक की तरह भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की उधेड़बुन में लगा रहता था। इन सभी आक्रमणकारियों की दृष्टि ग़ाज़ी उपाधि पर रहती थी। सुल्तान सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी महाराज मुसलमान बनाने की जुगत में अपने मुल्लाओं को लगाया। जनश्रुति है कि वो मुल्ला संत रविदास जी महाराज से प्रभावित हो कर स्वयं उनके शिष्य बन गए और एक तो रामदास नाम रख कर हिन्दू हो गया। सिकंदर लोदी अपने षड्यंत्रा की यह दुर्गति होने पर चिढ़ गया और उसने संत रविदास जी को बंदी बना लिया और उनके अनुयायियों को हिन्दुओं में सदैव से निषिद्ध खाल उतारने, चमड़ा कमाने, जूते बनाने के काम में लगाया। इसी दुष्ट ने चंवर वंश के क्षत्रियों को अपमानित करने के लिये नाम बिगाड़ कर चमार सम्बोधित किया। चमार शब्द का पहला प्रयोग यहीं से शुरू हुआ। संत रविदास जी महाराज की ये पंक्तियाँ सिकंदर लोधी के अत्याचार का वर्णन करती हैं।


🚩वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान

फिर मैं क्यों छोड़ू, इसे पढ़ लू, झूठ क़ुरान

वेद धर्म छोड़ूँ नहीं कोसिस करो हजार

तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार

चंवर वंश के क्षत्रिय संत रविदास जी के बंदी बनाने का समाचार मिलने पर दिल्ली पर चढ़ दौड़े और दिल्लीं की नाकाबंदी कर ली। विवश हो कर सुल्तान सिकंदर लोदी को संत रविदास जी को छोड़ना पड़ा । इस झपट का ज़िक्र इतिहास की पुस्तकों में नहीं है मगर संत रविदास जी के ग्रन्थ रविदास रामायण की यह पंक्तियाँ सत्य उद्घाटित करती हैं।

बादशाह ने वचन उचारा । मत प्यारा इसलाम हमारा ।।

खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।।

जब तक राम नाम रट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।

जब इसलाम धर्म स्वीरकारे । मुख से कलमा आप उचारै ।।

पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।


🚩जैसे उस काल में इस्लामिक शासक हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते थे, वैसे ही आज भी कर रहे हैं। उस काल में दलितों के प्रेरणास्रोत्र संत रविदास सरीखे महान चिंतक थे। जिन्हें अपने प्रान न्योछावर करना स्वीकार था मगर वेदों को त्याग कर क़ुरान पढ़ना स्वीकार नहीं था। 

मगर इसे ठीक विपरीत आज के दलित राजनेता अपने तुच्छ लाभ के  लिए अपने पूर्वजों की संस्कृति और तपस्या की अनदेखी कर रहे हैं।  

 दलित समाज के कुछ राजनेता जिनका काम ही समाज के छोटे-छोटे खंड बाँट कर अपनी दुकान चलाना है अपने हित के लिए हिन्दू समाज के टुकड़े-टुकड़े करने का प्रयास कर रहे हैं। 


🚩आईये डॉ अम्बेडकर की सुने जिन्होंने अनेक प्रलोभन के बाद भी इस्लाम और ईसाइयत को स्वीकार करना स्वीकार नहीं किया। 

(हर हिन्दू राष्ट्रवादी इस लेख को शेयर अवश्य करे जिससे हिन्दू समाज को तोड़ने वालों का षड़यंत्र विफल हो जाये) - डॉ विवेक आर्य


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Monday, December 18, 2023

हिंदुस्तानी होकर 1 जनवरी वाला नववर्ष मानकर कही आप तो ये गलती नही कर रहे हो ?

19 December 2023

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🚩देश में स्वराज्य की मांग जोर पकड़ रही थी। अंग्रेज भयभीत थे, इसलिए उन्होंने नया साल 1930 संयुक्त प्रांत की हर सामाजिक एवं धार्मिक संस्था से मनाने का आदेश जारी किया और साथ ही यह भी धमकी दी कि जो संस्था यह नया साल नहीं मनाएगी उसके सदस्यों को जेल भेज दिया जाएगा।


🚩आपको बता दें कि सृष्टि का जिस दिन निर्माण हुआ था, उस दिन ही चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा थी और सनातन हिंदू धर्म में इसी दिन को नूतन वर्ष मनाया जाता है, लेकिन 700 साल तुर्क-मुग़लों और 200 साल अंग्रेजों के गुलाम रहे, जिसके कारण हम अपना नूतन वर्ष भूल गए और अंग्रेजों के नूतन वर्ष मनाने लगे। अंग्रेज गये 76 साल से ऊपर हो गए,लेकिन उनकी शिक्षा की पढ़ाई करने के कारण मानसिक गुलामी अभी नहीं गई, जिसके कारण अपना नूतन वर्ष हमें याद भी नहीं आता है।


🚩जो भारतीय नूतन वर्ष भूल गए हैं और अंग्रेजों वाला नया वर्ष मना रहे हैं, उनके लिए कवि ने अपनी व्यथा प्रकट करते हुए एक कविता लिखी है, आप भी पढ़ लीजिये…



🚩ना सुंदर फूल खिलते हैं, ना वातावरण में महकते हैं।

प्रकृति भी निस्तेज सी लगती, ना ही पक्षी चहकते हैं।।

01 जनवरी नववर्ष से हमें क्या मतलब, क्यों मनायें हम हर्ष ?

हम हैं सनातन संस्कृति परंपरा से, हम क्यों मनाएं ईसाई नववर्ष ?


🚩सबसे पहले ईसाई नववर्ष जूलियस सीजर ने मनवाया।

अंग्रेज़ों ने भारत में आकर इस परंपरा को और चमकाया।।


🚩सनातन संस्कृति से ईसाई नववर्ष का, कोई सरोकार नहीं है।

क्यों हो पाश्चात्य संस्कृति के पीछे अंधे, ये हमारे संस्कार नहीं हैं।।


🚩क्यों हो व्यसनों की तरफ आकर्षित , क्यों पीएं शराब, बियर ?

क्यों करें अपना नैतिक पतन, क्यों बोलें हैप्पी न्यू ईयर ?


🚩ईसाई देशों में खूब बम पटाखे फोड़ेंगे, मीडिया वाले कुछ नहीं कहेंगे।

होली दीवाली में प्रदूषण देखने वाले, देखना इस पर मौन ही रहेंगे।।


🚩वास्तव में ये नववर्ष नहीं है, ये है सनातन संस्कृति पर प्रहार।

समय की मांग है- एकत्र हो, करो ईसाई नववर्ष का बहिष्कार।।


🚩चैत्र मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को, चलो हम नववर्ष मनाएं।

रंगोली बनाएं, दीप जलाएं, घर घर भगवा पताका फहराएं।। – कवि सुरेन्द्र भाई


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Sunday, December 17, 2023

ईसाई संगठन का लाइसेंस रद्द, 10,000 करोड़ घोटाले में आया था नाम

18 December 2023

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🚩भारत जो कि एक धर्म परायण देश रहा है उसी देश में धर्म को, यहाँ की संस्कृति को नष्ट करने के लिए भारत देश में विदेश से अत्यधिक मात्रा में फंडिग आ रही है, जिसकी वजह से देश विरोधी और हिन्दू धर्म विरोधी गतिविधियां लगातार चल रही हैं।


🚩केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने देश के बड़े ईसाई संगठन ‘चर्च ऑफ़ नॉर्थ इंडिया’ (CNI) एनजीओ का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया है। अब यह संगठन विदेशी चंदा नहीं ले सकेगा। यह ईसाई संगठन पिछले 50 सालों से भारत में ईसाइयत को फैलाने का काम कर रहा है।


🚩इस ईसाई संगठन को अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा समेत यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों से भी बड़ी मात्रा में चंदा मिलता है। अब इस ‘चर्च ऑफ नार्थ इंडिया’ का विदेशी चंदा लेने का लाइसेंस केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रद्द कर दिया है, यह खबर अंग्रेजी समाचार वेबसाइट ‘इकॉनोमिक टाइम्स‘ ने दी है। गृह मंत्रालय विदेशी चंदे के नियमों का उल्लंघन करने पर ये कार्रवाई करता है।


🚩‘चर्च ऑफ़ नॉर्थ इंडिया’ को वर्ष 1970 में 6 अलग-अलग संगठनों को मिलाकर बनाया गया था। इसके अंतर्गत चर्च ऑफ़ इंडिया, पाकिस्तान, बर्मा (म्यांमार), सीलोन (श्रीलंका) के तथा कुछ अन्य ईसाई संगठनों को मिलाकर बनाया गया था। यह उत्तर भारत में चर्च का नियन्त्रण करने वाली संस्था है।


🚩इस संस्था का दावा है कि 22 लाख लोग इसके सदस्य हैं। इसके अलावा यह भारत के 28 क्षेत्रों में अपने बिशप रखता है जो कि वहाँ के चर्च पर नियंत्रण रखते हैं। इसके अलावा ‘चर्च ऑफ़ नॉर्थ इंडिया’ का दावा है कि इसके पास 2200 से अधिक पादरी हैं और 4500 से अधिक चर्च इसके नियन्त्रण में हैं।


🚩‘चर्च ऑफ़ नॉर्थ इंडिया’ के अंतर्गत 564 स्कूल और कॉलेज तथा 60 नर्सिंग एवं मेडिकल कॉलेज चलते हैं। ऐसा इसकी वेबसाइट बताती है। देश में प्रसिद्ध लखनऊ का लॉ मार्टिनियर कॉलेज भी इसी के अंतर्गत है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में स्थित कई मिशनरी स्कूल भी इसके अंतर्गत आते हैं।


🚩CNI के कुछ पादरियों पर वर्ष 2019 में ₹10,000 करोड़ के जमीन घोटाले का आरोप लगा था। इस मामले में संगठन के कुछ पादरियों ने अपने ही साथियों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने कागजों में गड़बड़ी करके सैकड़ों एकड़ जमीन बेच दी। बीते कुछ समय में ऐसे कई NGO के लाइसेंस रद्द किए गए हैं जो कि विदेशों से फंड लेकर यहाँ धर्मान्तरण कर रहे थे। यह NGO विदेशों से लिए गए पैसों का स्पष्ट हिसाब भी नहीं रख रहे थे। इनमें ऑक्सफैम, सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च और राजीव गाँधी फाउंडेशन जैसे कुछ NGO शामिल रहे हैं।


🚩राज्यसभा में दिसम्बर 2022 में दी गई एक जानकारी के अनुसार, वर्ष 2018 से लेकर वर्ष 2022 के बीच में गृह मंत्रालय ने 6677 NGO के विदेशी चंदा लेने के लाइसेंस खत्म किए हैं। यह सभी विदेशी चंदा लेकर गड़बड़ी करने के दोषी पाए गए थे। 


🚩भारत में ईसाई मिशनरियां विदेशी फडिंग से भारत में धर्मान्तरण का धंधा जोरो शोरो से चला रही हैं, इसके कारण हिंदूओं की जनसंख्या घटती जा रही और मीडिया हिन्दू विरोधी एजेंडा चला रही है, ये अत्यंत चिंताजनक स्थिति है, इस पर रोक लगाने के लिए विदेश की फंडिग बंद करना जरूरी है ।


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Saturday, December 16, 2023

संता क्‍लॉज कौन हैं ? 25 दिसंबर तुलसी पूजन से क्या फायदा होगा ?

17  December 2023

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🚩कुछ भारतीय अपने बच्चों को विवेकानंदजी, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, चन्द्र शेखर आज़ाद के वस्त्र नही पहनाते लेकिन क्रिसमस पर ‘सांता क्लॉज’ के वस्त्र पहनाकर उसे जोकर बना देते है। ऐसा करके हम अपनी सनातन संस्कृति का अपमान कर रहे हैं साथ-साथ अपने बच्चे को मानसिक गुलाम भी बना रहे हैं।


🚩सबसे हम आपको बता देते कि ये संता क्लॉज कौन था,आइये आज आपको इन खास तथ्यों से आपको अवगत कराते हैं:-

संता क्‍लॉज का क्रिसमस से रिश्ता


🚩जिंगल बेल के गाने को ईसाई धर्म में क्रिसमस से जोड़ दिया गया है, लेकिन यह सच नहीं है। दरअसल यह क्रिसमस सॉन्ग है ही नहीं। यह थैंक्सगिविंग सॉग्न है जिसे 1850 में जेम्स पियरपॉन्ट ने वन हॉर्स ओपन स्लेई शीर्षक से लिखा था। वे जार्जिया के सवाना में म्यूजिक डायरेक्टर थे। पियरपॉन्ट की मौत से 3 साल पहे यानी 1890 तक यह क्रिसमस का हिट गीत बन गया था।


🚩संता क्‍लॉज का क्रिसमस से कोई संबंध नहीं


🚩सैंटा क्लॉज चौथी शताब्दी में मायरा के निकट एक शहर (जो अब तुर्की के नाम से जाना जाता है) में जन्मे बिशप संत निकोलस का ही रूप है। बिशप निकोलस के पिता एक बहुत बड़े व्यापारी थे।


 🚩संत निकोलस की याद में कुछ जगहों पर हर साल 6 दिसंबर को ‘संत निकोलस दिवस’ भी मनाया जाता है। हालांकि एक धारणा यह भी है कि संत निकोलस की लोकप्रियता से नाराज लोगों ने 6 दिसम्बर के दिन ही उनकी हत्या करवा दी। इन बातों के बाद भी बच्चे 25 दिसंबर को ही सैंटा का इंतजार करते हैं। ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप संत निकोलस के नाम पर सांता क्‍लॉज का चलन करीब चौथी सदी में शुरू हुआ था।


🚩आपको बता दे कि कुछ लोग समझते है कि क्रिसमिस पर ईसा मसीह के जन्मदिन था पर उस दिन उनका जन्मदिन नही हुआ है। वास्तव में 25 दिसंबर को पहले यूरोप में सूर्यपूजा होती थी,इसलिए सूर्य पूजा खत्म करने एवं ईसायत को बढ़ाने के लिए रोमन सम्राट ने ई.स 336 में 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया और पोप जुलियस 25 दिसम्बर को यीशु का जन्मदिन मनाने लगे। जबकि इस दिन ईसा मसीह के जन्म से कोई लेना देना अब न यीशु का क्रिसमस से कोई लेना देना है और न ही संता क्‍लॉज से । फिर भी भारत में पढ़े लिखे लोग बिना कारण का क्रिसमस मनाते हैं ये सब भारतीय संस्कृति को खत्म करके ईसाईकरण करने के लिए भारत में क्रिसमस डे मनाया जाता है। इसलिये आप सावधान रहें ।


🚩क्रिसमस पर लोग जमकर शराब पीते है, नशीले प्रदार्थ का सेवन करते है, पार्टियां करते है इन दिनों में विदेशी कम्पनियों को अरबो रूपये का मुनाफा होता है। आप भी अपनी संपत्ति, स्वास्थ्य और संस्कृति को बचाना चाहते है तो ऐसे क्रिसमस जैसे त्यौहार का बहिष्कार कर सकते है।


🚩आप अपने बच्चों को धर्मप्रेमी व देशभक्तों के वस्त्र पहनाएं और उसदिन प्लाटिक के पेड़ नही लगाए, क्योंकि वह बीमारियां फैलता है,इसलिए उस दिन 24 घण्टे ऑक्सीजन देनेवाली तुलसी माता का पुजन करें।


🚩आपको बता दे कि वर्ष 2014 से देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य एवं शांति से जन मानस का जीवन मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से हिदू संत आसाराम बापू ने 25 दिसम्बर “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में शुरू करवाया।


🚩तुलसी माता के पूजन से मनोबल, चारित्र्यबल व् आरोग्य बल बढ़ता है, मानसिक अवसाद व आत्महत्या आदि से रक्षा होती है ।


🚩आप भी 25 दिसम्बर को प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब जलाने की बजाय 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली माता तुलसी का पूजन करें ।


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Friday, December 15, 2023

लव जिहाद की एक घटना सुनकर आप की भी रूह कांप उठेगी

16 December 2023

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🚩लव जिहाद द्वारा हिन्दू युवतियों को छल करके प्रेम जाल में फँसाने की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं। बाद में वही लड़कियां बहुत पश्चाताप करती हैं,क्योंकि वहाँ उनकी जिंदगी नारकीय हो जाती है।धर्मपरिवर्तन करने का दबाव बनाया जाता है, लव जिहादियों की अनेक पत्नियां होती हैं। गौमाँस खिलाया जाता है, दर्जनों बच्चे पैदा करते हैं, पिटाई करते हैं, तलाक भी दिया जाता है। यहाँ तक कि लव जिहाद में फंसाकर उनको आतंकवादियों के पास भेजने की भी अनेक घटनाएं सामने आई हैं।


🚩यह घटना आपका दिल दहला देगी


🚩मंडार निवासी गुलाब कंवर की शादी 25 वर्ष पूर्व आबूरोड में एक सम्पन्न परिवार में हुई थी। उसके पास करोड़ों की सम्पत्ति थी। विवाह के बाद उनकी दो पुत्रियां हुई। बड़ी बेटी 21 एवं छोटी 9 वर्ष की है। 7 वर्ष पूर्व पति की मौत के बाद वह बड़ी बेटी को पढ़ाने के लिए जयपुर ले गई थी। यह परिवार उदयपुर घूमने आया था, जहां पर शाकिर नाम के एक लड़के के इनकी साथ जान-पहचान हो गई। उसने सम्पत्ति हड़पने के लिए गुलाब कंवर से निकाह कर लिया और बाद में उसे नशे का आदी बना दिया। 


🚩इस बीच उसने बड़ी पुत्री का उदयपुर में ही किसी मुस्लिम युवक से निकाह करवा दिया। कुछ समय के बाद जब गुलाब कंवर बीमार हुई तो शाकिर ने उसकी सारी सम्पत्ति हड़पते हुए उसे पुत्री सहित घर से निकाल दिया। नशे की आदी हो चुकी गुलाब कंवर अस्पताल परिसर में भीख मांगकर खाने लगी। बाद में पता चलने पर सीडब्ल्यूसी ने बच्ची को मीरा निराश्रित गृह में रखवाते हुए उसका स्कूल में दाखिला करवाया तथा मां को अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन वह सड़कों पर घूमकर भीख मांगते हुए अपना गुजर-बसर करने लगी।


🚩कभी महंगी गाडिय़ां में घूमते हुए,रईस जिंदगी जीने वाली इस महिला ने सडक़ पर भीख मांगते हुए दम तोड़ दिया। स्त्रोत : पत्रिका


🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है,कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेक्युलरिज्म के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुल्तान देशभक्त आदि पढ़ा-पढ़ा कर इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया।

अब भी कुछ बचा था, तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई , जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार व्यक्त करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ, कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया और न जाने कितने ही परिवार लव जिहाद जैसे षड़यंत्रों में फंसकर अपना और अपनो का जीवन बर्बाद कर लेते हैं।


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