Thursday, October 26, 2017

वैज्ञानिक ऋषि-मुनि : जानिए कल्पना को हकीकत बनाने वाले उनके आविष्कार !


अक्टूबर 26, 2017  www.azaadbharat.org
🚩भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।
🚩कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा। 


🚩भास्कराचार्य – आधुनिक युग में धरती की #गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। #भास्कराचार्यजी ने अपने #‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के #गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
🚩आचार्य कणाद – #कणाद #परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी #जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ। 
🚩ऋषि विश्वामित्र – ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही #ब्रह्म #गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित #त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
🚩#ऋषि भारद्वाज – आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने #वायुयान का #आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है। 
🚩गर्गमुनि – गर्ग मुनि #नक्षत्रों के #खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।
ये #गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।  कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे। 
🚩महर्षि सुश्रुत – ये #शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे# शल्यकर्म या #आपरेशन में दक्ष थे। #महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘#सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
🚩आचार्य चरक – ‘#चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक #आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘#त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने #शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी। 
🚩पतंजलि – आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही #ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला #योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है। 
🚩बौद्धयन – भारतीय #त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति #बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
🚩महर्षि दधीचि – #महातपोबलि और #शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि
एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
🚩ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। #महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और #वृत्रासुर #मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए। 
🚩महर्षि अगस्त्य – वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर #तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए #समुद्र का #सारा #जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ। 
🚩कपिल मुनि – भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि '#सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर के द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया। 
🚩शौनक ऋषि-  #वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का #कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी। 
🚩ऋषि वशिष्ठ – वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली #कामधेनु गाय #वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
🚩कण्व ऋषि – प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है। 
(स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति)
🚩दुनिया में जितनी भी खोजे हैं वो हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान की गहराई में जाकर खोजी हैं जिनकी आज के वैज्ञानिक कल्पना भी नही कर सकते हैं ।
🚩आज #ऋषि-मुनियों की परम्परा अनुसार #साधु-संत चल रहे हैं उनको #राष्ट्र विरोधी #तत्वों द्वारा #षडयंत्र के तहत #बदनाम किया जा रहा है और जेल भिजवाया जा रहा है अतः देशवासी #षडयंत्र को #समझे और उसका #विरोध करें ।
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Wednesday, October 25, 2017

छठ पर्व क्यों मनाते हैं जानिए इतिहास, कैसे करते हैं छठ पूजा?

अक्टूबर 25, 2017    www.azaadbharat.org

हमारे देश की असंख्य विशेषताएं हैं । उनमें से एक है, ‘पर्व’ । यहां प्रतिदिन, प्रतिमास कोई-न-कोई पर्व अवश्य ही मनाया जाता है । इसके लिए विशेषतः ‘कार्तिकमास’ सबसे अधिक प्रसिद्ध है । हमारी परंपराओं की जडें बहुत गहरी हैं, क्योंकि उन सभी का मूल स्त्रोत पुराणों में एवं प्राचीन धर्मग्रंथो में, हमारे ऋषि-मुनियों के उपदेश में मिलता है । यथा- ‘सूर्यषष्ठी’ अर्थात् छठ महोत्सव । इस व्रत में सर्वतोभावेन भगवान् सूर्यदेव की पूजा की जाती है । जिन्हें आरोग्यका रक्षक माना जाता है । ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत’ यह वचन प्रसिद्ध है । इसे आज का विज्ञान भी मान्यता देता है । इससे हमें यह ज्ञात होता है कि, हमारे ऋषि-मुनि कितने उच्चकोटि के वैज्ञानिक थे ।

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आइए, इस पावन पर्व पर भगवान् सूर्यदेव के साथ-साथ हमारे पूर्वज एवं उन ऋषि -मुनियों के श्रीचरणों में कृतज्ञता पूर्वक शरणागत भाव से कोटि-कोटि नमन करते हुए प्रार्थना करें कि, उन्होंने अपने जीवन में अनगिणत प्रयोग करके, जो सत्य एवं सर्वोत्तम ज्ञान हमें दिया है, उनके बताए मार्ग पर चलकर हमें अपने जीवन को सार्थक करने एवं अन्यों को भी इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का बल वे हमें प्रदान करें । छठपर्व बिहार एवं झारखंड में सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय धार्मिक अनुष्ठान के रूप में जाना जाता है । इस अनुष्ठान को वर्ष में दो बार-चैत्र तथा कार्तिक मास में संपन्न किया जाता है । दोनों ही मासों में शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पण करते हैं और सप्तमी तिथि को प्रातःकाल उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पण किया जाता है । छठपर्व का सबसे अधिक महत्त्व छठ पूजा की पवित्रता में है ।

छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है।

पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है। छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपरावर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुँच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।

इस व्रत में व्रती को चार दिन एवं रात्रि स्वयं को कायिक, वाचिक तथा मानसिक रूप से पवित्र रखना होता है, तभी इसका फल मिलता है उदा. वाक्संयम रखना पडता है । वाक्संयम में सत्य, प्रिय, मधुर, हित, मित एवं मांगल्यवाणी अंतर्भूत होती है । यह चार दिन एवं रात्रि व्रती को केवल साधनारत रहना पड़ता है । वैसे तो यह पर्व विशेष रूप से स्त्रिायों द्वारा ही मनाया जाता है, किंतु पुरुष भी इस पर्व को बडे उत्साह से मनाते हैं । चतुर्थी तिथि को व्रती स्नान करके सात्त्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसे बिहार की स्थानीय भाषा में ‘नहायखाय’के नामसे जाना जाता है । पंचमी तिथि को पूरे दिन व्रत रखकर संध्या को प्रसाद ग्रहण किया जाता है । इसे ‘खरना’ अथवा ‘लोहंडा’ कहते हैं ।

षष्ठी तिथि के दिन संध्याकाल में नदी अथवा जलाशय के तट पर व्रती महिलाएं एवं पुरुष सूर्यास्त के समय अनेक प्रकार के पकवान एवं उस ऋतु में उपलब्ध को बांस के सूप में सजाकर सूर्य को दोनों हाथों से अर्घ्य अर्पित करते हैं । सप्तमी तिथि को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत प्रसाद ग्रहण किया जाता है । इसी दिन इस व्रत की समाप्ति भी होती है और व्रती भोजन करते हैं । किसी भी व्रत, पर्व, त्यौहार तथा उत्सव मनाने के पीछे कोई-न-कोई कारण अवश्य ही रहता है । छठपर्व मनाने के पीछे भी अनेकानेक पौराणिक तथा लोककथाएं हैं साथ में एक लंबा इतिहास भी है । भारत में सूर्योपासना की परंपरा वैदिककाल से ही रही है ।

वैदिक साहित्य में सूर्य को सर्वाधिक प्रत्यक्ष देव माना गया है । संध्योपासनारूप नित्य अवश्यकरणीय कर्म में मुख्यरूप से भगवान् सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है । महाभारत में भी सूर्योपासना का सविस्तार वर्णन मिलता है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृतिदेवी का छठा अंश होने के कारण इस देवीका नाम ‘षष्ठी’देवी भी है । स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक स्वामी का (स्कंद) पालन-पोषन छह कृत्तिकाओं ने मिलकर किया था, इस कारण यह छह कृत्तिकाएं अपने शिशु की रक्षा करें इस भाव से उन सभी का एकत्रित पूजन किया जाता है ।

एक कारण के अनुसार सुकन्या-च्यवन ऋषि की कथा कही जाती है । एक कथानुसार राजा प्रियव्रत की कथा कही जाती है, एक अन्य कथा अनुसार मगधसम्राट जरासंध के किसी पूर्वज राजा को कुष्ठरोग हो गया था । उन्हें कुष्ठरोग से मुक्त करने के लिए शाकलद्वीपी ब्राह्मण मगध में बुलाए गए तथा सूर्योपासना के माध्यम से उनके कुष्ठरोग को दूर करने में वे सफल हुए । सूर्य की उपासना से कुष्ठ-जैसे कठिनतम रोग दूर होते देख मगध के नागरिक अत्यंत प्रभावित हुए और तब से वे भी श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने लगे ।

यह कहा जाता है कि, ‘मग’ लोग सूर्यउपासक थे । सूर्य की रश्मियों से चिकित्सा करने में वे बहुत ही निष्णात (प्रवीण) थे । उनके द्वारा राजा को कुष्ठरोग से मुक्ति देने से राजा ने उन्हें अपने राज्य में बसने को कहा । ‘मग’ ब्राह्मणोंसे आवृत्त होनेके कारण यह क्षेत्र ‘मगध’ कहलाया । तभी से पूरी निष्ठा, श्रद्धा, भक्ति तथा नियमपूर्वक चार दिवसीय सूर्योपासना के रूप में छठपर्व की परंपरा प्रचलित हुई एवं उत्तरोत्तर समृद्ध ही होती गई ।

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Tuesday, October 24, 2017

पाकिस्तान भारतीय लड़कियों को प्यार में फंसाने की ट्रेनिंग देकर भेज रहा जासूस


अक्टूबर 24, 2017

🚩भारत में हर भारतीय #लड़की और आसपास के लोगों को आने वाले नये व्यक्ति से सावधान रहना होगा अन्यथा आप भी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी में फंस सकते हैं और देश की जानकारी पाकिस्तान के हाथ लग सकती है ।

🚩पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी #आईएसआईएस ( ISIS ) भारत में जासूसी के लिए अपने #एजेंट्स को हनी ट्रैप की #ट्रेनिंग देकर भेज रही है। उसका मकसद यहां की लड़की से शादी कराके अपने एजेंट को भारत की #सिटिजनशिप दिलाना है, ताकि उस पर शक न हो ।
Pakistan gives training to Indian girls to trap people in their fake love.

🚩ताजा मामला जालंधर से पकड़े गए पाकिस्तानी एहसान उल हक का सामने आया है। उसने फेसबुक पर दोस्ती करके भारतीय लड़की से शादी कर ली। हालांकि, उसने खुद को जासूस नहीं माना है, उससे पूछताछ हो रही है। इससे पहले भी जालंधर और फिरोजपुर में ऐसे ही 2 केस सामने आ चुके हैं । इसमें राजौल्लाह और आलम को पकड़ा गया था।

🚩ये मामले आए सामने…

🚩केस-1 : एहसान उल हक – फेसबुक लवर बलविंदर से 2012 में की थी शादी

🚩जालंधर में पाकिस्तानी सिटिजन एहसान उल हक को पकड़ा गया है। उसने फेसबुक पर बलविंदर कौर से दोस्ती कर उसे प्यार में फंसाया फिर 19 जुलाई 2012 को शादी कर ली। शादी गांव कोटकलां में पंजाबी रीति रिवाज से की थी। वो दुल्हा बनकर बाकायदा पगड़ी बांधकर आया था। उस पर शक तब हुआ, जब उसने खुद को भारतीय बताकर आधार और पैन कार्ड बनवाया, फिर अलीपुर कॉलोनी में कोठी बनवा ली। हक से खुफिया एजेंसियां पूछताछ कर रही हैं। अभी तक उसने नहीं माना है कि वह जासूस है, लेकिन सबूत उसके खिलाफ हैं ।

🚩केस – 2 : राजौल्लाह – लड़की की इन्फॉर्मेशन पर पकड़ा गया था

🚩2 अगस्त 2010 को #फिरोजपुर पुलिस ने 24 साल के राजौल्लाह को पकड़ा था। वह आईएसआईएस एजेंट था और नेपाल से इंडिया में आया था। उसने हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में कैटरिंग का काम शुरू किया था। लोग उसे राकेश कुमार बुलाते थे। उसने वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस तक बनवा रखे थे। वह बड़े आराम से आर्मी एरिया में बुलेट पर घूमता था। उसके चक्कर में तीन लडकियां फंसी थी । तीसरी को पता चल गया था कि राकेश का दो और लड़कियों से अफेयर है। उसकी गर्लफ्रेंड ने ही पुलिस को इन्फॉर्मेशन दी थी। पकड़ा गया तो खुलासा हुआ कि वह पाकिस्तानी है और आईएसआईएस के लिए जासूसी करता था। उसने माना कि उन्हें सिखाया गया था कि इंडिया में जाकर सबसे पहले लड़की से ही दोस्ती करनी है !

🚩केस – 3 : मोहम्मद आलम – दोस्त की बहन से शादी की थी

🚩जालंधर के वर्कशॉप चौक के पास 21 अगस्त 2010 को पाकिस्तानी #मोहम्मद आलम को पकड़ा था। वह यहां गोलगप्पे बेचने की आड़ में जासूसी कर रहा था। उसे 14 साल कैद करवाने वाले पूर्व सीआयए इंचार्ज सतीश मल्होत्रा (अब रिटायर एसपी) कहते हैं कि आलम ने माना था कि उन्हें ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि कैसे भारतीय लड़की को प्यार में फंसाकर शादी करनी है । ऐसा करके वे पासपोर्ट जैसे अहम दस्तावेज बनवा सकते हैं। आलम 2006 में नेपाल से भारत आया था। जालंधर में उसने सब्जी बेचनेवाले जितेंद्र सिंह से दोस्ती की। नाम #ठाकुर अमरदास बताया। फिर जितेंद्र की शादीशुदा बहन प्रिया सिंह से शादी कर ली। आलम दो साल तक गांव रंधावा मसंदा में किराए पर रहा।

 🚩स्त्रोत : दैनिक भास्कर

🚩भारत को तोड़ने के लिए पाकिस्तान नई-नई चाल चल रहा है उसमें मासूम लड़कियां और भोले भारतवासी उनके मंसूबे पूरा करने में शिकार बन रहे हैं। 

🚩एक तरफ लव जिहाद से हिन्दू लड़कियों को प्यार में फंसाकर उनको धोखा दिया जाता है बाद में उनकी जिंदगी नरक से भी बद्दर की जाती है, दूसरी ओर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी लड़कों को प्रेरित करती है वही लड़के #फेसबुक पर अपनी हिन्दू की #प्रोफाइल बनाकर लड़कियों को प्यार में फंसाते हैं । अतः सभी लड़कियां अनजान व्यक्ति से बात-चीत करने में सावधान रहें। 

🚩लड़कियों के माता-पिता का भी कर्तव्य है कि उनको अपने धर्म की शिक्षा दे जिससे वे अपने मार्ग से भटक न जायें, धर्म की शिक्षा के अभाव में ही लड़कियां लड़कों के प्यार में फंस जाती है, धर्म की शिक्षा देने पर धर्म के अनुसार चलकर अपनी उन्नति करें एवं देश का, समाज का नाम रोशन करें ।

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Saturday, October 21, 2017

प्रणब मुखर्जी का खुलासा: कांची शंकराचार्य को जेल भेजने के पीछे किसका था हाथ?


अक्टूबर 21, 2017

देश में किस तरह से #कांग्रेस #हिन्दू #विरोधी है और किस तरह से हिन्दुओं की आस्थाओं पर ही हमला बोलती है यह कांची शंकराचार्य जी के प्रकरण से साफ जाहिर हो जाता है ।
Pranab Mukherjee's disclosure: Who was the man behind sending Kanchi Shankaracharya to jail?
🚩कैसे #कांग्रेस अपने मजहबी #वोट बैंक बढ़ाने के लिए #साधु संतों पर #झूठे #आरोप लगवाकर उनको बेईज्जत करवाते हैं ???
ये सब बातें सामने आई है प्रणब मुखर्जी की नई किताब से...

🚩विदित है कि भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक किताब लिखी हैं जिसमें इस प्रकरण का उल्लेख है ।


🚩प्रणब  मुखर्जी ने अपनी किताब 'द कोएलिशन इयर्स 1996-2012' में इस घटना का जिक्र किया है। आज देश फिर से ये सवाल पूछ रहा है और कांग्रेस से पूछना जायज भी है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब ने देश के आगे एक बड़े सवाल को फिर से खड़ा कर दिया है। 

🚩सवाल ये है कि कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी और उन पर लगाए गए बेहूदे आरोपों के पीछे कौन था? 

🚩नवंबर 2004 में कांग्रेस के सत्ता में आने के कुछ महीनों के अंदर ही दिवाली के मौके पर #शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को हत्या के एक केस में #गिरफ्तार करवाया गया था। जिस वक्त गिरफ्तारी की गई थी, तब वो 2500 साल से चली आ रही त्रिकाल पूजा की तैयारी कर रहे थे। गिरफ्तारी के बाद उन पर अश्लील सीडी देखने और छेड़खानी जैसे घिनौने आरोप भी लगाए गए थे।

🚩प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि "मैं इस गिरफ्तारी से बहुत नाराज था और कैबिनेट की बैठक में मैंने इस मसले को उठाया भी था। 
मैंने सवाल पूछा कि क्या देश में #धर्मनिरपेक्षता का पैमाना सिर्फ #हिंदू संत-महात्माओं तक ही #सीमित है?

 🚩क्या किसी राज्य की #पुलिस किसी #मुस्लिम मौलवी को ईद के मौके पर #गिरफ्तार करने की हिम्मत दिखा #सकती है?" 

🚩गौरतलब है कि जिस तरह से लोगों के सामने ये प्रकरण रखा गया था और लोगों में धारणा है कि कांची पीठ के शंकराचार्य को झूठे मामले में फंसाकर गिरफ्तार करवाने की पूरी #साजिश उस वक्त रही मुख्यमंत्री #जयललिता ने अपनी #सहेली #शशिकला के इशारे पर #रची थी। उस वक्त इस सारी घटना के पीछे किसी जमीन सौदे को लेकर हुआ विवाद बताया गया था।

🚩लेकिन प्रणब मुखर्जी ने इस मामले को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। 
प्रणब मुखर्जी ने किताब में लिखा है कि उन्होंने केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में गिरफ्तारी को लेकर कड़ा विरोध जताया। 
🚩अब स्पष्ट है कि वरिष्ठ मंत्री के तौर पर जिस तरह से उन्होंने विरोध दर्ज कराया, उन्हें इस बात की जानकारी रही होगी कि #गिरफ्तारी के #पीछे #केंद्र सरकार की सहमति ली गई है। 

🚩ये वो दौर था जब सोनिया और जयललिता के बीच काफी करीबियां थी । आपको ये भी बता दें कि दक्षिण भारत में ईसाई धर्म को बेरोक-टोक फैलाने के लिए कांची के शंकराचार्य काफी रोष में थे और इसके खिलाफ थे। जिसके बाद इनको जानबूझकर फंसाया गया। 

🚩जिस समय मीनाक्षीपुरम में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की घटनाओं से पूरा हिंदू समाज व्यथित था, तब कांची मठ ने सचल मंदिर बनाकर उन्हें दलित बस्तियों में भेजा और कहा कि अगर वो मंदिर तक नहीं आ सकते तो मंदिर उन तक पहुंचेगा। सामाजिक बराबरी के लिए कांची मठ ने बहुत कोशिश की, यही कारण था कि वो ईसाई मिशनरियों को खटक रहे थे।

🚩कांग्रेस शासन काल में जब जयेंद्र सरस्वती को झूठे केस में फंसाया गया तब उनकी रिहाई के लिए हिन्दू संत बापू आसारामजी ने जंतर-मंतर पर धरना दिया था बाद में वहाँ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री आदि अनेक नेता आ गए थे और बापू आशारामजी की लाखों भक्तों की भीड़ हो गई थी । बाद में इतना दबाव बना कि उनकी रिहाई करनी पड़ी।

🚩उस समय (2004 नवम्बर) में बापू आशारामजी ने बोला था कि अब हमारे आश्रम और हमारे खिलाफ षडयंत्र चलेगा, हमको फंसाने की कोशिश करेंगे और बाद में हुआ भी ऐसा ही, उनके खिलाफ मीडिया में खूब कुप्रचार हुआ और बाद में बिना सबूत जेल भी जाना पड़ा ।

🚩#कांग्रेस काल में साध्वी प्रज्ञा , स्वामी असीमानंद, शंकराचार्य, डीजी वंजारा, कर्नल पुरोहित आदि अनेक #हिंदुत्वनिष्ठों को #जेल भिजवाया गया, सोनिया वेटिकन सिटी के इशारे पर काम कर रही थी जो भी साधु-संत या हिन्दू कार्यकर्ता ईसाई धर्मान्तरण के आड़े आता था उनको जेल भिजवाया जाता था ।

🚩आपको बता दें कि आज भले सरकार बदल गई हो लेकिन हिन्दू आस्थाओं के ऊपर चोट कम नही हुई है आज भी कई हिन्दू #साधु-संतों पर #षड्यंत्र चल रहा है उनके खिलाफ खूब #मीडिया #ट्रायल चल रहे हैं, जेल भेजा जा रहा है और कांग्रेस काल में जो शिकार हुए हैं, वो भी आजतक #बिना #सबूत सालों से जेल में है ।

🚩अभी देश में अधिकतर ईसाई मिशनरियां खूब पुरजोर लगा धर्मान्तरण करवा रही हैं । विदेशी फंड से चलने वाली कई #मीडिया पादरियों और मौलवियों के कुकर्मो को छुपाकर हिन्दू #साधु-संतों को #बदनाम करने में लगी है क्योंकि उनका उद्देश्य है कैसे भी करके हिन्दू धर्म को #खत्म करना, उसके लिए वो मीडिया को पैसे देकर हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करवा रहे हैं, जिससे जनता की श्रद्धा कम हो जाये और आसानी से धर्मान्तरण हो सके ।

🚩अभी भी हिन्दू नही जगा तो कब जगेगा..??

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