Friday, June 21, 2019

संजीव पुनाळेकर की रिहाई के लिए आजाद मैदान में हुआ विराट आंदोलन

21 जून 2019
🚩प्रखर राष्ट्रवादी, हिंदुनिष्ठ अधिवक्ता श्री संजीव पुनालेकर ने डॉ. दाभोलकर की हत्या की जांच की तथा असली दिशा न्यायालय के सामने रखकर जांच यंत्रणाओं की पोल खोल दी इसलिए बदले की भावना रखकर अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और सूचना अधिकार कार्यकर्ता श्री. विक्रम भावे इन को गिरफ्तार किया गया । हिंदुत्वनिष्ठो की आवाज को इस प्रकार दबाना हिंदू समाज कदापि सहन नहीं करेगा ।
🚩इस अन्यायकारक बंदीवास सेे अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और श्री. विक्रम भावे की तत्काल मुक्तता हो, इस मांग को लेकर समस्त हिंदुत्वनिष्ठों और राष्ट्रप्रेमियों की ओर से मुंबई आज़ाद मैदान में घंटानाद आंदोलन किया गया । इस आंदोलन में एकत्रित विविध हिंदुत्वनिष्ठ संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ता और पदाधिकारियों ने पुनालेकर को मुक्त करो ऐसी एक साथ मांग कर संजीव पुनालेकर को अन्यायपूर्वक बंधक बनाए जाने का विरोध कर असंतोष व्यक्त किया ।

🚩इस आंदोलन में बड़ी मात्रा में महिला एवं युवक सहभागी हुए थे । सभी ने अपने चेहरों पर अधिवक्ता पुनालेकर का मुखौटा लगाकर उनको दृढ़ता पूर्वक समर्थन देने का संदेश सबको दिया आंदोलकों ने ने संविधान का सम्मान करो, पुनालेकरजी जी को मुक्त करो, हिंदूओ पर अन्याय नहीं सहेंगे इस प्रकार के फलक हाथों में लेकर सीबीआई द्वारा किए गए इस अन्याय पूर्वक व्यवहार का तीव्र निषेध किया ।
🚩डॉ. दाभोलकर की हत्या में उपयोग लाया गया पिस्तौल नष्ट करने हेतु अधिवक्ता पुनालेकरजी ने आरोपी को मार्गदर्शन किया, ऐसा आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार किया गया है । प्रत्यक्ष देखा जाए तो इन हत्याओं में अब तक अलग-अलग आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है और अन्वेषण यंत्रणा द्वारा दी प्रत्येक बार की जानकारी एक दूसरे से मिलती-जुलती नहीं है । साथ ही जिस पिस्तौल सेे डॉ दाभोलकर की हत्या हुई है, जिसका दावा जांच यंत्रणा कर रही है उस शस्त्र का भी अब तक पता नहीं चला है, इस प्रकार के तथ्य हीन सूत्रों के आधार पर आरोपी के वकील और उनके सहकारी को बंधक बनाना यह एक प्रकार से उनकी आवाज को दबाना ही है ऐसा मत सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता भारद्वाज चौधरी ने कहा ।
🚩हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता डॉ. उदय धुरी ने कहा, आधुनिकतावादी लोगों की हत्या के आरोप में हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं को फँसाने का प्रयास कर हिंदुओं को आतंकवादी ठहराने की साज़िश पहले काँग्रेस शासन कर चुकी है । इन हत्याओं की जांच की दिशा जानबूझकर हिंदुत्वनिष्ठ संगठन की ओर मोड़ने का प्रयास करने का पाप काँग्रेस शासन ने किया । काँग्रेस द्वारा हिंदुओं के सिर पर मढ़ा यह पाप आज की हिंदुत्वनिष्ठ सरकार मिटा दे । अधिवक्ता संजीव पुनालेेकर और श्री. विक्रम भावे को सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किया जाना यह भटकी हुई जांच की दिशा का ही एक भाग है।
🚩अंत में अपने विचार व्यक्त करते हुए लष्कर-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री. ईश्‍वरप्रसाद खंडेलवाल ने कहा, वकील पुनालेकर ने जाँच में पुलिस को सहयोग ही किया है । हिंदुत्वनिष्ठ व्यक्ति और संगठन पर लगाया हत्या का कलंक मिट जाए, इसलिए उन्होने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या प्रकरण की न्यायालयीन प्रक्रिया जल्दी से हो, इस हेतु न्यायालय को विनती की है; मात्र जांच यंत्रणांओं के पास ठोस सबूत न होने के कारण यह जांच अटकी पड़ी है । जांच यंत्रंणाओं का यह अपयश अब जनता के सामने आया है । न्यायालया ने भी जांचयंत्रणा के अधिकारियों को कड़ी भाषा में फटकारा है । पुनालेकर जी ने एकप्रकार से जांच यंत्रणाओं का झूठ जनता के सामने लाया है । इसलिए जांच यंत्रणांओं की इस अवमानकारक पोलखोल के कारण ही पुनालेकर को झूठे आरोप लगाकर फंसाने का यह प्रकार है । न्यायालय में अधिवक्ता संजीव पुनालेकर का निर्दोषत्व सिद्ध होगा ही, यह हम जानते है। मात्र जांचयंत्रणा द्वारा हो रहा यह अन्याय जनतंत्र का गला घोटने वाला है ।
🚩इस आंदोलन के बाद धर्मप्रेमीयो ने मंत्रालय में जाकर संजीव पुनालेकर जी पर हो रही अन्यायपूर्वक कार्यवाही के विषय में जानकारी देनेवाला और उनकी तुरंत रिहाई की मांग करनेवाला निवेदन सरकार को दिया गया ।
🚩मंदिरों के घोटाले, भगवा आतंकवाद की पोल खोलने वाले प्रखर हिंदुनिष्ठ वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव पुनालेकरजी को CBI द्वारा गिरफ्तार करने पर जनता, वकील एसोशिएशन, शिवसेना एवं हिंदू सगठनों ने विरोध जताया।
🚩आज़ाद मैदान में बड़ा आंदोलन भी किया गया, सबकी एक ही मांग थी पुनालेकरजी निर्दोष है, उनको फँसाया जा रहा है, शीघ्र रिहा किया जाए।
🚩अकोला बार एसोसिएशन का विरोध
अकोला (महाराष्ट्र) बार एसोसिएशन की ओर से 17 जून को हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय सचिव अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को अन्यायपूर्ण पद्धति से बंदी बनाए जाने के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया गया । इस समय उपस्थित 170 से भी अधिक अधिवक्ताआें ने इस प्रस्तावपर हस्ताक्षर कर समर्थन व्यक्त किया ।
🚩वड़गांव मावळ बार एसोसिएशन का विरोध
वड़गांव मावळ (जनपद पुणे) की ओर से 18 जून को अधिवक्ता पुनाळेकर को बंदी बनाए जाने की कार्यवाही की निंदा की । इस प्रस्ताव के माध्यम से अधिवक्ताआें को सुरक्षा देने की भी मांग की गई है । लगभग 50 अधिवक्ताआें ने इस प्रस्ताव के समर्थन में हस्ताक्षर किए ।
🚩विधानसभा में उठेगी आवाज
अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को बंदी बनाए जाने के प्रकरण में मैं विधानसभा में आवाज उठा कर इस संदर्भ में विधानसभा में चर्चा कराऊंगा और इस संदर्भ में मुझे जो भी संभव है, वह मैं करूंगा ! कोल्हापुर के शिवसेना विधायक श्री. राजेश क्षीरसागर ने ऐसा आश्वासन दिया।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात
🚩आपको बता दें कि अधिवक्ता संजीव पुनालेकर जी एक प्रखर राष्ट्रवादी एवं हिंदुनिष्ठ है उन्होंने न्यायालय में भगवा आतंकवाद को बेनकाब किया, लव जिहाद के लिए लड़े, धर्मान्तरण के खिलाफ एवाज उठाई, मदिरों में हो रहे अरबों रुपये के घोटाले सामने लाये इसके कारण उनको फँसाया जा रहा है ऐसा लग रहा है, अतः जनता को ऐसे हिंदुनिष्ठ लोगो का साथ देना होगा, नहीं तो एक के बाद एक निर्दोष फंसते जायेंगे और हमारी संस्कृति बचाने कोई आगे नहीं आयेगा और विधर्मी फायदा उठाकर देश को गुलामी की तरफ लेकर जायेंगे।
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Thursday, June 20, 2019

भारत ने जिसे ठुकराया उसे विदेशों में अपनाकर अरबों रुपए कमा रहे हैं


20 जून 2019
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🚩 हमारा यह भारत देश, यहाँ की संस्कृति, यहाँ का प्राचीन रहन-सहन वास्तव में कितना अद्भुत और वैज्ञानिक तथा फायदेमंद है इसका अंदाजा हम स्वयं भी नहीं लगा सकते, तभी तो पाश्चात्य अर्थात पिछड़ी हुई संस्कृति का अंधानुकरण कर खुद को बुद्धिमान गिनाते हैं ।

🚩 अंग्रेजी में एक कहावत है "Old Is Gold" अर्थात पुराना सबसे बेहतर या यूँ कहें पुरानी चीजें, पुराने तौर-तरीके, रहन-सहन सबसे बेहतर होता है । और ये महज कहने की बात नहीं है, ये आज के भौतिक युग की यही विशेषता है कि वह धीरे-धीरे अपने पुराने तौर-तरीकों की ओर ही बढ़ रहा है, विदेशों में बड़े ही जोर-शोर से भारत की प्राचीनतम पद्धतियों को अपनाया जा रहा है ।
🚩आज जब पर्यावरण प्रदूषण एक अहम मुद्दा बनकर हम सबके सामने आता है तो ऐसे में पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना, उसकी रक्षा करना भी हम सबका कर्तव्य बन जाता है, लेकिन आधुनिक युग में व्यक्ति का जीवन, रहन-सहन कुछ इस तरह हो गया है कि वह पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य कारक बनकर सामने आ जाता है । अब बात आवागमन की हो, मनोरंजन की अथवा भोजन की हर तरीके से मानव किसी न किसी रूप में पर्यावरण को क्षति पहुँचाता ही है ।
🚩पुराने समय में भोजन के लिए पत्तों से बनी प्लेट का प्रयोग किया जाता था, जिसे प्रयोग में लाने के बाद फेंकने पर वह सड़ जाती थी तथा उससे एक प्रकार की खाद का निर्माण भी हो जाता था जो भूमि के लिए भी उपयोगी था, लेकिन भोजन के लिए आज कल लोग थर्माकोल अथवा प्लास्टिक की प्लेटों का प्रयोग करते हैं जोकि आसानी से नष्ट नहीं होता है, उसे नष्ट होने में हजारों वर्ष का समय लग जाता है, साथ ही भोजन करने वाले के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है । पत्ते से बने प्लेट्स को नष्ट होने जहाँ महज 28 दिनों का समय लगता है, वहीं थर्माकोल की प्लेट्स को नष्ट में होने में अधिक समय लगने के कारण यह भूमि की उर्वरा शक्ति को भी नुकसान पहुँचाती है और यदि इसे जलाकर नष्ट किया गया तो कई विषैले गैस निकलते हैं तथा वायु में मिलकर उसे जहरीला बनाते हैं ।
🚩अब सवाल यह आता है कि क्या इससे बचने का कोई ठोस उपाय है ? जवाब है "हाँ" । इससे बचने का एक ही उपाय है वही पुरानी पत्तों से बनी प्लेट । अब इन पत्तों से बनी प्लेट्स का प्रयोग भारी मात्रा में विदेशों में किया जा रहा है । जी हां वही प्लेट्स जिसे भारत ने तो ठुकरा दिया, लेकिन जर्मनी ने अपनाया ।
🚩जर्मनी में पत्तों से बनी प्लेट्स का निर्माण जोर-शोर से किया जा रहा है । वहाँ प्लेट्स बनाने वाली कई कम्पनियां भी स्थापित हो चुकी हैं और अब उन पत्तलों को अर्थात पत्तों की प्लेट्स को इम्पोर्ट भी किया जाएगा । जर्मनी में इन पत्तलों की कीमत 8 यूरो अर्थात 600 रुपए है । मतलब प्रकृति का प्रयोग कर पैसे कमाने का एक बेहतरीन तरीका ।
🚩लेकिन ये बात भारतवासी तब तक नहीं समझेंगे जबतक कि उसपर विदेशी ठप्पा न लग जाए । कितनी अजीब बात है न कि भारत की पद्धति है, भारत के लोग अपनाते नहीं, विदेशों में इन चीजों पर अमल किया जाता है उसपर विदेशी ठप्पा लगता है, तब मूर्ख भारतीय उसे खरीद कर अपने आप को आधुनिक मानते हैं ।
🚩एक और महत्वपूर्ण तथ्य आपके सामने रखते हैं । दक्षिण भारत में केले के पत्ते और भोजन खाने का रिवाज है, केले के पत्ते में भोजन करना अत्यंत फायदेमंद है । जब केले के पत्ते पर गर्म-गर्म भोजन डाला जाता है तो कई पोषक तत्व भी उस भोजन में मिल जाते हैं, यह केमिकल रहित होता है, ग्रीन टी में जो गुण पाए जाते हैं वो इस पत्ते में भी पाए जाते हैं ।
🚩 हमारे चीजों का, पद्धतियों उपयोग चाहे वो योग हो या गाय से मिलने वाला अमृत और अब चाहे यह पत्ते से बनी प्लेट्स इन सबको हम भूलते जा रहे हैं और विदेशी अपनाते जा रहे हैं । अपनी रीति-रिवाज तथा प्राचीन रहन-सहन का महत्व समझें वरना आजीवन नकल ही करते रह जाएंगे और विदेशी लोग फायदा उठाकर अरबो-खरबों रुपए ले जायेंगे।
🚩अपनी संस्कृति सबसे प्राचीन और महान है उसको विदेशी लोग अपनाकर फायदा उठा रहे हैं और हम उनकी पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर पतन के रास्ते जा रहे हैं, अतः सावधान रहें हमारी संस्कृति का आदर करें, अपनाएं और जीवन को महान बनाएं ।
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Wednesday, June 19, 2019

जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू नहीं होगा तो ऐसे भयंकर परिणाम आएंगे


19 जून 2019
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🚩बंगाल के मालदा, 24 परगना, बीरभूम आदि जिलों में हिन्दुओं का बड़े पैमाने पर पलायन आरम्भ हो गया है । अभी तक यह सुनते थे कि बंग्लादेश से हिन्दू भाग कर भारत  में आ रहे हैं । अब बंगाल के अनेक जिलों में यही  पलायन आरम्भ हो चुका है । कश्मीरी पंडितों का पलायन सभी ने सुना हैं । केरल, असम, कैराना की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है । क्या कारण है कि जैसे ही मुस्लिम आबादी बढ़ जाती है, वैसे ही हिन्दुओं को पलायन करने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ता है ।

🚩इसका उत्तर इस लेख में पढ़िए-
2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’ के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है । जो तथ्य निकल कर आए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं ।
🚩उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते । जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है । इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है ।
जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं । जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं ।
🚩जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं । उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक मान्यताएं प्रभावित होती हैं । इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओं के बाजार में मुसलमानों की तगड़ी पैठ बन गई है । उन्होंने कई देशों के सुपरमार्कीट के मालिकों पर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया । दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं ।
🚩इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं । इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए । दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले ।
🚩जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आर्थिक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवादको समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है।
🚩जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है । मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरन मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है । जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।
🚩किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है । अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।
🚩अब आगे कुछ कहने की कोई आवश्यकता ही नहीं है ।
उत्तर आपको स्वयं मिल गया ।
🚩इसलिए देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को आपातकालीन रूप से अनिवार्य बनाकर तुरंत लागु किया जाना चाहिए। -डॉ विवेक आर्य
🚩एक तरफ मुस्लिम समुदाय का जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, दर्जनों बच्चे पैदा कर रहे हैं । दूसरी तरफ बांग्लादेशी, रोहिंग्या घुसपैठ कर रहे हैं, तीसरी तरफ लव जिहाद चल रहा है, चौथी तरफ ईसाई मिशनरियां हिंदुओं का धर्मांतरण करवा रही हैं । इसलिए हिंदुओं को सावधान रहने की आवश्यकता है जबतक जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू न हो तबतक हर हिंदू को कम से कम 4 बच्चे पैदा करना चाहिए, इससे अधिक कर सके तो अच्छे है । नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि कश्मीरी पंडितों की तरह आपको भी पलायन करना  पड़े ।
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Tuesday, June 18, 2019

देश में बलात्कार अचानक क्यों बढ़ गए..?

18 जून 2019
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🚩मनु स्मृति कहती है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:"
🚩अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा, अर्थात सत्कार होता है, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है ।
🚩हमारे देश में नारी को नारायणी भी कहा है, हमारे ऋषि-मुनि व शास्त्र ने तो ये भी आज्ञा दी है कि छोटी को बेटी समान, समकक्ष को बहन समान और बड़ी को माता समान मानो, लेकिन आजकल उल्टा ही हो रहा है, स्त्री अपने को सुरक्षित नहीं समझ रही है इसका मुख्य कारण नीचे दी हुई बातों से आप समझ सकते हैं ।
🚩रेप क्यों होता है..?

एक 8 साल का लड़का सिनेमाघर में राजा हरिशचन्द्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना और वो बड़ा होकर महान व्यक्तित्व से जाना गया... उनका नाम है महात्मा गांधी ।
🚩परन्तु आज 8 साल से भी छोटा बच्चा टीवी पर क्या देखता है..? सिर्फ नंगापन और अश्लील वीडियो और फोटो ,मैग्जीन में अर्धनग्न फोटो, पड़ोस मे रहने वाली महिलाओं के छोटे कपड़े !!
🚩लोग कहते हैं कि रेप का कारण बच्चों की मानसिकता है । पर वो मानसिकता आई कहाँ से..? उसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम खुद हैं । क्योंकि हम joint family में नहीं रहते । हम अकेले रहना पसंद करते हैं । और अपना परिवार चलाने के लिये माता पिता को बच्चों को अकेला छोड़कर काम पर जाना है । और बच्चे अपना अकेलापन दूर करने के लिये टीवी और इन्टरनेट का सहारा लेते हैं । और उनको देखने के लिए क्या मिलता है सिर्फ वही अश्लील वीडियो और फोटो तो वो क्या सीखेंगे यही सब कुछ ना..? अगर वही बच्चा अकेला न रहकर अपने दादा दादी के साथ रहे तो कुछ अच्छे संस्कार सीखेगा । कुछ हद तक ये भी जिम्मेदार है।
🚩पूरा देश रेप पर उबल रहा है, छोटी-छोटी बच्चियो से जो दरिंदगी हो रही उस पर सबके मन मे गुस्सा है, कोई सरकार को कोस रहा, कोई समाज को तो कई feminist सारे लड़कों को बलात्कारी घोषित कर चुकी है !
🚩लेकिन आप सुबह से रात तक कई बार सनी लियोन के गंदे विज्ञापन देखते है ..!! फिर दूसरे विज्ञापन में रणवीर सिंह शैम्पू के ऐड में लड़की पटाने के तरीके बताता है ..!! ऐसे ही Close up, लिम्का, Thumsup में भी दिखाता है पर उस समय हमें गुस्सा नहीं आता है, है ना ?
🚩आप अपने छोटे बच्चों के साथ music चैनल पर सुनते हैं, दारू बदनाम कर दी , कुंडी मत खड़काओ राजा, मुन्नी बदनाम, चिकनी चमेली, झण्डू बाम , तेरे साथ करूँगा गन्दी बात, और न जाने ऐसी कितनी  मूवीज गाने देखते सुनते हैं, तब हमें गुस्सा नहीं आता???
🚩मां-बाप बच्चों के साथ Star Plus, जी TV, सोनी TV देखती है जिसमें एक्टर और एक्ट्रेस सुहाग रात मनाते हैं । आँखों में आँखे डालते हैं और तो और भाभीजी घर पर है, जीजाजी छत पर है, टप्पू के पापा और बबिता जिसमें एक व्यक्ति दूसरे की पत्नी के पीछे घूमता लार टपकाता नज़र आएगा.. पूरे परिवार के साथ देखते हैं । इन सब सीरियल देखकर हमे गुस्सा नहीं आता??
🚩फिल्म्स आती है जिसमे चुम्बन, आलिंगन, रोमांस से लेकर गंदी कॉमेडी आदि सब कुछ दिखाया जाता है। पर आप बड़े मजे लेकर देखते हैं । इन सबको देखकर गुस्सा क्यों नहीं आता है?
🚩खुलेआम टीवी फिल्म वाले आपके बच्चों को बलात्कारी बनाते हैं, उनके कोमल मन में जहर घोलते है । तब हमें गुस्सा नही आता क्योकि हमे लगता है कि रेप रोकना सरकार की जिम्मेदारी है । पुलिस, प्रशासन, न्यायव्यवस्था की जिम्मेदारी है...
लेकिन क्या समाज, मीडिया की कोई जिम्मेदारी नही? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कुछ भी परोस देंगे क्या..?
🚩हम तो अखबार पढ़कर, News देखकर बस गुस्सा निकालेंगे, कोसेंगे सिस्टम को, सरकार को, पुलिस को, प्रशासन को , DP बदल लेंगे, सोशल मीडिया पे खूब हल्ला मचाएंगे,  बहुत ज्यादा हुआ तो कैंडल मार्च या धरना कर लेंगे लेकिन टीवी चैनल्स, बॉलीवुड, मीडिया को कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि वो हमारे मनोरंजन के लिए है ।
🚩सच पूछिये तो टीवी चैनल अश्लीलता परोस रहे हैं, पाखंड परोस रहे हैं , झूंठे गंदे विषज्ञापन परोस रहे है ,कुछ ज्योतिषी पाखंड से भरी कहानियां एवं मंत्र, ताबीज आदि परोस रहे हैं । जिसमे बाबा बंगाली, तांत्रिक बाबा, स्त्री वशीकरण के जाल में खुद फंसते हो।
🚩आज जब हर विज्ञापन, हर फिल्म में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाएगा तो बलात्कार के ऐसे मामलों को बढ़ावा मिलना निश्चित है क्योंकि "हादसा एकदम नहीं होता,
वक़्त करता है परवरिश बरसों....!"
ऐसी निंदनीय घटनाओं के पीछे निश्चित तौर पर भी बाजारवाद ही ज़िम्मेदार है।
🚩आज सोशल मीडिया इंटरनेट और फिल्मों में पोर्न परोसा जा रहा है । तो बच्चों के अंदर अंदर विकार आयेंगे ओर बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते है।
🚩ध्यान रहे समाज और मीडिया को बदले बिना ये आपके कठोर सख्त कानून कितने ही बना लीजिए । ये घटनाएं नही रुकने वाली है ।
🚩बॉलीवुड, टीवी, इंटरनेट आदि में ऐसे ही चलता रहा तो फिर निर्भया, गीता, दिव्या, संस्कृति, ट्विंकल की तरह बर्बाद होने वाली है ।
🚩अगर हमें अपनी बेटियों को बचाना है तो सरकार, कानून, पुलिस के भरोसे से बाहर निकलकर समाज, मीडिया और सोशल मीडिया की गंदगी साफ करने की आवश्यकता है..! साफ तभी होगा जब हम इनका बहिष्कार करेंगे। और इन सब पर बैन करने के लिए सरकार पर दबाव लाना पड़ेगा कि ऐसी फिल्मों तथा सीरियलों पर बैन लगाएं ।
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Monday, June 17, 2019

गुरू हरगोबिन्द ने धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए भक्ति और शूरवीरता का पाठ पढ़ाया

17 जून 2019
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🚩गुरू हरगोबिन्द सिखों के छठें गुरू थे । साहिब की सिक्ख इतिहास में गुरु अर्जुन देव जी के सुपुत्र गुरु हरगोबिन्द साहिब की दल-भंजन योद्धा कहकर प्रशंसा की गई है । गुरु हरगोबिन्द साहिब की शिक्षा-दीक्षा महान विद्वान् भाई गुरदास की देख-रेख में हुई । गुरु जी को बराबर बाबा बुड्डाजी का भी आशीर्वाद प्राप्त रहा । छठे गुरु ने सिक्ख धर्म, संस्कृति एवं इसकी आचार-संहिता में अनेक ऐसे परिवर्तनों को अपनी आंखों से देखा जिनके कारण सिक्खी का महान बूटा अपनी जड़ें मजबूत कर रहा था । विरासत के इस महान पौधे को गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपनी दिव्य-दृष्टि से सुरक्षा प्रदान की तथा उसे फलने-फूलने का अवसर भी दिया । अपने पिता श्री गुरु अर्जुन देव की शहीदी के आदर्श को उन्होंने न केवल अपने जीवन का उद्देश्य माना, बल्कि उनके द्वारा जो महान कार्य प्रारम्भ किए गए थे, उन्हें सफलता पूर्वक सम्पूर्ण करने के लिए आजीवन अपनी प्रतिबद्धता भी दिखलाई ।

🚩बदलते हुए हालातों के मुताबिक गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा भी ग्रहण की । वह महान योद्धा भी थे । विभिन्न प्रकार के शस्त्र चलाने का उन्हें अद्भुत अभ्यास था । गुरु हरगोबिन्दसाहिब का चिन्तन भी क्रान्तिकारी था । वह चाहते थे कि सिख कौम शान्ति, भक्ति एवं धर्म के साथ-साथ अत्याचार एवं जुल्म का मुकाबला करने के लिए भी सशक्त बने । वह अध्यात्म चिन्तन को दर्शन की नई भंगिमाओं से जोड़ना चाहते थे । गुरु- गद्दी संभालते ही उन्होंने मीरी एवं पीरी की दो तलवारें ग्रहण की। मीरी और पीरी की दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डाजीने पहनाई । यहीं से सिख इतिहास एक नया मोड़ लेता है । गुरु हरगोबिन्दसाहिब मीरी-पीरी के संकल्प के साथ सिख-दर्शन की चेतना को नए अध्यात्म दर्शन के साथ जोड़ देते हैं । इस प्रक्रिया में राजनीति और धर्म एक दूसरे के पूरक बने । गुरु जी की प्रेरणा से श्री अकाल तख्त साहिब का भी भव्य अस्तित्व निर्मित हुआ। देश के विभिन्न भागों की संगत ने गुरु जी को भेंट स्वरूप शस्त्र एवं घोड़े देने प्रारम्भ किए। अकाल तख्त पर कवि और ढाडियों ने गुरु-यश व वीर योद्धाओं की गाथाएं गानी प्रारम्भ की । लोगों में मुगल सल्तनत के प्रति विद्रोह जागृत होने लगा । गुरु हरगोबिन्दसाहिब नानक राज स्थापित करने में सफलता की ओर बढ़ने लगे।
🚩धोखे से जहांगीर ने गुरु हरगोबिन्दसाहिब को ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया । इस किले में और भी कई राजा, जो मुगल सल्तनत के विरोधी थे, पहले से ही कारावास भोग रहे थे । गुरु हरगोबिन्दसाहिब लगभग तीन वर्ष ग्वालियर के किले में बन्दी रहे । महान सूफी फकीर मीयांमीर गुरु घर के श्रद्धालु थे । जहांगीर की पत्‍‌नी नूरजहांमीयांमीर की सेविका थी । इन लोगों ने भी जहांगीर को गुरु जी की महानता और प्रतिभा से परिचित करवाया । बाबा बुड्डा व भाई गुरदास ने भी गुरु साहिब को बन्दी बनाने का विरोध किया।
🚩जहांगीर ने गुरु जी को कैद से बाहर तो किया, लेकिन गुरुजी बोले उन 52 राजाओं को भी मुक्त करिये फिर जहांगीर ने उन 52 राजपूत राजाओं को भी मुक्त कर दिया । इसीलिए सिख इतिहास में गुरु जी को बन्दी छोड़ दाता कहा जाता है। ग्वालियर में इस घटना का साक्षी गुरुद्वारा बन्दी छोड़ है।
🚩संवत् 1684 में जहाँगीर की मृत्यु हुई । उसका बड़ा पुत्र शाहजहाँ दिल्ली के तख्त पर बैठा । शाहजहाँ की सेना के साथ गुरु हरगोविंदसिंहजी के चार युद्ध हुए । प्रत्येक युद्ध में यवनों की सेना कई गुना ज्यादा होते हुए भी विजय गुरु हरगोविंदसिंहजी की ही हुई ।
🚩गुरुजी युद्ध के दौरान सदैव शान्त, अभय एवं अडोल रहते थे । उनके पास बड़ी सैन्य शक्ति नहीं थी फिर भी मुगल सिपाही प्राय: भयभीत रहते थे । गुरु जी ने मुगल सेना को कई बार कड़ी पराजय दी ।
🚩सन्‌ 1688 में नदौन का युद्ध हुआ जो जम्मू के नवाब अलफ खाँ के साथ हुआ था । सन्‌ 1689 में पहाड़ी नवाब हुसैन खाँ ने गुरुजी से युद्ध छेड़ दिया, जिसमें गुरुजी की जीत हुई । सन्‌ 1699 को वैशाखी वाले दिन गुरुजी ने केशगढ़ साहिब में पंच पियारों द्वारा तैयार किया हुआ अमृत सबको पिलाकर खालसा पंथ की नींव रखी ।
🚩खालसा का मतलब है वह सिक्ख जो गुरु से जुड़ा है। वह किसी का गुलाम नहीं है, वह पूर्ण स्वतंत्र है। सन्‌ 1700 से 1703 तक आपने पहाड़ी राजाओं से आनंदपुर साहिब में चार बड़े युद्ध किए व हर युद्ध में विजय प्राप्त की । पहाड़ी राजाओं की प्रार्थना पर गुरुजी को पकड़ने के लिए औरंगजेब ने सहायता भेजी ।
🚩मई सन्‌ 1704 की आनंदपुर की आखिरी लड़ाई में मुगल फौज ने आनंदपुर साहिब को 6 महीने तक घेरे रखा। अंत में गुरुजी सिक्खों के बहुत मिन्नतें करने पर अपने कुछ सिक्खों के साथ आनंदपुर साहिब छोड़कर चले गए।
🚩सिरसा नदी के किनारे एक भयंकर युद्ध हुआ, इसमें दो छोटे साहिबजादे माता रूजरी बिछुड़ गए । 22 दिसंबर सन्‌ 1704 में 'चमकौर का युद्ध' नामक ऐतिहासिक युद्ध हुआ, जिसमें 40 सिक्खों ने 10 लाख फौज का सामना किया । इस युद्ध में बड़े साहिबजादे अजीतसिंह और जुझारसिंहजी शहीद हुए ।
🚩अंतिम युद्ध संवत् 1704 के बाद उन्होंने अपना निवास-स्थान कीर्तिपुर में बना लिया एवं दूर-दूर जाकर सिक्ख धर्म का प्रचार किया । कश्मीर, पीलीभीत, बार और मालवा देशों में जाकर लाखों लोगों को आपने मुक्ति-पथ की ओर अग्रसर किया । आप अनेकों मुसलमानों को सिक्खी-मण्डल में ले आये एवं देश-देशांतरों में उदासी प्रचारकों को भेजकर श्रीगुरु नानकदेवजी का झंडा फहराया ।
🚩गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने अपने व्यक्तित्व और कृत्तित्व से एक ऐसी अदम्य लहर पैदा की, जिसने आगे चलकर सिख संगत में भक्ति और शक्ति की नई चेतना पैदा की। गुरु जी ने अपनी सूझ-बूझ से गुरु घर के श्रद्धालुओं को सुगठित भी किया और सिख-समाज को नई दिशा भी प्रदान की। अकाल तख्त साहिब सिख समाज के लिए ऐसी सर्वोच्च संस्था के रूप में उभरा, जिसने भविष्य में सिख शक्ति को केन्द्रित किया तथा उसे अलग सामाजिक और ऐतिहासिक पहचान प्रदान की। इसका श्रेय गुरु हरगोबिन्दसाहिब को ही जाता है।
🚩गुरु हरगोबिन्दसाहिब जी बहुत परोपकारी योद्धा थे। उनका जीवन दर्शन जन-साधारण के कल्याण से जुड़ा हुआ था । यही कारण है कि उनके समय में गुरमतिदर्शन राष्ट्र के कोने-कोने तक पहुंचा । श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के महान संदेश ने गुरु-परम्परा के उन कार्यो को भी प्रकाशमान बनाया जिसके कारण भविष्य में मानवता का महा कल्याण होने जा रहा था।
🚩गुरु जी के इन अथक प्रयत्‍‌नों के कारण सिख परम्परा नया रूप भी ले रही थी तथा अपनी विरासत की गरिमा को पुन:नए सन्दर्भो में परिभाषित भी कर रही थी। गुरु हरगोबिन्दसाहिब की चिन्तन की दिशा को नए व्यावहारिक अर्थ दे रहे थे। वास्तव में यह उनकी आभा और शक्ति का प्रभाव था। गुरु जी के व्यक्तित्व और कृत्तित्वका गहरा प्रभाव पूरे परिवेश पर भी पड़ने लगा था। गुरु हरगोबिन्दसाहिब जी ने अपनी सारी शक्ति हरमन्दिरसाहिब व अकाल तख्त साहिब के आदर्श स्थापित करने में लगाई। गुरु हरगोबिन्दसाहिब प्राय: पंजाब से बाहर भी सिख धर्म के प्रचार हेतु अपने शिष्यों को भेजा करते थे।
🚩गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने सिक्ख जीवन दर्शन को सम-सामयिक समस्याओं से केवल जोड़ा ही नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवन दृष्टि का निर्माण भी किया जो गौरव पूर्ण समाधानों की संभावना को भी उजागर करता था । सिख लहर को प्रभावशाली बनाने में गुरु जी का अद्वितीय योगदान रहा ।
🚩गुरु जी कीरतपुर साहिब में ज्योति-जोत समाए।
गुरुद्वारा पातालपुरीगुरु जी की याद में आज भी हजारों व्यक्तियों को शान्ति का संदेश देता है। भाई गुरुदास ने गुरु हरगोबिन्दसाहिब की गौरव गाथा का इन शब्दों में उल्लेख किया है: पंज पिआलेपंजपीर छटम्पीर बैठा गुर भारी, अर्जुन काया पलट के मूरत हरगोबिन्दसवारी,
चली पीढीसोढियांरूप दिखावनवारो-वारी,
दल भंजन गुर सूरमा वडयोद्धा बहु-परउपकारी॥ 
🚩संवत् 1704 में चैत्र शुक्ल पक्ष 5 तदनुसार 3 मार्च 1644 को आपने अपने योग्य पोते श्री हरिरायजी को गुरुगद्दी सौंपकर परलोकगमन किया ।
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महापुरुष कबीरजी के नाम पर क्यों की जा रही है साजिश ?

16 जून 2019
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🚩संत कबीर दास एक अवतारी महापुरुष थे वे सनातन धर्म की परम्परा से ही थे, उनके गुरुजी संत रामानंदजी थे, उन्होंने संत रामानंदजी से दीक्षा ली थी और वे अपने गुरुजी की आज्ञा अनुसार ही चलते थे, पर कुछ स्वार्थी लोग अपनी-अपनी दुकान चलाने के लिए सनातनी धर्म की परम्परा के महापुरुष को भी अपनी मति गति से तोलकर एक सीमित दायरे में रखना चाहते हैं और उनके नाम का दुरुपयोग करके हिंदू धर्म को तोड़ना चाह रहे हैं ।

🚩महापुरूष किसी एक देश, एक युग, एक जाति या एक धर्म के नहीं होते । वे तो सम्पूर्ण मानवता की, समस्त विश्व की, समूचे राष्ट्र की विभूति होते हैं । उन्हें किसी भी सीमा में बाँधना ठीक नहीं । पर राष्ट्रविरोधी तत्वों के हथकंडे बने स्वार्थी लोग ऐसे महापुरुषों को बांटकर आपस मे हमे तोड़ना चाहते है उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है ।
🚩बामसेफियों द्वारा जितने भी ईश्वरवादी संत हैं उन्हें एक-एक कर नास्तिक, हिंदुद्रोही अथवा डा. अंबेडकर के विचारों से समानता रखने वाले और बुध्द के समीप या बौध्द साबित करने का कुचक्र भी जोर-शोर से चल रहा है । बामसेफियों की प्रचार सामग्रियों, पुस्तकों और भाषणों में डा.अंबेडकर और बुध्द के साथ इन संतों को भी जोड़ा जाना आम बात है । कबीर दास जी ऐसे ही एक संत हैं जिनकी छवि इन मूलनिवासीवादी चिंतकों द्वारा छल कपट का सहारा लेकर नास्तिक और हिंदू द्रोही बनाने का प्रयास वृहद् स्तर पर किया जा रहा है ।
🚩रामपाल के द्वारा भी यही कृत्य किया जा रहा है संत कबीरजी को भगवान श्री राम व कृष्ण से अलग बताया जा रहा है और कबीरजी को लेकर भगवान व देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों एवं संत-महापुरुषों के खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है ।
🚩लेकिन सत्य क्या है यह जानने का प्रयास संत कबीर दास की वाणी से ही किया जा सकता है।  उनकी चंद साखियां नीचे दी जा रही हैं जो साबित करती हैं कि वो डा. अंबेडकर के नूतन धर्म , दर्शन , मान्यताओं और नास्तिकता से कोसों दूर थे । साथ में कबीरपंथी विद्वानों की लिखित उस पुस्तक का हवाला भी है जिससे ये साखियां ली गयी हैं। पढ़ें और कबीरजी को जो भी सनातन धर्म से अलग बता रहे है उनको आइना दिखायें।
🚩1- कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाऊं ।
गले राम की जेवड़ी, जित खैवें तित जाऊं ।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि मैं तो राम का ही कुत्ता हूं और नाम मेरा मुतिया(मोती) है। गले में राम नाम की जंजीर पड़ी हुयी है। मैं उधर ही चला जाता हूं जिधर मेरा राम मुझे ले जाता है।
🚩2- मेरे संगी दोई जण, एक वैष्णों एक राम ।
वो है दाता मुकति का, वो सुमिरावै नाम।।
अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं कि मेरे तो दो ही संगी साथी हैं- एक वैष्णव और दूसरा राम। राम जहां मुक्तिदाता हैं वहीं वैष्णव नाम स्मरण कराता है। यहां भी डा. अंबेडकर और संत कबीर विपरीत ध्रुवों पर खड़े साबित होते हैं।
🚩3- सबै रसायन मैं किया, हरि सा और ना कोई।
तिल इक घट में संचरे,तौ सब तन कंचन होई।
अर्थ: कबीर कहते हैं मैंने सभी रसायनों का सेवन कर लिया मगर हरि रस जैसा कोई अन्य रसायन नहीं मिला। यदि यह एक तिल भी घट में, शरीर में पहुंच जाये तो संपूर्ण तन कंचन में बदल जाता है। वासनाओं का मैल जल जाता है और जीवन अत्यंत निर्मल हो जाता है।
🚩4-कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि ।
पाका कलस कुंभार का, बहूरि चढ़ी न चाकि ।।
अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि श्री हरि का प्रेम रस ऐसा छककर पिया है कि कोई अन्य रस पीना बाकी नहीं रहा। कुम्हार बनाया हुआ जो घड़ा पक गया वो दोबारा चाक पर नहीं चढ़ता है।
🚩5- क्यूं नृप-नारी नींदिये, क्यूं पनिहारिन कौ मान।
मांग संवारै पील कौ, या नित उठि सुमिरै राम।।
अर्थ : कबीर साहिब कहते हैं कि रानी को यह नीचा स्थान क्यूं दिया गया और पनिहारिन को इतना ऊंचा स्थान क्यूं दिया गया ? इसलिये कि रानी तो अपने राजा को रिझाने के लिये मांग संवारती है, श्रृंगार करती है लेकिन वह पनिहारिन नित्य उठकर अपने राम का सुमिरन करती है।
🚩6-दुखिया भूखा दुख कौं,सुखिया सुख कौं झूरि।
सदा अजंदी राम के, जिनि सुखदुख गेल्हे दूरि।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि दुखिया भी मर रहा है और सुखिया भी- एक बहुत अधिक दुख के कारण और अधिक सुख के कारण । लेकिन रामजन सदा ही आनंद में रहते हैं।क्योंकि उन्होंने सुख और दुख दोनों को दूर कर दिया है।
*🚩7- कबीर का तू चिंतवे, का तेरा च्यंत्या होई ।
अणचंत्या हरि जी करै, जो तोहि च्यंत न होई।।*
अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं तू क्यों बेकार की चिंता कर रहा है, चिंता करने से होगा क्या ? जिस बात को तूने कभी सोचा ही नहीं उसे अचिंतित को भी तेरा हरि पूरा करेगा।
🚩8- कबीर सब जग हंडिया, मांदल कंधि चढ़ाइ ।
हरि बिन अपना कोऊ नहीं,देखे ठोंकि बजाइ ।।
अर्थ: संत कहते हैं मैं सारे संसार में एक मंदिर से दूसरे मंदिर का चक्कर काटता फिरा। बहुत भटका। कंधे पर कांवड़ रख पूजा की सामग्री के साथ। सभी देवी-देवताओं को देख लिया, ठोक-बजाकर परख लिया।लेकिन हरि को छोड़कर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे मैं अपना कह सकूं।
🚩9- कबीर संसा कोउ नहीं, हरि सूं लाग्या हेत ।
काम क्रोध सूं झूझड़ा, चौड़े मांड्या खेत ।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि मेरे चित्त में कुछ भी संशय नहीं रहा, हरि से लगन जुड़ गयी। इसीलिये चौड़े में आकर रणक्षेत्र में काम और क्रोध से जूझ रहा हूं।
🚩10- मैं जाण्यूं पढ़िबो भलो, पढ़िबो से भलो जोग।
राम नाम सूं प्रीति करी, भल भल नीयौ लोग ।।
अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं- पहले मैं समझता था कि पोथियों का पढ़ा बड़ा आदमी है। फिर सोचा कि पढ़ने से योग साधन कहीं अच्छा है। लेकिन अब इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि राम नाम से ही सच्ची प्रीति की जाये तो ही उध्दार संभव है।
🚩11- राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय ।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जब मेरे को लाने के लिये राम ने बुलावा भेजा तो मुझसे रोते ही बना। क्योंकि जिस सुख की अनुभूति साधुओं के सत्संग में होती है वह बैकुंठ में नहीं।
🚩12- वैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि वैद्य, रोगी और संसार नाशवान होने के कारण ही उनका रूप-रूपांतर हो जाता है।लेकिन जो राम से आसक्त हैं वो सदा अमर रहते हैं।
🚩13- दया आप हृदय नहीं, ज्ञान कथे वे हद ।
ते नर नरक ही जायेंगे, सुन-सुन साखी शब्द।।
अर्थ: कबीर कहते हैं कि जिनके हृदय में दया का भाव नहीं है और ज्ञान का उपदेश देते हैं, वो चाहे सौ शब्द सुन लें, लेकिन नरकगामी ही होंगे।
🚩14- जेती देखो आत्म, तेता सालिगराम ।
साधू प्रतषि देव है, नहीं पाहन सूं काम ।।
अर्थ: संत कहते हैं कि जितनी आत्माओं को देखता हूं उतने ही शालिग्राम दिखाई देते हैं। प्रत्यक्ष देव तो मेरे लिये सच्चा साधु ही है। पाषाण की मूर्ति पूजने से मेरा क्या भला होने वाला है।
🚩यह भी ध्यान रखना होगा कि धर्म में पाखंड का विरोध करने से कोई नास्तिक नहीं हो जाता है। यदि कबीरजी ने हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों की आलोचना की तो गलत नहीं किया। अनेक महापुरुषों ने ऐसा किया है फिर भी आस्तिक ही रहे। सनातन हिंदू धर्म नहीं छोड़ा। इसलिये अंबेडकरवादियों का यह कहना कि हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार करने वाला हर व्यक्ति अंबेडकरवादी , नास्त्तिक, नवबौध्द और हिंदू द्रोही है हास्यास्पद तर्क है। यह सत्य है कि कबीर ने धर्म में प्रचलित कुप्रथाओं पर प्रहार किया लेकिन राम और हरि पर अटूट आस्था भी बनाये रखी, तथा नरक और आत्मा पर विश्वास भी व्यक्त किया ।। रामपाल भी जो भगवान को गालियां देकर कबीरजी के नाम का दुरुपयोग कर रहे है उनको यह पंक्तियां अवश्य पढ़नी चाहिए कि कबीरदास की भगवान में कितनी अटूट आस्था थी। लेखक -अरुण लवानिया
🚩सभी महापुरुष दिव्य सनातन धर्म में ही अवतरित हुए हैं और उन्होंने सनातन धर्म का ही प्रचार किया है उनको कोई अगल बताकर आपको गुमराह कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि उनकी मंशा है राष्ट्र को खंड-खंड करना।
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Saturday, June 15, 2019

ईराक में भगवान राम और हनुमानजी की 6000 साल पुरानी प्रतिमा मिली

15 जून 2019
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🚩विश्व में अनेक स्थानों पर खुदाई के समय कोई प्राचीन हिंदू मंदिर, देवी-देवताओं की प्रतिमा, भगवान की प्रतिमाएं मिलते रहने की ख़बरें आती रहती हैं, बाकी किसी अन्य धर्म के आराध्य की मूर्ति या पूजास्थल की मूर्तियां मिली ऐसा कहीं देखा सुना नहीं है । इससे साफ होता है कि सनातन (हिंदू) संस्कृति सबसे प्राचीन है और पूरे विश्व में फैली थी ।

🚩ईराक में 6000 साल मिली प्रतिमाओं से यही सिद्ध होता है कि हमारा धर्म 1400 साल पुराने मुस्लिम सम्प्रदाय एवं 2019 साल पुराने ईसाई मत से भी प्राचीनतम है, वास्तव में देखा जाए तो भारतीय संस्कृति मात्र 6000 साल पुरानी है, ऐसी बात नहीं है वह तो इससे भी अधिक पुरानी है क्योंकि जबसे पृथ्वी का उद्गम हुआ है तबसे यह सनातन संस्कृति है ।
🚩अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ और रामकथा की वास्तविकता और सार्थकता पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है, लेकिन
भारत से हजारों किलोमीटर दूर ईराक में कुछ ऐसा हुआ है जिसने ये प्रमाण दिया है कि भगवान श्रीराम और उनके भक्त हनुमान जी की कथा सत्य है । हाल ही में मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक़ ईराक के सिलेमानिया इलाके में मौजूद बैनुला बाईपास के पास खुदाई में भगवान राम और हनुमान जी की दुर्लभ प्रतिमाएं पायीं गयी हैं । इन प्रतिमाओं के पाए जाने की पुष्टि खुद ईराक सरकार ने भारत द्वारा इस मामले पर मांगी गयी जानकारी के जवाब में पत्र लिखकर दी है। इतना ही नहीं ईरान सरकार के पुरातत्व विभाग का दावा है कि ये प्रतिमाएं करीब 6 हजार साल पुरानी हैं । प्रतिमाओं के मिलने के बाद भारत सरकार ने भी इन प्रतिमाओं से जुड़ी और जानकारी प्राप्त करने की इच्छा जाहिर की है। वहीं उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग ने भी खासतौर पर अयोध्या शोध संस्थान ने इन प्रतिमाओं पर शोध करने की ज़रुरत बतायी है।
🚩भारत के लिए अच्छी बात ये है कि भारत के मित्र राष्ट्र ईराक ने इस विषय के महत्व को समझते हुए भारत के शोधकर्ताओं को संस्कृति विभाग और अयोध्या शोध संस्थान को इस विषय पर शोध करने के लिए ईराक आमंत्रित किया है और इस सम्बन्ध में पत्र भी लिखा है । उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही शोधकार्ताओं का दल ईराक पहुंचकर भगवान राम से जुड़े और तथ्य तलाश करेंगे । प्रतिमाओं के मिलने से भगवान राम का अस्तित्व और पुख्ता होता नज़र आ रहा है ,जाहिर तौर पर देश के लिये ये ख़ुशी की बात है कि हमारी संस्कृति पूरी दुनिया में फैली हुई है ।
🚩संतों ने कहा जो भगवान के अस्तित्व पर उठाते थे सवाल, उनके गाल पर है ये तमाचा:
🚩अयोध्या संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैया दास ने कहा कि इसमें कोई चौकने वाली बात नहीं है कि ईराक में भगवान राम की प्रतिमा मिली है, वृहत्तर भारत के दायरे में इस विश्व का बड़ा हिस्सा आता है और ईराक ही नहीं अपितु अन्य देशों में भी भगवान श्री राम के अस्तित्व के प्रमाण मिलेंगे।
🚩जगदगुरु रामदिनेशाचार्य ने कहा कि ये जानकारी प्रसन्नता देने वाली है ये उन लोगों के गाल पर तमाचा है जो भगवान राम को काल्पनिक बताते चले आये और उनके अस्तित्व पर सवाल उठाते आये हैं ,भारत सरकार को इस पर शोध कराना चाहिए ।
🚩आचार्य सतेन्द्र दास ने कहा कि भगवान तो सर्वव्यापी थे उस काल में कोई सीमा नहीं थी न भारत न ईरान पूरा विश्व भगवान राम के पराक्रम को मानता था ,प्रतिमा मिलने से स्पष्ट होता है की भगवान राम के अनुयायी धरती के हर कोने पर हैं | - स्त्रोत - पत्रिका
🚩दुनियाभर में भगवान श्री राम को मानने वाले आज भी हैं, सबसे बड़ा मुस्लिम देश इंडोनेशिया आज भी भगवान राम की पूजा करता है और रामायण के आधार पर उनके देश की संस्कृति चलती है, लेकिन हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जिस जगह पर स्वयं भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, उस जगह को एक विदेशी आक्रमणकारी आकर तोड़ देता है और फिर उसे बनाने के लिए लाखों हिंदू सालों से संघर्ष कर रहे हैं, अबतक लाखों हिंदुओं का बलिदान हो गया पर श्री राम मंदिर नहीं बन पा रहा है।
*🚩बता दे कि युनान, मिश्र तथा रोम की संस्कृति प्राचीन संस्कृति मानी जाती है पर उसको भी मिटा दिया लेकिन यह पंक्ति बोलनी पड़ेगी....
युनानों, मिश्र, रोमां, सब मिट गये इस जहां से ।
अब तक मगर है बाकी, नामों निशाँ हमारा ।।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ।
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहां हमारा ।।
🚩सदियों से सनातन संस्कृति पर वार होता आया है पर अभीतक हमारी संस्कृति नहीं मिट पाई, इसका सबसे बड़ा श्रेय जाता है हिंदू साधु-संतों को उन्होंने जनता को हिंदू संस्कृति की महत्ता बताई और लोगों के दिलो में आज भी अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम है, लेकिन उन संस्कृति रक्षक संतों के ऊपर भी गहरे षड्यंत्र हो रहे हैं, उसको भी हमे रोकने के लिए आगे आना चाहिए ।
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