Sunday, May 24, 2020

जानिए औरंगजेब व मुगल साम्राज्य को कैसे खत्म किया वीर छत्रसाल ने?

24 मई 2020

🚩झाँसी के आसपास उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की विशाल सीमाओं में फैली बुन्देलखण्ड की वीर भूमि में  ज्येष्ठ शुक्ल 3,विक्रम संवत 1706 (3/6/1649) को चम्पतराय और लालकुँवर के घर में वीर छत्रसाल का जन्म हुआ था। चम्पतराय सदा अपने क्षेत्र से मुगलों को खदेड़ने के प्रयास में लगे रहते थे। अतः छत्रसाल पर भी बचपन से इसी प्रकार के संस्कार पड़ गये।

🚩छत्रसाल भारत की मुक्ति चाहते थे-

शाहजहां के कुशासन की प्रतिक्रिया स्वरूप छत्रसाल का जन्म हुआ। जब उस महायोद्घा ने देखा कि लोग एक रोटी के लिए भी अपना जीवन बेच देना चाहते हैं, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि छत्रसाल जैसे देशभक्तों के हृदयों में आग न लगी हो ? आग लगी और इतनी तेज लगी कि संपूर्ण तंत्र को ही भस्मीभूत करने के लिए प्रचण्ड हो उठी।

🚩इसी तेज पुंज छत्रसाल को राजा सुजानसिंह की मृत्यु के उपरांत उसके भाई इंद्रमणि ने ओरछा की गद्दी संभालने के पश्चात 1674-1676 के मध्य अपनी सहायता देना बंद कर दिया, तो इस शासक के बहुत बड़े क्षेत्र को जीतकर छत्रसाल ने अपने राज्य में मिला लिया। तब इंद्रमणि पर छत्रसाल ने अपना शिकंजा कसना आरंभ किया तो वह भयभीत हो गया और उसने शीघ्र ही छत्रसाल के साथ संधि कर ली। उसने छत्रसाल को मुगलों के विरूद्घ सहायता देने का भी वचन दिया।

🚩तहवर खां को किया परास्त-

1679 ई. में औरंगजेब ने अपने चिरशत्रु शत्रुसाल (छत्रसाल) का मान मर्दन करने के लिए अपने बहुत ही विश्वसनीय योद्घा तहवर खां को विशाल सेना के साथ भेजा। छत्रसाल इस समय संडवा बाजने में अपनी स्वयं की वर यात्रा लेकर आये हुए थे। उस समय उनकी भंवरी पड़ रही थी, तो तहवर खां ने उसी समय उन्हें घेर लिया। छत्रसाल के विश्वसनीय साथी बलदीवान ने तहवर खां से टक्कर ली। भंवरी पड़ चुकने पर छत्रसाल ने तहवरखां की सेना के पृष्ठ भाग पर आक्रमण कर दिया और जब तक तहवरखां इस सच से परिचित होता कि उसकी सेना के पृृष्ठ भाग पर मार करने वाला योद्घा ही छत्रसाल है, तब तक छत्रसाल ने तहवरखां को भारी क्षति पहुंचा दी थी।

🚩जब तहवरखां अपनी सेना के पृष्ठ भाग की रक्षार्थ उस ओर चला तो बलदीवान भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। रामनगर की सीमा में छत्रसाल की सेना से तहवरखां का सामना हो गया। अब सामने से छत्रसाल की सेना और पीछे से बल दीवान की सेना ने तहवरखां की सेना को मारना आरंभ कर दिया। अंत में तहवरखां वीरगढ़ की मुगल सैनिक चौकी की ओर भाग लिया। पर यह क्या? उसे तो छत्रसाल के सैनिक पहले ही नष्ट कर चुके थे। अब तो वह और भी कठिनाई में फंस गया। वीरगढ़ में उसे ऐसा लगा कि छत्रसाल की सेना मुगलों के भय से भागती फिर रही है तो उसने छत्रसाल का पीछा करना चाहा। उसे सूचना मिली कि छत्रसाल टोकरी की पहाड़ी पर छुपा है। तब वह उसी ओर चल दिया। उधर बलदीवान वीरगढ़ के पास छिपा सारी वस्तुस्थिति पर दृष्टि गढ़ाये बैठा था, उसे जैसे ही ज्ञात हुआ कि तहवरखां टोकरी की ओर बढ़ रहा है तो वह भी तुरंत उसी ओर चल दिया। छत्रसाल और बलदीवान शत्रु को इसी पहाड़ी पर ले आना चाहते थे क्योंकि यहां शत्रु को निर्णायक रूप से परास्त किया जा सकता था।

🚩यहां से बलदीवान ने एक सैनिक टुकड़ी छत्रसाल की सहायतार्थ भेजी। उसने स्वयं ने मुगलों को ऊपर न चढ़ने देने के लिए उनसे संघर्ष आरंभ कर दिया। यहां पर छत्रसाल की सेना के हरिकृष्ण मिश्र नंदन छीपी और कृपाराम जैसे कई वीरों ने अपना बलिदान दिया। पर उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया । कुछ ही समयोपरांत मुगल सेना भागने लगी। हमीरपुर के पास उस सेना का सामना छत्रसाल से हुआ तो तहवरखां को निर्णायक रूप से परास्त कर दिया गया। तहवरखां को अपने स्वामी औरंगजेब को मुंह दिखाने का भी साहस नहीं हुआ।

🚩कालिंजर विजय-

मुगल सत्ता व शासकों के पापों का प्रतिशोध लेता छत्रसाल अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ कालिंजर की ओर बढ़ा तो वहां के दुर्ग के मुगल दुर्ग रक्षक करम इलाही के हाथ-पांव फूल गये । कालिंजर का दुर्ग बहुत महत्वपूर्ण था । छत्रसाल ने 18 दिन के घेराव और संघर्ष के पश्चात अंत में इसे भी अपने अधिकार में ले ही लिया । दुर्ग पर छत्रसाल का भगवाध्वज फहर गया । इस युद्घ में बहुत से बुंदेले वीरों का बलिदान हुआ, पर उस बात की चिंता किसी को नहीं थी ।

🚩कालिंजर विजय की प्रसन्नता में बलिदान सार्थक हो उठे । सभी ने अपने वीरगति प्राप्त साथियों के बलिदानों को नमन किया और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा भी की । यहीं से छत्रसाल को लोगों ने 'महाराजा' कहना आरंभ किया । ये कालिंजर की महत्ता का ही प्रमाण है कि लोग अब छत्रसाल को 'महाराजा' कहने में गौरव अनुभव करने लगे। छत्रसाल महाराजा के इस सफल प्रयास से मुगल सत्ता को उस समय कितनी ठेस पहुंची होगी?-यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।

🚩छत्रसाल को घेरने की तैयारी होने लगी-

अब छत्रसाल की ख्याति इतनी बढ़ चुकी थी कि उनसे ईर्ष्या करने वाले या शत्रुता मानने वाले मुगल शासकों तथा उनके चाटुकार देशद्रोही 'जयचंदों' ने उन्हें घेरने का प्रयास करना आरंभ कर दिया । औरंगजेब के लिए यह अत्यंत लज्जाजनक स्थिति थी कि छत्रसाल जैसा एक युवक उसी की सेना से निकलकर उसी के सामने छाती तानकर खड़ा हो जाए और मिट्टी में से रातों रात एक साम्राज्य खड़ा करने में सफल हो जाए। विशेषत: तब जबकि यह साम्राज्य उसी के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न करके तैयार किया जा रहा था ।

🚩छत्रसाल ने भी स्थिति को समझ लिया था। डा. भगवानदास गुप्त 'महाराजा छत्रसाल बुंदेला' में लिखते हैं कि-''छत्रसाल ने ऐसी परिस्थितियों में दूरदृष्टि का परिचय देते हुए औरंगजेब के पास अपने कार्यों की क्षमायाचना का एक पत्र लिखा। वास्तव में यह पत्र उन्होंने मुगलों को धोखे में डालने के लिए नाटकमात्र किया था। जिससे मुगल कुछ समय के लिए भ्रांति में रह जाएं और उन्हें अपनी तैयारियां करने का अवसर मिल जाए। क्योंकि छत्रसाल यह जान गये थे कि अब जो भी युद्घ होगा वह बड़े स्तर पर होगा। बुंदेलखण्ड की मिट्टी में रहकर किसी के लिए यह संभव ही नही था कि वह वहां स्वतंत्रता के विरूद्घ आचरण करे। इस मिट्टी में स्वतंत्रता की गंध आती थी और उस सौंधी सौंधी गंध को पाकर लोग वीरता के रस से भर जाते थे। छत्रसाल के साथ भी ऐसा ही होता था।''

🚩स्वामी प्राणनाथ और छत्रसाल-

स्वामी प्राणनाथ छत्रसाल के आध्यात्मिक गुरू थे-उन्होंने अपने प्रिय शिष्य के भीतर व्याप्त स्वतंत्रता और स्वराज्य के अमिट संस्कारों को और भी प्रखर कर दिया और उन्हें गतिशील बनाकर इस प्रकार सक्रिय किया कि संपूर्ण बुंदेलखण्ड ही नहीं, अपितु तत्कालीन हिंदू समाज भी उनसे प्राण ऊर्जा प्राप्त करने लगा। स्वामी प्राणनाथ और छत्रसाल का संबंध वैसा ही बन गया जैसा कि छत्रपति शिवाजी महाराज और समर्थ गुरू रामदास का संबंध था। स्वामी प्राणनाथ का उस समय हिन्दू समाज में अच्छा सम्मान था।

🚩साम्राज्य निर्माता छत्रसाल-

इसके पश्चात छत्रसाल ने जलालखां नामक एक सरदार का सामना किया और उसे बेतवा के समीप परास्त कर उससे 100 अरबी घोड़े, 70 ऊंट तथा 13 तोपें प्राप्त कीं । इसी प्रकार जब औरंगजेब द्वारा बारह हजार घुड़सवारों की सेना अनवर खां के नेतृत्व में 1679 ई. में भेजी गयी तो उसे भी छत्रसाल ने परास्त कर दिया ।

🚩इस प्रकार की अनेकों विजयों से तत्कालीन भारत के राजनीतिक गगन मंडल पर छत्रसाल ने जिस वीरता और साहस के साथ अपना साम्राज्य खड़ा किया उसने उनके नाम को इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर सदा-सदा के लिए अमर कर दिया । उनका पुरूषार्थ भारत के इतिहास के पृष्ठों को उनकी कान्ति से इस प्रकार महिमामंडित और गौरवान्वित कर गया कि लोग आज तक उन्हें सम्मान के साथ स्मरण करते हैं । उसका प्रयास हिंदू राष्ट्र निर्माण की दिशा में उठाया गया ठोस और महत्वपूर्ण कार्य था । दुर्भाग्य हमारा था कि हम ऐसे प्रयासों को निरंतर पीढ़ी दर पीढ़ी केवल इसीलिए अनवरतता या नैरतंर्य प्रदान नही कर पाये कि छत्रसाल जैसे राष्ट्रनिर्माताओं के चले जाने पर हमारे भीतर से ही कुछ 'जयचंद' उठते थे और उनके प्रयासों को धक्का देने के लिए सचेष्ट हो उठते थे ।

🚩यह सच है कि अपने काल के बड़े-बड़े शत्रुओं को समाप्त करना और महादुष्ट और निर्मम शासकों की नाक तले साम्राज्य खड़ा कर राष्ट्र निर्माण का कार्य संपन्न करना बहुत बड़ा कार्य था। जिसे शत्रु के अत्याचारों से मुक्त होने की दिशा में उठाया गया वंदनीय कृत्य ही माना जाना चाहिए ।

🚩औरंगजेब की नींद उड़ा दी थी छत्रसाल ने-

औरंगजेब की रातों की नींद छत्रसाल के कारण उड़ चुकी थी। वह जितने प्रयास करता था कि छत्रसाल का अंत कर दिया जाए-छत्रसाल था कि उतना ही बलशाली होकर उभरता था।

🚩शिवाजी महाराज की मृत्यु के उपरांत 14 अप्रैल 1680 ई. में औरंगजेब ने मिर्जा सदरूद्दीन (धमौनी का सूबेदार) को छत्रसाल को बंदी बनाने के लिए भेजा। छत्रसाल इस समय अपने गुरू छत्रपति शिवाजी की मृत्यु (4 अप्रैल 1680 ई.) से आहत थे। पर वह तलवार हाथ में लेकर युद्घ के लिए सूचना मिलते ही चल दिये।

🚩चिल्गा नौरंगाबाद (महोबा राठ के बीच) में दोनों पक्षों का आमना-सामना हो गया। छत्रसाल ने सदरूद्दीन की सेना के अग्रिम भाग पर इतनी तीव्रता से प्रहार किया कि वह जितनी शीघ्रता से आगे बढ़ रही थी उतनी ही शीघ्रता से पीछे भागने लगी। इससे सदरूद्दीन की सेना में खलबली मच गयी। सदरूद्दीन भी छत्रसाल की सेना के आक्रमण से संभल नही पाया और ना ही वह अपने भागते सैनिकों को कुछ समझा पाया कि भागिये मत, रूकिये और शत्रु का सामना वीरता से कीजिए। उसको स्वयं को भी भय लगने लगा।

🚩सदरूद्दीन को भी पराजित होना पड़ा-

इस युद्घ में परशुराम सोलंकी जैसे अनेकों हिंदू वीरों ने अपनी अप्रतिम वीरता का प्रदर्शन किया और मुगल सेना को भागने के लिए विवश कर दिया। पर सदरूद्दीन ने अपनी सेना को ललकारा और उसे कुछ समय पश्चात वह रोकने में सफल रहा। फिर युद्घ आरंभ हुआ। इस बार बुंदेले वीर छत्रसाल को मुगल सेना ने घेर लिया। पर वह वीर अपनी तलवार से शत्रु को काटता हुआ धीरे-धीरे पीछे हटता गया। वह बड़ी सावधानी से और योजनाबद्घ ढंग से पीछे हट रहा था और शत्रुसेना को अपने साथी परशुराम सोलंकी की सेना की जद में ले आने में सफल हो गया, जो पहले से ही छिपी बैठी थी। यद्यपि मुगल सैनिक छत्रसाल के पीछे हटने को ये मान बैठे थे कि वह अब हारने ही वाली है।

🚩परशुराम के सैनिक भूखे शेर की भांति मुगलों पर टूट पड़े। युद्घ का परिदृश्य ही बदल गया , सदरूद्दीन को अब हिंदू वीरों की वीरता के साक्षात दर्शन होने लगे। वीर बुंदेले अपना बलिदान दे रहे थे और बड़ी संख्या में शत्रु के शीश उतार-उतार कर मातृभूमि के ऋण से उऋण हो रहे थे। परशुराम सोलंकी, नारायणदास, अजीतराय, बालकृष्ण, गंगाराम चौबे आदि हिंदू योद्घाओं ने मुगल सेना को काट-काटकर धरती पर शवों का ढेर लगा दिया। अपनी पराजय को आसन्न देख सदरूद्दीन मियां ने अपने हाथी से उतरकर एक घोड़े पर सवार होकर भागने का प्रयास किया। जिसे छत्रसाल ने देख लिया। वह तुरंत उस ओर लपके और सदरूद्दीन को आगे जाकर घेर लिया। सदरूद्दीन के बहुत से सैनिकों ने उसका साथ दिया। छत्रसाल की सेना के नायक गरीबदास ने यहां भयंकर रक्तपात किया और अपना बलिदान दिया। पर सिर कटे गरीबदास ने भी कई मुगलों को काटकर वीरगति प्राप्त की। मुगल सेना का फौजदार बागीदास सिर विहीन गरीब दास की तलवार का ही शिकार हुआ था। गरीबदास की स्थिति को देखकर छत्रसाल और उनके साथियों ने और भी अधिक वीरता से युद्घ करना आरंभ कर दिया।

🚩अंत में सदरूद्दीन क्षमायाचना की मुद्रा में खड़ा हो गया। उसने छत्रसाल को चौथ देने का वचन भी दिया। छत्रसाल ने तो उसे छोड़ दिया पर बादशाह औरंगजेब ने उसे भरे दरबार में बुलाकर अपमानित किया और उसके सारे पद एवं अधिकारों से उसे विहीन कर दिया।

🚩हमीद खां को भी किया परास्त-

इसी प्रकार कुछ कालोपरांत छत्रसाल को एक हमीदखां नामक मुगल सेनापति के आक्रमण की जानकारी मिली। हमीदखां ने चित्रकूट की ओर से आक्रमण किया था और वह वहां के लोगों पर अत्याचार करने लगा था। तब उस मुगल को समाप्त करने के लिए छत्रसाल ने बलदीवान को 500 सैनिकों के साथ उधर भेजा। बलदीवान ने उस शत्रु पर जाते ही प्रबल प्रहार कर दिया और उसे प्राण बचाकर भागने के लिए विवश कर दिया। बलदीवान ने हमीद खां का पीछा किया और उसके द्वारा महोबा के जागीरदार को छत्रसाल के विरूद्घ उकसाने की सूचना पाकर उस जागीरदार को भी दंडित किया। यहां से बचकर भागा हमीद खां बरहटरा में जाकर लूटमार करने लगा तो वहां छत्रसाल के परमहितैषी कुंवरसेन धंधेरे ने हमीद खां को निर्णायक रूप से परास्त कर भागने के लिए विवश कर दिया।

🚩मुगल साम्राज्य हो गया छिन्न-भिन्न-

हम यहां पर स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि औरंगजेब भारतवर्ष में ऐसा अंतिम मुस्लिम बादशाह था-जिसके साम्राज्य की सीमाएं उसके जीवनकाल में भी तेजी से सिमटती चली गयीं। उसकी मृत्यु के पश्चात उसका साम्राज्य बड़ी तेजी से छिन्न-भिन्न हो गया था, और फिर कभी उन सीमाओं तक किसी भी मुगल बादशाह को राज्य करने का अवसर नही मिला। मुगलों के साम्राज्य को इस प्रकार छिन्न-भिन्न करने में छत्रसाल जैसे महायोद्घाओं का अप्रतिम योगदान था। हमें चाहे सन 1857 तक चले मुगल वंश के शासकों के नाम गिनवाने के लिए कितना ही विवश किया जाए पर सत्य तो यही है कि औरंगजेब की मृत्यु (1707 ई.) के पश्चात ही भारत से मुगल साम्राज्य समाप्त हो गया था। उसकी मृत्यु के पश्चात भारतीय स्वातंत्रय समर की दिशा और दशा में परिवर्तन आ गया था। जिसका उल्लेख हम यथासमय और यथास्थान करेंगे।

🚩यहां इतना स्पष्ट कर देना समीचीन होगा कि औरंगजेब अपने जीवन में बुंदेले वीरों के पराक्रमी स्वभाव से इतना भयभीत रहा कि वह कभी स्वयं बुंदेलखण्ड आने का साहस नही कर सका। वह दूर से ही दिल्ली की रक्षा करता रहा और उसकी योजना मात्र इतनी रही कि चाहे जो कुछ हो जाए और चाहे जितने बलिदान देने पड़ जाएं पर छत्रसाल को दिल्ली से दूर बुंदेलखण्ड में ही युद्घों में उलझाये रखा जाए और उससे 'दिल्ली दूर' रखी जाए। औरंगजेब जैसे बादशाह की इस योजना को जितना समझा जाएगा उतना ही हम छत्रसाल की वीरता को समझने में सफल होंगे। इतिहास के अध्ययन का यह नियम है कि अपने चरित नायक को समझने के लिए आप उसके शत्रु पक्ष की चाल को समझें और देखें कि आपके चरितनायक ने उन चालों को किस प्रकार निरर्थक सिद्घ किया या उनका सामना किया या शत्रु पक्ष को दुर्बल किया? निश्चय ही हम ऐसा समझकर छत्रसाल के प्रति कृतज्ञता से भर जाएंगे। - लेखक : राकेश कुमार आर्य

🚩हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे ही देश में लुटेरे, आक्रमणकारी, बलात्कारी, क्रूर मुगलों एवं अंग्रेजो इतिहास तो पढ़ाया जाता है, लेकिन छत्रसाल जैसे महान वीरों का नहीं पढ़ाया जाता है । वर्तमान सरकार से आशा है कि सहीं इतिहास पढ़ाया जाएगा ।

🚩भारत के ऐसे ही वीर सपूतों के लिए किसीने कहा है :
तुम अग्नि की भीषण लपट, जलते हुए अंगार हो ।
तुम चंचला की द्युति चपल, तीखी प्रखर असिधार हो ।।
तुम खौलती जलनिधि-लहर, गतिमय पवन उनचास हो ।
तुम राष्ट्र के इतिहास हो, तुम क्रांति की आख्यायिका ।।
भैरव प्रलय के गान हो, तुम इन्द्र के दुर्दम्य पवि ।
तुम चिर अमर बलिदान हो, तुम कालिका के कोप हो ।।
पशुपति रुद्र के भू्रलास हो, तुम राष्ट्र के इतिहास हो ।

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Saturday, May 23, 2020

आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो वैश्‍विक संकट क्यों आता है? क्या इससे हम बच सकते हैं?

30 अप्रैल 2020

🚩कोरोना जैसी महामारी हो अथवा अन्य नैसर्गिक आपदा, हर कोई अपने ढंग से उसका कारण ढूंढता है। जैसे वैज्ञानिक हो, तो वह अपना तर्क बताते हैं कि यह आपदा क्यों आई और इसका परिणाम क्या होगा? जबकि पत्रकार अपना तर्क लगाते हैं। पर हमें आपदा का आध्यात्मिक परिपेक्ष्य देखना है। इसलिए कि बिना आध्यात्मिक परिपेक्ष्य समझे हम आपदाओं को समझ नहीं पाएंगे।

▪️आध्यात्मिक परिपेक्ष्य की विशेषता!

🚩क्योंकि सृष्टि का संचालन किसी सरकार या आर्थिक महासत्ता द्वारा नहीं होता। सृष्टि का संचालन परमात्मा द्वारा होता है। इस संचालन का विज्ञान यदि हम नहीं समझेंगे, तो वैश्‍विक संकट को और उसके समाधान को कैसे समझ पाएंगे? हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे धर्मग्रंथों में सृष्टि तथा उसके संचालन के विषय में स्थूल अध्ययन के साथ-साथ सूक्ष्म की भी स्पष्ट जानकारी दी गयी है।

🚩कौशिकपद्धति नामक ग्रंथ में आपातकाल के कारण का वर्णन है।

अतिवृष्टिः अनावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः।
स्वचक्रं परचक्रं च सप्तैता ईतयः स्मृताः॥
इस श्‍लोक का अर्थ इस प्रकार है। राज्यकर्ता तथा प्रजा के धर्मपालन न करने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि (अकाल), टिड्डियों का आक्रमण, चूहों अथवा तोतों (पोपट) का उपद्रव, एक-दूसरे में लडाइयां और शत्रु का आक्रमण, इस प्रकार के सात संकट राष्ट्र पर आते हैं।

🚩तात्पर्य : प्रजा एवं राजा, दोनों को धर्मपालन एवं साधना करनी चाहिए। तब ही आपातकाल की तीव्रता अल्प होकर आपातकाल सुसह्य होगा।

आध्यात्मिक परिपेक्ष्य के कुछ पहलु समझ लेते हैं।

▪️युगों का कालचक्र

🚩हमारे शास्त्रों में सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग, ऐसे चार युगों का स्पष्ट उल्लेख है। वर्तमान में कलियुग के अंतर्गत चल रहे पांचवें कलियुग के अंत का समय है। इसके बाद कलियुग के अंतर्गत एक छोटा सा सतयुग आएगा। अभी का समय छोटे कलियुग के अंत का है। कल्कि अवतार के समय के कलियुग का नहीं । वैसे कलियुग 432000 हजार वर्ष का होता है अभी करीब 5500 वर्ष हुए है इसलिए अभी चल रहे कलयुग में परिवर्तन आएगा फिर से सतयुग जैसा दिखाई देगा।

▪️उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, यह कालचक्र का नियम

🚩युगपरिवर्तन, यह ईश्‍वरनिर्मित प्रकृति का एक नियम है। जो भी वस्तु उत्पन्न होती है, वह कुछ समय तक रहकर अंत में नष्ट हो जाती है। इसे उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का नियम कहते है। उदाहरण के रूप में, हिमालय पर्वत श्रृंखला की उत्पत्ति हुई, वह कुछ काल तक रहेगी और अंत में नष्ट हो जाएगी। इस का अर्थ यह है कि जब इस विश्‍व में किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है, कुछ काल तक रहने के पश्‍चात वह अवश्य नष्ट होगी। केवल निर्माता अर्थात ईश्‍वर ही चिरंतन एवं अपरिवर्तनीय है।

🚩इस नियम के अनुसार अभी का समय कालचक्र में एक परिवर्तन का समय है। अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आपत्तियों से प्रकृति अपना संतुलन बना रही है।

🚩इसमें समझना होगा कि आपत्तियों से जो नष्ट हो रहा है उसके अनेक मार्ग हैं, इसमें एक मार्ग है प्राकृतिक आपदाएं। नाश की इस प्रक्रिया में मानवजाति भी व्यवहार एवं आचरण द्वारा अपना योगदान देती है, जो युद्ध के रूप में सर्वनाश लाता है। इसकी मात्रा 70% होती है।

🚩इसमें, उत्पत्ति-स्थिति-लय (विनाश) इस कालचक्र के नियमानुसार रजोगुणी और तमोगुणी (पापी) लोगों की सबसे अधिक प्राणहानि होगी। इससे, वातावरण की एक प्रकार से शुद्धि ही होती है। इस काल का उल्लेख अनेक भविष्यवेत्ताआें ने भी अपनी भविष्यवाणियों में किया है।

▪️मनुष्य के कर्म तथा समष्टि प्रारब्ध!

🚩वर्तमान कलियुग में मनुष्य का 65 प्रतिशत जीवन प्रारब्ध के अनुसार और 35 प्रतिशत क्रियमाण कर्म के अनुसार होता है। 35 प्रतिशत क्रियमाण द्वारा हुए अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रारब्ध (भाग्य) के रूप में उसे भोगना पडता है। वर्तमान में धर्मशिक्षा और धर्माचरण के अभाव में समाज के अधिकांश लोगों से स्वार्थ या बढते तमोगुण के कारण समाज, राष्ट्र और धर्म की हानि हो रही है। यह गलत कर्म संपूर्ण समाज को भुगतने पडते हैं, क्योंकि समाज उसकी ओर अनदेखी करता है। इसी प्रकार, समष्टि के बुरे कर्मों का फल भी उसे प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सहना पडता है। जैसे आग में सूखे के साथ गीला भी जल जाता है। उसी प्रकार यह है।

🚩इसके साथ ही समाज, धर्म और राष्ट्र का भी समष्टि प्रारब्ध होता है। 2023 तक के कालखंड में मनुष्यजाति को कठिन समष्टि प्रारब्ध भोगना पड सकता है।

▪️प्रकृति कैसे कार्य करती है?

🚩जिस प्रकार धूल तथा धुएं से स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, उसी प्रकार बुद्धि अगम्य सूक्ष्म स्तर पर रज-तम का प्रदूषण होता है। समाज में सर्वत्र फैले अधर्म एवं साधना के अभाव के कारण मानव में रज-तम बढ जाने से वातावरण में भी रज-तम बढ गया है। इससे प्रकृति का ध्यान भी नहीं रखा जा रहा है।

🚩रज-तम बढने का अर्थ है, सूक्ष्म स्तर पर पूरे विश्‍व में बुद्धि अगम्य आध्यात्मिक प्रदूषण होना। जिस प्रकार हम जिस घर में रहते हैं, वहां की धूल-गंदगी समय-समय पर स्थूलरूप में निकालते रहते हैं, उसी प्रकार प्रकृति भी सूक्ष्म स्तर पर वातावरण में रज-तम के प्रदूषण को हटाने एवं स्वच्छ करने के लिए प्रतिसाद देती है।

🚩वास्तविकता यह है कि जब वातावरण में रज-तम का पलडा भारी होता है, तब यह अतिरिक्त रज-तम मूलभूत पांच वैश्‍विक तत्त्वों के माध्यम से (पंचमहाभूत) प्रभाव डालता है। इन पंचमहाभूतों के माध्यम से यह भूकंप, बाढ, ज्वालामुखी, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करता है।

🚩मूलभूत पृथ्वीतत्त्व प्रभावित होने से उसकी परिणति भूकंप में होती है। मूलभूत आपतत्त्व प्रभावित होने से पानी में वृद्धि (बाढ आना अथवा अतिरिक्त हिमवर्षा होकर हिमयुग आना) अथवा न्यूनता (उदा. अकाल) होती है।


🚩महाभारत के युद्ध समय भी देखा गया था कि कौरव की लाखों सेना मर गई थी पर 5 पांडव और धर्म का साथ देने वाले जीवित रहे थे इससे साफ होता है कि सनातन धर्म के अनुसार और साधु-संतों के बताए अनुसार अपना जीवन बनाया जाए और जीवन मे सत्वगुण बढ़ाया जाए तो इन आपदाओं से उनकी रक्षा होगी।


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भारत में टिकटोक पर क्यों प्रतिबंध लगाना चाहिए?

23 मई 2020

🚩टिकटोक एप्लिकेशन ने आज केवल भारतीय युवावर्ग को ही नहीं बल्कि विश्वभर के युवावर्ग को अपना शिकार बनाया है। लगभग 141 देशों में यह एप्लीकेशन उपलब्ध है और अकेले भारत में इसके 120 मिलियन उपयोगकर्ता हैं। इस एप्लीकेशन के अन्तर्गत युवावर्ग एक संक्षिप्त वीडियो (Short Video) बनाते हैं और उसे विश्वभर में फैलाते हैं। युवाओं का मानना है कि यह मनोरंजन का एक अच्छा साधन है।

🚩क्या आप जानते हैं कि इस चीनी एप्लीकेशन पर मुस्लिमों द्वारा जिहाद के समर्थन में वीडियो बनाकर किस प्रकार षड्यन्त्र रचा जा रहा है? वर्ष 2019 में TikTok प्रोफाइल 'Team 07' (मुस्लिम युवाओं द्वारा संचालित) ने एक वीडियो प्रसारित किया था झारखण्ड में तबरेज अंसारी को चोरी के संदेह में पीटने पर इन लोगों ने कहा था- "यदि अंसारी के बच्चे बड़े हुए और अपने पिता की मौत का बदला लिया तो यह नहीं कहा जाना चाहिए कि एक मुस्लिम एक आतंकवादी है।" यद्यपि मैं भी भीड़ द्वारा किसी की हत्या का समर्थन नहीं करता क्योंकि दण्ड देने का काम देश की पुलिस और न्याय-व्यवस्था का है, लेकिन किसी वीडियो या अन्य साधनों के जरिये समाज में हिंसा को बढ़ावा देने का पूर्ण रूप से मैं विरोध करता हूं। इन युवाओं के खिलाफ सरकार द्वारा कानूनी कार्यवाही भी की गई थी और बाद में इन लोगों ने अपने वीडियो के लिए जनता से माफी मांगी थी। उन्हीं दिनों 'बिग बॉस' कंटेस्टेंट और एक असफल अभिनेता 'अजाज खान' ने 'Team 07' के इस वीडियो के समर्थन में मुस्लिमों को बाहर निकलने और दंगा करने के लिए एक वीडियो के माध्यम से भड़काया था। बाद में वह अभिनेता मुम्बई पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया गया। इसके बाद मुस्लिम वर्ग ने TikTok पर हिन्दू लड़कियों के प्रति शारीरिक हिंसा, एसिड हमलें, हिन्दुओं की आध्यात्मिकता पर सवाल, कोरोना वायरस से बचाव करते पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी, क्वारंटाइन में चिकित्सकों पर थूकना और नर्सों के साथ बदसलूकी आदि घृणित कार्यों के सम्बन्ध में वीडियो डालने शुरू कर दिये।

🚩TikTok पर कई हिन्दू लड़कियां मुसलमानों के इस जिहादी षड्यन्त्र में फंसी हैं, जिसमें स्क्रीन-शेयरिंग के जरिये हिन्दू लड़कियों को फंसाया जा रहा है। यह षड्यन्त्र मुसलमानों ने विशेषकर हिन्दूवर्ग को ही फंसाने के लिए रचा है। इन लोगों का ध्येय अपने जिहाद को गति देना है। मुसलमानों द्वारा हिज़ाब, लव-जिहाद, शारीरिक उत्पीड़न, यौन-सम्बन्धी जैसे घिनौने कार्यों पर आधारित वीडियो बनाकर हिन्दूवर्ग को यह दिखाने का प्रयत्न किया जा रहा है कि इस्लामी मज़हब में सब तरह के कार्यों की छूट है, इसलिए यह श्रेष्ठ है। जरा आप विचार कीजिए कि जिस मज़हब में कभी आतंकवाद के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई जाती, जिनके ग्रन्थों में पत्नी के अलावा रखैल रखने की इजाज़त है, मनुष्य के अलावा जीवों से संभोग करने का वर्णन है, मुसलमानों को छोड़कर अन्य मत और धर्म के अनुयायियों के क़त्ल करने का हुक़्म है, निरपराध जीव-जन्तुओं की हत्या का नियम है, जिनके मज़हब का संस्थापक खुद एक बलात्कारी हो, भला वह मज़हब कभी श्रेष्ठ कैसे हो सकता है?

🚩कोरोना वायरस के चलते इन दिनों इस्लाम के ठेकेदारों ने क्या-क्या हरकतें की थीं, यह बात शायद ही किसी हिन्दू या किसी मत के लोगों से छिपी हो। इसके बावजूद हिन्दूवर्ग मुसलमानों के बनाये षड्यन्त्र में फंस रहा है। सबसे बड़ी और विचारणीय बात तो यह है कि TikTok पर मुस्लिमों के धर्म-सम्बन्धी वीडियो एवं अन्य धर्मों की आलोचना करने को हिन्दू-युवावर्ग बढ़ावा क्यों दे रहा है? इसका सीधा-सा कारण यही है कि उन युवाओं के अभिभावक अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और उनके बच्चे TikTok रूपी वायरस से ग्रसित होते जा रहे हैं। यदि हिन्दुओं के अभिभावकों ने अपने बच्चों को धर्म और संस्कृति की थोड़ी भी शिक्षा दी होती तो आज ऐसा न होता। न जाने हिन्दूवर्ग को यह बात कब और कैसे समझ में आयेगी कि जो मुसलमान अपने अल्लाह के न हो सके, वह किसी और मनुष्य के होंगे? अतः मुसलमानों द्वारा बनाये ऐसे वीडियो के चलते TikTok भारत में प्रतिबंधित होना चाहिए। - प्रियांशु सेठ

🚩टिकटॉक पर फेमस होने के लिए कुछ लोग संस्कार हीन ओर अश्लीलता भरा अथवा राष्ट्र विरोधी वीडियो बनाकर भी अपलोड कर देते है। कुछ देशवासी जागरूक भी हो रहे है इसके कारण टिकटोक की रेटिंग काफी कम हो रही हैं। टिकटोक पर देश एवं भारतीय संस्कृति के खिलाफ कुछ वीडियो अपलोड होते है इसलिए देश मे काफी लोग इसको बेन करने की मांग उठा रहे हैं।

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