15 May 2024
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🚩खाने पीने के उत्पाद बनाने वाली कम्पनी नेस्ले के भारतीय समेत तमाम विकाशील या गरीब देशों के बच्चों पर दोहरे मानक सामने आ गए हैं। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नेस्ले भारतीय बच्चों के लिए बेचे जाने फूड सेरेलेक में मिठास के लिए चीनी जैसे उत्पाद मिलाती है जबकि यही काम यूरोप के बच्चों के लिए नहीं किया जाता। भारतीय बच्चों और यूरोपियन बच्चों के लिए बेंचे जानेवाले एक ही उत्पाद में इतना अंतर कैसे है? अब नेस्ले से इस बात का जवाब देते नहीं बन रहा है। अब भारत सरकार भी इस मामले का संज्ञान ले रही है।
🚩क्या है पूरा मामला❓
🚩स्विटज़रलैंड के पब्लिक आई और इंटरनेशनल बेबीफूड एक्शन नेटवर्क (IBFAN) ने पूरे विश्व से नेस्ले के बच्चों के लिए बेंचें जाने वाले उत्पादों के सैंपल की जाँच की है। भारत समेत कई देशों में यह उत्पाद सेरेलेक के नाम से बेचा जाता है। यह उत्पाद छोटे बच्चों को खाने के रूप में दिया जाता है। फिलिपीन्स में बेचे जाने वाले इसी उत्पाद में प्रति खुराक में 7.3 ग्राम चीनी पाई गई। स्विटज़रलैंड समेत अन्य यूरोपियन देशों में बेंचे जाने वाले इन्हीं उत्पादों में बिलकुल भी चीनी नहीं थी।
🚩इस रिपोर्ट में बताया गया कि नेस्ले सेरेलेक के सभी उत्पादों में चीनी डाली जाती है। औसतन यह 4 ग्राम होती है। सबसे ज्यादा फ़िलीपीन्स के सैंपल में चीनी पाई गई। यूरोपियन बाजारों के सैंपल में चीनी नहीं मिली। भारत से लिए गए सैंपल की जाँच में भी बड़े खुलासे हुए। भारत में बिकने वाले सेरेलेक में औसतन हर खुराक में 3 ग्राम चीनी पाई गई है। यह भी बताया गया है कि चीनी इस उत्पाद में डाली गई लेकिन उसके विषय में डिब्बों पर स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया।
🚩नेस्ले सेरेलेक सुगर
रिपोर्ट में बताया गया है, “भारत में, जहाँ इस उत्पाद की बिक्री 2022 $250 मिलियन (लगभग ₹2000 करोड़) के पार थी, सभी सेरेलैक बेबीफूड में प्रति खुराक लगभग 3 ग्राम अतिरिक्त चीनी होती है। यही स्थिति अफ्रिका के मुख्य बाज़ार दक्षिण अफ़्रीका में भी है, जहाँ सभी सेरेलैक प्रति खुराक में 4 ग्राम या अधिक चीनी होती है।"
🚩सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका, बांग्लादेश और पाकिस्तान समेत तमाम देशों में भी नेस्ले ने यही किया। यह भी बताया गया कि इनमें से कुछ पैकेज पर इनमें चीनी होने की बात लिखी तक नहीं थी। इन उत्पादों में शहद के रूप में चीनी थी जिसको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मना करता है।
🚩नेस्ले का यह कदम बच्चों के लिए खतरनाक क्यों❓
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों के खाने में छोटी उम्र से ही अधिक चीनी दिया जाना ठीक नहीं है। इससे उनमें मोटापा, ह्रदय सम्बंधित बीमारियाँ और कैंसर आदि का खतरा बढ़ा सकती हैं। इसके अलावा बच्चों के दाँतो पर भी चीनी का विपरीत प्रभाव पड़ता है। मिठास के लिए उत्पाद कम्पनियाँ उपयोग करती हैं, वह भी शुद्ध चीनी ना होकर अन्य मिठास वाले उत्पाद होते हैं। ऐसे में इनसे बचने की सलाह दी जाती है।
https://twitter.com/OpIndia_in/status/1780931085095813555?t=XUYEICWvK7jsg05pf1JNxw&s=19
🚩औपनिवेशिक सोच का नतीजा
🚩नेस्ले के दोहरे मानकों पर सवाल उठाते हुए, जोहान्सबर्ग में विटवाटरसैंड विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य के प्रोफेसर और एक बाल रोग विशेषज्ञ करेन हॉफमैन ने पब्लिक आई से कहा, ”मुझे समझ में नहीं आता कि दक्षिण अफ्रीका बिकने वाले उत्पाद उन उत्पादों से अलग क्यों है जो विकसित देशों में बेचे जाते हैं। यह औपनिवेशीकरण का एक रूप है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। बच्चों के खाने में चीनी मिलाना भी एकदम सही नहीं है।”
🚩भारत में खाने-पीने की वस्तुओं की गुणवता का प्रमाणन करने वाली एजेंसी FSSAI ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है और पब्लिक आई की रिपोर्ट के बाद इस पर कार्रवाई करेगी।
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