Tuesday, November 24, 2020

भीष्मपंचक व्रत करने से मिलेंगे अनेक फायदे, जानिए कैसे करें ?

24 नवम्बर 2020


भीष्म पंचक का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में 'भीष्म पंचक' व्रत का विशेष महत्व कहा गया है। इस साल यह व्रत 25 नवम्बर से 29 नवम्बर तक है।




 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है । सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है ।

 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे । अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।

 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करने वाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नी सहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।

 भीष्मपंचक व्रत कथा:

कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अर्घ्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।

 इसी संदर्भ में एक और कथा है...

महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे। तब भगवान कृष्ण पाँचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म जी ने पाँच दिनों तक राज धर्म ,वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था । उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।

भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए ? 

इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।

 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए :
सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने । भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।

‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)

अर्घ्य के जल में थोडा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ... - ऐसी प्रार्थना अवश्य करें जिससे वीर्यवान व्यक्ति बनेगा।

इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है ।

गौमूत्र का पान करें तथा पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है ।

इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।

जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है :
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।

‘जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ । वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ ।

 इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है l इस दिन भगवान नारायण जागते हैं l इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए :
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज l
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ll

'हे गोविन्द ! उठिए, उठिए , हे गरुड़ध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! #निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये l'
(ऋषि प्रसाद : नवम्बर 2007)

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Monday, November 23, 2020

Netflix की वेब सीरीज बन चुकी है हिंदू विरोधी, दर्ज हुई FIR

23 नवंबर 2020


 इस दौर में ओटीटी प्लेटफॉर्म की कंपनियों की नीति केवल इतनी ही रह गई है कि उनका बिजनेस ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन इसकी आलोचना करता है या कौन सराहना या फिर किसे इससे चोट पहुँचती है।




 विदेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म Netflix का हाल भी कुछ ऐसा ही है, जिसमें आए दिन ऐसा कंटेंट दिखाया जाता है जो कि हिंदुओं की भावनाओं को आहत करता है, लेकिन फिर भी इस प्लेटफॉर्म के यूजर भारत में बढ़ रहे हैं। आलोचनाओं के सहारे ही सही, लेकिन इसकी पहुँच लोगों तक बढ़ रही है, जो कि लोगों के लिए भी एक रेड अलर्ट है कि अब इसे बहिष्कृत करने का सही समय आ चुका है।

 Netflix के खिलाफ हिंदू भावनाओं को आहत करने की मुहिम छिड़ गई है। Netflix की वेब-सीरीज ‘A Suitable Boy’ को लेकर लोगों का गुस्सा भड़क पड़ा है। इसके एक दृश्य में लड़का और लड़की मंदिर में बेहद ही अश्लील हरकतें करते दिख रहे हैं। जबकि बैकग्राउंड में भगवान की पूजा अर्चना और भजन किए जा रहे हैं।

इस दृश्य से हिंदू समुदाय के लोगों की भावनाएँ आहत हुई हैं। लोग इसे तुरंत Netflix से हटाने के साथ ही कंपनी से इसके लिए माफी माँगने की बात करने लगे हैं। लोगों की इस मुहिम का असर ये हुआ है कि अब तक #BoyCottNetflix हैशटैग के तहत करीब 64 हजार ट्वीट किए जा चुके हैं।

 इसको लेकर बीजेपी के युवा मोर्चा के मंत्री गौरव शर्मा ने मध्य प्रदेश पुलिस से शिकायत की है और केस दर्ज कराया है। यही नहीं ट्विटर पर लोगों ने सरकार से Netflix समेत सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म को सरकारी नियमों के अंतर्गत लाने की माँग की है। जिससे इनके गलत कार्यक्रमों पर नियमों के तहत सख्त कार्रवाई की जा सके, ताकि इन्हें सबक मिल सके, और ये सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म अपने कार्यक्रमों में लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने से बचें।

 इस मामले में मध्य प्रदेश के गृह मंत्री भी काफी सख्ती से पेश आए हैं। उन्होंने इसको लेकर वीडियो संदेश के माध्यम से कहा है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म Netflix में हिंदू मंदिर के अंदर इस प्रकार की अश्लील हरकतें आपत्तिजनक हैं और इसके खिलाफ अधिकारियों को कार्रवाई करने के आदेश दे दिए गए हैं। साथ ही उन्होंने कहा है कि Netflix को इस तरह से हिंदू भावनाओं को आहत करने से बचना चाहिए।

 Netflix की वेब सीरीज का ये दृश्य विक्रम सेठ की किताब A Suitable Boy के दूसरे एपिसोड का है, जो कि मध्य प्रदेश के ही महेश्वर घाट स्थित शिव मंदिर का है। इसको लेकर बीजेपी नेता गौरव ने कहा है कि इसके खिलाफ जनता सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करेगी।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि Netflix ने कोई आपत्तिजनक कंटेंट प्रसारित किया हो। ये ओटीटी प्लेटफॉर्म आए दिन इसी तरह की वेब सीरीज प्रसारित करता रहता है जो कि हिंदू समुदाय और उसकी संस्कृति को नीचा दिखाती है।

 Netflix पर सभी ने अनुराग कश्यप की सेक्रेड गेम्स देखी है, जो कि वामपंथी एजेंडा चलाती है। इस सीरीज में जिस तरह से अहम ब्रह्मास्मि का प्रयोग करके अपराध के दृश्य दिखाए गए, उससे हिन्दू समुदाय को धक्का लगा है। इसके अलावा एक सीरीज घोउल (Ghoul) भी है जो भारत के हिंदुओं को इस्लाम विरोधी प्रदर्शित करती है। Netflix ने ऐसी अनेक फिल्में प्रसारित की हैं, जिसमें किसी न किसी दृश्य में हिंदुओं या उनकी संस्कृति के प्रति नफरत भरी हो।

 हिंदू विरोध के बावजूद लोग अभी भी इसे पसंद करते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं, जो केवल इसके कंटेंट की आलोचना करने के लिए ही इसे देखते हैं। ऐसे कंटेंट को देखने के बाद वे Netflix की ट्विटर से लेकर सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फजीहत करते हैं। वहीं ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें हिन्दू विरोधी कंटेंट देखने में मजा आता है। इसलिए अब सरकार को ऐसे प्लेटफॉर्म के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही कुछ नियम भी तय करने चाहिए, जिससे हिंदुओं को इस तरह से अपमानित करने वाले कंटेंट पर लगाम लग सके।

 इससे पहले नेटफ्लिक्स की वेब सीरिज सेक्रेड गेम्स-2 को लेकर खूब विवाद हुआ था। शिरोमणि अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने सेक्रेड गेम्स के डायरेक्टर अनुराग कश्यप के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। सेक्रेड गेम्स 2 में सिख पुलिस अधिकारी का किरदार निभाने वाले सैफ अली खान के एक सीन को लेकर अकाली दल के नेता ने अनुराग कश्यप पर सिख धर्म के अपमान करने का आरोप लगाया था।

 बता दें कि पिछले कई सालों से इस्लामिक संगठनों द्वारा किए गए हमलों को सफेदजामा पहनाने की कोशिश की जा रही है और नेटफ्लिक्स इस प्रोपेगेंडा में सबसे आगे है। इन सभी हमलों को छिपाने के लिए इसने कई ऐसी सीरीज निकाली, जो हिन्दुओं की छवि को धूमिल करती है। लेकिन इनमें इतना साहस नहीं है कि वो इस्लामिक स्टेट, बोको हराम जैसे आतंकी संगठनों पर कोई वेब सीरीज बना कर दुनिया को दिखाए।

 आतंकवाद पर पर्दा डालने के लिए इन निर्माता कंपनियों ने हिन्दुओं को निशाने पर लिया है तथा हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। उनकी छवि को नकारात्मक तरीके से पेश किया जा रहा है ताकि लोगों में दिखावटी डर को बढ़ावा दे सके, जिसका वास्तविकता से कोई नाता ही नहीं है।

 नेटफ्लिक्स की प्रवृत्ति हमेशा से हिंदू विरोधी नैरेटिव को बढ़ावा देने की रही है। इसने ‘Ghoul’, ‘Sacred Games’ और ‘लैला’ के रूप में ऐसी कई वेब सीरिज बनाई है, जो हिंदू विरोधी भावनाओं को जन्म दे रही है और साथ ही इससे विश्व में हिंदू धर्म की नकारात्म छवि पेश की जा रही है। लैला वेब सीरीज में सनातन धर्म के अनुयायियों को सबसे हिंसक और दमनकारी मानसिकता वाले लोगों के तौर पर दिखाया गया है, जो सिर्फ लोगों को बाँटकर उन पर राज करना चाहते हैं।

 वेब सीरीज में आर्यावर्त समाज को भयंकर जातिवाद, कट्टरवाद और असहिष्णुता से ग्रसित दिखाया गया है। जहां मामूली अपराध करने पर भी कड़ी सजा दी जाती है। यहाँ आपके लिए यह जानना जरूरी है कि यह वेब सीरीज प्रयाग अकबर द्वारा इसी नाम से लिखित विवादित किताब पर आधारित है जिसमें लेखक ने सच्चाई और तथ्यों की जगह सिर्फ अपने एजेंडे का ही प्रचार किया है। अब समय आ गया है कि भारतीय जनता ऐसी वेब सीरीज बनाने वाली कंपनियों का बहिष्कार करे और ऐसे कंटेंट के खिलाफ आवाज उठाए जिससे विश्व में हिंदुओं की छवि धूमिल हो। - रचना कुमारी
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धरती पर सबसे ज्यादा श्रेष्ठ और कल्याणकारी क्या हैं

* मनमुख व्यक्ति का जीवन

* मन पर कुछ कीर्तन-भजन का अंकुश

* या संतों का सान्निध्य




     आज समाज का अध:पतन होते देखकर, नैतिकता का ह्रास और सिर्फ आधुनिकता की अंधी दौड़ बढ़ते देखकर जब मन बहुत व्यथित हो उठता है !
    तो *घनघोर अंधेरे* में आशा की सिर्फ एक नन्हीं सी किरण दिखाई देती है और वो है *हमारी आदर्श सनातन परमपराएं...* । _जो समाज को जीने की सही राह दिखती हैं..._ क्योंकि इसमेें त्याग , दया , क्षमा , शील , संयम , सदाचार , चरित्र बल और सबसे बढ़कर *परहित* की प्रधानता है।

     बचपन से ही हमने सुना है कि भगवान का नाम ही सभी भय स्थानों से हमारी रक्षा करने में सक्षम है । भगवन्नाम के स्मरण के सिवा जो कुछ भी हम देखते , सुनते या करते हैं , अंत समय में सब व्यर्थ हो जाता है। केवल भगवान का सुमिरन ही सार्थक होता है।

      उसमें भी सुमिरन कैसा है ? स्वार्थपरक है या नि:स्वार्थ भाव से केवल परमात्म प्रीति के लिए किया गया है ? इसका भी बहुत महत्व है।

     आधुनिकता की चकाचौंध में अंधे बने हुए लोग डिस्को में, फिल्में देखने में, होटलों और पार्टियों में नाचने गाने को ही ख़ुशी समझते हैं।
     अब तो *आधुनिक विज्ञान ने भी मान लिया है कि* इससे *हमारी* जीवनी शक्ति का अत्यंत ह्रास होता है और अनजाने में हम हमारे बच्चों में भी वैसे ही *कुसंस्कारों* का सिंचन कर देते हैं ! और इसी के परिणाम स्वरूप समाज का नैतिक पतन होता है जो हमें आए दिन देखने/सुनने को मिलता है । 

     इससे तो कीर्तन-भजन का आयोजन बहुत उत्तम है, जिसमें कुछ भगवद्चर्चा तो होती है । लेकिन *श्रेष्ठतम* बात ये है कि, कीर्तन तो वही का वही हो ,पर संतो के सान्निध्य में होता है तो वो सुसंस्कार के साथ-साथ मुक्ति दिलाने वाला भी बन जाता है ।

   आइए इसी विषय के कई पहलुओं पर चर्चा करते हैं

पहले हमें ये समझना चाहिए कि...

भजन या कीर्तन किसे कहेंगे ? और उसका वास्तविक स्वरूप क्या है ?

-:कीर्तन का स्वरूप और महत्त्व:-

 
     हम सबने सुना है कि भगवान तो भाव के भूखे हैं , इसलिए उनके भजन में ताल, स्वर और वाद्य भले ही उत्कृष्ट न हों , पर भाव और मांग की प्रधानता होती है । मतलब ये कि हम *भगवान से कुछ चाहते हैं ?* या फिर *भगवान को ही चाहते हैं ?

  
     उदाहरण के लिए एक भजन देखते है.... जिसकी कुछ पंक्तियाँ बड़ी हास्यास्पद लगती हैं। लेकिन शायद यही तो हम सब मांगते हैं ना भगवान से ?

"छोटा सा परिवार हमारा सदा बनाए रखना...
इस बगिया में फूल खिले जो सदा खिलाए रखना..."

तो क्या ये संभव है ?
और क्या ऐसी प्रार्थना या मांग करना व्यर्थ नहीं हुआ ?

     पर ऐसी समझ हमें, तभी मिल सकती है, जब हम स्वामी विवेकानंद जी, संत कबीरदासजी, संत श्रीरमण महर्षिजी,संत श्री आशारामजी बापू या स्वामी दयानंद सरस्वती जी जैसे किन्हीं साधु पुरुष, महापुरुष के पास बैठ कर उनके विचार, उनके अनुभव सुनते हैं उनके द्वारा बताई गई बातों को अपने जीवन में आत्मसात करने की कोशिश करते हैं ।

      बड़े भाग्यशाली होते हैं वो लोग जिन्हें ऐसे महापुरुषों का सान्निध्य मिलता है।

     आमतौर पर देखा जाए तो लोगों का मानना है , कि *बचपन* तो खेलने खाने के लिए और *जवानी* कुछ *हैसियत* बनाने के लिए दी है भगवान ने । ये *पूजा-पाठ* तो *बुजुर्गों* को ही शोभा देता है।

तो ज़रा सोचिए :-

"आएगा जब रे बुलावा हरि का,छोड़ के सबकुछ जाना पड़ेगा।"

      *फिर... अभी नहीं तो कभी नहीं !

"लड़कपन खेल में खोया, जवानी नींद भर सोया।
बुढ़ापा देखकर रोया, यही क़िस्सा पुराना है।।"

     ज़रा सोचिए कि शक्तिहीन बुढ़ापे में भक्ति करने का साहस हम कहां से लाएंगे। इसलिए आत्मज्ञानी महापुरुषों ने कहा है कि , ध्रुव , प्रहलाद और ऋषभदेव जैसी , अष्टावक्र मुनि जैसी लौ बचपन से ही बच्चों में जगाओ। तो वे बड़ी ज्योति का रूप ले कर समाज में भी उजाला बांटेंगे।
     इसलिए हमारे दृष्टिकोण से तो *ब्रह्मज्ञानी आत्मारामी संतों का संग व उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना हमारे लिए सबसे श्रेष्ठतम और अनमोल साधन* है ।
   
     : रचना मनोज खेमका :
    : वाराणसी , उत्तर प्रदेश :

Sunday, November 22, 2020

देशवासियों व सरकार के नाम आसाराम बापू ने लिखा पत्र

22 नवम्बर 2020


जोधपुर जेल से हिंदु संत आशारामजी बापू ने देशवासियों व सरकार के नाम गाय माता की महत्ता बताकर एक पत्र भेजा हुआ है जिसको पढ़कर हर कोई सराहना कर रहा है । सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ है आप भी इसे पढ़िए।

पत्र में बापू आशारामजी ने लिखा था कि गौपालक और गौप्रेमी धन्य हो जायेंगे...

ध्यान दें...




गोझरण अर्क बनानेवाली संस्थाएँ एवं जो लोग गोमूत्र से फिनायल व खेतों के लिए जंतुनाशक दवाइयाँ बनाते हैं, वे 8 रुपये प्रति लीटर के मूल्य से गोमूत्र ले जाते हैं । गाय 24 घंटे में 7 लीटर मूत्र देती है तो 56 रुपये होते हैं । उसके मूत्र से ही उसका खर्चा आराम से चल सकता है । गाय के गोबर, दूध और उसकी उपस्थिति का फायदा देशवासियों को मिलेगा ही ।

 ऋषिकेश और देहरादून के बीच आम व लीची का बगीचा है। पहले वह 1लाख 30 हजार रुपये में जाता था, बिल्कुल पक्की व सच्ची बात है । उनको गायें रखने की सलाह दी गयी तो वे 15 गायें, जो दूध नही देती थी, लगभग निःशुल्क ले आये । उस बगीचे का ठेका दूसरे साल 2 लाख 40 हजार रुपये में गया । अब उन्होंने बताया कि गायें उस धरती पर घूमने से, गोमूत्र व गोबर के प्रभाव से अब वह बगीचा 10 लाख रुपये में जाता है । अपने खेतों में गायों का होना पुण्यदायी, परलोक सुधारनेवाला और यहाँ सुख-समृद्धि देनेवाला साबित होगा ।

अगर गोमूत्र, गौ-गोबर का खेत-खलिहान में उपयोग हो जाय तो उनसे उत्पन्न अन्न, फल, सब्जियाँ प्रजा का कितना हित करेंगी, कल्पना नहीं कर सकते !!
विदेशी दवाइयों के निमित्त कई हजार करोड़ रुपये विदेशों में जाते हैं और देशवासी उन दवाइयों के दुष्प्रभाव के शिकार हो जाते हैं ।

बापु आशारामजी ने पत्र में आगे लिखा कि प्रजा हितैषी जो सरकारें हैं, उन मेरी प्यारी सरकारों को प्यार भरा प्रस्ताव पहुँचाओगे तो मुझे खुशी होगी । मानव व देश का भला चाहने वाले प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रोनिक मीडिया इस बात के प्रचार का पुनीत कार्य करेंगे तो मानव के स्वास्थ्य व समृद्धि की रक्षा करने का पुण्य भी मिलेगा, प्रसन्नता भी मिलेगी व भारत देश की सुहानी सेवा करने वाले मीडिया को देशवासी कितनी ऊँची नजर से देखेंगे और दुआएँ देंगे । उनकी 7-7 पीढ़ियाँ इस सेवाकार्य से सुखी, समृद्ध व सद्गति को प्राप्त होंगी।

 केमिकल की फिनायल व उसकी दुर्गंध से हवामान दूषित होता है । गौ-फिनायल से आपकी सात्त्विकता, सुवासितता बढ़ेगी ही ।

सज्जन सरकारें, प्रजा का हित चाहनेवाली सरकारें मुझे बहुत प्यारी लगती हैं । गौ-गोबर के कंडे से जो धुआँ निकलता है, उससे हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं । शव के साथ श्मशान तक की यात्रा में मटके में गौ-गोबर के कंडे जलाकर ले जाने की प्रथा के पीछे हमारे दूरद्रष्टा ऋषियों की शव के हानिकारक कीटाणुओं से समाज की सुरक्षा लक्षित है ।

अगर गौ-गोबर का 10 ग्राम ताजा रस प्रसूतिवाली महिला को देते हैं तो बिना ऑपरेशन के सुखदायी प्रसूति होती है ।

गोधरा (गुज.) के प्रसिद्ध तेल-व्यापारी रेवाचंद मगनानी की बहू के लिए गोधरा व बड़ौदा के डॉक्टरों ने कहा था : ‘‘इनका गर्भ टेढ़ा हो गया है । उसी के कारण शरीर ऐसा हो गया है, वैसा हो गया है... सिजेरियन (ऑपरेशन) ही कराना पड़ेगा ।’’ आखिर अहमदाबाद गये । वहाँ 5 डॉक्टरों ने मिलकर जाँच की और आग्रह किया कि ‘‘जल्दी सिजेरियन के लिए हस्ताक्षर करो; या तो संतान बचेगी या तो माँ, और यदि संतान बचेगी तो वह अर्धविक्षिप्त होगी । अतः सिजेरियन से एक की जान बचा लो ।’’

परिवार ने मेरे से सिजेरियन की आज्ञा माँगी । मैंने मना करते हुए गौ-गोबर के रस का प्रयोग बताया । न माँ मरी न संतान मरी और न कोई अर्धविक्षिप्त रहा । प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहें तो देख सकते हैं । अभी वह लड़की महाविद्यालय में पढ़ती होगी । अच्छे अंक लाती है । माँ भी स्वस्थ है । कई लोग देख के भी आये । कइयों ने उनके अनुभव की विडियो क्लिप भी देखी होगी । गौ-गोबर के रस द्वारा सिजेरियन से बचे हुए कई लोग हैं ।

विदेशी जर्सी तथाकथित गायों के दूध आदि से मधुमेह, धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, ऑटिज्म, स्किजोफ्रेनिया (एक प्रकार का मानसिक रोग), मैड काऊ, ब्रुसेलोसिस, मस्तिष्क ज्वर आदि भयंकर बीमारियाँ होने का वैज्ञानिकों द्वारा पर्दाफाश किया गया है । परंतु भारत की देशी गाय के दूध में ऐसे तत्त्व हैं जिनसे एच.आई.वी. संक्रमण, पेप्टिक अल्सर, मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, स्तन व त्वचा का कैंसर आदि अनेक रोगों से रक्षा होती है । उसमें स्वर्ण-क्षार भी पाये गये हैं । गाय के दूध-घी का पीलापन स्वर्ण-क्षार की पहचान है । लाइलाज व्यक्ति को भी गौ-सान्निध्य व गौसेवा से 6 से 12 महीने में स्वस्थ किया जा सकता है ।

पुनः गोमूत्र, गोबर से निर्मित खाद एवं गौ-उपस्थिति का खेतों में सदुपयोग हो ! भारत को भूकम्प की आपदाओं से बचाने के लिए मददगार है गौसेवा !

लोग कहते हैं कि ‘आप 8000 गायों का पालन-पोषण करते हैं !’ तो मैं तुरंत कहता हूँ कि ‘वे हमारा पालन-पोषण करती हैं । उन्होंने हमसे नहीं कहा कि हमारा पालन-पोषण करो, हमें सँभालो । हमारी गरज से हम उनकी सेवा करते हैं, सान्निध्य लेते हैं ।’

महाभारत (अनुशासन पर्व : 80.3) में महर्षि वसिष्ठजी कहते हैं : ‘‘गाय मेरे आगे रहें । गाय मेरे पीछे भी रहें । गाय मेरे चारों ओर रहें और मैं गायों के बीच में निवास करूँ ।’’

हे साधको ! देशवासियों ! सुज्ञ सरकारों ! इस बात पर आप सकारात्मक ढंग से सोचने की कृपा करें ।               
-आप सभीका स्नेही
आशाराम बापू, जोधपुर
(नोट : यह संदेश अगस्त 2016 का है)

आपको बता दे कि बापू आशारामजी ने कत्लखानों में जाति हजारों गायों को बचाकर अनेकों गौशाला बनाई उसमें अधिकितर गाये दूध देने वाली नही है फिर भी उनका पालन व्यवस्थित तरीके से किया जता है। और विदेशी कम्पनियों की कमर तोड़ दी थी और धर्मांतरण की दुकानें बंद करवा दी थी । 14 फरवरी वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस और 25 दिसंबर को क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवा दिया । ऐसे अनेकों कारण हैं जिसके कारण उन्हें फंसाया गया है ।

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Saturday, November 21, 2020

गौहत्या पर रोक व गौपालन क्यों जरूरी है जानिए हिंदू, मुस्लिम, अंग्रेज विद्वानों से

21 नवम्बर 2029


गाय को पशु नही माना जाता है गाय को माता का दर्जा दिया है क्योंकि गाय माता में 33 करोड़ देवता बसते हैं। गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौझरन से असाध्य रोग भी मिट जाते हैं यह वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया है।

गाय माता के लिए विद्वानों के विचार...




जब तक गौमाता का रुधिर (रत) भूमि पर गिरता रहेगा, कोई धार्मिक, सामाजिक अनुष्ठान सफल नहीं होगा।
-श्री देवरहा बाबा

यदि हम संसार में हिन्दू कहलाकर जीवित रहना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें प्राणपण से गौरक्षा करनी होगी ।
-श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी

एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटा सकती है, जबकि उसके मांस से केवल  80 मांसाहारी एक समय अपना  पेट भर सकते हैं। गौवंश धर्म, संस्कृति व स्वाभिमान का प्रतीक रहा है ।
- स्वामी दयानंद सरस्वती

गाय का दूध रसायन, गाय का घी अमृत तथा मांस बीमारियों का घर है ।
- पैगंबर हजरत मोहम्मद साहेब

कुरान और बाइबिल, दोनों धार्मिक ग्रंथों का मैंने अध्ययन किया है । उन ग्रंथों के अनुसार अप्रत्यक्ष रूप से भी गौहत्या करना जघन्य पाप है ।
- आचार्य विनोबा भावे

गाय उन्नति और प्रसन्नता की जननी है । गाय कई प्रकार से अपनी जननी से भी श्रेष्ठ है ।
- महात्मा गाँधी

जब से गाय एवं अन्य पशुओं की निर्दयतापूर्वक हत्या प्रारंभ हुई है, तब से हम अपने बच्चों के भविष्य के प्रति चिंतित हो गये हैं ।
- श्री लाला लाजपत राय

चाहे मुझे मार डालो, पर गाय पर हाथ न उठाओ ।
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

भारत में गौ-पालन सनातन धर्म है ।
-प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद

भारतीय संविधान की पहली धारा संपूर्ण गौवंश- हत्या निषेध की होनी चाहिए ।
- पं. मदनमोहन मालवीयजी की अंतिम इच्छा

गौहत्या हेतु  मुस्लिम-आग्रह मूर्खता की पराकाष्ठा है ।
- सुलतान अहमद खान

मेरे विचार से भारत की वर्तमान परिस्थिति में गौहत्या-निषेध से बढकर कोई वैज्ञानिक तथा विवेकपूर्ण कृत्य नहीं है ।
- श्री जयप्रकाश नारायण

गौवंश के प्रति प्रशासन का अपमानजनक व्यवहार ब्रिटिश शासन के घृणित कार्य  के  रूप में जाना जायेगा ।
- लार्ड लिनलिथगो

गाय हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है ।
- श्री ज्ञानी जैलसिंह (भूतपूर्व राष्ट्रपति)

न तो कुरान और न अरब देशों की प्रथा ही गाय की कुर्बानी (हत्या) की इजाजत देती है ।
- हकीम अजमल खान

पवित्र गौमाता को राष्ट्रीय माता का दर्जा देकर उसकी रक्षा कानून और सरकार को करनी चाहिए जिसे सदा के लिए इस विषय पर शांति बनी रहेगी ।

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Friday, November 20, 2020

गोपाष्टमी पर्व क्यों मनाया जाता है?, उस दिन हमें क्या करना चाहिए?

 

20 नवम्बर 2020


 वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा-अर्चना आदि की जाती है वह दिन भारत में ‘गोपाष्टमी’ के नाम से जाना जाता है । इस साल गोपाष्टमी 22 नवम्बर को मनाई जाएगी।

गोपाष्टमी का इतिहास:-




गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है । गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था । गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा । तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया ।

उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ । तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की । कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा । वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था । उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है ।

कैसे मनायें गोपाष्टमी पर्व ?

इस साल 22 नवम्बर को गोपाष्टमी है उस दिन गायों को स्नान कराएं । तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें । गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं । इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है ।

गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है ।

भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है । विशेषकर गौशालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्त्व का उत्सव है । इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है । गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं । यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जानेवाला उत्सव है । इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं ।

विश्व के लिए वरदानरूप : गोपालन

देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है । जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते । पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है । ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं । गाय से बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है ।

देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापो का नाश होता है । गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं । ‘स्कंद पुराण’ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है ।

गायों को घास देने वाले का कल्याण होता है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं ।

विशेष : ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं ।
(स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित "गाय" साहित्य से)

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Thursday, November 19, 2020

जानिए अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस कब से और किसलिए मनाया जाता है?

19 नवम्बर 2020


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) की तरह हर साल 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस (International Men's Day) मनाया जाता है। हालांकि, जिस उत्साह और सपोर्ट के साथ महिला दिवस मनाया जाता है, उस तरह का एक्‍साइटमेंट व क्रेज पुरुष दिवस के लिए देखने को नहीं मिलता। यह दिन मुख्य रूप से पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न, हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है। आपको बता दें कि 80 देशों में 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है और इसे युनेस्को का भी सहयोग प्राप्त है।




ऐसे हुई पुरुष दिवस की शुरुआत:

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का इतिहास:

1923 में कई पुरुषों द्वारा 8 मार्च को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तर्ज पर अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाए जाने की मांग की गई थी। इसके चलते पुरुषों ने आंदोलन भी किया था। उस वक्त पुरुषों ने 23 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने की मांग की थी। इसके बाद 1968 में अमेरिकन जर्नलिस्ट जॉन पी. हैरिस ने एक आर्टिकल लिखते हुए कहा था कि सोवियत प्रणाली में संतुलन की कमी है। उन्होंने लिखा था कि सोवियत प्रणाली महिलाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाती है लेकिन पुरुषों के लिए वो किसी प्रकार का दिन नहीं मनाती। फिर 19 नवंबर 1999 में त्रिनिदाद और टोबैगो के लोगों द्वारा पहली बार अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया। डॉ. जीरोम तिलकसिंह ने जीवन में पुरुषों के योगदान को एक नाम देने का बीड़ा उठाया था। उनके पिता के बर्थडे के दिन विश्व पुरुष दिवस मनाया जाता है। धीरे धीरे दुनियाभर में इसे 19 नवंबर को मनाया जाने लगा।

भारत ने साल 2007 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया। इसके बाद से ही भारत में हर साल 19 नंवबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस का महत्व :
अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मुख्य रूप से पुरुष और लड़कों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने, लिंग संबंधों में सुधार, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और पुरुष रोल मॉडल्स को उजागर किए जाने के लिए मनाया जाता है।

InternationalMensDay की वेबसाइट के मुताबिक, दुनिया में महिलाओं से 3 गुना ज्यादा पुरुष सुसाइड करते हैं। 3 में से एक पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार है। महिलाओं से 4 से 5 साल पहले पुरुष की मौत होती है। महिलाओं से दोगुना पुरुष दिल की बीमारी के शिकार होते हैं। पुरुष दिवस पुरुषों की पहचान के सकारात्मक पहलुओं पर काम करता है।

पुरुष दिवस मनाने के मुख्य उद्देश्य :

- पुरुष रोल मॉडल को बढ़ावा देना।
- समाज, समुदाय, परिवार, विवाह, बच्चों की देखभाल और पर्यावरण के लिए पुरुषों के सकारात्मक योगदान का जश्न मनाना।
- पुरुषों के स्वास्थ्य और भलाई पर ध्यान केंद्रित करना; सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और आध्यात्मिक तौर पर।
- पुरुषों के खिलाफ भेदभाव को उजागर करना।
- लिंग संबंधों में सुधार और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।
- एक सुरक्षित, बेहतर दुनिया बनाना।

आज पुरुषों की दुर्दशा:

19 नवम्बर को विश्व पुरूष दिवस मनाया जाता है उनके अधिकारों की रक्षा के लिए पर जिस तरह आज देश मे झूठे दहेज व रेप केस की बाढ़ आ गई है उसको रोकना होगा नही तो निर्दोष पुरुष बलि चढ़ते रहेंगे।

महिलाओं कि सुरक्षा के लिए कानून जरूरी है परंतु आज साजिश या प्रतिशोध की भावनाओं से निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के आरोप लगाकर कानून का भयंकर दूरुपयोग हो रहा है।

न्यायाधीश निवेदिता शर्मा ने बताया कि पुरूषों के खिलाफ रेप के झूठे मामलों से बचाने के लिए ऐसे कानून बनाये जाये जो उन्हें बचा सके।

निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के नये कानूनों का व्यापक स्तर पर हो रहा इस्तेमाल आज समाज के लिए एक चिंतनीय विषय बन गया है । राष्ट्रहित में क्रांतिकारी पहल करनेवाली सुप्रतिष्ठित हस्तियों, संतों-महापुरुषों एवं समाज के आगेवानों के खिलाफ इन कानूनों का राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी ताकतों द्वारा कूटनीतिपूर्वक अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है । इसको रोकने के लिए कानून में संशोधन करना अत्यंत जरूरी है ।

बदला लेने के लिए अथवा पैसे एठने के लिए कुछ मनचली लड़कियां या गिरोह कार्य कर रहे है जो निर्दोष पुरुषों पर झूठे दहेज या रेप के आरोप लगा देते है इसके कारण निर्दोष पुरुषों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है, उसको जेल जाना पड़ता है, समय व पैसे की बर्बादी होती है और इज्जत चली जाती है वो अलग और उसके साथ उसकी माँ-बहन, पत्नी-बेटी भी जुड़ी होती है तो उनपर भी अत्याचार होता है क्योंकि घर मे उनका पालन पोषण करने वाला पुरुष होता है उसको झूठे केस में जेल भेज देंगे तो उन पर क्या बीतेगी?

सरकार को अब महिला आयोग की तरह पुरूष आयोग भी बनाना चाहिए, जो महिलाएं झूठे केस करती है उनको भी सजा का प्रावधान होना चाहिए नही तो एक के बाद एक निर्दोष पुरुष बलि चढ़ते ही रहेंगे।

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