Sunday, February 21, 2021

अल्लाह-हू-अकबर नारे के साथ PFI ने RSS को हथकड़ी लगाकर निकाली रैली

21 फरवरी 2021


कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने केरल में एक रैली निकाली। इस रैली में कुछ लोगों ने RSS की यूनिफॉर्म पहनी थी। परेड में आरएसएस की यूनिफार्म में शामिल लोगों को जंजीर से भी बाँधा गया था। इस रैली के कई वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह जैसे कई अन्य इस्लामी नारे लगाए गए।




रैली केरल के मलप्पुरम जिले के तेनियापलम शहर में आयोजित की गई थी और वीडियो में शहर के मुख्य वाणिज्यिक केंद्र चेलारी से गुजरने वाले जुलूस को दिखाया गया है।

जुलूस के दौरान कुछ नारे काफी भड़काऊ और उत्तेजक थे। इसमें आरएसएस के यूनिफार्म वाले सदस्यों को जंजीर में बँधा हुआ दिखाना भी शामिल है। रैली में आरएसएस की यूनिफार्म में लोगों के साथ कुछ लोग ब्रिटिश अधिकारियों की भी भेष-भूषा में थे। इन लोगों के हाथ में भी रस्सी बँधी और इसका दूसरा छोर लूँगी और जालीदार टोपी (skullcaps) पहने लोगों के हाथ में थी। आरएसएस और ब्रिटिश अधिकारियों का कपड़ा पहने लोग जालीदार टोपी और लूँगी पहने लोगों का अनुसरण कर रहे थे। उनके हाथ में लाठियाँ भी थी।

कुछ सूत्रों का कहना है कि पीएफआई की रैली आज ‘1921 मालाबार हिंदू नरसंहार’ या मोपला नरसंहार की शताब्दी को ‘मनाने’ के लिए की गई थी, जिसे इतिहास में 1921 के मालाबार विद्रोह के रूप में जाना जाता है। मोपला नरसंहार में तकरीबन 10,000 हिंदुओं को मौत के घाट उतारा गया। यह माना जाता है कि दंगों के मद्देनजर 1,00,000 हिंदुओं को केरल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है।

जंजीरों मे कौन हैं?

गजवा ए हिन्द की इस्लामिक भविष्यवाणी के अनुसार पूरी दुनिया में इस्लाम का शासन तभी सफल होगा जब हिन्द का शासक बेड़ियों मे जकड़ कर मुस्लिम खलीफा के सामने होगा। इसलिए भारत के शासक के प्रतीक RSS के गणवेश धारी व यूरोप (ब्रिटेन/फ्रांस) के शासक के प्रतीक लाल टोपी व लाल सफेद कपड़ों वालों बेड़ियों मे जकड़े दिखाया गया है। तुर्की का टेलीविज़न नाटक अरतुगरुल गाजी से प्रभावित होकर यह खलीफ़ा को दोबारा खड़ा करना चाहते हैं।  

मोपला द्वारा हिन्दू नरसंहार की स्मृतियाँ

1981 में डॉ मैरी विठ्ठिल Dr. Mary Vithithil केरल की मलयालम पत्रिका शब्दधाम नामक पत्रिका की सम्पादिका मालाबार गई और 1921 के हिंदू नरसंहार में भाग लेने वाले कई लोगों का साक्षात्कार लिया। उन्होंने श्रृंखला का शीर्षक दिया, "मोपला लाहला का एक उदासीन स्मरण। "... (“A nostalgic remembrance of the Mopallah Lahala”).

उन्ही दंगाइयों में से एक साक्षात्कार उन्होंने 81 साल के अब्दुल्ला कुट्टी के साथ किया था। ये उसके शब्द हैं ...।

“जब दंगे शुरू हुए तो हमारे बीच बहुत उत्साह था। रोज हम सड़कों पर खड़े होकर दंगाइयों के आने और उनके साथ आने का इंतजार करते। हम उनके साथ गए लेकिन हमने किसी को नहीं मारा दंगाइयों ने करिपथ इलम (ब्राह्मण घर) Karipath Illam( Brahmin House) पर हमला किया और सभी निवासियों को मार डाला। उन्होंने सारी दौलत ले ली और फिर उस इल्म को एक ऐसी जगह में बदल दिया, जहां असहाय हिंदुओं को लाया जाता था और जबरदस्ती धर्मांतरण या हत्या कर दी जाती थी।

हमने मांस पकाया और उन्हें बलपूर्वक खिलाया .. इस की गंध के कारण उनको कई दिन तक उल्टी हुई । इस तरह के लोगों को हमने लात मारकर गिरा दिया गया। कईयों ने कई दिन तक कुछ भी खाने से मना कर दिया।

जब हमने 25 हिंदुओं को इकट्ठा किया ... उन्हें कुएं के किनारे ले जाया गया। तब दीनवालों ने उनसे पूछा ... ईस्लाम कबूल करेंगे या आप इंग्लैंड जाना चाहते हैं (मतलब मौत)।

अधिकांश ने मौत चुनी और इसलिए उनकी गर्दन काटकर उन्हे कुएं में फेंक दिया । कई लोग तुरंत नहीं मरे, लेकिन घंटों और कभी-कभी दिनों तक तड़पते रहे।

हर रोज हम पालतू पशुओं को लाते और चावल के साथ पकाते ... हम अच्छी तरह से खाते थे और इसने हमें और अधिक और दंगों में सक्रिय कर दिया।

पकड़े गए इन हिंदुओं में से हमें एक आदिवासी लड़का मिला जिसने तीर और धनुष बनाया। वह परिवर्तित हो गया और जल्द ही दंगों में शामिल हो गया। उनके दीन का नाम अली रख दिया। ...

एक और शख्स जो हमसे जुड़ गया वो था बिरन कुट्टी। वह ब्रिटिश सेना से सेवानिवृत्त हुए थे और इसलिए उनके पास एक बंदूक थी। उन्होंने दंगों में इस बंदूक का इस्तेमाल किया।

जैसे-जैसे दंगे अधिक से अधिक हिंसक होते गए ... क्षेत्र के कुएं शवों से भर गए ... "

अब्दुल्ला कुट्टी ने इन सभी गंभीर घटनाओं को बहुत याद किया और उन्होंने कहा कि यह गोरखा रेजिमेंट के अंदर आने के बाद ही रुका है।

अधिकतम संख्या में हिंदुओं को टुकड़े टुकड़े करके या उनकी गर्दन काट कर कुएं मे फेंक दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह मारे गए हिंदुओं के कंकाल गर्मियों में आने पर कुएं में देखे जा सकते हैं और कुएं सूख जाते हैं।

यह याद रखना अच्छा होगा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट सरकारों ने बाद में इन दंगाइयों को 1980 के दशक में इन नरसंहार करने वाले मोपला मुस्लिमों को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन दी। दूसरी तरफ जो हिंदू सब कुछ खो चुके थे जीवन, सम्मान, परिवार, स्थिति, घर, संपत्ति और धन ऐसी किसी भी पेंशन से इनकार कर दिया गया था।
यह लेख मूलतः मलयालम पत्रिका के विवरण के आधार पर इंग्लिश मे था। अनुवाद किया है इंग्लिश से हिन्दी में अनुवादित।

अभी भी हिन्दू आपस में एकजुट नहीं  हुए तो क्या हाल होगा देख लीजिए।

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Saturday, February 20, 2021

राष्ट्र-संस्कृति के हित में और खिलाफ कार्य करने वालों का कैसा हाल है?

20 फरवरी 2021


जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला हुआ और हमारे 40 जवान शहीद हो गये , क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इतने बड़े कारनामे को अंजाम बिना किसी खुफिया जानकारी के नहीं दिया जा सकता ? इस साजिश को अंजाम तक पहुंचाने में अपने ही देश के लोगों का हाथ होने के कारण ही आतंकवादी सफल हो गए होंगे और देश में कुछ गद्दार लोग उनका समर्थन भी करते पाए गए। इसका मतलब साफ है कि वे देश विरोध में खड़े हैं ।




देश में ऐसा क्यों हो रहा है इसके पीछे का कारण आपको जानना जरूरी है...

आपने देखा होगा कि JNU में देश को टुकड़े करने के नारे लगे थे उसमें मुख्य आरोपी हैं उमर खालिद और कन्हैया कुमार, लेकिन वे आज भी बाहर आराम से घुम रहे हैं ।

दिल्ली के इमाम बुखारी पर देशद्रोह और बलात्कार जैसे संगीन आरोप हैं और 65 गैर जमानती वारंट निकले हैं पर उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा रही है  और इसका कारण बताया जा रहा है कि देश में दंगा हो जाएगा, क्या ये बचकानी बात नहीं है?

संजय दत्त को आतंकवादियों के हथियार घर में रखने के जुर्म में सजा हुई फिर भी बार-बार पेरोल मिलती रही और जल्दी जेल से बाहर कर दिया ।

सोनिया गांधी और राहुल गांधी आदि पर अरबों रुपयों के घोटाले के आरोप हैं पर उनकी गिरफ्तारी नहीं हो रही है ।

पत्रकार तरुण तेजपाल ने एक लड़की का बलात्कार किया पुख्ता सबूत होते हुए भी बाहर घूम रहा है ।

ईसाई धर्मगुरु बिशप फ्रैंको पर 13 बार बलात्कार का आरोप लगा, नन चीख-चीख के कह रही है फिर भी सबूत होते हुए भी उसे जमानत मिल गई ।

आतंकवादी अफजल को फांसी की सजा हुई, वो आतंकवादी है ये जानते हुए भी उसकी सजा रोकने के लिए आधी रात को न्यायालय खुलता है, क्या ये हास्यास्पद नहीं है ?

अब आपको तो पता चल ही गया होगा कि इन अपराधियों को कौन बढ़ावा दे रहा है । इस अपराधियों को खुली छूट देने के पीछे  सरकार, न्यायालय और मीडिया का हाथ ही आएगा, क्योंकि सरकार और न्यायालय का काम है उनको जेल भेजना और मीडिया का काम है इनके खिलाफ बोलना, लेकिन कलयुग का प्रभाव देखिए यहां सब इसके विपरीत हो रहा है ।

अब एक नज़र डालते हैं देशभक्तों की हालत पर..

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को 9 साल
डीजी वंजारा जी को 8 साल
स्वामी असीमानंद को 8 साल
कर्नल पुरोहित को 7 साल
बिना सबूत जेल में प्रताड़ित किया गया।
उड़ीसा के स्वामी लक्ष्मणानंद की तो हत्या तक कर दी गई ।

अभी वर्तमान में 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 7+ सालों के कारावास में 1 दिन भी जमानत नहीं दी गई क्योंकि वे 50 साल से सतत हिन्दू संस्कृति और देश हित कार्यों में लगे थे।

इतनी उम्र होने के कारण उनका स्वास्थ्य भी खराब होता जा रहा है और उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी को हार्ट अटैक आया था फिर भी जमानत नहीं दी गई । इससे तो साफ सिद्ध होता है कि सरकार, न्यायालय और मीडिया चाहती है कि आप देश के खिलाफ कार्य करो आपको जमानत मिल जायेगी, लेकिन आप हिन्दू संस्कृति और समाज व देश हित का कार्य करोगे तो आपको जेल भेजा जायेगा या हत्या कर दी जायेगी।

आइये जानते हैं क्या था आशारामजी बापू का अपराध ?

1). ईसाई मिशनरियों को खुली चुनौती दिया, लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया ।

2) . कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया ।

3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।

5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा देकर, तेजस्वी बनाया ।

6). पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया ।

7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया ।

8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया ।

9). लाखों-करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया ।

10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसन-मुक्त करया ।

11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए ।

12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ के "शंकराचार्य श्री #जयेंद्र सरस्वतीजी" बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया ।

कहीं इन महान कार्यों को करने के कारण तो उनको अंदर नहीं रखा गया है ? क्योंकि राष्ट्र विरोधी शक्तियां नहीं चाहती होंगी कि वे बाहर आये, अगर वे बाहर आएंगे तो उनकी दुकानें बंद होने लगेगी ।

सरकार और न्यायलय को चाहिए कि देश के गद्दारों को जेल भेजें और देशभक्तों को जेल से बाहर करें और मीडिया भी देशभक्तों का समर्थन करें विदेश का फंड लेकर उनके खिलाफ अभियान न चलायें ।

हिंदुस्तानियों को भी सावधान होना पड़ेगा, ऐसे महापुरुषों पर हो रहे अन्याय को रोकना होगा नहीं तो विधर्मी एक के बाद एक निर्दोष हिंदुनिष्ठ को जेल भिजवाकर हमारी संस्कृति को खत्म करके देश को  फिर से गुलाम बनाने की साज़िश में सफल हो जाएंगे ।

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Friday, February 19, 2021

वे चेहरे जिनकी लिंचिंग पर मीडिया शांत रहा क्योंकि ये शांतिप्रिय समुदाय से नहीं थे ।

19 फरवरी 2021


अखलाक की मौत पर राजनेताओं की भीड़ आपको याद है? परंतु निकिता तोमर, रचित चौधरी और रिंकू शर्मा के लिए किसी राजनेता के पास समय नहीं है। पालघर के सन्यासियों के लोमहर्षक हत्याकांड पर रविश कुमार 33 सेकण्ड तक बोला पर चोर तबरेज आलम के लिए 33 घंटे से अधिक। 'प्रेस्टीच्यूट' चुप है क्योंकि निकिता तोमर, रचित चौधरी और रिंकू शर्मा के हत्यारे सेक्युलर हैं और इनकी हत्या गंगा जमनी तहजीब को मजबूती देती है। मोमबत्ती और तख्ती गैंग भी पता नहीं कहाँ गायब है? 


  

कुछ दिन पहले कोर्ट ने पालघर के संतों के सभी हत्यारोपियों को छोड़ दिया। जिस घटना के वीडियो हैं उसमें सबूतों के अभाव के कारण सभी अपराधी छोड़ दिए जाएँ तो जाँच और न्याय व्यवस्था पर प्रश्न उठता ही है। 

जरा सोचिए, पालघर में संतों की लिंचिंग जैसी घटना अगर किसी समुदाय विशेष के या इसी गिरोह के किसी व्यक्ति के साथ घटी होती तो आज कितना हंगामा होता। इस हैवानियत के शिकार भगवा धारण किए साधु थे। तो फिर उनकी अंतरात्मा क्यों ही जागृत हो?

महाराष्ट्र के पालघर जिले के यह ऐसे कुछ इलाके हैं, जहाँ प्रायः कोंकणा, वारली और ठाकुर जनजाति के लोग रहते हैं। आधुनिक विकास से वंचित इन दूरदराज के गांवों में कई वर्षों से क्रिश्चियन मिशनरी और वामपंथियों ने अपना प्रभाव क्षेत्र बनाया हुआ है।

कुछ वर्षों में वामपंथी और मिशनरी प्रभावित जनजाति प्रदेशों में, जनजाति समुदाय के मतांतरित व्यक्तियों द्वारा अलग धार्मिक संहिता की माँग हो रही है। उन्हें बार-बार यह कह कर उकसाया जाता रहा है कि उनकी पहचान हिन्दुओं से अलग है।
लगभग 2 सप्ताह पहले बिजनौर के रचित की निर्मम हत्या हो या पिछले सप्ताह दिल्ली के रिंकू शर्मा की चाकूओं से की हत्या। सभी बता रहे हैं कि अपराधी कानून पुलिस और न्याय व्यवस्था से नहीं डरते। 

कुछ नाम देखिए --

1• विष्णु गोस्वामी– 16 मई 2019 को यूपी के गोंडा जिले में इमरान, तुफैल, रमज़ान और निज़ामुद्दीन ने विष्णु गोस्वामी को पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया। विष्णु की गलती बस ये थी कि वे अपने पिता के साथ लौटते हुए सड़क के किनारे लगे नल पर पानी पीने लगा था। बस इसी दौरान इन्होंने विष्णु व उसके पिता से विवाद बढ़ाया और बात खींचने पर उसे पेट्रोल डालकर आग के हवाले झोंक दिया।

2• वी.रामलिंगम– तमिलनाडु में दलितों के इलाके में धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया को चलता देख वी राम लिंगम ने पीएफआई के कुछ लोगों का विरोध किया था। जिसके बाद 7 फरवरी को पट्टाली मक्कल काची के नेता की घर से खींचकर हत्या कर दी गई । इस मामले में पुलिस ने पाँच लोगों को हिरासत में लिया था- निजाम अली, सरबुद्दीन, रिज़वान, मोहम्मद अज़रुद्दीन और मोहम्मद रैयाज़।

3• ध्रुव त्यागी– बेटी के साथ छेड़खानी का विरोध करने पर 51 वर्षीय ध्रुव त्यागी को सरेआम सबके सामने मोहम्मद आलम और जहाँगीर खान ने धारधार हथियारों से राष्ट्रीय राजधानी के मोती नगर में मौत के घाट उतारा था। इसके बाद इन हत्यारों ने ध्रुव त्यागी के बेटे पर भी हमला किया था। हालाँकि, उस समय पुलिस ने दोनों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया था। मगर बाद में पुलिस को पड़ताल से पता चला कि उस दिन उन्हें 11 लोगों ने घेर कर मारा था।

4• भरत यादव - मथुरा मे लस्सी बेचने वाले भरत यादव ने लस्सी के पैसे मांगे तो हानिफ, फहीम व 14 लोगों ने मिलकर इतना मारा कि 2 दिन बाद हॉस्पिटल मे मृत्यु हो गई। 

5• निकिता तोमर -बल्लभगढ़ की निकिता तोमर को सरे आम तौसीफ ने इसलिए गोलियों से भून दिया क्योंकि वह तौसीफ से निकाह नहीं करना चाहती थी। 

6• रतन लाल– 24-25 फरवरी को उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में वीरगति को प्राप्त हुए रतन लाल का नाम शायद ही आने वाले समय में कोई भूल पाए। एक ऐसा वीर जिसने दिल्ली को जलने से रोकने के लिए खुद को इस्लामिक भीड़ का बलि बना दिया। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स से पता चला था कि पत्थरबाजी के कारण नहीं बल्कि रतन लाल की मौत गोली लगने के कारण हुई थी।

7• प्रीति रेड्डी– हैदराबाद का वो मामला जिसने 2019 साल नवंबर महीने के खत्म होते-होते सबको झकझोर दिया। शमसाबाद के टोल प्लाजा के पास घटी घटना में मुख्य आरोपित मोहम्मद पाशा था। जिसने अपने अन्य तीन साथियों के साथ मिलकर उस महिला डॉक्टर का गैंगरेप किया। फिर उसे पेट्रोल डालकर जलने को छोड़ दिया।

ऐसी तो एक बहुत बड़ी लिस्ट है यहाँ तो आपको कुछ ही उदाहरण दिए हैं बस, इतना समझ लो कि यह लोग सनातन धर्म को मिटाने में लगे हैं। अगर नहीं संभले जाति -पाति में बंटते रहे, अपने धर्मगुरुओं की खिल्ली उड़ाते रहे तो ये गिद्ध आपको स्वाहा कर देंगे इसलिए सतर्क रहें।

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Thursday, February 18, 2021

भारत का कानून ऐसा की सुप्रीम कोर्ट के जज को करनी पड़ी टिप्पणी...

18 फरवरी 2021


हाल ही में भारत के भूतपूर्व मुख्य न्यायमूर्ती श्री रंजन गोगोई ने भारतीय न्यायव्यवस्था के संदर्भ में दयनीय किन्तु सत्य और सटिक टीप्पणी की है और इस बात का अनुभव हर वो व्यक्ति कर सकता है जिसका पाला भारत के न्यायालयों से पडा है । भारतीय नागरीक होने के नाते हमे अपने देश के संविधान पर गर्व है और इसके अंतर्गत बनाई गई व्यवस्था का हम सम्मान करते हैं । पर इसके साथ ही इस व्यवस्था में सुधार लाने एवं अधीक लोकोपयोगी बनाने के लिए इसका विश्लेषण करना और उचित सुधारात्मक कदम उठाना भी हम सभी नागरीकों का राष्ट्रीय कर्तव्य भी है ।




कानून में समानता का आदर्श कि कानून सबके लिए समान है चाहे गरीब हो चाहे अमीर , चाहे सामान्य व्यक्ती हो, चाहे राजनेता । पर अक्सर व्यवहार में न्यायालयों के अनेक निर्णयों में असमानता स्पष्टरुप से दिखाई देती है ।

बहु चर्चीत संत श्री आशारामजी बापू का केस ही देखा जाए तो सन् 2013 जिस समय उन पर आरोप लगा तो इतना तेजी से और विकृतरुप से मीडिया ट्रायल हुआ कि कानून की नजरों में जब सब समान हैं तो आशाराम बापू जैसे संत ही क्यों न हो उनकी भी तुरन्त गिरफ्तारी होनी चाहिए ।मीडिया ट्रायल के दबाव में या अन्य कोई भी राजनैतिक कारण रहे हों पुलीस ने भी उनकी गिरफ्तारी में पुरी तत्परता दिखाई । वर्षों तक ट्रायल चलता रहा पर इस दौरान ना ही उन्हे किसी भी तरह की जमानत तक नहीं मिली और कारागृह में रहते हुए ही सजा सुनाई गई । माननीय जोधपुर उच्च न्यायालय में सह आरोपियों की सजा पर स्थगन का आदेश पारित हो गया पर आशाराम बापूजी के केस में आशारामजी बापू की सजा स्थगित करने का कोई आदेश पारित नहीं हो पाया । यहाँ तक कि उनके अति निकटवर्ती परीजन के देहांत पर या उनकी धर्म पत्नी की गंभीर बिमारी के बावजूद भी उन्हें कुछ दिन के लिए अंतरिम जमानत/पेरोल भी नहीं मिली । इन परिस्थितियों में एक प्रश्न सहसा मन में उठता है कि यदि कानून की नजरों में सब समान है, यदि बापू आशारामजी जैसे संत की गिरफ्तारी के समय में एक सामान्य व्यक्ती और एक अंतराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त संत के बीच में कोई भेदभाव नहीं रखा गया तो फिर जमानत देते समय, यहाँ तक कि सजा के बाद कानूनी रुप से एक गुनहगार कैदी को मिलनेवाले लाभों से भी उन्हें वंचित क्यों किया जा रहा है ।

ऐसे अनेक उदाहरण है कि चाहे कोई प्रसिद्ध फिल्म अभिनेतओं हो कोई राजनेता हो जिन्हें राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध किये गये अपराधों में सजा सुनाई गई हो हजारो निर्दोष लोगों की हत्या में शामिल होने का जिनके ऊपर आरोप हो उन्हे भी एक सजायाफता कैदी के रुप में कानून में दिये गये लाभ या सुविधा उपलब्ध काराई गयी तो बापू आशारामजी जैसे संत जिन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के उत्थान में न्योछावर कर दिया देश के हर वर्ग, धर्म, मत, पंथ, मजहब के करोडो लोग बिना किसी भेदभाव के उनके सत्संग-प्रवचनों और सेवाकार्यों से वर्षों तक लाभान्वित होते रहें तो उन्हें उन लाभों से वंचित क्यों किया जा रहा है ।

आतंकवादियों, भ्रष्टाचारीयों, हत्यारों और देशद्रोहीयों के मानवाधिकारों की चिंता करने वाले इस देश में ऐसे महान संत के मानवाधिकारों की रक्षा यदि समय रहते न्यायपालिका, शासन-प्रशासन और ये जागरुक समाज नहीं कर पाया तो आनेवाली पीढी हमें कभी माफ नहीं करेगी । आदरणीय श्री रंजन गोगोई की टीप्पणी को गंभीरता से लेते हुए अब समय है सत्तारुढ दलों एवं न्यायपालिका में बैठे सत्यप्रेमी न्यायाधीशों द्वारा आत्ममंथन करने का कि समानता के सिद्धांत का आदर्श बतानेवाली हमारी न्याय व्यवस्था में ऐसी असमानता क्यों दिखाई दे रही है ?
-विकास खेमका

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Wednesday, February 17, 2021

इतना प्रताड़ित तो किसी आतंकवादी को भी नहीं किया होगा...

17 फरवरी 2021


आपने देखा होगा कि किसी आतंकवादी की गिरफ्तारी होती है तो तथाकथित बुद्धिजीवी व मानवाधिकार वाले उसकी रिहाई की मांग करने लग जाते हैं, सरकार भी उनको दामाद की तरह रखती है बिरयानी खिलाने आदि वीआईपी ट्रीटमेंट देती है, अच्छे हॉस्पिटल में इलाज करवाती है, न्यायालय जमानत भी दे देती हैं। लेकिन वही राष्ट्रवादी , हिंदूनिष्ठ झूठे केस में जेल में जाते हैं तो न मानवाधिकार वाले आते हैं और ना ही सरकार कोई राहत देती है और नही न्यायालय जमानत देती है।




आपको बता दें कि 85 वर्षीय बुजुर्ग संत आशारामजी बापू को 16 फरवरी की रात को तबियत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन भर्ती कराते समय एक व्हीलचेयर भी उनको नहीं दी गई दूसरी तरफ इतनी उम्र हो गई है फिर भी इलाज के लिए उनको जमानत तक नहीं मिल रही है जबकि उनके पास निर्दोष होने और उनके खिलाफ साजिस के तहत झूठे केस में फंसाने के कई पुख्ता प्रमाण हैं फिर भी जमानत नहीं मिलना कितना बड़ा अन्याय है।

दूसरी और ड्रग्स मामले में रिया चक्रवर्ती को जमानत दे दी, नाबालिग रेप केस में सपा नेता गायत्री प्रजापति को जमानत मिल गई थी, करोड़ों रूपये के घोटाले करने वाले लालू प्रसाद यादव को जमानत मिल गई थी, देशभर में कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को जमानत मिल गई, देश के 'टुकड़े' करने का नारा लगाने वाले उमर खालिद और कन्हैया कुमार को जमानत मिल गई, बलात्कार आरोपी बिशप फ्रेंको व तरुण तेजपाल को जमानत मिल गई , 65 गैर जमानती वारंट होने के बाद भी दिल्ली के इमाम बुखारी को आज तक गिरफ्तार नहीं कर पाए और यही न्यायालय राष्ट्र और भारतीय संस्कृति के उत्थान कार्य करने वाले 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 7 साल से आज तक जमानत नहीं दे पाई ।

क्योंकि आशाराम बापू ने बड़े बड़े अपराध किये हैं और वे अपराध हैं जैसे कि

1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया  ।

2). कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।

3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।

5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया ।

6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया  ।

7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया  ।

8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया  ।

9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया  ।

10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा करोड़ो लोगों को व्यसन-मुक्त कराया  ।

11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए  ।

12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी" बाबा रामदेव, मोरारी बापू, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया  ।

अब आप ही सोचिए कि ये अपराध है कि समाज, राष्ट्र , संस्कृति व सनातन धर्म की सेवा है? फिर भी उनको जमानत नहीं मिलना एक बड़ा प्रश्न हो रहा है।

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Tuesday, February 16, 2021

हिन्दू युवा तेजी से नास्तिक व धर्मविमुख क्यों हो रहे हैं?

16 फरवरी 2021


हमारे देश के हिन्दू युवा बड़ी तेजी से नास्तिक क्यों बनते जा रहे हैं ? इसका मुख्य कारण क्या है ? उनकी हिन्दू धर्म की प्रगति में क्यों कोई विशेष रूचि नहीं दिखती ?




यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारत के महानगरों से लेकर छोटे गांवों तक यह समस्या दिख रही है। इस प्रश्न के उत्तर में हिन्दू समाज का हित छिपा है। अगर इसका समाधान किया जाये तो भारत भूमि को संसार का आध्यात्मिक गुरु बनने से दोबारा कोई नहीं रोक सकता।

वैसे तो हिन्दू युवाओं के नास्तिक बनने व धर्मविमुख बनने के अनेक कारण है पर मुख्य पांच कारण है जो आपको बता रहे हैं-

1. हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था का अभाव और उनकी उपेक्षा

हिन्दू समाज के युवा पाश्चात्य संस्कृति के आकर्षण के कारण अपने ही हिन्दू धर्म गुरुओं के प्रति आस्था नहीं रख पाते हैं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं इसके कारण युवाओं में ईसाई धर्मान्तरण, लव जिहाद, नशा, भोगवाद, चरित्रहीनता, नास्तिकता, अपने धर्मग्रंथों के प्रति अरुचि आदि समस्याएं दिख रही हैं । इन समस्याओं के निवारण पर कई हिंदू धर्मगुरु ध्यान भी देते हैं। पर युवा उनकी तरफ ध्यान नही देते हैं । कुछ धर्मगुरुओं की तो हिंदू धर्म के बचाव के लिए कोई योजना बनी हुई नहीं होती जो दिशा निर्देश कर सके लेकिन कोई धर्मगुरु दिशा निर्देश करते है तो उनको षड़यंत्र तहत जेल भेजा जाता है जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, हिंदू संत आसाराम बापू, स्वामी असीमानंद आदि...।

2. दूसरा कारण मीडिया में हिन्दू धर्मगुरुओं को नकारात्मक रूप से प्रदर्शित करना है-

मीडिया की भूमिका भी इस समस्या को बढ़ाने में बहुत हद तक जिम्मेदार है। संत आशाराम बापू, शंकराचार्यजी को जेल भेजना, नित्यानंदजी की अश्लील सीडी, निर्मल बाबा और राधे माँ जैसे धर्मगुरुओं को मीडिया प्राइम टाइम, ब्रेकिंग न्यूज़, पैनल डिबेट आदि में घंटों, बार-बार, अनेक दिनों तक दिखाता है । जबकि मुस्लिम मौलवियों और ईसाई पादरियों के मदरसे में यौन शोषण, बलात्कार, मुस्लिम कब्रों पर अन्धविश्वास, चर्च में समलैंगिकता एवं ननों का शोषण, प्रार्थना से चंगाई आदि अन्धविश्वास आदि पर कभी कोई चर्चा नहीं दिखाता। इसके ठीक विपरीत मीडिया वाले ईसाई पादरियों को शांत, समझदार, शिक्षित, बुद्धिजीवी के रूप में प्रदर्शित करते हैं। मुस्लिम मौलवियों को शांति का दूत और मानवता का पैगाम देने वाले के रूप में मीडिया में दिखाया जाता है। मीडिया के इस दोहरे मापदंड के कारण हिन्दू युवाओं में हिन्दू धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति एक अरुचि की भावना बढ़ने लगती हैं।

ईसाई और मुस्लिम धर्म के प्रति उनके मन में श्रद्धाभाव पनपने लगता हैं। इसका दूरगामी परिणाम अत्यंत चिंताजनक है। हिन्दू युवा आज गौरक्षा, संस्कृत, वेद, धर्मान्तरण जैसे विषयों पर सकल हिन्दू समाज के साथ खड़े नहीं दीखते। क्योंकि उनकी सोच विकृत हो चुकी है। वे केवल नाममात्र के हिन्दू बचे हैं। हिन्दू समाज जब भी विधर्मियों के विरोध में कोई कदम उठाता है तो हिन्दू परिवारों के युवा हिंदुओं का साथ देने के स्थान पर विधर्मियों के साथ अधिक खड़े दिखाई देते हैं। हम उन्हें साम्यवादी, नास्तिक, भोगवादी, cool dude कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते है। मगर यह बहुत विकराल समस्या है जो तेजी से बढ़ रही है। इस समस्या को खाद देने का कार्य निश्चित रूप से मीडिया ने किया है।

3. हिन्दू विरोधी ताकतों द्वारा प्रचंड प्रचार है-

भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश होगा जहाँ पर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुओं से अधिक अधिकार अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों और ईसाईयों को मिले हुए हैं। इसका मुख्य कारण जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद आदि के नाम पर आपस में लड़ना है। इस आपसी मतभेद का फायदा अन्य लोग उठाते है। एक मुश्त वोट डाल कर पहले सत्ता को अपना पक्षधर बनाया गया। फिर अपने हित में सरकारी नियम बनाये गए। इस सुनियोजित सोच का परिणाम यह निकला कि सरकारी तंत्र से लेकर अन्य क्षेत्रों में विधर्मियों को मनाने , उनकी उचित-अनुचित मांगों को मानने की एक प्रकार से होड़ ही लग गई। परिणाम की हिंदुओं के देश में हिंदुओंके अराध्य, परंपरा, मान्यताओं पर तो कोई भी टिका-टिप्पणी आसानी से कर सकता है। जबकि अन्य विधर्मियों पर कोई टिप्पणी कर दे तो उसे सजा देने के लिए सभी संगठित हो जाते है। इस संगठित शक्ति, विदेशी पैसे के बल पर हिंदुओं के प्रति नकारात्मक माहौल देश में बनाया जा रहा है। ईसाई धर्मान्तरण सही और शुद्धि/घर वापसी को गलत बताया जा रहा है। मांसाहार को सही और गौरक्षा को गलत बताया जा रहा है। बाइबिल/क़ुरान को सही और वेद-गीता को पुरानी सोच बताया जा रहा है। विदेशी आक्रांता गौरी-गजनी को महान और आर्यों को विदेशी बताया जा रहा है। इस षड़यंत्र का मुख्य उद्देश्य हिन्दू युवाओं को भ्रमित करना और नास्तिक बनाना है। इससे हिन्दू युवाओं अपने प्राचीन इतिहास पर गर्व करने के स्थान पर शर्म करने लगे। ऐसा उन्हें प्रतीत करवाया जाता है। हिन्दू समाज के विरुद्ध इस प्रचंड प्रचार के प्रतिकार में हिंदुओं के पास न कोई योजना है और न कोई नीति है।

4. हिंदुओं में संगठन का अभाव-

हिन्दू समाज में संगठन का अभाव होना एक बड़ी समस्या है। इसका मुख्य कारण एक धार्मिक ग्रन्थ वेद, एक भाषा हिंदी, एक संस्कृति वैदिक संस्कृति और एक अराध्य ईश्वर में विश्वास न होना है। जब तक हिन्दू समाज इन विषयों पर एक नहीं होगा तब तक एकता स्थापित नहीं हो सकती। यही संगठन के अभाव का मूल कारण है। स्वामी दयानंद ने अपने अनुभव से भारत का भ्रमण कर हिंदुओं की धार्मिक अवनति की समस्या के मूल बीमारी की पहचान की और उस बीमारी की चिकित्सा भी बताई। मगर हिन्दू समाज उनकी बात को अपनाने के स्थान पर एक नासमझ बालक के समान उन्हीं का विरोध करने लग गया। इसका परिणाम अत्यंत वीभित्स निकला। मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि जिन हिंदुओं के पूर्वजों ने मुस्लिम आक्रांताओं को लड़ते हुए युद्ध में यमलोक पहुँचा दिया था उन्हीं वीर पूर्वजों की मूर्ख संतान आज अपनी कायरता का प्रदर्शन उन्हीं मुसलमानों की कब्रों पर सर पटक कर करती हैं। राम और कृष्ण की नामलेवा संतान आज उन्हें छोड़कर कब्रों पर सर पटकती है। चमत्कार की कुछ काल्पनिक कहानियाँऔर मीडिया मार्केटिंग के अतिरिक्त कब्रो में कुछ नहीं दिखता । मगर हिन्दू है कि मूर्खों के समान भेड़ के पीछे भेड़ के रूप में उसके पीछे चले जाते हैं। जो विचारशील हिन्दू है वो इस मूर्खता को देखकर नास्तिक हो जाते हैं। जो अन्धविश्वासी हिन्दू है वो भीड़ में शामिल होकर भेड़ बन जाते हैं। मगर हिंदुओं को संगठित करने और हिन्दू समाज के समक्ष विकराल हो रही समस्यों को सुलझाने में उनकी कोई रूचि नहीं है। अगर हिन्दू समाज संगठित होता तो हिन्दू युवाओं को ऐसी मूर्खता करने से रोकता। मगर संगठन के अभाव में समस्या ऐसे की ऐसी बनी रही।

5. हिन्दुओं में अपने ही धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के प्रति बेरुखी-

हिन्दू समाज के युवाओं को वेद आदि धर्म शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत दूर की बात है । वाल्मीकि रामायण और महाभारत तक का स्वाध्याय उसे नहीं हैं। धर्म क्या है? धर्म के लक्षण क्या है? वेदों का पढ़ना क्यों आवश्यक है? वैदिक धर्म क्यों सर्वश्रेष्ठ है? हमारा प्राचीन महान इतिहास क्या था? हम विश्वगुरु क्यों थे?  इस्लामिक आक्रांताओं और ईसाई मिशनरियों ने हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत को कैसे बर्बाद किया। हमारे हिन्दू युवा कुछ नहीं जानते। न ही उनकी यह जानने में रूचि हैं। अगर वह पढ़ते भी है तो अंग्रेजी विदेशी लेखकों के मिथक उपन्यास (Fiction Novel) जिनमें केवल मात्र भ्रामक जानकारी के कुछ नहीं होता। स्वाध्याय के प्रति इस बेरुखी को दूर करने के लिए एक मुहीम चलनी चाहिए। ताकि धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करने की प्रवृति बढ़े। हर हिन्दू मंदिर, मठ आदि में छुट्टियों में 1 से 2 घंटों का स्वाध्याय शिविर अवश्य लगना चाहिए। ताकि हिन्दू युवाओं को स्वाध्याय के लिए प्रेरित किया जा सके।

आज का हिन्दू युवा बॉलीवुड, चलचित्रों, इंटरनेट आदि  द्वारा तेजी से धर्मविमुख हो रहा है इसके लिए माता-पिता को बचपन से ही धर्म की शिक्षा देनी चाहिए और कॉन्वेंट जैसे स्कूलों में नही पढ़ाकर गुरूकुलों में या  किसी ऐसे स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहिए जहां धर्म का ज्ञान मिलता हो, नही तो बच्चों में संस्कार नही होंगे तो न आपकी सेवा कर पाएंगे और नही समाज और देश के लिए कुछ कर पाएंगे। अतः अपने बच्चों एवं आसपास बच्चों को अच्छे संस्कार जरूर दे।

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Monday, February 15, 2021

माँ सरस्वती का प्रकटस्थल पर आज भी कब्जा किया हुआ है, पढ़ी जाती है नमाज

15 फरवरी 2021


इस्लामी आक्रमणकारियों ने जिस प्रकार से अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि, मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी के विश्वनाथ मंदिर को बलपूर्वक ले लिया था , उसी प्रकार का प्रयत्न वे धार (मध्यप्रदेश) की भोजशाला के विषय में कर रहे हैं । भोजशाला, अर्थात विद्या की देवी सरस्वती का प्रकटस्थल ! अपने अनेक प्रकार की विद्याओं का जनक भारतीय विश्वविद्यालय ! महापराक्रमी राजा भोज की तपोभूमि ! इस सरस्वतीदेवी के मंदिर में आज प्रत्येक शुक्रवार को ‘नमाज’ पढ़ी जाती है । हजारों वर्ष से चल रहा इस भोजशाला मुक्ति का संघर्ष आज भी जारी है । अधर्मी शासन मतों की तुष्टीकरण राजनीति से प्रेरित होकर हिन्दुओं के आस्था केंद्रों की उपेक्षा कर रहा है ।




सरस्वती देवी की प्रकटस्थली, अर्थात वाग्देवी मंदिर का इतिहास:

‘पूर्वकाल में मालवा राज्यके (वर्तमान मध्यप्रदेश के) परमार वंश में महापराक्रमी और महाज्ञानी राजा भोज (शासनकाल वर्ष 1010 से 1065) हुए । इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सरस्वती देवी ने उन्हें दर्शन दिए थे ।  तत्पश्चात, राजा भोज ने सुप्रसिद्ध मूर्तिकार मनथल द्वारा संगमरमर पत्थर से देवी की शांतमुद्रा में मनमोहक मूर्ति बनवाई । राजा भोज को जिस स्थानपर वाग्देवी के अनेक समय दर्शन हुए थे, उसी स्थानपर इस मूर्ति की स्थापना की गई।

केवल सरस्वती देवी प्रकटस्थली नहीं, अपितु भारत का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय !

राजा भोज ने ‘सरस्वतीदेवी की उपासना’, ‘हिन्दू जीवनदर्शन’ एवं ‘संस्कृत प्रसार’के लिए वर्ष 1034 में धार में भोजशाला का निर्माण किया । इस भोजशाला में भारतका सबसे बडा विश्वविद्यालय और विश्व  प्रथम संस्कृत अध्ययन केंद्र बना । इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश के 1 हजार 400 विद्वानों ने अध्यात्म, राजनीति, आयुर्वेद चिकित्सा, व्याकरण, ज्योतिष, कला, नाट्य, संगीत, योग, दर्शन इत्यादि विषयों का ज्ञान प्राप्त किया था । इसके अतिरिक्त इस विद्यालय में वायुयान, जलयान, चित्रकशास्त्र (कैमरा), स्वयंचलित यंत्र इत्यादि विषयों में भी सफल प्रयोग किए गए थे । एक हजार वर्षपूर्व राजा भोजके किए हुए कार्य को भारतीय शासकों ने दुर्लक्षित किया था, किंतु आज भी विश्व उसे आश्चर्यभरी दृष्टिसे देख रहा है । इस विषय में संसार के 28 विश्वविद्यालयों में अध्ययन और प्रयोग किए जा रहे हैं ।

राजा भोज के राज्य की अखंडता पर कपट से आघात करनेवाला कमाल मौलाना’

राजा भोज के असामान्य कर्तृत्व के कारण उनके राज्यपर आक्रमण करने का साहस किसी को नहीं होता था । उनकी मृत्यु के लगभग 200 वर्ष पश्चात, इस राज्य की अखंडता पर पहला आघात किया सूफी संत के रूप में घूमनेवाले कमाल मौलाना ने ! वर्ष 1269 में मालवा में आए इस मौलाना ने यहां 36 वर्ष रहकर राज्य के तथा यहां के सर्व गुप्त मार्गों की जानकारी एकत्र की । इस काल में उसने इस्लाम का प्रचार, तंत्र-मंत्र, जादूटोना, गंडा-डोरा का योजनाबद्ध प्रयोग कर सैकडों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया । इस स्थिति का अनुचित लाभ उठाते हुए अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा राज्य पर आक्रमण कर दिया ।

वाग्देवी की मूर्ति का अंगभंग करनेवाला अलाउद्दीन खिलजी 

अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1305 में मालवा राज्यपर आक्रमण कर दिया । यह आक्रमण रोकने के लिए राजा महलकदेव और सेनापति गोगादेव जी-जान से लड़े । भोजशाला के आचार्यों और विद्यार्थियों ने भी खिलजी की सेना का प्रतिकार किया । किंतु, इस युद्ध में वे पराजित हुए । खिलजी ने 1200 विद्वानों को बंदी बनाकर इनके समक्ष प्रस्ताव रखा -‘इस्लाम धर्म अपना लो’ अथवा ‘मृत्यु’के लिए तैयार हो जाओ । उसने, मुसलमान बनना अस्वीकार करनेवालों की हत्या कर उनके शवों को भोजशाला के यज्ञकुंड में फेंक दिया तथा जिन लोगों ने मृत्युसे भयभीत होकर मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया, ऐसे कुछ मुट्ठी भर लोगों को विष्ठा स्वच्छ करने के कार्य में लगा दिया । खिलजी ने भोजशाला सहित हिन्दुओं के अनेक मानबिंदु स्थानों को उद्ध्वस्त किया । उसने वाग्देवी की मूर्ति का भी अंग-भंग किया तथा मालवा राज्य में इस्लामी शासन आरंभ किया ।

श्री सरस्वती मंदिर के कुछ भाग का मस्जिद में रूपांतर

खिलजी के पश्चात गोरी ने वर्ष 1401 में मालवा राज्य को अपना राज्य घोषित किया तथा सरस्वती मंदिर का कुछ भाग मस्जिद में रूपांतरित कर दिया ।

भोजशाला को मस्जिद में बनाने के लिए उसे खंडित करने का प्रयत्न

गोरी के पश्चात महमूदशाह खिलजी ने वर्ष 1514 में भोजशाला को खंडित कर वहां मस्जिद बनाने का प्रयत्न किया । महमूदशाह के इस कुकृत्य का राजपूत सरदार मेदनीराय ने प्रबल प्रत्युत्तर दिया । इस प्रत्युत्तर की विशेषता यह थी कि महमूदशाह को चुनौती देने के लिए सरदार मेदनीराय ने मालवा राज्य के वनवासियों को प्रेरित किया । धर्मयुद्ध की प्रेरणा से संगठित वनवासियों की सहायता से मेदनीराय ने महमूदशाह के हजारों सैनिकों को मार डाला तथा 900 सैनिकों को बंदी बना लिया । अंततः, इस पराजय से भयभीत महमूदशाह ने गुजरात पलायन किया ।

महमूदशाह तो भाग गया; किंतु कमाल मौलाना की मृत्यु के 204 वर्ष पश्चात उसने अपने शासनकाल में, भोजशाला की बाहरी भूमिपर अवैध अधिकार कर वहां पर उसकी कब्र बना दी । यह कब्र आज भी हिन्दुओं के लिए सिरदर्द बनी हुई है । आज इस कब्र के आधारपर देवी सरस्वती के मंदिर को कमाल मौलाना की मस्जिद बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ।  प्रत्यक्ष में वर्ष 1310 में कमाल मौलाना की मृत्यु के पश्चात उसे कर्णावती (अहमदाबाद), गुजरात में दफना दिया गया ।

हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर मंदिर को मस्जिद में रूपांतरित

सैकड़ों वर्ष से आरंभ भोजशाला पर आक्रमण के इतिहास में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात, 12.5.1997 को एक नया मोड़ आया, जब कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक अध्यादेश जारी कर अपना हिन्दूद्वेष प्रकट किया । इस अध्यादेश के अनुसार भोजशालाकी सर्व प्रतिमाओं को हटा दिया गया । वहां हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया गया । दिग्विजय सिंह का हिन्दूद्वेष इतने पर ही नहीं थमा, उन्होंने भोजशाला को मस्जिद होने की मान्यता दे डाली । उन्होंने, भोजशाला की रक्षा हेतु पराक्रमी हिन्दू राजाओं के और सैनिकों के बलिदान का अनादर करते हुए भोजशाला मुसलमानों को दे डाली । भोजशाला में नमाज पढने की अनुमति देकर उसे भ्रष्ट भी किया गया । इस अध्यादेश से पूर्व भोजशाला में हिन्दुओं की पूजा-अर्चनापर प्रतिबंध था; परंतु प्रवेश की अनुमति थी । यह अनुमति भी इस अध्यादेशद्वारा समाप्त कर दी गई । हिन्दुओं को वर्ष में केवल एक दिन वसंत पंचमीपर विविध प्रतिबंधात्मक नियमों के साथ भोजशाला में प्रवेश की अनुमति दी गई ।

वर्ष 2002 में तो हिन्दुओं को वर्ष में एक दिन दी गई भोजशाला प्रवेश की अनुमति में भी बाधा डाली गई । इस वर्ष की वसंत पंचमी समीप आनेपर कमाल मौलाना के जन्मदिन को निमित्त बनाकर भोजशाला में नमाज, कव्वाली और लंगर का आयोजन किया गया । तत्कालीन कांग्रेसी शासनने भी हिन्दुओंपर पहलेसे अधिक कडा नियम बनाकर धर्मांधों को  प्रोत्साहित किया । इस परिवर्तित नियम के अनुसार वसंत पंचमी के दिन हिन्दुओं को दिनके 1 बजेतक ही पूजा-अर्चना करने की तथा मंदिर में अकेले प्रवेश करने की अनुमति दी गई । सबके लिए एक ढोलक, एक ध्वनिक्षेपक और ध्वज भी एक होगा । दोपहर 2 बजे के पश्चात मुसलमानोंका कव्वाली और लंगर का कार्यक्रम आरंभ होगा, यह आदेश प्रशासन ने जारी किया ।

संघर्ष करनेवाले हिन्दुओं पर किए गए अगणित अत्याचार

हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन करनेवाले प्रशासनिक आदेशको अमान्य कर हजारों हिन्दू भोजशाला में पूजा करने आए । उस दिन राजकीय अवकाश होनेके कारण हिन्दुओंको अपनी न्यायोचित मांगोंके लिए भी कोई मंच उपलब्ध नहीं था । हिन्दूद्वेषी शासकोंके आदेशसे पुलिस कर्मियोंने यज्ञ करने भोजशालामें जानेवाले युगलोंको रोका, गालियां दी तथा महिलाओंके हाथसे पूजाकी थाली छीनकर फेंक दी । हिन्दुओंको धक्के मारकर पीछे ढकेला तथा बिना कोई पूर्वसूचना दिए श्रद्धालुओंपर लाठी प्रहार किया । यह सब सहकर भी हिन्दुओंने कठोर विरोध करते हुए भोजशालामें यज्ञ और सरस्वतीदेवीकी महाआरती पूर्ण की । हिन्दुओंके इस सफल कृत्यसे क्रुद्ध कांग्रेसी राज्यशासनने देवीकी पूजा करनेके अपराधमें 40 कार्यकर्ताओं पर पुलिसकी दैनंदिनीमें असत्य आरोप प्रविष्ट किए । शासनकी इस दमननीतिका प्रत्युत्तर देनेके लिए हजारों लोगोंने धार जनपदके सर्व पुलिस थानोंका घेराव कर अपने आपको बंदी बनवाया । तत्पश्चात, सत्याग्रहके रूपमें प्रत्येक मंगलवारको भोजशालाके बाहर मार्गमें आकर ‘सरस्वती वंदना’ और ‘हनुमान चालीसा पढना’ प्रारंभ किया गया ।

संगठन खड़ा करनेवाले धर्माभिमानी हिन्दू

कांग्रेसी शासन की दमननीति का अनुभव करनेवाले हिन्दुओं ने किसी भी परिस्थितिमें वर्ष 2003 तक भोजशाला हिन्दुओंके लिए मुक्त करनेके उद्देश्यसे व्यापक जनजागरण कर ‘धर्मरक्षक संगम’ सभा आयोजित करनेका निश्चय किया । इन सभाओंको व्यापक जन समर्थन मिलता देखकर घबराए दिग्विजय सिंह शासनने ‘धर्मरक्षक संगम’ को विफल बनानेके लिए प्रयत्न आरंभ कर दिए । कांग्रेसी शासनने अत्यंत निम्नस्तरपर जाकर निम्नानुसार दुष्टताका हथकंडा अपनाकर हिन्दुओंके संगठनमें बाधाएं उपस्थित करनेका प्रयत्न किया।

1 शासन ने, इस कार्यक्रम के प्रचार के लिए चिपकाए गए 20 हजार भित्ति-पत्रकोंको पुलिसकर्मियोंके हाथों फडवा दिया अथवा उनपर कोलतार पोतवा दिया ।

2. वसंत पंचमी समीप आनेपर ही राज्य शासनने ‘ग्राम संपर्क  अभियान’ आरंभ कर उसमें 19 हजार हिन्दू राजकीय सेवकों को नियुक्त किया ।

3. ‘धर्मरक्षक संगमके कार्यक्रममें उपद्रव एवं बमविस्फोट होंगे’,यह भय फैलाकर लोगों को कार्यक्रम में जाने से रोका ।

4. वसंत पंचमीके केवल पांच दिन पूर्व धारस्थित सर्व धर्मशाला, पाठशाला, ‘लॉज’ और बसगाडियोंको अधिगृहीत कर लिया गया तथा निजी वाहनवालोंको धमकाया ।

5. गांवोंमें 5 हजार सैनिकोंका पथसंचलन (परेड) करवाकर भयका वातावरण उत्पन्न किया ।

6. वसंत पंचमीके दिन राज्यशासनने 16 केंद्रोंमें 32 विभागोंसे संबंधित जनसमस्याओंका निवारण करनेके लिए शिविरोंका आयोजन किया । इस शिविरमें प्रस्तुत की गई सभी समस्याओंका निवारण तुरंत किया, जिन्हें पहले करनेमें अनेक फेरे मारने पडते थे । इसी प्रकार, इस शिविरमें हजारों लोगोंको निःशुल्क भोजन दिया ।

कांग्रेसी शासन के उपर्युक्त हिंदुद्रोही षड्यंत्र को विफल करते हुए 1 लाख से अधिक हिन्दू धर्माभिमानी ‘धर्मरक्षा संगम’में उपस्थित हुए थे । इस सभामें शासनको चेतावनी दी गई कि वह भोजशालाको हिन्दुओंके लिए प्रतिबंधमुक्त करे । इस आंदोलनकी तीव्रता देखकर तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन और सांस्कृतिक मंत्री श्री. जगमोहनने भोजशालाको प्रतिबंधमुक्त करनेके लिए मध्यप्रदेशके मुख्यमंत्रीको पत्र लिखा था । तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंहने इस पत्र को कूड़े के डिब्बे में फेकते हुए भोजशालाको कमाल मौलानाकी मस्जिद घोषित कर वहां पूजा करने जानेवाले हिन्दुओंको कारागृहमें डाल दिया तथा उन्हें जानसे मारनेकी धमकी भी दी । यह शासन इतनेपर ही नहीं रुका; उसने पुलिसबलका प्रयोग कर हिन्दुओंका दमन आरंभ कर दिया । इन सर्व अत्याचारोंमें भी अडिग रहकर हिन्दुओंने संगठित होकर जो संघर्ष किया, उसके परिणामस्वरूप 698 वर्ष पश्चात 8.4.2003 को प्रतिदिन दर्शन और प्रत्येक मंगलवारको केवल अक्षत-पुष्पके साथ भोजशालामें प्रवेशको स्वीकृति दी गई । भोजशाला सरस्वती देवीका मंदिर है, यह शासनने स्वीकार किया । वर्षमें केवल वसंतपंचमीपर कुछ प्रतिबंधोंके साथ पूजा करनेकी अनुमति दी गई । दूसरी ओर मुसलमानोंको प्रति शुक्रवार नमाज पढनेकी अनुमति दी गई, जो आजतक चल रही है ।

हिन्दुओं के वसंत पंचमी के उत्सव में नमाज पढ़ने की अनुमति

वर्ष 2003 के पश्चात थोडी-थोडी स्वीकृत मांगोंको मानकर हिन्दू भोजशालामें दर्शनके लिए जाने लगे थे । वर्षमें एक ही दिन वसंत पंचमीको उन्हें वास्तविक अर्थोंमें भोजशालामें विधि-विधानसे पूजा-अर्चना करनेकी अनुमति थी । वर्ष 2006 में शुक्रवारको ही वसंत पंचमी आनेके कारण हिन्दुओंने राज्यशासनसे मांग की कि आजके दिन यहां नमाज न पढने दी जाए, केवल हिन्दुओंको पूजाकी अनुमति मिले, जिसे शासनने अमान्य कर दिया । भारतीय जनता पार्टीके मुख्यमंत्री शिवराज सिंहने मुसलमानोंको संतुष्ट रखनेके लिए तथा अपने दलकी धर्मनिरपेक्ष छवि बनानेके लिए भोजशालाकी यज्ञाग्नि बुझाकर मुसलमानोंको नमाज पढनेकी अनुमति दी । भाजपा नेताओंने हिन्दुओंको फुसलाकर भोजशाला खाली करवाई । दूसरी ओर संत और उपस्थित हिन्दुओंपर गोलियां बरसा कर उन्हें वहांसे भगा दिया गया । इस मार-पीटमें 74 हिन्दू गंभीर रूपसे घायल हुए । हिन्दुओंको पीटनेके साथ-साथ 164 हिन्दुओंपर हत्याके प्रयत्न करनेका अपराध भी प्रविष्ट कर दिया । वहीं, मुसलमानोंको पुलिसके वाहनोंमें बैठाकर वहां नमाज पढनेके लिए सब प्रकारसे सहायता की ।

सरस्वती देवीको बंदीगृहमें रखनेवाले भाजपाके मुख्यमंत्री !

वर्ष 2006 के पश्चात पुनः वर्ष 2011 में भाजपा शासनका हिन्दूद्वेषी रूप दिखा । राजा भोजकी जन्मशताब्दीपर धारके हिन्दुओंने सरस्वती देवीकी भव्य पालकी यात्रा आयोजित की थी । ‘लंदनके संग्रहालयमें रखी वाग्देवीकी मूर्तिको लाकर भोजशालामें स्थापित करूंगा’, ऐसी गर्जना करनेवाले; किंतु सत्तामदसे उन्मत्त भाजपाने मंदिरमें स्थापित वाग्देवीकी नवीन मूर्तिका अधिग्रहण कर बंदीगृहमें डाल दिया; पालकी यात्राके समारोहपर प्रतिबंध लगा दिया एवं इस समारोहका आयोजन करनेवाले कार्यकर्ताओंको भी कारागृहमें डाल दिया । इन कुकृत्योंका जब हिन्दुओंने तीव्र विरोध किया, तब यह मूर्ति हिन्दुओंको हस्तांतरित कर कार्यकर्ताओं को कारागृह से मुक्त किया गया ।

षड्यंत्र में सम्मिलित न होने वाले हिन्दुत्ववादियों को यातनाएं

वर्ष 2012 में भाजपा शासनने पुनः वसंत पंचमीके पूर्व वाग्देवीकी मूर्तिको बंदीगृहमें डालकर सरस्वती जन्मोत्सवपर प्रतिबंध लगा दिया । शासनके इस कृत्यका असमर्थन करनेवाले संघ कार्यकर्ताओंके परिजनोंकी दुर्दशा की गई । तब मूर्तिको कारागृहसे मुक्त करनेके तथा जन्मोत्सवके लक्ष्यसे प्रेरित हिन्दुओंने आमरण अनशन प्रारंभ किया । लोकतंत्रद्वारा स्वीकृत अनशनसमान शांतिपूर्ण मार्गसे होनेवाले आंदोलनको भी शासनने कुचल दिया । स्तोत्र : हिन्दू जन जागृति https://www.hindujagruti.org/hindi/news/1140.html

हिंदुस्तान में भी हिंदुओं को अपने मदिरों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है बड़ी शर्म की बात है, सरकार को चाहिए कि हिंदुओं को अपने मंदिरों को वापिस कर देना चाहिए।

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