Wednesday, February 23, 2022

चर्च में 993 मासूम बच्चों का किया यौनशोषण, सेक्युलर और मीडिया मौन !

29 जून 2021

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जब भी किसी पवित्र हिंदू साधु-संत पर कोई झूठा आरोप लगता है तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया इस तरह खबर चलाती है कि जैसे सुप्रीम कोर्ट में अपराध सिद्ध हो गया हो, सेक्युलर भी जोरों से चिल्लाने लगते हैं और हिंदू धर्म पर टिप्पणियां करने लगते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इल्जाम लगते ही न्यूज चालू हो जाती है, अनेक झूठी कहानियां बन जाती हैं। इससे तो यह सिद्ध होता है कि मीडिया को इस बात का पहले ही पता होता है कि कौन-से हिन्दू साधु-संत पर कौन-सा इल्जाम लगने वाला है और उनके खिलाफ किस तरीके से झूठी कहानियां बनाकर खबरें चलानी है? ऐसा लगता है- यह सब पहले से ही तय कर लिया जाता होगा!



वहीं, दूसरी ओर किसी मौलवी या ईसाई पादरी पर आरोप सिद्ध हो जाये, तभी भी न मीडिया खबर दिखाती है और ना ही सेक्युलर कुछ बोलते हैं। इससे साफ होता है कि ये गैंग केवल हिंदुत्व के खिलाफ है।


चर्च में यौन शोषण...


जिस चर्च के बारे में कहा जाता था कि वहां जीसस की शिक्षाएं दी जाती हैं, लोगों को सच का मार्ग दिखाया जाता है, वहां के पादरी एक तरह से जीसस के दूत की तरह हैं उस चर्च में वर्षों से ऐसा भयानक पाप हो रहा था, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। लोगों ने उस चर्च में अपने बच्चों को इसलिए भेजा था ताकि वह चर्च के ईसाई पादरियों के पास रहकर जीसस की शिक्षाओं को ग्रहण करेंगे लेकिन वहां तो कुछ और ही होता था। जिन पादरियों को जीसस का दूत समझा जाता था, वो पादरी हैवान बन चुके थे। चर्च को बलात्कार का अड्डा बना दिया गया था जहां 1 हजार के करीब बच्चों का यौन शोषण किया गया।



मामला पोलैंड के एक कैथोलिक चर्च का है जहां एक नई रिपोर्ट में 300 बच्चों के यौन शोषण का मामला सामने आया है। मीडिया सूत्रों से 28 जून 2021 को नाबालिगों के शोषण को लेकर जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 1958 से लेकर 2020 तक करीब 292 पादरियों ने 300 बच्चों का यौन शोषण किया। इनमें लड़के और लड़कियाँ, दोनों ही शामिल थे। 2018 के मध्य से लेकर 2020 तक इनमें से कई हालिया मामलों की शिकायत चर्च प्रशासन से भी की गई।


कई पीड़ितों, उनके परिवारों और पादरियों के अलावा मीडिया और सूत्रों के हवाले से ये रिपोर्ट तैयार की गई है। हाल ही में वारसॉ में पोलैंड के कैथोलिक चर्च के मुखिया आर्कबिशप वोजसिक पोलाक ने पीड़ितों से माफ़ी माँगते हुए कहा कि आशा है कि वो पादरियों को क्षमा कर देंगे। उन्होंने बताया कि वो पहले भी माफ़ी माँग चुके हैं। कुल मिला कर चर्च को 368 बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट सौंपी गई है।


बता दें कि इनमें से 144 मामलों को तो वेटिकन के ‘कॉन्ग्रिगेशन ऑफ डॉक्ट्रिन ऑफ फेथ’ ने भी शुरुआती जाँच में पुष्ट माना है। 368 में से 186 की अभी भी जाँच की जा रही है। हालाँकि, वेटिकन ने इनमें से से 38 मामलों को फर्जी मान कर उन्हें नकार दिया है। यौन प्रताड़ना के इन मामलों की जाँच कर रहे अधिकारी ने बताया कि उनके पास कई रिपोर्ट्स आई हैं। इस तरह की पिछली रिपोर्ट मार्च 2019 में जारी की गई थी।


इससे पहले चर्च की जो पहली रिपोर्ट आई थी, उसमें 1990-2018 के बीच के मामलों के बारे में बताया गया था। इस दौरान करीब 382 पादरियों द्वारा 625 नाबालिग बच्चों का यौन शोषण किया गया। ताज़ा रिपोर्ट में केवल उसके बाद खुलासा हुए मामलों को ही शामिल किया गया है। इस तरह चर्च में कुल 993 बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट सामने आ चुकी है। इनमें से 42 यौन शोषक पादरी ऐसे हैं, जिनके नाम पहली रिपोर्ट में भी दर्ज थे और उनके नाम दूसरी रिपोर्ट में भी मौजूद हैं।


https://twitter.com/SudarshanNewsTV/status/1409767191117926408?s=19


ऐसे तो मौलवियों व पादरियों पर यौन शोषण के हजारों मामले हैं लेकिन मीडिया का कैमरा व तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग इसपर मौन हो जाता है जबकि किसी साधु-संत पर साजिश के तहत झूठे आरोप लगे तो भी मीडिया चिल्लाने लगती है। ऐसे बिकाऊ मीडिया की बातों में आकर हिंदू धर्मगुरुओं के खिलाफ गलत टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।


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भामाशाह ने देश-धर्म की रक्षा के लिए जो किया वो आज के धनाढ्य कब समझेंगे?

28 जून 2021

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दान की चर्चा होते ही भामाशाह का नाम स्वयं ही मुँह पर आ जाता है। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी सब जमा पूँजी अर्पित करनेवाले दानवीर भामाशाह का जन्म अलवर (राजस्थान) में 28 जून, 1547 को हुआ था। उनके पिता थे श्री भारमल तथा माता श्रीमती कर्पूरदेवी थीं। श्री भारमल, राणा साँगा के समय रणथम्भौर के किलेदार थे। अपने पिता की तरह भामाशाह भी राणा परिवार के लिए समर्पित थे।



एक समय ऐसा आया जब अकबर से लड़ते हुए राणा प्रताप को अपनी प्राणप्रिय मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। वे अपने परिवार सहित जंगलों में रह रहे थे। महलों में रहनेवाले और सोने-चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट भोजन करनेवाले महाराणा के परिवार को अपार कष्ट उठाने पड़ रहे थे। राणा को बस एक ही चिन्ता थी कि किस प्रकार फिर से सेना जुटाएँ, जिससे अपने देश को मुगल आक्रमणकारियों के चंगुल से मुक्त करा सकें।


इस समय राणा के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या धन की थी। उनके साथ जो विश्वस्त सैनिक थे, उन्हें भी काफी समय से वेतन नहीं मिला था। कुछ लोगों ने राणा को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी, पर राणा जैसे देशभक्त एवं स्वाभिमानी को यह स्वीकार नहीं था। भामाशाह को जब राणा प्रताप के इन कष्टों का पता लगा, तो उनका मन भर आया। उनके पास स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन था। उन्होंने यह सब राणा के चरणों में अर्पित कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने 25 लाख रु. तथा 20,000 अशर्फियाँ राणा को दीं। राणा ने आँखों में आँसू भरकर भामाशाह को गले से लगा लिया।


राणा की पत्नी महारानी अजवान्दे ने भामाशाह को पत्र लिखकर इस सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। इस पर भामाशाह रानी जी के सम्मुख उपस्थित हो गये और नम्रता से कहा कि मैंने तो अपना कर्त्तव्य निभाया है। यह सब धन मैंने देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाये, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य ही होगा। महारानी यह सुनकर क्या कहतीं, उन्होंने भामाशाह के त्याग के सम्मुख सिर झुका दिया।


उधर जब अकबर को यह घटना पता लगी, तो वह भड़क गया। वह सोच रहा था कि सेना के अभाव में राणा प्रताप उसके सामने झुक जायेंगे, पर इस धन से राणा को नयी शक्ति मिल गयी। अकबर ने क्रोधित होकर भामाशाह को पकड़ लाने को कहा। अकबर को उसके कई साथियों ने समझाया कि एक व्यापारी पर हमला करना उसे शोभा नहीं देता। इस पर उसने भामाशाह को कहलवाया कि वह उसके दरबार में मनचाहा पद ले ले और राणा प्रताप को छोड़ दे, पर दानवीर भामाशाह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अकबर से युद्ध की तैयारी भी कर ली। यह समाचार मिलने पर अकबर ने अपना विचार बदल दिया।


भामाशाह से प्राप्त धन के सहयोग से राणा प्रताप ने नयी सेना बनाकर अपने क्षेत्र को मुक्त करा लिया। भामाशाह जीवनभर राणा की सेवा में लगे रहे। महाराणा के देहान्त के बाद उन्होंने उनके पुत्र अमरसिंह के राजतिलक में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इतना ही नहीं, जब उनका अन्त समय निकट आया, तो उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया कि वह अमरसिंह के साथ सदा वैसा ही व्यवहार करे, जैसा उन्होंने राणा प्रताप के साथ किया है।


आज के हिन्दू समाज को अपने बच्चों को लोरियों में राणा प्रताप और भामाशाह के त्याग और तपस्या की कहानियाँ अवश्य सुनानी चाहिए ताकि उन्हें यह मालूम हो सके कि उनके पूर्वजों ने कितने त्याग कर अपने वैदिक धर्म की रक्षा की थी।


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सच क्या है? वास्को दी गामा ने भारत को खोजा या लुटा?

27 जून 2021

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हमारे देश में पढ़ाई जानेवाली किसी भी इतिहास की पुस्तक को उठाकर देखिये। वास्को दी गामा को भारत की खोज करने का श्रेय देते हुए इतिहासकार उसके गुणगान करते दिखेंगे। उस काल में जब यूरोप से भारत के मध्य व्यापार केवल अरब के माध्यम से होता था। उसपर अरबवासियों का प्रभुत्व था। भारतीय मसालों और रेशम आदि की यूरोप में विशेष मांग थी। पुर्तगालवासी वास्को दी गामा समुद्र के रास्ते अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाते हुए भारत के कप्पाड तट पर 14, मई, 1498 को कालीकट, केरल पहुँचा। केरल का यह प्रदेश समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र था। स्थानीय निवासी समुद्र तट पर एकत्र होकर गामा के जहाज को देखने आये क्यूंकि गामा के जहाज की रचना अरबी जहाजों से अलग थी। 



करल के उस प्रदेश में शाही जमोरियन राजपरिवार के राजा समुद्रीन का राज्य था। राजा अपने बड़े से शाही राजमहल में रहता था। गामा अपने साथियों के साथ राजा के दर्शन करने गया। रास्ते में एक हिन्दू मंदिर को चर्च समझ कर गामा और उसके साथी पूजा करने चले गए। वहां स्थित देवीमूर्ति को उन्होंने मरियम की मूर्ति समझा और पुजारियों के मुख से श्री कृष्ण के नाम को सुनकर उसे क्राइस्ट का अपभ्रंश समझा। गामा ने यह सोचा कि लम्बे समय तक यूरोप से दूर रहने के कारण यहाँ के ईसाइयों ने कुछ स्थानीय रीति रिवाज अपना लिए हैं। इसलिए ये लोग यूरोप के ईसाइयों से कुछ भिन्न मान्यताओंवाले हैं। गामा की सोच उसके ईसाईयत के प्रति पूर्वाग्रह से हमें परिचित करवाती है। 


राजमहल में गामा का भव्य स्वागत हुआ। उसका 3000 सशस्त्र नायर सैनिकों की टुकड़ी ने अभिवादन किया। गामा को तब तक विदेशी राजा के राजदूत के रूप में सम्मान मिल रहा था। सलामी के पश्चात गामा को राजा के समक्ष पेश किया गया। जमोरियन राजा हरे रंग के सिंहासन पर विराजमान था। उनके गले में रत्नजड़ित हीरे का हार एवं अन्य जवाहरात थे जो उनकी प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करते थे। गामा द्वारा लाये गए उपहार अत्यंत तुच्छ थे। राजा उनसे प्रसन्न नहीं हुआ। फिर भी उसने सोने, हीरे आदि के बदले मसालों के व्यापार की अनुमति दे दी। स्थानीय अरबी व्यापारी राजा के इस अनुमति देने के विरोध में थे। क्यूंकि उनका इससे व्यापार पर एकाधिकार समाप्त हो जाता। गामा अपने जहाज़ से वापिस लौट गया। उसकी इस यात्रा में उसके अनेक समुद्री साथी काल के ग्रास बन गए। उसका पुर्तगाल वापिस पहुंचने पर भव्य स्वागत हुआ। उसने यूरोप और भारत के मध्य समुद्री रास्ते की खोज जो कर ली थी। आधुनिक लेखक उसे भारत की खोज करनेवाला लिखते हैं। भारत तो पहले से ही समृद्ध व्यापारी देश के रूप में संसार भर में प्रसिद्ध था। इसलिए यह कथन यूरोपियन लेखक की पक्षपाती मानसिकता को प्रदर्शित करता है। 


पर्तगाल ने अगली समुद्री यात्रा की तैयारी आरम्भ कर दी। इस बार लड़ाकू तोपों से सुसज्जित 13 जहाजों और 1200 सिपाहियों का बेड़ा भारत के लिए निकला। कुछ महीनों की यात्रा के पश्चात यह बेड़ा केरल पहुंचा। कालीकट आते ही पुर्तगालियों ने राजा के समक्ष एक नाजायज़ शर्त रख दी कि राजा केवल पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रखेंगे। अरबों के साथ किसी भी प्रकार का व्यापार नहीं करेंगे। राजा ने इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया। झुंझलाकर पुर्तगालियों ने खाड़ी में खड़े एक अरबी जहाज को बंधक बना लिया। अरबी व्यापारियों ने भी पुर्तगालियों की शहर में रुकी टुकड़ी पर हमला बोल दिया। पुर्तगालियों ने बल प्रयोग करते हुए दस अरबी जहाजों को बंधक बनाकर उनमें आग लगा दी। इन जहाजों पर काम करनेवाले नाविक जिन्दा जलकर मर गए। पुर्तगाली यहाँ तक नहीं रुके। उन्होंने कालीकट पर अपनी समुद्री तोपों से बमबारी आरम्भ कर दी। यह बमबारी दो दिनों तक चलती रही। कालीकट के राजा को अपना महल छोड़ना पड़ा। यह उनके लिया अत्यंत अपमानजनक था। पुर्तगाली अपने जहाजों को मसालों से भरकर वापिस लौट गए। यह उनका हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व स्थापित करने का पहला अभियान था। 


गामा को एक अत्याचारी एवं लालची समुद्री लुटेरे के रूप में अपनी पहचान स्थापित करनी थी। इसलिए वह एक बार फिर से आया। इस बार अगले तीन दिनों तक पुर्तगाली अपने जहाजों से कालीकट पर बमबारी करते रहे। खाड़ी में खड़े सभी जहाजों और उनके 800 नाविकों को पुर्तगाली सेना ने बंधक बना लिया। उन बंधकों की पहले जहाजों पर परेड करवाई गई। फिर उनके नाक-कान, बाहें काटकर उन्हें तड़पा तड़पाकर मारा गया। अंत में उनके क्षत-विक्षत शरीरों को नौकाओं में डालकर तट पर भेज दिया गया। जमोरियन राजा ने एक ब्राह्मण संदेशवाहक को उसके दो बेटों और भतीजे के साथ सन्धि के लिए भेजा गया। गामा ने उस संदेशवाहक के अंग भंग कर, अपमानित कर उसे राजा के पास वापिस भेज दिया। और उसके बेटों और भतीजे को फांसी से लटका दिया।  पुर्तगालियों का यह अत्याचार केवल कालीकट तक नहीं रुका। वेश्चिमी घाट के अनेक समुद्री व्यापार केंद्रों पर अपना कहर बरपाते हुए गोवा तक चले गए। गोवा में उन्होंने अपना शासन स्थापित किया। यहाँ उनके अत्याचार की एक अलग दास्तान फ्रांसिस ज़ेवियर नामक एक ईसाई पादरी ने लिखी। 

    

पर्तगालियों का यह अत्याचार केवल लालच के लिए नहीं था। इसका एक कारण उनका अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करना भी था। इस मानसिकता के पीछे उनका ईसाई और भारतीयों का गैरईसाई होना भी एक कारण था। इतिहासकार कुछ भी लिखें मगर सत्य यह है कि वास्को दी गामा एक नाविक के भेष में दुर्दांत, अत्याचारी, ईसाई लुटेरा था। खेद है वास्को डी गामा के विषय में स्पष्ट जानकारी होते हुए भी हमारे देश के साम्यवादी इतिहासकार उसका गुणगान कर उसे महान बनाने पर तुले हुए हैं। इतिहास का यह विकृतिकरण हमें संभवत: विश्व के किसी अन्य देश में नहीं मिलेगा। 

 - डॉ विवेक आर्य


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नशा करने के कितने नुकसान और छोड़ने से कितने फायदे होते हैं- जान लीजिये...

26 जून 2021

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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2016 में कहा था- ‘‘दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (11 देशों, जिसमें भारत शामिल है) में करीब 24.6 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं और 29 करोड़ से थोड़े कम तंबाकू का धुआंरहित स्वरूप में सेवन करते हैं।



उन्होंने कहा, ‘‘तंबाकू से हर साल क्षेत्र में 13 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जो 150 मौत प्रति घंटे के बराबर है।’’

WHO के मुताबिक तंबाकू सेवन और धूम्रपान से दुनिया में हर 6 सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत होती है।


बीसवीं सदी के अंत तक सिगरेट पीने के कारण 6 करोड़ 20 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे।


विकसित देशों में हर छठी मौत सिगरेट के कारण होती है। महिलाओं में सिगरेट पीने के बढ़ते चलन के कारण यह आँकड़ा और बढ़ा है।


तम्बाकू से होनेवाले दुष्परिणाम-


निकोटीन, टार और कार्बन-मोनोऑक्साइड जैसे हानिकारक केमिकल से युक्त तंबाकू जितना आपके फेफड़ों और चेहरे को प्रभावित करता है  उतना ही हानिकारक आपके नाजुक दिल के लिए भी होता है।


तबाकू का सेवन करनेवाले के मुँह से बदबू तो आती है, लेकिन उसके साथ ही उसको मुंह और गले में भयानक कैंसर की भी संभावना होती है। तंबाकू में मौजूद निकोटीन पूरे शरीर में रक्त की पूर्ति करनेवाली महाधमनी को प्रभावित करता है। यह फेफड़ों को भी काफी हद तक प्रभावित करता है जिससे श्वास संबंधी समस्याएं आम हो जाती हैं।



धम्रपान से बच्चों पर भयंकर असर...


जिन घरों में धूम्रपान आम होता है, उन घरों के बच्चे न चाहते हुए भी जन्म से ही 'धूम्रपान' की ज्यादतियों के शिकार हो जाते हैं।  धूम्रपान का धुआँ बच्चों में निमोनिया या पल्मोनरी ब्रोंकाइटिस अर्थात साँस के साथ उठनेवाली खाँसी की समस्या पैदा कर सकता है। बच्चों के मध्यकर्ण में अधिक पानी भर सकता है, उन्हें सुनने की अथवा वाचा की समस्या पैदा हो सकती है।


धूम्रपान के धुएँ में पलने वाले बच्चों के फेफड़े कम क्षमता से काम करते हैं। इसी वजह से उनकी रोगप्रतिरोधक प्रणाली भी कमजोर होती है। बच्चों का सामान्य विकास अवरुद्ध हो जाता है। उनका वजन और ऊँचाई दूसरों के मुकाबले कम होती है। जिन्होंने जीवन में कभी भी धूम्रपान नहीं किया हो उन्हें पैसिव स्मोकिंग के कारण फेफड़ों के कैंसर होने का 20-30 प्रतिशत जोखिम होता है।


दारू से नुकसान-


डॉ. टी.एल. निकल्स लिखते हैं- "जीवन के लिए किसी भी प्रकार और किसी भी मात्रा में अल्कोहल की आवश्यकता नहीं है। दारू से कोई भी लाभ होना असंभव है। दारू से नशा उत्पन्न होता है लेकिन साथ ही साथ अनेक रोग भी पैदा होते हैं। जो लोग सयाने हैं और सोच समझ सकते हैं, वे लोग मादक पदार्थों से दूर रहते हैं। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है, इससे बुद्धिपूर्वक सोचकर उसे दारू से दूर रहना चाहिए।"


दारू पीनेवालों की स्त्रियों की कल्पना करो। उनको कितना दुःख सहन करना पड़ता है। शराबी लोग अपनी पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव करते हैं। दारू पीनेवाला मनुष्य मिटकर राक्षस बन जाता है। वह राक्षस भी शक्ति एवं तेज से रहित होता है। उसके बच्चे भी कई प्रकार से निराशा महसूस करते हैं। सारा परिवार पूर्णतया परेशान होता है। दारू पीनेवालों की इज्जत समाज में कम होती है। ये लोग योग तथा भक्ति के अच्छे मार्ग पर नहीं चल सकते। आदमी ज्यों-ज्यों अधिक दारू पीता है त्यों-त्यों अधिकाधिक कमजोर बनता है। 


दारू पीने के अनेकों नुकसान को लेकर 6 अक्टूबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवा पीढ़ी में शराब पीने की बढ़ती समस्या पर चिंता जताते हुए कहा था कि यदि इस बुराई को नहीं रोका गया तो अगले 25 साल में समाज तबाह हो जाएगा।


दारू के शौकीन लोग कहते हैं कि दारू पीने से शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और उत्तेजना आती है। परन्तु उनका यह तर्क बिल्कुल असंगत है। थोड़ी देर के लिए कुछ उत्तेजना आती है लेकिन अन्त में दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।


जीव विज्ञान के ज्ञाताओं का कहना है कि शराबियों के रक्त में अल्कोहल मिल जाता है अतः उनके बच्चों को आँख का कैन्सर होने की संभावना है। दस पीढ़ी तक की कोई भी संतान इसका शिकार हो सकती है। शराबी अपनी खाना-खराबी तो करता ही है, दस पीढ़ियों के लिए भी विनाश को आमंत्रित करता है।


वयसन छोड़ने के अनेक फायदे...


1. नशा बंद करने के 12 मिनट के भीतर ही आपकी उच्च हृदय गति (हाई बी.पी) और रक्त चाप में कमी (लो बी.पी) दिखने लगेगी। 12 घंटे बाद अपने खून में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर घटकर सामान्य पर पहुंच जाएगा। वहीं दो से 12 हफ्तों में आपके शरीर के भीतर खून के प्रवाह और फेफड़ों की क्षमता बढ़ जाएगी।


2. नशा छोड़े हुए एक साल बीतते-बीतते आप में दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा धूम्रपान करनेवालों की तुलना में आधा तक रह जाएगा। वहीं पांच साल तक पहुंचने पर मस्तिष्काघात का खतरा नॉन के स्तर पर पहुंच जाएगा।


3. दस साल तक अपने-आपको व्यसन से दूर रखने पर आपमें फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा धूम्रपान करनेवाले की तुलना में आधे पर पहुंच जाएगा। वहीं मुंह, गले, मूत्राशय, गर्भाशय और अग्नाशय में कैंसर का खतरा भी कम हो जाएगा।


4. नशा छोड़ने पर आपकी जीवन-प्रत्याशा में भी इजाफा होगा। अगर आप 30 वर्ष की उम्र से पहले ही धूम्रपान की लत से तौबा कर लेते हैं तो धूम्रपान करनेवालों की तुलना में आपकी जीवन प्रत्याशा करीब 10 साल तक बढ़ जाएगी, लेकिन धूम्रपान छोड़ने में देर करने से आपकी जिंदगी भी छोटी होती चली जाएगी।


5. धूम्रपान छोड़ने से आप में नपुंसकता की आशंका कम होती है। इसके अलावा महिलाओं में गर्भधारण में कठिनाई, गर्भपात, समय से पहले जन्म या जन्म के समय बच्चे का वजन बेहद कम होने जैसी समस्याएं भी कम होती है।


6. आपके व्यसन से तौबा करने पर आपके बच्चों में भी सेकंड हैंड स्मोक से होनेवाली श्वास संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।


7. धूम्रपान छोड़ना आपकी जेब के लिए भी फायदेमंद है। मान लें- अगर आप औसतन प्रतिदिन 10 सिगरेट पीते हैं और एक सिगरेट की कीमत 10 रुपये है, तो आप सालभर में ही 36,500 रुपये बस धूम्रपान में ही फूंक डालते हैं। इन पैसों से आप कुछ तो बेहतर काम कर ही सकते हैं।


वयसन छोड़ने के उपाय-


अजवाइन साफ कर इसे नींबू के रस और काले नमक में दो दिन तक भींगने के लिए छोड़ दें, फिर इसे सुखा लें और इसके बाद इसको मुंह में घंटों रखकर तंबाकू को खाने जैसी अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं।

अगर आपको तंबाकू खाने की तलब काफी ज्यादा है तो आप बारीक सौंफ के साथ मिश्री के दाने मिलाकर धीरे-धीरे चूस सकते हैं।


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सॉफ्टड्रिंक पीते हैं तो सावधान, सबसे बड़े खिलाड़ी ने दिए खतरे के संकेत !

25 जून 2021

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पर्तगाल के स्टार फुटबॉलर व कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो का एक विडियो सोशल मिडिया में खूब बवाल मचा रहा है। एक प्रेस कांफ्रेंस में रोनाल्डो ने कांफ्रेंस टेबल पर रखी हुई दो कोक की बोतलों को अपने सामने से हटा दिया और कहा- 'कोक नहीं, पानी पियो।'



उनके ऐसा करने से कंपनी को करीब 4 बिलियन डॉलर यानि 293 अरब रुपये का नुकसान हो गया। वैसे, नुकसान से याद आया कि कोल्ड ड्रिंक के पीने के बाद क्या होता है- आप जानते हैं?


नहीं ?? तो फिर ये देख लीजिए –


कोल्ड ड्रिंक पीने के महज़ 10 मिनट बाद आपके शरीर में 10 चम्मच शुगर चली जाती है। 20 मिनट बाद शरीर में इंसुलिन का फ्लो बढ़ने लगता है जिसे कंट्रोल करने के लिए आपका लिवर एक्स्ट्रा शुगर को फैट में बदल देता है। 


40 मिनट में साफ्ट ड्रिंक में मौजूद कैफिन आपके शरीर में घुलने लगता है, ब्लड़ प्रेशर बढ़ने लगता है, 45 मिनट बाद शरीर में डोपामाईन केमिकल बढ़ जाता है।

ये केमिकल ड्रग्स की तरह दिमाग पर असर करता है और 60 मिनट बाद सॉफ्ट ड्रिंक में मौजूद फॉस्फोरिक एसिड अपना असर दिखाता है, शरीर में पानी की कमी होने लगती है।


रकिए...!! और सुनिए...


 हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की स्टडी से पता चला है- 'सॉफ्ट ड्रिंक से फैट तो बढ़ता ही है साथ ही ये आपके लिए जानी दुश्मन होती है।'


सॉफ्ट ड्रिंक पीने से हर साल दुनिया में दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है।

लोग डायबिटीज के शिकार भी होते  हैं।

लगभग 6 हज़ार लोग कैंसर का शिकार होते हैं और लगभग 44 हज़ार लोग दिल की बीमारियों का शिकार होकर मर जाते हैं।


हावर्ड यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध के मुताबिक कोल्ड ड्रिंक (पेप्सी, कोकाकोला) या डिब्बाबंद जूस और हेल्थ ड्रिंक पीने से न सिर्फ ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है बल्कि इंसुलिन के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होने लगती है। इससे व्यक्ति धीरे-धीरे डायबिटीज और हृदयरोगों (हार्टअटैक) की चपेट में आने लगता है।


य तो आप समझ ही गए होंगे कि सॉफ्ट ड्रिंक पीने से आपकी बॉडी पर क्या असर पड़ता है तो उसकी जगह नारियल पानी, ताजे फलों का जूस, गुलाब शरबत, नींबू शरबत, पलाश शरबत पियें और पिलाइये जिससे आप और मेहमान भी स्वस्थ रहें और आपका पैसा भी कम खर्च होगा तथा पैसा विदेश में न जाकर देश में ही रहेगा।


भारतवासियों ! घर के बनाये पेय पदार्थों का सेवन कर खुद भी स्वस्थ रहें और अपनी मेहनत से कमाए पैसे का भी सही और उचित जगह उपयोग करके देश को समृद्ध बनायें।


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आशाराम बापू के साथ जो हो रहा है वह किसी आतंकवादी के साथ भी नहीं हुआ है...

24 जून 2021

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हिंदू धर्मगुरु आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष की है। वे 8 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। जोधपुर सेंट्रल जेल में काफी लोग कोरोना पोजिटिव पाये गए उसके कारण आशाराम बापू पिछले महीने कोरोना संक्रमित हो गए, उनका स्वास्थ्य इतना गिर गया कि उन्हें जोधपुर AIIMS अस्पताल के AICU में भर्ती किया गया। उनको एलोपैथी दवाई दी गई जिसके कारण उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया और हीमोग्लोबिन 3.7 तक आ गया जिससे किसी सामान्य इंसान की मौत भी हो सकती थी। उनको खून की 7 बोतलें चढ़ाई गईं। कुछ दिन के बाद उनका थोड़ा स्वास्थ्य सुधार हुआ और उन्हें वापिस सेंट्रल जेल ले जाया गया जिसके कुछ दिन के बाद फिर से उनका स्वास्थ्य खराब हुआ और उन्हें वापिस जोधपुर के AIIMS अस्पताल के AICU में भर्ती किया गया। आज फिर उनको वापिस जेल भेज दिया गया जबकि उनका स्वास्थ्य अभी भी पूर्णरूप से ठीक नहीं हुआ है।



उनके करोड़ों भक्त न्यायालय और सरकार से निवेदन कर रहे हैं कि बापू आशारामजी को अभी जेल नहीं भेजा जाए, उनकी आयुर्वेदिक चिकित्सा कराई जाए और पूर्णरूप से स्वस्थ होने के बाद जेल भेजा जाए लेकिन उनकी आवाज सरकार और न्यायपालिका को सुनाई नहीं दे रही है।

दिल्ली जामा मस्जिद के इमाम बुखारी पर 65 वारंट हैं, उसमें कई गैरजमानती वांरट भी हैं लेकिन उसे गिरफ्तार करने से भी सरकार डर रही है कि कहीं दंगे न हो जायें।

आशारामजी बापू के करोड़ों भक्त केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा की मांग कर रहे हैं परन्तु उस बात को भी सरकार सुन नहीं रही है।


🚩कितने बड़े-बड़े अपराधियों को जमानत मिल गई, आतंकवादी को भी जमानत मिल गई लेकिन एक हिंदू संत आशाराम बापू को अपना उपचार आयुर्वेदिक चिकित्सा से कराने के लिए भी न्यायालय और सरकार की परमिशन नहीं है- इससे ज्यादा देश में क्या अन्याय हो सकता है?


आपको बता देते हैं कि जिस समय लड़की ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया है उस समय तो वो अपने मित्र से कॉल पर बात कर रही थी और बापू आशारामजी किसी कार्यक्रम में व्यस्त थे, वहाँ पर 50-60 लोग भी थे, उन्होंने कोर्ट में गवाही भी दी है, लड़की का कॉल डिटेल भी दिया गया है।


बता दें कि आरोप लगानेवाली लड़की ने रेप का आरोप नहीं लगाया है, बल्कि लिखाया है कि मेरे साथ छेड़छाड़ हुई है लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि लड़की को टच भी नहीं किया गया है। इससे साफ होता है कि लड़की के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है।

वीडियो में यह देख सकते हैं।

https://youtu.be/V0sr9yHj1Go


इन सब पुख्ता सबूतों के होते हुए भी उनको आजीवन कारावास की सजा देना और आजतक जमानत नहीं देना- ये हिंदू धर्मगुरु को खत्म करने का कोई बड़ा षड्यंत्र तो नहीं है?


बापू आशारामजी की तरफ से निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका डाली गई है। कल को अगर हाईकोर्ट में आशारामजी बापू निर्दोष साबित होते हैं तो सरकार, मीडिया और न्यायालय अपनी गलती मानेंगे?? और मान भी लें तो इंसानियत का तो गला आपने घोंट ही दिया, बाद में माफी मांगने से क्या फायदा? इतना उनका समय, पैसा, इज्जत और स्वास्थ्य गया उसका जिम्मेदार कौन होगा?


संत आशाराम बापू ने करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति आस्थावान बनाया। लाखों लोगो की घर वापसी करवाई, आदिवासियों को धर्मांतरित होने से बचाया। विदेशों में भी सनातन धर्म का परचम लहराया।


करोड़ों लोगो के व्यसन छुड़वाए, एलोपैथी से देशवासियों को आयुर्वेद पर लेकर आये।


वैदिक गुरुकुल और बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को सनातन संस्कृति के दिव्य संस्कार दिए।


कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर गौशालाएं खोल दी।


वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन और क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया।


क्या राष्ट्र और सनातन धर्म की सेवा करने के परिणामस्वरूप उनको षड्यंत्र करके जेल भिजवाया? अब हिंदुओं को सोचना होगा कि अगर कोई अन्य धर्म के गुरु होते तो आज देश में आग लग जाती लेकिन हिन्दू सहिष्णुता के नाम पलायनवादी हो गए हैं जिसके कारण आज हिन्दू धर्मगुरु जेल में हैं।


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जानिए- वटसावित्री व्रत क्यों किया जाता है? कैसे करें व्रत?

23 जून 2021

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वट सावित्री व्रत ‘स्कंद’ और ‘भविष्योत्तर’ पुराणाें के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा पर और ‘निर्णयामृत’ ग्रंथ के अनुसार अमावस्या पर किया जाता है। उत्तर भारत में प्रायः अमावस्या को यह व्रत किया जाता है। अतः महाराष्ट्र में इसे ‘वटपूर्णिमा’ एवं उत्तर भारत में इसे ‘वटसावित्री’ के नामसे जाना जाता है।



पति के सुख-दुःख में सहभागी होना, उसे संकट से बचाने के लिए प्रत्यक्ष ‘काल’ को भी चुनौती देने की सिद्धता रखना, उसका साथ न छोडना एवं दोनोंका जीवन सफल बनाना- ये स्त्री के महत्त्वपूर्ण गुण हैं। 


सावित्री में ये सभी गुण थे। सावित्री अत्यंत तेजस्वी तथा दृढनिश्चयी थीं। आत्मविश्वास एवं उचित निर्णयक्षमता भी उनमें थी। राजकन्या होते हुए भी सावित्री ने दरिद्र एवं अल्पायु सत्यवान को पति के रूप में अपनाया था; तथा उनकी मृत्यु होने पर यमराज से शास्त्रचर्चा कर उन्होंने अपने पति के लिए जीवनदान प्राप्त किया था। जीवन में यशस्वी होने के लिए सावित्री के समान सभी सद्गुणों को आत्मसात करना ही वास्तविक अर्थों में वटसावित्री व्रत का पालन करना है।


वक्षों में भी भगवदीय चेतना का वास है, ऐसा दिव्य ज्ञान वृक्षोपासना का आधार है। इस उपासना ने स्वास्थ्य, प्रसन्नता, सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति एवं पर्यावरण संरक्षण में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।


वातावरण में विद्यमान हानिकारक तत्त्वों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्त्व है। वटवृक्ष के नीचे का छायादार स्थल एकाग्र मन से जप, ध्यान व उपासना के लिए प्राचीन काल से साधकों एवं महापुरुषों का प्रिय स्थल रहा है। यह दीर्घकाल तक अक्षय भी बना रहता है। इसी कारण दीर्घायु, अक्षय सौभाग्य, जीवन में स्थिरता तथा निरन्तर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए इसकी आराधना की जाती है।


वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श तथा सेवा से पाप दूर होते हैं; दुःख, समस्याएँ तथा रोग जाते रहते हैं। अतः इस वृक्ष को रोपने से अक्षय पुण्य-संचय होता है। वैशाख आदि पुण्यमासों में इस वृक्ष की जड़ में जल देने से पापों का नाश होता है एवं नाना प्रकार की सुख-सम्पदा प्राप्त होती है। 


इसी वटवृक्ष के नीचे सती सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल से यमराज से अपने मृत पति को पुनः जीवित करवा लिया था। तबसे ‘वट-सावित्री’ नामक व्रत मनाया जाने लगा। इस दिन महिलाएँ अपने अखण्ड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए व्रत करती हैं। 


वरत-कथा :-


सावित्री मद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से उसका विवाह हुआ था। विवाह से पहले देवर्षि नारदजी ने कहा था कि सत्यवान केवल वर्षभर जीयेगा। किंतु सत्यवान को एक बार मन से पति स्वीकार कर लेने के बाद दृढ़व्रता सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला और एक वर्ष तक पातिव्रत्य धर्म में पूर्णतया तत्पर रहकर अंधेे सास-ससुर और अल्पायु पति की प्रेम के साथ सेवा की। वर्ष-समाप्ति के दिन सत्यवान और  सावित्री समिधा लेने के लिए वन में गये थे। वहाँ एक विषधर सर्प ने सत्यवान को डँस लिया। वह बेहोश होकर गिर गया। यमराज आये और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को ले जाने लगे। तब सावित्री भी अपने पातिव्रत्य के बल से उनके पीछे-पीछे जाने लगी। 


यमराज द्वारा उसे वापस जाने के लिए कहने पर सावित्री बोली:

‘‘जहाँ जो मेरे पति को ले जाए या जहाँ मेरा पति स्वयं जाए, मैं भी वहाँ जाऊँ यह सनातन धर्म है। तप, गुरुभक्ति, पतिप्रेम और आपकी कृपा से मैं कहीं रुक नहीं सकती। तत्त्व को जाननेवाले विद्वानों ने सात स्थानों पर मित्रता कही है। मैं उस मैत्री को दृष्टि में रखकर कुछ कहती हूँ, सुनिये। लोलुप व्यक्ति वन में रहकर धर्म का आचरण नहीं कर सकते और न ब्रह्मचारी या संन्यासी ही हो सकते हैं। 


विज्ञान (आत्मज्ञान के अनुभव) के लिए धर्म को कारण कहा करते हैं, इस कारण संतजन धर्म को ही प्रधान मानते हैं। संतजनों के माने हुए एक ही धर्म से हम दोनों श्रेय मार्ग को पा गये हैं।’’


सावित्री के वचनों से प्रसन्न हुए यमराज से सावित्री ने अपने ससुर के अंधत्व-निवारण व बल-तेज की प्राप्ति का वर पाया। 


सावित्री बोली: ‘‘संतजनों के सान्निध्य की सभी इच्छा किया करते हैं। संतजनों का साथ निष्फल नहीं होता, इस कारण सदैव संतजनों का संग करना चाहिए।’’


यमराज : ‘‘तुम्हारा वचन मेरे मन के अनुकूल, बुद्धि और बलवर्द्धक तथा हितकारी है। पति के जीवन के सिवा कोई वर माँग ले।’’


सावित्री ने श्वशुर के छीने हुए राज्य को वापस पाने का वर पा लिया।


सावित्री: ‘‘आपने प्रजा को नियम में बाँध रखा है, इस कारण आपको यम कहते हैं। आप मेरी बात सुनें।मन-वाणी-अन्तःकरण से किसीके साथ वैर न करना, दान देना, आग्रह का त्याग करना - यह संतजनों का सनातन धर्म है। संतजन वैरियों पर भी दया करते देखे जाते हैं।’’


यमराज बोले: प्यासे को पानी, उसी तरह तुम्हारे वचन मुझे लगते हैं। पति के जीवन के सिवाय दूसरा कुछ माँग ले।’’


सावित्री ने अपने निपूत पिता के सौ औरस कुलवर्द्धक पुत्र हों ऐसा वर पा लिया।


सावित्री बोली: ‘‘चलते-चलते मुझे कुछ बात याद आ गयी है, उसे भी सुन लीजिये। आप आदित्य के प्रतापी पुत्र हैं, इस कारण आपको विद्वान पुरुष ‘वैवस्वत’ कहते हैं । आपका बर्ताव प्रजा के साथ समान भाव से है, इस कारण आपको ‘धर्मराज’ कहते हैं। मनुष्य को अपने पर भी उतना विश्वास नहीं होता जितना संतजनों पर हुआ करता है। इस कारण संतजनों पर सबका प्रेम होता है।’’ 


यमराज बोले: ‘‘जो तुमने सुनाया है ऐसा मैंने कभी नहीं सुना।’’


परसन्न यमराज से सावित्री ने वर के रूप में सत्यवान से ही बल-वीर्यशाली सौ औरस पुत्रों की प्राप्ति का वर प्राप्त किया। फिर बोली: ‘‘संतजनों की वृत्ति सदा धर्म में ही रहती है। संत ही सत्य से सूर्य को चला रहे हैं, तप से पृथ्वी को धारण कर रहे हैं। संत ही भूत-भविष्य की गति हैं। संतजन दूसरे पर उपकार करते हुए प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं रखते। उनकी कृपा कभी व्यर्थ नहीं जाती, न उनके साथ में धन ही नष्ट होता है, न मान ही जाता है। ये बातें संतजनों में सदा रहती हैं, इस कारण वे रक्षक होते हैं।’’


यमराज बोले: ‘‘ज्यों-ज्यों तू मेरे मन को अच्छे लगनेवाले अर्थयुक्त सुन्दर धर्मानुकूल वचन बोलती है, त्यों-त्यों मेरी तुझमें अधिकाधिक भक्ति होती जाती है। अतः हे पतिव्रते और वर माँग।’’ 


सावित्री बोली: ‘‘मैंने आपसे पुत्र दाम्पत्य योग के बिना नहीं माँगे हैं, न मैंने यही माँगा है कि किसी दूसरी रीति से पुत्र हो जायें। इस कारण आप मुझे यही वरदान दें कि मेरा पति जीवित हो जाय क्योंकि पति के बिना मैं मरी हुई हूँ। पति के बिना मैं सुख, स्वर्ग, श्री और जीवन कुछ भी नहीं चाहती। आपने मुझे सौ पुत्रों का वर दिया है व आप ही मेरे पति का हरण कर रहे हैं, तब आपके वचन कैसे सत्य होंगे? मैं वर माँगती हूँ कि सत्यवान जीवित हो जायें। इनके जीवित होने पर आपके ही वचन सत्य होंगे।’’


यमराज ने परम प्रसन्न होकर ‘ऐसा ही हो’ यह कह के सत्यवान को मृत्युपाश से  मुक्त कर दिया।


वरत-विधि:-


इसमें वटवृक्ष की पूजा की जाती है। विशेषकर सौभाग्यवती महिलाएँ श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक अथवा कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीनों दिन अथवा मात्र अंतिम दिन व्रत-उपवास रखती हैं। यह कल्याणकारक  व्रत विधवा, सधवा, बालिका, वृद्धा, सपुत्रा, अपुत्रा सभी स्त्रियों को करना चाहिए- ऐसा ‘स्कंद पुराण’ में आता है। 


परथम दिन संकल्प करें- ‘मैं मेरे पति और पुत्रों की आयु, आरोग्य व सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए एवं जन्म-जन्म में सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट-सावित्री व्रत करती हूँ।’


वट के समीप भगवान ब्रह्माजी, उनकी अर्धांगिनी सावित्री देवी तथा सत्यवान व सती सावित्री के साथ यमराज का पूजन कर ‘नमो वैवस्वताय’ इस मंत्र को जपते हुए वट की परिक्रमा करें। इस समय वट को 108 बार या यथाशक्ति सूत का धागा लपेटें। फिर निम्न मंत्र से सावित्री को अर्घ्य दें-

अवैधव्यं च  सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ।।


निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना कर गंध, फूल, अक्षत से उसका पूजन करें-

वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः।

यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।

तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।। 


भारतीय संस्कृति वृक्षों में भी छुपी हुई भगवद्सत्ता का ज्ञान करानेवाली, ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति- मानव के जीवन में आनन्द, उल्लास एवं चैतन्यता भरनेवाली है। (स्त्रोत्र : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका से)


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