Friday, March 31, 2023

अप्रैल फूल क्यों और किसने शुरू किया ? आप भी मनाते हो तो हो जाइए सावधान

31 March 2023

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🚩भारतवासी अधिकतर अनजाने में ऐसे त्यौहार मनाते है कि उनको वास्तविकता पता ही नही होती है और अपनी ही संस्कृति का नाश कर लेते है, अंग्रेज भले ही चले गए हो लेकिन उन्होंने जो भारतीय संस्कृति का नाश करने के लिए अनेक षडयंत्र किये थे वो आज भी भारत मे प्रचलित है और भारतीय अनजाने में उसका शिकार बनते है ।


🚩ऐसे ही एक भारत मे प्रचलित है कि अप्रैल फूल मनाना, आइये आज उसकी वास्तविकता से अवगत कराते है, अप्रैल फूल की सच्चाई जानकर आप भी उससे नफरत करने लगेंगे ।



🚩भारत माता को जब अंग्रेजो ने गुलामी की जंजीरो से जकड़ लिया था तब उन्होंने पूर्ण प्रयास किया कि भारतीय संस्कृति को मिटाया जाए, भारतीय पहले सृष्टि का उदगम दिन पर ही हर साल नववर्ष मनाते थे जो करीब अप्रैल महीने की शुरुआत में ही आता था इसको नष्ट करने के लिए ईसाई अंग्रेजो ने 1 जनवरी को नया साल भारतवासियों पर थोप दिया फिर भी भारतवासी उसी दिन ही नववर्ष मना रहे थे जिसके कारण अंग्रेजो ने 1 अप्रैल को मूर्खता दिवस घोषित कर दिया ।


🚩आपको बता दे कि भारतीय सनातन कैलेंडर,जिसका पूरा विश्व अनुसरण करता है उसको मिटाने के लिए 1582 में पोप ग्रेगोरी ने नया कैलेंडर अपनाने का फरमान जारी कर दिया था जिसमें 1 जनवरी को नया साल के प्रथम दिन के रूप में बनाया गया।


🚩जिन भारतवासीयों ने इसको मानने से इंकार किया, उनका 1अप्रैल को मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे 1अप्रैल नया साल का नया दिन होने के बजाय मूर्ख दिवस बन गया।


🚩अप्रैल फूल मतलब हिन्दुओं को मूर्ख बनाना ।

ये नाम अंग्रेज ईसाईयों की देन है।


🚩भारत मे आज भी बही खाते और बैंक के हिसाब-किताब 31 मार्च को बंद होते है और 1 अप्रैल से नये शुरू होते है।


🚩भारत में अंग्रेज़ो ने विक्रम संवत का नाश करने के लिए ही 1 जनवरी को नया साल थोपा और अप्रैल में आने वाले हिन्दू नववर्ष की मजाक उड़ाने के लिए ही “अप्रैल फूल” मनाना शुरू किया मतलब हिन्दुओं को मूर्ख बनाये जिससे वे खुद का नया साल भूल जाये ।


🚩अंग्रेज़ो की यह साजिश थी जिससे  1 अप्रैल को मूर्खता दिवस “अप्रैल फूल” का नाम दिया ताकि भारतीय संस्कृति मूर्खता भरी लगे ।


🚩अब आप स्वयं सोचे कि आपको अप्रैल फूल मनाना चाहिए या अपनी हिन्दू संस्कृति का आदर करना चाहिए।

आइये जाने अप्रैल माह के आस पास ऐतिहासिक दिन और त्यौहार कितना महान है।


🚩हिन्दुओं का पावन महिना इन दिनों से ही शुरू होता है (शुक्ल प्रतिपदा)


🚩हिंदुओं के रीति -रिवाज़ सब इन दिनों में कलेण्डर के अनुसार बनाये जाते है।


🚩महाराजा विक्रमादित्य की काल गणना इन दिनों से ही शुरू होती है।


🚩भगवान श्री रामजी का अवतरण दिवस भी इन दिनों में आता है।


🚩भगवान झूलेलाल, भगवान हनुमानजी, भगवान महावीर,  भगवान स्वामीनारायण आदि का प्रागट्य दिवस भी इन दिनों में ही आता हैं ।


🚩अंग्रेज ईसाई सदा से भारतीय सनातन संस्कृति के विरुद्ध थे इसलिए हिंदुओं के त्योहारों को मूर्खता का दिन कहते थे । पर अब हिन्दू भी बिना सोचे समझे बहुत शान से अप्रैल फूल मना रहे है।


🚩कुछ भारतवासी आज अपनी ही संस्कृति का मजाक उड़ाते हुए अप्रैल फूल मना रहे है।


🚩भारतवासी अब “अप्रैल फूल” किसी को बनाकर गुलाम मानसिकता का सबूत ना दे ।


🚩आज देश विरोधी ताकते हमारे महान भारत देश को तोड़ने के लिए अनेक साजिसे रच रहे है, जिसमे अधिकतर मीडिया, टीवी, फिल्मे, चलचित्रों, अखबार, नॉवेल, इंटरनेट आदि के माध्यम से भारतवासियों को अपने संस्कृति से दूर ले जाने का भरपूर प्रयास चल रहा है, लेकिन हम क्यों अपनी महान संस्कृति भूलकर अंग्रेजो की गुलामी वाली प्रथा अपना रहे है।


🚩भारतीय आप सब से निवेदन है कि अपनी संस्कृति के अनुसार ही पर्व त्योहार मनाये अभी जितनी भी अंग्रेजो वाली प्रथायें है वे बन्द करे और भारतीय संस्कृति के अनुसार जो भी प्रथायें हैं उनको शुरू करें ।


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Thursday, March 30, 2023

जानिए भगवान श्री राम के पूर्वज कौन थे और आज कौनसी पीढ़ी चल रही है ?

30 March 2023

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🚩कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भगवान श्री राम के वंशज के बारे में सबूत मांगा था। श्री राम के वंशज आज भी मौजूदा है इस लेख के माध्यम से जानिए आज उनके वंशज कौन है।


🚩राम के पुत्र लव और कुश की वंशावली-

राम के दो जुड़वा पुत्र लव और कुश थे। दोनों का ही वंश आगे चला। वर्तमान में दोनों के ही वंश के लोग बहुतायत में पाए जाते हैं। लव और कुश के कुल के लोग जो भारत में आज भी निवास करते हैं।





🚩ब्रह्माजी के कई पुत्र थे जिनमें से 10 प्रमुख हैं- मरीचि, अंगिरस्, अत्रि, भृगु, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्सय, ऋतु, दक्ष, स्वायंभुव मनु।


🚩मरीचि की पत्नि दक्ष- कन्या संभूति थी। इनकी दो और पत्निनयां थी- कला और उर्णा। कला से उन्हें कश्यप नामक एक पुत्र मिला। इन्होंने दक्ष की 13 पुत्रियों से विवाह किया था।


🚩कश्यप पत्नी अदिति से देवता और दिति से दैत्यों की उत्पत्ति हुई। अदिति के 10 पुत्र थे, विवस्वान्, इंद्र, धाता, भग, पूषा, मित्र, अर्यमा, त्वष्टा, अंशु, वरुण, सविता। कहीं कहीं पर यह नाम इस तरह पाए जाते हैं- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।


🚩कश्यप के बड़े पुत्र विवस्वान् से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।


🚩वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुँची। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी। (पुत्री इला का विवाह बुध से हुआ जिसका पुत्र पुरुरवा चंद्रवंशी था)।


🚩रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है:- ब्रह्माजी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप के विवस्वान् और विवस्वान् के वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था। वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।


🚩इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुए। अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।


🚩भरत के पुत्र असित हुए और असित के पुत्र सगर हुए। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। सगर के पुत्र का नाम असमंज था। असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।


🚩रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। वाल्मीकि रामायण- ॥1-59 से 72।।


🚩कुश की निम्नलिखित वंशावली भी मिलती है जिसकी हम पुष्टि नहीं करते हैं, क्योंकि अलग अलग ग्रंथों में यह अलग अलग मिलती है। कारण यह कि कुश से राजा सवाई भवानी सिंह के बीच जिन राजाओं का उल्लेख मिलता है उनके भाई भी थे जिनके अन्य वंश चले हैं इस तरह संपूर्ण देश में राम के वंश का एक ऐसे नेटवर्क फैला है जिसकी संपूर्ण वंशावली को यहां देना असंभव है।


🚩कुश की एक यह वंशावली-

राम के जुड़वा पुत्र लव और कुश हुए। कुश के अतिथि हुए, अतिधि के निषध हुए, निषध के नल हुए, नल के नभस, नभस के पुण्डरीक, पुण्डरीक के क्षेमधन्वा, क्षेमधन्वा के देवानीक, देवानीक के अहीनगर, अहीनर के रुरु, रुरु के पारियात्र, पारियात्रा के दल, दल के छल (शल), शल के उक्थ, उक्थ के वज्रनाभ, वज्रनाभ के शंखनाभ, शंखनाभ के व्यथिताश्व, व्यथिताश्व से विश्वसह, विश्वसह से हिरण्यनाभ, हिरण्यनाभ से पुष्य, पुष्य से ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि से

सुदर्शन, सुदर्शन से अग्निवर्णा, अग्निवर्णा से शीघ्र, शीघ्र से मुरु, मरु से प्रसुश्रुत, प्रसुश्रुत से सुगवि, सुगवि से अमर्ष, अमर्ष से महास्वन, महास्वन से बृहदबल, बृहदबल से बृहत्क्षण (अभिमन्यु द्वारा मारा गया था), वृहत्क्षण से गुरुक्षेप, गुरक्षेप से वत्स, वत्स से वत्सव्यूह, वत्सव्यूह से प्रतिव्योम, प्रतिव्योम से दिवाकर, दिवाकर से सहदेव, सहदेव से बृहदश्व, वृहदश्व से भानुरथ, भानुरथ से सुप्रतीक, सुप्रतीक से मरुदेव, मरुदेव से सुनक्षत्र, सुनक्षत्र से किन्नर, किन्नर से अंतरिक्ष, अंतरिक्ष से सुवर्ण, सुवर्ण से अमित्रजित्, अमित्रजित् से वृहद्राज, वृहद्राज से धर्मी, धर्मी से कृतन्जय, कृतन्जय से रणन्जय, रणन्जय से संजय, संजय से शुद्धोदन, शुद्धोदन से शाक्य, शाक्य (गौतम बुद्ध) से राहुल, राहुल से प्रसेनजित, प्रसेनजित् से क्षुद्रक, क्षुद्रक से कुंडक, कुंडक से सुरथ, सुरथ से सुमित्र, सुमित्र के भाई कुरुम से कुरुम से कच्छ, कच्छ से बुधसेन।


🚩बुधसेन से क्रमश: धर्मसेन, भजसेन, लोकसेन, लक्ष्मीसेन, रजसेन, रविसेन, करमसेन, कीर्तिसेन, महासेन, धर्मसेन, अमरसेन, अजसेन, अमृतसेन, इंद्रसेन, रजसेन, बिजयमई, स्योमई, देवमई, रिधिमई, रेवमई, सिद्धिमई, त्रिशंकुमई, श्याममई, महीमई, धर्ममई, कर्ममई, राममई, सूरतमई, शीशमई, सुरमई, शंकरमई, किशनमई, जसमई, गोतम, नल, ढोली, लछमनराम, राजाभाण, वजधाम (वज्रदानम), मधुब्रह्म, मंगलराम, क्रिमराम, मूलदेव, अनंगपाल, श्रीपाल (सूर्यपाल), सावन्तपाल, भीमपाल, गंगपाल, महंतपाल, महेंद्रपाल, राजपाल, पद्मपाल, आनन्दपाल, वंशपाल, विजयपाल, कामपाल, दीर्घपाल (ब्रह्मापल), विशनपाल, धुंधपाल, किशनपाल, निहंगपाल, भीमपाल, अजयपाल, स्वपाल (अश्वपाल), श्यामपाल, अंगपाल, पुहूपपाल, वसन्तपाल, हस्तिपाल, कामपाल, चंद्रपाल, गोविन्दपाल, उदयपाल, चंगपाल, रंगपाल, पुष्पपाल, हरिपाल, अमरपाल, छत्रपाल, महीपाल, धोरपाल, मुंगवपाल, पद्मपाल, रुद्रपाल, विशनपाल, विनयपाल, अच्छपाल (अक्षयपाल), भैंरूपाल, सहजपा,, देवपाल, त्रिलोचनपाल (बिलोचनपाल), विरोचनपाल, रसिकपाल, श्रीपाल (सरसपाल), सुरतपाल, सगुणपाल, अतिपाल, गजपाल (जनपाल), जोगेद्रपाल, भौजपाल (मजुपाल), रतनपाल, श्यामपा,, हरिचंदपाल, किशनपाल, बीरचन्दपाल, तिलोकपाल, धनपाल, मुनिकपाल, नखपाल (नयपाल), प्रतापपाल, धर्मपाल, भूपाल, देशपाल (पृथ्वीपाल), परमपाल, इंद्रपाल, गिरिपाल, रेवन्तपाल, मेहपाल (महिपाल), करणपाल, सुरंगपाल (श्रंगपाल), उग्रपाल, स्योपाल (शिवपाल), मानपाल, परशुपाल (विष्णुपाल), विरचिपाल (रतनपाल), गुणपाल, किशोरपाल (बुद्धपाल), सुरपाल, गंभीरपाल, तेजपाल, सिद्धिपाल (सिंहपाल), गुणपाल, ज्ञानपाल (तक गढ़ ग्यारियर राज किया), काहिनदेव, देवानीक, इसैसिंह (तक बांस बरेली में राज फिर ढूंढाड़ में आए), सोढ़देव, दूलहराय, काकिल, हणू (आमेर के टीकै बैठ्या), जान्हड़देव, पंजबन, मलेसी, बीजलदेव, राजदेव, कील्हणदेव, कुंतल, जीणसी (बाद में जोड़े गए), उदयकरण, नरसिंह, वणबीर, उद्धरण, चंद्रसेन, पृथ्वीराज सिंह (इस बीच पूणमल, भीम, आसकरण और राजसिंह भी गद्दी पर बैठे), भारमल, भगवन्तदास, मानसिंह, जगतसिंह (कंवर), महासिंह (आमेर में राजा नहीं हुए), भावसिंह गद्दी पर बैठे, महासिंह (मिर्जा राजा), रामसिंह प्रथम, किशनसिंह (कंवर, राजा नहीं हुए), कुंअर, विशनसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई ईश्वरसिंह, सवाई मोधोसिंह, सवाई पृथ्वीसिंह, सवाई प्रतापसिंह, सवाई जगतसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई जयसिंह तृतीय, सवाई रामसिंह द्वितीय, सवाई माधोसिंह द्वितीय, सवाई मानसिंह द्वितीय, सवाई भवानी सिंह (वर्तमान में गद्दी पर विराजमान हैं)


🚩अन्य तथ्य:

राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।


🚩राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।

🚩कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है। एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यह इसकी गणना की जाए तो लव और कुश महाभारतकाल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व।


🚩इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। माना जाता है कि जो लोग खुद को शाक्यवंशी कहते हैं वे भी श्रीराम के वंशज हैं।

तो यह सिद्ध हुआ कि वर्तमान में जो सिसोदिया, कुशवाह (कछवाह), मौर्य, शाक्य, बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) आदि जो राजपूत वंश हैं वे सभी भगवान प्रभु श्रीराम के वंशज है। जयपूर राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग की राम के पुत्र कुश के वंशज है। महारानी पद्मिनी ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए में कहा था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 309वें वंशज थे।


🚩इस घराने के इतिहास की बात करें तो 21 अगस्त 1921 को जन्में महाराज मानसिंह ने तीन शादियां की थी। मानसिंह की पहली पत्नी मरुधर कंवर, दूसरी पत्नी का नाम किशोर कंवर था और माननसिंह ने तीसरी शादी गायत्री देवी से की थी। महाराजा मानसिंह और उनकी पहली पत्नी से जन्में पुत्र का नाम भवानी सिंह था। भवानी सिंह का विवाह राजकुमारी पद्मिनी से हुआ। लेकिन दोनों का कोई बेटा नहीं है एक बेटी है जिसका नाम दीया है और जिसका विवाह नरेंद्र सिंह के साथ हुआ है। दीया के बड़े बेटे का नाम पद्मनाभ सिंह और छोटे बेटे का नाम लक्ष्यराज सिंह है।

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🚩मुसलमान भी राम के वंशज हैं?

हालांकि ऐसे कई राजा और महाराजा हैं जिनके पूर्वज श्रीराम थे। राजस्थान में कुछ मुस्लिम समूह कुशवाह वंश से ताल्लुक रखते हैं। मुगल काल में इन सभी को धर्म परिवर्तन करना पड़ा लेकिन ये सभी आज भी खुद को प्रभु श्रीराम का वंशज ही मानते हैं।


🚩इसी तरह मेवात में दहंगल गोत्र के लोग भगवान राम के वंशज हैं और छिरकलोत गोत्र के मुस्लिम यदुवंशी माने जाते हैं। राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि जगहों पर ऐसे कई मुस्लिम गांव या समूह हैं जो राम के वंश से संबंध रखते हैं। डीएनए शोधाधुसार उत्तर प्रदेश के 65 प्रतिशत मुस्लिम ब्राह्मण बाकी राजपूत, कायस्थ, खत्री, वैश्य और दलित वंश से ताल्लुक रखते हैं- लेखक : राजेश पंडित


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Wednesday, March 29, 2023

ऐसा तो भगवान श्रीराम में क्या था, जो लाखों साल के बाद भी आज उनकी लोकप्रियता अमर है ?

29  March 2023

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🚩भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में माना जाता है। धर्मशास्त्रों में, विशेषतः पौराणिक साहित्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक चतुर्युगी में 43,20,000 वर्ष होते हैं, जिनमें कलियुग के 4,32,000 वर्ष तथा द्वापर के 8,64,000 वर्ष होते हैं। श्री रामजी का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,102 वर्ष ही बीते हैं) और श्री रामजी का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय परंपरागत रूप से 11,000 वर्ष माना गया है। अतः द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + श्री रामजी की वर्तमानता के 11,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अबतक बीते 5,102 वर्ष= कुल 8,80,102 वर्ष। अतएव परंपरागत रूप से भगवान श्री रामजी का जन्म आज से लगभग 8,80,102 वर्ष पहले माना जाता है।



🚩एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी जुबान पर आता है। इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है।


🚩भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।


🚩भगवान श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे। उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या मुझे प्रणाम करे। सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे।


🚩श्रीरामजी प्रसंगोचित बोलते थे। जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सही है ।


🚩श्रीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे। बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे। जब वह किसी की निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तो वे सामनेवाले को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था। श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।


🚩युद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था। वे रावण से कहते : ‘लंकेश! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना। ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की: ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होईए। तब श्रीरामजी ने क्रोध का आह्वान किया: क्रोधं आवाहयामि। ‘क्रोध! अब आ जा।’


🚩श्रीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे, किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे। श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे। श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था। चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे।


🚩श्रीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे। “शुक्रनीति” और “मनुस्मृति” में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए- इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है।


🚩श्रीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी। जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था। वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर लेते थे।


🚩प्रजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थसुख और राज्यवैभव का त्याग करने में भी संकोच नहीं करते थे। इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है।


🚩राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है :

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।।


🚩‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर रहते हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं। उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है।’

🚩राम-राज्य में किसीको आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं ।


🚩धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं।

स्रोत: ऋषि प्रसाद पत्रिका: मार्च, 2010


🚩देश के नेता भी भगवान श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा, यह अवर्णनीय है और सदियों तक यश भी फैला रहेगा।


🚩रामनवमी को रामराज्य की स्थापना का संकल्प करेंगे…


🚩रामराज्य में प्रजा धर्माचरणी थी इसीलिए उनको भगवान श्रीराम जैसे सात्त्विक राज्यकर्ता मिले और वे आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए।

इसके साथ यदि हम भी धर्माचरणी और ईश्‍वर का भक्त बनें, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दूराष्ट्र) अब भी अवतरित होगा।


🚩नित्य धर्माचरण और धर्माधिष्ठित राज्यकार्य भार से आदर्श राज्यकार्य करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात प्रभु श्रीराम। प्रजा का जीवन संपन्न करनेवालेे, अपराध भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान नहीं- ऐसे रामराज्य की ख्याति थी। ऐसे आदर्श राज्य “हिन्दूराष्ट्र” स्थापना का निर्धारण (निश्‍चय) करेंगे!!


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Tuesday, March 28, 2023

कितनी खतरनाक है शक्कर ? कैसे बचे और क्या करे ? जानिए

28  March 2023

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🚩वैज्ञानिक तकनीक के विकास के पूर्व कहीं भी शक्कर खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त नहीं की जाती थी। मीठे फलों अथवा शर्करायुक्त पदार्थों की शर्करा कम-से-कम रूपान्तरित कर उपयुक्त मात्रा में प्रयुक्त की जाती थी। इसी कारण पुराने लोग दीर्घजीवी तथा जीवन के अंतिम क्षणों तक कार्यसक्षम बने रहते थे।


🚩आजकल लोगों में भ्रांति बैठ गई है कि सफेद चीनी खाना सभ्य लोगों की निशानी है तथा गुड़, शीरा आदि सस्ते शर्करायुक्त खाद्य पदार्थ गरीबों के लिए हैं। यही कारण है कि अधिकांशतः उच्च या मध्यम वर्ग के लोगों में ही मधुमेह रोग पाया जाता है।



🚩श्वेत चीनी शरीर को कोई पोषक तत्त्व नहीं देती अपितु उसके पाचन के लिए शरीर को शक्ति खर्चनी पड़ती है और बदले में शक्ति का भण्डार शून्य होता है। उलटे वह शरीर के तत्वों का शोषण करके महत्व के तत्वों का नाश करती है। सफेद चीनी इन्स्युलिन बनाने वाली ग्रंथि पर ऐसा प्रभाव डालती है कि उसमें से इन्स्युलिन बनाने की शक्ति नष्ट हो जाती है। फलस्वरूप मधुप्रमेह जैसे रोग होते हैं।


🚩शरीर में ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेटस में शर्करा का योगदान प्रमुख है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि परिष्कृत शक्कर का ही उपयोग करें। शक्कर एक धीमा एवं श्वेत विष (Slow and White Poison) है जो लोग गुड़ छोड़कर शक्कर खा रहे हैं उनके स्वास्थ्य में भी निरन्तर गिरावट आई है ऐसी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट है।


🚩ब्रिटेन के प्रोफेसर ज्होन युडकीन चीनी को श्वेत विष कहते हैं। उन्होंने सिद्ध किया है कि शारीरिक दृष्टि से चीनी की कोई आवश्यकता नहीं है। मनुष्य जितना दूध, फल, अनाज और शाकभाजी उपयोग में लेता है उससे शरीर को जितनी चाहिए उतनी शक्कर मिल जाती है। बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि चीनी से त्वरित शक्ति मिलती है परन्तु यह बात बिल्कुल भ्रमजनित मान्यता है, वास्तविकता से बहुत दूर है।


🚩चीनी में मात्र मिठास है और विटामिन की दृष्टि से यह मात्र कचरा ही है। चीनी खाने से रक्त में कोलेस्टरोल बढ़ जाता है जिसके कारण रक्तवाहिनियों की दीवारें मोटी हो जाती हैं। इस कारण से रक्तदबाव तथा हृदय रोग की शिकायत उठ खड़ी होती है। एक जापानी डॉक्टर ने 20 देशों से खोजकर यह बताया था कि दक्षिणी अफ्रीका में हब्शी लोगों में एवं मासाई और सुम्बरू जाति के लोगों में हृदयरोग का नामोनिशान भी नहीं, कारण कि वे लोग चीनी बिल्कुल नहीं खाते।


🚩अत्यधिक चीनी खाने से हाईपोग्लुकेमिया नामक रोग होता है जिसके कारण दुर्बलता लगती है, झूठी भूख लगती है, काँपकर रोगी कभी बेहोश हो जाता है। चीनी के पचते समय एसिड उत्पन्न होता है जिसके कारण पेट और छोटी अँतड़ी में एक प्रकार की जलन होती है। कूटे हुए पदार्थ बीस प्रतिशत अधिक एसिडिटी करते हैं। चीनी खानेवाले बालक के दाँत में एसिड और बेक्टेरिया उत्पन्न होकर दाँतों को हानि पहुँचाते हैं। चमड़ी के रोग भी चीनी के कारण ही होते हैं। अमेरिका के डॉ. हेनिंग्ट ने शोध की है कि चॉकलेट में निहित टायरामीन नामक पदार्थ सिरदर्द पैदा करता है। चीनी और चॉकलेट आधाशीशी का दर्द उत्पन्न करती है।


🚩अतः बच्चों को पीपरमेंट-गोली, चॉकलेट आदि शक्करयुक्त पदार्थों से दूर रखने की सलाह दी जाती है। अमेरिका में 98 प्रतिशत बच्चों को दाँतों का रोग है जिसमें शक्कर तथा इससे बने पदार्थ जिम्मेदार माने जाते हैं।


🚩परिष्कृतिकरण के कारण शक्कर में किसी प्रकार के खनिज, लवण, विटामिन्स या एंजाइम्स शेष नहीं रह जाते। जिससे उसके निरन्तर प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ एवं विकृतियाँ पनपने लगती हैं।


🚩अधिक शक्कर अथवा मीठा खाने से शरीर में कैल्शियम तथा फासफोरस का संतुलन बिगड़ता है जो सामान्यतया 5 और 2 के अनुपात में होता है। शक्कर पचाने के लिए शरीर में कैल्शियम की आवश्यकता होती है तथा इसकी कमी से आर्थराइटिस, कैंसर, वायरस संक्रमण आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है। अधिक मीठा खाने से शरीर के पाचन तंत्र में विटामिन बी काम्पलेक्स की कमी होने लगती है जो अपच, अजीर्ण, चर्मरोग, हृदयरोग, कोलाइटिस, स्नायुतन्त्र संबंधी बीमारियों की वृद्धि में सहायक होती है।


🚩शक्कर के अधिक सेवन से लीवर में ग्लाइकोजिन की मात्रा घटती है जिससे थकान, उद्वग्निता, घबराहट, सिरदर्द, दमा, डायबिटीज आदि विविध व्याधियाँ घेरकर असमय ही काल के गाल में ले जाती हैं।


🚩प्रो. लिडा क्लार्क ने बताया कि "श्वेत चीनी एक प्रकार का  नशा है और शरीर पर वह गहरा गंभीर प्रभाव डालता है।


🚩डॉ सुरेंद्र प्रसाद ने बताया कि "सफेद चीनी को चमकदार बनाने की क्रिया में चूना, कार्बन डायोक्साइड, कैल्शियम, फास्फेट, फास्फोरिक एसिड, अल्ट्रामरिन ब्लू तथा पशुओं की हड्डियों का चूर्ण उपयोग में लिया जाता है। चीनी को इतना गर्म किया जाता है कि प्रोटीन नष्ट हो जाता है। अमृत मिटकर विष बन जाता है।

सफेद चीनी लाल मिर्च से भी अधिक हानिकारक है। उससे वीर्य पानी सा पतला होकर स्वप्नदोष, रक्तदबाव, प्रमेह और मूत्रविकार का जन्म होता है। वीर्यदोष से ग्रस्त पुरुष और प्रदररोग से ग्रस्त महिलाएँ चीनी का त्याग करके अदभुत लाभ उठाती हैं।"


🚩लन्दन मेडिकल कॉलेज के प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. लुईकिन अधिकांश हृदयरोग के लिए शक्कर को उत्तरदायी मानते हैं। वे शरीर की ऊर्जा प्राप्ति के लिए गुड़, खजूर, मुनक्का, अंगूर, शहद, आम, केला, मोसम्मी, खरबूजा, पपीता, गन्ना, शकरकंद आदि लेने का सुझाव देते हैं। ( स्त्रोत: अरोग्य निधि)


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Monday, March 27, 2023

कैथोलिक चर्च के पादरी बेनेडिक्ट एंटो पर कई महिलाओं के साथ दुष्कर्म का आरोप

27  March 2023

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🚩कन्नूर (केरल) के कैथोलिक चर्च की एक  नन सिस्टर मैरी चांडी  ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी।


🚩कैथलिक चर्च कि दया, शांति और कल्याण कि असलियत दुनिया के सामने उजागर हो ही गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता कि पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मो कि  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । लेकिन फिर भी महान हिन्दूधर्म के मंदिरो एवं पवित्र हिन्दू धर्मगुरुओं को ही मीडिया और तथाकथित सेक्युलर बदनाम करते है ।


🚩पादरी ने 80 महिलाओं के साथ किया यौन शौषण 



🚩तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में एक पादरी को सोमवार (20 मार्च 2023) सुबह उसके नागरकोइल फार्महाउस से यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। पादरी का नाम बेनेडिक्ट एंटो (Benedict Anto) है। नर्सिंग कॉलेज की छात्रा की शिकायत के आधार पर कन्याकुमारी पुलिस ने बेनेडिक्ट एंटो के खिलाफ मामला दर्ज किया था। वह पिछले कुछ दिनों से फरार चल रहा था। एंटो सोशल मीडिया पर अपनी अश्लील फोटो और वीडियो वायरल होने के बाद से चर्चा में है।


🚩सिरो मलंकारा कैथोलिक चर्च के पादरी पर कई महिलाओं के साथ अवैध संबंध का भी आरोप है। बताया जा रहा है कि एंटो के 16 से 50 उम्र की 80 महिलाओं के साथ करीब 200 आपत्तिजनक वीडियो सामने आए हैं।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कन्याकुमारी जिले की साइबर पुलिस ने एक नर्सिंग कॉलेज की छात्रा द्वारा पादरी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था। लगभग एक हफ्ते पहले से पादरी की अश्लील वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। छात्रा ने अपनी शिकायत में बताया था कि पादरी बेनेडिक्ट एंटो उसे ऑनलाइन परेशान कर रहा था। जब भी वह चर्च में जाती थी, एंटो उसे गलत तरीके से छूता था।


🚩कुछ दिन बाद एंटो ने उसकी माँ से उसका मोबाइल नंबर ले लिया। फिर वह उस पर वीडियो कॉल और व्हाट्सएप चैट करने का दबाव बनाने लगा। इसके बाद उसने उसे ऑनलाइन परेशान करना शुरू कर दिया।


🚩जब छात्रा को पता चला कि एंटो उसकी तरह दूसरी लड़कियों को भी परेशान कर रहा है, तो उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का फैसला किया। हालाँकि, एंटो के अलावा कुछ और लोगों ने उसे धमकाना शुरू कर दिया। उसने अपनी शिकायत में तीन और लोगों का नाम भी लिया है। शिकायत के आधार पर साइबर पुलिस ने एंटो और अन्य लोगों पर आईटी एक्ट, महिला उत्पीड़न और धमकी देने संबंधी धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया और उसकी तलाश में जुट गए।


🚩30 वर्षीय पादरी कन्याकुमारी जिले में नागरकोइल के पास मार्तंडम का रहने वाला है। वह विभिन्न राजनीतिक समूहों से जुड़ा हुआ है, जिसमें से एक नाम तमिलर काची सीमान (NTK) है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरों में से एक में वह एनटीके नेता सीमन उर्फ सेबेस्टियन, जो श्रीलंका के आतंकी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) का समर्थक है उसके साथ नजर आ रहा है।


🚩बेनेडिक्ट एंटो के फेसबुक प्रोफाइल से पता चलता है कि वह सीमन का समर्थक है। उसने अपने घर में सीमन के साथ फोटो भी लगाई हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि वह मेक्कामंडपम पिलंकलाई में आरसी चर्च में पादरी है।


🚩13 मार्च 2023 को सोशल मीडिया पर बेनेडिक्ट एंटो की एक वीडियो खूब वायरल हुआ, जिसमें वह एक लड़की को किस (चुम्मा लगाते ) करते हुए नजर आ रहा है। वहीं, पादरी ने कुछ दिन पहले पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि कुछ लोगों ने उस पर हमला किया और उसका लैपटॉप व मोबाइल छीन लिया।


🚩विश्व में कैथोलिक पादरियों द्वारा हजारों यौन उत्पीडऩ के मामले सामने आ चुके हैं। अकेले 2001-10 के कालखंड में 3 हजार पादरियों पर यौन उत्पीडऩ और कुकर्म के आरोप लग चुके हैं जिनमें अधिकतर मामले 50 साल या उससे अधिक पुराने हैं। रोमन कैथोलिक चर्च एक कठोर सामाजिक संस्था है जो हमेशा अपने विचार और विमर्श को गुप्त रखती है। अपनी नीतियां स्वयं बनाती है और मजहबी दायित्व कि पूर्ति कठोरता से करवाती है। 


🚩जब-जब हिन्दू साधु-संतों से जुड़े मामले प्रकाश में आए तब-तब अधिकतर को समाचार पत्रों में बड़ी-बड़ी सुर्खियों के साथ श्रृंखलाबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाता है और कई दिनों तक यह न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम शो का मुख्य मुद्दा भी बना रहता है। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, संत आशाराम बापू, स्वामी नित्यानंद, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानन्द आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

🚩ऐसा क्यों है कि जब भी हिन्दू साधु-संतों से जुड़ी तथाकथित आपराधिक खबरें सामने आती हैं वे एकाएक सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं किन्तु अन्य मजहबों से संबंधित मामलों में सन्नाटा पसरा मिलता है? क्या मीडिया भी पादरी, मौलवी के अपराधो के साथ रहती है? उनकी अपराधिक खबरे छुपाने के पैसे मिलते है???


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Sunday, March 26, 2023

श्री राम राज्याभिषेक महोत्सव पर जानिए रामराज्य की विशेषताएँ क्या थी ? जो आज भी आदर्श है....

26 March 2023

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🚩एक ऐसे आदर्श राज्य की कल्पना तथा धरा पर उसका अवतरण, जहाँ हर ओर धर्ममय वातारण और तत्जन्य सुख-समृद्धि का वातारवण हो, प्रारंभ से ही मानवमन की लालसा रही है। अवध के सिंहासन पर राज्याभिषेक के बाद राम के शासन को  महर्षि वाल्मीकिजी ने एक ऐसा ही आदर्श राज्य बताया है। इसे उन्होंने रामराज्य की संज्ञा दी है।


🚩किसी भी देश में राजा अथवा शासक को राज्य की खुशहाली का जिम्मेदार माना जाता रहा है। इसके विपरीत यदि राज्य में कहीं कोई बदहाली है तो इसका उत्तरदायी भी राजा ही रहता है। 'यथा राजा तथा प्रजा' अर्थात जैसा राजा वैसी प्रजा, यह उक्ति लोक में प्रसिद्ध भी है। किंतु संभवत: अभी तक कोई राजा इतना अच्छा नहीं हुआ कि उसके राज्य में सारी प्रजा पूर्णत: प्रसन्न और संतुष्ट हो, राज्य में चारों ओर खुशहाली हो। भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो संभवत: एकमात्र राम के शासन में रहा राज्य आदर्श राज्य कहा गया है। रामराज्य का अर्थ ही हो गया, एक आदर्श राज्य, सुशासित राज्य। रामकथा में रामराज्य का प्रत्यय अत्यंत महत्वपूर्ण है। रामकथा की लोकप्रियता और सर्वस्वीकृति का एक महत्वपूर्ण कारण रामराज्य की अवधारणा भी है। राम सचेत शासक तो थे ही, पर मुख्य बात यह है कि स्वयं अपने चरित्र के माध्यम से उन्होंने परिवार, समाज एवं देश का अच्छा सदस्य बनने की प्रेरणा भी अपनी प्रजा को दी थी।


🚩रामायण में रामराज्य का उल्लेख



🚩वाल्मीकीय रामायण में तीन स्थानों पर रामराज्य का उल्लेख है। सर्वप्रथम इसका वर्णन बालकांड (सर्ग १) में मिलता है। यहाँ नारद वाल्मीकि को संक्षेप में रामकथा सुनाते हैं जो राम के जन्म से लेकर अयोध्या वापसी पर राम के राज्याभिषेक तक चलती है। इस तरह यह कथा भूत से लेकर वर्तमान तक की है। फिर आगे छह श्लोकों में नारद भविष्य की कथा बताते हैं कि अब जो राम अयोध्या पर राज्य करेंगे, वह राम-राज्य कैसा होगा। यहाँ संक्षेप में रामराज्य की विशेषताएँ बताई गई हैं। दूसरी बार वाल्मीकि युद्धकांड (सर्ग १२८) में रामराज्य का वर्णन करते हैं जिसमें रामराज्य कैसा था, यह बताया गया है। अंत में उत्तरकांड (सर्ग ४१) में भरत के मुख से पुन: रामराज्य का वर्णन सुनने मिलता है। उल्लेखनीय है कि रामराज्य को लेकर तीनों वर्णनों में अधिकांश तथ्य समान हैं। परवर्ती रामकाव्यों, जैसे अध्यात्मरामायण और मानस आदि में यह वर्णन वाल्मीकि रामायण के समान ही है। हाँ, आधुनिक युग में 'रामराज्य' के नाम से बलदेवप्रसाद मिश्र, हरिशंकर शर्मा एवं सुरेशचंद्र शर्मा द्वारा तीन कृतियाँ रची गई हैं। ये तीनों ही रामायण की विचार-धारा के साथ गांधीजी की विचारधारा से प्रेरित हैं। यहाँ भारतीय धर्म और संस्कृति का आदर्शरूप चित्रित किया गया है।                       


🚩रामराज्य की छह प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस काल में सभी सुखी है, सभी कर्तव्यपरायण हैं, सभी दीर्घायु है, सभी में दाम्पत्य प्रेम है, प्रकृति उदार है और सभी में नैतिक उत्कर्ष देखा जा सकता है।


🚩सभी सुखी-

रामराज्य की बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ सभी प्रसन्न, सुखी, संतुष्ट, हृष्ट-पुष्ट है। सुख या संतुष्टि तन-मन दोनों की होती है। शरीर के स्वस्थ होने का अर्थ है कि वह रोगव्याधि से, जो हमें दुख देते हैं, मुक्त हैं। स्वस्थ शरीर सुख का बड़ा कारण होता है। मन के विभिन्न प्रकार के विकार जैसे लोभ, ईर्ष्या, असंतोष आदि भी हमारी प्रसन्नता में बाधक होते हैं। ये मानवीय संबंधों में तरह-तरह की कटुता और विकृतियों को भी जन्म देते हैं जिससे समाज और व्यक्ति दोनों ही प्रभावित होते हैं। रामराज्य में सभी के सुखी होने का तात्पर्य है कि किसी को किसी प्रकार का दु:ख नहीं है। वस्तुत: यहाँ कोई किसी को दु:ख पहुँचाता नहीं है। स्पष्ट है कि समाज में ऐसी स्थिति की कामना हर मनुष्य करता है। वाल्मीकि के शब्दों में निरामया विशोकाश्च रामे राज्यं प्रशासति (वा.रा.यु.कां.१२८.१०१) अर्थात रामराज्य में रोग और शोक से रहित थे तथा सर्वे मुदितमेवासीत् अर्थात सभी प्रसन्न रहते थे। इस समय की स्थिति सतयुग के समान थी (वही, बा.कां.१.९३)।


🚩तुलसीदास की रामराज्य में सर्वसुखी होने को दर्शाने वाली प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं-दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि व्यापा।।(मानस,उ.कां.२१.१) यहाँ व्यक्ति स्वयं तो सुखी है ही दूसरों से भी उसके प्रेम संबंध है। सभी मनुष्य परस्पर प्रेम से रहते हैं। सब नर करहिं परस्पर प्रीति। (बा.कां २१.१) यहाँ तक कि हाथी और सिंह जैसे पशु भी परस्पर प्रेम से रहते हैं। रहहिं एक संग गज पंचानन। रामराज्य में सुखसंपदा इतनी है कि बरनि न सकइ फनीस शारदा। अर्थात शेषनाग और सरस्वती भी उसका वर्णन करने में समर्थ नहीं है। पर्वत स्वयं मणियों की खानें प्रगट करते हैं और समुद्र लहरों के द्वारा डारहिं रत्न

तटहिं नर लहहिं अर्थात किनारों पर रत्न डाल देते हैं जिसे लोग पा लेते हैं। वृक्ष माँगने से ही मधु टपका देते हैं और गौएँ मनचाहा दूध देती हैं। धरती सदा हरी भरी रहती है। यहाँ कोई दरिद्र, दुखी और दीन नहीं है। नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।  

   

🚩सभी कर्तव्यपरायण-

किसी भी राज्य में खुशहाली तभी आती है जब सभी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करें। यदि 'मैं' अर्थात हर व्यक्ति अपने-अपने निर्धारित कर्तव्यों का पालन करने लगे तो किसी भी समाज में रामराज्य आने में समय नहीं लगेगा। श्रेष्ठ सामाजिकता एवं नैतिकता यही है। रामायण-काल में हमारे देश में व्यक्तियों के कर्तव्य निर्धारित करने के लिये वर्णाश्रम व्यवस्था रही है। हमारे देश की प्राचीन व्यवस्था में भी व्यक्ति के वर्ण और आश्रमिक स्थिति के अनुसार अपने कर्तव्यों के पालन पर बल दिया गया है। इस व्यवस्था की आदर्श स्थिति यह है कि सभी व्यक्ति अपने-अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कार्य करें। वाल्मीकि लिखते हैं-ब्राह्मणा: क्षत्रिया: वैश्या: शूद्रा: लोभविवर्जिता:।...अर्थात रामराज्य में चारों वर्ण के लोग लोभरहित होकर अपने-अपने वर्णाश्रमानुसार कर्म करते हुए संतुष्ट रहते थे (वा.रा.यु.कां.१२८.१०४)।


🚩रामराज्य की इस व्यवस्था के विषय में वाल्मीकि के समान तुलसी भी कहते हैं-

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।। (मानस,उ.कां.२०)

अन्य स्थान पर तुलसी कहते हैं-चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।। अर्थात लोक श्रुति और नीति के अनुसार अपने अपने धर्म में रत रहते थे। यहाँ उल्लेखनीय है आज हमें प्राचीन वर्णव्यस्था में अनेक दोष दिखाई देते हैं। यह हमें अमानवीय लगती है किंतु हमें स्मरण रखना चाहिये कि वर्ण जन्म के आधार पर नहीं कर्म के उसकी प्रकृति के आधार पर तय होते थे। किसी भी देश का कल्याण तभी संभव है जब उस देश का शासक दार्शनिक हो। इससे स्पष्ट है कि मनुष्य की प्रकृति के अनुसार उसका वर्ण निर्धारित होना चाहिये। जब वर्ण जन्म के आधार पर होता तभी इस व्यवस्था में विकृति आती है।


🚩पूर्ण आयु-

रामराज्य में सभी पूर्ण आयु प्राप्त करते थे। पूर्ण आयु प्राप्त व्यक्ति की मृत्यु शोकप्रद नहीं होती। मृत्यु का दु:ख परिजनों के लिये तब अत्यंत कष्टकारी होता है जब वह अकाल आती है। किसी भी पिता के लिये पुत्र की अर्थी को कंधा देना अपने मरण से अधिक पीड़ादायक होता है। रामराज्य की विशेषता है कि इसमें न पुत्र की मृत्यु होगी न स्त्रियाँ विधवा होगी। वाल्मीकि कहते हैं-राम राज्य में विधवाओं का विलाप नहीं सुनाई देता था। बूढ़ों को बालकों के अन्त्येष्टि संस्कार नहीं करने पड़ते थे न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि (वा.रा.यु.कां.१२८.९९)।


🚩रामायण के अनुसार रामराज्य में अकालमृत्यु होने पर उसका कारण ढूँढा जाता था तथा फिर उसका निवारण भी किया जाता था। इस संदर्भ में शंबूक-वध का प्रसंग दृष्टव्य है। शंबूकवध यद्यपि आलोच्य रहा है, किंतु एक बात ध्यातव्य है कि अच्छे शासक को अकालमृत्यु का कारण ढूँढ कर उसका निवारण करना चाहिये। अकालमृत्यु का एक कारण अन्य जंतुओं का उत्पात भी होता है। रामराज्य में सर्प आदि दुष्ट जंतुओं का भय नहीं था और रोगों की आशंका भी नहीं थी (वा.रा.यु.कां.१२८.९८)।

तुलसी ने इस संदर्भ में रामराज्य का कितना सुंदर चित्र खींचा है-

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं काउ अबुध न लच्छन हीना।। (मानस,उ.कां.२१.३)


🚩दाम्पत्य प्रेम-

किसी भी समाज में पति-पत्नी के बीच परस्पर प्रेम, सौहार्द्र और विश्वास परिवार की और साथ ही समाज की खुशहाली का मुख्य कारण होता है। रामराज्य में स्त्रियाँ तो पतिव्रता थी ही, पुरुष भी एकपत्नीव्रती थे।

एकनारि व्रतरत सब झारी।

ते मन बचन क्रम पति हितकारी।।

स्वयं राम तथा शेष तीनों भाइयों के एकपत्नीव्रती होने का उदाहरण प्रजा के सामने था।


🚩प्रकृति की उदारता-

मनुष्य प्रकृति से बँधा है। उससे अलग वह नहीं रह सकता। बल्कि कहा जाये तो उसे प्रकृति की दया की नितांत आवश्यकता होती है। रामराज्य में प्रकृति भी मनुष्य पर मेहरबान थी। वहाँ दुर्भिक्ष का भय नहीं था। आग और पानी भी नुकसान नहीं पहुँचाते थे। सभी नगर धनधान्य संपन्न थे। यहाँ वृक्षों की जड़ें मजबूत होती थीं। वृक्ष सदा फूलों फलों से लदे रहते थे। मेघ आवश्यकतानुसार बरसते थे। वायु मंदगति से सुखद स्पर्श देते हुए चलती थी।

नित्यमूला नित्यफलास्तरवतत्र पुष्पिता:।

कामवर्शी च पर्जन्य: सुखस्पर्शश्च मारुत:।। (वा.रा.यु.कां.१२८.१०३)।


🚩अध्यात्मरामायणकार कहते हैं-राघवे शासति भुवं लोकनाथे रमापतौ। वसुधा शस्यसम्पन्ना फलवन्तश्च भूरुहा: (अ.रा.उ.कां ४.२१) अर्थात त्रिलोकीनाथ लक्ष्मीपति राघव के राज्य में धरती धन-धान्य से सम्पन्न थी और वृक्ष हमेशा फलों से लदे दिखाई देते थे। मानस में तुलसीदास रामराज्य में उदार प्रकृति का वर्णन इन शब्दों

में करते हैं- फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। वनों में वृक्ष सदा फूलते और फलते हैं। सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गुंजत अलि लै चलि मकरंदा।। अर्थात शीतल मंद सुगंधित पवन बहती रहती है और भौंरे पुष्पों का रस लेकर गुंजार करते जाते हैं।


🚩नैतिक उत्कृष्टता-

नैतिकता ही समाज को मजबूती और श्रेष्ठता प्रदान करती है। वाल्मीकि के अनुसार रामराज्य में चोर-लुटेरों का भय नहीं था। नानर्थं कश्चिदस्पृशत् अर्थात अनर्थकारी काम कोई करता ही नहीं था (वा.रा.यु.कां.१२८.९९)। सारी प्रजा धर्म में तत्पर रहती थी। कोई झूठ नहीं बोलता था। (वही, १०५) उदारता, परोपकारिता, अचौर्य, और विप्रों की सेवा करना यह गुण सभी व्यक्तियों में होना आवश्यक है। तुलसी के शब्दों में- 

सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी।।


🚩नैतिक उत्कृष्टता के लिये ज्ञान का होना आवश्यक है। रामराज्य में सभी ज्ञानी थे इसीलिये दंभरहित कृतज्ञ और अकपट की भावना मन में रखते थे।

सब निर्दंभ धर्मरत पुनी । नर अरु नारि चतुर सब गुनी।।

सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतज्ञ नहिं कपट सयानी।। (मानस,उ.कां.२१.४)

रामनाम की गूँज-किसी भी शासक का चरित्र दृढ़ हो एवं उसके कार्य प्रजा के अनुकूल हो तो स्वाभाविक ही प्रजा उसका नामजप करती है। रामराज्य में प्रजा केवल राम की ही चर्चा होती थी। सारा जगत राममय हो रहा था। रामो रामो राम इति प्रजानामभवन् कथा (वा.रा.यु.कां.१२८.१०२)।

पुरी के लोग कहते थे कि हमारे लिये चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें (वही, उ.कां.४१.२१)।

मानस में तुलसी ने प्रजा को रामभक्ति में रत बताया है-

राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परमगति के अधिकारी।।

तो ऐसा था रामराज्य। राम ने इस तरह स्थापित किया था अपने साम्राज्य में आदर्श का प्रतिरूप। - डॉ. शोभा निगम



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Saturday, March 25, 2023

नवरात्रि रहस्य: भारत इकलौती संस्कृति जिसने देवी पूजा को सँभाल कर रखा

25 March 2023

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🚩नवरात्रि अर्थात मातृ शक्ति की सृजनशीलता का पर्व, पारम्परिक रूप से देवी की पूजा करने वाली संस्कृतियाँ इस बात से पूरी तरह अवगत थीं कि अस्तित्व में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे कभी समझा नहीं जा सकता। आप उसका आनंद उठा सकते हैं, उसकी सुंदरता का उत्सव मना सकते हैं, मगर कभी उसे समझ नहीं सकते। कहा जाता है कि जीवन एक रहस्य है, ये रहस्य इसलिए भी है कि हमें परिणाम तो दिखता है लेकिन कारण लुप्त है। शायद जीवन हमेशा रहस्य ही रहे, जब तक हम खुद इस खोज के साधक न हो। सनातन सदैव धर्म और अध्यात्म की इसी सतत खोज की परम्परा का वाहक है।


🚩या देवी सर्वभूतेषु…. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: … सनातन परम्परा जिनकी रगों में बहता है, ऐसे आदि गुणों के वाहक हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ और रामनवमी को इसका समापन होता है। यह त्योहार हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र राज्य में यह “गुड़ी पड़वा” के साथ शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव “उगादी” से शुरू होता है।



🚩एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीनों में चार बार नवरात्र आते हैं, लेकिन चैत्र और आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चलने वाले नवरात्र ही ज्यादा लोकप्रिय हैं। यह समय, आदि देवी माँ भगवती की आराधना और स्त्री शक्ति की सृजनशीलता का उत्सव मनाने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। नवरात्र वह समय है, जब दोनों ऋतुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियाँ सतत ऊर्जा के रूप में मानवता का कल्याण करती हैं। बात करें धर्म ग्रंथों, पुराणों की तो उसमें चैत्र नवरात्र का समय सृजन और स्त्री शक्ति के उत्सव का समय है। इसका एक कारण यह भी है कि प्रकृति में इस समय हर तरफ नए जीवन और एक नई उम्मीद का बीज अंकुरित होने लगता है। ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जनमानस में भी एक नई उर्जा का संचार हो रहा होता है। लहलहाती फसलों से उम्मीदें जुड़ी होती हैं।


🚩नवरात्रि क्या है ? मनाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? क्यों है ये आदि सनातन परम्परा का वाहक? कुछ तो होगा इस उत्सव धर्मिता के पीछे का रहस्य? आइए इन सब पर बातें करते हैं। पहली बात सनातन परम्परा में जीवन का रहस्य यही है कि गंभीर न होते हुए भी पूरी तरह शामिल होना, जीवन के हर क्षण का उत्सव मनाना।


🚩नवरात्रि का उत्सव ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-शक्ति यानी स्त्रैण के तीन आयामों की प्रतीक हैं। वे धरती, सूर्य और चंद्रमा या तमस (जड़ता), रजस (सक्रियता या जोश) और सत्व (परे जाना, ज्ञान, शुद्धता) की प्रतीक हैं।


🚩तमस का अर्थ है जड़ता। रजस का मतलब है सक्रियता और जोश। सत्व एक तरह से सीमाओं को तोडक़र विलीन होना है, पिघलकर समा जाना है। इन तीन खगोलीय पिंडों से हमारे शरीर की रचना का बहुत गहरा संबंध है- पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा। इन तीन गुणों को इन तीन पिंडों से भी जोड़ कर देखा जाता है। धरती माँ को तमस माना गया है, सूर्य रजस है और चंद्रमा सत्व। नवरात्रि के पहले तीन दिन तमस से जुड़े होते हैं। इसके बाद के दिन रजस से, और नवरात्रि के अंतिम दिन सत्व से जुड़े होते हैं।


🚩जो लोग शक्ति, अमरता, क्षमता या सृजन की इच्छा रखते हैं, वे स्त्रैण के उन रूपों की आराधना करते हैं, जिन्हें तमस कहा जाता है, जैसे काली या धरती माँ अर्थात सृजन का आदिस्रोत प्रकृति। सद्गुरु कहते हैं, जो लोग धन-दौलत, जोश, उत्साह, जीवन और भौतिक दुनिया की तमाम दूसरी सौगातों की इच्छा करते हैं, वे स्वाभाविक रूप से स्त्रैण के उस रूप की ओर आकर्षित होते हैं, जिसे लक्ष्मी या सूर्य के रूप में जाना जाता है। जो लोग ज्ञान, बोध चाहते हैं और नश्वर शरीर की सीमाओं के पार जाना चाहते हैं, वे स्त्रैण के सत्व रूप की आराधना करते हैं। सरस्वती या चंद्रमा उस शक्ति के प्रतीक हैं।


🚩तमस धरती की प्रकृति है जो सबको जन्म देने वाली है। हम जो समय गर्भ में बिताते हैं, वह समय तामसी प्रकृति का होता है। उस समय हम लगभग निष्क्रिय स्थिति में होते हुए भी विकसित हो रहे होते हैं। इसलिए तमस धरती और मनुष्यता के जन्म की प्रकृति है। हम सब सृजन के इस आयाम का अनुभव कर सकते हैं। हमारा पूरा जीवन इस पृथ्वी की देन है। सनातन में पृथ्वी के इस आयाम से एकाकार होने को महत्वपूर्ण साधना के रूप में विकसित किया गया है। वैसे भी हम सब पृथ्वी के एक अंश हैं। प्रकृति जब चाहती है, एक शरीर के रूप में अपने गर्भ में सृजन कर हमें नया जीवन दे देती है और जब वह चाहती है, उस शरीर को वापस खाक कर अपने भीतर समा लेती है।

🚩सद्गुरु कहते हैं, नवरात्री के अवसर पर इन तीनों आयामों में आप खुद को जिस तरह से शामिल करेंगे, वह आपके जीवन को एक नई दिशा देगा। अगर आप खुद को तमस की ओर ले जाते हैं, तो आप एक तरीके से शक्तिशाली होंगे। अगर आप रजस पर ध्यान देते हैं, तो आप दूसरी तरह से शक्तिशाली होंगे। लेकिन अगर आप सत्व की ओर जाते हैं, तो आप बिल्कुल अलग रूप में शक्तिशाली होंगे। लेकिन यदि आप इन सब के परे चले जाते हैं, तो बात शक्ति की नहीं रह जाएगी, फिर आप मोक्ष की ओर बढ़ेंगे।


🚩कहते हैं, जो पूर्ण जड़ता है, वह एक सक्रिय रजस बन सकता है। रजस पुन: जड़ता बन जाता है। यह परे भी जा सकता है और वापस उसी तमस की ओर भी जा सकता है। दुर्गा से लक्ष्मी, लक्ष्मी से दुर्गा, सरस्वती कभी नहीं हो पाई। इसका मतलब है कि हम जीवन और मृत्यु के चक्र में फँसे हैं। उनसे परे जाना अभी बाकी है।


🚩यह सिर्फ प्रतीकात्मक ही नहीं है, बल्कि ऊर्जा के स्तर पर भी सत्य है। इंसान के रूप में में हम धरती से निकलते हैं और सक्रिय होते हैं। कुछ समय बाद, हम फिर से जड़ता की स्थिति में चले जाते हैं। सिर्फ व्यक्ति के रूप में हमारे साथ ऐसा नहीं होता, बल्कि तारामंडलों और पूरे ब्रह्मांड के साथ ऐसा हो रहा है। ब्रह्मांड जड़ता की स्थिति से निकल कर सक्रिय होता है और फिर जड़ता की अवस्था में चला जाता है। ध्यान रहे, बस हमारे अंदर इस चक्र को तोड़ने की क्षमता है। इंसान के जीवन और खुशहाली के लिए देवी के पहले दो आयामों की जरूरत होती है। तीसरा परे जाने की इच्छा है। कहते हैं, अगर आपको सरस्वती को अपने भीतर उतारना है, तो आपको प्रयास करना होगा। वरना आप उन तक कभी नहीं पहुँच सकते।


🚩सनातन परम्परा में ही स्त्री शक्ति को सर्वाधिक महत्व हासिल है। स्त्री शक्ति की पूजा धरती पर पूजा का सबसे प्राचीन रूप है। स्त्री सृजन का पर्याय है। सिर्फ भारत में ही नहीं, अपितु यूरोप, अरेबिया और अफ्रीका के बड़े हिस्सों में भी कभी स्त्री शक्ति की पूजा होती थी। वहाँ देवियाँ होती थीं। दुर्भाग्यवश, पश्चिम में मूर्तिपूजा और एक से ज्यादा देवों की पूजा के सभी नामोनिशान मिटाने के लिए देवी मंदिरों को मिट्टी में मिला दिया गया। दुनिया के बाकी हिस्सों में भी यही हुआ।


🚩धर्म न्यायालयों और धर्मयुद्धों का मुख्य मकसद मूर्ति पूजा की संस्कृति को मिटाना था। मूर्तिपूजा का मतलब देवी पूजा ही था। जो लोग देवी पूजा करते थे, उन्हें कुछ हद तक तंत्र-मंत्र विद्या में महारत हासिल थी। कामरूप कामाख्या मंदिर आज भी अपने तंत्र साधना के लिए ही विख्यात है। चूँकि, वे तंत्र-मंत्र जानते थे, इसलिए स्वाभाविक था कि आम लोग उनके तरीके समझ नहीं पाते थे। कहते हैं, उन संस्कृतियों में हमेशा से यह समझ थी कि अस्तित्व में ऐसा बहुत कुछ है, जिसे साधारण लोग आसानी से नहीं समझ सकते और इसमें कोई बुराई नहीं है। कोई भी उसे समझे बिना भी उसके लाभ उठा सकते हैं, जो हर किसी चीज के लिए हमेशा से सच रहा है।


🚩मगर जब एकेश्वरवादी मज़हब यहूदी, इसाई और इस्लाम अपना दायरा फैलाने लगे, तो उन्होंने इसे एक संगठित तरीके से उखाड़ना शुरू कर दिया। उन्होंने सभी देवी मंदिरों को तोड़ कर मिट्टी में मिला दिया।


🚩दुनिया में हर कहीं पूजा का सबसे बुनियादी रूप देवी पूजा या कहें स्त्री शक्ति की पूजा ही रही है। भारत इकलौती ऐसी संस्कृति है जिसने अब भी उसे संभाल कर रखा है। सनातन परम्परा ने स्त्री शक्ति की पूजा को जारी रखा है। इसी संस्कृति ने हमें अपनी जरूरतों के मुताबिक अपनी देवियाँ खुद गढ़ने की आजादी भी दी। प्राण प्रतिष्ठा के विज्ञान ने हर गाँव को अपनी विशिष्ट स्थानीय जरूरतों के अनुसार अपना मंदिर बनाने में समर्थ बनाया। अगम शास्त्र में इसकी पूरी विधि है। धर्म को ज़्यादा संजीदगी से सहेजा है तो वह भारत का दक्षिण का हिस्सा है। दक्षिण भारत के हर गाँव में आपको आज भी अम्मन (अम्मा) या देवी के मंदिर मिल जाएँगे। इसके अलावा शिव की नगरी काशी, विंध्याचल से लेकर शायद ही भारत का ऐसा कोई क्षेत्र हो जहाँ देवी आराध्य न हो।


🚩बेशक, आजकल पुरुष शक्ति समाज में सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि हमने अपने जीवन में गुजर-बसर की प्रक्रिया को सबसे अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। आज सौंदर्य या नृत्य-संगीत, प्रेम, दिव्यता या ध्यान की बजाय अर्थशास्त्र हमारे जीवन की प्रेरक शक्ति बन गया है। जब अर्थशास्त्र हावी हो जाता है और जीवन के गूढ़ तथा सूक्ष्म पहलुओं को अनदेखा कर दिया जाता है, तो पौरुष कुदरती तौर पर प्रभावी हो जाता है। अगर स्त्री शक्ति नष्ट हो गई, तो जीवन की सभी करुणामयी, सौम्य, सहज और पोषणकारी प्रवृत्तियाँ लुप्त हो जाएँगी। (हालाँकि, स्त्रीत्व को इन चार शब्दों में समेटा नहीं जा सकता।) जीवन की अग्नि हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी। यह बहुत बड़ा नुकसान है, जिसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा।

🚩आज जब हम अपनी परम्परा और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं तो ऐसे समय में उसके संरक्षण और संवहन की जिम्मेदारी उन सब पर है जिनकी रगों में आज भी सनातन संस्कृति बह रही है। आज जब हम आधुनिक वामपंथी शिक्षा की वजह से नकार की जड़ता के शिकार हो चुके हैं। इसी शिक्षा का एक दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह भी है कि हम अपनी तर्कशक्ति पर खरा न उतरने वाली हर चीज को नष्ट कर देना चाहते हैं। जबकि हमारी तर्क की सीमा सनातन की सीमा नहीं बल्कि हमारी खुद के अज्ञान की सीमा है।


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