Tuesday, April 4, 2023

अमेरिका में पहली बार हिन्दू घृणा के खिलाफ प्रस्ताव पारित, कहा - हिन्दू धर्म विश्व के सबसे पुराना धर्म

4 Apirl 2023

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🚩अमेरिका के जॉर्जिया प्रांत में हिन्दूफोबिया के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया है। ये प्रस्ताव वहाँ की एसेंबली में पारित किया गया। अमरीका में पहली बार ऐसा हुआ है। हिन्दुओं के खिलाफ घृणा की निंदा करते हुए जॉर्जिया एसेंबली ने कहा कि हिन्दू धर्म विश्व के सबसे पुराने और बड़े धर्मों में से एक है, जिसके दुनिया भर में 120 करोड़ से भी अधिक मानने वाले हैं। 100 से भी अधिक देशों में हिन्दू धर्म के लोग फैले हुए हैं। हिन्दू संगठनों ने इसका स्वागत किया है।


🚩जॉर्जिया की एसेंबली ने इस प्रस्ताव में हिन्दू धर्म की तारीफ करते हुए कहा कि विविधताएँ भरी कई संस्कृतियाँ इसका हिस्सा हैं। अलग-अलग दर्शन/विचार को मानने वाले लोग हिन्दू धर्म का हिस्सा हैं। साथ ही हिन्दू धर्म को स्वीकार्यता, आपसी सम्मान और शांति का धर्म भी बताया गया। रिप्रेजेन्टेटिव लॉरेन मैकडोनाल्ड और टेड जोन्स ये प्रस्ताव लेकर आए। ये एटलांटा के सबअर्ब्स फोरसिथ का प्रतिनिधित्व करते हैं। जॉर्जिया की सबसे बड़ी हिन्दू जनसंख्या यहीं रहती है।



🚩अमेरिका में हिन्दू समुदाय के योगदानों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने स्वास्थ्य, विज्ञान और इंजीनियरिंग के अलावा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटैलिटी, वित्त, एकेडमी, निर्माण कार्य, एनर्जी, व्यापार और रिटेल में वो अच्छा कार्य कर रहे हैं। योग, आयुर्वेद, ध्यान, भोजन, संगीत और कला के क्षेत्र में हिन्दुओं के योगदान की सराहना करते हुए कहा गया कि इससे अमेरिका के लाखों लोगों को फायदा मिला है, यहाँ की संस्कृति समृद्ध हुई है।


🚩एसेंबली ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में हिन्दुओं के खिलाफ घृणा और अपराध में बढ़ोतरी हुई है। बुद्धिजीवी वर्ग के एक हिस्से का भी इसे समर्थन प्राप्त है। ऐसे लोग पवित्र साहित्य पर हिंसा और अत्याचार का आरोप लगाते हैं। 22 मार्च को जॉर्जिया में ‘हिन्दू एडवोकेसी डे’ इन्हीं घटनाओं के विरोध में मनाया गया था। Rutgers यूनिवर्सिटी ने भी ऐसी घटनाओं के बढ़ने की बात एक रिसर्च में कही है। अकादमिक जगत के ऐसे लोगों की भी निंदा की गई, जो हिन्दू धर्म को निशाना बनाते हैं।


🚩आपको बता दे की हिन्दू धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। कुछ लोग इसे मूर्तिपूजकों, प्रकृति पूजकों या हजारों देवी-देवताओं के पूजकों का धर्म मानकर इसकी आलोचना करते हैं, कुछ लोग इसको जातिवादी धारणा को पोषित करने वाला धर्म मानते हैं, लेकिन यह उनकी सतही सोच या नफरत का ही परिणाम है।


🚩हिन्दू धर्म मानता है कि जीवन ही है प्रभु। जीवन की खोज करो। जीवन को सुंदर से सुंदर बनाओ। इसमें सत्यता, शुभता, सुंदरता, खुशियां, प्रेम, उत्सव, सकारात्मकता और ऐश्‍वर्यता को भर दो। लेकिन इन सभी के लिए जरूरी नियमों की भी जरूरत होती है अन्यथा यही सब अनैतिकता में बदल जाते हैं।

कृण्वन्तो विश्वमार्यम’अर्थात सारी दुनिया को श्रेष्ठ, सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाएंगे।


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Monday, April 3, 2023

महावीर जयंती विशेष : स्वामी जी को निंदकों ने ऐसा कष्ट दिया था

3 Apirl 2023

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🚩जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मकल्याणक महोत्सव चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन है,जो सम्पूर्ण विश्व में बहुत धूमधाम से मनाया जाएगा।


🚩भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत बताए, जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं। ये सिद्धांत हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।



🚩जैसे हर संत के जीवन में देखा जाता है,वैसे महावीर स्वामी के समय भी देखा गया…… जहाँ उनसे लाभान्वित होनेवाले लोग थे, वहीं समाजकंटक निंदक भी थे ।


🚩उनमें से पुरंदर नाम का निंदक बड़े ही क्रूर स्वभाव का था । वह तो महावीर जी के मानो पीछे ही पड़ गया था । उसने कई बार महावीर स्वामी को सताया, उनका अपमान किया पर संत ने माफ कर दिया ।


🚩एक दिन महावीर स्वामी (Mahavir Swami) पेड़ के नीचे ध्यानस्थ बैठे थे । तभी घूमते हुए पुरंदर भी वहाँ पहुँच गया । वह महावीर जी को ध्यानस्थ देख आग-बबूला होकर बड़बड़ाने लगा ,अभी इनका ढोंग उतारता हूँ,अभी मजा चखाता हूँ….।

और आवेश में आकर उसने एक लकड़ी ली और उनके कान में खोंप दी । कान से रक्त की धार बह चली लेकिन महावीर जी के चेहरे पर पीड़ा का कोई चिह्न न देखकर वह और चिढ़ गया और कष्ट देने लगा ।


🚩इतना सब होने पर भी महावीरजी किसी प्रकार की कोई पीड़ा को व्यक्त किये बिना शांत ही बैठे रहे । परंतु कुछ समय बाद अचानक उनका ध्यान टूटा, उन्होंने आँख खोलकर देखा तो सामने पुरंदर खड़ा है । उनकी आँखों से आँसू झरने लगे ।


🚩पुरंदर ने पूछा : क्या पीड़ा के कारण रो रहे हो ?

महावीर स्वामी : नहीं, शरीर की पीड़ा के कारण नहीं,

पुरंदर : तो किस कारण रो रहे हो ?


🚩“मेरे मन में यह व्यथा हो रही है कि मैं निर्दोष हूँ फिर भी तुमने मुझे सताया है तो तुम्हें कितना कष्ट सहना पड़ेगा ! कैसी भयंकर पीड़ा सहनी पड़ेगी ! तुम्हारी उस पीड़ा की कल्पना, करके मुझे दुःख हो रहा है ।”


🚩यह सुन पुरंदर मूक हो गया और पीड़ा की कल्पना से सिहर उठा ।


🚩पुरंदर की नाई गोशालक नामक एक कृतघ्न गद्दार ने भी महावीर स्वामी (Mahavir Swami) को बहुत सताया था ।


🚩महावीर जी के 500 शिष्यों को उनके खिलाफ खड़ा करने का उसका षड्यंत्र भी सफल हो गया था । उस दुष्ट ने महावीर स्वामी जी को जान से मारने तक का प्रयत्न किया लेकिन जो जैसा बोता है उसे वैसा ही मिलता है । धोखेबाज लोगों की जो गति होती है, गोशालक का भी वही हाल हुआ ।


🚩 सच्चे संतों के निंदको व कुप्रचारको ! अब भी समय है, कर्म करने में सावधान हो जाओ । अन्यथा जब प्रकृति तुम्हारे कुकर्मों की तुम्हें सजा देगी उस समय तुम्हारी वेदना पर रोनेवाला भी कोई न मिलेगा ।


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Sunday, April 2, 2023

आयोडीन नमक खाना स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक है ?

2 Apirl 2023

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🚩नमक (सोडियम क्लोराइड) का प्रचलन भोजन में दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। चटपटे और मसालेदार खाद्य पदार्थों का सेवन नित्य-नियमितरूप से बढ़ता जा रहा है। शक्कर की तरह नमक भी हमारे शरीर के लिए अत्यधिक हानिकारक है। यह शरीर के लिए अनिवार्य है, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक लवण की मात्रा तो हमें प्राकृतिक रूप से खाद्य पदार्थों द्वारा ही मिल जाती है। हमारे द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली हरी सब्जियों से, अंकुरित बीजों आदि से हमारे शरीर में लवण की पूर्ति स्वतः ही हो जाती है।



🚩कुछ वर्षों पूर्व ही एक ख्यातिप्राप्त समाचार पत्र ने अपने आलेख में प्रकाशित कर इस कथन की पुष्टि की थी कि नमक शरीर के लिए जहर से भी अधिक खतरनाक होता है। चिकित्सा विज्ञान के शोधकर्ताओं ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि रक्तचाप के रोगों का प्रमुख कारण ही नमक है, इसलिए हाई ब्लडप्रेशरवाले रोगियों को भोजन में नमक पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है। नमक छोड़नेवाले इस रोग से मुक्त हो जाते हैं और जो नहीं छोड़ते वे इससे त्रस्त रहते हैं।


🚩एक सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ कि सुदूर वन्य एवं पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले अनेक आदिवासियों के आहारक्रम में नमक का कोई स्थान नहीं है। आधुनिक सुविधाओं से वंचित् वे लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से आज भी हमसे अधिक हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ हैं। शक्कर व नमक की पूर्ति वे खाद्य पदार्थों से ही कर लेते हैं।


🚩नमक और शक्कर के अधिक सेवन से शरीर की रोगप्रतिकारक क्षमता का ह्रास होता है तथा उसे अनेक रोगों से जूझना पड़ता है।


🚩अमेरिकी लैब का खुलासा-


🚩भारत में बिकने वाले ‘आयोडीन नमक’ पर अमेरिका स्थित एक लैब ने चौंकाने वाला खुलासा किया है । लैब ने अपनी जांच में पाया है कि भारत में बिकने वाले टॉप ब्रैंड्स के आयोडीन नमक में कार्सिनोजेनिक घटक मौजूद है । अमेरिकन वेस्ट एनालिटिकल लैबोरेटरीज ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया।


🚩रिपोर्ट में सांभर रिफाइंड नमक, टाटा नमक, टाटा नमक लाइट जैसे उत्पादों को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है । गोधुम ग्रैन्स एंड फॉर्म्स प्रोडक्ट्स के चेयरमैन शिव शंकर गुप्ता ने इस रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए नमक बनाने वाली कंपनियों और सरकार को आड़े हाथों लिया है । उन्होंने कहा ‘भारत में बिक रहे आयोडीन नमक में पोटैशियम फेरोसायनाइड भारी मात्रा में पाया जाता है जो कि कैंसर का एक मुख्य कारण है।’


🚩सूत्रों के अनुसार दुनिया के 56 देशों ने आयोडीन युक्त नमक 40 साल पहले बेन कर दिया है। डेन्मार्क की सरकार ने तो 1956 मे आयोडीन युक्त नमक बैन कर दिया। उनकी सरकार ने कहा हमने आयोडीन युक्त नमक लोगो को खिलाया !(1940 से 1956 तक ) पर अधिकांश लोग नपुंसक हो गए ! जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया ! उनके वैज्ञानिको ने कहा कि आयोडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया। और शुरू के दिनो मे जब भारत देश मे ये आयोडीन का खेल शुरू हुआ तो देश के स्वार्थी नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आयोडीन युक्त नमक भारत मे बिक नहीं सकता । पर कुछ समय पूर्व कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया।


🚩आयोडीन की जगह सेंधा नमक का उपयोग करें


🚩एक होता है समुद्री नमक, दूसरा होता है सेंधा नमक (rock salt) । सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है । जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। वहाँ नमक के बड़े-बड़े पहाड़ हैं, सुरंगे हैं । वहाँ से ये नमक आता है । 


🚩सेंधा नमक के फ़ायदे-


🚩सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है क्योंकि ये अम्लीय नहीं ये क्षारीय (alkaline) है । क्षारीय चीज जब अम्ल में मिलती है तो वो न्यूट्रल(उदासीन) हो जाता है और रक्त से अम्लता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं ।


🚩ये नमक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है । और सेंधा नमक की शुद्धता आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास, व्रत में सब सेंधा नमक ही खाते हैं तो आप सोचिए जो समुद्री नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ??


🚩सेंधा नमक शरीर में 97 पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है ! इन पोषक तत्वों की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis) का अटैक आने का सबसे बड़ा जोखिम होता है । सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है।

🚩यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।


🚩अतः जिन्हें दीर्घायु होना है, सदैव स्वस्थ व प्रसन्न बने रहना है, ऐसे लोग शक्कर की जगह गुड, मिश्री और 

आयोडीन नमक की जगह सेंधा नमक और बिना रिफाइंड तेल का उपयोग करना चाहिए।


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Saturday, April 1, 2023

अपने देश में अपना त्योहार मनाने पर पत्थर खाना उचित है ?

1  April 2023

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🚩हिन्दू नववर्ष , भगवान झूलेलाल जयंती, रामनवमी, हनुमानजी जयंती, परशुराम जयंती, अमरनाथ यात्रा या जो भी हिन्दू पर्व आते हैं,उन पर्व के दिनों में नमाज के बहाने नमाज के बाद  नमाजियों द्वारा हिन्दूओ पर पत्थर बरसाए जाते है ऐसा क्यो ? नमाज के बहाने दिन में 5 बार जोर शोर से लाउड स्पीकर चलाया जाता है लेकिन हिंदू ने आजतक कोई पत्थर नही फेंका आखिर हिंदु सहिष्णु है तो उनके त्यौहार पर पत्थर बरसाना क्या ये सही है और वो भी हिंदु बाहुल्य देश में ऐसी घटना घटनी उचित नही हैं।



🚩आपको बता दे की रामनवमी के अवसर पर देश के कई शहरों में जुलूस पर पत्थरबाजी और हिंसा की खबरें सामने आईं। हिंसक घटनाओं में पश्चिम बंगाल में एक और महाराष्ट्र में एक शख्स की मौत हो गई। इसके अलावा गुजरात और उत्तर प्रदेश से भी रामनवमी की शोभा यात्रा पर पथराव की खबरें सामने आई हैं।


🚩पश्चिम बंगाल में उत्तर दिनाजपुर के इस्लामपुर शहर के दालखोला इलाके में रामनवमी के जुलूस के दौरान दो समुदायों के बीच झड़प हो गई। मुस्लिम बहुल इलाके में हुई झड़प में एक शख्स की मौत हो गई जबकि 5-6 पुलिसकर्मी जख्मी हो गए। बंगाल पुलिस युवक के मौत की वजह हार्ट अटैक बता रही है।


🚩हावड़ा में असामाजिक तत्वों ने रामनवमी के जुलूस पर पत्थरबाजी की और हिंसा भड़कने पर फिर कई वाहनों में आग लगा दी। घटना हावड़ा के शिबपुर की है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में लोग छतों से जुलूस पर पथराव करते नजर आ रहे हैं।


🚩महाराष्ट्र के संभाजीनगर (औरंगाबाद) और जलगाँव में रामनवमी के अवसर पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। संभाजीनगर के किराड़पुर में एक मंदिर के आगे मामूली सी बात से शुरू हुए झगड़े ने हिंसा का रूप ले लिया। रिपोर्टों के मुताबिक गोली लगने से जख्मी एक शख्स की अस्पताल में मौत हो गई।


🚩संभाजीनगर में हिंसा के दौरान न सिर्फ पत्थरबाजी की गई बल्कि बम भी फेंके गए। हालात को संभालने पहुँची पुलिस के वाहनों को भीड़ ने जला दिया और आस-पास खड़े वाहनों को भी नुकसान पहुँचाया। बताया जा रहा है कि घटना में 14 पुलिसकर्मी जख्मी हैं। असमाजिक तत्वों ने पुलिस को 13 गाड़ियों को फूँक दिया।


🚩महाराष्ट्र के ही जलगाँव में मस्जिद के आगे से निकल रहे हिन्दुओं के जुलूस में डीजे (DJ) की आवाज को लेकर हुए विवाद ने देखते-देखते हिंसक रूप ले लिया। मामले में 2 FIR दर्ज हुए हैं, जिसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों को आरोपित किया गया है। अब तक कुल 45 आरोपितों की गिरफ्तारी की खबर है। यह घटना मंगलवार (28 मार्च 2023) की है।


🚩गुजरात के वडोदरा में भी 2 स्थानों पर कट्टरपंथी भीड़ ने रामनवमी के जुलूस को निशाना बनाया। रिपोर्ट्स के मुताबिक फतेहपुरा गराना पुलिस चौकी क्षेत्र का है। गुरुवार को हिन्दुओं द्वारा यहाँ से रामनवमी की शोभा यात्रा निकाली गई थी। जैसे ही यात्रा इलाके की एक मस्जिद के पास पहुँची, किसी बात को लेकर दो पक्षों में विवाद हो गया। देखते-देखते मस्जिद के पास से जुलूस में शामिल श्रद्धालुओं पर पत्थरबाजी शुरू हो गई। कुंभारवाडा इलाके में भी रामनवमी की शोभा यात्रा पर पथराव की घटना सामने आई।


🚩उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी मस्जिद के सामने शोभायात्रा पर पत्थरबाजी की घटना सामने आई। इस विवाद में शामिल एक गाड़ी में तोड़फोड़ की गई। पीड़ित पक्ष ने मुस्लिम महिलाओं द्वारा पत्थर फेंके जाने का आरोप लगाया है।


🚩कब तक सहन करेंगे ?


🚩हिन्दू है तो मुसलमान के पत्थर सहन नही करेंगे, जिन मुगलों ने महाराणा प्रताप,पृथ्वीराज चौहान,छत्रपति शिवाजी महाराज ,महावीर सम्भाजी महाराज आदि भारत के महान वीर महापुरुषों को जीवन भर कष्ट दिए है।


🚩आज भी उनके वंशज मुस्लिम , हिन्दुओ को कष्ट दे रहे है,फिर चाहें वो हिन्दू नववर्ष हो या फिर रामनवमी या फिर हनुमान जयंती या फिर अमरनाथ यात्रा हो किसी भी हिन्दू पर्व या हिन्दू यात्राओं पर पत्थर फेंकने वाले मुसलमान ।


🚩निर्दोष हिन्दू कारसेवकों को बड़ी बेरहमी से मारा था उनको गोलियों से भुनने वाली सरकार पर आज सारा हिन्दू ज़माज थूकता है। आज भी 1992 का इतिहास कोई भी हिन्दू भुला नही है।


🚩भारत में हिन्दुओ के 40 हजार मंदिरो के ऊपर मस्जिद ओर मजार मुसलमानों ने बनाये। आज जब जांचों में मन्दिरों के अवशेष मिल रहे है तो मुस्लिम क्यों तिलमिला रहें है।


🚩सरकार को पत्थरबाजों

पर कड़क कार्यवाही करनी चाहिए यही जनता की मांग हैं।


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Friday, March 31, 2023

अप्रैल फूल क्यों और किसने शुरू किया ? आप भी मनाते हो तो हो जाइए सावधान

31 March 2023

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🚩भारतवासी अधिकतर अनजाने में ऐसे त्यौहार मनाते है कि उनको वास्तविकता पता ही नही होती है और अपनी ही संस्कृति का नाश कर लेते है, अंग्रेज भले ही चले गए हो लेकिन उन्होंने जो भारतीय संस्कृति का नाश करने के लिए अनेक षडयंत्र किये थे वो आज भी भारत मे प्रचलित है और भारतीय अनजाने में उसका शिकार बनते है ।


🚩ऐसे ही एक भारत मे प्रचलित है कि अप्रैल फूल मनाना, आइये आज उसकी वास्तविकता से अवगत कराते है, अप्रैल फूल की सच्चाई जानकर आप भी उससे नफरत करने लगेंगे ।



🚩भारत माता को जब अंग्रेजो ने गुलामी की जंजीरो से जकड़ लिया था तब उन्होंने पूर्ण प्रयास किया कि भारतीय संस्कृति को मिटाया जाए, भारतीय पहले सृष्टि का उदगम दिन पर ही हर साल नववर्ष मनाते थे जो करीब अप्रैल महीने की शुरुआत में ही आता था इसको नष्ट करने के लिए ईसाई अंग्रेजो ने 1 जनवरी को नया साल भारतवासियों पर थोप दिया फिर भी भारतवासी उसी दिन ही नववर्ष मना रहे थे जिसके कारण अंग्रेजो ने 1 अप्रैल को मूर्खता दिवस घोषित कर दिया ।


🚩आपको बता दे कि भारतीय सनातन कैलेंडर,जिसका पूरा विश्व अनुसरण करता है उसको मिटाने के लिए 1582 में पोप ग्रेगोरी ने नया कैलेंडर अपनाने का फरमान जारी कर दिया था जिसमें 1 जनवरी को नया साल के प्रथम दिन के रूप में बनाया गया।


🚩जिन भारतवासीयों ने इसको मानने से इंकार किया, उनका 1अप्रैल को मजाक उड़ाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे 1अप्रैल नया साल का नया दिन होने के बजाय मूर्ख दिवस बन गया।


🚩अप्रैल फूल मतलब हिन्दुओं को मूर्ख बनाना ।

ये नाम अंग्रेज ईसाईयों की देन है।


🚩भारत मे आज भी बही खाते और बैंक के हिसाब-किताब 31 मार्च को बंद होते है और 1 अप्रैल से नये शुरू होते है।


🚩भारत में अंग्रेज़ो ने विक्रम संवत का नाश करने के लिए ही 1 जनवरी को नया साल थोपा और अप्रैल में आने वाले हिन्दू नववर्ष की मजाक उड़ाने के लिए ही “अप्रैल फूल” मनाना शुरू किया मतलब हिन्दुओं को मूर्ख बनाये जिससे वे खुद का नया साल भूल जाये ।


🚩अंग्रेज़ो की यह साजिश थी जिससे  1 अप्रैल को मूर्खता दिवस “अप्रैल फूल” का नाम दिया ताकि भारतीय संस्कृति मूर्खता भरी लगे ।


🚩अब आप स्वयं सोचे कि आपको अप्रैल फूल मनाना चाहिए या अपनी हिन्दू संस्कृति का आदर करना चाहिए।

आइये जाने अप्रैल माह के आस पास ऐतिहासिक दिन और त्यौहार कितना महान है।


🚩हिन्दुओं का पावन महिना इन दिनों से ही शुरू होता है (शुक्ल प्रतिपदा)


🚩हिंदुओं के रीति -रिवाज़ सब इन दिनों में कलेण्डर के अनुसार बनाये जाते है।


🚩महाराजा विक्रमादित्य की काल गणना इन दिनों से ही शुरू होती है।


🚩भगवान श्री रामजी का अवतरण दिवस भी इन दिनों में आता है।


🚩भगवान झूलेलाल, भगवान हनुमानजी, भगवान महावीर,  भगवान स्वामीनारायण आदि का प्रागट्य दिवस भी इन दिनों में ही आता हैं ।


🚩अंग्रेज ईसाई सदा से भारतीय सनातन संस्कृति के विरुद्ध थे इसलिए हिंदुओं के त्योहारों को मूर्खता का दिन कहते थे । पर अब हिन्दू भी बिना सोचे समझे बहुत शान से अप्रैल फूल मना रहे है।


🚩कुछ भारतवासी आज अपनी ही संस्कृति का मजाक उड़ाते हुए अप्रैल फूल मना रहे है।


🚩भारतवासी अब “अप्रैल फूल” किसी को बनाकर गुलाम मानसिकता का सबूत ना दे ।


🚩आज देश विरोधी ताकते हमारे महान भारत देश को तोड़ने के लिए अनेक साजिसे रच रहे है, जिसमे अधिकतर मीडिया, टीवी, फिल्मे, चलचित्रों, अखबार, नॉवेल, इंटरनेट आदि के माध्यम से भारतवासियों को अपने संस्कृति से दूर ले जाने का भरपूर प्रयास चल रहा है, लेकिन हम क्यों अपनी महान संस्कृति भूलकर अंग्रेजो की गुलामी वाली प्रथा अपना रहे है।


🚩भारतीय आप सब से निवेदन है कि अपनी संस्कृति के अनुसार ही पर्व त्योहार मनाये अभी जितनी भी अंग्रेजो वाली प्रथायें है वे बन्द करे और भारतीय संस्कृति के अनुसार जो भी प्रथायें हैं उनको शुरू करें ।


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Thursday, March 30, 2023

जानिए भगवान श्री राम के पूर्वज कौन थे और आज कौनसी पीढ़ी चल रही है ?

30 March 2023

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🚩कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने भगवान श्री राम के वंशज के बारे में सबूत मांगा था। श्री राम के वंशज आज भी मौजूदा है इस लेख के माध्यम से जानिए आज उनके वंशज कौन है।


🚩राम के पुत्र लव और कुश की वंशावली-

राम के दो जुड़वा पुत्र लव और कुश थे। दोनों का ही वंश आगे चला। वर्तमान में दोनों के ही वंश के लोग बहुतायत में पाए जाते हैं। लव और कुश के कुल के लोग जो भारत में आज भी निवास करते हैं।





🚩ब्रह्माजी के कई पुत्र थे जिनमें से 10 प्रमुख हैं- मरीचि, अंगिरस्, अत्रि, भृगु, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्सय, ऋतु, दक्ष, स्वायंभुव मनु।


🚩मरीचि की पत्नि दक्ष- कन्या संभूति थी। इनकी दो और पत्निनयां थी- कला और उर्णा। कला से उन्हें कश्यप नामक एक पुत्र मिला। इन्होंने दक्ष की 13 पुत्रियों से विवाह किया था।


🚩कश्यप पत्नी अदिति से देवता और दिति से दैत्यों की उत्पत्ति हुई। अदिति के 10 पुत्र थे, विवस्वान्, इंद्र, धाता, भग, पूषा, मित्र, अर्यमा, त्वष्टा, अंशु, वरुण, सविता। कहीं कहीं पर यह नाम इस तरह पाए जाते हैं- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।


🚩कश्यप के बड़े पुत्र विवस्वान् से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था। जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।


🚩वैवस्वत मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए। इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुँची। इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी। (पुत्री इला का विवाह बुध से हुआ जिसका पुत्र पुरुरवा चंद्रवंशी था)।


🚩रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है:- ब्रह्माजी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप के विवस्वान् और विवस्वान् के वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था। वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।


🚩इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुए। अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।


🚩भरत के पुत्र असित हुए और असित के पुत्र सगर हुए। सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे। सगर के पुत्र का नाम असमंज था। असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।


🚩रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। वाल्मीकि रामायण- ॥1-59 से 72।।


🚩कुश की निम्नलिखित वंशावली भी मिलती है जिसकी हम पुष्टि नहीं करते हैं, क्योंकि अलग अलग ग्रंथों में यह अलग अलग मिलती है। कारण यह कि कुश से राजा सवाई भवानी सिंह के बीच जिन राजाओं का उल्लेख मिलता है उनके भाई भी थे जिनके अन्य वंश चले हैं इस तरह संपूर्ण देश में राम के वंश का एक ऐसे नेटवर्क फैला है जिसकी संपूर्ण वंशावली को यहां देना असंभव है।


🚩कुश की एक यह वंशावली-

राम के जुड़वा पुत्र लव और कुश हुए। कुश के अतिथि हुए, अतिधि के निषध हुए, निषध के नल हुए, नल के नभस, नभस के पुण्डरीक, पुण्डरीक के क्षेमधन्वा, क्षेमधन्वा के देवानीक, देवानीक के अहीनगर, अहीनर के रुरु, रुरु के पारियात्र, पारियात्रा के दल, दल के छल (शल), शल के उक्थ, उक्थ के वज्रनाभ, वज्रनाभ के शंखनाभ, शंखनाभ के व्यथिताश्व, व्यथिताश्व से विश्वसह, विश्वसह से हिरण्यनाभ, हिरण्यनाभ से पुष्य, पुष्य से ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि से

सुदर्शन, सुदर्शन से अग्निवर्णा, अग्निवर्णा से शीघ्र, शीघ्र से मुरु, मरु से प्रसुश्रुत, प्रसुश्रुत से सुगवि, सुगवि से अमर्ष, अमर्ष से महास्वन, महास्वन से बृहदबल, बृहदबल से बृहत्क्षण (अभिमन्यु द्वारा मारा गया था), वृहत्क्षण से गुरुक्षेप, गुरक्षेप से वत्स, वत्स से वत्सव्यूह, वत्सव्यूह से प्रतिव्योम, प्रतिव्योम से दिवाकर, दिवाकर से सहदेव, सहदेव से बृहदश्व, वृहदश्व से भानुरथ, भानुरथ से सुप्रतीक, सुप्रतीक से मरुदेव, मरुदेव से सुनक्षत्र, सुनक्षत्र से किन्नर, किन्नर से अंतरिक्ष, अंतरिक्ष से सुवर्ण, सुवर्ण से अमित्रजित्, अमित्रजित् से वृहद्राज, वृहद्राज से धर्मी, धर्मी से कृतन्जय, कृतन्जय से रणन्जय, रणन्जय से संजय, संजय से शुद्धोदन, शुद्धोदन से शाक्य, शाक्य (गौतम बुद्ध) से राहुल, राहुल से प्रसेनजित, प्रसेनजित् से क्षुद्रक, क्षुद्रक से कुंडक, कुंडक से सुरथ, सुरथ से सुमित्र, सुमित्र के भाई कुरुम से कुरुम से कच्छ, कच्छ से बुधसेन।


🚩बुधसेन से क्रमश: धर्मसेन, भजसेन, लोकसेन, लक्ष्मीसेन, रजसेन, रविसेन, करमसेन, कीर्तिसेन, महासेन, धर्मसेन, अमरसेन, अजसेन, अमृतसेन, इंद्रसेन, रजसेन, बिजयमई, स्योमई, देवमई, रिधिमई, रेवमई, सिद्धिमई, त्रिशंकुमई, श्याममई, महीमई, धर्ममई, कर्ममई, राममई, सूरतमई, शीशमई, सुरमई, शंकरमई, किशनमई, जसमई, गोतम, नल, ढोली, लछमनराम, राजाभाण, वजधाम (वज्रदानम), मधुब्रह्म, मंगलराम, क्रिमराम, मूलदेव, अनंगपाल, श्रीपाल (सूर्यपाल), सावन्तपाल, भीमपाल, गंगपाल, महंतपाल, महेंद्रपाल, राजपाल, पद्मपाल, आनन्दपाल, वंशपाल, विजयपाल, कामपाल, दीर्घपाल (ब्रह्मापल), विशनपाल, धुंधपाल, किशनपाल, निहंगपाल, भीमपाल, अजयपाल, स्वपाल (अश्वपाल), श्यामपाल, अंगपाल, पुहूपपाल, वसन्तपाल, हस्तिपाल, कामपाल, चंद्रपाल, गोविन्दपाल, उदयपाल, चंगपाल, रंगपाल, पुष्पपाल, हरिपाल, अमरपाल, छत्रपाल, महीपाल, धोरपाल, मुंगवपाल, पद्मपाल, रुद्रपाल, विशनपाल, विनयपाल, अच्छपाल (अक्षयपाल), भैंरूपाल, सहजपा,, देवपाल, त्रिलोचनपाल (बिलोचनपाल), विरोचनपाल, रसिकपाल, श्रीपाल (सरसपाल), सुरतपाल, सगुणपाल, अतिपाल, गजपाल (जनपाल), जोगेद्रपाल, भौजपाल (मजुपाल), रतनपाल, श्यामपा,, हरिचंदपाल, किशनपाल, बीरचन्दपाल, तिलोकपाल, धनपाल, मुनिकपाल, नखपाल (नयपाल), प्रतापपाल, धर्मपाल, भूपाल, देशपाल (पृथ्वीपाल), परमपाल, इंद्रपाल, गिरिपाल, रेवन्तपाल, मेहपाल (महिपाल), करणपाल, सुरंगपाल (श्रंगपाल), उग्रपाल, स्योपाल (शिवपाल), मानपाल, परशुपाल (विष्णुपाल), विरचिपाल (रतनपाल), गुणपाल, किशोरपाल (बुद्धपाल), सुरपाल, गंभीरपाल, तेजपाल, सिद्धिपाल (सिंहपाल), गुणपाल, ज्ञानपाल (तक गढ़ ग्यारियर राज किया), काहिनदेव, देवानीक, इसैसिंह (तक बांस बरेली में राज फिर ढूंढाड़ में आए), सोढ़देव, दूलहराय, काकिल, हणू (आमेर के टीकै बैठ्या), जान्हड़देव, पंजबन, मलेसी, बीजलदेव, राजदेव, कील्हणदेव, कुंतल, जीणसी (बाद में जोड़े गए), उदयकरण, नरसिंह, वणबीर, उद्धरण, चंद्रसेन, पृथ्वीराज सिंह (इस बीच पूणमल, भीम, आसकरण और राजसिंह भी गद्दी पर बैठे), भारमल, भगवन्तदास, मानसिंह, जगतसिंह (कंवर), महासिंह (आमेर में राजा नहीं हुए), भावसिंह गद्दी पर बैठे, महासिंह (मिर्जा राजा), रामसिंह प्रथम, किशनसिंह (कंवर, राजा नहीं हुए), कुंअर, विशनसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई ईश्वरसिंह, सवाई मोधोसिंह, सवाई पृथ्वीसिंह, सवाई प्रतापसिंह, सवाई जगतसिंह, सवाई जयसिंह, सवाई जयसिंह तृतीय, सवाई रामसिंह द्वितीय, सवाई माधोसिंह द्वितीय, सवाई मानसिंह द्वितीय, सवाई भवानी सिंह (वर्तमान में गद्दी पर विराजमान हैं)


🚩अन्य तथ्य:

राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।


🚩राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।

🚩कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है। एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यह इसकी गणना की जाए तो लव और कुश महाभारतकाल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व।


🚩इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। माना जाता है कि जो लोग खुद को शाक्यवंशी कहते हैं वे भी श्रीराम के वंशज हैं।

तो यह सिद्ध हुआ कि वर्तमान में जो सिसोदिया, कुशवाह (कछवाह), मौर्य, शाक्य, बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) आदि जो राजपूत वंश हैं वे सभी भगवान प्रभु श्रीराम के वंशज है। जयपूर राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग की राम के पुत्र कुश के वंशज है। महारानी पद्मिनी ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए में कहा था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 309वें वंशज थे।


🚩इस घराने के इतिहास की बात करें तो 21 अगस्त 1921 को जन्में महाराज मानसिंह ने तीन शादियां की थी। मानसिंह की पहली पत्नी मरुधर कंवर, दूसरी पत्नी का नाम किशोर कंवर था और माननसिंह ने तीसरी शादी गायत्री देवी से की थी। महाराजा मानसिंह और उनकी पहली पत्नी से जन्में पुत्र का नाम भवानी सिंह था। भवानी सिंह का विवाह राजकुमारी पद्मिनी से हुआ। लेकिन दोनों का कोई बेटा नहीं है एक बेटी है जिसका नाम दीया है और जिसका विवाह नरेंद्र सिंह के साथ हुआ है। दीया के बड़े बेटे का नाम पद्मनाभ सिंह और छोटे बेटे का नाम लक्ष्यराज सिंह है।

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🚩मुसलमान भी राम के वंशज हैं?

हालांकि ऐसे कई राजा और महाराजा हैं जिनके पूर्वज श्रीराम थे। राजस्थान में कुछ मुस्लिम समूह कुशवाह वंश से ताल्लुक रखते हैं। मुगल काल में इन सभी को धर्म परिवर्तन करना पड़ा लेकिन ये सभी आज भी खुद को प्रभु श्रीराम का वंशज ही मानते हैं।


🚩इसी तरह मेवात में दहंगल गोत्र के लोग भगवान राम के वंशज हैं और छिरकलोत गोत्र के मुस्लिम यदुवंशी माने जाते हैं। राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि जगहों पर ऐसे कई मुस्लिम गांव या समूह हैं जो राम के वंश से संबंध रखते हैं। डीएनए शोधाधुसार उत्तर प्रदेश के 65 प्रतिशत मुस्लिम ब्राह्मण बाकी राजपूत, कायस्थ, खत्री, वैश्य और दलित वंश से ताल्लुक रखते हैं- लेखक : राजेश पंडित


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Wednesday, March 29, 2023

ऐसा तो भगवान श्रीराम में क्या था, जो लाखों साल के बाद भी आज उनकी लोकप्रियता अमर है ?

29  March 2023

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🚩भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में माना जाता है। धर्मशास्त्रों में, विशेषतः पौराणिक साहित्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक चतुर्युगी में 43,20,000 वर्ष होते हैं, जिनमें कलियुग के 4,32,000 वर्ष तथा द्वापर के 8,64,000 वर्ष होते हैं। श्री रामजी का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,102 वर्ष ही बीते हैं) और श्री रामजी का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय परंपरागत रूप से 11,000 वर्ष माना गया है। अतः द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + श्री रामजी की वर्तमानता के 11,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अबतक बीते 5,102 वर्ष= कुल 8,80,102 वर्ष। अतएव परंपरागत रूप से भगवान श्री रामजी का जन्म आज से लगभग 8,80,102 वर्ष पहले माना जाता है।



🚩एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श पिता, आदर्श शिष्य, आदर्श योद्धा और आदर्श राजा के रूप में यदि किसीका नाम लेना हो तो भगवान श्रीरामजी का ही नाम सबकी जुबान पर आता है। इसलिए राम-राज्य की महिमा आज लाखों-लाखों वर्षों के बाद भी गायी जाती है।


🚩भगवान श्रीरामजी के सद्गुण ऐसे विलक्षण थे कि पृथ्वी के प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय और जाति के लोग उन सद्गुणों को अपनाकर लाभान्वित हो सकते हैं ।


🚩भगवान श्रीरामजी सारगर्भित बोलते थे। उनसे कोई मिलने आता तो वे यह नहीं सोचते थे कि पहले वह बात शुरू करे या मुझे प्रणाम करे। सामनेवाले को संकोच न हो इसलिए श्रीरामजी अपनी तरफ से ही बात शुरू कर देते थे।


🚩श्रीरामजी प्रसंगोचित बोलते थे। जब उनके राजदरबार में धर्म की किसी बात पर निर्णय लेते समय दो पक्ष हो जाते थे, तब जो पक्ष उचित होता श्रीरामजी उसके समर्थन में इतिहास, पुराण और पूर्वजों के निर्णय उदाहरण रूप में कहते, जिससे अनुचित बात का समर्थन करनेवाले पक्ष को भी लगे कि दूसरे पक्ष की बात सही है ।


🚩श्रीरामजी दूसरों की बात बड़े ध्यान व आदर से सुनते थे। बोलनेवाला जब तक स्वयं तथा औरों के अहित की बात नहीं कहता, तब तक वे उसकी बात सुन लेते थे। जब वह किसी की निंदा आदि की बात करता तब देखते कि इससे इसका अहित होगा या इसके चित्त का क्षोभ बढ़ जाएगा या किसी दूसरे की हानि होगी, तो वे सामनेवाले को सुनते-सुनते इस ढंग से बात मोड़ देते कि बोलनेवाले का अपमान नहीं होता था। श्रीरामजी तो शत्रुओं के प्रति भी कटु वचन नहीं बोलते थे ।


🚩युद्ध के मैदान में श्रीरामजी एक बाण से रावण के रथ को जला देते, दूसरा बाण मारकर उसके हथियार उड़ा देते फिर भी उनका चित्त शांत और सम रहता था। वे रावण से कहते : ‘लंकेश! जाओ, कल फिर तैयार होकर आना। ऐसा करते-करते काफी समय बीत गया तो देवताओं को चिंता हुई कि रामजी को क्रोध नहीं आता है, वे तो समता-साम्राज्य में स्थिर हैं, फिर रावण का नाश कैसे होगा? लक्ष्मणजी, हनुमानजी आदि को भी चिंता हुई, तब दोनों ने मिलकर प्रार्थना की: ‘प्रभु ! थोड़े कोपायमान होईए। तब श्रीरामजी ने क्रोध का आह्वान किया: क्रोधं आवाहयामि। ‘क्रोध! अब आ जा।’


🚩श्रीरामजी क्रोध का उपयोग तो करते थे, किंतु क्रोध के हाथों में नहीं आते थे। श्रीरामजी को जिस समय जिस साधन की आवश्यकता होती थी, वे उसका उपयोग कर लेते थे। श्रीरामजी का अपने मन पर बड़ा विलक्षण नियंत्रण था। चाहे कोई सौ अपराध कर दे फिर भी रामजी अपने चित्त को क्षुब्ध नहीं होने देते थे।


🚩श्रीरामजी अर्थव्यवस्था में भी निपुण थे। “शुक्रनीति” और “मनुस्मृति” में भी आया है कि जो धर्म, संग्रह, परिजन और अपने लिए- इन चार भागों में अर्थ की ठीक से व्यवस्था करता है वह आदमी इस लोक और परलोक में सुख-आराम पाता है।


🚩श्रीरामजी धन के उपार्जन में भी कुशल थे और उपयोग में भी। जैसे मधुमक्खी पुष्पों को हानि पहुँचाए बिना उनसे परागकण ले लेती है, ऐसे ही श्रीरामजी प्रजा से ऐसे ढंग से कर (टैक्स) लेते कि प्रजा पर बोझ नहीं पड़ता था। वे प्रजा के हित का चिंतन तथा उनके भविष्य का सोच-विचार करके ही कर लेते थे।


🚩प्रजा के संतोष तथा विश्वास-सम्पादन के लिए श्रीरामजी राज्यसुख, गृहस्थसुख और राज्यवैभव का त्याग करने में भी संकोच नहीं करते थे। इसलिए श्रीरामजी का राज्य आदर्श राज्य माना जाता है।


🚩राम-राज्य का वर्णन करते हुए ‘श्री रामचरितमानस में आता है :

बरनाश्रम निज निज धरम निरत बेद पथ लोग ।

चलहिं सदा पावहिं सुखहि नहिं भय सोक न रोग।।


🚩‘राम-राज्य में सब लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर रहते हुए सदा वेद-मार्ग पर चलते हैं और सुख पाते हैं। उन्हें न किसी बात का भय है, न शोक और न कोई रोग ही सताता है।’

🚩राम-राज्य में किसीको आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं ।


🚩धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं।

स्रोत: ऋषि प्रसाद पत्रिका: मार्च, 2010


🚩देश के नेता भी भगवान श्री रामजी से कुछ गुण ले लें तो प्रजा के साथ-साथ उन नेताओं का भी कितना कल्याण होगा, यह अवर्णनीय है और सदियों तक यश भी फैला रहेगा।


🚩रामनवमी को रामराज्य की स्थापना का संकल्प करेंगे…


🚩रामराज्य में प्रजा धर्माचरणी थी इसीलिए उनको भगवान श्रीराम जैसे सात्त्विक राज्यकर्ता मिले और वे आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए।

इसके साथ यदि हम भी धर्माचरणी और ईश्‍वर का भक्त बनें, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दूराष्ट्र) अब भी अवतरित होगा।


🚩नित्य धर्माचरण और धर्माधिष्ठित राज्यकार्य भार से आदर्श राज्यकार्य करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात प्रभु श्रीराम। प्रजा का जीवन संपन्न करनेवालेे, अपराध भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान नहीं- ऐसे रामराज्य की ख्याति थी। ऐसे आदर्श राज्य “हिन्दूराष्ट्र” स्थापना का निर्धारण (निश्‍चय) करेंगे!!


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