Thursday, June 22, 2023

समलैंगिकता को प्रोत्साहन देना क्यों गलत है ? जानिए....


22 June 2023

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🚩हमें इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध समाज के लिए क्यों अहितकारक है। अपने आपको आधुनिक बनाने की हौड़ में स्वछन्द सम्बन्ध की पैरवी भी आधुनिकता का परिचायक बन गया है। सत्य यह है कि इसका समर्थन करने वाले इसके दूरगामी परिणामों की अनदेखी कर देते हैं। प्रकृति ने मानव को केवल और केवल स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध बनाने के लिए बनाया है। इससे अलग किसी भी प्रकार का सम्बन्ध अप्राकृतिक एवं निरर्थक है। चाहे वह पुरुष-पुरुष के मध्य हो या स्त्री-स्त्री के मध्य हो। वह विकृत मानसिकता को जन्म देता है। उस विकृत मानसिकता कि कोई सीमा नहीं है। उसके परिणाम आगे चलकर बलात्कार (Rape) , सरेआम नग्न होना (Exhibitionism), पशु सम्भोग (Bestiality), छोटे बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म (Pedophilia), हत्या कर लाश से दुष्कर्म (Necrophilia), मार पीट करने के बाद दुष्कर्म (Sadomasochism) , मनुष्य के शौच से प्रेम (Coprophilia) और न जाने किस-किस रूप में निकलता हैं। अप्राकृतिक सम्बन्ध से संतान न उत्पन्न हो सकना क्या दर्शाता है? सत्य यह है कि प्रकृति ने पुरुष और नारी के मध्य सम्बन्ध का नियम केवल और केवल संतान की उत्पत्ति के लिए बनाया था। आज मनुष्य अपने आपको उन नियमों से ऊपर समझने लगा है। जिसे वह स्वछंदता समझ रहा है। वह दरअसल अज्ञानता है। 


🚩भोगवाद मनुष्य के मस्तिष्क पर ताला लगाने के समान है। भोगी व्यक्ति कभी भी सदाचारी नहीं हो सकता। वह तो केवल और केवल स्वार्थी होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को सामाजिक हितकारक नियम पालन का करने के लिए बाध्य होना चाहिए। जैसे आप अगर सड़क पर गाड़ी चलाते हैं तब आप उसे अपनी इच्छा से नहीं अपितु ट्रैफिक के नियमों को ध्यान में रखकर चलाते हैं। वहाँ पर क्यों स्वछंदता के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं करते? अगर करेंगे तो दुर्घटना हो जायेगी। जब सड़क पर चलने में स्वेच्छा की स्वतंत्रता नहीं है। तब स्त्री पुरुष के मध्य संतान उत्पत्ति करने के लिए विवाह व्यवस्था जैसी उच्च सोच को नकारने में कैसी बुद्धिमत्ता है?


🚩कुछ लोगो द्वारा समलैंगिकता के समर्थन में खजुराहो की नग्न मूर्तियाँ अथवा वात्सायन के कामसूत्र को भारतीय संस्कृति और परम्परा का नाम दिया जा रहा है। जबकि सत्य यह है कि भारतीय संस्कृति का मूल सन्देश वेदों में वर्णित संयम विज्ञान पर आधारित शुद्ध आस्तिक विचारधारा हैं।


🚩भौतिकवाद अर्थ और काम पर ज्यादा बल देता हैं। जबकि अध्यातम धर्म और मुक्ति पर ज्यादा बल देता हैं । वैदिक  जीवन में दोनों का समन्वय हैं। एक ओर वेदों में पवित्र धनार्जन करने का उपदेश है। दूसरी ओर उसे श्रेष्ठ कार्यों में दान देने का उपदेश है। एक ओर वेद में सम्बन्ध केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए है। दूसरी तरफ संयम से जीवन को पवित्र बनाये रखने की कामना है। एक ओर वेद में बुद्धि की शांति के लिए धर्म की और दूसरी ओर आत्मा की शांति के लिए मोक्ष (मुक्ति) की कामना है। धर्म का मूल सदाचार है। अत: कहां गया है कि आचार परमो धर्म: अर्थात सदाचार परम धर्म है। आचारहीन न पुनन्ति वेदा: अर्थात दुराचारी व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। अत: वेदों में सदाचार, पाप से बचने, चरित्र निर्माण, ब्रह्मचर्य आदि पर बहुत बल दिया गया है।


🚩जैसे-

★ यजुर्वेद ४/२८ – हे ज्ञान स्वरुप प्रभु! मुझे दुश्चरित्र या पाप के आचरण से सर्वथा दूर करो तथा मुझे पूर्ण सदाचार में स्थिर करो।

★ ऋग्वेद ८/४८/५-६ – वे मुझे चरित्र से भ्रष्ट न होने दे।

★ यजुर्वेद ३/४५ – ग्राम, वन, सभा और वैयक्तिक इन्द्रिय व्यवहार में हमने जो पाप किया हैं उसको हम अपने से अब सर्वथा दूर कर देते हैं।

★ यजुर्वेद २०/१५-१६ – दिन, रात्रि, जागृत और स्वप्न में हमारें अपराध और दुष्ट व्यसन से हमारे अध्यापक, आप्त विद्वान, धार्मिक उपदेशक और परमात्मा हमें बचाए।

★ ऋग्वेद १०/५/६ – ऋषियों ने सात मर्यादाएं बनाई हैं। उनमें से जो एक को भी प्राप्त होता हैं, वह पापी है। चोरी, व्यभिचार, श्रेष्ठ जनों की हत्या, भ्रूण हत्या, सुरापान, दुष्ट कर्म को बार बार करना और पाप करने के बाद छिपाने के लिए झूठ बोलना।

★ अथर्ववेद ६/४५/१ – हे मेरे मन के पाप! मुझसे बुरी बातें क्यों करते हो? दूर हटों। मैं तुझे नहीं चाहता।

★ अथर्ववेद ११/५/१० – ब्रह्मचर्य और तप से राजा राष्ट्र की विशेष रक्षा कर सकता है।

★ अथर्ववेद११/५/१९ – देवताओं (श्रेष्ठ पुरुषों) ने ब्रह्मचर्य और तप से मृत्यु (दुःख) का नष्ट कर दिया है।

★ ऋग्वेद ७/२१/५ – दुराचारी व्यक्ति कभी भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता।

 

🚩इस प्रकार अनेक वेद मन्त्रों में संयम और सदाचार का उपदेश हैं।

🚩खजुराहो आदि की व्यभिचार को प्रदर्शित करने वाली मूर्तियाँ , वात्सायन आदि के अश्लील ग्रन्थ एक समय में भारत वर्ष में प्रचलित हुए वाममार्ग का परिणाम हैं। जिसके अनुसार मांसाहार, मदिरा एवं व्यभिचार से ईश्वर प्राप्ति है। कालांतर में वेदों का फिर से प्रचार होने से यह मत समाप्त हो गया पर अभी भी भोगवाद के रूप में हमारे सामने आता रहता है।

 

🚩मनु स्मृति में समलैंगिकता के लिए दंड एवं प्रायश्चित का विधान होना स्पष्ट रूप से यही दिखाता है कि हमारे प्राचीन समाज में समलैंगिकता किसी भी रूप में मान्य नहीं थी। कुछ कुतर्की यह भी कह रहे हैं कि मनुस्मृति में अत्यंत थोड़ा सा दंड है। उनके लिए मेरी सलाह है कि उसी मनुस्मृति में ब्रह्मचर्य व्रत का नाश करने वाले के लिए मनु स्मृति में दंड का क्या विधान है, जरा देख लें।

 

🚩इसके अतिरिक्त बाइबिल, क़ुरान दोनों में इस सम्बन्ध को अनैतिक, अवांछनीय, अवमूल्यन का प्रतीक बताया गया हैं।


🚩जो लोग यह कुतर्क देते हैं कि समलैंगिकता पर रोक से AIDS कि रोकथाम होती है। उनके लिए विशेष रूप से यह कहना चाहूँगा कि समाज में जितना सदाचार बढ़ेगा, उतना समाज में अनैतिक सम्बन्धों पर रोकथाम होगी। आप लोगों का तर्क कुछ ऐसा है कि आग लगने पर पानी कि व्यवस्था करने में रोक लगने के कारण दिक्कत होगी, हम कह रहे हैं कि आग को लगने ही क्यूँ देते हो? भोग रूपी आग लगेगी तो नुकसान तो होगा ही होगा। कहीं पर बलात्कार होंगे, कहीं पर पशुओं के समान व्यभिचार होगा, कहीं पर बच्चों को भी नहीं बक्शा जायेगा। इसलिए सदाचारी बनो, ना कि व्यभिचारी।

 

🚩एक कुतर्क यह भी दिया जा रहा है कि समलैंगिक समुदाय अल्पसंख्यक है, उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए। मेरा इस कुतर्क को देने वाले सज्जन से प्रश्न है कि भारत भूमि में तो अब अखंड ब्रह्मचारी भी अल्प संख्यक हो चले हैं। उनकी भावनाओं का सम्मान रखने के लिए मीडिया द्वारा जो अश्लीलता फैलाई जा रही हैं उस पर लगाम लगाना भी तो अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा के समान है।

 

🚩एक अन्य कुतर्की ने कहा कि पशुओं में भी समलैंगिकता देखने को मिलती हैं। मेरा उस बंधू से एक ही प्रश्न हैं कि अनेक पशु बिना हाथों के केवल जिव्हा से खाते हैं, आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते? अनेक पशु केवल धरती पर रेंग कर चलते हैं आप उनका अनुसरण क्यूँ नहीं करते ? चकवा चकवी नामक पक्षी अपने साथी कि मृत्यु होने पर होने प्राण त्याग देता हैं, आप उसका अनुसरण क्यों नहीं करते?

 

🚩ऐसे अनेक कुतर्क हमारे समक्ष आ रहे हैं जो केवल भ्रामक सोच का परिणाम हैं।

 

🚩जो लोग भारतीय संस्कृति और प्राचीन परम्पराओं को दकियानूसी और पुराने ज़माने कि बात कहते हैं वे वैदिक विवाह व्यवस्था के आदर्शों और मूलभूत सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं। चारों वेदों में वर-वधु को महान वचनों द्वारा व्यभिचार से परे पवित्र सम्बन्ध स्थापित करने का आदेश है। ऋग्वेद के मंत्र के स्वामी दयानंद कृत भाष्य में वर वधु से कहता है- हे स्त्री! मैं सौभाग्य अर्थात् गृहाश्रम में सुख के लिए तेरा हस्त ग्रहण करता हूँ और इस बात की प्रतिज्ञा करता हूँ कि जो काम तुझको अप्रिय होगा उसको मैं कभी ना करूँगा। ऐसे ही स्त्री भी पुरुष से कहती है कि जो कार्य आपको अप्रिय होगा वो मैं कभी न करूँगी और हम दोनों व्यभिचारआदि दोषरहित हो के वृद्ध अवस्था पर्यन्त परस्पर आनंद के व्यवहार करेंगे। परमेश्वर और विद्वानों ने मुझको तेरे लिए और तुझको मेरे लिए दिया हैं, हम दोनों परस्पर प्रीति करेंगे तथा उद्योगी हो कर घर का काम अच्छी तरह और मिथ्याभाषण से बचकर सदा धर्म में ही वर्तेंगे। सब जगत का उपकार करने के लिए सत्यविद्या का प्रचार करेंगे और धर्म से संतान को उत्पन्न करके उनको सुशिक्षित करेंगे। हम दूसरे स्त्री और दूसरे पुरुष के साथ मन से भी व्यभिचार ना करेंगे।

 

🚩एक और गृहस्थ आश्रम में इतने उच्च आचार और विचार का पालन करने का मर्यादित उपदेश हैं , दूसरी ओर पशु के समान स्वछन्द अमर्यादित सोच हैं। पाठक स्वयं विचार करें कि मनुष्य जाति कि उन्नति उत्तम गृहस्थी बनकर समाज को संस्कारवान संतान देने में हैं अथवा पशुओं के समान कभी इधर कभी उधर मुँह मारने में हैं।


🚩समलैंगिकता एक विकृत सोच है, मनोरोग है, बीमारी है। इसका समाधान इसका विधिवत उपचार है। ना कि इसे प्रोत्साहन देकर सामाजिक व्यवस्था को भंग करना है। इसका समर्थन करने वाले स्वयं अंधेरे में हैं, ओरो को भला क्या प्रकाश दिखायेंगे। कभी समलैंगिकता का समर्थन करने वालो ने भला यह सोचा है कि अगर सभी समलैंगिक बन जायेंगे तो अगली पीढ़ी कहाँ से आयेगी? सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को दंड की श्रेणी से बाहर निकालने का हम पुरजोर असमर्थन करते हैं। – डॉ विवेक आर्य


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Wednesday, June 21, 2023

कुछ स्वार्थी लोग गीता प्रेस को करते रहे बदनाम जबकि गीताप्रेस ने 41 करोड़ किताबें छापकर घर-घर में बनाई अपनी जगह.....

 


कुछ स्वार्थी लोग गीता प्रेस को करते रहे बदनाम जबकि गीताप्रेस ने 41 करोड़ किताबें छापकर घर-घर में बनाई अपनी जगह.....


21 June 2023

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🚩100 वर्ष से धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन कर उन्हें देश-विदेश तक पहुँचाने का माध्यम बनने वाली गीता प्रेस को साल 2021 के लिए गाँधी शांति पुरस्कार मिला। लेकिन कॉन्ग्रेसी नेता जयराम रमेश समेत कई अन्य इससे किलस गए और उन्होंने गीता प्रेस को अवार्ड मिलने को कहा कि ये बिलकुल ऐसा है जैसे सावरकर या गोडसे को सम्मान मिला हो।


🚩जयराम रमेश के ट्वीट पर उन्हें सोशल मीडिया यूजर्स खूब लताड़ लगा रहे हैं। भाजपा नेता शहजाद जय हिंद ने कहा कि हैरानी नहीं हो रही कि कॉन्ग्रेसियों को गीता प्रेस से दिक्कत है। अगर ये कोई और प्रेस होती तो इसकी प्रशंसा होती है लेकिन गीता प्रेस के कारण इन्हें समस्या है। कॉन्ग्रेस को मुस्लिम लीग सेकुलर लगती है मगर गीता प्रेस कम्युनल है। जाकिर नाइक शांति का मसीहा है पर गीता प्रेस सांप्रदायिक है। कॉन्ग्रेस को चाहिए कर्नाटक में गाय कटे। ये गीता को जिहाद से जोड़ते हैं। प्रभु श्रीराम और राम मंदिर का विरोध करते हैं।


🚩इसी तरह राजद प्रवक्ता मनोज झा ने भी गीता प्रेस को गाँधी पीस प्राइज दिए जाने पर सवाल खड़े किए और कहा कि सरकार पूर्ण रूम से गाँधी विरोधी है। सरकार को चाहिए कि वो गीता प्रेस को जितना मन हो उतना पैसा दें। लेकिन गाँधी के नाम पर न दें। राजद प्रवक्ता का ऐसा भ्रामक बयान तब आया है जब गीता प्रेस ये बात स्पष्ट कर चुका है कि उन्हें गाँधी शांति पुरस्कार-2021 स्वीकार है लेकिन वो इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपए की राशि नहीं लेंगे


🚩बता दें कि गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गाँधी शांति पुरस्कार दिया गया है। यहाँ धार्मिक किताबें प्रकाशित होती हैं और एक बार इनपर जिल्द चढ़ने के बाद इन्हें कभी जमीन पर नहीं रखा जाता। इन्हें रखने के लिए लकड़ी के फट्टे हैं। इसके अलावा इन्हें मशीन से नहीं हाथों से चिपकाया जाता है,क्योंकि बाजार में बिकने वाली गोंद में जानवरों से जुड़ी चीजें मिली होती हैं। गीताप्रेस सालाना 2 करोड़ से ज्यादा पुस्तक छापकर देश विदेश भेजती है। 100 सालों में प्रेस ने 41 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें छापी हैं।


🚩घर-घर गीता प्रेस पहुँचाने वाले श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

उल्लेखनीय है कि आज गीता प्रेस द्वारा करोड़ों की तादाद में प्रकाशित की जा रही किताबें हर साल बिकती हैं। लोग केवल गीता प्रेस लिखा होने भर से उसे खरीद लेते हैं। मगर इसके प्रति इतना विश्वास लोगों में यूँ ही नहीं बना। साल 1923 में इसकी शुरुआत होने के बाद ये धीरे-धीरे लोगों तक पहुँची और इसे घर-घर तक पहुँचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हनुमान प्रसाद पोद्दार हैं। जिन्होंने अलीपुर जेल में श्री ऑरोबिंदो (उस समय बाबू ऑरोबिंदो घोष) के साथ बंद रहते हुए जेल में ही गीता का अध्ययन शुरू कर दिया था।


🚩वहीं से छूटने के बाद उनका ध्यान इस बात पर गया कि कैसे कलकत्ता ईसाई मिशनरी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था, जहाँ बाइबिल के अलावा ईसाईयों की अन्य किताबें भी, जिनमें हिन्दुओं की धार्मिक परम्पराओं के लिए अनादर से लेकर झूठ तक भरा होता था, सहज उपलब्ध थीं। लेकिन गीता- जो हिन्दुओं का सर्वाधिक जाना-माना ग्रन्थ था, उसकी तक ढंग की प्रतियाँ उपलब्ध नहीं थीं। इसीलिए बंगाली तेज़ी से हिन्दू से ईसाई बनते जा रहे थे।


🚩1926 में हुए मारवाड़ी अग्रवाल महासभा के दिल्ली अधिवेशन में पोद्दार की मुलाकात सेठ घनश्यामदास बिड़ला से हुई, जिन्होंने आध्यात्म में पहले ही गहरी रुचि रखने वाले पोद्दार को सलाह दी कि जन-सामान्य तक आध्यात्मिक विचारों और धर्म के मर्म को पहुँचाने के लिए आम भाषा (आज हिंदी, उस समय की ‘हिन्दुस्तानी’) में एक सम्पूर्ण पत्रिका प्रकाशित होनी चाहिए। पोद्दार ने उनके इस विचार की चर्चा जयदयाल गोयनका से की, जो उस समय तक गोबिंद भवन कार्यालय के अंतर्गत गीता प्रेस नामक प्रकाशन का रजिस्ट्रेशन करा चुके थे।


🚩गोयनका ने पोद्दार को अपनी प्रेस से यह पत्रिका निकालने की ज़िम्मेदारी दे दी, और इस तरह ‘कल्याण’ पत्रिका का उद्भव हुआ, जो तेज़ी से हिन्दू घरों में प्रचारित-प्रसारित होने लगी। आज कल्याण के मासिक अंक लगभग हर प्रचलित भारतीय भाषा और इंग्लिश में आने के अलावा पत्रिका का एक वार्षिक अंक भी प्रकाशित होता है, जो अमूमन किसी-न-किसी एक पुराण या अन्य धर्मशास्त्र पर आधारित होता है।


🚩गीता प्रेस की स्थापना के पीछे का दर्शन स्पष्ट था- प्रकाशन और सामग्री/जानकारी की गुणवत्ता के साथ समझौता किए बिना न्यूनतम मूल्य और सरलतम भाषा में धर्मशास्त्रों को जन-जन की पहुँच तक ले जाना। हालाँकि गीता प्रेस की स्थापना गैर-लाभकारी संस्था के रूप में हुई, लेकिन गोयनका-पोद्दार ने इसके लिए चंदा लेने से भी इंकार कर दिया, और न्यूनतम लाभ के सिद्धांत पर ही इसे चलाने का निर्णय न केवललिया, बल्कि उसे सही भी साबित करके दिखाया। 5 साल के भीतर गीता प्रेस देश भर में फ़ैल चुकी थी, और विभिन्न धर्मग्रंथों का अनुवाद और प्रकाशन कर रही थी। गरुड़पुराण, कूर्मपुराण, विष्णुपुराण जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन ही नहीं, पहला शुद्ध और सही अनुवाद भी गीता प्रेस ने ही किया।


🚩बम्बई से आई गोरखपुर, गोरखधाम बना संरक्षक

गीता प्रेस ने श्रीमद्भागवत गीता और रामचरितमानस की करोड़ों प्रतियाँ प्रकाशित और वितरित की हैं। इसका पहला अंक वेंकटेश्वर प्रेस बम्बई से प्रकाशित हुआ, और एक साल बाद इसे गोरखपुर से ही प्रकाशित किया जाने लगा। उसी समय गोरखधाम मन्दिर के प्रमुख और नाथ सम्प्रदाय के सिरमौर की पदवी को प्रेस का मानद संरक्षक भी नामित किया गया- यानी आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और नाथ सम्प्रदाय के मुखिया योगी आदित्यनाथ गीता प्रेस के संरक्षक हैं।


🚩गीता प्रेस की सबसे खास बात है कि इतने वर्षों में कभी भी उस पर न ही सामग्री (‘content’) की गुणवत्ता के साथ समझौते का इलज़ाम लगा, न ही प्रकाशन के पहलुओं के साथ- वह भी तब जब 60 करोड़ से अधिक प्रतियाँ प्रेस से प्रकाशित हो चुकीं हैं। 96 वर्षों से अधिक समय से इसका प्रकाशन उच्च गुणवत्ता के कागज़ पर ही होता है, छपाई साफ़ और स्पष्ट, अनुवाद या मुद्रण (printing) में शायद ही कभी कोई त्रुटि रही हो, और subscription लिए हुए ग्राहकों को यह अमूमन समय पर पहुँच ही जाती है- और यह सब तब, जबकि पोद्दार ने इसे न्यूनतम ज़रूरी मुनाफे के सिद्धांत पर चलाया, और यही सिद्धांत आज तक गीता प्रेस गोरखपुर में पालित होता है। न ही गीता प्रेस पाठकों से बहुत अधिक मुनाफ़ा लेती है, न ही चंदा- और उसके बावजूद गुणवत्ता में कोई कमी नहीं।


🚩‘भाई जी’ कहलाने वाले पोद्दार ने ऐसा सिस्टम बना और चला कर यह मिथक तोड़ दिया कि धर्म का काम करने में या तो धन की हानि होती है (क्योंकि मुनाफ़ा कमाया जा नहीं सकता), या फिर गुणवत्ता की (क्योंकि बिना ‘पैसा पीटे’ उच्च गुणवत्ता वाला काम होता नहीं है)। उन्होंने मुनाफ़ाखोरी और फकीरी के दोनों चरम छोरों पर जाने से गीता प्रेस को रोककर, ethical business और धर्म-आधारित entrepreneurship का उदाहरण प्रस्तुत किया।



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Tuesday, June 20, 2023

जीवन में योग का महत्व क्यों हैं ? योग दिवस क्यों मनाया जाता है ? जानिए

20 June 2023

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🚩योग जीवन के लिए उतने ही जरुरी है, जितना की एक मरीज को उसकी टेबलेट। किसी बीमारी में पड़कर फिर उसके इलाज के लिए इधर उधर भागना और बहुत खर्चा करना, इससे बेहतर हैं आज से ही योग के लिए वक्त निकालना। ना इसमें कोई खर्चा होता हैं और न ही कोई नुकसान। योग के बस फायदे होते हैं, जिन्हें दुनिया के सभी लोगो ने माना है, इसलिए देश में अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा हैं। दुनिया में बढ़ती हुई बीमारियों को देखते हुए यह बहुत अच्छा निर्णय हैं,जो विश्वस्तर पर लिया गया हैं। जरुरी नहीं हैं कि योग के लिए कई घंटो का वक्त निकाला जाए, 30 मिनिट भी आपके लिए फायदेमंद होंगे। योग केवल मोटे लोगो या बीमार लोगो के लिए ही जरुरी नहीं हैं। योग व्यक्ति का सर्वांगिक विकास करता हैं। शारीरिक विकास के साथ मनो विकास भी करता हैं। योग से जीवन के हर क्षेत्र में लाभ हैं इससे कई तकलीफों का अंत हैं। अतः सभी धर्म एवं जाति में योग के प्रति जागरूकता होनी चाहिये।



🚩योग के फायदे


🚩योग से शारीरिक तंदुरुस्ती तो आती ही हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मानसिक शांति मिलती हैं। इससे मन शांत रहता हैं एवं तनाव कम होता हैं। साथ ही यह शरीर की सभी क्रियाओं को नियंत्रित भी करता हैं। योग से जीवन के सभी भाव नियंत्रित होते हैं।


🚩शरीर स्वस्थ रहता हैं :


🚩योग से शरीर का ब्लड का प्रवाह नियंत्रित रहता है, जिससे शरीर में चुस्ती आती है, जो कि हानिकारक टोक्सिंस को बाहर निकालती है, जिससे शरीर के विकार दूर होते हैं और रोगियों को इससे आराम मिलता हैं। साथ ही सकारात्मकता का भाव प्रवाहित होता हैं। जिससे शरीर स्वस्थ रहता हैं।


🚩स्ट्रा वजन कम होता हैं :


🚩योग की सबसे प्रभावशाली विद्या हैं सूर्य नमस्कार, जिससे शरीर में लचीलापन आता हैं। रक्त का प्रवाह अच्छा होता हैं। शरीर की अकड़न, जकड़न में आराम मिलता हैं। योग से वजन नियंत्रित रहता हैं। जिनका वजन कम है, वह बढ़ता हैं और जिनका अधिक हैं कम होता हैं।


🚩चिंता का भाव कम होता हैं :


🚩योग से मन एकाग्रचित्त रहता है, उसमे शीतलता का भाव आता है और चिंता जैसे विकारों का अंत होता हैं। योग से गुस्सा कम आता है, इससे ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है, जिससे शारीरिक एवं  मानसिक संतुलन बना रहता हैं।


🚩मानसिक शांति


🚩योग से मन शांत रहता हैं। यादशक्ति बढ़ती  है, जिससे सकारात्मक विचार का प्रवाह होता हैं। सकारात्मक भाव से जीवन उन्नत होता  हैं। मनुष्य को किसी भी वस्तु, अन्य इन्सान या जानवर में कुछ गलत दिखाई नहीं देता। किसी के लिए मन में बैर नहीं रहत। इस तरह योग से मनुष्य का मनोविकास होता हैं।


🚩मनोबल बढ़ता हैं :


🚩योग से मनुष्य में आत्मबल बढ़ता हैं, कॉन्फिडेंस आता हैं। जीवन के हर क्षेत्र में कार्य में सफलता मिलती हैं। मनुष्य हर परिस्थिती से लड़ने के काबिल होता हैं। साथ ही जीवन की चुनौतियों को उत्साह से लेता हैं।


🚩प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं :


🚩योग से पाचन की क्रिया दुरुस्त होती हैं और श्वसन क्रिया संतुलित होती हैं जिससे मनुष्य में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती हैं। बड़ी से बड़ी बीमारी से लड़ने के लिए शक्ति का संचार होता हैं। योग एवं ध्यान में बड़ी से बड़ी बीमारी के लिए उपाय हैं।


🚩जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता :


🚩योग को आप जादू भी कह सकते है, नियमित योग करने से जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता हैं। आत्मबल बढ़ता हैं, सकारात्मक भाव आता है, साथ ही आत्म विश्वास में भी वृद्धी होती है, जिससे जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता हैं।


🚩उर्जा बढ़ती हैं :


🚩मनुष्य रोजाना कई गतिविधियाँ करता है और दिन के अंत में थक जाता है, लेकिन अगर वह नियमित योगा करता है, तो उसमे उर्जा का संचार होता हैं। थकावट या किसी भी काम के प्रति उदासी का भाव नहीं रहता। सभी अंगो को अपना कार्य करने के लिए पर्याप्त उर्जा मिलती है,क्योंकि योग से भोजन का सही मायने में पाचन होता हैं जो दैनिक उर्जा को बढ़ाता हैं।


🚩शरीर लचीला बनता हैं


🚩योग से शरीर की जकड़न खत्म होती हैं। शरीर में वसा की मात्रा कम होती हैं जिससे लचीलापन आता हैं। लचीले पन के कारण शरीर में कभी अनावश्यक दर्द नहीं रहता और शरीर को जिस तरह का होना चाहिये, उसकी बनावट धीरे-धीरे रोजाना योग करने से ठीक हो जाती हैं।


🚩भारत को योग का जनक क्यों कहते हैं ?


🚩अन्तराष्ट्रीय योग दिवस की बात हो रही है तो भारत की बात क्यों ना हो! क्योंकि योग का इतिहास भारत में ही है। माना जाता है की योग का इतिहास लाखों साल पुराना है। कहते हैं की महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र को लिखा था। योग संस्कृत से प्राप्त हुआ शब्द है, यही वजह है की एक समय यह सिर्फ हिन्दू धर्म के लोगों तक सीमित था। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के बारें में भी बताया, उन्ही की वजह से यह एक धर्म में ना रहकर सम्पूर्णदुनिया में फैलाया गया। आज विज्ञान भी योग के महत्व को बताती है। आज योग हमारे जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है चाहे वह स्वास्थ्य के लिए हो या आत्मशांति के लिए।


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Monday, June 19, 2023

गूढ़ रहस्य : महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में आखिर ऐसा क्या है , जो अभी तक कोई जान नहीं पाया...!?

19 June 2023

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🚩जगन्नाथपूरी के भव्य और दिव्य मंदिर के अति दिव्य रहस्य...

जहाँ मंदिर के गर्भ-गृह में विराजमान भगवान् श्री कृष्ण जगन्नाथ का हृदय बिल्कुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़कता रहता है ।आश्चर्य को भी आश्चर्य हो जाए ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर धड़कता हुआ उनका हृदय...

जबकि ये बात बहुत कम लोगों को पता होगी !



🚩ऐसी मान्यता है , कि भगवान श्रीकृष्ण के शरीर त्यागने के बाद अग्नि संस्कार के उपरांत भी उनका हृदय बिल्कुल सुरक्षित और धड़कता हुआ मिला , जिसे बाद में भगवान जगन्नाथ की काष्ठ प्रतिमा के भीतर स्थापित कर दिया गया ।


🚩महाप्रभु का महा रहस्य


🚩महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है। पुरी (उड़ीसा) में जगन्नाथ स्वामी अपनी बहन देवी सुभद्रा और बल के धाम भाई श्रीबलराम के साथ निवास करते हैं ।

यहाँ रहस्य ऐसे -ऐसे हैं कि आज तक कोई तर्कवादी या खोजकर्ता उनका भेद न जान पाया। 


🚩हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है । उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है, यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है । लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को CRPF की सेना चारो तरफ से घेर लेती है,उस समय कोई भी मंदिर में नहीं जा सकता । मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है । पुजारी की आँखों पर पट्टी बंधी होती है और हाथों में दस्ताने होते हैं । वो पहले वाली पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालते हैं और नई मूर्ती में डाल देते हैं ।



🚩क्या है ये ब्रह्म पदार्थ...!?

यह आज तक किसी को नहीं पता , इसे आज तक किसी ने नहीं देखा , जो हज़ारों सालों से एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांस्फर किया जा रहा है । ऐसी मान्यता है , कि यह एक अलौकिक पदार्थ है , जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के शरीर के चिथड़े उड़ जाएंगे । कहते हैं इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है, मगर ये क्या है !? कोई नहीं जानता।


🚩भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के साथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं, जब साल में आषाढ़ के 2 महीने आते हैं । इस बार 19 साल बाद यह अवसर आया है । वैसे कभी-कभी 14 साल में भी ऐसा होता है, इस मौके को नव-कलेवर कहते हैं। मगर आज तक कोई भी पुजारी ये नहीं बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??

कुछ पुजारियों का कहना है , कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था, आंखों पर पट्टी और हाथ में दस्ताने थे , तो हम सिर्फ महसूस कर पाए।


🚩आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते हैं । भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती । जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है , कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देगी । 


🚩आपने सभी मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे... लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता, झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशा में लहराता है । दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती ।


🚩भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज़ बदला जाता है । ऐसी मान्यता है , कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा। इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपको आपके मुंह की तरफ ही , मतलब सीधा ही दीखता है।


🚩भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं । भोग प्रसाद को लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है । आश्चर्य कि , सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता । लेकिन हैरान करने वाली बात ये है , कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं , वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है ।


🚩...और भी कितनी ही आश्चर्यजनक बातें हैं हमारे सनातन धर्म की , जो की पग-पग पर उस परम् सत्ता का प्रमाण देती हैं और साथ ही हमारे सनातन धर्म की महिमा और गहराई को भी उजागर करती हैं ।

ज़रूरत है तो बस हमारी जागरूकता की...

आज सचमुच ज़रूरत है , कि हम आधुनिकता की अंधी दौड़ को छोड़कर अपनी स्वयं की महिमा और अपनी गौरवशाली सनातन संस्कृति की महानता को जानें ।

🚩जय जगन्नाथ 💐🙏


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Sunday, June 18, 2023

रानी केवल 22 वर्ष और 7 महीने ही जीवित रहीं, पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’

18 June 2023

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🚩भारत में अंग्रेजी सत्ता के आने के साथ ही गाँव-गाँव में उनके विरुद्ध विद्रोह होने लगा; पर व्यक्तिगत या बहुत छोटे स्तर पर होने के कारण इन संघर्षों को सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के विरुद्ध पहला संगठित संग्राम 1857 में हुआ। इसमें जिन वीरों ने अपने साहस से अंग्रेजी सेनानायकों के दाँत खट्टे किये, उनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम प्रमुख है।



🚩19 नवम्बर, 1835 को वाराणसी में जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था। प्यार से लोग उसे मणिकर्णिका तथा छबीली भी कहते थे। इनके पिता श्री मोरोपन्त ताँबे तथा माँ श्रीमती भागीरथी बाई थीं। गुड़ियों से खेलने की अवस्था से ही उसे घुड़सवारी,  तीरन्दाजी, तलवार चलाना, युद्ध करना जैसे पुरुषोचित कामों में बहुत आनन्द आता था। नाना साहब पेशवा उसके बचपन के साथियों में थे।


🚩उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन था। अतः सात वर्ष की अवस्था में ही मनु का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधरराव से हो गया। विवाह के बाद वह लक्ष्मीबाई कहलायीं। उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा। जब वह 18 वर्ष की ही थीं, तब राजा का देहान्त हो गया। दुःख की बात यह भी थी कि वे तब तक निःसन्तान थे। युवावस्था के सुख देखने से पूर्व ही रानी विधवा हो गयीं।

उन दिनों अंग्रेज शासक ऐसी बिना वारिस की जागीरों तथा राज्यों को अपने कब्जे में कर लेते थे। इसी भय से राजा ने मृत्यु से पूर्व ब्रिटिश शासन तथा अपने राज्य के प्रमुख लोगों के सम्मुख दामोदर राव को दत्तक पुत्र स्वीकार कर लिया था; पर उनके परलोक सिधारते ही अंग्रेजों की लार टपकने लगी। उन्होंने दामोदर राव को मान्यता देने से मनाकर झाँसी राज्य को ब्रिटिश शासन में मिलाने की घोषणा कर दी। यह सुनते ही लक्ष्मीबाई सिंहनी के समान गरज उठी - मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।


🚩अंग्रेजों ने रानी के ही एक सरदार सदाशिव को आगे कर विद्रोह करा दिया। उसने झाँसी से 50 कि.मी दूर स्थित करोरा किले पर अधिकार कर लिया; पर रानी ने उसे परास्त कर दिया। इसी बीच ओरछा का दीवान नत्थे खाँ झाँसी पर चढ़ आया। उसके पास साठ हजार सेना थी; पर रानी ने अपने शौर्य व पराक्रम से उसे भी दिन में तारे दिखा दिये।


🚩इधर देश में जगह-जगह सेना में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गये। झाँसी में स्थित सेना में कार्यरत भारतीय सैनिकों ने भी चुन-चुनकर अंग्रेज अधिकारियों को मारना शुरू कर दिया। रानी ने अब राज्य की बागडोर पूरी तरह अपने हाथ में ले ली; पर अंग्रेज उधर नयी गोटियाँ बैठा रहे थे।


🚩जनरल ह्यू रोज ने एक बड़ी सेना लेकर झाँसी पर हमला कर दिया। रानी दामोदर राव को पीठ पर बाँधकर 22 मार्च, 1858 को युद्धक्षेत्र में उतर गयी। आठ दिन तक युद्ध चलता रहा; पर अंग्रेज आगे नहीं बढ़ सके। नौवें दिन अपने बीस हजार सैनिकों के साथ तात्या टोपे रानी की सहायता को आ गये; पर अंग्रेजों ने भी नयी कुमुक मँगा ली। रानी पीछे हटकर कालपी जा पहुँची।

कालपी से वह ग्वालियर आयीं। वहाँ 17 जून, 1858 को ब्रिगेडियर स्मिथ के साथ हुए युद्ध में उन्होंने वीरगति पायी। रानी के विश्वासपात्र बाबा गंगादास ने उनका शव अपनी झोंपड़ी में रखकर आग लगा दी। रानी केवल 22 वर्ष और सात महीने ही जीवित रहीं। पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’ गाकर उन्हें सदा याद किया जाता है।


🚩ब्राह्मण कुल में जन्मी और महलों में पलने वाली भारत माता की सिंहनी ” वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ” ने अपनी वीरता, साहस, संयम, धैर्य तथा देशभक्ति के कारण सन् 1857 के महान क्रांतिकारियों की शृृंखला में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा दिया ।


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Saturday, June 17, 2023

बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है....

17 June 2023

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🚩भारत देश की सिनेमा इंडस्ट्री अर्थात बॉलीवुड के दोगलेपन से हम सब काफी समय से वाकिफ हैं। कला के नाम पे, ये अनगिनत अपमानजनक सामग्री बना कर बेच चुके हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी ने अपनी मर्यादा बेच दी हो। दूर से चमचमाता हुआ,ये कालसर्पी गटर बड़ा ही आकर्षक लगता है। बहुत ही गिने चुने व्यक्ति हैं, जो सामाजिक दृश्य की सही प्रस्तुति करते हैं, अपनी सिनेमा में । बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है।



🚩जी हाँँ, हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के शौर्य और शिक्षा को अमर्यादित रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश हैं । माता सीता की झलक ऐसी दिखाई गई है जैसे पुराने फिल्मों की मधुबाला । राम भक्त श्री हनुमान जी की भक्ति और तप का उपहास और शिव भक्त प्रकांड पंडित रावण की भी भर्त्सना की गई है।


🚩हनुमान चालीसा में ही अंजनीपुत्र के स्वरूप का वर्णन श्री तुलसीदास जी ने किया है। वो पंक्तियाँ हैं:

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥ अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥अर्थ- आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।


🚩इस फ़िल्म में दर्शाए गए हनुमान जी के चरित्र का इससे दूर-दूर तक कोई सामंजस्य नहीं दिखता। विपरीत रूप में उन्हें चमड़े के वस्त्र और बिना गदा के दिखाया गया है।


🚩ये फ़िल्म अभी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, इसने सनातनी भावनाओं को आघात किया है। कला का सही मूल्य तभी है, जब वो जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए सच प्रदर्शित करे । इस फ़िल्म में ना ही श्रीराम की स्वर्णिम व्यक्तित्व की झलक मिलती है, ना हनुमान जी की प्रेमपूर्ण भक्ति। सात्विक स्वभाव के हमारे देवगणों को चमड़े के वस्त्रों में दिखाया गया हैं।


🚩वहीं पंडित रावण की वेशभूषा ऐसी प्रतीत होती है, जैसे कोई मध्यकालीन क्रूर शासक ओरंगजेब हो, जो भारत पे आक्रमण करने आया हो। रावण की स्वर्णरूपी नगरी लंका को भी एक काले खंडहर के रूप में दिखाया गया है। पुष्कप विमान की जगह किसी काले चमगादड़ को रावण की सवारी बना दी गई है। जैसा हमें ज्ञात है की शिव भक्त रावण को चारो वेद कंठस्त्य थे। शिवतांडव स्त्रोत की रचना रावण ने ही की थी। रावण अहंकारी जरूरी था, पर उतना ही ज्ञानी भी। रावण का वध तय था श्रीराम के हाथों, पर श्रीराम ने भी उसकी विद्वत्ता की सराहना की थी। रावण को तो फिल्म निर्माताओं ने छपरी हेयरकट और औरंगजेबी वेशभूषा दे दी है।


🚩ये पहली बार नहीं है,कि बॉलीवुड ने हिंदू विरोधी फिल्म कला या यह कहूँ की कलंक के नाम पर पेश की है। पिछले वर्ष ही तांडव नाम की कुप्रस्तुति की गई थी। इस फिल्म में सैफ अली खान था और इस पर बहुत बहस हुई थी। आज से कुछ वर्षो पहले आमिर खान की फिल्म पीके (PK) ने भी हिंदू समाज के गुरु की नकारात्मक छवि दिखाई थी। इसी पीके (PK) फिल्म में शिवजी के रूप का उपहास किया गया था, कहीं उन्हें मोबाइल फ़ोन पर बात करते भी दिखाया गया, सिर्फ हिंदू रीति रिवाजों का मजाक उड़ाया गया। अन्य कई फिल्में हैं, जो की लव जिहाद और हिंदू फोबिया को नॉर्मलाइज करती हैं।


🚩बॉलीवुड के गटर से निकले कुछ निर्देशक अब वेब सीरीज़ भी बनाते हैं। अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफार्म पे,ये गंदी वेब सीरीज़ का अंबार लगा रहे है। ठीक वैसे ही जैसे कूड़े का पहाड़ हो । ऐसी ही वेब सिरीज़ जो भारतीय संस्कृति के वार पे इस सुसंस्कृति को वासना से भर रही है। कला के नाम पे बस अश्लीतला बेची जा रही ही जाती है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सुटेबल ब्वॉय में अगर एक मंदिर की मर्यादा को चोट पहुँचाने की कोशिश की गई तो वहीं नेटफ्लिक्स पर ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म लुडो को लेकर भी सवाल उठे।


🚩इस फिल्म में चार कहानियों को एक में पिरोया गया,लेकिन अनुराग बासु अपनी एंटी हिंदू सोच का गटर यहाँ भी खोल गए। एक रिसर्च के मुताबिक:-

बॉलीवुड की फिल्मों में 58% भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62% फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है। फिल्मों में 74% फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया। जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं। 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है, यहाँ तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।

🚩कट्टरपंथियों के कब्जे में फिल्म इंडस्ट्री:-कुल मिलाकर बॉलीवुड में एक खास धड़ा इसी पर काम कर रहा है, उन्हें पक्का यकीन है कि वो अगर हिंदू संस्कृति पर सवाल उठाएँगे तो ज़ाहिर है लिबरल सनातन समाज उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करेगा, जबकि मुस्लिम समुदाय कार्टून/कैरिकेचर बनने पर ही बवाल खड़े कर देता है। यही वजह है कि कुछ फिल्मों में हिंदू धर्म के प्रति पक्षपाती रवैया देखा गया।


🚩एक फिल्म निर्देशक का काम है सही रिसर्च करना अगर वो एक महाकाव्य पर फ़िल्म बनाने की इच्छा रखते हैं और सवाल यह है कि बॉलीवुड में सिर्फ हिंदू भावनाओं के साथ क्यों खिलवाड़ किया जाता आ रहा है। ख़ैर हमारी उम्मीद ही शायद गलत है। जिन लोगों की ख़ुद की ज़मीर ही नहीं न खुद की इज़्ज़त, वो दूसरो के धार्मिक भावनाओं का क्या ध्यान रखेंगे। समय आ गया है खुद के लिए आवाज़ उठाने का। अपनी आवाज़ बुलंद करे और पूर्ण रूप से इस अपमानजनक फिल्म का बहिष्कार करें। जब बॉलीवुड हमारे इतिहास और भावनाओं का सम्मान नही कर सकता तो उसे भी सम्मान नही मिलेगा।


🚩आदिपुरुष रिलीज होते ही दPIL दायर


🚩हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष से रावण, भगवान राम, हनुमान, माता सीता से संबंधित कुछ ‘आपत्तिजनक दृश्यों’ को हटाने की माँग की है।


🚩विष्णु गुप्त द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि फिल्म में धार्मिक चरित्रों का फिल्मांकन रामायण में किए गए चित्रण के विपरीत हैं। फिल्म के दृश्यों में हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक शख्सियतों और मूर्तियों का अपमान करते हुए धार्मिक चरित्रों को खराब स्वाद में दिखाया गया है।


🚩याचिका में कहा गया है, “हिंदुओं का भगवान राम, सीता और हनुमान की छवि के बारे में एक विशेष दृष्टिकोण है और फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा उनकी दिव्य छवि में किया गया बदलाव/छेड़छाड़ उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि इस फिल्म की वजह से देश की संस्कृति का मजाक बन रहा है।


🚩आगे कहा गया है, “महाकाव्यों में बनाई गई छवि के अनुसार हेयर स्टाइल, दाढ़ी और ड्रेसिंग को अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा कोई भी बदलाव निश्चित रूप से उपासकों, भक्तों और धार्मिक विश्वासियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाएगा।”


🚩रावण को ब्राह्मण बताते हुए कहा गया है, “फिल्म में सैफ अली खान द्वारा निभाए गए रावण के किरदार का दाढ़ी वाला लुक हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत कर रहा है, क्योंकि ब्राह्मण रावण को गलत तरीके से भयानक चेहरा बनाते हुए दिखाया गया है, जो हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक हस्तियों एवं आदर्शों का घोर अपमान है।”


🚩याचिकाकर्ता ने कहा है कि फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से फिल्म में ‘सुधारात्मक उपाय’ करने की माँग की गई है। इसमें कहा गया है, “आदिपुरुष फिल्म द्वारा हिंदू धार्मिक शख्सियतों का विकृत सार्वजनिक प्रदर्शन अंतरात्मा और अभ्यास की स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन है। यह अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन है।”


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Friday, June 16, 2023

समान नागरिक संहिता के लिए विधि आयोग ने माँगी जनता की राय , ऐसे भेजें अपने सुझाव

16 June 2023

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🚩समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) को लेकर विधि आयोग (Law Commission) ने एक बार फिर से लोगों सेे रायशुमारी शुरू कर दी है। इसको लेकर देश के प्रबुद्ध लोगों तथा सभी धर्मों के मान्यता प्राप्त प्रमुख धार्मिक संगठनों से उनकी राय माँगी है।


🚩विधि आयोग ने बुधवार (14 जून 2023) को कहा कि 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों को जानने के लिए फिर से निर्णय लिया। आयोग ने कहा , कि जिन लोगों को इसमें रुचि है और अपनी राय देना चाहते हैं, वे राय दे सकते हैं।


🚩विधि आयोग ने कहा कि जो लोग अपनी राय रखना चाहते हैं , वे नोटिस जारी करने की तारीख के 30 दिनों के भीतर इससे संबंधित लिंक पर अपनी राय भेज सकते हैं। इसके अलावा, भारत सरकार के विधि आयोग को Membersecretary-lci@gov.in  पर ईमेल द्वारा भी राय भेज सकते हैं।


🚩कानूनी पैनल ने आगे कहा, “शुरुआत में भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विषय की जाँच की थी और 7 अक्टूबर 2016 को एक प्रश्नावली दी थी। इसके साथ ही, 19 मार्च 2018 एवं 27 मार्च 2018 और 10 अप्रैल 2018 की सार्वजनिक अपील/नोटिस देकर सभी हितधारकों को अपने विचार रखने का अनुरोध किया था।”


🚩विधि आयोग ने अपने बयान में कहा , कि इस अपील पर लोगों से उन्हें भारी प्रतिक्रिया मिली थी। इसके बाद 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ पर परामर्श पत्र जारी किया थी।


🚩पैनल ने कहा कि चूंकि परामर्श पत्र जारी किए हुए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। ऐसे में विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए तथा इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए भारत के 22वें विधि आयोग ने इस पर पहल करना जरूरी समझा।


🚩क्या है समान नागरिक संहिता


🚩समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समान रूप लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सबके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सारे समुदायों पर लागू किया, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से जुड़े मसलों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।


🚩आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों के कानून को ज्यों का त्यों बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।


🚩मुस्लिमों का कानून , पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि आता है, जो इस्लामी शरिया कानून के तहत संचालित होते हैं। अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।


🚩गोवा में लागू है UCC


🚩देश भर में समान नागरिक संहिता को लागू करने की माँग दशकों से हो रही है, लेकिन देश में गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा में वर्ष 1962 में यह कानून लागू किया गया था।


🚩साल 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था। इसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई और तब से राज्य में यह कानून लागू है।


🚩पिछले दिनों गोवा में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. ए. बोबड़े ने भी की थी। सी.जे.आई. ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।


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