Tuesday, November 14, 2023

मीडिया ने संत आसाराम बापू की इस बड़ी खबर को गायब क्यों कर दिया ?

15 November 2023

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🚩टीआरपी और पैसे की अंधीदौड़ में ज्यादातर मीडिया कई बार झूठी खबरें दिखा देती है और सही खबरें छुपा देती है। जूसके कारण आज मीडिया ने विश्वसनीयता खो गई है।


🚩शुभ दीपावली के पावन पर्व पर एक तरफ हम मिठाई खाते हैं, नये कपड़े पहनते हैं, खुशियां मनाते हैं, लेकिन उन गरीबों का क्या जिनके पास पैसे नहीं हैं वो कैसे दीपावली मनायेंगे? गरीब भी अच्छी दिवाली मना जा सके इस निमित्त हिंदू संत आशाराम बापू के अनुयाइयों ने देशभर में आदिवासी क्षेत्रों में जाकर मिठाई, कपड़े, खजूर, चप्पल, बर्तन आदि जीवनोपयोगी सामग्री एवं नगद पैसे आदि और हलवा, पुलाव आदि का भंडारा किया, इस अभियान में लाखों आदिवासी लोग लाभांवित हुए, साथ में सनातन धर्म की महिमा भी बताई गई।


🚩इस अभियान से आदिवासीयों ने भी दीपावली धूमधाम से मनाई और दूसरा कि जो मिशनरियां धर्मांतरण करवाती थी उनका धंधा चौपट हो गया और आदिवासियों की सनातन हिंदू धर्म के प्रति आस्था बढ़ी, लेकिन दुःख की बात है कि जो मीडिया चिल्ला चिल्लाकर हिंदू संत आशाराम बापू के खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर बदनाम कर रही थी उसने यह खबर कहीं भी दिखाई ही नहीं।


🚩आपको बता दें कि बापू आशारामजी पिछले 60 वर्षों से समाज उत्थान के कार्य कर रहे हैं । उन्होंने सत्संग के द्वारा देश व समाज को तोड़ने वाली ताकतों से देशवासियों को बचाया। कत्लखाने जा रही हजारों गायों को कटने से बचाया, कई गौशालाओं की स्थापना एवं सुचारू रूप से चलने की व्यवस्था करवाई। लाखों लोगों को धर्मान्तरण से बचाया व धर्मान्तरित लाखों हिंदुओं को अपने धर्म में वापसी कराई । गरीब आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ खाने की सुविधा तक नहीं थी वहाँ "भोजन करो, भजन करो दक्षिणा पाओ" अभियान चलाया, गरीबों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण, कपड़े, बर्तन व जीवन उपयोगी सामग्री एवं मकान आदि का वितरण किया जाता है ।

 

🚩प्राकृतिक आपदाओं में जहाँ प्रशासन भी नहीं पहुँच सका वहाँ पर भी बापू आशारामजी के शिष्यों द्वारा कई सेवाकार्य (निःशुल्क भोजन, पानी, भंडारे, कम्बल, कपड़े आदि का वितरण करवाए व स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं) होते हैं । इसके अलावा महिला सुरक्षा (WOMEN SAFETY & EMPOWERMENT) के कई अभियान चलाए, नारी जाति के सम्मान व उनमें पूज्यभाव के लिए सबको प्रोत्साहित किया, बड़ी कंपनीयों में काम कर रही महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, महिला संगठन बनाया।


🚩परिवार में सुख-शांति व परस्पर सद्भाव से जीना सिखाया, पारिवारिक झगड़ों से मुक्ति दिलायी, महिलाओं के मार्गदर्शन व सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में ‘महिला उत्थान मंडलों’ की स्थापना की तथा नारी उत्थान हेतु कई अभियान चलाये। बापू आसारामजी ने बाल व युवा पीढ़ी में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के सिंचन हेतु हजारों बाल संस्कार केन्द्रों, युवा सेवा संघों व गुरुकुलों की स्थापना की, आज की युवापीढ़ी को माता पिता का सम्मान सिखाकर वैलेंटाइन के बदले में मातृ-पितृ पूजन दिवस मानना सिखाया। 25 दिसम्बर को संस्कृति की रक्षा के लिए तुलसी पूजन दिवस अभियान की एक नई पहल की। केमिकल रंगों से बचा कर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की पहल की, जिससे पानी व स्वास्थ्य की रक्षा हो। व्यसन मुक्ति के अभियान चलाकर करोड़ों लोगों को व्यसन मुक्त कराया। बच्चों, युवाओं व महिलाओं में अच्छे संस्कार के लिए ढेरों अभियान चलाये जाते हैं । World's Religions Parliament, शिकागो अमेरिका में स्वामी विवेकानन्दजी (1898) के बाद यदि कोई दूसरे संत ने प्रतिनिधित्व किया है तो वे बापू आसारामजी, जिन्होंने 1993 में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सनातन संस्कृति का धर्म ध्वज लहराया। इन सेवाकार्यों से देश-विदेश के करोड़ों लोग किसी भी तरह के धर्म - जाति - मत - पंथ - सम्प्रदाय - राज्य व लिंग के हो भेदभाव के बिना लाभान्वित हो रहे हैं।

यहां तक कि कांग्रेस की सरकार में कोई हिंदुत्व की बात नही कर रहा था उस समय खुल्लेआम लाखों आदिवासियों की घर वापसी करवाई थी, करोड़ों लोगों में सनातन हिंदू धर्म के प्रति आस्था जगाई थी, स्वदेशी उत्पाद खरीदने की अपील की थी, करोड़ों लोगों को दुर्व्यसनों से मुक्त करवाए, इन सभी के कारण उनपर झूठा आरोप लगाकर जेल भिजवाया गया।


🚩मीडिया ने हिंदू संत आशारामजी बापू द्वारा देश व धर्म के हित में हो रहे अनेक सेवाकार्यों को नहीं दिखाया, पर उनके खिलाफ अनेक झूठी, मनगढ़ंत कहानियां बनाकर देश, विदेश की जनता को गुमराह किया और संतश्री की पावन छवि को धूमिल करने का भरपूर प्रयास किया।


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Monday, November 13, 2023

भाई दूज के दिन भाई को यमपाश से कैसे छुड़ाये ?

14 November 2023

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🚩भाई दूज महत्वपूर्ण पर्व है, जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है । दीपावली के तीसरे दिन आने वाला भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सदभावना बढ़ाने का दिन है। 

🚩भाईदूज का इतिहास

🚩यमराज, यमुना, तापी और शनि ये भगवान सूर्य की संताने कही जाती हैं। किसी कारण से यमराज अपनी बहन यमुना से वर्षों दूर रहे। एक बार यमराज के मन में हुआ कि 'बहन यमुना को देखे हुए बहुत वर्ष हो गये हैं।' अतः उन्होंने अपने दूतों को आज्ञा दीः "जाओ जा कर जाँच करो कि यमुना आजकल कहाँ स्थित है।"


🚩यमदूत विचरण करते-करते धरती पर आये तो सही किंतु उन्हें कहीं यमुना जी का पता नहीं लगा। फिर यमराज स्वयं विचरण करते हुए मथुरा आये और विश्रामघाट पर बने हुए यमुना के महल में पहुँचे।


🚩बहुत वर्षों के बाद अपने भाई को पाकर बहन यमुना ने बड़े प्रेम से यमराज का स्वागत-सत्कार किया और यमराज ने भी उसकी सेवा सुश्रुषा के लिए याचना करते हुए कहाः "बहन ! तू क्या चाहती है? मुझे अपनी प्रिय बहन की सेवा का मौका चाहिए।"


🚩यमुना जी ने कहाः ''भैया ! आज नववर्ष की द्वितीया है। आज के दिन भाई बहन के यहाँ आये या बहन भाई के यहाँ पहुँचे और जो कोई भाई बहन से स्नेह से मिले, ऐसे भाई को यमपुरी के पाश से मुक्त करने का वचन को तुम दे सकते हो।"


🚩यमराज प्रसन्न हुए और बोलेः "बहन ! ऐसा ही होगा।"


पौराणिक दृष्टि से आज भी लोग बहन यमुना और भाई यम के इस शुभ प्रसंग का स्मरण करके आशीर्वाद पाते हैं व यम के पाश से छूटने का संकल्प करते हैं।


🚩यह पर्व भाई-बहन के स्नेह का द्योतक है। कोई बहन नहीं चाहती कि उसका भाई दीन-हीन, तुच्छ हो, सामान्य जीवन जीने वाला हो, ज्ञानरहित, प्रभावरहित हो। इस दिन भाई को अपने घर पाकर बहन अत्यन्त प्रसन्न होती है अथवा किसी कारण से भाई नहीं आ पाता तो स्वयं उसके घर चली जाती है।


🚩बहन भाई को इस शुभ भाव से तिलक करती है कि 'मेरा भैया त्रिनेत्र बने। बहन तिलक करके अपने भाई को प्रेम से भोजन कराती है और बदले में भाई उसको वस्त्र-अलंकार, दक्षिणादि देता है। बहन निश्चिंत होती है कि 'मैं अकेली नहीं हूँ.... मेरे साथ मेरा भैया है।'


🚩दीपावली के तीसरे आने वाला भाईदूज का यह पर्व, भाई की बहन के संरक्षण की याद दिलाने वाला और बहन द्वारा भाई के लिए शुभ कामनाएँ करने का पर्व है।


🚩इस दिन बहन को चाहिए कि अपने भाई की दीर्घायु के लिए यमराज से अर्चना करे और इन अष्ट चिरंजीवीयों के नामों का स्मरण करेः मार्कण्डेय, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और परशुराम। 'मेरा भाई चिरंजीवी हो' ऐसी उनसे प्रार्थना करे तथा मार्कण्डेय जी से इस प्रकार प्रार्थना करेः

मार्कण्डेय महाभाग सप्तकल्पजीवितः।

चिरंजीवी यथा त्वं तथा मे भ्रातारं कुरुः।।


🚩'हे महाभाग मार्कण्डेय ! आप सात कल्पों के अन्त तक जीने वाले चिरंजीवी हैं। जैसे आप चिरंजीवी हैं, वैसे मेरा भाई भी दीर्घायु हो।' (पद्मपुराण)


🚩इस प्रकार भाई के लिए मंगल कामना करने का तथा भाई-बहन के पवित्र स्नेह का पर्व है भाईदूज।

(स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य "पर्वो का पुंज दीपावली")


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Sunday, November 12, 2023

दीपावली के दूसरे दिन नूतन वर्ष कौन मनाते हैं ? बलि प्रतिपदा, गोवर्धन पूजन में क्या करें ? जानिए.....

13 November 2023

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🚩दीपावली पूरे देश में मनाई जाती है, इसके हर जगह अलग अलग महत्व है। लेकिन, गुजरात में दीपावली को नए साल का प्रतीक माना गया है। दीपवाली के दिन साल का आखिरी दिन होता है, इसके अगले दिन से गुजराती नववर्ष की शुरुआत हो जाती है। हिंदू कैलेडर के हिसाब से देखा जाए, तो यह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पड़वा या प्रतिपदा को आता है। चंद्र चक्र पर आधारित भारतीय कैलेंडर के अनुसार गुजरात में कार्तिक महीना साल का पहला महीना होता है, और यही गुजराती नववर्ष का पहला दिन होता है। इसी कारण इस दिन को वित्तीय नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। 


🚩दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन (गुजराती पंचांग अनुसार) जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष, दैन्य आदि जिस भाव में रहता है, उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है। 'महाभारत' में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते है-

यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।

हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।


🚩'हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।'


🚩अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें। वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।


🚩आज के दिन से हमारे नूतन वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसलिए भी हमें अपने इस नूतन वर्ष में कुछ ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करना चाहिए।


🚩बलि प्रतिपदा:-


🚩कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलि प्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्री विष्णु ने दैत्यराज बलि को पाताल में भेजकर बलि की अतिदानशीलता के कारण होनेवाली सृष्टि की हानि रोकी । बलिराजा की अतिउदारता के परिणामस्वरूप अपात्र लोगों के हाथों में संपत्ति जाने से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । तब वामन अवतार लेकर भगवान श्रीविष्णु ने बलिराजा से त्रिपाद भूमिका दान मांगा । उपरांत वामनदेव ने विराट रूप धारण कर दो पग में ही संपूर्ण पृथ्वी एवं अंतरिक्ष व्याप लिया । तब तीसरा पग रखने के लिए बलिराजा ने उन्हें अपना सिर दिया । वामनदेव ने बलि को पाताल में भेजते समय वर मांगने के लिए कहा । उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होने का वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या एवं बलिप्रतिपदा । तब से इन तीन दिनों को ‘बलिराज्य’ कहते हैं ।


🚩गोवर्धनपूजन


🚩इस दिन गोवर्धनपूजा करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजन के स्थान पर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जाने के स्मरण में गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की तिथि पर प्रात:काल घर के मुख्य द्वार के सामने गौ के गोबर का गोवर्धन पर्वत बना कर उसपर दूर्वा एवं पुष्प डालते हैं । शास्त्र में बताया है कि, इस दिन गोवर्धन पर्वत का शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलों से उसे सुशोभित करें । इनके समीप कृष्ण, इंद्र, गाएं, बछड़ों के चित्र सजाकर उनकी भी पूजा करते हैं एवं झांकियां निकालते हैं । परंतु अनेक स्थानों पर इसे मनुष्य के रूप में बनाते हैं और फूल इत्यादि से सजाते हैं । चंदन, फूल इत्यादि से उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं,

_गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।_

_विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु_


🚩इसका अर्थ है, पृथ्वी को धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था । आप मुझे करोड़ों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजन के उपरांत गौओं एवं बैलों को वस्त्राभूषणों तथा मालाओं से सजाते हैं । गौओं का पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरतीमाता की प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करने के उपरांत अपने पापनाश के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधु में इस श्लोक द्वारा गौमाता से प्रार्थना की है,

_लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।_

_घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु_


🚩इसका अर्थ है, धेनुरूप में विद्यमान जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञ के लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापों का नाश करें । पूजन के उपरांत गौओं को विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानों पर गोवर्धन के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओं के चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं ।


🚩बता दें की दीपावली की रात्रि में वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में और मंदिर में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष।'

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ धार्मिक उत्सव व व्रत’ एवं संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित पत्रिका ऋषि प्रसाद से)


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Saturday, November 11, 2023

दिपावली विशेष : सत्य सनातन धर्म जैसा आज कोई भी धर्म नहीं है, जिसमें इतने सारे उत्सव वैज्ञानिक प्रमाणिकता के साथ हों.

12 November 2023

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🚩हमारी सनातन संस्कृति में व्रत, त्यौहार और उत्सव का अपना विशेष महत्व है। सनातन धर्म में पर्व और त्यौहारों का इतना बाहुल्य है कि यहाँ के लोगों में ‘सात वार नौ त्यौहार’ की कहावत प्रचलित हो गयी। इन पर्वों तथा त्यौहारों के रूप में हमारे ऋषियों ने जीवन को स्वस्थ, सुंदर, सरस और उल्लासपूर्ण बनाने की सुन्दर व्यवस्था की है। प्रत्येक पर्व और त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है, जो विशेष विचार तथा उद्देश्य को सामने रखकर निश्चित किया गया है।

ये पर्व और त्यौहार चाहे किसी भी श्रेणी के हों तथा उनका बाह्य रूप भले भिन्न-भिन्न हो, परन्तु उन्हें स्थापित करने के पीछे हमारे ऋषियों का उद्देश्य था – समाज को स्वस्थ, सम्मानीय जीवन जीते हुए भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर ले जाना।


🚩उत्तरायण, शिवरात्रि, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, नवरात्रि, दशहरा आदि त्यौहारों को मनाते - मनाते आ जाती है, पर्वों की पुंज दीपावली। पर्वों के इस पुंज में 5 दिन मुख्य हैं- धनतेरस, काली चौदस, दीपावली, नूतन वर्ष और भाईदूज। धनतेरस से लेकर भाईदूज तक के ये 5 दिन आनंद उत्सव मनाने के दिन हैं।


🚩घर की साफ सफाई करना, शरीर को रगड़-रगड़ कर स्नान करना, नए वस्त्र पहनना, मिठाइयाँ खाना खिलाना, नूतन वर्षाभिनंदन का आदान प्रदान करना। भाईयों के लिए बहनों में प्रेम और बहनों के प्रति भाइयों द्वारा अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करना – ऐसे मनाए जाने वाले 5 दिनों के उत्सवों के नाम है ‘दीपावली पर्व' ।


🚩दीपों के त्यौहार दीपावली की रात्रि को भगवान गणपति, माता लक्ष्मी एवं माता सरस्वती का पूजन किया जाता है।


🚩जिसके जीवन में उत्सव नहीं है, उसके जीवन में विकास भी नहीं है। जिसके जीवन में उत्सव नहीं, उसके जीवन में नवीनता भी नहीं है और वह आत्मा के सानिध्य में भी नहीं है।


🚩भारतीय संस्कृति के निर्माता ऋषिजन कितनी दूरदृष्टिवाले रहे होंगे ! महीने में अथवा वर्ष में एक - दो दिन आदेश देकर कोई काम मनुष्य द्वारा करवाया जाये तो उससे मनुष्य का सम्पूर्ण विकास संभव नहीं है। परंतु मनुष्य यदा कदा अपना विवेक जगाकर उल्लास, आनंद, प्रसन्नता, स्वास्थ्य और स्नेह का सदगुण विकसित करे तो उसका जीवन विकसित हो सकता है।


🚩अभी कोई भी ऐसा धर्म नहीं है, जिसमें इतने सारे उत्सव हों, एक साथ इतने सारे लोग ध्यानमग्न हो जाते हों, भाव विभोर, समाधिस्थ हो जाते हों, कीर्तन में झूम उठते हों। जैसे स्तंभ के बगैर पंडाल नहीं टिक सकता वैसे ही उत्सव के बिना धर्म विकसित नहीं हो सकता। जिस धर्म में ज्ञान विज्ञानयुक्त अच्छे उत्सव हैं, वह धर्म है सनातन धर्म। सनातन धर्म के बालकों को अपनी सनातन वस्तु प्राप्त हो, उसके लिए उदार चरित्र बनाने का जो काम है वह पर्वों, उत्सवों और सत्संगों के आयोजन द्वारा हो रहा है।


🚩पाँच पर्वों के पुंज इस दीपावली महोत्सव को लौकिक रूप से मनाने के साथ साथ हम उसके अलौकिक आध्यात्मिक महत्त्व को भी समझें, यही लक्ष्य हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों का रहा है।

इस पर्वपुंज के निमित्त ही सही, अपने भगवान, ऋषि-मुनियों के, संतों के दिव्य ज्ञान के आलोक में हम अपना अज्ञानांधकार मिटाने के मार्ग पर शीघ्रता से अग्रसर हों – यही इस दीपमालाओं के पर्व दीपावली का संदेश है।


🚩( स्तोत्र : संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य “पर्वो का पुंज दीपावली” से )


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Friday, November 10, 2023

आइए जानें दीपावली कब से शुरू हुई और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए करें ये उपाय....

11  November 2023

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🚩दीपावली हिन्दू समाज में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है। दीपावली को मनाने का उद्देश्य भारतीय संस्कृति के उस प्राचीन सत्य का आदर करना है, जिसकी महक से आज भी लाखों लोग अपने जीवन को सुवासित कर रहे हैं। दिवाली का उत्सव पर्वों का पुंज है। भारत में इस उत्सव को मनाने की परंपरा कब से चली, इस विषय में बहुत सारे अनुमान किये जाते हैं। 


🚩बताया जाता है कि भगवान श्रीराम इसी दिन 14 वर्षों के वनवास के बाद लौट कर अयोध्या जी वापस आए थे...तो अयोध्या वासियों ने उत्सव में दीप जलाये गये थे, घर-बाजार सजाये गये थे, गलियाँ साफ-सुथरी की गयी थीं, मिठाइयाँ बाँटी गयीं थीं, तबसे दिवाली मनायी जा रही है।


🚩यह भी बताया जाता है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके राजा बलि से दान में तीन कदम भूमि माँग ली और विराट रूप लेकर तीनों लोक ले लिए तथा सुतल का राज्य बलि को प्रदान किया। सुतल का राज्य जब बलि को मिला और उत्सव हुआ, तबसे दिवाली चली आ रही है।


🚩कही ये भी बताया जाता है कि सागर मंथन के समय क्षीरसागर से महालक्ष्मी उत्पन्न हुईं तथा भगवान नारायण और लक्ष्मी जी का विवाह-प्रसंग था, तबसे यह दिवाली मनायी जा रही है।


🚩यह भी पुराणों में आता है कि श्रीकृष्ण ने नारक चदस के दिन आसुरी वृत्ति के नरकासुर का वध कर 16000 कन्याओं को उसकी कैद से छुड़ाया था और जनता को भोगवृत्ति, अनाचार एवं दुष्टप्रवृत्ति से मुक्त किया एवं दैवी विचार देकर सुखी किया तबसे ‘दीपावली’ मनाई जाती है।


🚩सिखों का कहना है कि गुरु गोविन्दसिंह इस दिन से विजययात्रा पर निकले थे। तबसे सिक्खों ने इस उत्सव को अपना मानकर प्रेम से मनाना शुरू किया।


🚩जैनी बताते है कि 'महावीर ने अंदर का अँधेरा मिटाकर उजाला किया था। उसकी स्मृति में दिवाली के दिन बाहर दीये जलाते हैं। महावीर ने अपने जीवन में तीर्थंकरत्व को पाया था, अतः उनके आत्म उजाले की स्मृति कराने वाला यह त्यौहार हमारे लिए विशेष आदरणीय है।


🚩इस प्रकार पौराणिक काल में जो भिन्न-भिन्न प्रथाएँ थीं, वे प्रथाएँ देवताओं के साथ जुड़ गयीं और दिवाली का उत्सव बन गया।


🚩यह उत्सव कब से मनाया जा रहा है, इसका कोई ठोस दावा नहीं कर सकता, लेकिन है यह रंग-बिरंगे उत्सवों का गुच्छा..... यह केवल सामाजिक, आर्थिक और नैतिक उत्सव ही नहीं वरन् आत्मप्रकाश की ओर जाने का संकेत करने वाला, आत्मोन्नति कराने वाला उत्सव है।


🚩किसी अंग्रेज ने आज से 900 वर्ष पहले भारत की दिवाली देखकर अपनी यात्रा-संस्मरणों में इसका बड़ा सुन्दर वर्णन किया है तो स्पष्ट है कि दिवाली उसके पहले भी होगी।


🚩संसार की सभी जातियाँ अपने-अपने उत्सव मनाती हैं। प्रत्येक समाज के अपने उत्सव होते हैं जो अन्य समाजों से भिन्न होते हैं, परंतु हिंदू पर्वों और उत्सवों में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जो किसी अन्य जाति के उत्सवों में नहीं हैं। हम लोग वर्षभर उत्सव मनाते रहते हैं। एक त्यौहार मनाते ही अगला त्यौहार सामने दिखाई देता है। इस प्रकार पूरा वर्ष आनन्द से बीतता है।


 🚩दीपावली टिप्स


🚩1. दिवाली की रात कुबेर भगवान ने लक्ष्मी जी की आराधना की थी जिससे वे धनाढ्यपतियों के भी धनाढ्य कुबेर भंडारी के नाम से प्रसिद्ध हुए , ऐसा इस काल का महत्व है ।


🚩दीपावली की रात का लाख गुना फलदायी होता है । ये सिद्ध रात्रियाँ कहलाती हैं व भाग्य की रेखा बदलने वाली रात्रियाँ हैं । अधिक से अधिक जप करके इन रात्रियों का लाभ उठाना चाहिए ।


🚩दीपावली की रात्रि जप करने योग्य लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र "रात्रि को दीया जलाकर इस सरल मंत्र का यथाशक्ति जप करें : ' ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा"


🚩2. घर के बाहर हल्दी और चावल के मिश्रण या केवल हल्दी से स्वस्तिक अथवा ॐकार बना दें । यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है । द्वार पर अशोक और नीम के पत्तों का तोरण ( बंदनवार ) बाँध दें | उससे पसार होनेवाले की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी ।



🚩3. लक्ष्मी प्रात्ति हेतु दीपावली की संध्या को तुलसी जी के निकट दीया जलाएँ , इससे लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है ।


🚩4. लक्ष्मी प्राप्ति की साधना :- दीपावली के दिनघर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उस पर दो दीपक जला दें । हो सके तो वे रात भर जलते रहें, इससे आपके घर में सुख - सम्पति की वृद्धि होगी ।


🚩5. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु अपने गुरुदेव के श्रीचित्र पर विशेष तिलक :- दीपावली के दिन लौंग और इलायची को जलाकर राख कर दें और उससे भगवान अथवा गुरुदेव के (श्रीचित्र) को तिलक करें । ऐसा करने से लक्ष्मी प्राप्ति में मदद मिलती है और काम - धंधे में बरकत आती है ।


🚩6. आनंद व प्रसन्नतावर्धक नारियल - खीर प्रयोग :- दीपावली के रात्रि को थोड़ी खीर को कटोरी में डालकर और नारियल लेकर घूमना और मन में 'लक्ष्मी-नारायण' जप करना ; फिर खीर ऐसी जगह रखना जहाँ किसी का पैर ना पड़े और गाय, कौए आदि खा जाएँ ।


🚩नारियल अपने घर के मुख्य दरवाजे पर फोड़ देना और उसकी प्रसादी बांटना । इससे घर में आनंद और सुख-शांति रहेगी ।


🚩7. परिवार की तीनों तापों से रक्षा के लिए-कपूर आरती  :- 

दीपावली के दिन चाँदी की कटोरी में कपूर को जलाएँ, तो परिवार की तीनों तापों से रक्षा होती है ।


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Thursday, November 9, 2023

धनतेरस का त्योहार क्यों मनाया जाता हैं ? काली चौदस का इतिहास क्या हैं ? जानिए..

10 November 2023

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🚩दिवाली हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन घर और आस-पास की जगहों को दीपों से रोशन किया जाता है। दिवाली एक उत्सव की तरह मनाया जाता है, जो धनतेरस से लेकर भाई दूज तक चलता है। पांच दिन का ये पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इन सभी दिनों का विशेष महत्व है। साथ ही इससे जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं। इस साल 10 नवंबर 2023 को धनतेरस का त्योहार मनाया जाएगा। इस खास दिन पर लोग सोना, चांदी व बर्तन की खरीदारी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि, धनतेरस के दिन आप जो भी सामान खरीदेंगे उसके दोगुना वृद्धि होने की संभावना होती है।


🚩कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इसे धनतेरस के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी, कुबेर और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से देवता प्रसन्न होते हैं। साथ ही घर में धन, वैभव और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसी कड़ी में आइए जानते हैं कि, धनतेरस क्यों मनाया जाता हैं, इस दिन किसकी पूजा की जाती है, सभी के बारे में विस्तार से जानते हैं।


🚩क्यों मनाया जाता है धनतेरस ? 


🚩शास्त्रों के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर भगवान धन्वंतरि हाथों में कलश लिए समुद्र से प्रकट हुए थे। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का ही अंश माना जाता है। इन्होंने ही संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया था। इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। 


🚩धनतेरस में किसकी पूजा होती है?


🚩धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। साथ ही माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर देव की भी पूजा अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि, धनतेरस पर माता लक्ष्मी की विधि अनुसार पूजा करने से घर में धन की कमी नहीं होती है। साथ ही परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।


🚩कौन हैं भगवान धन्वंतरि?


🚩लगभग सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए हैं। विष्णु जी ने धन्वंतरि रूप में भी अवतार लिया था। ऐसा कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि वैद्यों में शिरोमणि हैं। इसलिए स्वास्थ्य लाभ के लिए भी भगवान धन्वंतरि की पूजा करना शुभ माना जाता है।भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से हाथों में अदरक का पौधा और अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे।


🚩क्यों खरीदे जाते हैं धनतेरस में बर्तन?

धनतेरस के शुभ दिन पर बर्तन खरीदने की मान्यता है क्योंकि, कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि जन्म के समय अमृत कलश लिए हुए थे। इसी कारण इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है।


🚩काली चौदस


🚩धनतेरस के पश्चात आती है 'नरक चतुर्दशी (काली चौदस)'। भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को क्रूर कर्म करने से रोका। उन्होंने 16 हजार कन्याओं को उस दुष्ट की कैद से छुड़ाकर अपनी शरण दी और नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया। नरकासुर प्रतीक है – वासनाओं के समूह और अहंकार का। जैसे, श्रीकृष्ण ने उन कन्याओं को अपनी शरण देकर नरकासुर को यमपुरी पहुँचाया, वैसे ही आप भी अपने चित्त में विद्यमान नरकासुररूपी अहंकार और वासनाओं के समूह को श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दो, ताकि आपका अहं यमपुरी पहुँच जाय और आपकी असंख्य वृत्तियाँ श्री कृष्ण के अधीन हो जायें। ऐसा स्मरण कराता हुआ पर्व है नरक चतुर्दशी।


🚩इस दिन रात के अंधकार में उजाला किया जाता है। जो संदेश देता है कि , हे मनुष्य ! तेरे जीवन में चाहे जितना अंधकार दिखता हो, चाहे जितना नरकासुर अर्थात् वासना और अहं का प्रभाव दिखता हो, तू अपने आत्मकृष्ण को पुकारना। श्रीकृष्ण रुक्मिणी को आगेवानी देकर अर्थात् अपनी ब्रह्मविद्या को आगे करके नरकासुर को ठिकाने लगा देंगे।


🚩काली चौदस के सुबह में तिल के तेल से मालिश करके सप्तधान्य उबटन लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने का भी विधान है । काली चौदस की रात्रि में मंत्र जप करने से मंत्र सिद्ध होता है।


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Wednesday, November 8, 2023

इस दीपावली पर इन बातों का रखें खास ध्यान...

9 November 2023

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🚩उल्लास, आनंद, प्रसन्नता बढ़ाने वाले हमारे पर्वों में , पांच पर्वों का पुंज दीपावली अग्रणी स्थान पर है। भारतीय संस्कृति के ऋषि-मुनियों, संतों की यह दूरदृष्टि रही है, जो ऐसे पर्वों के माध्यम से वे समाज को वास्तविक आत्मिक आनंद, शाश्वत सुख के मार्ग पर ले जाते थे।


🚩दीपावली पर हम खुश होते हैं व खुशियां बाँटते हैं, दीपावली पर हम घर में नया सामान, पटाखें, मिठाई आदि की खरीदारी करते है। यह सामान खरीदने में एक सावधानी जरूर रखें ।


🚩दीपावली त्योहार हिंदुओ का है , इसलिए हिंदुओं की दुकानों से ही सामान खरीदें। अर्थात जो लोग खुद दीपावली मनाते है , जो इसके महत्व और महानता को समझते हैं ,जो सनातनधर्म और संस्कृति की महिमा और गरिमा को जानते हैं और इसका सम्मान करते हैं , उन्हीं भाइयों की दुकानों से अर्थात हिंदुओं की दुकान से ही सामान खरीदें । विधर्मियों की दुकानों से पूजा व त्योहार का सामान क्या लेना !

चाइनीज अथवा अन्य विदेशी कंपनियों का भी सामान नहीं खरीदें , क्योंकि भारतवासियों के पैसे से ही चीन समृद्ध हो रहा है और भारत के खिलाफ ही साजिशें करता रहता है।


🚩विदेशी कंपनियों की हिन्दू धर्म के प्रति कोई आस्था नहीं होती , इसलिए हिन्दुओं के सबसे बड़े त्योहार पर सिर्फ देश के बने हुए सामान और वो भी दिपावली मनाने वालों से ही खरीदने का संकल्प लें।


🚩चीनी सामानों का पुरज़ोर बहिष्कार करना चाहिए , इससे हम उससे बिना लड़े जीत सकते हैं। बिजली का सामान हो या सजावटी सामान हो, या फिर अन्य सामान, राष्ट्र निर्मित ही होना चाहिए।

ऐसा निर्णय देशहित में होगा।


🚩इस वर्ष की दीपावली देश में निर्मित सामान से ही मनानी है यही सच्ची दिवाली होगी। देश का पैसा देश के कार्यों में लगे ऐसा शुभ संकल्प होना चाहिए। ये दीपावली आपकी आध्यात्मिक दीपावली होगी। स्वदेशी सामान ही खरीदें।


🚩दूसरी बात की दीपावली में कुछ लोग देवी-देवताओं के छायाचित्र वाले पटाखें फोडते हैं । देवता का छायाचित्र प्रत्यक्ष देवता ही हैं। जिस समय हम पटाखें फोडते हैं, उस समय उस छायाचित्र के टुकडे होते हैं, अर्थात हम उस देवता का अनादर ही करते हैं। श्रीलक्ष्मी के छायाचित्र वाले, साथ ही राष्ट्रभक्तों के छायाचित्र वाले पटाखें फोडना, इससे हमें पाप लगता है ।


🚩तो आइए संकल्प ले॔ कि , इस दीपावली पर हम ऐसे पटाखें खरीदेंगे ही नहीं। साथ ही ऐसे पटाखे खरीदने वालों को भी ऐसा करने से रोकेंगे और उन्हें वास्तविकता समझाने का प्रयास करेंगे। यह भी देवी देवताओ की भक्ति हो जाएगी । ऐसा करने से निस्संदेह हम पर भगवान प्रसन्नहोंगे ही। 


🚩बच्चों को समझाएं कि,

बच्चो ! क्या हमारे माता-पिता के छायाचित्र वाले पटाखे हम फोडेंगे ? नहीं न ? तो फिर देवी-देवता , भगवान जो सभी के मात-पिता हैं ,हम सभी की रक्षा करते हैं , हमें शक्ति एवं बुदि्ध प्रदान करते हैं , तो हम दीपावली पर उनका अनादर क्यों करें...!? क्या हमें ऐसा करना चाहिए...!?

आओ, हम यह अनादर रोकने का निश्चय करें !


🚩तीसरी बात यह है कि दीपावली पर मिठाई तो खरीदते ही है तो क्यो न इस बार देशी गाय के दूध से बनी मिठाई खरीदे अथवा देशी गाय का दूध मंगवाकर घर में ही मिठाई बनाएं, जिससे हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। गौशालाओं में आमदनी भी अच्छी होगी और गौरक्षा भी होगी इसलिए इस बार जितना हो सके देशी गाय के दूध की मिठाई को खरीदें, खाएं एवं बांटे।



🚩ध्यान रखें कि चॉकलेट से स्वास्थ्य की हानि होती है और चॉकलेट अधिकतर विदेशी कंपनियां बनाती है, इसलिए चॉकलेट खाने से बचें। या तो गाय के दूध से बनी मिठाइयाँ या फिर अन्य मिठाइयां देशी , शुद्ध शाकाहारी हिन्दू भाइयों से खरीदने का आग्रह रखें।


🚩चौथी बात है, कि आपके आस-पास कोई गरीब परिवार हों, तो आसपास के सभी हिंदू मिलकर उसकी सहायता जरुर करें जिससे वे भी अपनी दीपावली अच्छे से मना सकें।


🚩विश्वास कीजिए इस तरह से दिवाली मनाकर आपको खुद भी बहुत अच्छा लगेगा । 💐🙏 दीपावली की अग्रिम बधाइयां , शुभ दीपावली !!




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