हिंदी पर करें गर्व, अंग्रेजी के पीछे दौड़ना दुर्भाग्यपूर्ण: वेंकैया नायडू
जून,25, 2017
शनिवार
को केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू अहमदाबाद के साबरमती गांधी
आश्रम में गांधीजी के जीवन के 100 अलग-अलग प्रसंगों पर बनी पुस्तक का
लोकार्पण करने पहुंचे थे । यह किताब #गांधी के जीवन पर लिखी गई । किताब
अंग्रेजी में होने के बाद, उन्होंने कहा कि हमारी देश में जिस तरह से लोग
अंग्रेजी भाषा के पीछे दौड़ रहे हैं, वो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने
कहा कि हमारी मातृभाषा हमारी पहचान है, हमें इस पर गर्व होना चाहिए।
#वेंकैया_नायडू ने आज की शिक्षा प्रणाली और उसमें इस्तेमाल होती अंग्रेजी
भाषा पर भी कई सवाल खड़े किए । उन्होंने कहा कि हमारे देश में #शिक्षा में
#मातृभाषा और #राष्ट्रभाषा पर महत्व देना चाहिए। जिस तरह से अभिभावक
अग्रेंजी भाषा को लेकर बच्चों पर जोर डालते हैं वो ठीक नहीं है।
hindi national language |
उन्होंने अपने राजनीतिक संघर्ष के बारे में बात करते हुए कहा कि, वो
नेल्लूर में #हिंदी विरोधी अभियान में जुड़ें थे और मातृभाषा के लिये हिंदी
भाषा के बोर्ड पर कालिक पोती थी। हांलाकि जब वो 1993 में भारतीय जनता
पार्टी के राष्ट्रीय #महामंत्री बने तब पता चला कि कालिक हिन्दी पर नहीं
बल्कि उन्होंने अपने सर पर लगाई थी ।
अंग्रेजी
भाषा के #मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल# शब्दों की संख्या
2,50,000 से भी अधिक है। #संसार की #उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक
व्यवस्थित #भाषा है।
#हिंदी दुनिया की सबसे #अधिक# बोली जाने वाली भाषा है । लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाए।
हिंदी
दुनिया की #सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से #एक है ।
वह सच्चे अर्थों में #विश्व भाषा बनने की #पूर्ण अधिकारी है । हिंदी का
#शब्दकोष बहुत विशाल #है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों #शब्द
हैं जो अंग्रेजी भाषा में नही है ।
हिन्दी
लिखने के लिये प्रयुक्त #देवनागरी लिपि #अत्यन्त वैज्ञानिक है । हिन्दी को
#संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन #शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है।
आज
उन# मैकाले की वजह से ही हमने अपनी मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी
के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उपयोग
करना चाहिए ।
#मदन
मोहन मालवीयजी ने 1898 में सर एंटोनी #मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की
प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में हिन्दी भाषा को प्रवेश दिलाया ।
#लोकमान्य तिलकजी #ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया ।
वे
कहते थे : ‘‘ अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक
अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है । जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते । ऐसी स्थिति
विश्व के किसी और देश में नहीं है । ऐसी #शिक्षा-प्रणाली किसी भी #सभ्य देश
में नहीं पायी जाती ।’’ जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार
#समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो #तो किसी-न-किसी को तो पहला कदम
उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे
पूरा #समाज चल पड़ता है ।
हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ# सम्मान और गौरव# दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए ।
एक-एक
मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है । हमें अपने #दैनिक
जीवन# में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा
#हिन्दी का प्रयोग# करना चाहिए ।
#राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं #राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन# बननी चाहिए ।
जब कमाल पाशा #अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की
कुछ दिन की मोहलत ठुकराकर रातों रात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए
क्या यह असम्भव है ?
आज
सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय
नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि #अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के
उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है । इसलिए हिन्दी की
संस्कृति को #विश्व को अपना #अंशदान करना है ।
#राष्ट्रभाषा
राष्ट्र का गौरव है# । इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय
कर्तव्य है । यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है । आओ, इसे सुदृढ़
बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें ।
स्वभाषा
की महत्ता बताते हुए #हिन्दू संत आसारामजी बापू कहते हैं : ‘‘मैं तो
जापानियों को #धन्यवाद दूँगा । वे अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी
मातृभाषा में ही बातें करते हैं । ...और हम भारतवासी!
#भारत
में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में अंग्रेजी
के शब्द बोलने लगते हैं । आदत जो पड़ गयी है ! आजादी मिले 70 वर्ष से भी
अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी,
दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी ।’’
#अंग्रेजी भाषा के #दुष्परिणाम
#विदेशी
शासन #के अनेक दोषों में देश के नौजवानों पर डाला गया #विदेशी भाषा के
#माध्यम का घातक बोझ इतिहास में एक सबसे बड़ा दोष माना जायेगा। इस माध्यम
ने राष्ट्र की शक्ति हर ली है, विद्यार्थियों की आयु घटा दी है, उन्हें आम
जनता से दूर कर दिया है और शिक्षण को बिना कारण खर्चीला बना दिया है। अगर
यह प्रक्रिया अब भी जारी रही तो वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी।
इसलिए शिक्षित भारतीय जितनी जल्दी विदेशी माध्यम के भयंकर वशीकरण से बाहर
निकल जायें उतना ही उनको और #जनता को लाभ होगा।
अपनी
मातृभाषा की गरिमा को पहचानें । अपने बच्चों को अंग्रेजी#(कन्वेंट स्कूलो)
में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को# अवरुद्ध न करें । उन्हें
मातृभाषा(गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी #विकास में
सहभागी बनें ।
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🇮🇳 आज़ाद भारत🇮🇳
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