26 मार्च 2020
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आपने अभी तक सनातन हिंदू धर्म की कई परम्पराओं की खिल्ली उड़ाते आधुनिक लोगो को देखा होगा लेकिन उसका क्या उपयोग है और वे किसलिए किया जाता था आज सभी समाज रहे है, कोरोना जैसे भयंकर वायरस को भी कैसे रोक सकते है यह सभी भारतीय संस्कृति में पहले से ही आप भी यह लेख पढ़कर अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस और खुद को सुरक्षित महसूस करेगें।*
*1. प्रातःकाल मे उठना और टहलना यह पुरातनकाल से ही हमारी परंपरा रही है किन्तु आधुनिकता या यूं कहें कि मैकालेवादी शिक्षित वर्ग कहने लगा आराम से सोओ...जबकि प्रातःकाल उठने के जो लाभ हैं आधुनिक विज्ञान खूब मानता है।*
*2. प्रातर्विधी से निवृत्त होना (सुबह से टहलने से शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर ) पेट कि शुद्धि होती है पढ़े लिखे आधुनिक लोग भी और वैज्ञानिक इसे भलिभाँति जानते और मानते हैं।*
*3. शरीर शुद्धि:- शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर हाथों को गाय के गोबर से भस्म बनती है उस राख से हाथों को मल मल कर धोनें से साफ होते हैं। साबुन कि आवश्यकता ही नहीं थी,इसका उपहास तथाकथित शिक्षितों ने उड़ाया और आज हाथ धोना ही उपाय है।*
*4.पवित्रता:- जिन वस्त्रों को पहन कर अग्नि संस्कार, शौचादि क्रियाऐं की जाती है उन्हें तत्काल धोनें की परंपरा है। इसलिए शौचालय से आने पर व स्मशान में तत्काल ही वस्त्रों सहित स्नान करते हैं। अब पन्द्रह-पन्द्रह दिनों तक पर्फ्यूम छींट कर नहीं नहाने वालों का क्या कहें क्योंकि वे मैकालेवादी शिक्षित हैं। हमारी परंपरा में जन्म के बाद और मृत्यु के बाद कुछ दिन का सूतक रखा जाता है, रजस्वला धर्म में स्त्रियों को हायजिन के चलते 5 दिन ससम्मान आराम दिया जाता है। ये सब एक आयसोलेशन कि ही व्यवस्था है जिसकी आज विश्वभर में जरूरत आन पड़ी है।*
*5. मुख मंजन करना :- नीम, बबूल, पलाश, रतनजोत, राख, कोयला आदि से मंजन करने पर हंसी उड़ाई जाती थी किंतु फ्लोराइड परोसने वाली इंटरनेशनल कंपनियों द्वारा भी अब नीम,बबूल, कोयला अपने टूथपेस्ट होने का दावा कर के शिक्षित आधुनिक लोगों को बखूबी मूर्ख बनाया जा रहा है।*
*6. शुद्ध शाकाहार:- भोजन आदि मे प्रकृति से प्राप्त कंद,मूल,फल,अनाज आदि प्रचुर मात्रा मे उप्लब्ध हैं पर ना जाने क्या क्या...आप समझ सकते हैं बासी कूसा खाने को बड़ा फैशन समझते हैं आधुनिक लोग। अब पुनः उसी जगह आ गये ना...। सनातन हिंदू धर्म ने हमें पशुओं पर हाथ फेरना सिखाया है, छुरा फेरना नहीं । हमें गर्व है कि हमारी आलोचना दूध बहाने के लिए होती है, खून बहाने के लिए नहीं। शाकाहार सबसे सात्विक भोजन है। सनातन हिंदू धर्मावलंबी गर्व से कह सकता है कि उनके भोजन में किसी भी पशु-पक्षी या जलचर की चीख़ या रुदन शामिल नहीं है।*
*7. साधना :- साधना पद्धति मे एक दूसरे से निश्चित दूरी बनाए रखने का नियम होता है, इससे यह होता है कि साधना करनेवाले कि साधना दूसरे को स्पर्श न करने से साधना क्षीण नहीं होती। यही वह विशेष बात है जो आज हर एक वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, आधुनिक मैकालेवादी युवा मानने पर विवश है। क्योंकि मजाक उड़ाकर एक दूसरे का स्पर्श कर कर ही 60%रोग दुनिया मे फैलाऐ हैं। आज ये महामारी के चलते World Health Organization (WHO) ने निर्देश जारी किए है कि एक दुसरे से शेकहैेंड ना करे( हाथ ना मिलाए) और एक दुसरे से बात करते वक्त 1 मीटर की दुरी रखे। भारत में सदियों से एक दुसरे को हाथ जोडकर
नमस्कार करने की परंपरा है जिसे विश्व के बड़े बड़े नेताओ ने आज अपना लिया है।*
*8. झूठा भोजन न करना:- भारतीय संस्कृति मे शुद्ध व पवित्र भोजन करना ही वैध माना गया है और आज सारा विश्व इसे स्वीकार कर चुका है।*
*9. किसी अन्य का वस्त्र या शैय्या उपयोग न करना :- किसी दूसरे व्यक्ति के वस्त्रों मे उसके वाइब्रेशन होते हैं जो किसी अन्य पर प्रभाव छोड़ते हैं। आज विश्व स्वास्थ्य संगठन भी एसा करने से मना कर रहा है।*
*10. वसुधैव कुटुम्बकम :- सारा संसार एक कुटुम्ब है परिवार है यह भारतीय संस्कृति कहती आई है किंतु यहां कि जैवविविधता को नष्ट करने के दुष्परिणाम ही आज कोरोना के रूप मे पूरे विश्व के सामने विकराल रूप लेकर खड़ी है। परंतु आयुर्वेद और योग के निर्देश अनुसार इस प्रकार के सभी वायरस पर आसानी से जीत पा सकते। वायरस उन्ही पर हमला करता है जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, अंत अपनी प्रतिरोध क्षमता बढ़ाये और बीमारियों को भगाये...।*
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कोरोना से बचने के उपाय*
*★टमाटर, फूल गोभी, लहसुन, अजवाइन, आँवला, तुलसी और संतरा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता हैं। इस समय इनका उपयोग जरूर करें।*
*★रोज सुबह सूर्यनारायण को अर्घ्य देने से सूर्य चिकित्सा का लाभ मिलता है। रविवार को छोडकर प्रतिदिन तुलसी और पीपल को भी जल चढ़ाये, जिससे उसके पावरफुल वायब्रेशन का फायदा मिले।*
*★सुबह ताजी हवा में या धूप के वातावरण में प्राणायाम करने से रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। देशी गाय के गोबर के कंडे पर थोड़ा सा गाय का घी, गूगल व् कपूर का धुप करने से आसपास के विषाणु नष्ट होते है और वातावरण शुद्ध होता है। प्राणायाम खाली पेट करना होता है। भोजन किया है तो तीन घंटे बाद और पानी या अन्य कोई पेय पिया हो तो आधे-पौने घंटे बाद ही प्राणायाम करें।*
*★फिटकरी पारंपरिक सेनिटाइजर है। जब आप फिटकरी के पानी से अपने हाथों को धोते हो या स्नान मे उपयोग करते हो तब कोई भी विषाणु आपके शरीर पर जिंदा नहीं रह सकता। गरम पानी में फिटकरी डालकर कुल्ले करने से गले और मुँह के विषाणु नष्ट होते हैं। इस लिए स्नान एवं हाथ धोने के पानी में फिटकरी वाले पानी का उपयोग करें। असरकारक सेनिटाइजर बनाने के लिए १ लिटर पानी में २० ग्राम फिटकरी का + २० ग्राम कपूर का बारीक चुरा + नीम के पत्ते का थोड़ा रस मिलाकर एकरस कर दीजिए।*
*★ आप एक स्वच्छ टिस्यू पेपर या रुमाल और दो रबर रिंग से घर पर ही मास्क बना सकते हो, आपको कंपनी का बनाया हुआ मास्क की कोई आवश्यकता नहीं है।*
*★ दो लौंग, एक इलायची, एक कपूर की टिक्की, अजवाइन, एक फुल जावित्री का और एक टुकड़ा फिटकरी का.... इन सबकी एक सूती कपड़े की पुड़िया बनाएं और हमेशा अपने पास रखें। अपने बच्चों के गले में ये पुड़िया अवश्य लटका दे। 3-4 दिन के बाद पुरानीं पुड़ीया को फेंक दे और नयी पुड़िया बना लें। साथ ही साथ थोड़ा सा तुलसी अर्क, नीम अर्क और गौमुत्र को पीते रहिए और अनावश्यक मुसाफ़री और मुलाकात को टाले.... बस हो गया काम.....‘कोरेना’ तो क्या, कोई वायरस आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता।*
*★प्रार्थना, ॐ का गुंजन, नामजप, ध्यान का सहारा जरुर लें, इससे सकारात्मकता बढ़ेगी और डर के माहौल में भी शांति और स्वस्थता का अनुभव होगा। शंख और घंट ध्वनि भी वातावरण नो पवित्र बनाती है। घंटनाद और शंखनाद करने से जहाँ तक वो ध्वनि पहुँचती है वहाँ तक के सभी विषाणु और बैक्टीरिया का नाश हो जाता है। इसी लिए हमारे यहाँ त्रिकाल संध्या के समय शंख और घंटी बजाने कि परंपरा है।*
*★अपने आस पास ऐसे लोग हो, जिनका रहने-खाने का कोई ठिकाना ना हो ऐसे जरूरतमंद लोगों के लिए एवं पशु पंक्षियों के लिए भोजन-पानी देने कि सेवा जरुर करिए। इससे पूण्य बढ़ता है, पूण्य बढ़ने से ईष्ट मजबूत होता है और जिनका ईष्ट मजबूत होता है उनका अनिष्ट नहीं होता। हमारी संस्कृति का सूत्र है:*
*|| परोपकाराय पुण्याय, पापाय परपीडनम् ||*
*★ साधू संतों का आदर करना: इस सनातन संस्कृति के वाहक है हमारे साधू-संत, जो सदियों से गुरु परंपरा द्वारा हमें इसका ज्ञान देते रहे हैं। लेकिन आजकल हमारी संस्कृति के प्रचार प्रसार करनेवाले प्रमुख संतों के विरुद्ध षड्यंत्र करके उन पर झूठे केस कर दिए जाते हैं, ताकि धर्मान्तरण करनेवाली विदेशी मिशनरियों का रास्ता साफ़ हो जाए। इस कार्य में वो अरबों रुपया लगा देते हैं और मीडिया को भी खरीद लेते हैं। जिससे मिडिया आपको सिर्फ हिंदू धर्म के साधू संतों के विरुद्ध अनर्गल कहानियाँ परोसती है। अब हमें मिडिया कि झूठी बातों को सच नहीं मानते हुए साधू-संतो का मजाक नहीं करना चाहिए, वरना इससे पाप कि कमाई होती है। आयुर्वेद में रोग के दूसरें कारणों के साथ साथ एक कारण पापकर्म भी बताया गया है इस लिए संतनिंदा से अवश्य बचिए। धर्मान्तरण करनेवाले को तो तगड़ा पगार और पेंशन मिलता है परंतु हमारे देश के साधू-संत तो बिना पगार-पेंशन के दिन रात संस्कृति रक्षा के लिए लगे रहते हैं तो उनका सम्मान करना ही चाहिए। हमें भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म व् आयुर्वेद का ये सब ज्ञान हिंदू संत आशारामजी बापू द्वारा मिला है। जिन्होंने निर्दोष होते हुए भी जेल में बैठे बैठे विश्व मानव के कल्याण हेतु कोरोना से बचने के उपरोक्त उपाय बताए है ताकि सबका मंगल और सबका भला हो। ऐसे सभी महान संत के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम।*
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आइए विश्व कि प्राचीन संस्कृति यानि कि हिंदू संस्कृति को अपनाएं, सारे विश्व को विनाश से बचाएं।*
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