02 दिसंबर 2020
धर्म के संस्कार नहीं होने के कारण कुछ युवतियां सेक्युलर बन जाती हैं और कोई उनसे धर्म की बात करे तो अपने को मॉर्डन बताकर उनसे नफरत करती हैं जिसके कारण वे लव जिहाद में फस जाती हैं और बाद में अपनी जिंदगी नरक जैसी जीती रहती हैं, पुलिस अथवा न्यायालय में शिकायत करती हैं पर तब तक अपनी जिंदगी तबाह हो गई होती है। ऐसा ही एक ताजा मामला है, पढ़ लीजिये।
मेरा नाम कमालरुख खान है। मैं दिवंगत संगीतकार वाजिद खान की पत्नी हूँ। विवाह से पहले मैंने और साजिद ने दस साल एक दूसरे के साथ बिताये था। आप हमें कॉलेज स्वीटहार्ट कह सकते हैं। मैं पारसी थी और वो मुस्लिम थे। हम दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह किया था। यही वह कारण है जिसकी वजह से वर्तमान में चल रही धर्मांतरण की बहस मेरे लिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
मैं आपके साथ अपना अनुभव इसलिए बांटना चाहती हूँ कि मजहब के नाम पर एक औरत के साथ किस तरह भेदभाव, दमन और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है। एक स्त्री के सम्मान के लिए ये अपमानजनक, निंदनीय और आंख खोलनेवाला है।
मेरे सामान्य पारसी परिवार का पालन पोषण बहुत लोकतांत्रिक मूल्यों वाला था। वैचारिक स्वतंत्रता को बढावा दिया जाता था और लोकतांत्रिक बहसें सामान्य सी बात थी। हर स्तर पर शिक्षा का महत्व सर्वोपरि होता था लेकिन मेरी शादी के बाद यही वैचारिक स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक जीवन मूल्य और शिक्षा मेरे पति के लिए सबसे बड़ी समस्या थी। एक पढी लिखी लड़की जो वैचारिक स्वतंत्रता रखती हो, उनके परिवार को कतई स्वीकार नहीं थी। इस्लाम कबूल न करने का विरोध तो सबसे अपवित्र कार्य साबित हुआ। मैं हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करती हूँ और उनके सभी धार्मिक आयोजनों में शामिल भी होती थी लेकिन मेरे ऊपर धर्मांतरण का दबाव लगातार बढता जा रहा था और ये दबाव यहां तक बढा कि मुझे तलाक के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ी। मेरा आत्मसम्मान मुझे उनके या उनके परिवार के लिए इसकी (इस्लाम कबूल करने की) अनुमति नहीं दे रहा था।
मैं जिन मूल्यों में विश्वास करती हूँ उसमें धर्म परिवर्तन के लिए कोई स्थान नहीं है। न ही मैं अपनी 16 वर्षीय बेटी अर्शी और 9 वर्षीय बेटे ह्रेहान में ये संस्कार डालना चाहती हूँ। लेकिन अपनी शादी के बाद मैंने नख शिख इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है। इसका परिणाम ये हुआ कि मेरे ससुरालवालों ने मेरे खिलाफ एक से एक डरावने तरीके इस्तेमाल किये ताकि मैं इस्लाम कबूल कर लूं।
वाजिद एक सुपर टैलेन्टेड संगीतकार थे जिन्होंने एक से एक सुरीली धुनों की रचना की। मैं और मेरे बच्चे आज भी उनको मिस करते हैं। काश वो हमारे साथ कुछ समय और रहते। लेकिन धार्मिक पूर्वाग्रहों के कारण मैं और मेरे बच्चे कभी उनके परिवार की तरह उनकी संगीत रचना का हिस्सा न बन सके।
लेकिन मैंने लड़ाई लड़ी। लड़ाई जीवन मूल्यों की और लड़ाई अपने बच्चों के भविष्य की। ये लड़ाई मुझे सिर्फ इसलिए लड़नी पड़ी क्योंकि वो लोग मुझसे सिर्फ इसलिए नफरत करते थे क्योंकि मैंने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया। ये नफरत इतनी गहरी है कि वाजिद की मौत के बाद भी खत्म नहीं हुई है। दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु के बाद भी उनके परिवार की ओर से मेरी प्रताड़ना जारी है।
मैं दिल से चाहती हूँ कि ये एन्टी कन्वर्जन लॉ पूरे देश में लागू किया जाए ताकि अंतर्धामिक विवाहों में स्त्री के प्रेम और आत्मसम्मान की रक्षा हो सके। हमें अपनी जमीन पर खड़े होने के लिए बदनाम किया जाता है। ये धर्मांतरण माफिया बहुत शुरुआत से ही अपनी व्यूह रचना करते हैं जो ये कहते हैं कि सिर्फ उन्हीं का गॉड/प्रॉफेट सच्चा है बाकी अन्य दूसरे सभी भगवान झूठ हैं। धर्म उत्सव के लिए होता है लोगों और परिवारों को तोड़ने के लिए नहीं।
यह सब देखते हुए अब हिंदुओं को जागरूक होने की अत्यंत आवश्यकता है सबसे पहले अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा दे, अच्छे संस्कार दे , टीवी सिनेमा से दूर रखें, उनका मोबाइल चेक करते रहे जिससे बच्चे अपनी जिंदगी बर्बाद न कर ले नहीं तो यही बच्चे बड़े होकर आपको ही गालियां देंगे, बच्चों का भी कर्तव्य है कि अपने माँ-बाप बात माने नही तो आगे पछताना पड़ेगा।
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