29 दिसंबर 2020
भारत की इतनी दिव्य और महान संस्कृति है कि इसका अनुसरण करने वाला बिना किसी वस्तु, व्यक्ति के यहां तक कि विपरीत परिस्थितियों में भी सुखी रह सकता है, इसके विपरीत विदेशों में भोग सामग्री होते हुए भी वहां के लोग इतने दुःखी व चिंतित हैं कि वहां के आंकड़े देखकर दंग रह जाएंगे आप लोग !!
फिर भी भारत का एक बड़ा वर्ग उनका अंधानुकरण कर, उनका नववर्ष मनाने लगा और भूल गया अपनी संस्कृति को ।
एक सर्वे के अनुसार...
ईसाई नववर्ष पर तीन गुनी हुई एल्कोहल की खपत:-
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल ( एसोचेम - ASSOCHAM ) के क्रिसमस और ईसाई नववर्ष पर एल्कोहल पर खपत किये गये सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष सामने आया है कि इन अवसरों पर 14 से 19 वर्ष के किशोर भी शराब व मादक पदार्थों का जमकर सेवन करते हैं और यही कारण है कि इस दौरान शराब की खपत तीन गुनी बढ़ जाती है।
इन दिनों में दूसरे मादक पेय पदार्थों की भी खपत बढ़ जाती है । बड़ों के अलावा छोटी उम्रवाले भी बड़ी संख्या में इनका सेवन करते हैं । इससे किशोर-किशोरियों, कोमल वय के लड़के-लड़कियों को शारीरिक नुकसान तो होता ही है, उनका व्यवहार भी बदल जाता है और हरकतें भी जोखिमपूर्ण हो जाती हैं । उसका परिणाम कई बार एचआईवी संक्रमण (एड्स रोग) के तौर पर सामने आता है तो कइयों को टी.बी., लीवर की बीमारी, अल्सर और गले का कैंसर जैसे कई असाध्य रोग भी पैदा हो जाते हैं । करीब 70 प्रतिशत किशोर फेयरवेल पार्टी, क्रिसमस एवं ईसाई नूतन वर्ष पार्टी, वेलेंटाइन डे और बर्थ डे जैसे अवसरों पर शराब का सेवन करते हैं । एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 40 प्रतिशत शराब के कारण होती हैं ।
सूत्रों का कहना है कि क्रिसमस (25 दिसम्बर से 1 जनवरी ) के दिनों में शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन, युवाधन की तबाही व आत्महत्याएँ खूब होती हैं ।
भारत से 10 गुणा ज्यादा दवाईयां खर्च होती हैं ।
पाश्चात्य संस्कृति और त्यौहार का अनुसरण करने पर यूरोप, अमेरिका आदि देशों में मानसिक रोग इतने बढ़ गए हैं कि हर दस व्यक्ति में से एक को मानसिक रोग होता है । दुर्वासनाएँ इतनी बढ़ी हैं कि हर छः सेकंड में एक बलात्कार होता है और हर वर्ष लगभग 20 लाख से अधिक कन्याएँ विवाह के पूर्व ही गर्भवती हो जाती हैं । वहाँ पर 65% शादियाँ तलाक में बदल जाती हैं । AIDS की बीमारी दिन दुगनी रात चौगुनी फैलती जा रही है | वहाँ के पारिवारिक व सामाजिक जीवन में क्रोध, कलह, असंतोष, संताप, उच्छृंखता, उद्यंडता और शत्रुता का महा भयानक वातावरण छाया रहता है ।
विश्व की लगभग 4% जनसंख्या अमेरिका में है । उसके उपभोग के लिये विश्व की लगभग 40% साधन-सामग्री (जैसे कि कार, टी वी, वातानुकूलित मकान आदि) मौजूद हैं फिर भी वहाँ अपराधवृति इतनी बढ़ी है कि हर 10 सेकण्ड में एक सेंधमारी होती है, 1 लाख व्यक्तियों में से 425 व्यक्ति कारागार में सजा भोग रहे हैं । इन सबका मुख्य कारण दिव्य संस्कारों की कमी है ।
31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर दारू पीते हैं । हंगामा करते हैं, महिलाओं से छेड़खानी करते हैं, रात को दारू पीकर गाड़ी चलाने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी वारदात, पुलिस व प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश होता है और 1 जनवरी से आरंभ हुई ये घटनाएं सालभर में बढ़ती ही रहती हैं ।
जबकि भारतीय नववर्ष नवरात्रों के व्रत से शुरू होता है ।घर-घर में माता रानी की पूजा होती है । शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है । चैत्र प्रतिपदा के दिन से महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारंम्भ, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध है ।
भोगी देश का अन्धानुकरण न करके युवा पीढ़ी भारत देश की महान संस्कृति को पहचाने ।
1 जनवरी में सिर्फ नया कलैण्डर आता है, लेकिन चैत्र में नया पंचांग आता है उसी से सभी भारतीय पर्व ,विवाह और अन्य मुहूर्त देखे जाते हैं । इसके बिना हिन्दू समाज जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता इतना महत्वपूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग ।
स्वयं सोचें कि क्यों मनाएं एक जनवरी को नया वर्ष..???
केवल कैलेंडर बदलें अपनी संस्कृति नहीं...!!!
रावण रूपी पाश्चात्य संस्कृति के आक्रमणों को नष्ट कर चैत्र प्रतिपदा के दिन नववर्ष का विजयध्वज अपने घरों व मंदिरों पर फहराएं ।
अंग्रेजी गुलामी तजकर ,अमर स्वाभिमान भर लें भारतवासी । हिन्दू नववर्ष मनाकर खुद में आत्मसम्मान भर लें भारतवासी ।।
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