Tuesday, July 18, 2023

परमाणु बम के जनक को अंततः हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण..

18 July 2023

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🚩क्या आपने 'रॉबर्ट ओपेनहाइमर' का नाम सुना है? वही रॉबर्ट ओपेनहाइमर,जिन पर हॉलीवुड के दिग्गज 'निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन' फिल्म लेकर आए हैं। ‘Oppenheimer’ नाम की ये फिल्म रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जीवन पर ही आधारित है।असल में ये वही शख्स थे, जिन्हें ‘परमाणु बम का जनक’ कहा जाता है। अमेरिका के फिजिसिस्ट रॉबर्ट ओपेनहाइमर परमाणु बम बनाने के लिए बनाई गई ‘लॉस एलामोस लेबोरेटरी’ के डायरेक्टर थे। उन्होंने हारवर्ड, कैम्ब्रिज, गोटेंगेन और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी।


🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के समय उक्त लैब को ‘मैनहटन प्रोजेक्ट’ के तहत विकसित किया गया था। पहले न्यूक्लियर टेस्ट को ‘ट्रिनिटी’ नाम दिया गया था। वो 16 जुलाई, 1945 का दिन था जब ये कराया गया था।

बताया जाता है कि इस परियोजना, जिसे ‘Project Y’ नाम दिया गया था, पर काम करने के दौरान रॉबर्ट का वजन काफी घट गया था और वो पतले हो गए थे।इस प्रोजेक्ट के लिए उन्होंने 3 साल लगातार जो मेहनत की थी, उस कारण ऐसा हुआ था। टेस्ट वाले दिन वो ठीक से सो भी नहीं पाए थे।



🚩J. Robert Oppenheimer, परमाणु परीक्षण और भगवद्गीता का एक श्लोक


🚩 जब ये टेस्ट हुआ, उस समय रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक बंकर में बैठे हुए थे। जबकि वहाँ से 10 किलोमीटर दूर न्यू मैक्सिको स्थित जोर्नाडा डेल मुर्टो के रेगिस्तान में ये परीक्षण हुआ था।

बताया जाता है कि जब पहला परमाणु ब्लास्ट हुआ, तब उसने सूरज की रोशनी को भी फीका कर दिया। 21 किलोटन TNT के साथ किया गया ये ब्लास्ट उस समय तक कहीं देखा-सुना नहीं गया था।ब्लास्ट के बाद मशरूम के आकर का घना धुआँ आकाश में उठा । 160 किलोमीटर दूर तक ब्लास्ट का कंपन सुनाई दिया। रॉबर्ट ने इसकी तुलना दोपहर के सूर्य से की थी ।


🚩इस परिक्षण के बाद उनके एक दोस्त इसीडोर रबी ने बताया था, कि उसके बाद उन्होंने कुछ दूरी से रॉबर्ट ओपेनहाइमर को देखा था, उनके शब्दों में कहें , तो "वो जब कार से निकले तो उनकी चाल कुछ अकड़ वाली थी, उसमें एक एहसास था...कि उन्होंने कर दिखाया।"

"हालांकि बाद में वो अपने इसी आविष्कार को लेकर गहन अवसाद में डूब गए थे।"



🚩 क्या आपको पता है , कि इस पहले परमाणु बम ब्लास्ट के बाद रॉबर्ट ओपेनहाइमर के दिमाग में क्या गूँजा था। 1960 के दशक में उन्होंने इसका खुलासा किया था। वो भगवद्गीता से प्रेरित थे। उन्हें इस हिन्दू धर्मग्रन्थ से प्रेम था।  उन्होंने कहा था , कि जब दुनिया का पहला परमाणु ब्लास्ट सफल रहा, तब उनके मन में "भगवान श्रीकृष्ण" के ये शब्द गूँजे – “अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसारों का विध्वंस करने वाला।” 



🚩भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय भक्त अर्जुन की शंकाओं का समाधान करके , उन्हें धर्म रक्षार्थ युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं और कर्तव्यनिष्ठा की शिक्षा देते हैं । वो अपना विराट रूप प्रकट करते हैं और विश्वरूप में प्रकट होकर बताते हैं , कि वो कौन हैं।

उक्त श्लोक इस प्रकार है:


🚩कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।

ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥॥ (11.32)


🚩इसका हिंदी अर्थ कुछ इस प्रकार होगा,

“मैं प्रलय का मूल कारण और महाकाल हूँ , जो इस क्षण में जगत का संहार करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ। तुम्हारे युद्ध में भाग लिए बिना भी युद्ध की व्यूह रचना में खड़े विरोधी पक्ष के योद्धा मारे जाएँगे।”

और इसी अर्थ को रॉबर्ट ने गलत अर्थ घटन कर लिया था।


🚩श्रीकृष्ण ने इसमें खुद को काल बताया है। साधारणतया तो जो गीताजी के इन ज्ञान सम्पन्न वचनों से अनभिज्ञ हैं , वो लोग इस श्लोक का मर्म नहीं समझ सकते और भ्रमित हो जाएंगे। असल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को इसके माध्यम से समझाते हैं, कि नष्ट हुआ सा दिखता हुआ भी कुछ नष्ट नहीं होता ... क्योंकि सबकुछ मुझमें और मैं सबमें भरपूर हूँ। इसलिए तू शोक न कर , युद्ध कर... धर्म के लिए युद्ध कर...


🚩यहाँ श्रीकृष्ण ने परमेश्वर का वो रूप दिखाया है, जो सज्जनों की रक्षा हेतु दुष्टों का संहार करने वाला है और... जो हर एक जीव और वस्तु को नष्ट करने में सक्षम है,क्योंकि अंततः प्रकृति में बनी हुई सभी रचनाएं उसी में (परमात्मा ) में ही विलीन हो जाती हैं।


🚩भगवद्गीता का यही श्लोक रॉबर्ट ओपेनहाइमर को याद आया था, जब उनका परमाणु परीक्षण सफल रहा। बड़ी बात ये , कि इस परीक्षण के बाद काफी दिनों तक वो अवसादग्रस्त रहे थे। उन्हें पता था , कि आगे इस परमाणु बम का क्या इस्तेमाल होने वाला है। एक दिन तो वो जापानी लोगों को लेकर चिंतित भी थे। उन्होंने कहा था, “ये बेचारे लोग…”🚩आपके मन में एक सवाल ज़रूर आ रहा होगा कि रॉबर्ट ओपेनहाइमर को भगवद्गीता से इतना लगाव क्यों था। ये सब शुरू हुआ 1930 के दशक में, जब वो Humanities के क्षेत्र में भी थोड़ा-बहुत अलग से काम कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों से लगाव हुआ और इनसे वो खासे प्रभावित हुए।


🚩परमाणु बम से होती तबाही देख बदला मन ! हिन्दू धर्मग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता की ली शरण...


🚩इस दौरान उन्होंने निश्चय किया कि वो भगवद्गीता को उनके मूल स्वरूप में मतलब अनुवाद किए बिना इसे पढ़ेंगे। चूँकि मूल स्वरूप में ये ग्रन्थ संस्कृत में है, इसलिए उन्होंने संस्कृत सीखनी शुरू कर दी। रॉबर्ट ओपेनहाइमर के भीतर मनोविज्ञान की समझ भगवद्गीता पढ़ने के बाद ही अच्छी तरह से विकसित हुई। यही कारण है कि ‘प्रोजेक्ट वाई’ के दौरान वो नैतिकता को सोच-विचार कर जिस कश्मकश में रहे, उससे उन्हें बहुत अधिक आत्मग्लानि हुई।



🚩उनकी आत्मग्लानि का कारण था ,कि उन्होंने गीताजी के इस श्लोक को पहली बार में पूरी तरह समझा नहीं और गलत अर्थ घटन किया , कि... कर्तव्य, नियति और फल की परवाह किए बिना कर्म करना ... यहां तक तो ठीक था पर उन्हों दुष्परिणामों के बारे में सोचना बंद कर दिया। हालाँकि, भगवद्गीता का ये सन्देश बिलकुल भी नहीं है कि निर्दोषों की हत्या की जाए या इतने बड़े-बड़े नरसंहार किये जाएं ।


🚩 रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने उस दौरान कहा था , कि युद्ध ऐसी परिस्थिति है, जिसमें इस दर्शन को लागू किया जा सकता है। लेकिन, युद्ध के बाद उनमें बदलाव आया और वो परमाणु हथियारों को आक्रामकता, अप्रत्याशित आक्रमण और आतंक के औजार बताने लगे। उन्होंने हथियारों की इंडस्ट्री को ही शैतानी करार दिया। उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से कहा , कि मेरे हाथ पर खून लगे हैं।


🚩उन्हें ढाँढस बँधाने के लिए ट्रूमैन ने कह दिया कि खून आपके नहीं, मेरे हाथों में लगे हैं।

एक बार इस कश्मकश से पल्ला झाड़ते हुए रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने वैज्ञानिकों से कहा था , वैज्ञानिक तो सिर्फ अपना कर्तव्य कर रहे हैं, हत्याओं की जिम्मेदारी तो राजनेताओं की होगी।

एक तरह से ऐसा भी हो सकता है कि परमाणु बम बनाने और इसके दुष्परिणामों के बारे में सोच कर उन्होंने भगवद्गीता की शरण ली और अपने काम को सही ठहराने का प्रयास किया, लेकिन अंत में उन्हें समझ आया कि उन्होंने क्या कर दिया है।


🚩वो सन् 1933 का समय था, जब प्रत्येक गुरुवार को रॉबर्ट ओपेनहाइमर भगवद्गीता पढ़ने जाते थे। बर्कली में उन दिनों आर्थर राइडर नाम के एक संस्कृत शिक्षक हुआ करते थे, जिनसे वो पढ़ने जाते थे। उनका कहना था , कि राइडर से ही उन्हें नीतिशास्त्र का ज्ञान मिला । उन्होंने सीखा कि जो लोग कठिन कार्य करते हैं , उन्हें सम्मान प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म से उन्होंने दुनियादारी से खुद को अलग कर के देखने की भावना सीखी। एक बार उन्होंने अपने एक मित्र से कहा था, “मैंने ग्रीक को भी पढ़ा है। लेकिन हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थों में गहराई है। ”


             - अनुपम कुमार सिंह


🚩इंग्लैंड के एफ.एच.मोलेम ने लिखा कि बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन गई हैं। यह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अनमोल खजाना है।


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