Monday, December 23, 2024

आधुनिक विज्ञान में तुलसी का महत्व एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 23 December 2024

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🚩आधुनिक विज्ञान में तुलसी का महत्व एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण


तुलसी (Ocimum sanctum), जिसे “होलि बेसिल” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। धार्मिक और पारंपरिक मान्यताओं के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान ने भी तुलसी के औषधीय और पर्यावरणीय महत्व को स्वीकार किया है। तुलसी के पत्तों, तनों, और बीजों में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो अनेक बीमारियों को दूर करने के लिए उपयोगी हैं। आइए, तुलसी के गुणों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विस्तार से समझें।


🚩तुलसी के प्रमुख रासायनिक तत्व


तुलसी के औषधीय गुणों का आधार इसके रासायनिक तत्व हैं, जिनमें शामिल हैं:


🌿 यूजेनॉल (Eugenol):


 इसमें एंटीसेप्टिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं।


🌿फ्लेवोनोइड्स: 


ये एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करते हैं।


🌿 सिट्राल और टरपेनोइड्स:


 ये तनाव कम करने और शरीर को शांत करने में मदद करते हैं।


🌿 विटामिन और खनिज:


 तुलसी में विटामिन ए, सी, और कैल्शियम, आयरन जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।


🚩आधुनिक विज्ञान में तुलसी का महत्व


🔸 प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) बढ़ाने में योगदान


तुलसी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबायोटिक गुण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं। यह बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में सहायक है। COVID-19 महामारी के दौरान, तुलसी आधारित औषधियों का उपयोग इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए किया गया।


🔸सांस संबंधी रोगों का उपचार


आधुनिक अनुसंधानों ने सिद्ध किया है कि तुलसी के अर्क में ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और सर्दी-जुकाम जैसे रोगों को ठीक करने की क्षमता है। तुलसी का काढ़ा बलगम को साफ करने और श्वसन तंत्र को मजबूत बनाने में सहायक होता है।


🔸तनाव और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव


तुलसी को “एडेप्टोजेन” माना जाता है, जो तनाव के प्रभाव को कम करने में सहायक है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि तुलसी का नियमित सेवन कोर्टिसोल (स्ट्रेस हार्मोन) के स्तर को नियंत्रित करता है। यह अनिद्रा और डिप्रेशन जैसी समस्याओं में भी राहत देता है।


🔸 हृदय रोगों में लाभकारी


तुलसी के पत्तों में यूजेनॉल नामक तत्व पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह हृदय को स्वस्थ रखने और दिल के दौरे के खतरे को कम करने में सहायक है।


🔸डायबिटीज में प्रभावशीलता


तुलसी रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करती है। कई शोधों ने यह सिद्ध किया है कि तुलसी के नियमित सेवन से टाइप-2 डायबिटीज को प्रबंधित किया जा सकता है।


🔸 एंटी-कैंसर गुण


तुलसी में पाए जाने वाले तत्व कैंसर विरोधी गुणों से भरपूर हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि तुलसी कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोक सकती है और शरीर में विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है।


🔸एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण


तुलसी का उपयोग घावों को भरने, त्वचा रोगों को ठीक करने और संक्रमण से बचाने के लिए किया जाता है। तुलसी का तेल त्वचा पर जलन को कम करता है और उसे साफ करता है।


🚩पर्यावरणीय योगदान


🔹 वायु शुद्धि (Air Purification):


तुलसी का पौधा वातावरण से विषैले कणों को सोखने और शुद्ध ऑक्सीजन छोड़ने के लिए जाना जाता है। यह कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को भी नियंत्रित करता है।


🔹 मच्छरों से बचाव:


तुलसी के पौधे का उपयोग मच्छरों को भगाने के लिए प्राकृतिक उपाय के रूप में किया जाता है। इसके तेल का उपयोग मॉस्किटो रिपेलेंट बनाने में किया जाता है।


🚩वैज्ञानिक अनुसंधान एवं प्रमाण


🔅भारत में अनुसंधान:


भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने तुलसी पर किए गए शोधों में इसके औषधीय लाभों को प्रमाणित किया है।


🔅अंतरराष्ट्रीय अध्ययन:


अमेरिका और यूरोप के शोधकर्ताओं ने तुलसी के अर्क को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान को रोकने में प्रभावी पाया है।


🔅 आयुर्वेद और एलोपैथी का संगम:


तुलसी का उपयोग आधुनिक दवाइयों में एक पूरक के रूप में किया जा रहा है। इसे काढ़े, तेल, और टैबलेट के रूप में बनाया जाता है।


🚩निष्कर्ष


तुलसी आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक आयुर्वेद का एक ऐसा सेतु है, जो न केवल हमारे स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक है, बल्कि पर्यावरण को भी शुद्ध करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी का महत्व इसके औषधीय और एंटीऑक्सीडेंट गुणों में निहित है। आज, जब दुनिया प्राकृतिक उपचारों की ओर लौट रही है, तुलसी का उपयोग न केवल धार्मिक या पारंपरिक कारणों से, बल्कि वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर भी बढ़ रहा है।

तुलसी को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और स्वास्थ्य, पर्यावरण, और आंतरिक शांति का अनुभव करें।


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Sunday, December 22, 2024

तुलसी की महिमा एवं धार्मिक दृष्टिकोण / महत्व

 22 December 2024

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🚩तुलसी की महिमा एवं धार्मिक दृष्टिकोण / महत्व


🚩तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति, धर्म और आयुर्वेद का एक अभिन्न अंग है। इसे “वृन्दा” और “हरिप्रिया” के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी को अत्यधिक पवित्र और पूजनीय माना गया है। इसे देवी स्वरूप मानकर पूजा जाता है और इसे घर में रखना शुभ एवं कल्याणकारी माना जाता है। तुलसी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि औषधीय गुणों के कारण भी महत्वपूर्ण है।


🚩तुलसी की पौराणिक कथा


पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी माता का जन्म धर्म और भक्ति का प्रतीक है। तुलसी का नाम देवी वृन्दा के नाम पर रखा गया है, जो भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं। वृन्दा ने अपने पति जलंधर की रक्षा के लिए कठोर तप किया। लेकिन भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए जलंधर का वध किया। जब वृन्दा को इस घटना का ज्ञान हुआ, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया। इस श्राप से भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप धारण किया और वृन्दा तुलसी का पौधा बन गईं। तभी से तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय मानी जाती है।


🚩धार्मिक महत्व


🔸 पूजा में उपयोग


तुलसी के पत्तों का उपयोग हर धार्मिक अनुष्ठान और पूजा में किया जाता है। विशेषकर, भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा में तुलसी के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।


🔸 कार्तिक मास और तुलसी विवाह


कार्तिक मास में तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। तुलसी विवाह का आयोजन भी इसी महीने में किया जाता है, जिसमें तुलसी को भगवान शालिग्राम से विवाह करवाया जाता है। यह उत्सव पारिवारिक समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक है।


🔸धार्मिक मान्यताएँ


🌿तुलसी का पौधा घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।


 🌿 तुलसी के पौधे के पास शाम को दीपक जलाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।


 🌿 तुलसी के पास बैठकर जप करने से मन शांत होता है और ध्यान की गहराई बढ़ती है।


🚩औषधीय गुण


तुलसी को आयुर्वेद में “जीवनदायिनी” माना गया है। इसके औषधीय गुणों के कारण इसे कई रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है:


🔸प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना


तुलसी के पत्ते इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।


🔸 सर्दी-जुकाम का इलाज


तुलसी का काढ़ा सर्दी, जुकाम और खांसी में राहत देता है।


🔸 तनाव कम करना


तुलसी का नियमित सेवन तनाव और चिंता को कम करता है।


🔸 त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद


तुलसी त्वचा रोगों और बालों की समस्याओं में भी लाभकारी है।


🚩पर्यावरणीय महत्व


तुलसी का पौधा पर्यावरण शुद्ध करता है और वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है। इसे घर में लगाने से शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।


🚩निष्कर्ष


तुलसी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे जीवन को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाती है। इसका हर पहलू—चाहे वह पूजा में उपयोग हो, औषधीय गुण हो या पर्यावरणीय महत्व—हमारे जीवन में एक नई ऊर्जा और संतुलन लाता है। इसलिए, तुलसी को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर हम न केवल अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाते हैं।


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Saturday, December 21, 2024

25 दिसंबर: तुलसी पूजन दिवस

 21 December 2024

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🚩25 दिसंबर: तुलसी पूजन दिवस


🚩भारतीय संस्कृति में तुलसी पूजन दिवस का विशेष महत्व है। हर साल 25 दिसंबर को यह पर्व मनाया जाता है, जो प्रकृति, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। इस दिन तुलसी माता की पूजा कर समाज में सकारात्मक ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण और भारतीय मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया जाता है।


🚩तुलसी पूजन दिवस क्यों मनाया जाता है?


तुलसी को हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी का स्वरूप और भगवान विष्णु की प्रिया माना गया है। तुलसी के बिना किसी भी पूजा को पूर्ण नहीं माना जाता। इसके अलावा, तुलसी का पौधा पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। इस दिन तुलसी माता की पूजा करने से परिवार और समाज में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।


🚩तुलसी पूजन की विधि (25 दिसंबर)


🌿 स्नान और शुद्धि:


 सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ़ वस्त्र धारण करें।


🌿तुलसी पर जल चढ़ाएं:


 तुलसी के पौधे पर शुद्ध जल अर्पित करें।


🌿 सिंदूर और फूल चढ़ाएं:


 तुलसी पर सिंदूर और लाल या गुलाबी फूल अर्पित करें।


🌿घी का दीप जलाएं:


 तुलसी माता के पास घी का दीपक जलाकर आरती करें।


🌿तुलसी स्तोत्र का पाठ:


 तुलसी स्तोत्र का पाठ कर भक्ति-भाव से पूजा करें।


🌿भोग और प्रसाद:


 फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें।


🚩तुलसी पूजन के नियम और मान्यताएं


🟡शाम के समय तुलसी माता के पास दीपक जलाना विशेष शुभ माना जाता है।


🟡 रविवार और एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ने से बचना चाहिए।


🟡 तुलसी माला धारण करने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है।


🚩25 दिसंबर:

 तुलसी पूजन और संस्कृति को सहेजने का दिन


आज के समय में जब पश्चिमी परंपराओं का प्रभाव बढ़ रहा है, तुलसी पूजन दिवस हमें अपनी संस्कृति को सहेजने और समाज को उसके महत्व से अवगत कराने का अवसर देता है।


🌿क्रिसमस ट्री की जगह तुलसी: 


25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने के बजाय तुलसी का पौधा अपनाकर समाज को पर्यावरण संरक्षण और भारतीय मूल्यों का महत्व समझाएं।


🌿पर्यावरण और स्वास्थ्य:


 तुलसी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है। यह वायु को शुद्ध करती है और कई बीमारियों का उपचार करती है।


🚩भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का संकल्प


25 दिसंबर तुलसी पूजन दिवस केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने और समाज में पर्यावरण और आध्यात्मिकता का संदेश फैलाने का पर्व है।


आइए, इस 25 दिसंबर तुलसी पूजन दिवस पर हम सभी समाज में तुलसी के महत्व को समझाएं और भारतीय संस्कृति को सशक्त बनाएं।

“तुलसी पूजन करें, प्रकृति और संस्कृति को समृद्ध करें!”


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Friday, December 20, 2024

सीरिया में सत्ता परिवर्तन: राष्ट्रपति असद ने 11 दिन में सत्ता गंवाई

 20 December 2024

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🚩सीरिया में सत्ता परिवर्तन: राष्ट्रपति असद ने 11 दिन में सत्ता गंवाई



सीरिया, पश्चिम एशिया का एक महत्वपूर्ण देश, एक दशक से अधिक समय तक राजनीतिक अस्थिरता और गृहयुद्ध का गवाह रहा है। राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासनकाल में देश ने लंबे समय तक बाहरी हस्तक्षेप और आंतरिक संघर्ष झेला। हाल ही में, खबरें आईं कि राष्ट्रपति असद ने देश छोड़ दिया है और उनकी सत्ता केवल 11 दिनों में खत्म हो गई।


🚩घटना का विश्लेषण:


🔅 राजनीतिक अस्थिरता का कारण:


🔹राष्ट्रपति असद के शासन को तानाशाही के रूप में देखा गया, जहाँ उन्होंने विरोधियों पर कठोर कार्रवाई की।


🔹 देश में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की मांग ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया।


🔹अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असद सरकार पर कई प्रतिबंध लगाए गए, जिससे आर्थिक संकट गहराता गया।


🔅 11 दिनों में सत्ता का पतन:


🔹 बढ़ते विरोध प्रदर्शन और सेना के कुछ धड़ों के विद्रोह के कारण असद सरकार कमजोर हो गई।


🔹 देश के विभिन्न हिस्सों पर विद्रोही गुटों का कब्जा हो गया।


🔹अंतरराष्ट्रीय दबाव और भीतर से बढ़ते असंतोष के कारण राष्ट्रपति असद को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।


🚩 सीरिया की वर्तमान स्थिति:


🔹 सत्ता का पतन सीरिया के लिए एक नई शुरुआत की उम्मीद ला सकता है, लेकिन यह स्थिरता लाने में कितना सफल होगा, यह समय बताएगा।


🔹 वर्तमान में, देश में अंतरिम सरकार बनाने और शांति स्थापित करने के प्रयास जारी हैं।


🚩अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:


🔹 संयुक्त राष्ट्र:


 इस घटना को पश्चिम एशिया में स्थिरता बहाल करने का एक अवसर माना गया।


🔹पड़ोसी देश: 


तुर्की, ईरान और अन्य देशों ने अपनी-अपनी रणनीतियां अपनाई हैं।


🔹 महाशक्तियां: 


अमेरिका और रूस जैसे देशों ने इस सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


🚩सीरिया का भविष्य:


राष्ट्रपति असद के देश छोड़ने के बाद, सीरिया को एक नई शुरुआत का अवसर मिला है। हालांकि, यह चुनौतीपूर्ण होगा कि सत्ता के विभिन्न धड़े और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मिलकर देश को स्थिर और लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में काम करें।


🚩निष्कर्ष:


सीरिया में राष्ट्रपति असद का सत्ता गंवाना और देश छोड़ना, न केवल वहां के इतिहास में एक बड़ा बदलाव है, बल्कि यह पश्चिम एशिया की राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है। यह देखना बाकी है कि सीरिया इन परिस्थितियों से कैसे उबरता है और भविष्य में खुद को कैसे स्थापित करता है।


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Thursday, December 19, 2024

हिंदुओं के मानवाधिकार पर दुनिया चुप क्यों हो जाती है?

 19 December 2024

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🚩हिंदुओं के मानवाधिकार पर दुनिया चुप क्यों हो जाती है?


🚩मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा और उनकी गरिमा को सुनिश्चित करना है। परंतु, जब बात हिंदुओं के मानवाधिकारों की होती है, तो पूरी दुनिया में एक अजीब सी चुप्पी छा जाती है। हाल के वर्षों में, यह चुप्पी न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी साफ नजर आती है।


🚩क्या है मानवाधिकार और इसका महत्व?


मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो हर व्यक्ति को केवल मानव होने के नाते प्राप्त हैं। ये अधिकार जाति, धर्म, लिंग, या राष्ट्रीयता से परे हैं और सभी के लिए समान हैं। इनमें जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य, और न्याय की पहुंच शामिल है।


🚩संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर 1948 को “मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा” (UDHR) अपनाई थी। इसका उद्देश्य सभी देशों और लोगों को यह सुनिश्चित करना था कि उनके नागरिक स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीवन जी सकें।


🚩भारत और मानवाधिकार की वास्तविकता


भारत ने भी UDHR को स्वीकार किया है और संविधान के माध्यम से मौलिक अधिकारों को लागू किया है। अनुच्छेद 14 से 32 तक नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय प्रदान करने की गारंटी देता है। इसके बावजूद, वास्तविकता में मानवाधिकारों का पालन काफी हद तक कमजोर और असंतोषजनक है।


🚩हिंदुओं के मानवाधिकारों पर हमले


भारत और दुनिया के कई हिस्सों में हिंदू समुदाय के अधिकारों को न केवल अनदेखा किया गया, बल्कि कई बार उन्हें गंभीर संकटों का सामना करना पड़ा है।


 उदाहरण के लिए:


🎯 बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले


हाल ही में बांग्लादेश में 88 सांप्रदायिक हमलों की घटनाएं हुईं। हिंदुओं के घर जलाए गए, मंदिर तोड़े गए, और उनकी संपत्तियों को लूट लिया गया। यह स्थिति वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए चिंताजनक है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर चुप्पी साधे हुए है।


🎯 कश्मीर और पाकिस्तान में अत्याचार


कश्मीर घाटी से 1990 के दशक में हजारों कश्मीरी पंडितों को जबरन पलायन करने पर मजबूर किया गया। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार और उनकी बेटियों का अपहरण व जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं आम हैं।


🎯भारत में मानवाधिकार उल्लंघन


भारत में भी मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर हिंदुओं को निशाना बनाया जाता है। जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों को “माओवादी” करार देकर जेल में डाला जा रहा है।


🚩दुनिया की चुप्पी और दोहरा मापदंड


जब मानवाधिकार उल्लंघन की बात आती है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मीडिया अपने एजेंडे के अनुसार प्रतिक्रिया देता है। फिलिस्तीन और अफगानिस्तान जैसे मुद्दों पर आवाज उठाने वाले वही लोग हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर खामोश रहते हैं।


🚩संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है, “मानवाधिकार सभी के लिए समान हैं।” लेकिन वास्तविकता में यह कथन लागू होता नहीं दिखता। जब हिंदुओं के अधिकारों की बात होती है, तो दुनिया आंखें मूंद लेती है।


🚩क्या है समाधान?


🔸मजबूत अंतरराष्ट्रीय दबाव


अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हिंदुओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर भी उतना ही संवेदनशील होना चाहिए जितना वे अन्य समुदायों के लिए हैं।


🔸सरकार की जवाबदेही


सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके देश में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार हो और उन्हें न्याय मिले।


🔸मीडिया की भूमिका


मीडिया को अपने एजेंडे से ऊपर उठकर निष्पक्षता से रिपोर्टिंग करनी चाहिए और अल्पसंख्यक हिंदुओं के मुद्दों को भी प्रमुखता से उठाना चाहिए।


🚩निष्कर्ष


मानवाधिकार दिवस केवल एक औपचारिकता बनकर रह गया है। हिंदुओं के मानवाधिकारों पर हो रहे हमलों और दुनिया की खामोशी से यह स्पष्ट होता है कि “सभी के लिए अधिकार” का वादा अधूरा है। हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, और समाज को मिलकर प्रयास करना होगा। अन्यथा, मानवाधिकार केवल एक मुखौटा बनकर रह जाएगा।


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Wednesday, December 18, 2024

यूनुस सरकार ने खुद उजागर की सच्चाई: 88 बार हिंदुओं पर हुए हमले!

 18 December 2024

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🚩यूनुस सरकार ने खुद उजागर की सच्चाई: 88 बार हिंदुओं पर हुए हमले!


🚩बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक तख्तापलट के बाद हिंदुओं पर अत्याचार और हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह स्थिति वहां के अल्पसंख्यकों, खासतौर से हिंदुओं के लिए बेहद चिंताजनक है।


🚩पहले, बांग्लादेश सरकार इन घटनाओं से इंकार करती रही। लेकिन अब, खुद यूनुस सरकार ने इन हमलों की सच्चाई स्वीकार कर ली है। मंगलवार को बांग्लादेश सरकार ने माना कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद, सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं सामने आईं, जिनका मुख्य निशाना अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय था।


🚩राजनीतिक तख्तापलट के बाद बिगड़ा माहौल


शेख हसीना को हटाए जाने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई। इस अस्थिरता के बीच, कट्टरपंथी गुटों ने हिंदू समुदाय को निशाना बनाते हुए उनकी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, मंदिरों को तोड़ा, और कई जगह हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया।


🚩हिंदुओं के खिलाफ सुनियोजित हिंसा


इन 88 घटनाओं से यह स्पष्ट है कि यह कोई सामान्य सांप्रदायिक तनाव नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ सुनियोजित हिंसा है। हिंदू समुदाय, जो बांग्लादेश की आबादी का एक छोटा हिस्सा है, इन हमलों से पूरी तरह असुरक्षित महसूस कर रहा है।


🚩पहले इंकार, अब स्वीकारोक्ति


हैरानी की बात यह है कि शुरुआत में बांग्लादेश सरकार ने इन हमलों को नजरअंदाज किया और इसे झूठा प्रचार बताया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव और मीडिया रिपोर्ट्स के कारण, अब खुद सरकार को सच्चाई स्वीकारनी पड़ी। यह स्वीकारोक्ति बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।


🚩अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी


इन घटनाओं के बाद यह साफ हो गया है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे।


🚩निष्कर्ष


बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे ये हमले मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत समेत अन्य पड़ोसी देश और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस विषय पर बांग्लादेश सरकार से जवाबदेही मांगें।

हिंदू समुदाय की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा करना सिर्फ बांग्लादेश की नहीं, बल्कि हर मानवतावादी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए।


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Tuesday, December 17, 2024

JNU में बड़ा बवाल: वामपंथियों ने फाड़े साबरमति फ़िल्म के पोस्टर!

 17 December 2024

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🚩JNU में बड़ा बवाल: वामपंथियों ने फाड़े साबरमति फ़िल्म के पोस्टर!


🚩JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। इस बार विवाद का कारण बनी है गोधरा कांड पर आधारित फिल्म साबरमति रिपोर्ट, जिसकी स्क्रीनिंग ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) द्वारा विश्वविद्यालय में आयोजित की जा रही थी।


🚩क्या हुआ JNU में?


फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले ही वामपंथी गुटों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने साबरमति रिपोर्ट के पोस्टर फाड़ दिए और कार्यक्रम को बाधित करने की कोशिश की। इस घटना ने न केवल JNU के परिसर में अशांति फैलाई, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और विचारों के टकराव पर भी बड़ा सवाल खड़ा किया।


🚩वामपंथी गुटों का तर्क


वामपंथी गुटों का कहना है कि साबरमति रिपोर्ट फिल्म गोधरा कांड को लेकर एकपक्षीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देती है। वे इसे छात्रों के बीच नफरत फैलाने का प्रयास मानते हैं।


🚩ABVP की प्रतिक्रिया


ABVP ने इस घटना की कड़ी निंदा की और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। उनका कहना है कि साबरमति रिपोर्ट एक तथ्यात्मक फिल्म है, जो गोधरा कांड और उससे जुड़े सच को जनता के सामने लाने का प्रयास करती है। ABVP ने यह भी कहा कि वामपंथी विचारधारा हमेशा से असहमति की आवाज को दबाने की कोशिश करती रही है।


🚩क्या कहता है संविधान?


भारत के संविधान के तहत हर नागरिक को अपने विचार रखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन JNU में बार-बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जहां एक पक्ष अपने विरोध को हिंसा और तोड़फोड़ के रूप में प्रकट करता है।


🚩JNU और वामपंथ का इतिहास


JNU वामपंथी विचारधारा का गढ़ माना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में इस विचारधारा के चलते कई बार असहमति के स्वर को दबाने के प्रयास किए गए हैं। चाहे वह किसी राष्ट्रवादी मुद्दे पर कार्यक्रम हो या किसी विचारधारा से असहमति जताने का मामला, विरोध हमेशा हिंसक रूप लेता रहा है।


🚩हमारी संस्कृति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


भारत का लोकतंत्र विविध विचारों और बहसों पर टिका हुआ है। साबरमति रिपोर्ट जैसी फिल्में समाज को सच के कई पहलुओं से अवगत कराने का माध्यम हैं। यदि हर विचारधारा को बराबर का मंच नहीं दिया जाएगा, तो यह न केवल लोकतंत्र के मूल्यों का अपमान होगा, बल्कि समाज के विकास में भी बाधा बनेगा।


🚩निष्कर्ष


JNU में हुई यह घटना विचारों की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। एक विश्वविद्यालय को बहस और संवाद का केंद्र होना चाहिए, न कि हिंसा और विरोध का। ऐसे में यह जरूरी है कि हर पक्ष को अपनी बात कहने का समान अवसर दिया जाए। वामपंथी गुटों को यह समझना चाहिए कि असहमति का मतलब हिंसा नहीं है, बल्कि स्वस्थ संवाद है।


सवाल यह है कि क्या JNU में इस तरह की घटनाएं अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने का नया तरीका बन रही हैं?


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Monday, December 16, 2024

पीपल: धरती पर ईश्वर का अनमोल वरदान

 16 December 2024

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🚩पीपल: धरती पर ईश्वर का अनमोल वरदान


🚩पीपल का वृक्ष भारतीय संस्कृति और पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे धरती पर ईश्वर का वरदान माना गया है। न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक आधार पर भी यह वृक्ष अद्वितीय है।


🚩पीपल का पर्यावरणीय महत्व


पीपल का पेड़ 100% कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है, जबकि बरगद 80% और नीम 75% तक इस प्रक्रिया में योगदान करते हैं।


🚩आज की समस्या –


पिछले 68 वर्षों में पीपल, बरगद, और नीम जैसे जीवनदायी पेड़ों का रोपण सरकारी स्तर पर लगभग बंद हो गया है। इसके स्थान पर विदेशी यूकेलिप्टस और अन्य सजावटी पेड़ों को प्राथमिकता दी जा रही है।


🚩यूकेलिप्टस: पर्यावरण के लिए खतरा


यूकेलिप्टस की जड़ें जमीन का सारा पानी सोख लेती हैं, जिससे भूमि जल-विहीन हो जाती है। वहीं, सजावटी पेड़ जैसे गुलमोहर पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में कोई योगदान नहीं देते।


🚩गर्मी और प्रदूषण के खतरे


वायुमंडल में जब पीपल जैसे रिफ्रेशर पेड़ नहीं होंगे, तो गर्मी बढ़ना स्वाभाविक है। गर्मी बढ़ने से पानी का वाष्पीकरण तेजी से होगा, जिससे जल संकट भी गहराएगा।


🚩पीपल का अद्वितीय गुण


पीपल के पत्तों का फलक बड़ा और डंठल पतला होता है। यही कारण है कि हल्की हवा में भी इसके पत्ते हिलते रहते हैं और शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इसे वृक्षों का राजा भी कहा जाता है।


🚩धार्मिक महत्व


शास्त्रों में भी पीपल की महिमा का वर्णन किया गया है:


मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच।

पत्रे-पत्रे का सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते।।


🚩अब क्या करें?


1. हर 500 मीटर पर एक पीपल का पेड़ लगाएं।


2. जीवनदायी वृक्षों के प्रति समाज को जागरूक करें।


3. बगीचों और खेतों में फालतू सजावटी पेड़ों की जगह पीपल, बरगद, और नीम जैसे पेड़ों को प्राथमिकता दें।


🚩 बरगद एक लगाइए, पीपल रोपें पाँच।

घर-घर नीम लगाइए, यही पुरातन साँच।


🚩यही पुरातन साँच, आज सब मान रहे हैं।

भाग जाय प्रदूषण सभी अब जान रहे हैं।


🚩विश्वताप मिट जाए, होय हर जन मन गदगद।

धरती पर त्रिदेव हैं, नीम, पीपल और बरगद।


🚩निष्कर्ष


पीपल, बरगद, और नीम जैसे वृक्ष केवल पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित ही नहीं करते, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर भी हैं। विदेशी और सजावटी पेड़ों के प्रति आकर्षित होकर हमने इन जीवनदायी वृक्षों को अनदेखा कर दिया है।

अब समय आ गया है कि हम इनके महत्व को पहचानें और इनका संरक्षण करें। अगर हर व्यक्ति अपने आसपास ऐसे पेड़ों को लगाने का संकल्प ले, तो आने वाला भारत प्रदूषण मुक्त और पर्यावरण के प्रति जागरूक होगा।

आइए, मिलकर प्रयास करें और प्रकृति को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाएं।


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Sunday, December 15, 2024

पाँच महापाप से बचें: आत्मा को शुद्ध रखें

 15 December 2024

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🚩पाँच महापाप से बचें: आत्मा को शुद्ध रखें


🚩पंच महापाप, जिन्हें सनातन धर्म में गंभीरतम पाप माना गया है, व्यक्ति की आत्मा और समाज दोनों पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इनसे बचना न केवल व्यक्तिगत शुद्धि के लिए आवश्यक है, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक शांति के लिए भी जरूरी है।


🚩पंच महापाप क्या हैं?


🟡 ब्रह्महत्या:

ब्राह्मण (ज्ञानवान व्यक्ति) की हत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है। यह केवल शारीरिक हत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि ज्ञान के स्रोत को नष्ट करना भी ब्रह्महत्या के समान है।


🟡सुरापान (शराब पीना):

सुरापान से मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, और वह सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाता। यह आत्मा और शरीर दोनों को दूषित करता है।


🟡चोरी:

किसी की संपत्ति या अधिकारों का हनन करना चोरी है। यह व्यक्ति की ईमानदारी और नैतिकता को खत्म कर देता है।


🟡गुरु पत्नी के साथ संबंध:

गुरु के प्रति आदर का भाव होना चाहिए। गुरु की पत्नी के साथ अनुचित संबंध एक गंभीर पाप है, जो शिक्षा, संस्कार और विश्वास को नष्ट करता है।


🟡पापकर्मियों के साथ अंतरंगता:

ऐसे व्यक्तियों के साथ संबंध रखना, जो पाप में लिप्त हैं, स्वयं को भी पाप के मार्ग पर ले जाता है। “संगति का प्रभाव” यहां सत्य सिद्ध होता है।


🚩पंच महापाप का दूसरा संदर्भ:


कहीं-कहीं काम, क्रोध, मोह, मद, और लोभ को भी पंच महापाप कहा गया है। ये पांच दोष आत्मा की शुद्धता को खत्म करते हैं और व्यक्ति को अधर्म के मार्ग पर ले जाते हैं।


🚩पाप और चेतना का संबंध


पाप और पुण्य आत्मा की चेतना से जुड़े हैं। यदि चेतना का स्तर ऊंचा है, तो व्यक्ति अपने विचार और कर्मों को शुद्ध रख सकता है।


🚩पाप कैसे नष्ट होते हैं?


🔸पाप न करें: यदि पाप कर्मों से बचा जाए, तो वे नष्ट हो जाते हैं।


🔸 भोग के माध्यम से: किए गए पापों को भोगकर समाप्त किया जा सकता है।


🔸 आत्मशुद्धि: प्रायश्चित, ध्यान और आत्मा की शुद्धि के माध्यम से पापों का प्रभाव कम किया जा सकता है।


🚩पाप से बचने के उपाय


🔹धर्म का पालन करें: सत्य, अहिंसा, और संयम का पालन करें।


🔹सत्संग करें: संतों और विद्वानों की संगति से विचारों में शुद्धता आती है।


🔹 ध्यान और प्रार्थना: नियमित ध्यान और ईश्वर की आराधना से आत्मा को पवित्र बनाए रखें।


🔹अहंकार त्यागें: विनम्र रहें और अहंकार से बचें।


🚩निष्कर्ष


पंच महापाप आत्मा के शुद्धिकरण में सबसे बड़ी बाधा हैं। इन्हें न करने का संकल्प लेना और जीवन में धर्म, सत्य और नैतिकता का पालन करना ही सच्ची आत्मिक शांति और मोक्ष का मार्ग है। आइए, इन महापापों से बचकर अपने जीवन को सार्थक बनाएं।


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Friday, December 13, 2024

आवंला : - एक अमृत फल

 13 December 2024

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🚩 आवंला : - एक अमृत फल


🚩जिस दिन आपकी सब्ज़ी में आंवले का उपयोग होना शुरू हो गया उस दिन से आधा मेडिकल माफिया जो आपको दिन रात लुटता रहता है, वह भाग जाएगा। 


 🚩सनातन भारत में सब्जी में खट्टापन लाने के लिये टमाटर के स्थान पर आंवले का प्रयोग होता था । इसलिये सनातन हिंदुओ की हड्डियां महर्षि दधीचि की तरह कठोर होती थीं ,इतनी मजबूत होती थी कि महाराणा प्रताप का महावज़नी भाला उठा सकतीं थी।

आज तमाम तरह के कैल्शियम विटामिन्स खाने के बाद भी जवानी में ही हड्डियां कीर्तन करने लगती हैं।


🚩जिस मौसम में देशी टमाटर मिले तो ठीक लेकिन अंडे जैसे आकार के अंग्रेजी टमाटर खाने के स्थान पर आंवले का प्रयोग आपकी सब्ज़ी को स्वादिष्ट भी बनाएगा और आपको मेडिकल माफिया के मकड़जाल से भी बाहर निकालेगा।


🚩आंवला ही एक ऐसा फल है जिसमे सब तरह के रस होते है । जैसे आंवला , खट्टा भी है मीठा भी कड़वा भी है नमकीन भी । आँवले का सनातन संस्कृति में 

 इतना महत्व है कि दीपावली के कुछ दिन बाद आँवला नवमी मनाई जाती है।


🚩आपको करना केवल इतना है कि साबुत या कटा हुआ आँवला ,बिना बच्चों और आधुनिक सदस्यों को बताए सब्ज़ी में डाल देना है। अगर आँवला साबुत डाला है तो सब्ज़ी बनने के बाद उसको ऐसे ही खा सकतें है ।


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Thursday, December 12, 2024

#MenToo: निर्दोष पुरुषों के अधिकारों की रक्षा का आंदोलन

 12 December 2024

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#MenToo: निर्दोष पुरुषों के अधिकारों की रक्षा का आंदोलन


🚩हमारे समाज में महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा को प्राथमिकता देना अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि झूठे आरोपों के सहारे निर्दोष पुरुषों को निशाना बनाया जा रहा है। यह समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि इसे #MenToo आंदोलन के रूप में पहचाना जा रहा है।


🚩अतुल का मामला: निर्दोषता पर प्रश्नचिह्न


हाल ही में अतुल का मामला #MenToo आंदोलन की प्रासंगिकता को और गहराई से उजागर करता है।

क्या हुआ था?

अतुल पर उनकी पत्नी ने घरेलू हिंसा समेत 9 केस किया और परेशान किया । 

परिणाम:

इस झूठे आरोप ने अतुल की प्रतिष्ठा, पारिवारिक जीवन और मानसिक स्वास्थ्य को गहरा नुकसान पहुंचाया। यह दिखाता है कि झूठे आरोप किस हद तक किसी निर्दोष व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर सकते हैं। महिला रक्षण के कानूनों के दुरूपयोग का यह ताजा उदहारण है |


🚩संत श्री आशारामजी बापू का मामला


🚩संत श्री आशारामजी बापू पर भी झूठे आरोप लगाए गए, जिनका उद्देश्य उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करना था।

मीडिया ट्रायल:

मीडिया ने पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग कर लोगों को गुमराह किया।

🚩अन्य निर्दोष संतों पर झूठे आरोप

1. स्वामी नित्यानंद:

झूठे आरोप और मीडिया ट्रायल के कारण उनकी प्रतिष्ठा को भारी नुकसान हुआ।

2. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर:

झूठे आतंकवाद के आरोपों ने उनके जीवन को अत्यंत कठिन बना दिया।

3. जगतगुरु कृपालु महाराज:

उनके खिलाफ भी झूठे आरोप लगाए गए, लेकिन बाद में न्यायालय ने उन्हें निर्दोष पाया।


कानून का दुरुपयोग: निर्दोषों के खिलाफ साजिश


महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून, जैसे दहेज़ और यौन उत्पीड़न के कानूनों का कई बार झूठे आरोप लगाने के लिए दुरुपयोग किया गया है।

निर्दोष व्यक्ति को जेल में डालना।

उनकी सामाजिक और मानसिक स्थिति को नुकसान पहुंचाना।

उनके परिवार और रिश्तों को तोड़ना।


🚩झूठे आरोपों के खिलाफ मानवाधिकारों की सुरक्षा


🚩कानून में सुधार की आवश्यकता है ताकि निर्दोष पुरुषों के अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके:

1. निष्पक्ष जांच:

बिना ठोस सबूत के किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने की प्रक्रिया पर रोक लगनी चाहिए।

2. झूठे आरोप लगाने वालों पर सख्त कार्रवाई:

जो लोग झूठे आरोप लगाते हैं, उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि कानून का दुरुपयोग रोका जा सके।

3. गोपनीयता का अधिकार:

जांच पूरी होने तक आरोपी का नाम और पहचान सार्वजनिक न की जाए।

4. मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य की सुरक्षा:

झूठे आरोपों के कारण पीड़ित को हुए मानसिक और सामाजिक नुकसान की भरपाई के लिए उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए।

5. मीडिया की जवाबदेही:

मीडिया को निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।

झूठी खबरें फैलाने पर मीडिया संस्थानों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

6. लिंग-निरपेक्ष कानून:

सभी के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए कानून को लिंग-निरपेक्ष बनाया जाना चाहिए।

7. मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष न्यायिक आयोग:

झूठे मामलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाए।


🚩निष्कर्ष


पुरुषों के खिलाफ झूठे आरोप यह दिखाते हैं कि महिला सुरक्षा के कानून का दुरूपयोग न हो ऐसे कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। #MenToo आंदोलन इस दिशा में समाज को जागरूक करने का प्रयास है।

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Wednesday, December 11, 2024

गीता का अद्भुत ज्ञान

 11 December 2024

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🚩गीता का अद्भुत ज्ञान

(गीता जयंती पर विशेष लेख)


🚩गीता, जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आती है, केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि जीवन जीने की अद्भुत कला सिखाने वाली प्रेरणा स्रोत है। यह वो दिव्य ज्ञान है जो भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को दिया था। गीता जयंती, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, इस दिन श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया गया था।


🚩गीता का इतिहास और महत्व


गीता का जन्म तब हुआ जब धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष चल रहा था। जब अर्जुन ने अपने धर्म और कर्तव्य को लेकर संशय व्यक्त किया, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्मा, कर्म, धर्म और मोक्ष का दिव्य ज्ञान दिया। गीता 700 श्लोकों का एक ऐसा ग्रंथ है जो हर युग और हर परिस्थिति में मानवता का मार्गदर्शन करता है।


🚩गीता के ज्ञान का सार यह है कि इंसान को अपने कर्तव्यों का पालन बिना फल की चिंता किए करना चाहिए। यह जीवन में संतुलन, समर्पण और स्थिरता का महत्व बताती है।


🚩गीता के प्रमुख उपदेश


🕉️ कर्मयोग:

श्रीकृष्ण ने कहा - “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”

इसका अर्थ है कि व्यक्ति का अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। इसलिए कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।


🕉️भक्तियोग:


श्रीकृष्ण ने भक्ति को जीवन का आधार बताया। उन्होंने कहा कि सच्चे भाव और समर्पण से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है।


🕉️ ज्ञानयोग:


गीता आत्मा और परमात्मा का भेद समझाती है। यह सिखाती है कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर।


🕉️ संतुलित जीवन का संदेश:


गीता में बताया गया है कि जीवन में संतुलन बनाना जरूरी है। न अधिक भोजन करें, न अधिक उपवास; न अधिक सोएं, न अधिक जागें।


🚩आधुनिक युग में गीता का महत्व


आज के तनावपूर्ण जीवन में गीता का ज्ञान अधिक प्रासंगिक हो गया है। यह आत्म-विश्वास, मन की स्थिरता और सही निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करती है। गीता का संदेश हर व्यक्ति को यह समझने में मदद करता है कि सच्चा सुख भौतिक चीज़ों में नहीं बल्कि आत्मा की शांति में है।


🚩संत श्री आशारामजी बापू और गीता का प्रचार


संत श्री आशारामजी बापू ने हमेशा गीता के महत्व को समाज तक पहुँचाने का कार्य किया है। बापूजी के सत्संग में गीता के श्लोकों को सरल भाषा में समझाया जाता है ताकि हर व्यक्ति इसे अपने जीवन में उतार सके। बापूजी ने गीता पाठ के लाभ बताए हैं, जैसे कि यह मन को शांत करता है, बुरे विचारों को दूर करता है और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।


🚩गीता जयंती का उत्सव


गीता जयंती पर गीता का पाठ, श्रीकृष्ण का भजन, ध्यान और दान करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन गीता के संदेशों को आत्मसात कर हम अपने जीवन को आध्यात्मिक और सार्थक बना सकते हैं।


🚩निष्कर्ष


श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा अमूल्य ग्रंथ है जो हर व्यक्ति को जीवन की सच्चाई से परिचित कराता है। गीता जयंती का दिन हमें यह याद दिलाता है कि हम अपने कर्तव्यों का पालन करें, आत्मा की शुद्धता पर ध्यान दें और भगवान के प्रति समर्पण रखें।


इस गीता जयंती पर आइए, गीता के अद्भुत ज्ञान को अपने जीवन में अपनाएँ और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हों।


“गीता का ज्ञान, जीवन का सच्चा मार्गदर्शन।”


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Tuesday, December 10, 2024

बांग्लादेश के हिंदुओं के प्रति उदासीनता पर चिंतन

 10 December 2024

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🚩बांग्लादेश के हिंदुओं के प्रति उदासीनता पर चिंतन


🚩बरेली में आज बांग्लादेश से जुड़े हिंदू सम्मेलन में उठाए गए प्रश्न और उनके मंचन की रोक ने एक गंभीर मुद्दे को सामने रखा है। यह प्रकरण दिखाता है कि हिंदुओं के प्रति संवेदनशील मुद्दों को किस तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है।


🚩निम्नलिखित बिंदु इस स्थिति पर गहराई से चिंतन के लिए प्रस्तुत हैं 


🔅भारत सरकार का विरोध दर्ज न करना:


दिल्ली स्थित बांग्लादेशी हाई कमिश्नर को बुलाकर हिंदुओं के नरसंहार पर स्पष्ट विरोध क्यों नहीं किया गया? यह चुप्पी हिंदुओं के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाती है।


🔅शरणार्थी हिंदुओं पर रोक:


अपनी जान बचाकर भारत आने वाले बांग्लादेशी हिंदुओं को भारत में प्रवेश क्यों नहीं दिया गया, जबकि रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत में घुसने की पूरी छूट है?


🔅 ढाका उच्चायोग की निष्क्रियता:


बांग्लादेश में हिंदुओं के नरसंहार के बावजूद ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग खामोश क्यों है? वह उनकी मदद के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठा रहा?


🔅 बांग्लादेश को रियायतें जारी:


बांग्लादेश को फ्री बिजली, डीजल, मशीनरी, खनिज पदार्थ, और अन्य संसाधनों की आपूर्ति जारी रखने का औचित्य क्या है, जब वहां हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे हैं?


🔅 रेल और बस सेवाएं:


भारत ने बांग्लादेश को रेल और बस सेवाएं क्यों जारी रखी हैं, जबकि वहां हिंदू समुदाय संकट में है?


🔅मुसलमानों को वीजा सुविधा:


बांग्लादेशी हिंदुओं को भारत आने से रोका जा रहा है, लेकिन बांग्लादेशी मुसलमानों को फ्री इलाज और भ्रमण के लिए वीजा क्यों जारी किया जा रहा है?


🔅भारत सरकार की चुप्पी:


बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या, लूटपाट और बलात्कार जैसी घटनाओं पर भारत सरकार क्यों खामोश है?


🚩संघ और विहिप की भूमिका पर प्रश्न:


उक्त सम्मेलन में इन मुद्दों को मंच से उठाने की अनुमति क्यों नहीं दी गई? यदि ये प्रश्न हिंदुओं के हित में हैं, तो आयोजक इन बिंदुओं को सार्वजनिक चर्चा से क्यों बचा रहे हैं?


🚩निष्कर्ष: 

इस पूरे मामले से स्पष्ट है कि हिंदुओं के साथ हो रहे अन्याय को लेकर सरकार और समाज के कुछ हिस्सों में गंभीरता की कमी है। यह स्थिति चिंतन का विषय है कि कौन किसे ठग रहा है और किस उद्देश्य से हिंदुओं के अधिकारों और सुरक्षा की उपेक्षा की जा रही है।


गिरधारीलाल गोयल


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Monday, December 9, 2024

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार: एक गंभीर समस्या

 09 December 2024

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🚩बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार: एक गंभीर समस्या


🚩बांग्लादेश, जो कभी भारत का हिस्सा था, 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। इस देश ने अपने संविधान में धर्मनिरपेक्षता का वादा किया, लेकिन समय के साथ वहां हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और उत्पीड़न की घटनाएँ बढ़ती गईं। आज यह समस्या न केवल हिंदुओं की पहचान को संकट में डाल रही है, बल्कि मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक स्पष्ट उदाहरण बन चुकी है।


🚩बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति


🔅 संख्या में गिरावट:


🔸बांग्लादेश में कभी हिंदू समुदाय कुल जनसंख्या का 22% था, जो अब घटकर लगभग 8% रह गया है।


🔸लगातार हो रहे अत्याचार, जबरन धर्मांतरण, और सुरक्षा की कमी के कारण हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा।


🔅 संपत्ति और मंदिरों पर हमले:


🔸 हिंदू परिवारों की ज़मीन और संपत्ति जबरन कब्जा कर ली जाती है।


🔸मंदिरों, मूर्तियों और पूजा स्थलों को तोड़ने और अपवित्र करने की घटनाएँ आम हो चुकी हैं।


🔸दुर्गा पूजा और अन्य हिंदू त्योहारों के दौरान हिंसा की घटनाएँ अक्सर देखने को मिलती हैं।


🔅 महिलाओं पर अत्याचार:


🔸हिंदू महिलाओं को जबरन अगवा कर उनका धर्मांतरण और विवाह कराया जाता है।


🔸 न्याय की कमी और प्रशासन की निष्क्रियता के कारण पीड़ित परिवारों को कोई मदद नहीं मिलती।


🔅धार्मिक असहिष्णुता:


🔸सोशल मीडिया पर हिंदू धर्म के खिलाफ भड़काऊ सामग्री फैलाकर साम्प्रदायिक हिंसा भड़काई जाती है।


🔸हिंदुओं पर ईशनिंदा के झूठे आरोप लगाकर उनकी जान-माल को नुकसान पहुँचाया जाता है।


🚩हिंदुओं को निशाना बनाए जाने के कारण


🔅 धर्म आधारित राजनीति:


🔸 बांग्लादेश में कुछ राजनीतिक दल धर्म के आधार पर अपनी सत्ता मजबूत करते हैं, जिससे अल्पसंख्यकों के खिलाफ असहिष्णुता बढ़ती है।


🔅कट्टरपंथी संगठनों का प्रभाव:


🔸कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों का प्रभाव बढ़ने से हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं।


🔸ये संगठन हिंदू धर्म को खत्म करने और जबरन धर्मांतरण करने का प्रयास करते हैं।


🔅 न्यायिक प्रणाली की कमजोरी:


🔸हिंसा और अन्याय के मामलों में हिंदुओं को न्याय नहीं मिलता।


🔸पुलिस और प्रशासन अक्सर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहते हैं।


🔅सांस्कृतिक और धार्मिक असहिष्णुता:


🔸बांग्लादेश में हिंदू संस्कृति और परंपराओं को नष्ट करने का प्रयास किया जाता है।


🔸 हिंदुओं के धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों को रोकने और उन पर हमला करने की घटनाएँ बढ़ रही हैं।


🚩मानवाधिकारों का उल्लंघन


बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही घटनाएँ मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन का प्रतीक हैं।


🔅 अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता:


🔸संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन इस समस्या पर कोई ठोस कदम उठाने में असफल रहे हैं।


🔸भारत जैसे पड़ोसी देश ने भी कई बार इस मुद्दे पर चुप्पी साधी है।


🔅 मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया:


🔸मुख्यधारा मीडिया इन घटनाओं को अक्सर नजरअंदाज कर देता है।


🔸अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इन घटनाओं की कवरेज न के बराबर है।


🚩समाधान और जागरूकता की आवश्यकता


🔅 अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना:


🔸भारत और अन्य देशों को संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वह हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे।


🔅धर्मनिरपेक्षता की पुनर्स्थापना:


🔸बांग्लादेश सरकार को अपने संविधान में दर्ज धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को प्रभावी तरीके से लागू करना चाहिए।


🔅सामाजिक और धार्मिक जागरूकता:


🔸 हिंदू समुदाय को संगठित होकर अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए आवाज उठानी चाहिए।


🔸 सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म का उपयोग कर इन घटनाओं की सच्चाई को सामने लाना चाहिए।


🔅मंदिर और संपत्ति की सुरक्षा:


🔸मंदिरों और हिंदू संपत्तियों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाए जाने चाहिए।


🔅भारत का हस्तक्षेप:


🔸भारत को अपने पड़ोसी देश के हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।


🚩निष्कर्ष


बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार केवल एक धार्मिक समूह पर हमला नहीं हैं, बल्कि यह मानवता और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों पर हमला है। इसे रोकने के लिए समाज को जागरूक होना होगा और सरकारों को ठोस कदम उठाने होंगे। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह समझना होगा कि यदि इन घटनाओं को रोका नहीं गया, तो यह पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।


“हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करना सिर्फ एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज का दायित्व है।”

“सत्यमेव जयते।”


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Sunday, December 8, 2024

हिंदुओं और धर्मगुरुओं को निशाना बनाए जाने का कारण: समाज जागरूकता और समाधान

 08 December 2024

https://azaadbharat.org


🚩हिंदुओं और धर्मगुरुओं को निशाना बनाए जाने का कारण: समाज जागरूकता और समाधान


🚩भारत और पड़ोसी देशों में हिंदू समाज और उनके धर्मगुरुओं को निशाना बनाए जाने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। यह केवल किसी धर्मगुरु पर व्यक्तिगत हमला नहीं है, बल्कि पूरे समाज, उसकी संस्कृति और उसके मूल्यों पर आघात है। इन घटनाओं का उद्देश्य समाज को भटकाना, विभाजित करना और उसकी आत्मिक शक्ति को कमजोर करना है। इस लेख में हम इन मुद्दों का विश्लेषण करेंगे और समाधान के मार्ग पर चर्चा करेंगे।


🚩धर्मगुरुओं और हिंदू समाज को निशाना बनाए जाने की साजिश


हिंदू धर्मगुरुओं को बदनाम करने और उनके कार्यों को रोकने के लिए कई स्तरों पर साजिशें रची जाती हैं।


🔅झूठे आरोप और कानूनी मामले:


🔹धर्मगुरुओं को झूठे मामलों में फंसाकर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया जाता है।


🔹 बिना ठोस सबूत के आरोप लगाकर उन्हें बदनाम किया जाता है।


🔅मीडिया ट्रायल और नकारात्मक प्रचार:


🔹मुख्यधारा मीडिया में धर्मगुरुओं के खिलाफ नकारात्मक और झूठे प्रचार किए जाते हैं।


🔹मीडिया का उद्देश्य समाज में उनके प्रति गलत धारणा बनाना और उनके अनुयायियों को भ्रमित करना होता है।


🔅 धर्मांतरण विरोध और उनके प्रति आक्रोश:


🔹धर्मगुरु धर्मांतरण के खिलाफ आवाज उठाते हैं, जो कई ताकतों के लिए बाधा बनती है।


🔹उनकी इस भूमिका के कारण उन्हें निशाना बनाया जाता है।


🔅 राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव को खत्म करने का प्रयास:


🔹धर्मगुरु समाज को संगठित करने और जागरूक करने का कार्य करते हैं। यह कई राजनीतिक और विदेशी ताकतों के लिए चुनौती बनता है।


🚩 धर्मगुरुओं का समाज में योगदान


धर्मगुरु न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए सेवा कार्य भी करते हैं।


🔅आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा:


🔹धर्मगुरु समाज को नैतिकता, संस्कार और जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।


🔹योग, ध्यान और साधना शिविरों के माध्यम से लाखों लोगों को आत्मिक बल प्रदान करते हैं।


🔅 धर्मांतरण रोकने का प्रयास:


🔹धर्मगुरु समाज में जागरूकता फैलाकर धर्मांतरण को रोकने का कार्य करते हैं।


🔹उनके प्रयासों से समाज अपनी संस्कृति और धर्म से जुड़ा रहता है।


🔅 पर्यावरण संरक्षण और गौ रक्षा:


🔹 धर्मगुरुओं ने पर्यावरण और गौ रक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कार्य किए हैं।


🔹वृक्षारोपण अभियान और गौशालाएँ इनके महत्वपूर्ण कार्यों में शामिल हैं।


🔅गरीबों और पिछड़ों के लिए सेवा कार्य:


🔹गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा शिविर, शिक्षा संस्थान और भोजन वितरण की व्यवस्था करते हैं।


🔹 आपदा के समय समाज की सहायता के लिए हमेशा आगे रहते हैं।


🚩हिंदू समाज को कमजोर करने का प्रयास


हिंदू समाज को कमजोर करने के लिए कई बाहरी और आंतरिक ताकतें सक्रिय रहती हैं।


🔅सांस्कृतिक एकता को तोड़ने का प्रयास:


🔹धर्मगुरुओं को बदनाम कर समाज की एकता को कमजोर करने की कोशिश की जाती है।


🔹समाज में विभाजन पैदा करना इन ताकतों का मुख्य उद्देश्य होता है।


🔅धर्मांतरण और विदेशी एजेंडा:


🔹धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए धर्मगुरुओं को निशाना बनाया जाता है।


🔹 समाज को अपनी जड़ों से अलग करने के लिए साजिशें रची जाती हैं।


🔅मीडिया और बाहरी ताकतों का दुरुपयोग:


🔹मीडिया के माध्यम से झूठी खबरें फैलाकर हिंदू धर्म और उसके प्रतिनिधियों को बदनाम किया जाता है।


🔹विदेशी ताकतों का उद्देश्य भारतीय संस्कृति को कमजोर करना है।


🚩 समाज में जागरूकता की आवश्यकता


हिंदू समाज और धर्मगुरुओं पर हो रहे हमलों का सामना करने के लिए समाज को जागरूक और संगठित होना जरूरी है।


🔅धर्मगुरुओं के योगदान का प्रचार:


🔹 धर्मगुरुओं के समाज के प्रति योगदान को लोगों तक पहुँचाना चाहिए।


🔹सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों का उपयोग कर सच्चाई को उजागर करें।


🔅मीडिया ट्रायल के खिलाफ आवाज उठाना:


🔹नकारात्मक प्रचार और झूठी खबरों का कानूनी और सामाजिक रूप से विरोध करना।

🔹सही जानकारी को साझा कर समाज को भ्रमित होने से बचाएँ।


🔅सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों का समर्थन:


🔹धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लेकर समाज को संगठित करें।


🔹अपनी परंपराओं और मूल्यों को बचाने के लिए युवाओं को प्रेरित करें।


🔅धर्म और संस्कृति का अध्ययन:


🔹 युवाओं को धर्म, संस्कृति और इतिहास की सही जानकारी देकर उन्हें जागरूक बनाएँ।


🔅धर्मांतरण के खिलाफ संगठित प्रयास:


🔹धर्मांतरण रोकने के लिए समाज में जागरूकता अभियान चलाएँ।

🔹जरूरतमंदों की सहायता कर उन्हें धर्मांतरण से बचाएँ।


🚩निष्कर्ष


धर्मगुरुओं और हिंदू समाज पर हो रहे हमले केवल एक धर्म या व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरी संस्कृति और उसकी जड़ों पर हमला है। समाज को एकजुट होकर इन साजिशों का सामना करना होगा। धर्मगुरुओं के कार्यों का प्रचार, सत्य की रक्षा और समाज में जागरूकता फैलाकर ही हम अपनी संस्कृति और धर्म को बचा सकते हैं।


“धर्म और संस्कृति की रक्षा हर भारतीय का कर्तव्य है।”

“सत्यमेव जयते।”


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Saturday, December 7, 2024

Ramayana: Not imagination, but real history of India

07 December 2024

https://azaadbharat.org


🚩रामायण: कल्पना नहीं, बल्कि भारत का वास्तविक इतिहास


🚩रामायण भारतीय संस्कृति और सभ्यता का आधारभूत ग्रंथ है। इसे पाश्चात्य दृष्टिकोण से “मिथक” कहा गया, लेकिन खगोलीय गणनाओं, पुरातात्विक खोजों और ऐतिहासिक संदर्भों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि रामायण केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि ऐतिहासिक घटना है। 

यह लेख रामायण को ऐतिहासिक दृष्टि से समझने के प्रमाण प्रस्तुत करता है।


🚩खगोलीय प्रमाण


वाल्मीकि रामायण में विभिन्न घटनाओं के दौरान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का उल्लेख किया गया है। यह विवरण खगोलीय सटीकता के साथ मेल खाते हैं और ऐतिहासिक काल का निर्धारण करने में मदद करते हैं।


🟡 श्रीराम का जन्म:


रामायण के अनुसार, श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ।


 🔸चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में था।

 🔸सूर्य मेष राशि में था।

 🔸 पांच ग्रह उच्च स्थिति में थे (गुरु, शनि, मंगल, शुक्र और बुध)।


आधुनिक खगोलशास्त्रियों ने नासा के सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके इन स्थितियों का अध्ययन किया। 

डॉ. पुष्करण और अन्य खगोलशास्त्रियों ने पाया कि यह स्थिति लगभग 5114 ईसा पूर्व को बनी थी। 

इसी प्रकार, अन्य घटनाओं जैसे भरत मिलाप, रावण वध, और सीता हरण के समय भी ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति को खगोलीय सॉफ्टवेयर से सत्यापित किया गया है।


🟡 अन्य घटनाएँ:


रामायण में जब श्रीराम और लक्ष्मण रावण से युद्ध के लिए समुद्र किनारे पहुंचे, तब चंद्र ग्रहण का उल्लेख है। यह स्थिति भी खगोलीय सॉफ्टवेयर द्वारा सत्यापित हुई है।


🚩पुरातात्विक प्रमाण


🟡 रामसेतु:


भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में स्थित यह पुल, जिसे “आदम्स ब्रिज” भी कहा जाता है, रामायण में वर्णित सेतुबंध राम का प्रमाण है।


🔹 नासा के उपग्रह चित्रों में यह पुल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।


🔹 भूवैज्ञानिकों के अनुसार, यह मानव निर्मित संरचना है और इसकी आयु लगभग 7000 वर्ष है।


🔹समुद्रशास्त्रियों का मानना है कि पुल का निर्माण उस समय संभव था जब समुद्र का स्तर वर्तमान से कम था।


🟡 अयोध्या में उत्खनन:


भारतीय पुरातत्व विभाग ने अयोध्या में किए गए उत्खननों में रामायण में वर्णित महलों और संरचनाओं के अवशेष पाए।

🔹 उत्खनन में प्राचीन मंदिर, पत्थर की नक्काशी, और पुराने नगर के चिह्न मिले।


🔹इन अवशेषों की आयु लगभग 7000 वर्ष है।


🟡लंका में प्रमाण:


श्रीलंका में त्रिकुट पर्वत (वर्तमान में रावण के किले के रूप में मान्यता प्राप्त) और अशोक वाटिका (जहाँ सीता जी को रखा गया था) जैसे स्थलों का उल्लेख रामायण में मिलता है। ये स्थल आज भी स्थानीय संस्कृति और इतिहास का हिस्सा हैं।


🚩सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रमाण


रामायण का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में भी इसका गहरा प्रभाव है।


🟡 थाईलैंड: 


थाईलैंड की रामलीला (रामाकियन) रामायण पर आधारित है।


🟡इंडोनेशिया: 


बाली द्वीप में रामायण का व्यापक प्रचार-प्रसार है।


🟡 कम्बोडिया:


 अंकोरवाट मंदिर परिसर में रामायण की घटनाओं को पत्थरों पर उकेरा गया है।


🟡मलेशिया: 


यहाँ भी रामायण की कहानियाँ पीढ़ी दर पीढ़ी प्रचलित हैं।


इतने अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में रामायण का प्रभाव इस बात का प्रमाण है कि यह केवल धार्मिक कथा नहीं, बल्कि ऐतिहासिक सत्य है।


🚩वैज्ञानिक दृष्टिकोण


रामायण में वर्णित तकनीक और घटनाएँ विज्ञान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।


🟡 पुष्पक विमान:


रामायण में पुष्पक विमान का वर्णन मिलता है, जो आधुनिक समय के विमानों के समान है। यह उन्नत तकनीक का प्रमाण देता है।


🟡संजय की दिव्य दृष्टि:


महाभारत की तरह रामायण में भी दिव्य दृष्टि का उल्लेख है, जो आज के लाइव ब्रॉडकास्ट या सैटेलाइट तकनीक के समान प्रतीत होती है।


🚩संतों और विद्वानों की दृष्टि


संत श्री आशारामजी बापू ने रामायण को केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि ऐतिहासिक दस्तावेज माना। बापूजी ने अपने प्रवचनों में खगोलशास्त्र, पुरातत्व और सांस्कृतिक प्रमाणों के माध्यम से यह समझाया कि रामायण भारत का वास्तविक इतिहास है। उनके अनुसार, भारतीय परंपरा में “इतिहास” का अर्थ है “यह हुआ था,” और रामायण उसी श्रेणी में आता है।

भारत के अनेक संत जैसे मोरारी बापू, सुधांशु महाराज, आदि अपने सत्संग में इसका उल्लेख करते है । 


🚩निष्कर्ष


रामायण के खगोलीय, पुरातात्विक, सांस्कृतिक, और वैज्ञानिक प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास का सटीक दस्तावेज है। रामायण की घटनाएँ हमारे गौरवशाली अतीत का हिस्सा हैं और इसे “मिथक” कहना भारतीय सभ्यता के साथ अन्याय है। हमें रामायण को समझने और इसके ऐतिहासिक सत्य को स्वीकार करने की आवश्यकता है।


जय श्री राम!


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Friday, December 6, 2024

साँप-सीढ़ी: प्राचीन भारत में 13वीं शताब्दी में बनाया गया विशेष खेल

 06 December 2024

https://azaadbharat.org


🚩साँप-सीढ़ी: प्राचीन भारत में 13वीं शताब्दी में बनाया गया विशेष खेल



🚩भारत की सांस्कृतिक धरोहर न केवल अपने धार्मिक ग्रंथों, परंपराओं और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके खेल भी हमारी सामाजिक और शैक्षिक संरचना का एक अहम हिस्सा रहे हैं। इनमें से एक अद्भुत खेल था साँप-सीढ़ी, जिसे प्राचीन भारत में 13वीं शताब्दी के आसपास विकसित किया गया था। यह खेल न केवल मनोरंजन का स्रोत था, बल्कि जीवन के गहरे मूल्य और नैतिक शिक्षाएं सिखाने का एक प्रभावी माध्यम भी था। आइए, इस खेल के इतिहास और जीवन में इसके योगदान पर एक दिलचस्प दृष्टिकोण से चर्चा करें।


🚩साँप-सीढ़ी: खेल से जीवन के गहरे मूल्य तक


साँप-सीढ़ी का खेल, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, सीढ़ियों और साँपों के चित्रण के माध्यम से खेला जाता है। यह खेल मुख्य रूप से एक बोर्ड पर खेला जाता था, जिसमें खिलाड़ी एक पंक्ति में खड़ा होकर अपनी गिनती के आधार पर साँपों और सीढ़ियों का सामना करते हैं। जहाँ सीढ़ियाँ ऊपर जाने का प्रतीक हैं, वहीं साँप नीचे गिरने का संकेत हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह खेल सिर्फ एक मनोरंजन का साधन नहीं था, बल्कि यह जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का सशक्त माध्यम था?


🚩जीवन के मूल्य और शिक्षा


🎲कर्म का फल:


 इस खेल में सीढ़ियाँ और साँप जीवन के कर्मों का प्रतीक हैं। जहाँ सीढ़ियाँ अच्छे कर्मों के परिणामस्वरूप ऊपर चढ़ने का प्रतीक हैं, वहीं साँप बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप नीचे गिरने का संकेत हैं। यह हमें यह समझाता है कि हमारे अच्छे और बुरे कर्म ही हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं। जैसे-जैसे हम अपने जीवन में सही मार्ग पर चलते हैं, हमें सीढ़ियाँ चढ़ने का अवसर मिलता है, और जैसे ही हम गलत रास्ते पर चलते हैं, हमें गिरावट का सामना करना पड़ता है।


🎲सच्चाई और ईमानदारी: 


खेल में सीढ़ियाँ एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने का प्रतीक हैं, जैसे जीवन में सच्चाई और ईमानदारी से काम करने से सफलता मिलती है। यह खेल हमें यह सिखाता है कि सच्चाई का पालन करने से जीवन में अवरोधों को पार किया जा सकता है और हम ऊँचाई पर पहुँच सकते हैं। इसे एक तरह से जीवन में नैतिकता और ईमानदारी को बनाए रखने की प्रेरणा भी माना जा सकता है।


🎲 संयम और धैर्य: 


जैसे खेल में कभी-कभी अचानक साँप के द्वारा नीचे गिरने का सामना करना पड़ता है, वैसे ही जीवन में भी हमें कठिनाइयों और अड़चनों का सामना करना पड़ता है। इस खेल से यह सिखाया जाता है कि जीवन में धैर्य और संयम बनाए रखना जरूरी है। गिरने के बाद भी हमें उठना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।


🎲 सकारात्मक दृष्टिकोण: 


इस खेल में, सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ने का प्रतीक सकारात्मक सोच और कठिनाइयों को पार करने की भावना है। यह हमें यह सिखाता है कि जीवन में चाहे जो भी मुश्किलें आएं, हमें सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर आगे बढ़ते रहना चाहिए। जीवन में आने वाली समस्याएँ केवल अस्थायी होती हैं, और सही सोच और प्रयास से हम उन्हें पार कर सकते हैं।


🎲 धर्म और नैतिकता:

 जीवन में धर्म और नैतिकता का पालन भी इस खेल के माध्यम से सिखाया जाता है। जैसा कि सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ने का प्रतीक होती हैं, वैसे ही धर्म का पालन करने से जीवन में आत्मिक शांति और उन्नति मिलती है। यह खेल हमें बताता है कि नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने से ही हम जीवन में स्थिरता और सफलता प्राप्त कर सकते हैं।


🚩साँप-सीढ़ी का सामाजिक और शैक्षिक महत्व


प्राचीन भारत में साँप-सीढ़ी का खेल बच्चों को जीवन के मूल्य सिखाने के साथ-साथ उनके मानसिक विकास में भी मदद करता था। यह खेल एक तरह से शैक्षिक गतिविधि था, जिसमें बच्चों को आचार-व्यवहार, नैतिकता, और धर्म के महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाए जाते थे। बच्चों को यह समझाने के लिए कि जीवन में कभी भी सुख और दुख का क्रम बदल सकता है, यह खेल एक आदर्श उदाहरण था।


इसके अलावा, इस खेल का उपयोग बड़ों द्वारा बच्चों को सही मार्ग पर चलने के लिए भी किया जाता था। यह बच्चों को यह समझने में मदद करता था कि जीवन में सफलता और असफलता दोनों ही अस्थायी हैं, और हमें अपने कर्मों के परिणामों के लिए तैयार रहना चाहिए।


🚩निष्कर्ष


साँप-सीढ़ी का खेल प्राचीन भारत में एक मात्र मनोरंजन का साधन नहीं था, बल्कि यह जीवन के गहरे नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य सिखाने का एक प्रभावी माध्यम था। 


इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में अच्छे कर्मों का फल ऊँचाई की ओर होता है, जबकि बुरे कर्मों का परिणाम हमें गिरावट की ओर ले जाता है। 


यह खेल बच्चों को जीवन में सही मार्ग पर चलने, नैतिकता बनाए रखने, और हर कठिनाई का सामना धैर्य और संयम से करने की प्रेरणा देता है। इस प्रकार, साँप-सीढ़ी का खेल न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति का हिस्सा था, बल्कि आज भी यह हमें जीवन के मूल्य और शिक्षाओं का एक अद्भुत संदेश देता है।


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भारत की शास्त्रीय भाषाएँ और उनका इतिहास: एक दिलचस्प यात्रा

 05 December 2024

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🚩भारत की शास्त्रीय भाषाएँ और उनका इतिहास: एक दिलचस्प यात्रा


भारत, एक ऐसा देश है जिसकी सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर बेहद विविध और समृद्ध है। यहाँ की शास्त्रीय भाषाएँ भारतीय संस्कृति, साहित्य और दर्शन के मूल आधार रही हैं। इन भाषाओं का इतिहास न केवल प्राचीन है, बल्कि हर एक भाषा की अपनी अद्भुत कहानी है। आइए, हम आपको भारत की शास्त्रीय भाषाओं की रोमांचक यात्रा पर ले चलते हैं, जहाँ हर भाषा में छुपा है एक ऐतिहासिक रहस्य।


🚩संस्कृत: एक अद्भुत धरोहर


संस्कृत, जो न केवल भारत की सबसे प्राचीन भाषा मानी जाती है, बल्कि यह पूरे दक्षिण एशिया की एक बुनियाद भी है। संस्कृत में लिखा गया वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, और भगवद गीता जैसी कृतियाँ आज भी भारतीय समाज के मूल्य और विचारों को आकार देती हैं। यह भाषा लगभग 3,500 साल पुरानी मानी जाती है और इसे भारतीय सभ्यता की जड़ कहा जाता है। संस्कृत में लिखी धार्मिक ग्रंथों की गूढ़ बातें और आध्यात्मिक ज्ञान, विज्ञान और गणित से जुड़े सवालों का समाधान करने के लिए भी उपयोगी हो सकती हैं।


🚩तमिल: प्राचीन संगम साहित्य की धारा


तमिल भाषा, लगभग 2,500 साल पुरानी, न केवल दक्षिण भारत की सबसे महत्वपूर्ण भाषा है, बल्कि यह प्राचीनतम और समृद्धतम साहित्यिक परंपराओं में से एक है। तमिल संगम साहित्य ने भारतीय समाज के रीति-रिवाज, युद्ध, प्रेम, राजनीति, और धर्म को अभिव्यक्त किया है। तमिल में लिखी गई काव्य रचनाएँ आज भी भारतीय समाज के विचारों को जागृत करती हैं।


🚩तेलुगु: दक्षिण भारत का काव्य संग्रह


तेलुगु भाषा की पहचान उसकी महान काव्य और साहित्यिक धरोहर के कारण है, जो 1,000 साल से भी अधिक पुरानी मानी जाती है। तेलुगु साहित्य में महान काव्य रचनाएँ, धार्मिक ग्रंथ और उपदेश मिलते हैं, जो इस भाषा को भारत के साहित्यिक मानचित्र पर एक अहम स्थान दिलाते हैं। तेलुगु साहित्य की काव्य रचनाएँ न केवल एक लोक कला की तरह, बल्कि हमारे समाज के हर पहलू को उजागर करती हैं।


🚩कन्नड़: संगीत और साहित्य की सशक्त पहचान


कन्नड़ भाषा की परंपरा 1,500 साल से भी अधिक पुरानी है। यह भाषा दक्षिण भारत में संस्कृति, कला और धर्म के सभी पहलुओं से जुड़ी हुई है। कन्नड़ में लिखी गई काव्य रचनाएँ, जैसे कि “कविराजमार्ग” और “रघुवंश” जैसे महाकाव्य, आज भी साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। कन्नड़ भाषा में सांगीतिक काव्य रचनाएँ भी बड़े पैमाने पर लिखी गईं हैं, जो भारतीय संगीत के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुईं।


🚩मलयालम: केरल की सांस्कृतिक धरोहर


मलयालम, एक और शास्त्रीय भाषा, जिसकी जड़ें 1,000 साल पुरानी हैं, दक्षिण भारत के केरल राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को बयां करती है। मलयालम साहित्य में महान कवियों द्वारा रचित ग्रंथ और गीत भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का अहम हिस्सा रहे हैं। मलयालम की काव्यशास्त्र परंपरा ने भारतीय साहित्य को न केवल समृद्ध किया, बल्कि यह भारतीय फिल्म उद्योग को भी प्रभावित किया।


🚩ओडिया: ओडिशा की धार्मिक और साहित्यिक पहचान


ओडिया भाषा की इतिहास में गहरी जड़ें हैं, और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा लगभग 1,000 साल पुरानी है। ओडिया काव्य और धार्मिक ग्रंथ भगवान जगन्नाथ के भक्ति साहित्य से जुड़ी हुई हैं। ओडिया साहित्य में उपनिषदों और वेदों से प्रभावित कई धार्मिक ग्रंथ पाए जाते हैं, जो भारतीय धर्म और संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।


🚩पाली और प्राकृत: बौद्ध और जैन धर्म का संवाहक


पाली और प्राकृत भाषाएँ बौद्ध और जैन धर्म के धार्मिक ग्रंथों के लिए प्रसिद्ध हैं। पाली, जिसे बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध ने इस्तेमाल किया, लगभग 2,500 साल पुरानी है, जबकि प्राकृत भी एक प्राचीन भाषा है जो जैन धर्म के ग्रंथों में प्रयुक्त होती थी। इन प्राचीन भाषाओं में छुपा धार्मिक और दार्शनिक ज्ञान आज भी भारतीय समाज में जीवित है।


🚩असमिया, बांग्ला, और मराठी: भारतीय साहित्य के अनमोल रत्न


असमिया, बांग्ला और मराठी भाषाएँ भारतीय साहित्य के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इन भाषाओं में लिखी गई रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये भारतीय समाज के जीवन, संघर्ष और संस्कृति को भी दर्शाती हैं। बांग्ला साहित्य में रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे महान कवि ने भारतीय साहित्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।


🚩निष्कर्ष: शास्त्रीय भाषाओं का महत्व


भारत की शास्त्रीय भाषाएँ न केवल भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास की धरोहर हैं, बल्कि ये हमें यह भी समझाती हैं कि भाषा का विकास किस तरह से समाज के हर पहलू को प्रभावित करता है। हर भाषा की अपनी एक विशेषता है और उनका साहित्य हमें हमारे अतीत, समाज और धर्म के बारे में गहरे ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करता है। 


इन शास्त्रीय भाषाओं की यात्रा पर जाने और भारतीय सभ्यता के अनमोल रत्नों को फिर से जीवित करने के लिए हमें उनके संरक्षण और प्रचार-प्रसार की दिशा में कदम उठाने चाहिए। 


इन भाषाओं के संरक्षण से हम भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर को बचा सकते हैं और अपने भविष्य के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर सकते हैं।


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