Saturday, August 31, 2024

जानिए 12 वर्ष तक लगातार त्रिफला खाने के लाभ

 1 सितम्बर 2024

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🚩जानिए 12 वर्ष तक लगातार त्रिफला खाने के लाभ


🚩त्रिफला एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसमें हरड़, बहेड़ा और आंवला के फल शामिल होते है। आयुर्वेद के अनुसार,त्रिफला का सेवन शरीर की तीनों दोषों—वात, पित्त और कफ—को संतुलित करने में सहायक होता है। त्रिफला के निरंतर सेवन से शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है और इसे दीर्घकालिन स्वास्थ्य लाभ के लिए अत्याधिक प्रभावी माना गया है।


 🚩 त्रिफला का महत्व और लाभ


🚩त्रिफला के बारे में कहा जाता है कि:हरड़,बहेड़ा,आंवला घी शक्कर संग खाए,हाथी दाबे कांख में और चार कोस ले जाए।"


🚩यह कहावत त्रिफला के चमत्कारिक प्रभावों को दर्शाती है। इसका मतलब है कि त्रिफला का सेवन करने से व्यक्ति में इतनी ऊर्जा और ताकत आती है कि वह हाथी को भी अपनी कांख में दबाकर चार कोस (1 कोस = 3-4 किमी) चल सकता है।


🚩 त्रिफला के सेवन के नियम और विधियां 

1. सेवन विधि: त्रिफला का सेवन सुबह खाली पेट ताजे पानी के साथ करना चाहिए। सेवन के बाद एक घंटे तक कुछ भी न खाएं और न पिएं। इसके अलावा, ऋतु के अनुसार त्रिफला के साथ अलग-अलग चीजें मिलाकर सेवन करने की सलाह दी जाती है:

   - बसंत ऋतु (मार्च - मई): त्रिफला को शहद के साथ मिलाकर लें।

   - ग्रीष्म ऋतु (मई - जुलाई): त्रिफला के साथ गुड़ मिलाकर सेवन करें।

   - वर्षा ऋतु (जुलाई - सितम्बर): त्रिफला के साथ सैंधा नमक मिलाकर लें।

   - शरद ऋतु (सितम्बर - नवम्बर): त्रिफला के साथ देशी खांड मिलाकर लें।

   - हेमंत ऋतु (नवम्बर - जनवरी): त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

   - शिशिर ऋतु (जनवरी - मार्च):त्रिफला के साथ पीपल छोटी का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।


🚩2. मात्रा का निर्धारण: त्रिफला की मात्रा का निर्धारण उम्र के अनुसार किया जाता है। जितने वर्ष की उम्र है,उतने रत्ती त्रिफला का सेवन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आपकी उम्र 50 वर्ष है, तो 50 x 0.12 = 6 ग्राम त्रिफला लेना चाहिए। 


🚩 त्रिफला का सेवन करने से मिलने वाले लाभ:


- पहला वर्ष: शरीर की सुस्ती दूर होती है।

- दूसरा वर्ष: सभी रोगों का नाश होता है।

- तीसरा वर्ष: नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

- चौथा वर्ष: चेहरे की सुंदरता में निखार आता है।

- पांचवां वर्ष: बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होता है।

- छठा वर्ष: शरीर में बल बढ़ता है।

- सातवां वर्ष: सफेद बाल काले होने लगते है।

- आठवां वर्ष: शरीर यौवन शक्ति से परिपूर्ण होता है।

- नवां वर्ष: शरीर में दिव्य गुणों का विकास होता है।

- दसवां वर्ष: देवी सरस्वती का वास कंठ में होता है।

- ग्यारहवां और बारहवां वर्ष: वचन सिद्ध होते है।


 🚩त्रिफला के विभिन्न प्रयोग:


- नेत्र-प्रक्षालन: एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को पानी में भिगोकर रखें और सुबह उस पानी से आँखें धो लें। इससे आँखों की रोशनी में सुधार होता है।

- कुल्ला करना: त्रिफला का पानी सुबह कुल्ला करने के बाद मुंह में रखने से दांत और मसूड़े मजबूत रहते है।

- वजन कम करने के लिए: त्रिफला के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।


🚩सावधानियां:

- त्रिफला का सेवन दुर्बल, कृश व्यक्ति, गर्भवती स्त्री, और नए बुखार में नहीं करना चाहिए।

- त्रिफला का सेवन करते समय दी गई मात्रा का सख्ती से पालन करें। अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में विकार उत्पन्न हो सकते है।


🚩 स्वस्थ जीवन के लिए सुझाव:


- रिफाइन्ड नमक, तेल, शक्कर, और मैदा का सेवन न करें।

- प्राकृतिक भोजन और शुद्ध पानी का सेवन करें।

- आध्यात्मिकता और ध्यान का अभ्यास करें।

- अपने आहार और दिनचर्या में संतुलन बनाए रखें।


🚩त्रिफला का नियमित और सही तरीके से सेवन करने से आप न केवल विभिन्न बीमारियों से बच सकते है,बल्कि दीर्घकालिन स्वास्थ्य और सुंदरता भी प्राप्त कर सकते है। आयुर्वेद का यह अनमोल उपहार आपके जीवन को नई ऊर्जा और स्वास्थ्य से भर देगा।


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Friday, August 30, 2024

बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश का अनोखा मंदिर

 31 August 2024

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🚩बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश का अनोखा मंदिर


🚩बिजली महादेव मंदिर, हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत कुल्लू शहर में स्थित एक प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर है। यह मंदिर व्यास और पार्वती नदियों के संगम के पास, ऊंचे पर्वत की चोटी पर स्थित है, जो भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 


 🚩कुल्लू घाटी की मान्यता और पौराणिक कथा:

कुल्लू घाटी की मान्यता के अनुसार, यह घाटी एक विशालकाय सांप के रूप में मानी जाती है। कहा जाता है कि इस विशालकाय सांप का वध भगवान शिव ने किया था। उसी स्थान पर भगवान शिव का यह मंदिर बना है, जिसे बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। 


 🚩शिवलिंग पर गिरती है आकाशीय बिजली:

इस मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहां के शिवलिंग पर हर 12 साल में एक बार भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। मान्यता है कि यह आकाशीय बिजली भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग पूरी तरह खंडित हो जाता है। हाल ही में, दो साल पहले ही यहां बिजली गिरी थी, जिससे शिवलिंग टूट गया था, लेकिन इस घटना में कभी कोई जनहानि नहीं होती।


 🚩खंडित शिवलिंग की पुनर्स्थापना:

इस मंदिर के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़ों को इकट्ठा करते है और मक्खन के साथ उन्हें जोड़ते है। कुछ महीनों के बाद, शिवलिंग फिर से ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है और कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने शिवलिंग के स्वरूप में आ जाती है। इस प्रक्रिया को देखकर लगता है जैसे भगवान शिव स्वयं अपनी पिंडी को फिर से जीवित कर रहे है। इस अनोखे चमत्कार के कारण यहां के निवासियों ने भगवान शिव को "मक्खन महादेव" का नाम भी दिया है। 


 🚩भक्तों के लिए आस्था और रोमांच का केंद्र:

बिजली महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 3 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है, जो कि घने जंगलों और सुंदर पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरती है। इस यात्रा के दौरान, भक्तों को प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत अनुभव मिलता है। मंदिर के पास से घाटी और नदियों का नज़ारा बेहद मनमोहक होता है। 


 🚩भक्तों की आस्था और मंदिर का महत्त्व:

बिजली महादेव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह प्राकृतिक सुंदरता और रोमांच का अनुभव भी कराता है। यहां आनेवाले भक्त भगवान शिव की महिमा का अनुभव करते है और इस अनोखे मंदिर के दर्शन करके खुद को धन्य मानते है। 


🚩यह वीडियो उस समय का है जब अंतिम बार बिजली गिरी थी, और भक्तों ने इस अद्भुत घटना का अनुभव किया। 


🚩इस मंदिर की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रकृति और भगवान की शक्तियों का आदर और सम्मान करना चाहिए। कुल्लू घाटी के इस अनोखे मंदिर की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि एक अद्वितीय अनुभव के रूप में भी यादगार रहती है।


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Thursday, August 29, 2024

मंदिरों की छत समतल क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है ?

 30 अगस्त 2024

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🚩मंदिरों की छत समतल क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है ?


🚩मंदिर तो आपने देखे ही होंगे। मंदिरों की छतों पर एक विशेष प्रकार की आकृति बनाई जाती है जो ऊपर की ओर नुकीली होती है। प्रश्न यह है कि मंदिरों की छतों को इस प्रकार क्यों बनाया जाता है? क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक या धार्मिक कारण है? आइए, विस्तार से जानते है:


🚩मंदिरों की छतें कितने प्रकार की होती है ?


🚩विशेषज्ञों के अनुसार,भारत में मंदिर निर्माण की दो प्रमुख शैलियां है : उत्तर भारतीय 'नागर शैली' और दक्षिण भारतीय 'द्रविड़ शैली'। उत्तर भारत में मंदिर की छत को 'शिखर' कहा जाता है,जबकि दक्षिण भारत में इसे 'विमान' कहते है। 'शिखर' और 'विमान' दोनों ही मंदिर की छत की उन संरचनाओं को संदर्भित करते है जो ऊंचाई  ओर बढ़ती है। दक्षिण भारत में, 'शिखर' केवल ऊपर रखे पत्थर को कहा जाता है, जबकि उत्तर भारत में शिखर के सबसे ऊपर 'कलश' रखा जाता है। 


🚩इनके अलावा, पूर्वी भारत में 'रिक्हा देउल' और पश्चिमी भारत में 'वेसर शैली' जैसी अन्य शैलियां भी पाई जाती है, जो स्थानीय सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार विकसित हुई है।


🚩मंदिर की छत को पिरामिड जैसा क्यों बनाया जाता है ?


🚩1. धार्मिक और आध्यात्मिक कारण : धार्मिक दृष्टि से ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड का आरंभ एक बिंदु से हुआ था, इसीलिए मंदिर का शिखर भी एक बिंदु के रूप में होता है, जो ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। यह ऊर्जा पूरे मंदिर में फैलती है, जिससे मंदिर में शांति और पवित्रता का अनुभव होता है। शिखर को ऊंचा और नुकीला बनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि यह आकाश की ओर इशारा करते हुए आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक बनता है।


🚩2.वास्तुकला और विज्ञान:

विज्ञान भी इस बात को मान्यता देता है कि पिरामिड जैसी आकृति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संग्रहण अधिक होता है। इस प्रकार की संरचना के अंदर, विशेष रूप से यदि वह खोखली हो, ऊर्जा का मंडार (समूह) बनता है। इस प्रकार, मंदिर के अंदर ध्यान या प्रार्थना करने वाले व्यक्ति को इस ऊर्जा का लाभ मिलता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।


🚩3. जलवायु अनुकूलता:

   इस प्रकार की छत के कारण सूर्य की सीधी किरणें इसे प्रभावित नहीं कर पाती। त्रिकोणाकार छत का ऊपरी हिस्सा सूर्य की किरणों को अधिक झेल सकता है, जबकि अंदर का भाग ठंडा और आरामदायक रहता है। भारत में गर्म जलवायु को देखते हुए, इस प्रकार की वास्तुकला यात्रियों और भक्तों को राहत देने के लिए भी उपयोगी सिद्ध होती है।


🚩4. संरचनात्मक स्थिरता:

   पिरामिड आकार की संरचनाएं और भूकंप-रोधी होती है। त्रिकोणीय आकृति का केंद्र गुरुत्वाकर्षण के कारण मजबूत और संतुलित रहता है, जो किसी भी प्राकृतिक आपदा, जैसे भूकंप या तेज हवाओं के दौरान भी मंदिर को संरक्षित रखता है।


🚩5. दूर से पहचान:

   मंदिर के शिखर को ऊंचा और नुकीला बनाने का एक और उद्देश्य यह है कि इसे दूर से आसानी से पहचाना जा सके। शिखर का आकार ऐसा होता है कि कोई भी व्यक्ति प्रतिमा के ऊपर खड़ा नहीं हो सकता, जो धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि भगवान की प्रतिमा के ऊपर किसी का होना अशुभ माना जाता है।


इस प्रकार, मंदिरों की छत की संरचना केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और वास्तुकला संबंधी कारणों से भी महत्वपूर्ण है। मंदिरों का निर्माण एक पूर्ण वैज्ञानिक विधि से किया जाता है, जिससे वहां पवित्रता, शांति और दिव्यता बनी रहती है।  


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Wednesday, August 28, 2024

पनीर के फायदे और नुकसान

29August 2024

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🚩 पनीर के फायदे और नुकसान


पनीर, जो आज के दौर में एक लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है,आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा के अनुसार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है। आयुर्वेद में इसे "निकृष्टतम भोजन" कहा गया है, जिसे पशुओं को भी नहीं खिलाना चाहिए। पनीर, दूध को फाड़कर या उसके प्राकृतिक रूप को विकृत करके बनाया जाता है। जिस तरह हम सड़ी हुई सब्जी नहीं खाते,उसी तरह पनीर भी एक तरह से सड़ा हुआ दूध ही है। 


🚩पनीर का भारतीय इतिहास में अभाव  

भारतीय इतिहास में पनीर का कोई उल्लेख नहीं मिलता,क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारत में दूध को विकृत करने की मनाही रही है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं दूध को फाड़कर कुछ बनाने से बचती है।


🚩पनीर खाने के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव  

आयुर्वेद के अनुसार,विकृत दूध से बने खाद्य पदार्थ जैसे पनीर, लिवर और आंतों के लिए हानिकारक होते है।आधुनिक चिकित्सा शोध भी इस बात की पुष्टि करते है कि पनीर खाने से पाचनतंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है,जिससे पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती है। पनीर में मौजूद प्रोटीन को पचाना जानवरों के लिए भी कठिन होता है, फिर मनुष्य इसे कैसे पचा सकते है? इससे कब्ज, फैटी लीवर, और IBS (इर्रिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती। इसके अतिरिक्त,पनीर के अत्याधिक सेवन से रक्त में थक्के जमने का खतरा रहता है, जो ब्रेन हैमरेज और हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है।


🚩पनीर और हार्मोनल  असंतुलन  

पनीर का अत्यधिक सेवन हार्मोनल असंतुलन भी पैदाकर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हाइपोथायरायडिजम जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, महिलाओं में गर्भधारण करने की क्षमता भी कम हो सकती है।


🚩पनीर की लोकप्रियता और इसके व्यंजन  

आजकल पनीर का उपयोग कढ़ाई पनीर,शाही पनीर,मटर पनीर, चिली पनीर आदि अनेक प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है। यह समोसे, पकौडे और बर्गर में भी व्यापक रूप  प्रयोग होता है। भारतीय लोग पनीर के इतने शौकीन हो चुके है कि बिना पनीर खाए उन्हें भोजन अधूरा लगता है। 


🚩पनीर और मिलावट का खतरा  

यह भी देखा गया है कि बाजार में मिलने वाले पनीर में अक्सर मिलावट की जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए और भी हानिकारक होता है। अतः, यदि आप पनीर का सेवन करना चाहते है तो घर पर ही इसे तैयार करें ताकि आप मिलावट और अन्य स्वास्थ्य जोखिमों से बच सकें।


🚩पनीर के बारे में सोचें  

अगली बार, जब भी आप पनीर खाने का विचार करें, तो यह जरूर सोचें कि क्या यह वास्तव में आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है या केवल स्वाद के लिए ही आप इसका सेवन कर रहे है। 


🚩निष्कर्ष  

पनीर को लेकर आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के विचारों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने आहार में इसके उपयोग पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए, हमें यह समझना चाहिए कि पनीर का सेवन हमारे शरीर के लिए अधिक हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए, सेहतमंद जीवनशैली अपनाने के लिए हमें पनीर से दूर रहना चाहिए।


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Tuesday, August 27, 2024

ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य

 28 August 2024

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🚩ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य


🚩ॐ पर्वत, जिसे 'आदि कैलाश' के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। यह पर्वत अपनी अनोखी विशेषता के कारण दुनियांभर के तीर्थयात्रियों, साहसिक पर्यटकों और पर्वतारोहियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पर्वत की अनूठी बात यह है कि इसकी हिमाच्छादित चोटियों पर प्राकृतिक रूप से 'ॐ' का चिन्ह अंकित है, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक है।


🚩'ॐ' का यह प्रतीक मात्र एक आकृति नहीं, बल्कि एक दिव्य संदेश है जो आध्यात्मिकता, ध्यान और साधना का मार्ग दिखाता है। हिन्दू धर्म में 'ॐ' को सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्र माना गया है। जब लोग इस पर्वत पर 'ॐ' के चिन्ह को देखते है,तो उन्हें ऐसा लगता है मानो साक्षात भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा हो। यह पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा के मार्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां से कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का भी आभास होता है।


🚩 ॐ पर्वत के आस-पास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहां पर हिमालय की ऊंची चोटियों के साथ-साथ हरे-भरे जंगल,गहरी घाटियां और निर्मल जलधाराएं मिलती है जो इस स्थान को एक स्वर्गीय धाम का आभास कराती है। यहां का वातावरण शुद्ध और शांतिपूर्ण है, जो ध्यान और साधना के लिए आदर्श माना जाता है। 


🚩ॐ पर्वत की यात्रा काफी चुनौतीपूर्ण मानी जाती है क्योंकि यहां पहुंचने के लिए कठिन पहाड़ी रास्तों और अनिश्चित मौसम का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, तीर्थयात्री और पर्यटक यहां की यात्रा करते है क्योंकि यहां पहुंचने के बाद उन्हें एक अलग ही आध्यात्मिक शांति और संतोष का अनुभव होता है। यात्रा के दौरान, यात्री भारतीय सेना और आईटीबीपी (इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस) के गाइडेंस में सुरक्षित रहते है,जो यात्रा को सुरक्षित और सफल बनाने में मदद करते है।


🚩यह भी मान्यता है कि जो लोग ॐ पर्वत की यात्रा करते है,वे अपने जीवन में आध्यात्मिक उत्थान और शांति की प्राप्ति करते है। यहां का हर एक दृश्य,चाहे वह हिमाच्छादित पहाड़ हो,बर्फीली हवा हो या फिर 'ॐ' का दिव्य प्रतीक—सब कुछ एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव कराता है।


🚩अतः, ॐ पर्वत न केवल एक प्राकृतिक चमत्कार है बल्कि यह एक ऐसा स्थान है जहां आध्यात्मिक ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्तियों का अद्भुत संगम होता है। यह स्थान अपने आप में एक जीवंत मंदिर की तरह है, जो न केवल भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि यह जीवन की गहरी सच्चाइयों और दिव्यता की ओर भी मार्गदर्शन करता है।

🚩इस प्रकार, ॐ पर्वत न केवल प्राकृतिक सुंदरता का धाम है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक केंद्र भी है जो भारत की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक धरोहर को संजोए हुए है। यहां की यात्रा हर भारतीय के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव है, जो आत्मा को शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

जो भी इस पवित्र पर्वत की यात्रा करता है वह अपने जीवन में अनंत शांति और सुख का अनुभव करता है।


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Monday, August 26, 2024

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश: हमारे जीवन में कैसे लाए?

 27 August 2024

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🚩श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश: हमारे जीवन में कैसे लाए?



🚩श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद शामिल है। यह संवाद कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर होता है जहां अर्जुन अपने ही रिश्तेदारों और दोस्तों के खिलाफ युद्ध करने को लेकर दुविधा में होते है। श्रीकृष्ण उन्हें कर्तव्य,धर्म,भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में सिखातें है। ये उपदेश न केवल अर्जुन के लिए बल्कि सभी के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता के मुख्य सिद्धांत और उन्हें दैनिक जीवन में कैसे लागू करें:


🚩1. कर्तव्य पालन (धर्म):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि हर किसी का जीवन में एक कर्तव्य या उद्देश्य होता है, जिसे "धर्म" कहा जाता है। हमें अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाना चाहिए, बिना परिणाम की चिंता किए।  

   - कैसे लागू करें: समझें कि आपके जीवन में आपकी जिम्मेदारियां क्या है—चाहे वह एक छात्र,माता-पिता या कार्यकर्ता के रूप में हो—और उन्हें समर्पण और ईमानदारी से निभाएं। उदाहरण के लिए,यदि आप एक छात्र है,तो अंकों की चिंता किए बिना अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करे। प्रयास करना परिणाम से अधिक महत्वपूर्ण है।


🚩2. निस्वार्थ कर्म (कर्म योग):

   - सिद्धांत: गीता हमें बिना किसी इनाम या पहचान की इच्छा के निस्वार्थ कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। श्रीकृष्ण कहते है कि हमें कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उसके फल पर।  

   - कैसे लागू करें:अच्छे कर्मों का अभ्यास करे, जैसे कि किसी की मदद कर करना या बिना किसी प्रत्याशा के स्वयंसेवा करना। यह पड़ोसी की मदद करना, दान करना, या किसी मित्र की बिना प्रशंसा की आशा के सहायता करना हो सकता है। यह आपको परिणामों से कम जुड़ाव और भीतर से अधिक शांति प्रदान करता है।


🚩3. ईश्वर की भक्ति (भक्ति योग):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण ईश्वर की भक्ति के महत्व पर जोर देते है। वे अर्जुन को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित होने और विश्वास रखने के लिए प्रेरित करते है।  

   - कैसे लागू करें: नियमित प्रार्थना, ध्यान, या भक्ति गीतों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध बनाएं। विश्वास करें कि ईश्वर आपको मार्गदर्शन कर रहे है और जो कुछ भी होता है, एक कारण के लिए होता है। आप अपने दैनिक कार्यों को भी, चाहे वे कितने भी साधारण क्यों न हों, ईश्वर को अर्पण के रूप में समर्पित कर सकते है।


🚩4.ज्ञान और विवेक (ज्ञान योग):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम वास्तव में कौन है—कि हमारी आत्मा (आत्मा) शाश्वत है और ईश्वर का अंश है।  

   - कैसे लागू करें:आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन करने, उनके अर्थ पर चिंतन करने और ध्यान करने में समय बिताएं। यह समझने की कोशिश करें कि भौतिक वस्तुएं और अहंकार अस्थाई है, जबकि आत्मा शाश्वत है। यह जागरूकता कठिन परिस्थितियों में भी आपको शांत और स्थिर रहने में मदद कर सकती है।


🚩5. सफलता और असफलता में समानता (समत्व): 

   - सिद्धांत: गीता अच्छे और बुरे समय दोनों में संतुलित मन बनाए रखने की सलाह देती है। श्रीकृष्ण सिखाते है कि किसी को भी सफलता या असफलता में शांत और संयमित रहना चाहिए।  

   - कैसे लागू करें: अपने मन को स्थिर रखने के लिए ध्यान और मनन का अभ्यास करें। जब आप चुनौतियों या असफलताओं का सामना करते है, तो बहुत अधिक परेशान होने की कोशिश न करें। याद रखें कि अच्छे और बुरे दोनों समय अस्थाई होते है।


🚩6. आसक्ति का त्याग (वैराग्य):

   - सिद्धांत:गीता हमें लोगों,संपत्ति और परिणामों से मुक्त होने का आग्रह करती है। आसक्ति अक्सर दुःख का कारण बनती है।  

   - कैसे लागू करें: अपनी चीज़ों और रिश्तों का आनंद लें, लेकिन उनके प्रति बहुत अधिक निर्भर न रहें। उदाहरण के लिए, अपनी चीज़ों की सराहना करें, लेकिन उन्हें अपनी पहचान न बनने दें। समझें कि परिवर्तन जीवन का हिस्सा है, और इसे अनुग्रहपूर्वक स्वीकार करने का अभ्यास करें।


🚩7. ईश्वर की योजना में विश्वास:

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि सब कुछ ईश्वर की दिव्य योजना के अनुसार होता है और हमें इस ब्रह्मांडीय व्यवस्था पर विश्वास करना चाहिए।  

   - कैसे लागू करें:जब चीजें आपके अनुसार नहीं होती है, तो याद रखें कि ईश्वर की योजना पर विश्वास करें। विश्वास रखें कि हर घटना के पीछे एक उच्च उद्देश्य होता है, और ईश्वर की इच्छा के सामने आत्मसमर्पण करना सीखें। यह विश्वास शांति लाता है और चिंता को कम करता है।


🚩8. मानवता की सेवा (सेवा):- सिद्धांत: दूसरों की निस्वार्थ सेवा करना ईश्वर की सेवा करने के समान है। गीता करुणा और दूसरों की मदद को एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में महत्व देती है।  

   - कैसे लागू करें:अपने समुदाय के लोगों की मदद करने के तरीके खोजें, चाहे वह दान, स्वयंसेवा, या सरल सहायता कार्यों के माध्यम से हो। सेवा के हर अवसर को ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने और दुनियां में सकारात्मक योगदान देने के एक तरीके के रूप में देखें।


🚩निष्कर्ष:


🚩श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेश व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों है। वे हमें एक सार्थक जीवन जीने के तरीके के बारे में मार्गदर्शन करते है, जो उद्देश्य, भक्ति, और आंतरिक शांति से भरा होता है। इन उपदेशों का पालन करके,हम अपने जीवन में संतुलन पा सकते है,दूसरों की सेवा कर सकते है और अपने आध्यात्मिक मार्ग से जुड़े रह सकते है। चाहे आप उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी के लिए मार्गदर्शन के रूप में देखें या ईश्वर से दिव्य निर्देशों के रूप में, गीता के सिद्धांत किसी भी व्यक्ति को एक बेहतर, अधिक संतोषजनक जीवन जीने में मदद कर सकते है।


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Sunday, August 25, 2024

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: महत्व, पौराणिक कथाएं व्रत की विधि और जीवन के पाठ

 26 August 2024

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: महत्व, पौराणिक कथाएं व्रत की विधि और जीवन के पाठ


द्वापर युग में भाद्रपद मास, कृष्णपक्ष, अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा के कारागार में वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। उनके अष्टमी तिथि की रात्रि में अवतार लेने का प्रमुख कारण उनका चंद्रवंशी होना बताया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का दिन ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ के नाम से प्रसिद्ध है, जो भारत और विश्वभर में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।


 पौराणिक मान्यताएं और जन्माष्टमी व्रत का महत्व


🚩 स्कन्दपुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति जानबूझकर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करता, वह अगले जन्म में जंगल में सर्प और व्याघ्र (बाघ) के रूप में जन्म लेता है। यह पौराणिक मान्यता व्रत के महत्व को दर्शाती है और इस व्रत को करने की प्रेरणा देती है ताकि जीवात्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके और पुनर्जन्म से मुक्ति मिल सके।


🚩 ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि अट्ठाइसवें चतुर्युगी के द्वापरयुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। व्रत के संबंध में यह भी कहा गया है कि यदि दिन या रात में थोड़ा भी रोहिणी नक्षत्र न हो तो विशेष रूप से चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करना चाहिए। इससे भक्तों को अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।


🚩 भविष्यपुराण में उल्लेख है कि भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत जो मनुष्य नहीं करता, वह अगले जन्म में क्रूर राक्षस के रूप में जन्म लेता है। केवल अष्टमी तिथि में उपवास करने का प्रावधान है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो उसे 'जयंती' नाम से पुकारा जाता है। ‘जयंती’ तिथि को व्रत रखने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है।


🚩 वह्निपुराण का कहना है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि थोड़ी भी रोहिणी नक्षत्र की कला हो, तो उसे जयंती नाम से ही संबोधित किया जाता है। इस स्थिति में विशेष प्रयत्न के साथ उपवास करने का महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


 श्रीकृष्ण के जीवन से मिलने वाले ज्ञान और जीवन के महत्वपूर्ण पाठ


भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वे हमें दैनिक जीवन में भी मार्गदर्शन करती है। उनकी शिक्षाएं भगवतगीता में संग्रहित है, जो जीवन के हर पहलू पर गहन दृष्टिकोण प्रदान करती है।


🚩 कर्तव्य पालन: श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जिसमें उन्होंने कर्तव्य पालन का महत्व बताया। उन्होंने सिखाया कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से करना चाहिए, बिना फल की चिंता किए। यह शिक्षा आज भी जीवन में कर्मयोग का मार्ग दिखाती है।


🚩 अहंकार का त्याग: श्रीकृष्ण ने हमेशा अहंकार और घमंड को त्यागने की बात कही है। उनका मानना था कि अहंकार इंसान को उसके मूल उद्देश्य से भटका देता है। जीवन में सादगी और नम्रता को अपनाने से ही सच्ची सफलता प्राप्त होती है।


🚩 समता का भाव: श्रीकृष्ण ने जीवन में समता का भाव बनाए रखने की बात कही है। सुख और दुःख हार और जीत, लाभ और हानि — इन सभी में समता रखना एक सच्चे योगी का लक्षण है। यह भाव हमें मानसिक स्थिरता और शांति प्रदान करता है।


🚩 प्रेम और भक्ति का महत्व: भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों के साथ अपने प्रेमपूर्ण संबंधों के माध्यम से भक्ति का महत्व बताया। उन्होंने राधा और गोपियों के साथ अपने संबंधों के माध्यम से दिखाया कि सच्चे प्रेम और भक्ति से भगवान को पाया जा सकता है। 


🚩 संसार के मोह से मुक्ति: श्रीकृष्ण ने गीता में बताया कि मनुष्य को संसार के मोह से मुक्त होना चाहिए। उन्होंने बताया कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है। इसलिए,जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलने के लिए हमें आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए और अपने सच्चे स्वरूप को पहचानना चाहिए।


🚩 साहस और धैर्य: श्रीकृष्ण ने जीवन के कठिन क्षणों में भी धैर्य और साहस बनाए रखने की प्रेरणा दी। चाहे वह बाल लीलाओं में पूतना वध हो या कंस का अंत, श्रीकृष्ण ने हर स्थिति में धैर्य और साहस का परिचय दिया। यह सिखाता है कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए धैर्य और साहस अत्यंत आवश्यक है।


🚩 निर्भयता का पाठ: श्रीकृष्ण ने कहा कि भक्त को निडर रहना चाहिए। उन्होंने अपने जीवन से सिखाया कि भय को त्यागकर ही मनुष्य अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। चाहे वह कालिया नाग का दमन हो या कंस के अत्याचारों का अंत,श्रीकृष्ण ने हर जगह निर्भयता का प्रदर्शन किया।


 जन्माष्टमी व्रत का पालन और पूजा विधि


जन्माष्टमी व्रत का पालन करने वाले भक्त पूरी रात जागरण करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन में लीन रहते है। इस दिन विशेष रूप से भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण किया जाता है। भक्तजन व्रत रखकर भगवान को माखन-मिश्री, फल, फूल आदि का भोग लगाते है। अर्धरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है और नए वस्त्र पहनाकर झूला झुलाया जाता है। 


श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें दिखाती है कि सच्चा धर्म वही है जो व्यक्ति को उसके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करे और उसे सत्य,अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी न केवल भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव है बल्कि यह उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं और जीवन के उच्च मूल्यों को अपनाने का भी संकल्प है।


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Saturday, August 24, 2024

"भारतीय मसालों के छुपे स्वास्थ्य लाभ: मौसम के अनुसार कैसे लाभ उठाएँ?"

 25 August 2024

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🚩"भारतीय मसालों के छुपे स्वास्थ्य लाभ: मौसम के अनुसार कैसे लाभ उठाएँ?" 


🚩 *भारतीय मसालों के स्वास्थ्य लाभ: 

मौसम के अनुसार उपयोग और फायदे*

भारतीय मसालों का भारतीय रसोई में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ये न केवल हमारे भोजन का स्वाद और रंग-रूप बढ़ाते है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत फायदेमंद होते है। सदियों से भारतीय मसालों का उपयोग औषधीय गुणों के कारण भी किया जाता रहा है। ये मसाले न केवल बीमारियों से बचाने में मदद करते है बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा और शारीरिक दोषों को संतुलित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। आइए, जानते है कि कैसे भारतीय मसाले हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते है और मौसम के अनुसार इनके उपयोग से हमें क्या फायदे मिल सकते है।


🚩 भारतीय मसाले और उनके स्वास्थ्य लाभ


🚩 *हल्दी (Turmeric):*  

हल्दी में करक्यूमिन नामक तत्व होता है जो सूजन को कम करने, चोट के दर्द में आराम देने और इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती है। सर्दियों में इसका सेवन शरीर को गर्म रखता है और सर्दी-खांसी से बचाव करता है।


🚩 *जीरा (Cumin):*  

जीरा पाचन तंत्र को सुधारने और शरीर में गैस की समस्या को कम करने में मदद करता है। गर्मियों में जीरे का पानी पीना शरीर को ठंडक प्रदान करता है और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है, जिससे गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन से बचा जा सकता है।


🚩 *अदरक (Ginger) और सौंठ (Dry Ginger):*  

अदरक और सौंठ दोनों ही सर्दी-जुकाम, गले की खराश, और पाचन समस्याओं में अत्यधिक लाभकारी होते है। अदरक ताजा होने पर और सौंठ सूखी होने पर अपने औषधीय गुणों से शरीर को गर्म रखती है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है।


🚩 *काली मिर्च (Black Pepper):*  

काली मिर्च का उपयोग पाचन को सुधारने, खांसी-जुकाम से राहत दिलाने और मेटाबॉलिज्म को तेज करने के लिए किया जाता है। यह शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है और सर्दियों में शरीर को गर्म रखती है।


🚩 *धनिया (Coriander):*  

धनिया के बीज और पत्ते में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है जो त्वचा को चमकदार बनाते है और शरीर में फ्री रेडिकल्स से लड़ते है। गर्मियों में धनिया का सेवन शरीर को ठंडक प्रदान करता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है।


🚩 *लौंग (Clove):*  

लौंग में एंटीबैक्टीरियल गुण होते है जो दांत दर्द, गले की खराश, और सर्दी-जुकाम के इलाज में सहायक होते है। इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।


🚩 *मेथी (Fenugreek):*  

मेथी के बीज और पत्तों का सेवन पाचन तंत्र को सुधारने, डायबिटीज में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने, और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में मदद करता है। सर्दियों में मेथी का सेवन शरीर को गर्म रखता है और जोड़ों के दर्द से राहत दिलाता है।


🚩 *सरसों (Mustard):*  

सरसों के बीज और तेल का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। सरसों का तेल त्वचा और बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है और इसका उपयोग जोड़ों के दर्द में राहत दिलाने के लिए भी किया जाता है।


🚩 *इलायची (Cardamom):*  

इलायची का सेवन पाचन तंत्र को सुधारता है और मुंह की दुर्गंध को दूर करता है। यह मानसिक तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने में भी सहायक होती है।


🚩 *अजवाइन (Carom Seeds):*  

अजवाइन का उपयोग पेट की गैस, अपच, और दर्द में राहत के लिए किया जाता है। यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है और शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। सर्दियों में इसका सेवन शरीर को गर्मी प्रदान करता है।


🚩मौसम के अनुसार मसालों का उपयोग


🚩 *सर्दियों में उपयोगी मसाले:*  

सर्दियों में अदरक, हल्दी, काली मिर्च, लौंग, और मेथी जैसे मसालों का सेवन शरीर को गर्म रखता है और ठंड से बचाता है। ये मसाले सर्दी, खांसी, और जोड़ों के दर्द से भी राहत दिलाते है।


🚩 *गर्मियों में उपयोगी मसाले:*  

गर्मियों में जीरा, धनिया, इलायची, और सौंफ का उपयोग शरीर को ठंडक प्रदान करता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है। ये मसाले शरीर को हाइड्रेटेड रखते है और गर्मी से बचाव करते है।


🚩प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद में भारतीय मसालों की भूमिका


🚩 *आयुर्वेदिक उपचार में:*  

भारतीय मसाले आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हल्दी, अदरक, और काली मिर्च जैसे मसाले वात, पित्त, और कफ दोषों को संतुलित करते है। ये मसाले शरीर के दोषों को संतुलित करते हुए प्राकृतिक चिकित्सा में सहायक होते है।


🚩 *रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना:*  

मसाले जैसे हल्दी, काली मिर्च, और अदरक में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते है। ये मसाले शरीर को संक्रमण से बचाने में सहायक होते है।


🚩 *डिटॉक्सिफिकेशन:*  

धनिया, सौंफ, और जीरा जैसे मसाले शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने और पाचन तंत्र को साफ रखने में मदद करते है। ये मसाले शरीर को डिटॉक्सिफाई करने और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में सहायक होते है।


🚩 *वजन नियंत्रण और मानसिक स्वास्थ्य:*  

दालचीनी, मेथी, और अजवाइन जैसे मसाले वजन घटाने में मदद करते है और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारते है। ये मसाले तनाव और चिंता को कम करने में सहायक होते है और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाते है।


🚩 निष्कर्ष


भारतीय मसाले न केवल हमारे भोजन का स्वाद और सुगंध बढ़ाते है , बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभकारी होते है। ये मसाले मौसम के अनुसार शरीर को अनुकूल बनाने में मदद करते है और विभिन्न बीमारियों से बचाव में सहायक होते है। हमें अपने दैनिक आहार में इन मसालों को शामिल करना चाहिए ताकि हम न केवल स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकें, बल्कि एक स्वस्थ और निरोगी जीवन भी जी सकें। भारतीय मसालों का उपयोग कर हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते है और प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ उठा सकते है।



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Friday, August 23, 2024

भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी

 24 August 2024

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🚩 *भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी:*



🚩भवानी अष्टकम एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो आद्याशक्ति माँ भवानी को समर्पित है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जो महान भारतीय संत और दार्शनिक थे। भवानी अष्टकम में आठ श्लोक होते है, जिनमें शंकराचार्य ने माँ भवानी से अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त किया है। 


🚩 *भवानी अष्टकम की रचना कैसे हुई:*


🚩आदिगुरु शंकराचार्य एक बार शाक्तमत का खंडन करने के लिए कश्मीर गए थे। लेकिन, कश्मीर में उनकी तबीयत खराब हो गई और उनके शरीर में कोई ताकत नहीं रही। वे एक पेड़ के पास लेटे हुए थे, तभी वहां से एक ग्वालिन सिर पर दही का बर्तन लेकर गुजरी। शंकराचार्य का पेट जल रहा था और वे बहुत प्यासे थे। उन्होंने ग्वालिन से दही मांगने के लिए उसे अपने पास आने का इशारा किया।


🚩ग्वालिन ने थोड़ी दूर से कहा कि आप यहां दही लेने आओ। आचार्य ने धीरे से कहा, "मुझमें इतनी दूर आने की शक्ति नहीं है।" इस पर ग्वालिन हंसते हुए बोली, "शक्ति के बिना कोई एक कदम भी नहीं उठाता और आप शक्ति का खंडन करने निकले है ?"

 

🚩ग्वालिन की बात सुनते ही आचार्य की आंखें खुल गईं। वे समझ गए कि यह ग्वालिन कोई साधारण महिला नहीं, बल्कि भगवती स्वयं है ,जो उन्हें शक्ति के महत्त्व का एहसास कराने आई है। शंकराचार्य के मन में शिव और शक्ति के बीच का जो अंतर था, वह मिट गया और उन्होंने शक्ति के सामने समर्पण कर दिया। उनके मुख से निकला, "गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।"


🚩समर्पण का यह स्तवन "भवानी अष्टकम" के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो अद्भुत है। शिव स्थिर शक्ति है और भवानी उनमें गतिशील शक्ति है। दोनों अलग-अलग है , जैसे दूध और उसकी सफेदी। नेत्रों पर अज्ञान का जो आखिरी पर्दा था, वह भी माँ ने ही हटाया था, इसलिए शंकर ने कहा, "माँ, मैं कुछ नहीं जानता।"


🚩 *भवानी अष्टकम के श्लोक:*


1. *न तातो न माता न बन्धुर्न दाता  

  न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।  

  न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


2. *भवाब्धावपारे महादुःखभीरु  

  प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।  

  कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


3. *न जानामि दानं न च ध्यानयोगं  

  न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।  

  न जानामि पूजां न च न्यासयोगं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


4. *न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं  

  न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।  

  न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


5. *कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः  

  कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।  

  कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


6. *प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं  

  दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।  

  न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


7. *विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे  

  जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।  

  अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


8. *अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो  

  महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।  

  विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


🚩 *भवानी अष्टकम की विशेषताएँ:*


🚩1. *भक्ति और समर्पण का भाव:* इस स्तोत्र में शंकराचार्य ने माँ भवानी के प्रति अपनी भक्ति को बहुत ही मार्मिक और विनम्र शब्दों में व्यक्त किया है। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से बताया है कि संसार के सारे बंधनों और समस्याओं से मुक्ति केवल माँ भवानी की कृपा से ही संभव है।


🚩2. *माँ भवानी की महिमा का वर्णन:* भवानी अष्टकम के श्लोकों में देवी भवानी की महिमा का सुंदर और प्रभावशाली वर्णन किया गया है। इसमें माँ को समस्त सृष्टि की जननी, पालनकर्ता और संरक्षक के रूप में पूजा जाता है।


🚩3. *आध्यात्मिक मार्गदर्शन:* यह स्तोत्र साधकों को आत्मसमर्पण और शरणागति का मार्ग दिखाता है। शंकराचार्य ने अपने आप को असहाय और अज्ञानी बताते हुए माँ भवानी से प्रार्थना की है कि वे उनकी रक्षा करें और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ाएं।


🚩4. *साधकों के लिए प्रेरणा:* भवानी अष्टकम साधकों के लिए एक प्रेरणादायक स्तोत्र है, जो उन्हें भक्ति और विश्वास के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। 


🚩5. *पाठ का महत्व:* इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक को मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और माँ भवानी की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों और संकटों से रक्षा करने में भी सहायक माना जाता है।


🚩भवानी अष्टकम के श्लोक सरल और संगीतमय होते है, जिससे भक्तों के मन में माँ भवानी के प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना और गहरी होती है।



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Thursday, August 22, 2024

श्रीकृष्ण की 16 कलाएं: एक दिव्य व्यक्तित्व का आदर्श

 23 August 2024

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श्रीकृष्ण की 16 कलाएं: एक दिव्य व्यक्तित्व का आदर्श


श्रीकृष्ण को सनातन धर्म में पूर्ण अवतार माना गया है, जिनकी 16 कलाएं विशेष रूप से वर्णित है। इन कलाओं के माध्यम से उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श स्थापित किए और धर्म, कर्म, प्रेम और भक्ति का मर्म समझाया। श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का विस्तार से वर्णन करते हुए, हम उनके जीवन और उनके व्यक्तित्व की महिमा का दर्शन कर सकते है।


1. धृति (धैर्य): धृति का अर्थ है कठिनाइयों का सामना करते हुए भी मन को स्थिर रखना। श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को धृति की शिक्षा दी, जब अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था। कृष्ण ने उसे अपने कर्तव्यों का पालन करने का उपदेश दिया और बताया कि हर परिस्थिति में धैर्य रखना ही सच्चा धर्म है।


2. मति (बुद्धि): मति का अर्थ है बुद्धि या विवेक, जिससे व्यक्ति सही और गलत का निर्णय कर सके। श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा उदाहरण भगवतगीता में मिलता है, जहाँ उन्होंने अर्जुन को ज्ञान का उपदेश दिया और उसे जीवन के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया। उनकी मति का ही प्रभाव था कि वे हर समस्या का समाधान खोज निकालते थे।


3. उमा (लक्ष्मी/समृद्धि): उमा, जिन्हें लक्ष्मी भी कहा जाता है, समृद्धि और वैभव की देवी है। श्रीकृष्ण का जीवन समृद्धि का प्रतीक था। उनके जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं रही, चाहे वह धन की हो या प्रेम और मित्रता की। वे सभी के लिए सुख और समृद्धि का आशीर्वाद लेकर आए थे 


4. करुणा (दया): करुणा का अर्थ है सभी प्राणियों के प्रति दया और सहानुभूति रखना। श्रीकृष्ण का हृदय करुणा से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई बार अपने शत्रुओं के प्रति भी दया दिखाई। उदाहरण के लिए, जब कंस की मृत्यु का समय आया, तब भी श्रीकृष्ण ने उसे मोक्ष का मार्ग दिखाया।


5. वीर्य (शक्ति): वीर्य का अर्थ है शक्ति और साहस। श्रीकृष्ण ने बचपन में ही पूतना, शकटासुर और कालिया नाग जैसे असुरों का संहार किया। उनकी शक्ति का यह गुण महाभारत के युद्ध में भी दिखाई दिया, जब उन्होंने अर्जुन का सारथी बनकर कौरवों की पूरी सेना का सामना किया।


6. अहिंसा (अहिंसा): श्रीकृष्ण का जीवन अहिंसा का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने सदैव शांति और प्रेम का संदेश दिया। हालांकि महाभारत के युद्ध में वे शामिल थे, परंतु उनका उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करना था, जो अहिंसा की उच्चतम अवस्था मानी जाती है।


7. विनय (विनम्रता): श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व विनम्रता से भरा हुआ था। वे राजा होते हुए भी गोपियों और ग्वालों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने कभी भी अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग नहीं किया और सदैव अपने भक्तों के साथ विनम्र रहे।


8. कान्ति (आकर्षण): श्रीकृष्ण का आकर्षण केवल उनके शारीरिक सौंदर्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके व्यक्तित्व का आकर्षण था। उनके आकर्षण से ही वे गोपियों के प्रिय थे और उनके अनुयायी उनके प्रेम और भक्ति में मग्न रहते थे।


9. विद्या (ज्ञान): श्रीकृष्ण को सर्वज्ञ माना जाता है। वे चारों वेदों और सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। भगवतगीता में दिया गया उनका उपदेश आज भी विश्वभर में ज्ञान का अद्वितीय स्रोत माना जाता है। उनका ज्ञान न केवल आध्यात्मिक था बल्कि उन्होंने राजनीति, धर्म और समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी महत्वपूर्ण शिक्षा दी।


10. वितर्क (तर्क): श्रीकृष्ण की तर्कशक्ति अद्वितीय थी। उन्होंने अपने जीवन में हर समस्या का समाधान तर्क और विवेक से किया। उनका तर्कशक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना और उसे धर्म का वास्तविक अर्थ समझाना है।


11. सत्य (सत्यता): श्रीकृष्ण ने सदैव सत्य का पालन किया। उनका जीवन सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का उदाहरण है। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए कई बार कठिन निर्णय लिए परंतु सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए।


12. श्री (लक्ष्मी/वैभव): श्रीकृष्ण को लक्ष्मी का वरदान प्राप्त था। वे स्वयं धन और वैभव के अधिष्ठाता थे। उनके जीवन में कोई भी भौतिक सुख-सुविधा की कमी नहीं थी और उन्होंने अपने भक्तों को भी इसी प्रकार का आशीर्वाद दिया।


13. शोभा (सौंदर्य): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में अनोखा सौंदर्य था। उनका रूप तो आकर्षक था ही, परंतु उनका आंतरिक सौंदर्य और अधिक मोहक था। उनके आचरण और विचारों की शोभा से वे सभी के प्रिय बने।


14. गाम्भीर्य (गंभीरता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक गम्भीरता थी, जो उन्हें अन्य सभी से अलग बनाती थी। वे हमेशा सोच-समझकर निर्णय लेते थे और हर परिस्थिति में स्थिर और गंभीर बने रहते थे। उनकी गंभीरता का यह गुण उनकी महानता का प्रतीक था।


15. धैर्य (धीरज): धैर्य श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का मुख्य गुण था। उन्होंने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया परंतु वे कभी विचलित नहीं हुए। उनका धैर्य उन्हें हर परिस्थिति में अडिग बनाए रखता था और उन्होंने अपने भक्तों को भी धैर्य का महत्व समझाया।


16. तेज (तेजस्विता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक अद्वितीय तेज था। यह तेज उनके ज्ञान, शक्ति और भक्ति से उत्पन्न हुआ था। उनके तेज से ही उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सभी उनकी ओर आकर्षित हो जाते थे और उनके मार्गदर्शन में धर्म का पालन करते थे।


 निष्कर्ष


श्रीकृष्ण की 16 कलाएं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करती है और हमें यह सिखाती है कि एक संपूर्ण और संतुलित जीवन कैसे जिया जाए। उनकी शिक्षाएं और उनका जीवन आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। इन कलाओं के माध्यम से श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि कैसे व्यक्ति जीवन में धैर्य, सत्य, विनम्रता और करुणा जैसे गुणों को अपनाकर धर्म, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चल सकता है। उनका जीवन और उनके आदर्श हमें सदैव सही मार्ग पर चलने और धर्म की रक्षा करने की प्रेरणा देते है।


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Wednesday, August 21, 2024

बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा

 22 August 2024

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🚩बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा...🤔

दुनियां भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है और एक आप है कि दुनियां भर में तलाश कर रहे है...



🚩 ये कमाल का पौधा आपके आसपास, बगल में लगा हुआ है, लेकिन लोग ड्राई फ्रूट, दवाओं और छायादार वृक्षों के पीछे भाग रहे है। ये अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है साहब जो अपने आप में एक इकोसिस्टम है।वैसे, गूलर यानी उमर के विषय में एक कहावत है...


🚩आंखी देख के माखी न निगली जाए!

सहगी ऊमर फोड़ खे न खाय!!

इस देशी कहावत के अनुसार अगर ऊमर/गूलर को फोड़कर खाया जाए तो हवा लगते ही इस में कीड़े पड़ जाते है। इसलिए इसे बिना फोड़े ही खाया जाता है। लेकिन सच तो यह है, कि इसमें छोटे छोटे कीड़े (wasp) मौजूद रहते ही है। वनस्पति विज्ञान की भाषा में गूलर का फल हायपेन्थोडीयम कहलाता है, जिस में फूल/ पुष्पक्रम के आधारित भाग मिलकर एक बड़े कटोरे या बॉल जैसी संरचना बना लेते है।इस गोलाकार फल जैसी संरचना के भीतर कई नर और मादा पुष्प/ जननांग रहते है, जिनमें परागण और संयुग्मन के बाद बीज बन जाते है। 

🚩फल के परिपक्व होने के पहले उसपर विशेष प्रकार की मक्खी सहित कई कीटक प्रवेश कर जाते है। कई बार वे अपना जीवन चक्र भी यहीं पूर्ण करते है। जैसे ही फल टूटकर जमीन से टकराता है, यह फट जाता है और कीड़े मुक्त हो जाते है। ऐसा न भी हो तो कीट एक छिद्र करके बाहर निकल जाते है। 

🚩चलिए,अब चर्चा करते है, इसके औषधीय महत्व की। हमारे गाँव के बुजुर्गों के अनुसार इसके फलों को खाने से गजब की ताकत मिलती है और बुढापा थम सा जाता है। मतलब,अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है। ऐसी कहावत है कि ऊमर के पेड़ के नीचे से बिना इसे खाए नहीं गुजर सकते है। इसकी छाल को जलाकर राख को कंजी के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते है। दूध का प्रयोग चर्म रोगों में रामबाण माना जाता है। दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है। कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते है। पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है। 

🚩वहीं एक ओर इसके पेड़ को घर पर या गाँव में लगाना वर्जित है, शायद भूतों से इसे जोड़ते है। लेकिन, वास्तव में यह दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधि है। वास्तु के अनुसार दूध और कांटे वाले पौधे घर पर लगाना उचित नहीं होता। 

🚩बुद्धिजीवियों का मानना है कि वास्तव में इसे पक्षियों और जानवरों के पोषण के लिए छोड़ने के लिए ऐसी मान्यताएं बना दी गई होगी, जिससे लोग इसके फलों और पेड़ का अत्यधिक दोहन न कर सकें। पक्षीयों के लिए तो यह वरदान है और पक्षी ही इसे फैलाते भी है। व्यवहारिक रूप से यह पक्षियों का पसंदीदा है तो पक्षियों की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी इसे घर से दूर लगाना सही प्रतीत होता है।

🚩इसकी कोमल फलियों को सब्जियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जो चिकित्सा का एक अनुप्रयोग है। 

ऐसा कहा जाता है, कि दुनियां में किसी ने गूलर का फूल नहीं देखा है।


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Tuesday, August 20, 2024

जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का महत्त्व,जीवन और उत्सव

 21 August 2024

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🚩जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का महत्त्व,जीवन और उत्सव


🚩जन्माष्टमी,भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। यह पर्व श्रावण मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में आता है। जन्माष्टमी विशेष रूप से कृष्ण भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में समर्पित होता है।


🚩भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनके अवतार


🚩भगवान श्रीकृष्ण,विष्णु के आठवें अवतार है। उनका जन्म मथुरा में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कई अद्भुत लीलाओं और घटनाओं से भरा हुआ है जो उनके दिव्य और अद्वितीय स्वरूप को दर्शाते है।


🚩1. कृष्ण की बाल लीलाएं लाएँ:  

भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं अत्यंत प्रसिद्ध है। उनके बचपन में माखन चोरी की घटनाएं, गोपालक की भूमिका निभाना और पूतना,कंस और अन्य राक्षसों का वध करना उनके दिव्य गुणों का परिचायक है। माखन चोरी की लीलाएं उनकी चंचलता और नटखट स्वभाव को दर्शाती है जबकि राक्षसों का वध उनके शौर्य और बल का प्रतीक है।


🚩2. गोवर्धन पूजा:  

कृष्ण ने अपनी युवावस्था में गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों को इंद्रदेव के क्रोध से बचाया था। यह घटना उनकी शक्ति और उनके प्रति भक्तों की भक्ति का परिचायक है।गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है।


🚩3. रासलीला:  

भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का वर्णन भी बहुत प्रसिद्ध है। रासलीला में कृष्ण ने गोपियों के साथ नृत्य किया जो उनके भक्ति, प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक है। रासलीला के माध्यम से कृष्ण ने यह सिखाया कि भक्ति और प्रेम में कोई भेदभाव नहीं होता और यह प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा को उच्चता की ओर ले जाता है।


🚩4. भगवद्गीता:  

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया।भगवद्गीता, भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का संग्रह है,धर्म,कर्म,योग और भक्ति की गहराई से भरी हुई है। इस में कृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण उपदेश दिए।


🚩जन्माष्टमी पर होने वाली विशेष पूजा और अनुष्ठान


🚩1. रात्रि जागरण और भजन कीर्तन:  

जन्माष्टमी की रात विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। भक्तगण रातभर जागरण करते है।श्रीकृष्ण के भजन और कीर्तन गाते है और भगवान की पूजा करते है। इस रात,भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विशेष रूप से रात के 12 बजे की जाती है, जब उनका जन्म हुआ था।


🚩2. बालकृष्ण की झाँकी:  

इस दिन, विशेष रूप से छोटे बच्चों को भगवान कृष्ण के रूप में सजाया जाता है। वे बालकृष्ण की भूमिका निभाते है और विभिन्न झाँकियों में हिस्सा लेते है, जिसमें माखन-मिश्री, मिठाई ई. चुराने का खेल भी शामिल होता है।


🚩3. दही हांडी:  

जन्माष्टमी के अवसर पर "दही हांडी" का आयोजन विशेष रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में किया जाता है। इस में एक बड़े बर्तन में दही,मक्खन और अन्य मिठाइयां भरी जाती है और इसे ऊँचाई पर लटकाया जाता है। फिर, लोग एक मानव पिरामिड बनाकर दही हांडी को तोड़ने का प्रयास करते है। यह आयोजन भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला को स्मरण करता है।


🚩4. व्रत और उपवास:  

इस दिन भक्तगण उपवास रखते है और केवल फलों और दूध का सेवन करते है। रात को पूजा के बाद विशेष प्रसाद का वितरण किया जाता है।


🚩जन्माष्टमी के सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू


🚩जन्माष्टमी केवल धार्मिक पूजा तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर रंग-बिरंगी सजावट, नृत्य और नाटकों का आयोजन किया जाता है। स्कूलों और सामाजिक संगठनों द्वारा भी इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते है,जिनमें कृष्ण के जीवन की लीलाओं का मंथन होता है।


🚩संक्षेप में


🚩जन्माष्टमी,भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी और उनकी शिक्षाओं को मान्यता देने का पर्व है। यह दिन भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है और यह हमें श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन और उनके उपदेशों को अपनाने की प्रेरणा देता है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की अद्भुत लीलाएं और उनके उपदेश जीवन में सुख, समृद्धि और धार्मिक आस्था को बढ़ाते है।


🚩जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा आप पर बनी रहे और आपके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन हो।


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Monday, August 19, 2024

संस्कृत दिवस: महत्त्व, हिन्दू संस्कृति में योगदान और धार्मिक ग्रंथों में इसकी भूमिका

 20 August 2024

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🚩संस्कृत दिवस: महत्त्व, हिन्दू संस्कृति में योगदान और धार्मिक ग्रंथों में इसकी भूमिका


संस्कृत, जिसे 'देववाणी' के रूप में जाना जाता है, न केवल भारत की बल्कि पूरी दुनियां की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषाओं में से एक है। यह भाषा भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन की आत्मा मानी जाती है। संस्कृत दिवस प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य संस्कृत भाषा के महत्त्व को उजागर करना और इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना है। 


🚩 संस्कृत दिवस का इतिहास और उद्देश्य


संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने और इसके महत्त्व को समझाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1969 में संस्कृत दिवस की शुरुआत की। यह दिन संस्कृत भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने और नई पीढ़ी को इसके अध्ययन के लिए प्रेरित करने का एक प्रयास है। संस्कृत दिवस का मुख्य उद्देश्य इस प्राचीन भाषा की धरोहर को सहेजना और इसे जन-जन तक पहुँचाना है। 


🚩 संस्कृत का हिन्दू संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों में महत्त्व


🚩 1. वेदों की भाषा:


संस्कृत भाषा का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण योगदान वेदों के रूप में है। वेद, जिन्हें सनातन धर्म का मूल आधार माना जाता है, संस्कृत में ही लिखे गए है। ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद—ये चारों वेद हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है और इन्हें समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है।


🚩 2. उपनिषद और दर्शन:


संस्कृत भाषा में ही उपनिषदों और दर्शनशास्त्र का सृजन हुआ, जो हिन्दू धर्म के गहन दार्शनिक विचारों को प्रस्तुत करते है। उपनिषदों में आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष और कर्म के सिद्धांतों की गहन व्याख्या की गई है। भगवद्गीता, जो महाभारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, संस्कृत में ही रची गई है और इसे हिन्दू धर्म का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है।


🚩3. पुराण और महाकाव्य:


रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों और पुराणों की रचना संस्कृत में हुई है। रामायण, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा, हिन्दू संस्कृति और धर्म का एक अनमोल ग्रंथ है। महाभारत, जिसे महर्षि वेदव्यास ने संस्कृत में लिखा, न केवल धर्म और अधर्म की लड़ाई का वर्णन करता है, बल्कि इसमें भगवद्गीता जैसी महत्वपूर्ण शिक्षाएँ भी समाहित है।


🚩 4. अनुष्ठान और मंत्र:


संस्कृत हिन्दू धर्म के अनुष्ठानों, पूजा-पाठ और यज्ञों में उपयोग होने वाले मंत्रों की भाषा है। ये मंत्र वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों से लिए गए हैं और इन्हें संस्कृत में ही उच्चारित किया जाता है। संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से होने वाली ध्वनि तरंगों को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करने वाला माना जाता है।


🚩 5. हिन्दू संस्कृति का संरक्षण:


संस्कृत भाषा हिन्दू संस्कृति के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भाषा उन मूल्यों, सिद्धांतों और रीतियों को संजोने का कार्य करती है, जो सनातन धर्म की नींव है। संस्कृत के माध्यम से ही हिन्दू धर्म के कई महान संतों, ऋषियों और मुनियों ने अपने ज्ञान और शिक्षा का प्रसार किया।


🚩 6. शास्त्रों और स्मृतियों की रचना:


धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, योगशास्त्र, और अन्य विविध शास्त्रों की रचना संस्कृत में हुई है। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, और अन्य स्मृतियाँ भी संस्कृत में लिखी गई हैं, जो समाज के नियम और नीतियों का मार्गदर्शन करती है।


🚩 7. आध्यात्मिक और धार्मिक धरोहर:


संस्कृत भाषा में रचित धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित रखा है। ये ग्रंथ न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का मार्गदर्शन करते है बल्कि वे जीवन के प्रत्येक पहलू में नैतिकता, धर्म और सदाचार को भी सिखाते है।


🚩 संस्कृत दिवस पर होने वाले कार्यक्रम


संस्कृत दिवस पर विभिन्न शिक्षण संस्थानों, विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में संस्कृत के महत्त्व को उजागर करने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इनमें संस्कृत श्लोक पाठ, निबंध लेखन प्रतियोगिता, भाषण, वाद-विवाद और संस्कृत नाट्य प्रस्तुतियाँ शामिल होती है। इसके साथ ही, संस्कृत शिक्षकों और विद्वानों को सम्मानित करने के लिए विशेष समारोह भी आयोजित किए जाते है।


🚩 संस्कृत का योगदान और भविष्य


संस्कृत न केवल अतीत में बल्कि वर्तमान में भी हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। आधुनिक युग में संस्कृत के प्रति रुचि फिर से जागरित हो रही है। कई देशों में संस्कृत के अध्ययन और शोध के लिए संस्थान स्थापित किए गए है। इसके साथ ही योग, आयुर्वेद और अन्य भारतीय परंपराओं के पुनर्जागरण के साथ-साथ संस्कृत भी पुनः वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक होती जा रही है।


संस्कृत दिवस हमें हमारी प्राचीन धरोहर की ओर लौटने और संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने का एक अवसर प्रदान करता है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम संस्कृत के अध्ययन को अपने जीवन का अंग बनाएं और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का प्रयास करें।


🚩 संस्कृत दिवस की प्रासंगिकता


आज के युग में जब भारतीय संस्कृति और परंपराएँ वैश्विक मंच पर पहचान बना रही हैं, संस्कृत दिवस का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यह दिवस हमें स्मरण दिलाता है कि संस्कृत न केवल हमारी पहचान का हिस्सा है बल्कि यह हमारी जड़ों से जुड़े रहने और दुनियां को हमारी प्राचीन संस्कृति और ज्ञान से परिचित कराने का माध्यम भी है।


🚩संस्कृत भाषा को जीवित रखें, इसे सीखें और सिखाएं। संस्कृत दिवस पर इस अद्वितीय धरोहर का सम्मान करें और इसे आगे बढ़ाने का संकल्प लें।


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Sunday, August 18, 2024

भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए फूहड़ TV धारावाहिकों का बहिष्कार आवश्यक

 19 August 2024

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🚩भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए फूहड़ TV धारावाहिकों का बहिष्कार आवश्यक


🚩भारतीय संस्कृति, जिसे "भाई-बहन संस्कृति" के रूप में भी जाना जाता है, हमारी सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें परिवार के हर सदस्य के प्रति सम्मान, प्रेम, और आदर का विशेष स्थान होता है। भाई-बहन का रिश्ता भारतीय संस्कृति में स्नेह, देखभाल, और आपसी जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह रिश्ता केवल खून का नहीं, बल्कि एक भावना का है जो पूरे समाज में सद्भाव और सहयोग का संदेश फैलाता है।


 🚩भाई-बहन संस्कृति और उसके मूल्य:

रिश्तों में सम्मान: भारतीय समाज में, भाई-बहन का रिश्ता अत्यधिक महत्व रखता है। इसमें एक-दूसरे के प्रति गहरा सम्मान और स्नेह होता है, जो पारिवारिक एकता को मजबूत करता है। यह रिश्ता न केवल परिवार की नींव को मजबूत करता है, बल्कि समाज में भी आपसी सहयोग और समझ को बढ़ावा देता है।


🚩- परिवार की मजबूती: भाई-बहन का रिश्ता परिवार की मजबूती का एक प्रमुख आधार है। भाई अपनी बहन की रक्षा करता है और बहन अपने भाई की देखभाल करती है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो जीवन के हर पड़ाव पर साथ देता है, चाहे कोई भी परिस्थिति हो। इस रिश्ते का महत्व राखी जैसे त्योहारों में विशेष रूप से दिखता है, जहाँ भाई अपनी बहन की सुरक्षा का वचन देता है।


🚩- सामाजिक संरचना का आधार: भाई-बहन संस्कृति भारतीय समाज की संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह संस्कृति पारिवारिक एकता को बढ़ावा देती है और समाज को एक साथ जोड़े रखने में मदद करती है। हमारे समाज में यह विश्वास किया जाता है कि मजबूत परिवार ही एक मजबूत समाज का निर्माण करते हैं।


🚩धारावाहिकों का नकारात्मक प्रभाव:

आजकल टीवी धारावाहिकों ने भारतीय समाज में एक गहरी और नकारात्मक छाप छोड़ी है। यह धारावाहिक न केवल हमारे पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि हमारे समाज के नैतिक आधार को भी हिला रहे हैं। भारतीय संस्कृति, जो हमेशा से अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और पारिवारिक मूल्यों के लिए जानी जाती रही है, अब इन धारावाहिकों की वजह से खतरे में है।


🚩आजकल के अधिकांश धारावाहिकों में अवैध संबंधों और अनैतिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन कहानियों में रिश्तों की पवित्रता को तोड़ा जा रहा है और पारिवारिक संबंधों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जहाँ एक ओर, बच्चे अपनी माँ की दूसरी शादी की तैयारी में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर, पिता का ध्यान किसी और महिला पर केंद्रित है। ऐसी कहानियाँ समाज के ताने-बाने को कमजोर कर रही हैं और एक विकृत विचारधारा को बढ़ावा दे रही हैं।


🚩यह केवल पारिवारिक संबंधों तक ही सीमित नहीं है। आधुनिकता के नाम पर, इन धारावाहिकों ने नैतिकता और शीलता की सभी सीमाओं को पार कर दिया है। इनके माध्यम से समाज में बेशर्मी और अनैतिकता को सामान्य बना दिया गया है। धारावाहिकों के निर्माता TRP की लालच में ऐसे विषयों को परोस रहे हैं जो न केवल भारतीय समाज के मूल्यों को धूमिल कर रहे हैं, बल्कि नई पीढ़ी को भी गलत दिशा में ले जा रहे हैं।


🚩इसलिए, यह आवश्यक है कि हम ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार करें जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों का विध्वंस कर रहे हैं। हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ऐसे सीरियलों को अपने घरों में जगह नहीं देंगे। अगर हम समय रहते नहीं जागे, तो हमारी भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्य पूरी तरह से नष्ट हो सकते हैं।


🚩अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर यह निर्णय लें कि हम उन धारावाहिकों को नहीं देखेंगे जो हमारे समाज और संस्कृति को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। हमारे पारंपरिक मूल्य और रीति-रिवाज हमारी धरोहर हैं, और हमें उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार कर हम न केवल अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और नैतिक समाज का निर्माण भी करेंगे।


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Saturday, August 17, 2024

भादवे का घी

 18 August 2024 

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 🚩भादवे का घी


भारतीय देसी गाय का घी, विशेष रूप से भाद्रपद मास में प्राप्त भादवे का घी, एक अनमोल वस्तु है। भाद्रपद के आते ही, घास पक जाती है जो वास्तव में अत्यंत दुर्लभ औषधियाँ होती है। इनमें धामन,जो गायों को बेहद प्रिय होता है,खेतों और मार्गों के किनारे उगता है। सेवण और गंठिया भी इन घासों में शामिल है।मुरट,भूरट,बेकर,कण्टी,ग्रामणा, मखणी,कूरी,झेर्णीया,सनावड़ी,चिड़की का खेत,हाडे का खेत,लम्प जैसी वनस्पतियाँ इस समय पककर लहलहाने लगती है।


यदि समय पर वर्षा हुई हो,तो ये घासें रोहिणी नक्षत्र की तप्त से संतृप्त उर्वरकों से तेजी से बढ़ती है।इन घासों में विचरण करती गायें, पूंछ हिला-हिलाकर चरती रहती है और सफेद बगुले भी उनके साथ इतराते हुए चलते है। यह दृश्य अत्यंत स्वर्गिक होता है। 


जब इन जड़ी बूटियों पर दो शुक्ल पक्ष बीत जाते है, तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है, जिससे इनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है।गायें कम से कम 2 कोस चलकर,घूमते हुए इन्हें चरकर शाम को लौटती है और रातभर जुगाली करती है। इस जुगाली के दौरान वे अमृत रस को अपने दूध में परिवर्तित करती है।यह दूध अत्यंत गुणकारी होता है और इससे बना दही भी अत्यंत पीलापन लिए नवनीत निकलता है। 


5 से 7 दिनों में एकत्र मक्खन को गर्म करके घी बनाया जाता है, जिसे भादवे का घी कहते है। इस घी में अतिशय पीलापन होता है और ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगंध हवा में तैरने लगती है। 


भादवे का घी मृतकों को जीवित करने के अलावा सब कुछ कर सकता है। इसे अधिक मात्रा में खा सकते है, कम हो तो नाक में चुपड़ सकते है, हाथों में लगाकर चेहरे पर मल सकते है, बालों में लगा सकते है, दूध में डालकर पी सकते है, सब्जी या चूरमे के साथ खा सकते है। बुजुर्गों के घुटनों और तलुओं पर मालिश कर सकते है। गर्भवतियों के खाने का मुख्य पदार्थ यही था। 


इस घी को बिना किसी अतिरिक्त चीज के इस्तेमाल किया जाता है। यह औषधियों का सर्वोत्तम सत्व होता है। हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से यह अखिल पर्यावरण,देवता और पितरों को तृप्त कर देता है।


मारवाड़ में इस घी की धाक थी। कहा जाता है कि इसे सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती थी और वह चूं भी नहीं कर पाता था। एक अन्य घटना में, एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को केवल उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था। 


आधुनिक विज्ञान घी को वसा के रूप में परिभाषित करता है,जबकि पारखी लोग यह पहचान लेते थे कि यह फलां गाय का घी है।यही घी था,जिसके कारण युवा जोड़े कठोर परिश्रम करने के बावजूद थकते नहीं थे। इसमें इतनी ताकत होती थी कि सिर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे।


घी को घड़ों या घोड़े की चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था, जिन्हें 'दबी' कहते थे। घी की गुणवत्ता और भी बढ़ जाती थी यदि गाय स्वयं गौचर में चरती, तालाब का पानी पीती और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।

                                                                                                                                                                                                                                              

🚩देसी घी की पहचान के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते है:


🚩हाथ से परीक्षण: हाथ को उल्टा करके उसमें घी लगाएं और उंगलियों को रगड़ें। अगर घी में दाने महसूस होते है, तो यह नकली हो सकता है।


🚩आयोडीन परीक्षण: एक चम्मच घी में चार-पांच बूंदें आयोडीन की मिलाएं। अगर रंग नीला हो जाता है, तो इसका मतलब घी में उबले आलू की मिलावट है।


🚩उबालकर परीक्षण: मार्केट से खरीदे हुए घी में से चार-पांच चम्मच घी निकाले और उसे किसी बर्तन में डालकर उबाले। फिर इस बर्तन को लगभग 24 घंटे के लिए अलग रख दें। अगर 24 घंटे बाद भी घी दानेदार और महकदार हो, तो घी असली है। यदि ये दोनों लक्षण गायब है, तो घी नकली हो सकता है।


🚩नमक और हाइड्रोक्लोरिक एसिड का परीक्षण: एक बर्तन में दो चम्मच घी, 1/2 चम्मच नमक और एक चुटकी हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाएं। इस मिश्रण को 20 मिनट के लिए अलग रख दें। 20 मिनट बाद, घी का रंग चेक करें। यदि घी ने कोई रंग नहीं बदला है, तो घी असली है। लेकिन अगर घी लाल या किसी अन्य रंग का हो गया है, तो समझें कि घी नकली हो सकता है।


🚩पानी में घी का परीक्षण: एक ग्लास में पानी भरें और एक चम्मच घी उसमें डालें। अगर घी पानी के ऊपर तैरने लगे, तो यह असली है। अगर घी पानी के नीचे बैठ जाता है, तो यह नकली हो सकता है।


🚩आज भी वही गायें, वही भादवे और वही घासें मौजूद है। यदि इस महान रहस्य को जानने के बावजूद यह व्यवस्था भंग हो जाती है, तो किसे दोष दें? जब गाय नहीं होगी, तो घी कहां होगा, यह एक विचारणीय प्रश्न है। 🙏


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Friday, August 16, 2024

हिंदू धर्म में संस्कार: आधार और महत्व

 17 August 2024

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🚩हिंदू धर्म में संस्कार: आधार और महत्व


हिंदू धर्म में 'संस्कार' जीवन की विभिन्न अवस्थाओं और घटनाओं को चिह्नित करने वाले अनुष्ठानों और समारोहों का समूह है। ये संस्कार व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ सामाजिक संरचना को मजबूत करते हैं। संस्कारों का एक विस्तृत और समृद्ध परंपरागत आधार होता है, जो व्यक्ति को अपने जीवन के प्रत्येक चरण में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इनका पालन करने से व्यक्ति न केवल अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं को निखारता है, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों को भी समझता है।


🚩संस्कारों के आधार


1. धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र: संस्कारों की परंपराएं और नियम वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। ये ग्रंथ जीवन के हर चरण के लिए विस्तृत निर्देश और महत्व बताते हैं, जिससे व्यक्ति धार्मिक आचरण और आध्यात्मिकता की राह पर चलता है।


2. धार्मिक आचार और नैतिकता: संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति में धार्मिक आचरण और नैतिकता का विकास होता है। इन अनुष्ठानों के पालन से व्यक्तिगत और सामाजिक कर्तव्यों के प्रति सजगता और आदरभाव उत्पन्न होता है।


3. सामाजिक संरचना और संस्कृति: संस्कारों को समाज की सांस्कृतिक परंपराओं से गहराई से जोड़ा जाता है। ये संस्कार सामाजिक संबंधों और सामाजिक जिम्मेदारियों को परिभाषित करते हैं, जिससे समाज में सद्भाव और एकता की भावना को बढ़ावा मिलता है।


4. आध्यात्मिक उन्नति: संस्कारों का एक प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति है। ये अनुष्ठान आत्म-शुद्धि और आत्मबोध को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे व्यक्ति मोक्ष और जीवन के उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।


5. स्वास्थ्य और कल्याण: कई संस्कार व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करते हैं। ये अनुष्ठान व्यक्ति की विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करने की तैयारी करते हैं।


6. अनुशासन और नियंत्रण: संस्कारों के माध्यम से अनुशासन और जीवन में अनुशासित दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाता है। ये व्यक्ति को नियंत्रित और संगठित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।


🚩संस्कारों के प्रकार


परंपरागत रूप से, 16 मुख्य संस्कारों को जीवन के विभिन्न चरणों में सम्पन्न किया जाता है, जो व्यक्ति के जीवन के महत्वपूर्ण चरणों और घटनाओं को चिह्नित करते हैं:


1. गर्भाधान संस्कार: गर्भाधान की शुद्धि के लिए।

2. पुंसवन संस्कार: गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा के लिए।

3. सीमंतोन्नयन संस्कार: गर्भवती स्त्री की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए।

4. जातकर्म संस्कार: जन्म के तुरंत बाद नवजात शिशु के लिए।

5. नामकरण संस्कार: शिशु का नामकरण करने के लिए।

6. निष्क्रमण संस्कार: शिशु का पहली बार घर से बाहर ले जाने के लिए।

7. अन्नप्राशन संस्कार: शिशु को पहला अन्न खिलाने के लिए।

8. चूड़ाकरण संस्कार: बाल कटवाने की पहली रस्म के लिए।

9. कर्णवेध संस्कार: कान छिदवाने के लिए।

10. विध्यारंभ संस्कार: शिक्षा के प्रारंभ के लिए।

11. उपनयन संस्कार: यज्ञोपवीत धारण करने के लिए।

12. वेदारंभ संस्कार: वेदों का अध्ययन शुरू करने के लिए।

13. केशांत संस्कार: पहला मुंडन कराने के लिए।

14. समावर्तन संस्कार: शिक्षा के पूर्ण होने पर स्नातक समारोह।

15. विवाह संस्कार: विवाह बंधन में बंधने के लिए।

16. अंत्येष्टि संस्कार: मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए।


 🚩निष्कर्ष

हिंदू धर्म में संस्कारों का पालन करने से व्यक्ति न केवल अपने जीवन के विभिन्न चरणों का सफलतापूर्वक पार करता है, बल्कि समाज में अपनी भूमिका को भी मजबूत करता है। ये संस्कार व्यक्ति और समाज के बीच एक गहरा संबंध स्थापित करते हैं और जीवन को समृद्ध बनाने का प्रयास करते हैं।


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Thursday, August 15, 2024

श्रावण मास का महत्व

 16 August 2024

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🚩श्रावण मास का महत्व


 🚩श्रावण मास, जिसे सावन का महीना भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह महीना भगवान शिव की आराधना और उनकी कृपा प्राप्ति के लिए जाना जाता है। इस दौरान सोमवार के दिन का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास में शिव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्री शिव महापुराण में लिखा है, "द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभः," जिसका अर्थ है, बारह महीनों में श्रावण शिव के लिए अतिप्रिय है।


 🚩श्रावण मास की 10 विशेषताएं इस प्रकार हैं:


🚩1. भगवान शिव की विशेष आराधना: श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह वर्ष का पांचवां महीना है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, सावन का महीना जुलाई-अगस्त में आता है।


🚩2. सावन सोमवार व्रत: इस मास में सावन सोमवार व्रत का सर्वाधिक महत्व है। श्रावण मास में बेल पत्र से शिवजी की पूजा और जल अर्पण अति फलदायी मानी जाती है।


🚩3. शिव पुराण की महिमा: शिव पुराण के अनुसार, सावन सोमवार व्रत करने से शिवजी सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। इस महीने में लाखों भक्त ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं।


🚩4. प्रकृति से संबंध: सावन का महीना वर्षा ऋतु का होता है, जो धरती को हरियाली से भर देता है। ग्रीष्म ऋतु के बाद होने वाली बारिश मानव समुदाय को राहत देती है।


🚩5. नारियल पूर्णिमा का उत्सव: भारत के पश्चिम तटीय राज्यों में श्रावण मास के अंतिम दिन नारियल पूर्णिमा मनाई जाती है।


🚩6. कांवड़ यात्रा: श्रावण के पावन मास में शिव भक्त कांवड़ यात्रा करते हैं, जिसमें गंगा जल से भरी कांवड़ को कंधों पर उठाकर तीर्थ स्थलों से लाते हैं और शिवजी को अर्पित करते हैं।


🚩7. पौराणिक कथाएं: पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को शिव ने पीकर अपनी कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और उनका नाम नीलकंठ पड़ा।


🚩8. व्रत की विविधता: सावन में भक्त तीन प्रकार के व्रत रखते हैं - सावन सोमवार व्रत, सोलह सोमवार व्रत, और प्रदोष व्रत। इन व्रतों से भक्तों को शिव और पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।


🚩9. ज्योतिष महत्व: श्रावण मास में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है, जो सभी राशियों को प्रभावित करता है।


🚩10. माँ पार्वती की आराधना: सावन मास माँ पार्वती को भी समर्पित है। विवाहित महिलाएं वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए और अविवाहित महिलाएं अच्छे वर के लिए शिवजी का व्रत रखती हैं।


 🚩श्रावण मास का यह पवित्र महीना भक्तों के लिए आस्था, श्रद्धा, और भक्ति से भरा होता है, जिसमें भगवान शिव और माँ पार्वती की कृपा प्राप्ति की कामना की जाती है।


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Wednesday, August 14, 2024

स्वतंत्रता दिवस: इतिहास और महत्व

 15 August 2024


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🚩स्वतंत्रता दिवस: इतिहास और महत्व:


15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में अंकित है। यह वह दिन था जब भारत के लोगों ने पहली बार एक आजाद देश में सांस लेना शुरू किया। अंग्रेजों की 200 सालों की गुलामी के बाद, 15 अगस्त का दिन एक ‘स्वर्णिम दिन’ के रूप में देश के लिए प्रसिद्ध हो गया। आज, हमारे देश की आजादी को 77 वर्ष पूरे हो गए हैं।


🚩आजादी का सफर


अंग्रेजों के अत्याचार और दो सौ वर्ष की गुलामी के पश्चात, भारतवासियों के मन में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी। नेताजी सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अनेक वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई। इन वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देशवासियों को अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त कराया। वहीं, सरदार पटेल और गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी। कई सत्याग्रह आंदोलनों और लाठियां खाने और जेल जाने के बाद अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। भारतीय जनता की एकजुटता और संघर्ष ने आखिरकार उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।


🚩स्वतंत्रता दिवस समारोह


स्वतंत्रता दिवस के इस ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए, हम सन् 1947 से आज तक इस दिन को बड़े उत्साह और प्रसन्नता के साथ मनाते आ रहे हैं। इस दिन, हमारे प्रधानमंत्री राजधानी दिल्ली के लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। इसके साथ ही शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और राष्ट्र के नाम संदेश दिया जाता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों, खेल परिसरों, स्‍काउट शिविरों पर भी भारतीय ध्‍वज फहराया जाता है। राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान गाए जाते हैं और स्वतंत्रता संग्राम के सभी महानायकों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस अवसर पर मिठाइयां बांटी जाती हैं और देश के प्रति गर्व का माहौल होता है।


🚩राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान


स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रगीत "वंदे मातरम्" और राष्ट्रगान "जन गण मन" का गान किया जाता है। "वंदे मातरम्" का लेखन बंकिमचंद्र चटर्जी ने किया था, जो मातृभूमि के प्रति प्रेम और भक्ति को दर्शाता है। वहीं, "जन गण मन" को रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा, जो भारत की विविधता और एकता को सलाम करता है। इन दोनों गीतों का स्वतंत्रता दिवस समारोह में विशेष महत्व है, और इनका गान हमें देश की अखंडता और संप्रभुता की याद दिलाता है।


🚩भारतीय झंडे का इतिहास


भारतीय तिरंगे का विकास एक रोचक यात्रा रही है। प्रथम चित्रित ध्वज 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया। पिंगली वेंकैया ने 1916 से 1921 तक दुनियाभर के देशों के झंडों का अध्ययन कर भारतीय ध्वज के लिए 30 डिज़ाइन पेश किए। 1921 में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बेजवाड़ा सत्र में पिंगली वेंकय्या ने दो रंगों, लाल और हरे, से बना एक झंडा प्रस्तुत किया। महात्मा गांधी की सलाह पर इसमें सफेद पट्टी और चरखा जोड़ा गया।


22 जुलाई 1947 को तिरंगे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। 15 अगस्त 1947 को, पंडित बीपी दुआ ने लाल किले पर तिरंगा फहराया, जो भारत की आज़ादी का प्रतीक था।


🚩स्वतंत्रता दिवस: एक राष्ट्रीय गौरव


स्वतंत्रता दिवस का महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1947 में था। यह दिन हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और संघर्ष की याद दिलाता है और हमें एकजुट होकर देश के विकास और उन्नति की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। इस दिन हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हुए देश के भविष्य के लिए अपने संकल्पों को दोहराते हैं।


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