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Saturday, July 8, 2023

मुंबई की मस्जिद के बाहर जुटी भीड़ के खतरे बड़े, क्योंकि स्वीडन में कुरान जली,पर भीड़ मुंबई में....

8 July 2023

http://azaadbharat.org

🚩लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण विरोध अधिकार है। इसलिए पहली नजर में मुंबई की मीनारा मस्जिद के बाहर 5 जुलाई 2023 को हुए इस जुटान की तस्वीर में कोई खतरा नहीं दिखता। लेकिन घंटी तब बजती है जब पता चलता है कि स्वीडन में कुरान जलाए जाने की घटना के विरोध में हुए इस प्रदर्शन के पीछे रजा अकादमी (Raza Academy) है।


🚩नाम से रजा अकादमी भले अकादमिक संस्था होने का आभास देता हो, पर यह कुख्यात अपने कट्टरपंथी इस्लामी विचारों को लेकर है।करतूतें इस संगठन की हिंसक मंशा की गवाह हैं। कई राज्यों में इस्लामी भीड़ की हिंसा के पीछे इस संगठन की भूमिका संदेहास्पद रही है। दुनिया के किसी भी कोने में हुई घटना पर मुस्लिमों को उकसाने के लिए यह कुख्यात रहा है।


🚩मुंबई के ही आजाद मैदान में अगस्त 2012 में हुआ दंगा देश अब तक भूला नहीं है। तब म्यामांर में रोहिंग्या मुस्लिमों पर कथित अत्याचार के विरोध के नाम पर भीड़ जुटा गई थी। सऊदी अरब में सिनेमा हॉल खुलने का विरोध हो या फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष के खिलाफ फतवा जारी करने की माँग, CAA और NRC का विरोध हो या COVID प्रोटोकॉल को लचीला बनाकर मस्जिद खोलने की माँग… रजा अकादमी की भूमिका आपको हर जगह दिख जाएगी। नवंबर 2021 में महाराष्ट्र के मालेगाँव, नांदेड़ और अमरावती जिलों में प्रदर्शन के नाम पर मुस्लिमों की भीड़ ने जो कुछ किया था, वह भी पूरे देश ने देखा है। उसके बाद रजा एकेडमी के दफ्तरों पर महाराष्ट्र पुलिस की छापेमारी और गिरफ्तारियों के बारे में भी हम जानते हैं।


🚩अतीत की ये तमाम घटनाएँ हमें बताती हैं कि बकरीद के दिन स्वीडन की एक मस्जिद के बाहर कुरान जलाए जाने की घटना के विरोध के नाम पर हुए इस छोटे जुटान को सामान्य विरोध प्रदर्शन मानकर नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी इस घटना के बाद वैश्विक स्तर पर जो इस्लामिक गुटबंदी दिख रही है, खुद को कुरान का सबसे बड़ा रखवाला साबित करने की जो होड़ लगी है, वह खतरे को और भी बढ़ा देता है। इसी घटना के विरोध के नाम पर इराक में स्वीडिश दूतावास पर हमला हो चुका है। 57 इस्लामी मुल्क सऊदी अरब में बैठक कर चुके हैं। तुर्की ने नाटो में स्वीडन के प्रवेश को रोकने के लिए एड़ी-चोट का जोर लगा रखा है। शिया मुस्लिमों के खिलाफ बर्बरता के लिए कुख्यात आतंकी संगठन लश्कर-ए-झांगवी पाकिस्तान में चर्चों और ईसाइयों पर हमला कर बदला लेने की धमकी दे रहा है। कंगाली पर खड़े पाकिस्तान का प्रधानमंत्री जुमे पर देशभर में प्रदर्शन का ऐलान कर रहा है। यह सब तब हो रहा है जब स्वीडन का राजनीतिक नेतृत्व से लेकर ईसाई नेता तक इस घटना की निंदा कर चुके हैं।


🚩अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीडन की मस्जिद के सामने एक इराकी के कुरान जलाने के बाद दुनियाभर के अलग अलग हिस्सों में हो रही इन तमाम गतिविधियों में एक ही चीज साझा है। वह है मजहब। वह मजहब जिसका हवाला देकर भीड़ हिंसा के लिए ही जुटाई जाती है। ऐसे में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर, लोकतांत्रिक अधिकार के नाम पर, स्वीडन में हुई घटना के विरोध में भारत के शहरों में जुटान करने, प्रदर्शन होने के भी खतरे बड़े है। खासकर तब जब इसके पीछे रजा अकादमी जैसा वह संगठन हो जिसका रिकॉर्ड भीड़ जमा कर उसे अनियंत्रित छोड़ने का पुराना और बदनाम रहा हो।


🚩जरूरी नहीं है कि हर बार हम हिंसा के बाद ही जगे। हर बार दंगों के बाद ही इन संगठनों के दफ्तरों पर छापे पड़े। मुस्लिमों को उकसाने और हिंसा की साजिश रचने वालों की गिरफ्तारी हो। आदर्श व्यवस्था तो वह है जो जुमे की पूर्वसंध्या पर ऐसी कहानियों की पटकथा लिखने का ही मौका न दे। उम्मीद की जानी चाहिए महाराष्ट्र में उफान मारती सियासत के बीच मुंबई पुलिस की नजर मीनारा मस्जिद के बाहर जुटी उस भीड़ पर भी रही होगी जिसने कुरान जलाने वाले को तुरंत फाँसी देने की माँग करते हुए उस देश में प्रदर्शन किया है, जिस देश में आतंकी अजमल कसाब को फाँसी भी कबाब खिलाने के बाद ही मिली थी।


🚩समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने 2005 में गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल करआए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।


🚩उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते।

🚩जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। 


🚩5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं।


🚩5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।


🚩10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं।


🚩20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं,असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। 


🚩शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।


🚩किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है।


🚩आप स्वयं इस शोध का आकलन कीजिये। क्योंकि समझदार को इशारा ही बहुत होता है।


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Friday, July 7, 2023

समान नागरिक संहिता लागू करने से क्या होगा ?

7 July 2023


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🚩नवम्बर 1948 में संविधान सभा की बैठक में समान नागरिक संहिता को लागू किये जाने पर लम्बी बहस चली। बहस में इस्लामिक चिन्तक मोहम्मद इस्माईल, जेड एच लारी, बिहार के मुस्लिम सदस्य हुसैन इमाम, नजीरुद्दीन अहमद सहित अनेक मुस्लिम नेताओं ने भीमराव अम्बेडकर का विरोध किया था।


🚩इसके बाद हुए मतदान में डॉ० अम्बेडकर का समान नागरिक संहिता का प्रस्ताव विजयी हुआ और संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लागू किये जाने सम्बन्धी विधान लाया गया,

अनुच्छेद-44 (समान नागरिक संहिता), अनुच्छेद-312 (भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा), अनुच्छेद-351 (हिंदी का प्रचार) जैसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद अभी तक पेंडिंग हैं। अनुच्छेद-51A (मौलिक कर्तव्य) को लोगों की इच्छा पर छोड़ दिया गया है।


🚩इसके बाद भी मुसलमानों के दबाव में समान नागरिक संहिता को लागू करने का विचार दफना दिया गया। मुस्लिम तुष्टिकरण बढ़ता गया और समान नागरिक संहिता की राह संकीर्ण होती गई।


🚩समान नागरिकता आने से हिंदुओं को दूसरे समुदायों जैसे बराबर अधिकार मिलेंगा। दुर्भाग्यवश अधिकांश लोगों को इसकी चेतना नहीं। हालिया समय में संविधान के अनुच्छेद 25 से 31 की हिंदू-विरोधी व्याख्या स्थापित कर दी गई है। कई शैक्षिक, सांस्कृतिक, सामाजिक अधिकारों पर केवल गैर-हिंदुओं यानी अल्पसंख्यकों का एकाधिकार बना दिया गया है।


🚩सरकार हिंदू शिक्षा संस्थान और मंदिरों पर मनचाहा हस्तक्षेप करती है और अपनी शर्तें लादती है। वह ऐसा गैर-हिंदू संस्थाओं पर नहीं करती। इसी तरह अल्पसंख्यकों को संवैधानिक उपचार पाने का दोहरा अधिकार है, जो हिंदुओं को नहीं है। हिंदू केवल नागरिक रूप में न्यायालय से कुछ मांग सकते हैं, जबकि अन्य नागरिक और अल्पसंख्यक, दोनों रूपों में संवैधानिक अधिकार रखते हैं। ऐसा अंधेर दुनिया के किसी लोकतंत्र में नहीं कि अल्पसंख्यक को ऐसे विशेषाधिकार हों जो अन्य को न मिलें।


🚩‘सोशलिज्म’ और ‘सेक्यूलरिज्म’ धारणाओं से हमारे संविधान निर्माता बखूबी परिचित थे। उन्होंने सोच-समझ कर, बल्कि सेक्यूलरिज्म पर विचार करके, इसे संविधान में कोई जगह नहीं दी। 


🚩इसी विरोध और कट्टरता के चलते सन 1972 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का जन्म हुआ। तबसे यह समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए शरीयत को संविधान और कानून से ऊपर बताती-मानती है।

कुछ समय से देश में समान नागरिक संहिता की चर्चा बार-बार हो रही है, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पा रही है। इसी तरह हिंदू मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त कराने की मांग भी अनुसनी बनी हुई है। छोटे-मोटे संगठन और एक्टिविस्ट धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बनाने की भी मांग कर रहे हैं। भोजन उद्योग में हलाल मांस का दबाव बढ़ाने की संगठित गतिवधियों के विरुद्ध भी असंतोष बढ़ा है। शिक्षा अधिकार कानून में हिंदू-विरोधी पक्षपात पर भी काफी उद्वेलन है। आखिर इन मांगों पर सत्ताधारियों का क्या रुख है?


🚩क्या है समान नागरिक संहिता


🚩समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए एक कानून की व्यवस्था होगी। हर धर्म का पर्सनल लॉ है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों के लिए अपने-अपने कानून हैं। UCC के लागू होने से सभी धर्मों में रहने वालों लोगों के मामले सिविल नियमों से ही निपटाए जाएंगे। UCC का अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा।


🚩इस्लामिक देशों में भी लागू है UCC


🚩मुस्लिम देशों में पारंपरिक रूप से शरिया कानून लागू है, जो धार्मिक शिक्षाओं, प्रथाओं और परंपराओं से लिया गया है। न्यायविदों द्वारा आस्था के आधार पर इन कानून की व्याख्या की गई है। हालांकि, आधुनिक समय में इस तरह के कानून में यूरोपीय मॉडल के मुताबिक कुछ संशोधन किया जा रहा है। दुनिया के इस्लामिक देशों में आमतौर पर पारंपरिक शरिया कानून पर आधारित नागरिक कानून लागू हैं। इन देशों में सऊदी अरब, तुर्की, सऊदी अगर, तुर्की, पाकिस्तान, मिस्र, मलेशिया, नाइजीरिया आदि देश शामिल हैं। इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए समान कानून हैं। किसी विशेष धर्म या समुदाय के लिए अलग-अलग कानून नहीं हैं।


🚩इनके अलावा इस्राइल, जापान, फ्रांस और रूस में समान नागरिक संहिता या कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून हैं। यूरोपीय देशों और अमेरिका के पास एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। रोम में सबसे पहले नागरिक कानून के सिद्धांत बनाए गए थे। रोम के लोगों ने एक कोड विकसित करने के लिए सिद्धांतों का इस्तेमाल किया, जो निर्धारित करता था कि कानूनी मुद्दों का फैसला कैसे किया जाएगा। फ्रांस में दुनिया में सबसे प्रसिद्ध नागरिक संहिताएं हैं। अमेरिका में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है, जबकि भारत की तरह यहां भी बहुत विविधता है।यहां कानून की कई लेयर्स हैं, जो देश, राज्य और काउंटी,


🚩एजेंसियों और शहरों में अलग-अलग लागू होती हैं। इन सबके बाद भी ये सामान्य सिद्धांत नागरिक कानूनों को राज्यों में इस तरह से नियंत्रित करते हैं जो पूरे देश में लागू होते हैं।


🚩भारत में जल्दी से समान नागरिक संहिता को लागू करना चाहिए एसी जनता की मांग हैं।


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