Sunday, February 18, 2018

जानिए वीर शिवाजी का इतिहास, कैसे शत्रुओं को चटाई थी धूल और की थी देश की रक्षा

February 18, 2018
🚩 छत्रपति वीर शिवाजी जयंती - 19 फरवरी
🚩शाहजी भोंसले की पत्नी जीजाबाई (राजमाता जिजाऊ) की कोख से #शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को #शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। शिवनेरी का दुर्ग पूना (पुणे) से उत्तर की तरफ जुन्नर नगर के पास था। उनका बचपन उनकी #माता #जिजाऊ के मार्गदर्शन में बीता। वह सभी कलाओं में माहिर थे, उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। ये भोंसले उपजाति के थे जो कि मूलतः कुर्मी जाति के थे, उनके पिता अप्रतिम शूरवीर थे और उनकी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थी । उनकी माता जी #जीजाबाई जाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली थी और उनके पिता एक शक्तिशाली सामंत थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। शासक वर्ग की करतूतों पर वे झल्लाते थे और बेचैन हो जाते थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया। अवस्था बढ़ने के साथ #विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ फेंकने का उनका संकल्प प्रबलतर होता गया। #छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640  में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुना में हुआ था।
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🚩सैनिक वर्चस्व का आरंभ!!
🚩उस समय बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा था। ऐसे #साम्राज्य के सुल्तान की सेवा करने के बदले उन्होंने मावलों को बीजापुर के खिलाफ संगठित किया। मावल प्रदेश पश्चिम घाट से जुड़ा है और लगभग 150 किलोमीटर लम्बा और 30 किलोमीटर चौड़ा है। वे संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते हैं। इस प्रदेश में #मराठा और सभी जाति के लोग रहते हैं। शिवाजी महाराज ने इन सभी जाति के लोगों को लेकर मावलों (मावळा) नाम देकर सभी को संगठित किया और उनसे सम्पर्क कर उनके प्रदेश से परिचित हो गए थे। मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया था। मावलों का सहयोग शिवाजी महाराज के लिए बाद में उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जितना शेरशाह सूरी के लिए अफगानों का साथ।
🚩उस समय #बीजापुर आपसी संघर्ष तथा #मुगलों के आक्रमण से परेशान था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया था। जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया। शिवाजी महाराज ने इसके बाद के दिनों में बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने की नीति अपनाई। सबसे पहला दुर्ग था तोरण का दुर्ग।
🚩दुर्गों पर नियंत्रण!!
🚩तोरण का दुर्ग पूना के दक्षिण पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर था। शिवाजी ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना दूत भेजकर खबर भिजवाई की वे पहले किलेदार की तुलना में बेहतर रकम देने को तैयार हैं और यह क्षेत्र उन्हें सौंप दिया जाये। उन्होंने आदिलशाह के दरबारियों को पहले ही रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया था और अपने दरबारियों की सलाह के मुताबिक आदिलशाह ने शिवाजी महाराज को उस #दुर्ग का अधिपति बना दिया। उस दुर्ग में मिली सम्पत्ति से शिवाजी महाराज ने दुर्ग की सुरक्षात्मक कमियों की मरम्मत का काम करवाया। इससे कोई 10 किलोमीटर दूर राजगढ़ का दुर्ग था और शिवाजी महाराज ने इस दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।
🚩शिवाजी महाराज की इस साम्राज्य विस्तार की नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली तो वह क्षुब्ध हुआ। उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने को कहा। शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया और नियमित लगान बन्द कर दिया। 
🚩राजगढ़ के बाद उन्होंने चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया और उसके बाद कोंडना के दुर्ग पर। #कोंडना (कोन्ढाणा) पर अधिकार करते समय उन्हें घूस देनी पड़ी। कोंडना पर अधिकार करने के बाद उसका नाम सिंहगढ़ रखा गया। #शाहजी राजे को पूना और सूपा की जागीरदारी दी गई थी और सूपा का दुर्ग उनके सम्बंधी बाजी मोहिते के हाथ में था। शिवाजी महाराज ने रात के समय सूपा के दुर्ग पर आक्रमण करके दुर्ग पर अधिकार कर लिया और बाजी मोहिते को शाहजी राजे के पास कर्नाटक भेज दिया। उसकी सेना का कुछ भाग भी शिवाजी महाराज की सेवा में आ गया। इसी समय पुरन्दर के किलेदार की मृत्यु हो गई और किले के उत्तराधिकार के लिए उसके तीनों बेटों में लड़ाई छिड़ गई। दो भाइयों के निमंत्रण पर शिवाजी महाराज पुरन्दर पहुँचे और कूटनीति का सहारा लेते हुए उन्होंने सभी भाइयों को बन्दी बना लिया। इस तरह पुरन्दर के किले पर भी उनका अधिकार स्थापित हो गया। अब तक की घटना में शिवाजी महाराज को कोई युद्ध या खूनखराबा नहीं करना पड़ा था। 1647 ईस्वी तक वे चाकन से लेकर नीरा तक के भूभाग के भी अधिपति बन चुके थे। अपनी बढ़ी सैनिक शक्ति के साथ शिवाजी महाराज ने मैदानी इलाकों में प्रवेश करने की योजना बनाई।
🚩एक अश्वारोही सेना का गठन कर शिवाजी महाराज ने आबाजी सोन्देर के नेतृत्व में कोंकण के विरुद्ध एक सेना भेजी। आबाजी ने कोंकण सहित नौ अन्य दुर्गों पर अधिकार कर लिया। इसके अलावा ताला, मोस्माला और रायटी के दुर्ग भी शिवाजी महाराज के अधीन आ गए थे। लूट की सारी #सम्पत्ति रायगढ़ में सुरक्षित रखी गई। कल्याण के गवर्नर को मुक्त कर शिवाजी महाराज ने कोलाबा की ओर रुख किया और यहाँ के प्रमुखों को विदेशियों के खिलाफ युद्ध के लिए उकसाया।

🚩शाहजी की बन्दी और युद्ध!!
🚩बीजापुर का सुल्तान #शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही आक्रोश में था। उसने शिवाजी महाराज के पिता को बन्दी बनाने का आदेश दे दिया। शाहजी राजे उस समय कर्नाटक में थे और एक विश्वासघाती सहायक बाजी घोरपड़े द्वारा बन्दी बनाकर बीजापुर लाए गए। उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने कुतुबशाह की सेवा प्राप्त करने की कोशिश की थी जो गोलकोंडा का शासक था और इस कारण आदिलशाह का शत्रु। बीजापुर के दो सरदारों की मध्यस्थता के बाद शाहाजी महाराज को इस शर्त पर मुक्त किया गया कि वे शिवाजी महाराज पर लगाम कसेंगे। अगले चार वर्षों तक शिवाजी महाराज ने बीजीपुर के खिलाफ कोई आक्रमण नहीं किया। इस दौरान उन्होंने अपनी सेना संगठित की।
🚩प्रभुता का विस्तार!!
🚩शाहजी की मुक्ति की शर्तों के मुताबिक शिवाजी राजेने बीजापुर के क्षेत्रों पर आक्रमण तो नहीं किया पर उन्होंने दक्षिण-पश्चिम में अपनी शक्ति बढ़ाने की चेष्टा की। पर इस क्रम में जावली का राज्य बाधा का काम कर रहा था। यह राज्य सातारा के सुदूर उत्तर पश्चिम में वामा और कृष्णा नदी के बीच में स्थित था। यहाँ का राजा चन्द्रराव मोरे था जिसने ये जागीर शिवाजी से प्राप्त की थी। शिवाजी ने मोरे शासक चन्द्रराव को स्वराज में शमिल होने को कहा पर चन्द्रराव बीजापुर के सुल्तान के साथ मिल गया। सन् 1653 में शिवाजी ने अपनी सेना लेकर जावली पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रराव मोरे और उसके दोनों पुत्रों ने शिवाजी के साथ लड़ाई की पर अन्त में वे बन्दी बना लिए गए पर चन्द्रराव भाग गया। स्थानीय लोगों ने शिवाजी के इस कृत्य का विरोध किया पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे। इससे शिवाजी को उस दुर्ग में संग्रहीत आठ वंशों की सम्पत्ति मिल गई। इसके अलावा कई मावल सैनिक मुरारबाजी #देशपाडे भी शिवाजी की #सेना में सम्मिलित हो गए।
🚩मुगलों से पहली मुठभेड़!!
🚩शिवाजी के बीजापुर तथा मुगल दोनों शत्रु थे। उस समय शहजादा औरंगजेब दक्कन का सूबेदार था। इसी समय 1 नवम्बर 16653 को बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हो गई जिसके बाद बीजापुर में अराजकता का माहौल पैदा हो गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया और #शिवाजी ने औरंगजेब का साथ देने की बजाय उसपर धावा बोल दिया। उनकी सेना ने जुन्नार नगर पर आक्रमण कर ढेर सारी सम्पत्ति के साथ 200 घोड़े लूट लिये। #अहमदनगर से 700 घोड़े, चार हाथी के अलावा उन्होंने गुण्डा तथा रेसिन के दुर्ग पर भी लूटपाट मचाई। इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफा हो गया और मैत्री वार्ता समाप्त हो गई। शाहजहाँ के आदेश पर औरंगजेब ने बीजापुर के साथ संधि कर ली और इसी समय शाहजहाँ बीमार पड़ गया। उसके व्याधिग्रस्त होते ही औरंगजेब उत्तर भारत चला गया और वहाँ शाहजहाँ को कैद करने के बाद मुगल साम्राज्य का शाह बन गया।
🚩कोंकण पर अधिकार!!
🚩दक्षिण भारत में औरंगजेब की अनुपस्थिति और बीजापुर की डवाँडोल #राजनैतिक स्थिति को जानकर शिवाजी ने समरजी को जंजीरा पर आक्रमण करने को कहा। पर जंजीरा के सिद्दियों के साथ उनकी लड़ाई कई दिनों तक चली। इसके बाद शिवाजी ने खुद जंजीरा पर आक्रमण किया और दक्षिण कोंकण पर अधिकार कर लिया और दमन के पुर्तगालियों से वार्षिक कर एकत्र किया। कल्याण तथा भिवण्डी पर अधिकार करने के बाद वहाँ नौसैनिक अड्डा बना लिया। इस समय तक शिवाजी 40 दुर्गों के मालिक बन चुके थे।
🚩बीजापुर से संघर्ष!!
🚩इधर औरंगजेब के आगरा (उत्तर की ओर) लौट जाने के बाद बीजापुर के सुल्तान ने भी राहत की सांस ली। अब शिवाजी ही बीजापुर के सबसे प्रबल शत्रु रह गए थे। शाहजी को पहले ही अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने को कहा गया था पर शाहजी ने इसमें अपनी असमर्थता जाहिर की। शिवाजी से निपटने के लिए बीजापुर के सुल्तान ने अब्दुल्लाह भटारी (अफजल खाँ) को शिवाजी के विरूद्ध भेजा। अफजल ने 120000 सैनिकों के साथ 1659 में कूच किया। तुलजापुर के मन्दिरों को नष्ट करता हुआ वह सतारा के 30 किलोमीटर उत्तर वाई, शिरवल के नजदीक तक आ गया। पर शिवाजी प्रतापगढ़ के दुर्ग पर ही रहे। अफजल खाँ ने अपने दूत कृष्णजी भास्कर को सन्धि-वार्ता के लिए भेजा। उसने उसके मार्फत ये संदेश भिजवाया कि अगर शिवाजी बीजापुर की अधीनता स्वीकार कर ले तो सुल्तान उसे उन सभी क्षेत्रों का अधिकार दे देंगे जो शिवाजी के नियंत्रण में हैं। साथ ही शिवाजी को बीजापुर के दरबार में एक सम्मानित पद प्राप्त होगा। हालांकि शिवाजी के मंत्री और सलाहकार अस संधि के पक्ष मे थे पर शिवाजी को ये वार्ता रास नहीं आई। उन्होंने कृष्णजी भास्कर को उचित सम्मान देकर अपने दरबार में रख लिया और अपने दूत गोपीनाथ को वस्तुस्थिति का जायजा लेने अफजल खाँ के पास भेजा। #गोपीनाथ और कृष्णजी भास्कर से शिवाजी को ऐसा लगा कि सन्धि का षडयंत्र रचकर अफजल खाँ शिवाजी को बन्दी बनाना चाहता है। अतः उन्होंने #युद्ध के बदले अफजल खाँ को एक बहुमूल्य उपहार भेजा और इस तरह अफजल खाँ को सन्धि वार्ता के लिए राजी किया। सन्धि स्थल पर दोनों ने अपने सैनिक चौकन्ने कर रखे थे मिलने के स्थान पर जब दोनों मिले तब अफजल खाँ ने अपने कट्यार से शिवाजी पे वार किया बचाव में #शिवाजी ने #अफजल खाँ को 10 नबम्बर 1659 मे अपने वस्त्रों वाघनखो से #मार दिया ।
🚩अफजल खाँ की मृत्यु के बाद शिवाजी ने पन्हाला के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इसके बाद पवनगढ़ और वसंतगढ़ के दुर्गों पर अधिकार करने के साथ ही साथ उन्होंने रूस्तम खाँ के आक्रमण को विफल भी किया। इससे राजापुर तथा दावुल पर भी उनका कब्जा हो गया। अब बीजापुर में आतंक का माहौल पैदा हो गया और वहाँ के सामन्तों ने आपसी मतभेद भुलाकर शिवाजी पर #आक्रमण करने का निश्चय किया। 2 अक्टूबर 1665 को बीजापुरी सेना ने पन्हाला दुर्ग पर अधिकार कर लिया। शिवाजी संकट में फंस चुके थे पर रात्रि के अंधकार का लाभ उठाकर वे भागने में सफल रहे। बीजापुर के सुल्तान ने स्वयं कमान सम्हालकर पन्हाला, पवनगढ़ पर अपना अधिकार वापस ले लिया, राजापुर को लूट लिया और श्रृंगारगढ़ के प्रधान को मार डाला। इसी समय कर्नाटक में सिद्दीजौहर के विद्रोह के कारण बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के साथ समझौता कर लिया। इस संधि में शिवाजी के पिता शाहजी ने मध्यस्थता का काम किया। सन् 1662 में हुई इस सन्धि के अनुसार शिवाजी को बीजापुर के सुल्तान द्वारा स्वतंत्र शासक की मान्यता मिली। इसी संधि के अनुसार उत्तर में कल्याण से लेकर दक्षिण में पोण्डा तक (250 किलोमीटर) का और पूर्व में इन्दापुर से लेकर पश्चिम में दावुल तक (150 किलोमीटर) का भूभाग शिवाजी के नियंत्रण में आ गया। #शिवाजी की #सेना में इस समय तक 30000 पैदल और 1000 घुड़सवार हो गए थे।
🚩मुगलों से संघर्ष!!
🚩उत्तर #भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियंत्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने 3 साल तक मावल में लूटपाट की। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मावलों के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र, तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया।
सूरत में लूट!!
🚩इस जीत से शिवाजी की #प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शास्ताखान अपनी 1,50,000 फौज लेकर राजा शिवाजी का पूरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उसका हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरंभ किया। #सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ छः दिनों तक सूरत के धनाढ्य व्यापारियों को लूटा आम आदमी को नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का जिक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारी भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। नादिर शाह के भारत पर आक्रमण करने तक (1739) किसी भी यूूरोपीय शक्ति ने भारतीय मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करने की नहीं सोची थी।
🚩सूरत में शिवाजी की लूट से खिन्न होकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन खां को सूरत का फौजदार नियुक्त किया और शहजादा मुअज्जम तथा उपसेनापति राजा जसवंत सिंह की जगह दिलेर खाँ और राजा जयसिंह की नियुक्ति की गई। राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय शक्तियाँ तथा छोटे सामन्तों का सहयोग लेकर शिवाजी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुगलों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएंगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के खिलाफ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे।
🚩आगरा में आमंत्रण और पलायन
🚩शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरकैद कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अजोड़ साहस और  युक्ति के साथ #शिवाजी और सम्भाजी दोनों 17 अगस्त 1666 में वहां से भागने में सफल रहे । 
🚩#सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी बनारस, गया, पुरी होते हुए 2 सितंबर 1666 को सकुशल राजगढ़ पहुँच गए । इससे #मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार संधि की। औरंगजेब ने #शिवाजी को #राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया पर सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुगलों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा। नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास फिर से हराया।
🚩राज्याभिषेक!!
🚩सन् 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र #हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया। (संदर्भ दिजीए) शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने काशी में गंगाभ नामक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। #राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया विवश होकर शिवाजी को अष्टप्रधान मंडल की स्थापना करनी पड़ी । विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस #समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरुद्ध भेजा पर वे असफल रहे।
🚩दक्षिण में दिग्विजय!!
🚩सन् 1677-78 में शिवाजी का ध्यान कर्नाटक की ओर गया। उन्होंने #बम्बई के दक्षिण में कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में बेलगाँव तथा धारवाड़ का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर अधिकार जमाया।
🚩स्वर्गवास (मृत्यु) और उत्तराधिकार!!
🚩तीन सप्ताह की बीमारी के बाद शिवाजी का स्वर्गवास 3 अप्रैल 1680 में हुआ। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार शम्भाजी को मिला ।
छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा चलाया गया सिक्का!
🚩शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। यद्यपि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी, पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से सुपरिचित थे। उन्होंने #शुक्राचार्य तथा #कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह भी निरंकुश शासक थे, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उनके प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को #पेशवा कहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती होते थे । अमात्य वित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का ख्याल रखता था। सचिव दफतरी काम करते थे जिसमें शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्त विदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापति कहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितराव कहते थे। न्यायाधीश न्यायिक मामलों का प्रधान था।
🚩मराठा साम्राज्य तीन या चार विभागों में विभक्त था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास भी एक अष्टप्रधान समिति होती थी। कुछ प्रान्त केवल करदाता थे और प्रशासन के मामले में स्वतंत्र। न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी।
🚩शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गाँव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जाँच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमिकर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। 'चौथ' पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूले जाने वाला कर था। #शिवाजी अपने को मराठों का सरदेशमुख कहते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।
🚩राज्याभिषेक के बाद उन्होंने अपने एक #मंत्री (रामचन्द्र अमात्य) को शासकीय उपयोग में आने वाले फारसी शब्दों के लिये उपयुक्त #संस्कृत शब्द निर्मित करने का कार्य सौंपा। रामचन्द्र अमात्य ने धुन्धिराज नामक विद्वान की सहायता से 'राज्यव्यवहारकोश' नामक ग्रन्थ निर्मित किया। इस कोश में 1280 फारसी के प्रशासनिक शब्दों के तुल्य संस्कृत शब्द थे। इसमें #रामचन्द्र ने लिखा है- कृते म्लेच्छोच्छेदे भुवि निरवशेषं रविकुला-वतंसेनात्यर्थं यवनवचनैर्लुप्तसरणीम्।नृपव्याहारार्थं स तु विबुधभाषां वितनितुम्।नियुक्तोऽभूद्विद्वान्नृपवर शिवच्छत्रपतिना ॥८१॥
🚩धार्मिक नीति!!
🚩शिवाजी एक समर्पित हिन्दू थे तथा वह धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान फकीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे। #शिवाजी हिन्दू संकृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह अपने अभियानों का आरंभ भी अकसर दशहरे के अवसर पर करते थे।
🚩चरित्र
🚩शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज की #शिक्षा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र की तरह उन्होंने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव नजर आता है। उसके बाद उन्होंने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसा कि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होंने अपना राज्याभिषेक करवाया हाँलांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके #नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।
🚩वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय युद्ध से भाग लिया था। लेकिन यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही।
🚩शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कूटनीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियता से और आदरसहित याद की जाती है।
🚩शिवाजी महाराज के गौरव में ये पंक्तियाँ प्रसिद्ध हैं-
🚩शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप।शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥
🚩कैसे कैसे #वीर सपूत हुए इस धरा पर...जिन्होंने अपने जीवन काल में कभी दुश्मनों के आगे घुटने नही टेके बल्कि साम,दाम, दण्ड भेद की निति द्वारा दुश्मनों को हराया।
🚩छत्रपति शिवाजी महाराज #भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे । भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने #शिवाजी के जीवनचरित्र से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया।
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Saturday, February 17, 2018

रिपोर्ट : अंग्रेजी भाषा और अधिक खर्च के कारण बच्चें छोड़ रहे है पढ़ाई

February 17, 2018

भारत भले अंग्रेजो के चँगुल से मुक्त हो गया हो लेकिन अंग्रेजों की मानसिकता अभि तक गई नही है और मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा पद्धति आज भी चल रही है जिसके कारण बच्चे न अपने जीवन में उन्नत हो पाते हैं और न ही इतना खर्च कर पाते हैं और न ही विदेशी भाषा पढ़ पाते हैं जिसके कारण बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे हैं और शिक्षा से वंचित रह जाते हैं ।
Report: Children are leaving due to English language and more expenses.

एनसीपीसीआर के एक अध्ययन में यह कहा गया है कि अंग्रेजी भाषा में संवाद, पाठ्यक्रम से अतिरिक्त गतिविधियों में खर्च एवं शिक्षा व्यय पर ‘बेतहाशा खर्च ’ ऐसे प्रमुख कारण हैं जिनके चलते दिल्ली के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग एवं वंचित समूहों के छात्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। दिल्ली के निजी स्कूलों में वंचित वर्गों से बच्चों के दाखिले से संबंधित शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई), 2009 की धारा 12 (1) (सी) के क्रियान्वयन पर अध्ययन में यह भी पाया गया कि वर्ष 2011 में स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्र करीब 26 प्रतिशत थे जो वर्ष 2014 में गिरकर 10 प्रतिशत हुआ था। 

आरटीई अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) कमजोर एवं वंचित वर्गों के बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के लिये निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों की जवाबदेही तय करती है। इसके अनुसार ऐसे स्कूलों को कक्षा एक या पूर्व स्कूली शिक्षा में छात्रों की कुल क्षमता के कम से कम एक चौथाई हिस्से में ऐसे वर्ग के छात्रों को दाखिला देना होता है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, विशेषकर शुरुवाती कक्षा अर्थात प्राथमिक एवं पूर्व-प्राथमिक स्तर की कक्षा में स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों का प्रतिशत प्राथमिक स्तर पर अधिक होता है। भारत में बाल अधिकार संरक्षण की शीर्ष संस्था का यह अध्ययन समूची दिल्ली के 650 स्कूलों द्वारा स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले बच्चों के विषय में दिये गये वर्षवार आंकड़े पर आधारित था। 

अध्ययन में कहा गया, ‘अभिभावकों का दावा है कि किताबें एवं पाठ्यक्रम से इतर गतिविधियों का खर्च बहुत अधिक होता है जिसके चलते वे स्कूल छोड़ देते हैं।’ एनसीपीसीआर ने यह भी सुझाव दिया कि जहां तक संभव हो बच्चों को पढ़ाने का माध्यम उनकी मातृभाषा होनी चाहिए।

लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ  (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे साधु-संतों की खिल्ली उड़ायेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!


विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन

स्वामी विवेकानन्द मैकाले द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बाबुओं की संख्या बढ़ाना था। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को 'निषेधात्मक शिक्षा' की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ?

अतः स्वामीजी सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्ष में नहीं थे, वे व्यावहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे। व्यक्ति की शिक्षा ही उसे भविष्य के लिए तैयार करती है, इसलिए शिक्षा में उन तत्वों का होना आवश्यक है, जो उसके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो। 

स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में,
तुमको कार्य के सभी क्षेत्रों में व्यावहारिक बनना पड़ेगा। सिद्धान्तों के ढेरों ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है।

स्वामी जी शिक्षा द्वारा लौकिक एवं पारलौकिक दोनों जीवन के लिए तैयार करना चाहते हैं । लौकिक दृष्टि से शिक्षा के सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि 'हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने।' पारलौकिक दृष्टि से उन्होंने कहा है कि 'शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।'

स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त

1. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।

2. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने।

3. बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।

4. धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।

5. पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।

6. शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।

7. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।

8. सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये।

9. देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए ।

10. मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।

भारत सरकार को मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा पद्धति तो खत्म कर देना चाहिए और वैदिक गुरुकुलों के अनुसार पढ़ाई करवानी चाहिए तभी व्यक्ति, समाज और देश भला होगा ।

Friday, February 16, 2018

गाय को गौमाता का दर्जा दिलाने के लिए होगा विशाल आंदोलन, गोपालमणि का खुल्ला पत्र

February 16, 2018

भारत में प्राचीन काल से ही गाय की पूजा होती रही है क्योंकि गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास माना गया है इसलिए गाय को माता का दर्जा भी दिया है, कहते है कि बच्चा जन्मे और किसी कारणवश उसकी माता का निधन हो जाये तो बच्चे को गाय का दूध पिलाने पर जिंदा रह सकता है । कहते है कि जननी दूध पिलाती, केवल साल छमाही भर ! गोमाता पय-सुधा पिलाती, रक्षा करती #जीवन भर !!

दुनिया में किसी भी प्राणी का मल-मूत्र पवित्र नही माना जाता । यहाँ तक कि मनुष्य का भी मल-मूत्र पवित्र नही माना जाता है केवल गाय ही ऐसा प्राणी है जिसका गोबर और गौ-मूत्र पवित्र माना जाता है । यहाँ तक कि #पूजा पाठ में भी गोबर और गौ-मूत्र का उपयोग किया जाता है ।
Govamata will have a huge movement to give cow status,
 Gopalani's open letter

गौ माता के #गोबर से गैस बनती है जो आपके #रसोई घर में उपयोग आ सकती है । उसका खाद जिस जमीन पर पड़ता है वो बंजर जमीन भी उपजाऊ हो जाती है और उस जमीन का धान्य बहुत पौष्टिक होता है ।

गौ-माता के सूखे कंडे में घी डालकर धुँआ किया जाये तो 1 टन #ऑक्सीजन बनता है ।

गौ मूत्र में मुख्यत 16 खनिज तत्व पाये जाते हैं जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं । यहाँ तक कि कैंसर जैसी भयंकर बीमारियां भी मिटा देती है ।

गाय माता के शरीर से पवित्र गुगल जैसी सुगंध आती है जो वातावरण को शुद्ध और पवित्र करती है ।

आपको बता दें कि 1966 में धर्मसम्राट संत करपात्रीजी महाराज ने गौरक्षा आंदोलन के लिए बड़ा आंदोलन किया था अब 51 वर्ष बाद फिर से 18 फरवरी 2018 को दिल्ली के रामलीला मैदान में गौमाता को राष्ट्रमाता का सम्मान दिलाकर गोवंश हत्यामुक्त भारत बनाने के लिए एक ऐतिहासिक स्वर्णिम आंदोलन गौक्रांति अग्रदूत गोपाल मणि जी  के सान्निध्य में सभी साधु-संतों, धर्मरक्षक विभूतियों और लाखों गौभक्तो की उपस्थिति के साथ होने जा रहा है।

संत गोपाल मणि जी का खुल्ला पत्र

संत गोपालमणि गौमाता के लिए क्यों करना चाहते है बड़ा आंदोलन, उसके लिए उनके नाम से सोशल मीडिया पर एक पत्र घूम रहा है ।

पत्र में संत गोपालमणि ने लिखा है कि 
प्रिय गौभक्तो जय गौमाता,
_18 फरवरी 2018_ दिन रविवार को होने जा रहा है गौमाता प्रतिष्ठा आंदोलन।

ये आंदोलन भारत की धर्मप्रेमी जनता, 80 कोटि सनातनियों की आस्था से जुड़ा विषय है क्योंकि गौमाता ही सनातन धर्म की मूल है। जिस गौमाता के दूध की खीर से भगवान राम अवतरित हुए, जिस गौमाता के पीछे भगवान कृष्ण भागते रहे, जिस गौमाता की रक्षा के लिए भगवान परशुराम ने अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लिया, जिस गौमाता के कारण ही हमारे 16 संस्कार पूर्ण होते है, जो गौमाता भारत माता का साकार स्वरूप है, जो गौमाता आज़ादी की क्रांति का मूल है, जो गौमाता धर्म, अर्थ, काम और  मोक्ष देने वाली है, जो गौमाता भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो गौमाता भारत को विश्वगुरु बना सकती है, जो गौमाता किसानों को गोबर का मूल्य दिला सकती है, जो गौमाता दूध से ही कुपोषण को दूर कर सकती है, जो गौमाता प्रकृति को प्राणवायु दे सकती है, जो गौमाता आरोग्य की मूल है,जो गौमाता स्वयं प्रकृति है, जो गौमाता भारत का स्वरूप है उस गौमाता को 70 वर्षो में काटा जा रहा है इससे बड़े शर्म, दुर्भाग्य और पाप क्या होगा भला।

पत्र में आगे बताया कि सोचिये गौमाता को हम विश्वमाता कहते हैं और माता मानते है लेकिन भारत सरकार के दस्तावेजों में गाय पशु है और पशु काटने के 36000 से अधिक वैध-अवैध कत्लखाने है भारत में, इसलिए *जब तक गाय पशु है तब तक कौन उसे बचा सकता है और जब गाय माता है तो कौन माई का लाल उसे काट सकता है*। इसलिए 18 फरवरी 2018 के आंदोलन गौमाता को इस देश में संवैधनिक रूप से माता का सम्मान दिलाने का है और पांच मांगो के साथ चल रहा है -

 1. गौ माता को राष्ट्रमाता के पद पर सुशोभित करें एंव गौ मंत्रालयों का अलग से गठन हो।

2. किसानों को गोबर का मूल्य दो। गोबर की खाद का उपयोग हो,गोबर गैस का चूल्हा जलाने एंव गोबर गैस को सी.न.जी गैस में परिवर्तन कर मोटर गाड़ी चलाने में उपयोग हो।

3 . 10 वर्ष तक के बालक-बालिकाओ को सरकार की ओर से भारतीय गाय का दूध नि:शुल्क उपलब्ध हो ,प्रत्येक गाँव में भारतीय नंदी की व्यवस्था हो।

4. गोचरान  भूमि गौवंश के लिये ही मुक्त हो।

5.गौ-हत्यारों को मृत्यु दण्ड दिया जायें।

इसलिए आपसे निवेदन है गौमाता के इस महान अहिंसक और शांतिपूर्ण यज्ञ में भाग लेकर अपनी पूरी ताकत से इस आंदोलन में जुड़े, लगे और पोस्टर, पम्पलेट, होर्डिंग, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इसका प्रचार करें और कराएं ।

उस पत्र में आगे लिखा है कि ये हमें सोचना होगा कि भारत के इतिहास में जब इतना बड़ा आंदोलन होने जा रहा है तो हम सबको पीछे नही रहना है। ये मौका दोबारा नही आएगा, बार बार नहीं आएगा, इसलिए इस संदेश को पढ़ रहा हर व्यक्ति 18 फरवरी 2018 के आंदोलन में अपनी भागीदारी तय करें ताकि भविष्य का इतिहास आपको प्रश्रचिन्ह में ना रखे।_

अधिक से अधिक गौभक्तों, सनातनियों और धर्मप्रेमी जनता को इस आंदोलन से जोड़े क्योंकि ये हमारी संस्कृति का विषय है, माँ के सम्मान का विषय है, गौरक्षा का विषय है।

गौ-माता भारत देश की रीड की हड्डी है । जो सभी को स्वस्थ्य #सुखी जीवन जीने में मदद रूप बनती है । सभी को आजीवन गौ-माता की रक्षा के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए ।

गौमाता की इतनी उपयोगीता और उसकी हत्या हो रही है उससे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि सभी को मिलकर #गौ-माता को #राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाकर तन-मन-धन से इसकी रक्षा करनी चाहिए ।

Thursday, February 15, 2018

अश्लीलता फैलाने के आरोप में रूस की डांसर गिरफ्तार, भारत में एेसी कार्यवाही कब ?

February 15, 2018

भारत देश की संस्कृति इतनी महान है कि नारी को नारायणी का दर्जा दिया गया है और बड़ी हो तो माता समान, समान हो तो बहन समान, छोटी हो तो बेटी समान दर्जा देकर अपनी रक्षा करते थे युवक और भारतीय संस्कृति में शादी को इसलिए इतना महत्व दिया गया है कि जो अंदर काम वासना के संस्कार है तो एक ही स्त्री के साथ जीवनभर रहे और उन संस्कारों पर विजय प्राप्त करें और अन्य महिलाओं के प्रति नारायणी का भाव रखें लेकिन  भारत में अंग्रेज आक्रमणकारी आये उन्होंने भारतीय संस्कृति को खत्म करने के लिए पश्चिमी संस्कृति को थोपना शुरू कर दिया जिसके कारण विदेशी कम्पनियों का व्यापार बढ़ा और अधिक बढ़ाने के लिए टीवी, सिनेमा, मीडिया, अखबार, नोवेल आदि द्वारा अश्लीलता फैलाना शुरू किया जिसके कारण विदेशी कम्पनियों की दवाइयां, गर्भनिरोधक साधन, नशीले पदार्थ आदि खूब बिकने लगे।  आज इन अश्लीलता का कोई विरोध करते है तो उसको अभिव्यक्ति की आज़ादी के विरोधी बताते है लेकिन देश के युवक-युवतियों को भयंकर हानि हो रही है वो नही बताते है।
Russia's dancer arrested for spreading obscenity,
 when did the same action in India?

मिस्र के युवाओं को अश्लीलता से बचाने के लिए वहाँ की सरकार बड़ी सतर्क है, उन्होंने जो कदम उठाया वो बड़ा सराहनीय है, जो भारत सरकार को भी उठाना चाहिए ।

आपको बता दें कि रूस की बेली डांसर इकाटेरीना एंड्रीवा को मिस्र में अश्लीलता फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है । 31 वर्षीय एंड्रीवा ने मिस्त्र के गीजा के एक नाइटक्लब में डांस किया था, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी कर ली गई । 

रिपोर्ट्स के अनुसार डांस के दौरान बेली डांसर ने जो कपडे पहने थे वह काफी अश्लील थे और बहुत ही ज्यादा उत्तेजित करने वाले थे । इसलिए पुलिस ने बेली डांसर की गिरफ्तारी की थी । नाइटक्लब में एंड्रीवा द्वारा किए गए डांस का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ । वीडियो इतना वायरल हो गया कि पुलिस की नजर भी इस पर पड गई, जिसके बाद एंड्रीवा को गिरफ्तार कर लिया गया ।

मेल ऑनलाइन के अनुसार गवहारा उर्फ इकाटेरीना एंड्रीवा का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसमें वह बैकलेस ड्रेस पहनी हुई दिख रही हैं । उनकी ड्रेस एक तरफ से कमर तक कटी हुई है । इसके अलावा उनके ऊपर बिना अंडरगार्मेंट पहनें डांस करने का भी आरोप लगा है । पुलिस का कहना है कि इस तरह के कपडे पहनकर अश्लील डांस करने के कारण युवा भटक सकते हैं । युवाओं के लिए यह काफी अनैतिक है ।

मिस्र के अभियोजक हातिम फदल का कहना है, ‘एंड्रीवा ने बिना अंडरगार्मेंट पहनें डांस किया, जो कि बहुत अश्लील था ।’ इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि एंड्रीवा के पास काम करने के लिए जरूरी लाइसेंस भी नहीं है । इस मामले में अगला कदम क्या होगा इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, फिलहाल एंड्रीवा के डांस पर रोक लगा दी गई है ।
जब मिस्र सरकार युवाओं को बचाने के लिए अश्लीलता फैलानी वाली डांसर को गिरफ्तार करके उसका डांस बेन कर सकते हैं तो भारत में देरी क्यो?

बॉलीवुड, मीडिया, टीवी, अखबार आदि द्वारा जो अश्लीलता फैलायी जा रही है जिसके कारण देश के युवक-युवतियों को बड़ी हानि हो रही है ।
हमारे देश का भविष्य हमारी युवा पीढ़ी पर निर्भर है किन्तु उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह आज गुमराह हो रही है |

पाश्चात्य भोगवादी सभ्यता के दुष्प्रभाव से युवाधन पतन के रास्ते अग्रसर है | विदेशी चैनल, चलचित्र, अश्लील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को गुमराह किया जा रहा है | विभिन्न सामयिकों और समाचार-पत्रों में भी तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और ‘सेक्सोलॉजिस्ट’ युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र, संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं |

पाश्चात्य आचार-व्यवहार के अंधानुकरण से युवानों में जो फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति कुसंग, अभद्रता, चलचित्र-प्रेम आदि बढ़ रहे हैं उससे दिनोंदिन उनका पतन होता जा रहा है | वे निर्बल और कामी बनते जा रहे हैं | 

पाॅर्न, अश्लीलता ये एेसे शब्द है जिनका भारतीय सभ्यता में कोर्इ स्थान नही है इसे सुनने में हमें शर्म महसूस होती है । परंतु इसी पॉर्न फिल्म देखने में आज भारत चोथवें स्थान पर है । पॉर्न अभिनेत्री सनी लिआेन गूगल में सर्च होनेवाली पहले नंबर में है यानी लोग इसे ज्यादा सर्च करते है । कॅनडा मूल की सनी लिआेन ने भारत में आकर अश्लील फिल्मों में काम किया आैर लाेगों ने उसे पसंद किया । उसके बाद अमेरिकी पोर्न फिल्मों की अभिनेत्री मिया मालकोवा भी पाॅर्न फिल्में कर रही है आैर इन्हें यह अवसर देनेवाले निर्माता है राम गोपाल वर्मा जिन्होने मार्च 2017 में कहा था, ‘दुनिया की हर महिला पुरुष को ऐसी खुशी दे जैसी सनी लियोन देती हैं !’ इस से उनका महिलाआें की आेर देखने का नजरीया साफ हो रहा है ।  यह बात हम इसलिए याद दिला रहे हैं क्योंकि जहां भारत में अश्लिलता को इतना खुलेआम दिखाया जाता है कि उससे आज के युवाआें की हाेनेवाली हानि की आेर नजरअंदाज किया जा रहा है । परंतु हाल ही मिस्र ने जो कदम उठाया है उसे देख लग प्रश्न उठ रहा है कि, क्या देव, ऋषिमुनियों के पावन भूमि में एेसा कदम भारत उठाएगा ? क्या अपनी सांस्कृतिक पहचान बरकरार रखने के लिए देश में अश्लीलता फैलानेवाले लोगोंपर कार्यवार्इ करेगा ?

Wednesday, February 14, 2018

वेलेंटाइन डे पे भारी पड़ा मातृ-पितृ पूजन दिवस, छाया रहा विश्वभर में

February 14, 2018

🚩 आज जहाँ एक ओर #वैलेंटाइन डे का प्रभाव अंधाधुंध बढ़ता आ रहा है तथा इसके कुप्रभाव व #दुष्परिणाम समाज के सामने प्रत्यक्ष हो रहे हैं ।
#एड्स, नपुसंकता, दौर्बल्य, छोटी उम्र में ही गर्भाधान (Teenage Pregnency), ऑपरेशन आदि गुप्त बिमारियों का सामना समाज को करना पड़ रहा है ।
Mother-father worship day, shadow on World's Greatest Day

🚩वहीं दूसरी ओर समाज में युवावर्ग का चारित्रिक पतन होते देख तथा #देश भर में वृद्धाश्रमों की माँग बढ़ते देख #हिन्दू #संत #बापू #आसारामजी ने 2006 से एक अनूठी मुहिम की तरफ युवावर्ग को आकर्षित किया। जो है #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस

🚩जिसका #देश- विदेश की सभी सम्मानीय एवं प्रतिष्ठित हस्तियों ने #स्वागत किया। और देश-विदेश में पिछले 12 वर्षों से 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे की जगह #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मनाना शुरू किया गया।

🚩जब इस विषय को लेकर #सोशल साइट पर देखा गया तो देखने को मिला कि #बापू #आसारामजी के #अनुयायियों ने जनवरी से ही 14 फरवरी #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस निमित्त देश-विदेश में 14 फरवरी मातृ-पितृ पूजन निमित्त #कार्यक्रम शुरू कर दिए थे ।

🚩लगातार #15 दिन से Twitter, Facebook, Instagram, google, Whatsapp आदि पर भी उनके अनुयायी बहुत #सक्रिय रहे ।

🚩सोशल मीडिया से लेकर #ग्राउंड लेवल तक बड़े जोरशोर से #ParentsWorshipDay मनाया गया।

🚩#विश्वभर में #अमेरिका, दुबई, सऊदी अरब, केनेडा, पाकिस्तान, बर्मा, नेपाल, इटली, लन्दन आदि कई देशों में स्कूल, कॉलेज, जाहिर स्थल, वृद्धाश्रम, समाज सेवी संस्थाओं, घर, परिवार, मोहल्ले आदि में जगह-जगह पर #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मनाया गया ।

🚩माता-पिता अपने बच्चों सहित अपने-अपने क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ ये कार्यक्रम आयोजित किये गए वहाँ वहाँ बड़ी संख्या में पधारे और एक नये #उत्साह, एक नए जीवन, नये संस्कारों, एक नयी दिव्य अनुभूति और एक अनोखे हर्ष-उल्लास के साथ सबके मुखमंडल प्रफुल्लित दिखे ।

🚩सच में जिन्होंने भी वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया, अपने #माता-पिता की पूजा की, अपनी #दिव्य #संस्कृति को अपनाया उनके जीवन में कुछ नया देखने को जरूर मिला ।

🚩कुछ पाश्चात्य संस्कृति (VALENTINE DAY) मनाने वाले मनचले लोग तर्क-कुतर्क करने लगे कि माता-पिता की पूजा एक ही दिन क्यों ?
उन्हें जवाब इस तरह का है कि क्या आपने अपने जीवन में दिल से कभी अपने माता-पिता की पूजा की भी है या नहीं ? जरा ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखकर तो कहना ।
और अगर सच्चे ह्रदय से माँ-बाप की पूजा होती तो क्या आप #वैलेंटाइन-डे के इस कचरे को अपनाते ???

🚩आज के कल्चर में #वैलेंटाइन डे मनाने वाले आगे जाकर लड़के-लड़कियों के चक्कर में क्या-क्या कर बैठते हैं ये दुनिया जानती है । फिर समाज में और घर-परिवार में #मुँह दिखाने #लायक नहीं रहते । फिर या तो घर से भाग जाते हैं या तो आत्महत्या के विचार कर बैठते हैं और इसको अंजाम देते हैं ।

🚩कुछ समय पूर्व ही कई #अखबारों में पढ़ने को मिला कि जवान लड़के-लड़कियाँ नदी में कूदकर अथवा ट्रेन से कूदकर जान दे बैठे।
क्या यही है आज का
#VELANTINE_DAY....???

🚩अनादिकाल से #भारत के महान संत ही समाज की रक्षा करते आये हैं । समाज को संवारने का दैवीकार्य महान #ब्रह्मवेत्ता तत्वज्ञ संतों द्वारा ही होता आया है और #जब-जब समाज कुकर्म और पाप की गहरी खाई में गर्क होने लगता है, अधर्म बढ़ने लगता है तो किसी न किसी महापुरुष को परमात्मा (ईश्वर) धरती पर #प्रकटाते हैं या स्वयं भगवान् धरती पर अवतार लेते हैं और इस दिशाहीन समाज को एक नयी दिशा देकर, समाज को सुसंस्कारित कर, समाज में धर्म की स्थापना करते हैं जैसा कि #भगवद्गीता में भगवान #श्री कृष्ण ने कहा है।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || 

🚩 महापुरुषों की गाथा सुज्ञ समाज अनंत काल तक गाता रहता है । ऐसे ही कई #महापुरुष जैसे संत कबीर, गुरु नानक जी, संत तुलसीदास जी, संत लीलाशाह जी महाराज, संत तुकाराम जी, संत ज्ञानेश्वर जी, स्वामी विवेकानंद जी, स्वामी अखंडानन्द जी आदि महान सन्तों का यश आज भी जीवित है ।
करोड़ो-अरबों लोग धरती पर जन्म लेते हैं और यूँ ही मर जाते हैं पर #संतों का नाम,आदर,पूजन व यश सभी के हृदयों में अंकित है ।

🚩ऐसे ही #संत आज इस धरा पर हैं लेकिन बहिर्मुख व कृतघ्न समाज को दिखता कहाँ है!
कहाँ पहचान पाते हैं उन महान संतों को!!

🚩गुरुनानक जैसे महान संतों को जेल में डलवा दिया जाता है । दो बार तो #गुरुनानक जी को भी #जेल जाना पड़ा । #संत कबीरजी जैसों को वेश्याओं द्वारा बदनाम करवाया जाता है । भगवान बुद्ध पर दुष्कर्म का आरोप लगाया गया लेकिन उनकी पूजा आज भी होती है क्योंकि
"धर्म की जय और अधर्म का नाश" ये प्राकृतिक सिद्धांत है ।

🚩आज समाज को एक अद्भुत प्यारा सा पर्व देकर हिन्दू #संत #आसारामजी #बापू ने सभी के दिलों में राज किया है । सबको प्रेम दिया है । सभी को सन्मार्ग पर ले चलने का अद्भुत महान कार्य किया है ।
कई समाज के बुद्धिजीवी तो हिन्दू #संत #आसारामजी #बापू के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन भारत में ही #विदेशी #षड़यंत्र द्वारा ( #क्रिश्चयन #मिशनरीज, विदेशी कंपनियों के मुआवजे से ) उन्हें जेल भिजवा दिया गया, मीडिया द्वारा बदनाम करवाया गया और सुज्ञ समाज देखता रह गया ।

🚩गौरतलब है कि #संत #आसारामजी #बापू 4 साल पांच महीने से जोधपुर जेल में बन्द है लेकिन उनके करोड़ो #भक्त अभी तक उनसे #जुड़े हैं ।
क्या ये उन महान संत की निर्दोषता का प्रमाण नहीं..??
क्या किसी बलात्कारी के पीछे करोड़ों का जन-समूह हो सकता है..???

है जो वंदनीय और पूजनीय वो, दिन अपने कारावास में बिताते हैं ।
सत्कार्यों का मिला कटुफल, उसको भी हंसकर सहते जाते हैं ।।

🚩आज का मानव बिना चमत्कार के किसी को नमस्कार नहीं करता वहीं इनके #करोड़ों अनुयायी आज भी इनके लिए पलकें बिछाये बैठे हैं ।
बिना सत्य के बल के कोई करोड़ों के #जनसमूह को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता इतना तो हर समझदार इंसान समझ सकता है ।

🚩लेकिन कई #मूर्ख लोग मीडिया की बातों में आकर अपने ही संतों पर लांछन लगाने से पीछे नहीं हटते..!!

🚩अगर मीडिया इतनी ही निष्पक्ष है तो क्यों संत आसारामजी बापू द्वारा किये गए और किये जा रहे अनेकों समाजसेवा के कार्यों को क्यों छुपा रही है ???

🚩हर सिक्के के दो पहलू होते हैं मीडिया ने कहा बापू रेपिस्ट आपने मान लिया पर कभी आपने ये जानने का प्रयास किया कि उन पर आज तक एक भी #आरोप #सिद्ध #नहीं हुआ है । क्यों #न्यायालय से उनको जमानत तक नही मिल पा रही है ? न उनकी उम्र का लिहाज किया जा रहा है और न उनके द्वारा हुए और हो रहे समाज उत्थान के सेवाकार्यों को दृष्टिगोचर किया जा रहा है ।

🚩 हमारे देश में एक ओर 81 वर्षीय वरिष्ठ #संत #बापू #आसारामजी को जमानत का भी अधिकार नहीं दूसरी ओर ऐसे ही कई केस हमारे सामने हैं जिनमें सबूत मिलने पर भी वो मजे से बाहर घूम रहे हैं ।

🚩क्या हिन्दू संत होना ही गुनाह है या हिन्दू संस्कृति उत्थानार्थ कार्य करना गुनाह है?? 
क्योंकि यही गुनाह सामने देखने मे आया है जो संत आसारामजी बापू द्वारा बार-बार हुआ है ।

🚩 आपको बता दें कि न्यायालय में कई खुलासे भी हो चुके है कि उनको कैसे षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है उसके बाद भी उनको राहत नही मिलना समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है ।

अब देखना ये है कि सरकार और न्यायालय द्वारा कब राहत मिलती है इन निर्दोष संत को ??

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