February 17, 2018
भारत भले अंग्रेजो के चँगुल से मुक्त हो गया हो लेकिन अंग्रेजों की मानसिकता अभि तक गई नही है और मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा पद्धति आज भी चल रही है जिसके कारण बच्चे न अपने जीवन में उन्नत हो पाते हैं और न ही इतना खर्च कर पाते हैं और न ही विदेशी भाषा पढ़ पाते हैं जिसके कारण बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे हैं और शिक्षा से वंचित रह जाते हैं ।
Report: Children are leaving due to English language and more expenses. |
एनसीपीसीआर के एक अध्ययन में यह कहा गया है कि अंग्रेजी भाषा में संवाद, पाठ्यक्रम से अतिरिक्त गतिविधियों में खर्च एवं शिक्षा व्यय पर ‘बेतहाशा खर्च ’ ऐसे प्रमुख कारण हैं जिनके चलते दिल्ली के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग एवं वंचित समूहों के छात्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं। दिल्ली के निजी स्कूलों में वंचित वर्गों से बच्चों के दाखिले से संबंधित शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई), 2009 की धारा 12 (1) (सी) के क्रियान्वयन पर अध्ययन में यह भी पाया गया कि वर्ष 2011 में स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्र करीब 26 प्रतिशत थे जो वर्ष 2014 में गिरकर 10 प्रतिशत हुआ था।
आरटीई अधिनियम की धारा 12 (1) (सी) कमजोर एवं वंचित वर्गों के बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के लिये निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों की जवाबदेही तय करती है। इसके अनुसार ऐसे स्कूलों को कक्षा एक या पूर्व स्कूली शिक्षा में छात्रों की कुल क्षमता के कम से कम एक चौथाई हिस्से में ऐसे वर्ग के छात्रों को दाखिला देना होता है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, विशेषकर शुरुवाती कक्षा अर्थात प्राथमिक एवं पूर्व-प्राथमिक स्तर की कक्षा में स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों का प्रतिशत प्राथमिक स्तर पर अधिक होता है। भारत में बाल अधिकार संरक्षण की शीर्ष संस्था का यह अध्ययन समूची दिल्ली के 650 स्कूलों द्वारा स्कूली पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले बच्चों के विषय में दिये गये वर्षवार आंकड़े पर आधारित था।
अध्ययन में कहा गया, ‘अभिभावकों का दावा है कि किताबें एवं पाठ्यक्रम से इतर गतिविधियों का खर्च बहुत अधिक होता है जिसके चलते वे स्कूल छोड़ देते हैं।’ एनसीपीसीआर ने यह भी सुझाव दिया कि जहां तक संभव हो बच्चों को पढ़ाने का माध्यम उनकी मातृभाषा होनी चाहिए।
लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे साधु-संतों की खिल्ली उड़ायेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!
विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन
स्वामी विवेकानन्द मैकाले द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बाबुओं की संख्या बढ़ाना था। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को 'निषेधात्मक शिक्षा' की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ?
अतः स्वामीजी सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्ष में नहीं थे, वे व्यावहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे। व्यक्ति की शिक्षा ही उसे भविष्य के लिए तैयार करती है, इसलिए शिक्षा में उन तत्वों का होना आवश्यक है, जो उसके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो।
स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में,
तुमको कार्य के सभी क्षेत्रों में व्यावहारिक बनना पड़ेगा। सिद्धान्तों के ढेरों ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है।
स्वामी जी शिक्षा द्वारा लौकिक एवं पारलौकिक दोनों जीवन के लिए तैयार करना चाहते हैं । लौकिक दृष्टि से शिक्षा के सम्बन्ध में उन्होंने कहा है कि 'हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने।' पारलौकिक दृष्टि से उन्होंने कहा है कि 'शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।'
स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त
1. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
2. शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो, मन का विकास हो, बुद्धि विकसित हो तथा बालक आत्मनिर्भर बने।
3. बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
4. धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
5. पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
6. शिक्षा, गुरू गृह में प्राप्त की जा सकती है।
7. शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
8. सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जान चाहिये।
9. देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए ।
10. मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।
भारत सरकार को मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा पद्धति तो खत्म कर देना चाहिए और वैदिक गुरुकुलों के अनुसार पढ़ाई करवानी चाहिए तभी व्यक्ति, समाज और देश भला होगा ।
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