February 5, 2018
संस्कृत का अध्ययन मनुष्य को सूक्ष्म विचारशक्ति प्रदान करता है । मन स्वाभाविक ही अंतर्मुख होने लगता है । इसका अध्ययन मौलिक चिंतन को जन्म देता है । संस्कृत भाषा के पहले की कोई अन्य भाषा, संस्कृत वर्णमाला के पहले की कोई अन्य वर्णमाला देखने-सुनने में नहीं आती । इसका व्याकरण भी अद्भुत है । ऐसा सर्वांगपूर्ण व्याकरण जगत की किसी भी अन्य भाषा में देखने में नहीं आता । यह संसार भर की भाषाओं में प्राचीनतम और समृद्धतम है ।
Muslim school students are studying Sanskrit leaving Urdu, when will Hindus understand its importance? |
गुजरात वडोदरा के याकूतपुरा एरिया के एमईएस
विद्यालय के पास से होकर गुजरेंगे तो आपको संस्कृत के श्लोकों की आवाज सुनाई देगी ।
एमईएस विद्यालय के ज्यादातर छात्र मुस्लिम हैं परंतु यहां संस्कृत पढाई जाती है । विद्यालय का नाम एमईएस बॉयज हाई विद्यालय है जिसे मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी (एमईएस) चलाती है । विद्यालय के प्रिंसिपल एम.एम. मालिक ने बताया कि विद्यालय की स्थापना के समय से ही छात्रों को संस्कृत पढाई जाती है । हाल ही में विद्यालय में लडकियों को भी दाखिला दिया गया है ।
मालिक ने बताया, ‘9 और 10 क्लास में छात्रों को फारसी, उर्दू, अरबी और संस्कृत में से किसी एक भाषा को चुनने का विकल्प होता है । परंतु दिलचस्प बात यह है कि क्लास 9 के 40 प्रतिशत से ज्यादा छात्रों ने संस्कृत चुना है । इस वर्ष कुल 348 छात्रों में से 146 छात्रों ने संस्कृत चुना है । इन 146 छात्रों में से केवल 6 हिन्दू हैं बाकि सभी मुस्लिम हैं । इनमें से ज्यादातर छात्र 10वीं और 12वीं बोर्ड एग्जाम में भी संस्कृत रखेंगे !’
एक और बात जो हैरान करनेवाली है, वह यह है कि संस्कृत यहां मुस्लिम शिक्षकों द्वारा ही पढाई जाती है ! आबिद अली सैयद और मोइनुद्दीन काजी वर्ष 1998 से यहां क्लास ले रहे हैं । आबिद अली बताते हैं कि विद्यालय में संस्कृत काफी समर्पण के साथ पढाई जाती है । आबिद ने बताया, ‘अन्य भाषाओं के मुकाबले संस्कृत का व्याकरण और उच्चारण मुश्किल होता है, उसके बावजूद हमारे छात्र संस्कृत में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं ।’
छात्रों को भी संस्कृत से काफी लगाव है । 10वीं क्लास की एक छात्रा पठान उजमा बानो अय्यूब खान संस्कृत का शिक्षक बनने का सपना देखती है । उजमा ने बताया, ‘संस्कृत से हमें अपने देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के बारे में पता चलता है । मुझे वेद पढ़ने, श्लोक का उच्चारण करने और अपने इतिहास को समझने में आनंद आता है । हर छात्र को इस भाषा को सीखना चाहिए और इस पर गर्व करना चाहिए । जब मैं बडी होंगी तो शिक्षक के तौर पर इसे लोकप्रिय बनाने की कोशिश करूंगी !’ स्त्रोत : नवभारत टाईम्स
संस्कृत भाषा का अभी इतना महत्व बढ़ रहा है कि
उत्तराखंड में मुस्लिम लोग मदरसों और इस्लामिक स्कूलों में संस्कृत पढ़ाने की योजना बनाई है । इस योजना को अगले एकेडमिक सेशन में शुरू किया जा सकता है। मदरसा वेलफेयर सोसाइटी उत्तराखंड के करीब 207 मदरसों का संचालन करती है। इन मदरसों में करीब 25 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं।
संस्कृत को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर सोसाइटी के चेयरमैन सिब्ते नबी का कहना है कि हम अंग्रेजी अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, जो कि एक विदेशी जुबान है तो फिर पुरानी भारतीय भाषा को क्यों ना पढ़ाया जाए।
अभी हाल ही में डॉ. जेम्स हार्टजेल नाम के न्यूरो साइंटिस्ट ने शोध किया है कि संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से अद्भुत स्मरणशक्ति बढ़ती है ।
भारतवासियों को पता है कि संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है, फिर भी उसके त्याग करके इंग्लिश पढ़ रहे है बड़ा आश्चर्य है । हिन्दुआें के धर्मग्रंथ भी इसी भाषा में है । संस्कृत को हम देववाणी भी कहते है । प्राचीन काल में शिक्षा इसी भाषा में दी जाती थी । इसलिए प्राचीन काल के लोग संस्कारी, चारित्र्यवान, शीलवान, धर्मपरायण, कर्तव्यनिष्ठ थे। परंतु जैसे ही मेकॉले की शिक्षा पद्धति भारत में आर्इ, अपनी महान संस्कृत को भारतवासी भूल गए ।
मेकाॅले की मॉडर्न शिक्षाप्रणाली से भारत में समाज अधोगति की आेर जाता दिखार्इ दे रहा है। जिसके परिणाम आज सभी आेर भ्रष्टाचार, बलात्कार, व्यभिचार, घोटाले पनप रहे हैं। यह किसकी देन है ? आज जहां भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति तथा संस्कृत भाषा को पिछडापन मानकर पश्चमी सभ्यता को चुन रहे हैं, वहीं पश्चिमी लोग भारत की महान संस्कृति तथा संस्कृत भाषा की आेर आकर्षित हो रहे हैं ।
विदेशी संस्कृत भाषा पर पढ़ा रहे हैं और संशोधन भी कर रहे हैं एवं भारतीय संस्कृति की महानता विश्व के सामने ला रहे हैं । लेकिन भारतवासियों का पाश्चात्य संस्कृति की ओर रुझान होने के कारण अपनी संस्कृति का महत्व नही समझ रहे हैं । अगर भारतवासी संस्कृत भाषा का महत्व समझ ले और उसको बढ़ावा देना शुरू कर दे तोजो सेक्युलर लोग भारत में रहकर भारत को तोड़ने की साजिश रच रहे हैं वो बन्द हो जाएगा ।
भारतवासियों अब समय आ गया है कि हम अपनी संस्कृति की ओर लौटे नही तो विदेशी ताकतें राह देख रही हैं कि कैसे भी करके भारत के टुकड़े-टुकड़े कर दे उनका साथ कुछ यहाँ बैठे जयचंद दे रहे हैं जो देश के लिए भारी खतरा है इसलिए सावधान रहें और अपनी संस्कृति को अपनाए ।
भारतीय संस्कृति की सुरक्षा, चरित्रवान नागरिकों के निर्माण, प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति एवं विश्वशांति हेतु संस्कृत का अध्ययन अवश्य होना चाहिए ।
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