Saturday, August 22, 2020

आप भी जानिए तमिल संस्कृति को कैसे वेद-संस्कृत विरोधी बनाई गई ?

22 अगस्त 2020


राजीव मल्होत्रा के पूछने पर डॉ. नागास्वामी ने विस्तार से बताया कि दक्षिण भारत की तमिल भाषा में ‘तिरुकुरल’ वैसा ही लोकप्रिय सनातनधर्मी-ग्रन्थ है, जैसा उत्तर भारत में रामायण, महाभारत अथवा गीता। इसकी रचना वहां के महान संत कवि तिरूवल्लुवर ने की है। 19 वीं सदी के मध्य में एक कैथोलिक ईसाई मिशनरी जार्ज युग्लो पोप ने अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया, जिसमें उसने प्रतिपादित किया कि यह ग्रन्थ ‘अ-भारतीय’ तथा ‘अ-हिन्दू’ है और ईसाइयत से जुडा हुआ है। उसकी इस स्थापना को मिशनरियों ने खूब प्रचारित किया। उनका यह प्रचार जब थोडा जम गया, तब उन्होंने उसी अनुवाद के हवाले से यह कहना शुरू कर दिया कि ‘तिरूकुरल’ ईसाई-शिक्षाओं का ग्रन्थ है और इसके रचयिता संत तिरूवल्लुवर ने ईसाइयत से प्रेरणा ग्रहण कर इसकी रचना की थी, ताकि अधिक से अधिक लोग ईसाइयत की शिक्षाओं का लाभ उठा सकें। इस दावे की पुष्टि के लिए उन्होंने उस अनुवादक द्वारा गढी गई उस कहानी का सहारा लिया, जिसमें यह कहा गया है कि ईसा के एक प्रमुख शिष्य सेण्ट टामस ने ईस्वी सन 52 में भारत आकर ईसाइयत का प्रचार किया, तब उसी दौरान तिरूवल्लुवर को उसने ईसाई धर्म की दीक्षा दी थी। हालांकि मिशनरियों के इस दुष्प्रचार का कतिपय निष्पक्ष पश्चिमी विद्वानों ने ही उसी दौर में खण्डन भी किया था, किन्तु उपनिवेशवादी ब्रिटिश सरकार समर्थित उस मिशनरी प्रचार की आंधी में उनकी बात यों ही उड गई । फिर तो कई मिशनरी संस्थाए इस झूठ को सच साबित करने के लिए ईसा-शिष्य सेन्ट टामस के भारत आने और हिन्द महासागर के किनारे ईसाइयत की शिक्षा फैलाने सम्बन्धी किस्म-किस्म की कहानियां गढ कर अपने-अपने स्कूलों में पढाने लगीं।



1969 में देइवनयगम ने एक शोध-पुस्तक प्रकाशित की- ‘वाज तिरूवल्लुवर ए क्रिश्चियन ?’, जिसमें उसने साफ शब्दों में लिखा है कि सन ५२ में ईसाइयत का प्रचार करने भारत आये सेन्ट टामस ने तमिल संत कवि- तिरूवल्लुवर का धर्मान्तरण करा कर उन्हें ईसाई बनाया था। अपने इस मिथ्या-प्रलाप की पुष्टि के लिए उसने संत-कवि की कालजयी कृति- ‘तिरूकुरल’ की कविताओं की तदनुसार प्रायोजित व्याख्या भी कर दी और उसकी सनातन-धर्मी अवधारणाओं को ईसाई- अवधारणाओं में तब्दील कर दिया । इस प्रकरण में सबसे खास बात यह है कि तमिलनाडू की ‘द्रमुक’-सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उस किताब की प्रशंसात्मक भूमिका लिखी है और उसके एक मंत्री ने उसका विमोचन किया ।

इस बौद्धिक अपहरण-अत्याचार को मिले उस राजनीतिक संरक्षण से प्रोत्साहित हो कर देइवनयगम दक्षिण भारतीय लोगों को ‘द्रविड’ और उनके धर्म को ‘ईसाइयत के निकट, किन्तु सनातन धर्म से पृथक’ प्रतिपादित करने के चर्च-प्रायोजित अभियान के तहत ‘ड्रेवेडियन रिलिजन’ नामक पत्रिका भी प्रकाशित करता है । उस पत्रिका में लगातार यह दावा किया जाता रहा है कि “सन- ५२ में भारत आये सेन्ट टामस द्वारा ईसाइयत का प्रचार करने के औजार के रूप में संस्कृत का उदय हुआ और वेदों की रचना भी ईसाई शिक्षाओं से ही दूसरी शताब्दी में हुई है, जिन्हें धूर्त ब्राह्मणों ने हथिया लिया” । वह यह भी प्रचारित करता है कि “ब्राह्मण, संस्कृत और वेदान्त बुरी शक्तियां हैं और इन्हें तमिल समाज के पुनर्शुद्धिकरण के लिए नष्ट कर दिये जाने की जरूरत है।

हिंदुस्तानियों को आपस में तोड़कर राष्ट्र विरोधी ताकते राज करना चाहती हैं इसलिए कभी जातिवाद तो कभी हिंदू विरोधी एजेंडे तो कभी धर्मान्तरण आदि का खेल खेला जा रहा है, ईसाई मिशनरियों की इसमे मुख्य भूमिका रहती हैं। वे मीठे जहर की तरह हैं, किसी को पता नही चलने देते हैं, हिंदुओं का ब्रेनवॉश करने में माहिर होते हैं, इसलिए हिंदुस्तानियों को सावधान रहने की आवश्यकता है।

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Friday, August 21, 2020

जानिए भगवान गणेश के अवतार का रहस्य और साल भर कलंक से बचने के उपाय

21 अगस्त 2020


जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर सर्वप्रथम श्री गणपति जी का पूजन अनिवार्य है ।



उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।

जिस दिन गणेश तरंगें प्रथम पृथ्वी पर आयी अर्थात जिस दिन गणेश जी अवतरित हुए, वह भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन था । उसी दिन से गणपति का चतुर्थी से संबंध स्थापित हुआ ।

शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन आता है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पहले अपनी शक्ति से एक पुतला बनाकर उसमें प्राण भर दिए और उसका नाम 'गणेश' रखा।

पार्वती जी ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूँ, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।

भगवान शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका।

अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे माँ भगवती क्रुद्ध हो उठी और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।

शिवजी के निर्देश पर  उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया।

माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया।

 भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तुम्हरा नाम सर्वोपरि होगा। तुम सबके पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों की अध्यक्षता करोगे ।

गणेश्वर! आप भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुये हैं । इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।

चंद्र दर्शन से कलंक

गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणपति का पूजन तो विशेष फलदायी है, किंतु उस दिन चंद्र दर्शन कलंक लगाने वाला होता है ।

 इस संदर्भ में पुराणों में एक कथा आती है कि - एक बार गणपति जी कहीं जा रहे थे तो उनके लम्बोदर को देखकर चंद्रमा के अधिष्ठाता चंद्रदेव हँस पड़े । उन्हें हँसते देखकर गणेशजी ने शाप दे दिया कि ‘दिखते तो सुंदर हो, किंतु मुझ पर कलंक लगाते हो ।

अतः आज के दिन जो तुम्हारा दर्शन करेगा उसे कलंक लग जायेगा ।’

यह बात आज भी प्रत्यक्ष दिखती है । विश्वास न हो तो गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करके देख लेना। भगवान श्रीकृष्ण को गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा दर्शन करने पर स्यमंतक मणि की चोरी का कलंक सहना पड़ा था । बलरामजी को भी श्रीकृष्ण पर संदेह हो गया था ।

सर्वेश्वर, लोकेश्वर श्रीकृष्ण पर भी जब चौथ के चंद्रमा दर्शन करने पर कलंक लग सकता है तो साधारण मानव की तो बात ही क्या ?

किंतु यदि भूल से भी चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो ‘श्रीमद् भागवत’ के 10वें स्कंध के 56-57वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक पठन-श्रवण करना चाहिए ।

भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी के चन्द्रमा का दर्शन करना चाहिए, इससे चौथ को दर्शन हो गया हो तो उसका ज्यादा दुष्प्रभाव नहीं होगा ।

निम्न मंत्र का 21, 54 या 108 बार जप करके पवित्र किया हुआ जल पीने से कलंक का प्रभाव कम होता है ।

मंत्र इस प्रकार है :
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः । सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ।।

‘सुंदर, सलोने कुमार ! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रोओ मत । अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।

जहाँ तक हो सके भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा न दिखे, इसकी सावधानी रखें ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, अध्याय : 78), (ऋषि प्रसाद :  अगस्त 2014)

लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजन का विधान इसी कारण रखा गया कि धन जीवन में अहंकार, व्यसन जैसी बुराइयां लेकर न आये अर्थात गलत तरीकों से धन न कमाएं । ईमानदारी से कमाया गया धन ही हमारे लिए सुखकारी होगा, अन्यथा धन पाकर भी कितने लोग हैं जो सुखी नहीं रह पाते हैं।

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश उपासना का विशेष महत्त्व है । इस दिन गणेशजी की प्रसन्नता के लिए इस ‘गणेश गायत्री’ मंत्र का जप करना चाहिए :
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।

श्रीगणेशजी का अन्य मंत्र, जो समस्त कामनापूर्ति करनेवाला एवं सर्व सिद्धिप्रद है :  ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे । सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः ।।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खंड : 13.34)

गणेशजी बुद्धि के देवता हैं । विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपना अध्ययन-कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान गणपति, माँ सरस्वती एवं सद्गुरुदेव का स्मरण करना चाहिए । इससे बुद्धि शुद्ध और निर्मल होती है ।

विघ्न निवारण हेतु...

गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः ’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।

गणेशाेत्सव की शुरुआत

गणेशाेत्सव को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने देश की स्वाधीनता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण साधन बना दिया । उन्होंने लोक जागरण व जन-मन में देशभक्ति जगाने के लिए गणेशोत्सवों की शुरुआत करायी । इसलिए यह जरूरी है कि देश भर में आज भी उल्लास के साथ मनाया जाने वाला गणेशोत्सव केवल तड़क-भड़क और गीत-संगीत के खर्चीले आयोजनों के बीच मनुष्यता व सामाजिक दायित्व जगाने की अपनी मूल प्रेरणा को ना खोये।

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Thursday, August 20, 2020

फ़िल्म में हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार हाजी बना हीरो, राष्ट्रवादी दिखाने की घोषणा

20 अगस्त 2020 


 हिंदुस्तान में सदियों से हिंदुओं पर अनगिनत अत्याचार हुए है फिर भी हिंदू प्रगाढ़ निद्रा में है इसके कारण आज भी सनातन धर्म विरोधी अपनी गतिविधियों द्वारा हिंदुओं पर हुए अत्याचार को मिटाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और हिंदुओं के खिलाफ़ धृणा पैदा करने वाली अनेक इतिहास लिखा जा चुका है और लिख रहे हैं और उसके ऊपर फिल्में बनाकर हिंदू धर्म को नीचा दिखाने व मिटाने की कोशिशें कर रहे हैं।



 आपको बता दे कि साल 1921 में केरल में हुए हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी (Variyam Kunnathu Kunjahammed Haji ) की जिंदगी पर आधारित फिल्म बनने वाली है। इस फिल्म को बनाने वाले का नाम आशिक अबु है। हाजी का किरदार निभाने वाले एक्टर पृथ्वीराज सुकुमारन हैं। और, फिल्म का टाइटल वरियमकुन्नन (Vaariyamkunnan) हैं। ये सब सूचना स्वयं अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन ने अपने फेसबुक पर दी है।

 उन्होंने अपनी नई फिल्म का ऐलान करते हुए हाजी को ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ लड़ने वाली शख्सियत बताया है। साथ ही हाजी को न केवल एक नेता के तौर पर दर्शाया, बल्कि उसे एक फौजी और राष्ट्रवादी भी कहा।

 इसके अलावा मालाबार में हुए हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को पृथ्वीराज ने मालाबार क्रांति का पहला चेहरा लिखा और जानकारी दी कि इसकी फिल्मिंग हाजी की 100वीं बरसी पर शुरू करेंगे।

 यहाँ बता दें, इस जानकारी के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर एक नया विवाद खड़ा हो गया। लोग पूछने लगे कि आखिर हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार व्यक्ति हीरो कैसे हो सकता है? या ये समझें कि ये फिल्म फिर से समुदाय विशेष के कुकर्मों को धोने का एक प्रयास है, जिसके जरिए सच्चाई को छिपाते हुए नया इतिहास समझाने की कोशिश हो रही है।

क्यों है विवाद?

 दरअसल, साल 2021 में रिलीज होने वाली यह फिल्म मोपला समुदाय के उस मुस्लिम नेता की जिंदगी पर आधारित है, जिसे साल 1921 में मालाबार में हजारों हिंदुओं के नरसंहार का जिम्मेदार बताया जाता है।

कौन था वरियम कुन्नथु हाजी कुंजाहम्मद हाजी?

 वरियमकुन्नथु या चक्कीपरांबन वरियामकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी (Variyam Kunnathu Kunjahammed Haji), वही शख्स है जो खुद को ‘अरनद का सुल्तान’ कहता था। उसी क्षेत्र का सुल्तान जहाँ सैंकड़ों मोपला हिंदुओं का नरसंहार हुआ। जहाँ इस्लामिक ताकतों ने मिलकर लूटपाट की और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह की आड़ में हिंदुओं का रक्तपात किया। मगर, फिर भी, उन आतताइयों के उस चेहरे को छिपाने के लिए इतिहास के पन्नों में उन्हें मोपला के विद्रोहियों का नाम दिया गया।

 बता दें, मोपला में हिंदुओं का नरसंहार वही घटना है, जब हिंदुओं पर मुस्लिम भीड़ ने न केवल हमला बोला। बल्कि आगे चलकर पॉलिटिकल नैरेटिव गढ़ने के लिए उस बर्बरता को इतिहास के पन्नों से ही गुम कर दिया या फिर काट-छाँटकर इसपर जानकारी दी गई।

 केरल के मालाबार में हिंदुओं पर अत्याचार के उन 4 महीनों ने सैंकड़ों हिंदुओं की जिंदगी तबाह की। बताया जाता है कि मालाबार में ये सब स्वतंत्रता संग्राम के तौर पर शुरू हुआ। लेकिन जब खत्म होने को आया तो उसका उद्देश्य साफ पता चला कि वरियमकुन्नथु जैसे लोग केवल उत्तरी केरल से हिंदुओं की जनसंख्या कम करना चाहते थे।

 खिलाफत आंदोलन का सक्रिय समर्थक वरियमकुन्नथु ने अपने दोस्त अली मुसलीयर के साथ मिलकर मोपला दंगों का नेतृत्व किया। जिसमें 10,000 हिंदुओं का केरल से सफाया हुआ। जबकि माना जाता है कि इसके बाद करीब 1 लाख हिंदुओं को केरल छोड़ने पर मजबूर किया गया। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है।

 बाबा साहेब अंबेडकर अपनी किताब में इस नरसंहार का जिक्र करते हैं। वे पाकिस्तान ऑर पार्टिशन ऑफ इंडिया नाम की अपनी किताब में लिखते हैं कि हिन्दुओं के खिलाफ मालाबार में मोपलाओं द्वारा किए गए खून-खराबे के अत्याचार अवर्णनीय थे। दक्षिणी भारत में हर जगह हिंदुओं के ख़िलाफ़ लहर थी। जिसे खिलाफत नेताओं ने भड़काया था।

 इसके अलावा एनी बेसेंट ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब में करते हुए बताया कि कैसे धर्म न त्यागने पर हिंदुओं पर अत्याचार हुए। उन्हें मारा-पीटा गया । उनके घरों में लूटपाट हुई। एनी बेंसेंट ने अपनी किताब में बताया कि करीब लाख से ज्यादा हिंदू लोगों को उस दौरान अपने घरों को तन पर बाकी एक जोड़ी कपड़े के साथ छोड़ना पड़ा था। उन्होंने लिखा, “मालाबार ने हमें सिखाया है कि इस्लामिक शासन का क्या मतलब है, और हम भारत में खिलाफत राज का एक और नमूना नहीं देखना चाहते हैं।”

आज मलयालम फिल्म को प्रोड्यूस करने वाले अधिकतर लोग मालाबार मुसलमान हैं। जिन्हें लगता है शायद इस तरह के प्रयासों से वह हिंदुओं पर हुई बर्बरता को लोगों की नजरों में धुँधला कर देंगे और अपनी कोशिशों से एक नया इतिहास नई पीढ़ी के सामने पेश करेंगे।

लेकिन, आपको बता दें, ये पहली बार नहीं है जब हाजी के आतताई चेहरे को नायक में तब्दील करने की कोशिश हुई। इससे पहले भी जामिया प्रदर्शन के समय सुर्खियों में आई बरखा दत्त की शीरो लदीदा ने हाजी का महिमामंडन किया था।

मोपला मुसलमानों के एक अलीम ने यह घोषणा कर दी कि उसे जन्नत के दरवाजे खुले नजर आ रहे हैं । जो आज के दिन, दीन की खिदमत में शहीद होगा वह सीधा जन्नत जाएगा । जो काफ़िर को हलाक करेगा वह गाज़ी कहलाएगा । एक गाज़ी को कभी दोज़ख का मुख नहीं देखना पड़ेगा । उसके आहवान पर मोपला भूखे भेड़ियों के समान हिन्दुओं की बस्तियों पर टूट पड़े । टीपू सुल्तान के समय किये गए अत्याचार फिर से दोहराए गए । अनेक मंदिरों को भ्रष्ट किया गया । हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाया गया, उनकी चोटियां काट दी गई । उनकी सुन्नत कर दी गई । मुस्लिम पोशाक पहना कर उन्हें कलमा जबरन पढ़वाया गया । जिसने इंकार किया उसकी गर्दन उतार दी गई । ध्यान दीजिये कि इस अत्याचार को इतिहासकारों ने अंग्रेजी राज के प्रति रोष के रूप में चित्रित किया हैं जबकि यह मज़हबी दंगा था । 2021 में इस दंगे के 100 वर्ष पूरे होंगे।

 हिंदुओं का नर संहार करने वाले लोगों को आज हीरो बनाया जा रहा है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रोल करने वाला भी हिंदू ही हैं, और देखने वाले भी अधिकतर हिंदू ही है, आज बॉलीवुड में अधिकतर फिल्में भी हिन्दू विरोधी ही बन रही है अभी "आश्रम" नाम की फ़िल्म बनाकर हिंदू धर्म को बदनाम ही किया जा रहा है। हिंदुओं को अब जागरूक होना चाहिए ऐसी फिल्मों का पुरजोर से विरोध करना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी को ये लोग गुमराह करके हिंदू धर्म को खत्म न कर सकें।

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Wednesday, August 19, 2020

वेब सीरीज वाले हिंदू धर्म के साथ-साथ राष्ट्र विरोधी भी बन गए, कर रहे हैं क्रांतिकारियों का अपमान !

19 अगस्त 2020


हिंदुत्व जिस प्रकार से पहले बॉलीवुड और अब वेब सीरीज ने निशाना बनाया है और जितना आघात सनातन धर्म को तथाकथित मनोरंजन ने दिया है संभवतः उतना आघात बड़े से बड़े और क्रूर से क्रूर मजहबी आक्रांता और विदेशी लुटेरे भी नहीं दे पाए होंगे।  लेकिन अब यह सिलसिला हिंदू देवी देवताओं, साधू-संतों से भी आगे चलकर देश की स्वतंत्रता के लिए प्राण देने वाले क्रांतिवीरों तक पहुंच चुका है।



ट्रायल के रूप में पहला निशाना लगाया गया है देश के लिए सबसे कम उम्र में फांसी चढ़े और हाथ में श्रीमद्भागवत गीता लेकर बलिदान देने वाले अमर बलिदानी खुदीराम बोस को, यह वही खुदीराम बोस थे जिन्होंने बलिदान होने से पहले कहा था कि- मैं बहुत ही गरीब हूं और मेरे पास मेरी भारत मां को देने के लिए मेरे प्राणों के अतिरिक्त कुछ नहीं था और आज मैं उसे दे रहा हूं। ना जाने कैसे हिम्मत हो गई उस अमर बलिदानी के अपमान की...।

ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज अभय 2 वेब सीरीज में एक सीन में क्रिमिनल बोर्ड पर शहीद खुदीराम की फोटो दिख रही है। खुदीराम की फोटो शेयर करते हुए यूजर्स ने चैनल जी 5 को बायकॉट करने की मांग कर डाली है।

हालांकि सोशल मीडिया पर विरोध होने पर सीरीज के डायरेक्टर केन घोष की ओर से माफी मांगी गयी और बताया गया कि ऑड‍ियंस की ओर से मिले फीडबैक को याद में रखते हुए हमने अभय 2 के इस सीन में तस्वीर को ब्लर कर दिया है। लेकिन ये कैसी माफी ? ब्लर क्यों किया उसको हटाया क्यों नहीं ? इससे साफ पता चलता है कि इनका इरादा था क्रांतिकारी खुदीराम बोस को अपमानित करने का।

आपको बता दें कि बॉलीवुड का हिन्दूफोबिया थमता नहीं दिख रहा है। अभी महेश भट्ट की ‘सड़क-2’ को लेकर विवाद ख़त्म भी नहीं हुआ था कि प्रकाश झा अपनी नई सीरीज ‘आश्रम’ लेकर आ धमके हैं। इसमें वे एक बाबा को विलेन बना कर आस्था और अपराध के संयोग को दिखाने का दावा कर रहे हैं।

दिलचस्प बात ये है कि बाबा को दिखाया तो गया है सूफी वाले लुक्स में लेकिन आश्रम में यज्ञाग्नि, शुद्ध हिंदी और उसके अनुयायियों को देख कर स्पष्ट पता चलता है कि ये सीरीज हिन्दुओं और हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने के लिए बनाई गई है। इसके बाद बाबा को बलात्कारी और खूनी दिखाया जाता है।

बॉलीवुड में अक्सर पंडितों और साधु-संतों को धोखेबाज और बलात्कारी दिखाया जाता रहा है, जबकि मुस्लिम किरदारों को ईमानदार और देश के लिए मर-मिटने वाला प्रदर्शित किया जाता रहा है। इसी तरह ‘सड़क-2’ में भी महेश भट्ट एक ऐसी कहानी लेकर आ रहे हैं, जिसमें एक साधु को बुरा दिखाया जाएगा और उसके काले कृत्यों का खुलासा किया जाएगा। इसमें भी एक डरावने बाबा को विलेन दिखाया गया है। और "आश्रम" वेब सीरीज में भी साधु-संतों को बदनाम किया गया है।

यह सिलसिला अभी से नहीं चल रहा है अपितु जबसे बॉलीवुड बना है तबसे चल रहा है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हिंदू ही उनकी फ़िल्में देखकर हिट करवाते हैं अगर पहले से ही उनकी फ़िल्में देखने नहीं जाते तो इनकी अक्ल अभी तक ठिकाने आ जाती लेकिन सभी सोशल मीडिया के कारण काफी हिंदू जागरूक भी हुए हैं और उनकी फिल्मों का बहिष्कार कर रहे हैं लेकिन अभी इसका संपूर्ण बहिष्कार करना होगा और देश व सनातन धर्म विरोधी फिल्मों को यूट्यूब पर इसको रिपोर्ट और डिसलाइक जरूर करें साथ मे इनको करारा जवाब दें और फिल्मे देखे ही नहीं। ... इससे इनकी औकात पता चलेगी और राष्ट्र व सनातन धर्म विरोधी फिल्मे बनाना बंद कर देंगे।

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Tuesday, August 18, 2020

फिर से मारा गया हिंदू समाज पर कुल्हाड़ा, ये लोग अन्य धर्म पर चुप रहते हैं!

18 अगस्त 2020


चारों तरफ से यही साजिशें चली आ रही हैं कि कैसे भी करके सनातन हिंदू धर्म को खत्म कर दिया जाए उसके लिए अनेक प्रकार के षड़यंत्र रचे जा रहे हैं, हिंदू धर्म का अपमान व हिंदू धर्म के प्रति नफरत फैलाने व हिंदू धर्म को नीचा दिखानें में अगर सबसे बड़ा रोल है तो वो बॉलीवुड का रहा हैं। ये लोग ऐसी फिल्में बनाते हैं जिससे हिन्दू देवी देवताओं,  साधु-संतों, ब्राह्मणों, पर्व-त्योहारों और मंदिरों, आश्रमों आदि पर गलत फिल्में दिखाकर जनता को गुमराह करते हैं और बताते हैं कि सारी बुराइयां सनातन हिंदू धर्म में ही हैं लेकिन उससे उलट चर्चों में पादरी क्या करते हैं, मस्जिदों में मौलाना क्या करते हैं इस पर नहीं दिखाते हैं क्योंकि इनको पता है कि ऐसा करने पर कमलेश तिवारी की तरह हत्या हो जायेगी और हिंदू समाज सहिष्णु है तो सोशल मीडिया पर थोड़ा हल्ला करके चुप हो जायेंगे।



अभी कुछ हिंदुओं में जागरूकता आई है लेकिन सभी को जागना होगा और बॉलीवुड के इस हिंदू विरोधी रवैये को उखाड़ फेंकना होगा नहीं तो ये लोग दिमक की तरह हमारी संस्कृति को खा रहे हैं।

आपको बता दें कि एम एक्स प्लेयर पर निर्माता और निर्देशक प्रकाश झा द्वारा MX Original सीरीज "आश्रम" मूवी को 28 अगस्त 2020 को रिलीज की जा रही है। वेब सीरीज में बॉबी देओल लीड रोल में है। इसमें ये बताने का प्रयास किया है कि हिंदू साधु-संत भक्तों की आस्थाओं का दुरुपयोग करके कैसे राजनीति में दखल करते हैं और अय्याशी करते हैं।

वास्तविकता तो यह है कि कितने साधु-संतों ने घोर तपस्या की है फिर वे समाज में आकर उनको सही मार्ग दिखाते हैं, समाज को व्यसनमुक्त बनाने का प्रयास करते हैं, संयमी और सदाचारी समाज को बनाते हैं, गरीबों-आदिवासियों को सहायता करते हैं। गौ माता की रक्षा करते हैं। बच्चों, युवाओं व महिलाओं के उत्थान के लिए केंद्र खोलते हैं। धर्मान्तरण पर रोक लगाते हैं। चिंता ,टेंशन में रह रहे लोगों को शांति देते हैं, स्वदेशी का प्रचार करते हैं, सभी को स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाते हैं। राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।

बॉलीवुड वाले इस वास्तविकता पर फ़िल्म नहीं बनायेंगे, ये लोग हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए झूठी कहानियां बनाकर जनता में परोसेंगे जिससे सोचने समझने की शक्ति नहीं रखने वाले इन झूठी कहानियों पर विश्वास कर लेते हैं और अपने ही धर्म व धर्मगुरुओं पर शंका करने लगते हैं।

चर्च-पादरी का घिनौना चेहरा

आपको बता दें कि कन्नूर (केरल) के कैथोलिक चर्च की एक नन सिस्टर मैरी चांडी ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि "चर्च" के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी। एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार की कोशिश की थी। मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचायी थी। ’यहाँ गर्भ में ही बच्चों को मार देने की प्रवृत्ति होती है।'

सान डियेगो चर्च के अधिकारियों ने पादरियों के द्वारा किये गये बलात्कार, यौन-शोषण आदि के 140 से अधिक अपराधों के मामलों को निपटाने के लिए 9.5 करोड़ डॉलर चुकाने का ऑफर किया था। चर्च की आड़ में चल रहे यौन शोषण के हजारों मामले सामने आ चुके हैं। सन् 1950 से 2002 के काल में पादरियों के द्वारा किये गये यौन-शोषण के 10,667 अपराध दर्ज किये गये। उनमें से 3300 की जाँच पूरी होने के पहले ही वे मर गये। बाकी 7700 में से 6700 पादरियों को अपराधी घोषित किया गया। सन् 2002 में आयरलैंड के पादरियों के यौन-शोषण के अपराधों के कारण 12 करोड़ 80 लाख डॉलर का दंड चुकाना पड़ा। मई 2009 में प्रकाशित रायन रिपोर्ट के अनुसार 30,000 बच्चों को इन संस्थाओं में ईसाई ननों और पादरियों द्वारा प्रताड़ित और उनका शोषण किया जाता रहा।

मदरसों का हाल

उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने बताया था कि "मदरसों में बच्चों को बाकियों से अलग कर कट्टरपंथी सोच के तहत तैयार किया जाता है। यदि प्राथमिक मदरसे बंद ना हुए तो 15 साल में देश का आधे से ज्यादा मुसलमान आईएसआईएस का समर्थक हो जाएगा । ये देश के लिए भी खतरा है। उन्होंने कहा था कि 'कुछ मरदसों में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां हैं, जो बंद होनी चाहिए ।

आपको बता देते हैं कि जुलाई 2018 में पुणे के एक मदरसे के मौलवी को अपने ही मदरसे के बच्चों का यौन शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है । साथ ही 36 बच्चों को भी मुक्त कराया गया था । कुछ समय पहले दिल्ली में काफी लड़कियों को मदरसों में बंधक बनाकर रखा था उनको भी छुड़ाया था।

बॉलीबुड में इन चर्च व पादरी और मदरसे व मौलाना पर फ़िल्म क्यों नहीं बना रहे हैं? इनको सिर्फ साधु-संत में ही गलती क्यों दिखाई देती है?  हो सकता है कुछ दुष्ट लोग साधु का वेश पहनकर हिंदू धर्म को बदनाम करते होंगे लेकिन इसके कारण सबको खराब क्यों बताया जाता है? साधु-संतों की अच्छाई क्यों नहीं दिखाई जाती है? उनके ऊपर हो रहे षडयंत्र के ऊपर फ़िल्म क्यों नहीं बनाई जाती हैं, साधु-संतों की हत्या और झूठे केस बनाकर जेल भेजने के षड़यंत्र वाली फिल्में बॉलीवुड वाले क्यों नहीं बनाते हैं?

वास्तविकता यही है कि बॉलीवुड हमेशा हिंदू विरोधी रहा है और वो कभी भगवान तो कभी देवी-देवताओं तो कभी मंदिरों तो कभी साधु-संतों तो कभी ब्राह्मणों को नीचा दिखाने व अन्य मजहब के लोगों को अच्छा दिखाने वाली फिल्में इसलिए बनाते हैं कि उनका उद्देश्य यही है कि सनातन हिंदू धर्म को खत्म कर दिया जाए और साधु-संतों को तो खासकर इसलिए टारगेट करते हैं कि वे हिंदुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक करते हैं, व्यसन छुड़वाते हैं, धर्मान्तरण रोकते हैं इसके कारण ये लोग हिंदू धर्म के साधु-संतों की बदनामी करने के लिए धर्म विरोधी लोगों से फंड लेकर ऐसी फिल्में बनाते हैं।

सभी सनातनियों से निवेदन है कि "आश्रम" व अन्य हिंदू विरोधी फिल्मों को देखे ही नहीं। इससे अपने आप ये लोग ऐसी फ़िल्में बनाना बंद कर देंगे और यूट्यूब पर वीडियो को रिपोर्ट और डिसलाइक जरूर करें तभी सनातन धर्म विरोधी लोगों की आँखे खुलेगी।

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Monday, August 17, 2020

देशवासियों को सबसे पहले सेक्युलरिज़्म का नशा उतारना होगा...

17 अगस्त 2020


श्री अरविन्द ने सौ साल पहले ही कहा था कि भारत की सब से बड़ी समस्या विदेशी शासन नहीं है। गरीबी भी नहीं है। सब से बड़ी समस्या है – सोचने-समझने की शक्ति का ह्रास! इसे उन्होंने ‘चिंतन-फोबिया’ कहा था। कि मानो हम सोचने-विचारने से डरते हैं। औने-पौने किसी मामले को निबटाने की कोशिश करते हैं। चाहे वह वैयक्तिक हो या सामाजिक या राष्ट्रीय। इस से कोई भी कार्य अच्छी तरह से तय नहीं होता, नतीजन समस्याएं बनी रहती हैं, बल्कि बिगड़ती जाती हैं।



वह एक सटीक अवलोकन था। स्वामी विवेकानन्द ने भी उसी कमी को ‘आत्म-विस्मरण’ कहा था। स्वतंत्र भारत में वह दूर होने के बदले और बढ़ गया। आकर्षक लगने वाली विविध, विदेशी विचारधाराओं को हमारे शासकों, उच्च-वर्गीय लोगों, बुद्धिजीवियों ने बिना किसी जाँच-परख के अपना लिया। आज हिन्दू लोग अपना धर्म और इतिहास बहुत कम जानते हैं। इस से उनका आत्म-विस्मरण बढ़ता जाता है।

हमारी असली दुर्बलता कहीं और है, जिस से सेना या सुरक्षा बलों का भी सही समय पर सही प्रयोग नहीं होता। अज्ञान और भय एक-दूसरे को बढ़ाते हैं। यह आज के हिन्दू समाज की कड़वी सच्चाई है। सनातन धर्मी समाज अज्ञान में डूबा, विखंडित और दुर्बल है। यह देश की केंद्रीय समस्या है। इसे शिक्षा के माध्यम से सरलतापूर्वक एक पीढ़ी या बीस वर्षो में दूर कर लिया जा सकता था, पर हिन्दू-विरोधी वामपंथी नीतियों तथा विदेशी मतवादों के दबाव में उलटा ही किया गया। रोजगारपरक बनाने के नाम पर सार्वजनिक शिक्षा मूल्य-विहीन, इसलिए घोर अशिक्षा में बदल गई है। दूसरी ओर, देश में राज्य-कर्म मुख्यतः नगरपालिका जैसे काम करने, पार्टी-बंदी और मीठी झूठी बातें कहने, तरह-तरह के भाषण देने में बदल कर रह गया है।

यह राष्ट्र की मानसिक क्षमता में ह्रास के उदाहरण हैं। इनमें पिछले सौ साल से कोई विशेष सुधार हुआ नहीं लगता। ऐसी ही स्थितियों में मुट्ठी भर शत्रु भी आक्रामक होकर बड़ी संख्या पर विजयी हो सकते हैं। सन् 1947 में देश-विभाजन और फिर निरंतर जगह-जगह हिन्दुओं के विस्थापन का यही कारण रहा है। इसका उपाय अच्छी सेना या युद्धक विमान मात्र नहीं हैं। क्योंकि शक्ति हथियारों में नहीं, उनका उपयोग करने और करवाने वालों के चरित्र और मानस में होती है।

श्री अरविन्द के शब्दों में, ‘हम ने शक्ति को छोड़ दिया है और इसलिए शक्ति ने भी हमें छोड़ दिया है। … कितने प्रयास हो चुके हैं। कितने धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक आंदोलन शुरू किए जा चुके। लेकिन सब का एक ही परिणाम रहा या होने को है। थोड़ी देर के लिए वे चमकते हैं, फिर प्रेरणा मंद पड़ जाती है, आग बुझ जाती है। (भवानी मंदिर, 1905) इस दुरावस्था से निकलने के लिए सब से पहले हमें अपना सच्चा इतिहास जानना चाहिए। ठीक है कि गत हजार साल से हमारे पूर्वजों ने दो साम्राज्यवादों का प्रतिरोध किया। लेकिन जिस मर्मांतक शत्रु को वे पहचान चुके थे, उसके सामने सदियों तक विफलता भयावह पैमाने की थी। उन विफलताओं के सबक आज भी प्रासंगिक हैं।

पहली, सैन्य-कला की विफलता। दूसरी, राजनीतिक। आरंभिक चरणों में शाहीया, चौहान, चंदेल, गहड़वाल और चालुक्य जैसे हिन्दू राज्य अरब, तुर्क इस्लामी हमलावरों की तुलना में वित्तीय संसाधन और मानव-बल, दोनों में श्रेष्ठ थे, किन्तु उनका ढंग से उपयोग कर पाने में विफल रहे। इसका बड़ा कारण था आध्यात्मिक समझ में आई गिरावट। उस से पहले के युग में जब यूनानी आक्रमणकारी अलेक्जेंडर ने भारत के एक ब्राह्मण से पूछा था कि उन्होंने क्या सिखाया जिससे ऐसी ऊँची वीरता से भरे होते हैं, तो ब्राह्मण ने एक पंक्ति में उत्तर दिया था – ‘‘हम ने अपने लोगों को सम्मान के साथ जीना सिखाया है।’’ किन्तु पाँचवीं सदी के बाद स्थिति बदलने लगी। पहले के महाभारत, रामायण और मनुस्मृति, आदि की तुलना में अब साहित्य बहुत हल्के होते गए।

इस प्रकार, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और मानसिक स्तरों पर तिहरी विफलता ने सनातन धर्मी समाज को एक अभूतपूर्व स्थिति में आवश्यक नीतियाँ बनाने और लागू करने के अयोग्य बना दिया। वैसी नीतियाँ, जिस से वह अपने देश में एक कैंसरनुमा रोग की स्थाई उपस्थिति से मुक्त हो सकता था।

हजार साल पहले का आक्रमणकारी मक्का-मदीना साम्राज्यवाद ‘केवल-हम-सही’ होने के तेज बुखार से ग्रस्त था। उसे किसी कड़ी दवा की बड़ी जरूरत थी। यदि उन्हें बलपूर्वक समझाया जाता कि जो काम वे मार्त्तंड मंदिर या सोमनाथ के साथ करते हैं, वही उनके मक्का-मदीना के साथ भी किया जा सकता है, तो वे ठहर कर सोचते और सामान्य हो जाते। यह बहुत बड़ी भूल हुई।

तब से बहुत समय बीत चुका है। पर वह बुखार आज भी भारत में मौजूद है, और उसके प्रति वही गफलत भी। सेक्यूलरवादी, वामपंथी और राष्ट्रवादी भी हमारे इतिहास को विकृत करने में लगे हैं, कि इस्लाम ने कभी गैर अरबी मजहबी या उनके धर्म को हानि पहँचाने की चाह नहीं रखी थी! क्या सनातन समाज को फिर इस आत्म-विस्मरण, गफलत की कीमत चुकानी होगी? पर अब कटिबद्ध इस्लामी प्रहार के समक्ष हिन्दू समाज नहीं बच सकेगा। इसका मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य वैसा नहीं है। न भूलें कि सेना, प्रक्षेपास्त्र और परमाणु बम होते हुए भी कश्मीर से सनातन धर्मियों का सफाया हुआ है!

भारत के सच्चे देशभक्त और धर्म-प्राण लोग यदि पार्टी-बंदी से ऊपर उठकर राष्ट्रीय स्थिति पर विचार करें, तभी उन्हें वस्तु-स्थिति का सही आभास होगा। जो समाज आत्म-दया से ग्रस्त है, जो हर उत्पीड़क की ओर से बोलने में लग जाता है, जो पक्के दुश्मनों से अपने लिए अच्छे आचरण का प्रमाण-पत्र पाने की जरूरत महसूस करता है – ऐसे समाज के लिए ऐसी दुनिया में कोई आशा नहीं, जो दिनो-दिन अधिक हिंसक होती जा रही है। इसलिए, हमें शक्ति का साथ-साथ ज्ञान की आराधना भी करनी चाहिए।
लेखक : डॉ. शंकर शरण

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Sunday, August 16, 2020

विदेशों में छाये हैं श्री राम, करेंसी पर भी लगा रखे हैं श्री रामजी के फ़ोटो।

16 अगस्त 2020


भारत में भगवान श्री रामजी का नाम लेने पर लिबरल जलने लगते हैं जैसे श्री राम के नाम से रावण और राक्षस जलते थे लेकिन कई देशों में भगवान श्री राम की आराधना की जाती है यहां तक ही अपना राष्ट्रीय ग्रंथ भी रामायण को रखा है और करेंसी पर भी भगवान श्री रामजी के फोटो लगाकर रखे हैं।



ट्विटर पर सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत पटेल उमराव ने लिखा कि महर्षि महेश योगी ने हॉलैंड में आज से लगभग बीस साल पहले “राम” नाम से करेंसी चलाई थी। साथ ही उन्होंने 1, 5 और 10 ‘राम’ का नोट भी शेयर किया, जिस पर भगवान राम की तस्वीर बनी हुई है और साथ हुई ‘विश्व शांति राष्ट्र’ अंकित किया हुआ है। इस पर ‘नीदरलैंड’ भी लिखा हुआ है।

कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इस दावे को आगे बढ़ाया और लिखा कि एक हमारे यहाँ के नेता हैं, जो राम नाम को ही सांप्रदायिक मानते हैं और राम मंदिर पर मोदी सरकार का समर्थन करने से दूर भागते हैं क्योंकि ये सब उनकी तुष्टिकरण की नीति के खिलाफ है। लोगों ने लिखा कि जिस देश में राम का जन्म हुआ, उससे ज्यादा बाहर के लोग उन्हें मान-सम्मान दे रहे हैं और उनके नाम पर करेंसी भी है।

ऑपइंडिया ने जब सोशल मीडिया के इन दावों की पड़ताल की तो पाया कि राम नाम की करेंसी हॉलैंड में है और इसे वहाँ मान्यता भी मिली हुई है। इस दौरान हमें फ़रवरी 2003 की एक बीबीसी की खबर मिली, जिसमें बताया गया था कि डच सेन्ट्रल बैंक ने स्पष्ट कर दिया है कि महर्षि महेश योगी द्वारा जारी की गई ‘करेंसी’ राम उसके नियमों का उलंघन नहीं करती। साथ ही बताया गया था कि उस वक़्त हॉलैंड में 100 से अधिक दुकानें इसका लेनदेन करती हैं।

इसे अक्टूबर 2001 में ‘द ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस’ द्वारा लॉन्च किया गया था। कई शहरों और गाँवों में, यहाँ तक कि बड़े मॉल्स में भी इस करेंसी को स्वीकार किया जाता है। डच सेन्ट्रल बैंक ने कहा था कि ये सब कुछ नियमानुसार हो रहा है। महर्षि मूवमेंट के ‘वित्त मंत्री’ रहे बेंजमिल फेल्डमैन ने कहा था कि गरीबी से लड़ने में राम मददगार साबित हो सकता है और कृषि में इसके उपयोग को बढ़ावा मिलना चाहिए।

राम को ‘वर्ल्ड पीस बॉन्ड’ के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि मूवमेंट का कहना है कि इससे विश्व शांति को मजबूती मिलेगी, अर्थव्यवस्था में संतुलन बनेगा और साथ ही गरीबी से लड़ाई में ये कारगर सिद्ध होगा। यूरोप में इसकी कीमत 10 यूरो के बराबर होती है, वहीं अमेरिका में ये 10 डॉलर के बराबर हो जाता है। राम के नोट सिर्फ 3 डेनोमिनाशन में आते हैं। इसका सर्कुलेशन काफी तेजी से बढ़ा था।

फ़िलहाल इसे आर्थिक विशेषज्ञ ‘बेयरर बॉन्ड’ या लोकल करेंसी कहते हैं। नीदरलैंड के 30 शहरों में इसका उपयोग किया जाता है। लोवा में स्थित महर्षि सिटी को इसकी राजधानी कहा जाता है। इसके द्वारा अमेरिका के विभिन्न शहरों में ‘पीस पैलेस’ बनाए जा रहे हैं। इस तरह से ये दवा सही है कि राम करेंसी को हॉलैंड में डच सरकार की मान्यता मिली हुई है और इसकी कीमत 10 यूरो है। लेकिन, बात ‘ लीगल टेंडर’ की हो तो इसे दुनिया की सबसे महँगी करेंसी नहीं कह सकते।

मुस्लिम देश इंडोनेशिया में श्री रामजी

आपको बता दें कि सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया देश में अयोध्या भी है और यहां के मुस्लिम भी भगवान राम को अपने जीवन का नायक और रामायण को अपने दिल के सबसे करीब किताब मानते हैं। रामायण ही नही इंडोनेशियाई रुपिया के 20,000 के नोट पर भगवान गणेश की भी तस्वीर छपी है।

इंडोनेशिया में हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। वहां भगवान गणेश को कला, शास्त्र और बुद्धिजीवी का भगवान माना जाता है।

बौद्ध देश थाईलैंड श्री राम का दीवाना

बौद्ध बहुल देश थाईलैंड के लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति भी आस्था दिखती है । यहां के लोग अपने राजा को भगवान राम का वंशज मानते हैं और उन्हें विष्णु का अवतार कहते हैं । थाई संस्कृति और साहित्य का रामायण और श्रीराम से काफी जुड़ाव है । यहां के राजा अपने नाम के साथ राम लिखते थे । इसके अलावा थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक को ‘महेंद्र अयोध्या’ भी कहते हैं । लोगों का मानना है कि यह ‘अयोध्या’ इंद्र ने बसाई थी ।

थाईलैंड में रामायण को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कर दिया है।

विदेशों में भगवान श्री रामजी व हिंदू देवी देवताओं को इतना आदर पूजन करते है भारत के लीबरल इसकी महत्ता कब समझेंगे।

पाठ्यक्रम में भी गीता, रामायण और महाभारत को शामिल करना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति के बारे में पता रहें।

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