Sunday, October 1, 2023

लाल बहादुर शास्त्री ने ऐसा क्या किया था जो आज भी उन्हें क्यों याद जाता है ? जानिए......

1 October 2023


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🚩लाल बहादुर शास्त्री महान निष्ठा और सक्षम व्यक्ति के रूप में जाने जाते है,वे महान आंतरिक शक्ति के साथ विनम्र, सहनशील थे, जो आम आदमी की भाषा को समझते थे और एक दृष्टि के व्यक्ति भी थे, जिन्होंने देश को प्रगति की ओर अग्रसर किया था ,लाल बहादुर शास्त्री स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। उन्होंने पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के आकस्मिक निधन के बाद शपथ ली थी । उन्होंने 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 , अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री का पद संभाला ।


🚩उन्होंने 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के माध्यम से देश का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया था । एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए स्तंभों के रूप में आत्मनिर्भरता और आत्मनिर्भरता की आवश्यकता को पहचानते हुए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ के नारे को लोकप्रिय बनाया।


🚩वे असाधारण इच्छा शक्ति के व्यक्ति थे, जो मृदुभाषी तरीके में विश्वास रखते थे। एक राजनितिक नेता होने के बाद भी वे बड़े बड़े भाषणों के बजाय , वे राष्ट्रपति कार्यो से ज्यादा याद किये जाते हैं।


🚩अज्ञान तथ्य


🚩भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी का जन्मदिन 2 अक्टूबर को हम मनाते आये हैं।


🚩1926 में, लाल बहादुर शास्त्री जी को काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय के द्वारा ‘शास्त्री’ की उपाधि दी गई थीं ।


🚩शास्त्री जी स्कूल जाने के लिए दिन में दो बार अपने सिर पर किताबें बांध कर गंगा नदी तैर कर जाते थे,क्योंकि उनके पास नाव लेने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं हुआ करता था।


🚩जब लाल बहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश के मंत्री थे, तब वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने लाठीचार्ज के बजाय भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पानी के जेट विमानों का इस्तेमाल किया था।

उन्होंने “जय जवान जय किसान” का नारा दिया और भारत के भविष्य को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वे जेल भी गए क्योंकि उन्होंने गांधी जी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था लेकिन उन्हें 17 साल के नाबालिग होने के कारण छोड़ दिया गया था।


🚩स्वतंत्रता के बाद परिवहन मंत्री के रूप में, उन्होंने सार्वजनिक परिवहन में महिला ड्राइवरों और कंडक्टरों के प्रावधान की शुरुआत की।

अपनी शादी में दहेज के रूप में उन्होंने खादी का कपड़ा और चरखा स्वीकार किया।

उन्होंने साल्ट मार्च में भाग लिया और दो साल के लिए जेल भी गए।


🚩जब वह गृह मंत्री थे, तो उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक समिति की पहली समिति शुरू की थी।

उन्होंने भारत के खाद्य उत्पादन की मांग को बढ़ावा देने के लिए हरित क्रांति के विचार को भी एकीकृत किया था।


🚩1920 के दशक में वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता के रूप में कार्य किया था।


🚩यही नहीं, उन्होंने देश में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए श्वेत क्रांति को बढ़ावा देने का भी समर्थन किया था,उन्होंने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड बनाया और गुजरात के आनंद में स्थित अमूल दूध सहकारी का समर्थन किया था।

 उन्होंने 1965 के युद्ध को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के साथ 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए।


🚩उन्होंने दहेज प्रथा और जाति प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई।

वे उच्च आत्म-सम्मान और नैतिकता के साथ एक उच्च अनुशासित व्यक्ति थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने कार नहीं रखी।


🚩लाल बहादुर शास्त्री के अनमोल वचन:-


🚩अनुशासन और एकजुट होकर काम करना राष्ट्र के लिए ताकत का असली स्रोत है।

हमें शांति के लिए बहादुरी से लड़ना चाहिए जैसे हम युद्ध में लड़े थे। यह अत्यंत खेद की बात है कि आज परमाणु ऊर्जा का उपयोग परमाणु हथियार बनाने के लिए किया जा रहा है। शासन का मूल विचार, समाज को एक साथ रखना है ताकि यह विकसित हो सके और कुछ लक्ष्यों की ओर अग्रसर हो सके।


🚩सच्चा लोकतंत्र या जनता का स्वराज असत्य और हिंसक साधनों से कभी नहीं आ सकता! मैं उतना सरल नहीं हू, जितना मैं दिखता हूं। हम न केवल अपने लिए बल्कि पूरी दुनिया के लोगों के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं। हमारे लिए हमारी ताकत और स्थिरता के लिए हमारे लोगों की एकता और एकजुटता के निर्माण के कार्य से अधिक महत्वपूर्ण कोई नहीं है। स्वतंत्रता की रक्षा करना केवल सैनिकों का कार्य नहीं है। पूरे देश को मजबूत होना है। आर्थिक मुद्दे हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं और यह सबसे महत्वपूर्ण है कि हमें अपने सबसे बड़े दुश्मनों – गरीबी, बेरोजगारी से लड़ना चाहिए। विज्ञान और वैज्ञानिक कार्यों में सफलता असीमित या बड़े संसाधनों के प्रावधान से नहीं बल्कि समस्याओं और उद्देश्यों के बुद्धिमान और सावधानीपूर्वक चयन से मिलती है।


🚩सबसे बढ़कर, जो आवश्यक है वह है कड़ी मेहनत और समर्पण।

 देश के प्रति वह निष्ठा अन्य सभी निष्ठाओं से आगे आती है। और यह पूर्ण निष्ठा है, क्योंकि कोई इसे प्राप्त करने के संदर्भ में नहीं तौल सकता है।

अब हमें शांति के लिए उसी साहस और दृढ़ संकल्प के साथ लड़ना है, जैसा कि हमने आक्रमण के खिलाफ लड़ा था।


🚩शास्त्री जी कहते थे कि “हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते हैं।

तो आप जान गए होंगे की लाल बहादुर शास्त्री एक महान व्यक्ति, नेता और सरल व्यक्ति थे। उनके किए गए कार्यों को पूरा देश याद करता है।


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Saturday, September 30, 2023

पत्थरबाजी सोची-समझी जिहादी रणनीति, मुस्लिमों द्वारा गणेश उत्सव पर देशभर में पत्थर बाजी

 30 September, 2023


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🚩पहले गुड़ी पड़वा फिर रामनवमी , हनुमान जयंती और अब... गणेशोत्सव पर देशभर में कई जगहों पर इस्लामी कट्टर पंथियों ने जमकर पत्थर बाजी की !


🚩गज़वा-ए-हिंद को साकार करने के लिए कट्टरपंथी जेहादियों द्वारा, हिन्दुओं और हिन्दू त्यौहार के खिलाफ़ हिंसा की वारदातें दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही हैं !


🚩आज समय की मांग है कि सभी सनातनियों को आपस में मिल-जुलकर एकजुट होकर आगे आना ही होगा !


🚩पत्थरबाजी एक बहुत सोची-समझी जिहादी रणनीति है। एक खास तरह के पत्थरों को इकट्ठा करना, उन्हें फेंकने का प्रशिक्षण देना, उसका नियंत्रित इस्तेमाल करना, यह सब संगबाजी जिहाद का हिस्सा हैं। बिना पूर्व योजना के संगबाजी हो ही नहीं सकती। संगबाजी का सबसे बड़ा फायदा है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह सुरक्षाबलों की बंदूकों को निष्क्रिय कर देती है। अगर सुरक्षाबल गोली से जवाब दें, तो यह उनके दुष्प्रचार और मुसलमानों के एकत्रीकरण के लिए बहुत लाभदायक होता है। संगबाजी के कई स्वरूप होते हैं। पहला, जो कश्मीर में देखने को मिला। दूसरा, जो रामनवमी शोभायात्राओं में दिखा और तीसरा, जो हाल के

गणेश उत्सव में देखने को मिला।


 🚩गणेश उत्सव पर देशभर में अनेक जगह पर पत्थर बाजी


🚩मध्य प्रदेश के धार जिले के कुक्षी में गुरुवार रात को अनंत चतुर्दशी के मौके पर निकाले जा रहे श्री गणेशजी की यात्रा पर इस्लामी कत्थरपंथियो ने जमाकर पथराव किया गया।


🚩राजस्थान के नागौर जिले के खींवसर के बस स्टैंड के पास तालाब में गुरुवार देर शाम गणपति जी का विसर्जन किया जा रहा था, ऐसे में बड़ी संख्या में महिलाएं-पुरुष और बच्चे नाचते गाते तालाब की ओर बढ़ रहे थे। तभी कट्टरपंथियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी।


🚩झारखंड के कतरास शहर में गणेश पूजा की धूम के दौरान रानी बाजार गणेश पूजा समिति के द्वारा गणेश प्रतिमा के विसर्जन के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगो ने पत्थरबाजी की । जिसमें पांच लोग घायल हो गए। थाना पहुंच कर पुलिस से शिकायत की है। शिकायत के आधार पर पुलिस ने मामले की छानबीन शुरु कर दी है।


🚩गुजरात के वडोदरा में गणेश यात्रा के दौरान हिंसा हुई है। वहां सोमवार रात जिस वक्त गणेश यात्रा एक निकल रही थी उसपर मुसलमान के कुछ लोगो ने पत्थरबाजी किया। पुलिस ने मामले में 13 लोगों को हिरासत में लिया है।


🚩गुजरात के नर्मदा जिले में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो गया है। यहां लांबा इलाके में बजरंग दल की शौर्य यात्रा पर जमकर पत्थरबाजी और आगजनी की गई। पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागकर भीड़ को मौके से हटा दिया है। बड़ी संख्या में पुलिसफोर्स की तैनाती की गई है।


🚩विशेश्वरगंज(बहराइच)। बारावफात जुलूस की तैयारियों के दौरान विशेश्वरगंज थाना क्षेत्र में मंगलवार को उस समय तनाव फैल गया जब समुदाय विशेष के युवकों ने दूसरे समुदाय के लोगों के मकानों पर हरा झंडा लगा दिया। जब विरोध हुआ तो मुस्लिम समुदाय के युवकों ने लगभग 200 की संख्या में पहुंचकर झंडा उतारने वाले लोगों पर हमला कर दिया।


🚩इस दौरान मुस्लिम जिहादियों ने जमकर पत्थरबाजी की जिसमें एक किशोर अनुराग पुत्र शिवकुमार जायसवाल घायल हो गया। पुलिस ने 14 नामजद व 10 अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। एसपी ने बताया कि चार लोगों को गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है। गंगवल बाजार क्षेत्र में पुलिस बल तैनात किया गया है।


🚩पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर गुरुवार (28 सितंबर 2023) को निकले बारावफात जुलूस में कई जगहों पर उपद्रव देखने को मिला। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जुलूस में शामिल लोगों ने पत्थरबाजी की। सुल्तानपुर में तिरंगे के अपमान का मामला सामने आया है। बदायूं में का एक वीडियो वायरल है, जहाँ मुस्लिम भीड़ ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगाती दिख रही है।


🚩कुशीनगर में पत्थरबाजी


🚩कुशीनगर में बारावफात जुलूस के दौरान पत्थरबाजी हुई। नवीन सब्जी मंडी के नौका टोला से बारावफात का जुलूस नगर भ्रमण के लिए निकला। इसमें एक ट्राली पर नाबालिग हाथ में तख्ती लिए था, जिस पर लिखा हुआ था- 15 मिनट याद आया। उसी ट्राली पर हैदराबाद के विवादित मुस्लिम नेता अकबरूद्दीन ओवैसी की हेट स्पीच का ऑडियो भी बज रहा था।


🚩ये जुलूस वापस जब गोला बाजार पहुँचा तो ओवैसी के ऑडियो पर हिंदू युवकों ने आपत्ति की, इसके बाद जुलूस में शामिल मुस्लिम युवकों ने राम जानकी मंदिर के पास पथराव किया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो वायरल हो गया, जिसके बाद पूरे इलाके में तनाव फैल गया। भारी पुलिस बल और पीएसी की तैनाती करनी पड़ी।


🚩पथराव में राम जानकी नगर की मुस्कान और रितेश घायल हो गए। इस मामले में पुलिस ने पथराव करने वाले 37 ज्ञात और कुछ अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर 6 आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया है।


🚩सबसे बड़ा सवाल


🚩अब सबसे बड़ा सवाल यह उत्पन्न होता है कि हिंदू त्यौहार की यात्रा पर हिंसा से लाभ किसको मिलता है। इसके उत्तर के लिए हमें गजवा-ए-हिंद के इस्लामिक सिद्धांत पर गौर करना होगा। सभी भारतीय मुसलमान इस सिद्धांत से मजहबी रूप से बंधे हुए हैं। इसकी निंदा या इसके बहिष्कार की सजा शरियत के मुताबिक मौत है। गजवा-ए-हिंद इस्लामिक कट्टरपंथ और ध्रुवीकरण के बिना संभव नहीं है। दारुल हरब से दारुल इस्लाम की यात्रा ध्रुवीकरण के बिना संभव नहीं है। इसके लिए हिंदुओं के खिलाफ समय-समय पर हिंसा अत्यंत आवश्यक है। भारत में मुसलमानों में यह डर हमेशा रहा है कि उनके मजहब के लोग कहीं अतीत की रास्ते पर न चल पड़ें। कहीं हिंदू वातावरण में दोबारा सम्मिलित न हो जाएं। देवबंद की स्थापना भी इसीलिए हुई थी, क्योंकि 1857 के युद्ध के बाद मौलवियों की यही मान्यता थी कि वह मुगल राज पुन: स्थापित करने में इसलिए नाकामयाब हुए, क्योंकि भारत के मुसलमानों पर हिंदू धर्म का असर काफी बढ़ गया था और एक साझा संस्कृति बनती जा रही थी। अहल-ए-हदीस आंदोलन का भी यही कारण था।


🚩डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने अपनी किताब ‘थॉट्स आन पाकिस्तान’ में लिखा है कि यह कहना बिल्कुल गलत है कि एक गुजराती मुसलमान और एक गुजराती हिंदू या एक कश्मीरी हिंदू और एक कश्मीरी मुसलमान, सांस्कृतिक रूप से एक हैं। उनका कहना है कि यह केवल एक मुसलमान की सोच में अस्थाई समझौता है। उनका मानना है कि किन्हीं कारणों से इस्लामीकरण रुक गया था, जो कभी न कभी पूरा होगा। अगर डॉ. आंबेडकर का विश्लेषण गलत रहा होता, तो बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल एक राज्य होते। बांग्लादेश से हिंदुओं का पलायन नहीं होता और कोलकाता में हिंदू त्यौहार की शोभायात्रा पर बंगाली मुसलमान पत्थरबाजी न करते।


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Friday, September 29, 2023

श्राद्ध करने से क्या-क्या लाभ...न करने से क्या क्या हानि....जानिए:-

29 September, 2023


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🚩श्राद्धकर्म से देवता और पितर तृप्त होते हैं और श्राद्ध करनेवाले का अंतःकरण भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव करता है। बूढ़े-बुजुर्गों ने हमारी उन्नति के लिए बहुत कुछ किया है तो उनकी सद्गति के लिए हम भी कुछ करेंगे तो हमारे हृदय में भी तृप्ति-संतुष्टि का अनुभव होगा।


🚩औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया था तब शाहजहाँ ने अपने बेटे को लिख भेजाः “धन्य हैं हिन्दू जो अपने मृतक माता-पिता को भी खीर और हलुए-पूरी से तृप्त करते हैं और तू जिन्दे बाप को भी एक पानी की मटकी तक नहीं दे सकता? तुझसे तो वे हिन्दू अच्छे, जो मृतक माता-पिता की भी सेवा कर लेते हैं।”


🚩गरुड़ पुराण में श्राद्ध महिमा:


🚩कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।

आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।

पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।

देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।

देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।


🚩”समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।(10.57-59)


🚩”सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे निराश होकर दुःखित मन से अपने-अपने लोकों को चले जाते हैं। अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया-तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्हीं पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। उन्हें भूख-प्यास कभी नहीं लगती। इसीलिए विद्वान को प्रयत्नपूर्वक यथाविधि शाकपात से भी अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।


🚩भगवान विष्णु गरूड़ से कहते हैं- जो लोग अपने पितृगण, देवगण, ब्राह्मण तथा अग्नि की पूजा करते हैं, वे सभी प्राणियों की अन्तरात्मा में समाविष्ट मेरी ही पूजा करते हैं। शक्ति के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करके मनुष्य ब्रह्मपर्यंत समस्त चराचर जगत को प्रसन्न कर देता है।


🚩हे आकाशचारिन् गरूड़ ! पिशाच योनि में उत्पन्न हुए पितर मनुष्यों के द्वारा श्राद्ध में पृथ्वी पर जो अन्न बिखेरा जाता है,उससे संतृप्त होते हैं। श्राद्ध में स्नान करने से भीगे हुए वस्त्रों द्वारा जो जल पृथ्वी पर गिरता है, उससे वृक्ष योनि को प्राप्त हुए पितरों की संतुष्टि होती है। उस समय जो गन्ध तथा जल भूमि पर गिरता है, उससे देव योनि को प्राप्त पितरों को सुख प्राप्त होता है। जो पितर अपने कुल से बहिष्कृत हैं, क्रिया के योग्य नहीं हैं, संस्कारहीन और विपन्न हैं, वे सभी श्राद्ध में विकिरान्न और मार्जन के जल का भक्षण करते हैं। श्राद्ध में भोजन करने के बाद आचमन एवं जलपान करने के लिए ब्राह्मणों द्वारा जो जल ग्रहण किया जाता है, उस जल से पितरों को संतृप्ति प्राप्त होती है। जिन्हें पिशाच, कृमि और कीट की योनि मिली है तथा जिन पितरों को मनुष्य योनि प्राप्त हुई है, वे सभी पृथ्वी पर श्राद्ध में दिये गये पिण्डों में प्रयुक्त अन्न की अभिलाषा करते हैं, उसी से उन्हें संतृप्ति प्राप्त होती है।


🚩इस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्यों के द्वारा विधिपूर्वक श्राद्ध किये जाने पर जो शुद्ध या अशुद्ध अन्न, जल फेंका जाता है, उससे उन पितरों की तृप्ति होती है,जिन्होंने अन्य जाति में जाकर जन्म लिया है। जो मनुष्य अन्यायपूर्वक अर्जित किये गये पदार्थों के श्राद्ध करते हैं, उस श्राद्ध से नीच योनियों में जन्म ग्रहण करने वाले चाण्डाल पितरों की तृप्ति होती है।


🚩हे पक्षिन् ! इस संसार में श्राद्ध के निमित्त जो कुछ भी अन्न, धन आदि का दान अपने बन्धु-बान्धवों के द्वारा किया जाता है, वह सब पितरों को प्राप्त होता है। अन्न, जल और शाकपात आदि के द्वारा यथासामर्थ्य जो श्राद्ध किया जाता है, वह सब पितरों की तृप्ति का हेतु है। – गरूड़ पुराण


🚩श्राद्घ नहीं कर सकते हैं तो…


🚩अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें : “हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), अमुक गोत्र (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें। इस निमित्त मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं। गौ माता को चारा खिला देना चाहिए।


🚩श्राद्ध के बारे में संपूर्ण जानकारी 


https://goo.gl/SdZbct


🚩श्राद्ध पक्ष में रोज भगवद्गीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और 1 माला “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा” की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।


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Thursday, September 28, 2023

सावधान: भगत सिंह के नाम पर इस सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है,पूरा लेख अवश्य पढ़ें

28 September, 2023


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🚩'मैं नास्तिक क्यों हूँ? शहीद भगत सिंह की यह छोटी सी पुस्तक वामपंथी, साम्यवादी लाबी द्वारा आजकल नौजवानों में खासी प्रचारित की जा रही है, जिसका उद्देश्य उन्हें भगत सिंह के जैसा महान बनाना नहीं अपितु उनमें नास्तिकता को बढ़ावा देना है। कुछ लोग इसे कन्धा भगत सिंह का और निशाना कोई और भी कह सकते हैं। मेरा एक प्रश्न उनसे यह है की क्या भगत सिंह इसलिए हमारे आदर्श होने चाहिए कि वे नास्तिक थे, अथवा इसलिए कि वे एक प्रखर देशभक्त और अपने सिद्धान्तों से किसी भी कीमत पर समझौता न करने वाले बलिदानी थे? सभी कहेंगे कि इसलिए कि वे देशभक्त थे।


🚩 भगतसिंह के जो प्रत्यक्ष योगदान है उसके कारण भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में उनका कद इतना उच्च है कि उन पर अन्य कोई संदिग्ध विचार धारा थोपना कतई आवश्यक नहीं है। इस प्रकार के छद्म प्रोपगंडा से भावुक एवं अपरिपक्व नौजवानों को भगतसिंह के समग्र व्यक्तित्व से अनभिज्ञ रखकर अपने राजनीतिक उद्देश्य तो पूरे किये जा सकते हैं, भगतसिंह के आदर्शों का समाज नहीं बनाया जा सकता। किसी भी क्रांतिकारी की देशभक्ति के अलावा उनकी अध्यात्मिक विचारधारा अगर हमारे लिए आदर्श है तब तो भगत सिंह के अग्रज महान कवि एवं लेखक, भगत सिंह जैसे अनेक युवाओं के मार्ग द्रष्टा, जिनके जीवन में क्रांति का सूत्र पात स्वामी दयानंद द्वारा रचित अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश को पढने से हुआ था, कट्टर आर्यसमाजी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जी जिनका सम्पूर्ण जीवन ब्रह्मचर्य पालन से होने वाले लाभ का साक्षात् प्रमाण था, क्यों हमारे लिए आदर्श और वरण करने योग्य नहीं हो सकते?


🚩क्रान्तिकारी सुखदेव थापर वेदों से अत्यंत प्रभावित एवं आस्तिक थे एवं संयम विज्ञान में उनकी आस्था थी। स्वयं भगत सिंह ने अपने पत्रों में उनकी इस भावना का वर्णन किया है। हमारे लिए आदर्श क्यों नहीं हो सकते?

'आर्यसमाज मेरी माता के समान है और वैदिक धर्म मेरे लिए पिता तुल्य है। ऐसा उद्घोष करने वाले लाला लाजपतराय जिन्होंने जमीनी स्तर पर किसान आन्दोलन का नेतृत्व करने से लेकर उच्च बौद्धिक वर्ग तक में प्रखरता के साथ देशभक्ति की अलख जगाई और साइमन कमीशन का विरोध करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। वे क्यों हमारे लिए वरणीय नहीं हो सकते? क्या इसलिए कि वे आस्तिक थे? वस्तुतः: देशभक्त लोगों के प्रति श्रद्धा और सम्मान रखने के लिए यह एक पर्याप्त आधार है कि वे सच्चे देशभक्त थे और उन्होंने देश की भलाई के लिए अपने व्यक्तिगत स्वार्थों और सपनों सहित अपने जीवन का बलिदान कर दिया, इससे उनके सम्मान में कोई कमी या वृद्धि नहीं होती कि उनकी आध्यात्मिक विचारधारा क्या थी। रामप्रसाद के बलिदान का सम्मान करने के साथ अशफाक के बलिदान का केवल इस आधार पर अवमूल्यन करना कि वे इस्लाम से सम्बंधित थे, केवल मूर्खता ही कही जाएगी।

ऐसे हजारों क्रांतिकारियों का विवरण दिया जा सकता है जिन्होंने न केवल मातृभूमि की सेवा में अपने प्राण न्योछावर किये थे अपितु मान्यता से वे सब दृढ़ रूप से आस्तिक भी थे। क्या उनकी बलिदान और भगत सिंह के बलिदान में कुछ अंतर हैं? नहीं। फिर यह अन्याय नहीं तो और क्या है?

अब यह भी विचार कर लेना चाहिए कि भगत सिंह की नास्तिकता क्या वाकई में नास्तिकता है? भगत सिंह शहादत के समय एक 23 वर्ष के युवक ही थे। उस काल में 1920 के दशक में भारत के ऊपर दो प्रकार की विपत्तियाँ थीं। 1921 में परवान चढ़े खिलाफत के मुद्दे को कमाल पाशा द्वारा समाप्त किये जाने पर कांग्रेस एवं मुस्लिम संगठनों की हिन्दू-मुस्लिम एकता ताश के पत्तों के समान उड़ गई और सम्पूर्ण भारत में दंगों का जोर आरंभ हो गया। हिन्दू मुस्लिम के इस संघर्ष को भगत सिंह द्वारा आज़ादी की लड़ाई में सबसे बड़ी अड़चन के रूप में महसूस किया गया, जबकि इन दंगों के पीछे अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति थी। इस विचार मंथन का परिणाम यह निकला कि भगत सिंह को "धर्म" नामक शब्द से घृणा हो गई। उन्होंने सोचा कि दंगों का मुख्य कारण धर्म है। उनकी इस मान्यता को दिशा देने में मार्क्सवादी साहित्य का भी योगदान था, जिसका उस काल में वे अध्ययन कर रहे थे। दरअसल धर्म दंगों का कारण ही नहीं था, दंगों का कारण मत-मतान्तर की संकीर्ण सोच थी। धर्म पुरुषार्थ रूपी श्रेष्ठ कार्य करने का नाम है, जो सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक है। जबकि मत या मज़हब एक सीमित विचारधारा को मानने के समान हैं, जो न केवल अल्पकालिक हैं अपितु पूर्वाग्रह से युक्त भी हैं। उसमें उसके प्रवर्तक का सन्देश अंतिम सत्य होता है। मार्क्सवादी साहित्य की सबसे बड़ी कमजोरी उसका धर्म और मज़हब शब्द में अंतर न कर पाना है।


🚩उस काल में अंग्रेजों की विनाशकारी नीतियों के कारण भारत देश में गरीबी अपनी चरम सीमा पर थी और अकाल, बाढ़, भूकंप, प्लेग आदि के प्रकोप के समय उचित व्यवस्था न कर पाने के कारण थोड़ी सी समस्या भी विकराल रूप धारण कर लेती थी। ऐसे में चारों ओर गरीबी, भुखमरी, बीमारियाँ आदि देखकर एक देशभक्त युवा का निर्मल ह्रदय का व्यथित हो जाना स्वाभाविक है। परन्तु इस प्रकोप का श्रेय अंग्रेजी राज्य, आपसी फूट, शिक्षा एवं रोजगार का अभाव, अन्धविश्वास आदि को न देकर ईश्वर को देना कठिन विषय में अंतिम परिणाम तक पहुँचने से पहले की शीघ्रता के समान है। दुर्भाग्य से भगत सिंह जी को केवल 23 वर्ष की आयु में देश पर अपने प्राण न्योछावर करने पड़े, वरना कुछ और काल में विचारों में प्रगति होने पर उनका ऐसा मानना कि संसार में दुखों का होना इस बात को सिद्ध करता है कि ईश्वर नाम की कोई सत्ता नहीं हैं, वे स्वयं ही अस्वीकृत कर देते।

संसार में दुःख का कारण ईश्वर नहीं अपितु मनुष्य स्वयं हैं। ईश्वर ने तो मनुष्य के निर्माण के साथ ही उसे वेद रूपी उपदेश में यह बता दिया कि उसे क्या करना है और क्या नहीं करना है? अर्थात् मनुष्य को सत्य-असत्य का बोध करवा दिया था। अब यह मनुष्य का कर्तव्य है कि वो सत्य मार्ग का वरण करे और असत्य मार्ग का त्याग करे। पर यदि मनुष्य अपनी अज्ञानता से असत्य मार्ग का वरण करता है तो आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक तीनों प्रकार के दुखों का भागी बनता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार कर्म करने में मनुष्य स्वतंत्र है- यह निश्चित सिद्धांत है मगर उसके कर्मों का यथायोग्य फल मिलना भी उसी प्रकार से निश्चित सिद्धांत है। जिस प्रकार से एक छात्र परीक्षा में अत्यंत परिश्रम करता है उसका फल अच्छे अंकों से पास होना निश्चित है, उसी प्रकार से दूसरा छात्र परिश्रम न करने के कारण फेल होता हैं तो उसका दोष ईश्वर का हुआ अथवा उसका हुआ। ऐसी व्यवस्था संसार के किस कर्म को करने में नहीं हैं? सकल कर्मों में हैं और यही ईश्वर की कर्मफल व्यवस्था है। फिर किसी भी प्रकार के दुःख का श्रेय ईश्वर को देना और उसके पीछे ईश्वर की सत्ता को नकारना निश्चित रूप से गलत फैसला है। भगत सिंह की नास्तिकता वह नास्तिकता नहीं है जिसे आज के वामपंथी गाते हैं। यह एक 23 वर्ष के जोशीले, देशभक्त नौजवान युवक की क्षणिक प्रतिक्रिया मात्र है, व्यवस्था के प्रति आक्रोश है। भगतसिंह की जीवन शैली, उनकी पारिवारिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि और सबसे बढकर उनके जीवन-शैली से सिद्ध होता है कि किसी भी आस्तिक से आस्तिकता में कमतर नहीं थे। वे परोपकार रूपी धर्म से कभी अलग नहीं हुए, चाहे उन्हें इसके लिए कितनी भी हानि उठानी पड़ी। महर्षि दयानन्द ने इस परोपकार रूपी ईश्वराज्ञा का पालन करना ही धर्म माना है और साथ ही यह भी कहा है कि इस मनुष्य रूपी धर्म से प्राणों का संकट आ जाने पर भी पृथक न होवे। भगतसिंह का पूरा जीवन इसी धर्म के पालन का ज्वलंत उदाहरण है। इसलिए उनकी आस्तिकता का स्तर किसी भी तरह से कम नहीं आंका जा सकता।


🚩मेरा इस विषय को यहाँ उठाने का मंतव्य यह स्पष्ट करना है की भारत माँ के चरणों में आहुति देने वाला हर क्रांतिकारी हमारे लिए महान और आदर्श है। उनकी वीरता और देश सेवा हमारे लिए वरणीय है। भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा और देशभक्ति का श्रेय नास्तिकता को नहीं अपितु उनके पूर्वजों द्वारा माँ के दूध में पिलाई गयी देश भक्ति की लोरियां हैं, जिनका श्रेय स्वामी दयानंद, करतार सिंह सराभा, भाई परमानन्द, लाला लाजपतराय, प्रोफेसर जयदेव विद्यालंकार, भगत सिंह के दादा आर्यसमाजी सरदार अर्जुन सिंह और उनके परिवार के अन्य सदस्य, सिख गुरुओं की बलिदान की गाथाओं को जाता है, जिनसे प्रेरणा की घुट्टी उन्हें बचपन से मिली थी और जो निश्चित रूप से आस्तिक थे। भगत सिंह की महानता को नास्तिकता के तराजू में तोलना साम्यवादी लेखकों द्वारा शहीद भगत सिंह के साथ अन्याय के समान है। वैसे साम्यवादी लेखकों की दोगली मानसिकता के दर्शन हमें तब भी होते हैं जब वे भगत सिंह द्वारा गोरक्षा के लिए हुए कुका आंदोलन एवं वंदे मातरम के आज़ादी के उद्घोष के समर्थन में उनके द्वारा लिखे हुए साहित्य कि अनदेखी इसलिए करते हैं क्योंकि यह उनकी पार्टी के एजेंडे के विरुद्ध जाता हैं। प्रबुद्ध पाठक स्वयं इस आशय को समझ सकते हैं। - डॉ विवेक आर्य


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Wednesday, September 27, 2023

श्राद्ध नही करने से क्या होगा ? श्राद्ध क्यों और कैसे करना चाहिए ? जानिए सबकुछ......

27 September, 2023


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🚩भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है, लेकिन मरने के बाद, अंत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सद्गति के लिए किए जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है।


🚩मरणोत्तर क्रियाओं-संस्कारों का वर्णन हमारे शास्त्र-पुराणों में आता है। आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) के कृष्ण पक्ष को हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है। श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष : 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर तक श्राद्ध पक्ष है।


🚩 दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत आशीर्वाद से आपके कुल में दिव्य आत्माएँ अवतरित हो सकती हैं। जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता, ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि के लिए सकाम व निष्काम भाव से यह श्राद्धकर्म करना चाहिए।


🚩हिन्दू धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है । हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है। ‘श्राद्ध-विधि’ इसी भावना पर आधारित है।


🚩मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग, नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।


🚩पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव, पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस्या के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना ही चाहिए।


🚩आधुनिक विचारधारा एवं नास्तिकता के समर्थक शंका कर सकते हैं कि “यहाँ दान किया गया अन्न पितरों तक कैसे पहुँच सकता है ?”


🚩भारत की मुद्रा ‘रुपया’, अमेरिका में ‘डॉलर’ एवं लंदन में ‘पाउण्ड’ होकर मिल सकती है एवं अमेरिका के डॉलर जापान में येन एवं दुबई में दीनार होकर मिल सकते हैं। यदि इस विश्व की नन्हीं सी मानव रचित सरकारें इस प्रकार मुद्राओं का रुपान्तरण कर सकती हैं तो ईश्वर की सर्वसमर्थ सरकार आपके द्वारा श्राद्ध में अर्पित वस्तुओं को पितरों के योग्य करके उन तक पहुँचा दे- इसमें क्या आश्चर्य है ?


🚩मान लो, आपके पूर्वज अभी पितृलोक में नहीं, अपित मनुष्य रूप में हैं। आप उनके लिए श्राद्ध करते हो तो श्राद्ध के बल पर उस दिन वे जहाँ होंगे वहाँ उन्हें कुछ न कुछ लाभ होगा।


🚩मान लो, आपके पिता की मुक्ति हो गयी हो तो उनके लिए किया गया श्राद्ध कहाँ जाएगा? जैसे, आप किसी को मनीआर्डर भेजते हो, वह व्यक्ति मकान या आफिस खाली करके चला गया हो तो वह मनीआर्डर आप ही को वापस मिलता है, वैसे ही श्राद्ध के निमित्त से किया गया दान आप ही को विशेष लाभ देगा।


🚩दूरभाष और दूरदर्शन आदि यंत्र, हजारों किलोमीटर का अंतराल दूर करते हैं- यह प्रत्यक्ष है। इन यंत्रों से भी मंत्रों का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है।


🚩देवलोक एवं पितृलोक के वासियों का आयुष्य मानवीय आयुष्य से हजारों वर्ष ज्यादा होता है। इससे पितर एवं पितृलोक को मानकर उनका लाभ उठाना चाहिए तथा श्राद्ध करना चाहिए।


🚩भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे। पैठण के महान आत्मज्ञानी संत हो गये श्री एकनाथजी महाराज! पैठण के निंदक ब्राह्मणों ने एकनाथजी को जाति से बाहर कर दिया था एवं उनके श्राद्ध-भोज का बहिष्कार किया था। उन योगसंपन्न एकनाथजी ने ब्राह्मणों के एवं अपने पितृलोक वासी पितरों को बुलाकर भोजन कराया। यह देखकर पैठण के ब्राह्मण चकित रह गये एवं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमायाचना की।


🚩जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। श्राद्धपक्ष आश्विन के (गुजरात-महाराष्ट्र में भाद्रपद के) कृष्ण पक्ष में की गयी श्राद्ध-विधि गया क्षेत्र में की गयी श्राद्ध-विधि के बराबर मानी जाती है। इस विधि में मृतात्मा की पूजा एवं उनकी इच्छा-तृप्ति का सिद्धान्त समाहित होता है ।


🚩प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर देवऋण, पितृऋण एवं ऋषिऋण रहता है। श्राद्धक्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है। देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है। ऋषि-मुनि-संतों के विचारों को, आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उन्हें लक्ष्य मानकर आदरसहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है।


🚩पुराणों में आता है कि आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण पक्ष की अमावस (पितृमोक्ष अमावस) के दिन सूर्य एवं चन्द्र की युति होती है। सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन हमारे पितर यमलोक से अपना निवास छोड़कर सूक्ष्म रूप से मृत्युलोक (पृथ्वीलोक) में अपने वंशजों के निवास स्थान में रहते हैं। अतः उस दिन उनके लिए विभिन्न श्राद्ध करने से वे तृप्त होते हैं।


🚩गरुड़ पुराण (10.57-59) में आता है- ‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दु:खी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है।


🚩‘हारीत स्मृति’ में लिखा है : न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुष:। न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम ।।


🚩‘जिनके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल-खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होते, कोई निरोग नहीं रहता। किसी की लम्बी आयु नहीं होती और उनका किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता ( किसी-न-किसी तरह की झंझट और खटपट बनी रहती है )।’


🚩महर्षि सुमन्तु ने कहा: “श्राद्ध जैसा कल्याण-मार्ग गृहस्थी के लिए और क्या हो सकता है? अत: बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।”


🚩अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें : “हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), अमुक गोत्र (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें! इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं।


🚩श्राद्ध पक्ष में रोज भगवद्गीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” और एक माला “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा” की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।


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Tuesday, September 26, 2023

अमेरिका में बना दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर, 1000 साल तक रहेगा अक्षुण्ण


26 September, 2023

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🚩सनातन धर्म और संतो को लेकर भारत में भले कुछ असुर स्वभाव के लोग गलत टिप्पणियां करते हो, लेकिन सनातन धर्म अब दुनिया भर में फेल रहा है, क्योंकी सनातन धर्म से ही व्यक्ति सही उन्नति कर सकता है और सनातन हिंदू धर्म के कुछ नियम पालन करने से हर व्यक्ति स्वथ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जी सकता है, इसलिए आज दुनिया सनातन धर्म के सामने नत मस्तक हो रही है।


🚩अमेरिका में बड़ा मंदिर


🚩अमेरिका के न्यू जर्सी में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर बनकर तैयार हो गया है। 8 अक्टूबर 2023 को इस मंदिर का शुभारंभ होगा। इसे बीएपीएस अक्षरधाम नाम दिया गया है। मंदिर को अमेरिका में रहने वाले 12 हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने मिलकर बनाया है। 183 एकड़ में फैले इस मंदिर को बनाने में 12 साल का समय लगा है।


🚩 रिपोर्ट्स के अनुसार, यह मंदिर अमेरिका के न्यू जर्सी में रॉबिन्सविल टाउनशिप में बनाया गया है। यह अक्षरधाम मंदिर न्यूयॉर्क शहर से 90 किलोमीटर और राजधानी वॉशिंगटन डीसी से 289 किलोमीटर दूर है। स्वामीनारायण अक्षरधाम समिति ने साल 2011 में इस मंदिर को बनाना शुरू किया था। अब यह दिव्य-भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है।


🚩इस मंदिर में बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है। साथ ही धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेते हुए 10 हजार से अधिक प्रतिमाएँ बनाई गई हैं। इस अक्षरधाम मंदिर में मुख्य मंदिर के अलावा 12 उप-मंदिर, 9 शिखर और 9 पिरामिड शिखर शामिल हैं। यही नहीं इस मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर का अंडाकार गुंबद बनाया गया है।


🚩मंदिर में चार प्रकार के पत्थर चूना पत्थर, गुलाबी बलुआ पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट शामिल हैं। मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि यह 1000 साल तक चलता रहे। मंदिर में लगाए गए पत्थर बहुत अधिक गर्मी और बहुत अधिक ठंड दोनों ही सहने में सक्षम हैं। इसके अलावा यहाँ एक ब्रह्म कुंड बनाया गया है। इसमें भारत की पवित्र नदियों और अमेरिका के सभी राज्यों समेत दुनिया भर के 300 से अधिक जलाशयों से पानी इकट्ठा किया गया है।


🚩183 एकड़ में फैला यह मंदिर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। सबसे बड़ा मंदिर कंबोडिया के अंकोरवाट में स्थित है। यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल 12वीं सदी का अंकोरवाट मंदिर करीब 500 एकड़ में फैला हुआ है। राजधानी दिल्ली में 100 एकड़ में फैला हुआ अक्षरधाम मंदिर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर है।


🚩अमेरिका के न्यू जर्सी में बने इस अक्षरधाम मंदिर की तस्वीरें दिल्ली में बने अक्षरधाम मंदिर की याद दिलाती हैं। दोनों ही अक्षरधाम मंदिर एक ही समिति द्वारा बनाए गए हैं, इसलिए इनके डिजाइन लगभग एक जैसे ही हैं। बीएपीएस संत स्वामी महाराज 8 अक्टूबर 2023 को न्यू जर्सी में मंदिर का उद्घाटन करेंगे। 18 अक्टूबर से इसे आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।


🚩भारत में भले आज कुछ लोग पाश्चात सभ्यता अपना रहे हो लेकिन विश्व भर में भारतीय संस्कृती की तरफ लोग आकर्षित होकर नियम का अनुसरण कर रहे है , स्थाई शांति और सुख चाहिए तो केवल और केवल सनातन हिंदू धर्म में ही है और दुनिया आज ये बात जानने लगी है इसलिए विदेशों में मंदिरों और साधु संतो और देवी देवताओ को मानने वाले की संख्या लगातार बढ़ रही है।


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Monday, September 25, 2023

पादरी के पास मिलीं 600 बच्चों की नंगी तस्वीरें, 1000+ का किया यौन शोषण ....

25 September, 2023

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🚩केरल के एक नन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक पादरी अपने कक्ष में ननों को बुला कर ‘सुरक्षित सेक्स’ का प्रैक्टिकल क्लास लगाता था। इस दौरान वह ननों के साथ यौन सम्बन्ध बनाता था। उसके ख़िलाफ़ लाख शिकायतें करने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा। उसके हाथों ननों पर अत्याचार का सिलसिला तभी थमा, जब वह रिटायर हुआ। सिस्टर लूसी ने लिखा था कि उनके कई साथी ननों ने अपने साथ हुई अलग-अलग घटनाओं का जिक्र किया और वो सभी भयावह हैं। ऐसे तो हजारों पादरियों पर दुष्कर्म के अपराध साबित हो चुके है। ईसाई पादरी बच्चों एवं ननों का यौन शोषण करते हैं।


🚩अमेरिका के शहर लॉस एंजिल्स में एक पादरी के पास बच्चों की 600 से अधिक आपत्तिजनक फोटो बरामद हुई हैं। यह पादरी लॉस एंजिल्स के इलाके लॉन्ग बीच के एक चर्च में कार्यरत था। आरोपित को महीनों की जाँच के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है।


🚩अमेरिका: पादरी के पास बच्चों की नंगी तस्वीरें

अमेरिकी समाचार वेबसाइट ‘लॉस एंजिल्स टाइम्स‘ के अनुसार, शहर के लॉन्ग बीच इलाके के कैथोलिक पादरी रोडोल्फो मार्टिनेज ग्वेरा (38) को गिरफ्तार किया गया जो कि चर्च व्यवस्था में काफी वरिष्ठ था। उसके खिलाफ कई रिपोर्ट बच्चों के गुमशुदगी विभाग में भेजी गईं। पादरी के खिलाफ अप्रैल में जाँच चालू की गई थी।


🚩जाँच में पाया गया कि पादरी के पास 600 से अधिक बच्चों के यौन शोषण की तस्वीरें थी। इसमें अधिकांश तस्वीरें 12 वर्ष के कम आयु के बच्चों की थी। मामले में शामिल होने वाले वकीलों का कहना है कि जिस पादरी पर यह आरोप हैं वह काफी शक्तिशाली है। मामले में शामिल वकील एरिक नासरेंको ने कहा, “आरोपित के अपराध विश्वास घटाते हैं और इनमें बड़ी संख्या में बालकों के यौन शोषण की तस्वीरें हैं।”


🚩ग्वेरा को बुधवार (13 सितंबर, 2023) को कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा। अभी वह पुलिस की हिरासत में है।


🚩स्विट्जरलैंड: पादरियों ने 1002 का किया यौन शोषण

इस मामले के अलावा स्विट्ज़रलैंड से भी एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहाँ एक रिसर्च में पाया गया है कि वर्ष 1950 से लेकर अब तक चर्च के पादरियों एवं अन्य कर्मचारियों ने 1000 से अधिक यौन शोषण किए हैं।


🚩ज्यूरिख विश्वविद्यालय द्वारा की गई एक रिसर्च में सामने आया है कि स्विस कैथोलिक पादरियों एवं कर्मचारियों द्वारा 1000 से अधिक यौन शोषण किए गए जिसमें से 74% पीड़ित नाबालिग थे। इस रिसर्च के लिए पीड़ितों से बात की गई और पुराने मामलों को खंगाला गया। हैरान करने वाली बात यह है कि अधिक शोषण पुरुषों का हुआ है। रिसर्च में बताया गया है कि पीड़ितों में 56% पुरुष थे जबकि 39% महिलाएँ थीं, 5% के विषय में जानकारी जुटाई नहीं जा सकी। रिसर्च करने वालों ने यह भी कहा है कि यह सभी अपराधों का छोटा सा नमूना है और असल संख्या कहीं अधिक हो सकती है।


🚩न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में पेनसिलवेनिया में 300 से अधिक कैथोलिक पादरियों ने 1000 से अधिक बच्चों का यौन-शोषण किया था । रिपोर्ट के अनुसार हजारों ऐसे और भी मामले हो सकते हैं जिनका रिकॉर्ड नहीं है या जो लोग अब सामने नहीं आना चाहते ।


 🚩अमेरिका में 1980 के बाद चर्च के अंदर चल रहे यौन-शोषण के मामलों पर चर्च को अभी तक 3.8 अरब डॉलर का मुआवजा देना पड़ा है । अमेरिका में यह शोषण इतना व्याप्त हो चुका है कि कई लॉ फर्म्स अभिभावकों से सम्पर्क कर पूछ रही हैं कि ‘‘क्या आपके बच्चे का यौन-शोषण तो नहीं हुआ ?’’ अधिकतर शिकार उस वक्त 8-12 वर्ष की आयु के बच्चे थे।


 🚩बी.बी.सी. के अनुसार ‘ऑस्ट्रेलिया के कस्बों से लेकर आयरलैंड के स्कूलों और अमेरिका के शहरों से कैथोलिक चर्च में पिछले कुछ दशकों में बच्चों के यौन-शोषण की शिकायतों की बाढ़ आ गयी है। इस बीच इस पर पर्दा डालने का प्रयास भी चल रहा है और शिकायतकर्ता यह कह रहे हैं कि ‘‘वेटिकन ने उनसे हुई ज्यादतियों पर उचित कार्यवाही नहीं की।’’


🚩कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी है। मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता का पोल खुल चुकी है। चर्च  कुकर्मो की  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पादरियों द्वारा किये गए इस कुकृत्य के लिए माफी माँगी थी।


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