Wednesday, May 15, 2024
करीना कपूर करवा चौथ की मजाक उड़ा रही थी अब बाइबिल पर फंस गई
Tuesday, May 14, 2024
रिपोर्ट में आया सामने : नेस्ले भारतीय बच्चों के लिए सेरेलेक में चीनी (Sugar) मिलाता है...
15 May 2024
Monday, May 13, 2024
गजवा-ए-हिन्द के मिशन में कांग्रेसी तुष्टिकरण का हाथ, घटते हिन्दू और बढ़ते मुस्लिम
14 May 2024
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🚩हाल ही में एक रिसर्च सामने आया। 1950 से लेकर 2015 तक के आँकड़ों का अध्ययन किए जाने के बाद इसमें पता चला कि जहाँ देश में हिन्दुओं की जनसंख्या 7.82% घट गई है, वहीं मुस्लिमों की जनसंख्या में 43.15% का भारी इजाफा हुआ है। इस रिसर्च का मानना है कि भारत में विविधता के फलने-फूलने के लिए एक उचित माहौल है, जिस कारण ऐसा हुआ। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने अपने सर्वे में ये जानकारी दी है। इसमें बताया गया है कि दुनिया भर में बहुसंख्यकों की आबादी घटने का ट्रेंड है।
🚩न सिर्फ हिन्दू, बल्कि जैन समाज के लोगों की जनसंख्या भी कम हुई है। जैन 0.45% से 0.36% हो गए हैं। 1950 में जहाँ हिन्दू 84.68% हुआ करते थे, वहीं अब 78.06% हो गए हैं। सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि ईसाइयों की जनसंख्या में भी इजाफा हुआ है। वो 5.38% बढ़ कर 2.24% से 2.36% हो गए हैं। सिख 1.24% से 1.85% हो गए हैं। पारसियों की संख्या जबरदस्त तरीके से घटी है। वो 85% घट कर 1950 में 0.03% से सीधे 0.004% हो गए हैं।
🚩इस रिसर्च पेपर में इस बात को भी इंगित किया गया है कि पड़ोसी मुल्कों में जहाँ बहुसंख्यक लगातार बढ़ रहे हैं, वहाँ के अल्पसंख्यकों ने संकट के समय भारत में शरण लिया। पाकिस्तान से भले ही बांग्लादेश कट कर अलग हो गया, लेकिन इसके बावजूद वहाँ इस अवधि में मुस्लिमों की जनसंख्या 10% बढ़ी। क्या मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ने को सचमुच विविधता का फलना-फूलना मान कर हमें जश्न मनाना चाहिए? नहीं, इतिहास तो ऐसा बिलकुल नहीं कहता है।
🚩हिन्दुओं की जनसंख्या बढ़ना खतरे की घंटी है, वहीं इसके साथ-साथ तेज़ी से मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ना और भी अधिक चिंता का विषय है। हमारे सामने उदाहरण है कि कैसे जिस भी इलाके में मुस्लिम प्रभावशाली होते चले जाते हैं, वहाँ वो अपने हिसाब से नियम-कानून चलाने लगते हैं, दूसरी परंपराओं की आस्था का वो सम्मान नहीं करते जिस कारण उन्हें पलायन के लिए विवश होना पड़ता है। गुजरात के सूरत में जैन समाज तो भरूच में हिन्दू समाज इसका निशाना बना।
🚩इसी को तो ‘लैंड जिहाद’ कहा जाता है – जहाँ भी बसो, अपने लोगों को बड़ी संख्या में बसाओ और शरिया चलाने लगो। सूरत के गोपीपुरा में कई जैन साध्वियाँ रहती थीं, लेकिन मुस्लिमों ने वहाँ फ़्लैट लेकर बकरियाँ काटनी शुरू कर दी। प्याज-लहसुन उनके घरों के बाहर छोड़ दिए जाते थे। भरूच के सोनी फलिया में मंदिर में आरती को ‘हराम’ बता कर रोक दिया गया। मुस्लिम अधिक दाम देकर संपत्ति खरीदते हैं, लालच में हिन्दू बेच कर निकल जाते हैं, फिर जो बचे-खुचे होते हैं वहाँ उनका रहना ही दूभर हो जाता है।
🚩बिहार में ही देख लीजिए। सीमांचल के जिलों में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी तो वहाँ स्कूलों में रविवार की जगह जुमा को शुक्रवार के दिन साप्ताहिक अवकाश रहने लगा। यानी, शासन-प्रशासन के भी नियम ये अपने इलाकों में बदल देते हैं। मस्जिद के सामने से हिन्दू शोभा यात्रा नहीं गुजर सकती, ‘इनके इलाके’ में हिन्दू DJ नहीं बजा सकते। हाँ, इनके मस्जिद दिन भर में 5 बार माइक से अजान दें तो उसे हर हिन्दू को विवश होकर सुनना पड़ेगा। हर हिन्दू पर्व-त्योहार में पत्थर इकट्ठा करने की इनकी परंपरा है।
🚩जम्मू कश्मीर में देखिए, कश्मीरी हिन्दुओं को वहाँ से भगा दिया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और बड़ी संख्या में नरसंहार भी। इसके बाद पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने घाटी को बंधक बना लिया। भारत की आज़ादी के बाद से ही जवाहरलाल नेहरू ने अपने मित्र शेख अब्दुल्ला को खुली छूट दी, परिणाम ये हुआ कि वहाँ कट्टरपंथ बढ़ता गया, कई अलगाववादी पैदा हो गए। मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370 और धारा-35A को निरस्त किया, जिसके बाद वहाँ स्थिति शांत हुई।
🚩आखिर मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ने के पीछे कारण क्या है? इसमें कॉन्ग्रेस पार्टी के तुष्टिकरण की राजनीति का हाथ नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि इसी कॉन्ग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला हक़ मुस्लिमों का है। उन्होंने 10 वर्षों तक शासन किया, सोचिए उनकी नीतियों का हिन्दुओं को कितना नुकसान हुआ होगा। सांप्रदायिक हिंसा को लेकर कॉन्ग्रेस एक बिल लेकर भी आई थी, जो अगर कानून बन जाता तो कहीं भी सांप्रदायिक दंगे होने पर हिन्दू समाज अपने-आप अपराधी घोषित कर दिया जाता और हिन्दू युवक जेल भेज दिए जाते।
🚩हिन्दुओं की जनसंख्या घटने को हम ‘बहुसंख्यकों की जनसंख्या घटना’ कह कर शुभ संकेत की तरह क्यों लें? ये देश हिन्दुओं का है। ये देश सनातन का है, यहाँ हिन्दू धर्म से ही बौद्ध, जैन और सिख जैसे संप्रदाय निकले और फिर वापस समाहित की छाया में ही समाहित हो गए। इस्लाम तो बाहर से आया, हिंसा और धोखेबाजी का सहारा लेकर यहाँ के लोगों को बड़े पैमाने पर धर्मांतरित किया गया। कभी किसी फकीर ने ‘चमत्कार’ दिखाया, कभी किसी बादशाह ने जजिया कर लगाया।
🚩भारत में अगर इस्लाम का प्रसार शांति से हुआ होता तो कोई दिक्कत की बात नहीं थी। कोई विचारधारा, जो हमारे देश की भूमि की सोच से मेल खाती ही नहीं है, वो बाहर से आकर यहाँ के मूलनिवासियों पर अपना आधिपत्य जमाने लगे तो इसमें खुश होने वाली कौन सी बात है? भारत में पहला बड़ा हमला करने वाला इस्लामी मुहम्मद बिन कासिम था, जिसने यहाँ की महिलाओं को सेक्स स्लेव बना कर अरब के बाजारों में भिजवाया, ये सोच तो भारत भूमि की नहीं हो सकती।
🚩दुर्रानी साम्राज्य ने सिखों का सिर काट कर लाने पर इनाम रखा। अयोध्या, मथुरा और काशी से लेकर अनंतनाग तक मंदिर तोड़े गए, जबरन उन अवशेषों से मस्जिदें बनाई गईं। हिन्दू राजाओं के किलों में जाने वाली नहरों में गोमांस फेंके गए। कभी कोई नादिर शाह दिल्ली को लूट ले गया, कभी कोई अहमदशाह अब्दाली आ धमका। आज भी जानबूझकर गोहत्या की जाती है, हिन्दुओं को भड़काने के लिए। सोच वही है, सिर्फ पीढ़ियाँ बदली हैं। आज भी तो खलीफा के शासन के लिए आतंकी हमले किए जाते हैं।
🚩भारत में PFI के एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय था, जिसे प्रतिबंधित किया गया। उससे पहले SIMI हुआ करता था। इनका एक ही लक्ष्य था – भारत में इस्लामी शासन की स्थापना। PFI की छात्र यूनिट SDPI ने कर्नाटक में कॉन्ग्रेस को समर्थन दिया। कॉन्ग्रेस इन ताकतों से मिली हुई है। केरल के वायनाड में राहुल गाँधी ने हरे झंडों वाले IUML (इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग) से हाथ मिलाया। कांग्रेस आज भी अपने घोषणा-पत्र के माध्यम से मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी है।
🚩बिहार के फुलवारीशरीफ में भी PFI वालों के नेटवर्क पकड़ा गया, जहाँ गजवा-ए-हिन्द, यानी भारत में इस्लामी शासन के लिए साजिश चल रही थी। कई ठिकानों पर रेड पड़ी। कई दस्तावेज भी मिले, जिनमें इसके लिए 2047 यानी आज़ादी से 100 वर्ष बाद तक का लक्ष्य रखा गया था। कहीं युवाओं को हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है, कहीं ऑनलाइन सीरिया-पाकिस्तान में बैठे आकाओं से संपर्क करा कर भड़काया जाता है। आखिर हिन्दुओं में कोई आतंकी संगठन क्यों नहीं है, ये सब क्यों नहीं होता? हिन्दू तो भारत को अपनी भूमि मानते हैं, यहाँ की धरती को नुकसान क्यों पहुँचाएँगे?
🚩कांग्रेस पार्टी का एजेंडा है मुस्लिमों को आरक्षण देना, पिछड़ों का हक़ मार कर। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में नौकरी-एडमिशन से लेकर पंचायत चुनावों तक में मुस्लिमों को आरक्षण दिया जा रहा है। ये सब कॉन्ग्रेस ने किया। कॉन्ग्रेस की साजिश है देश की संपत्ति के बँटवारे की, ताकि हिन्दुओं की मेहनत की कमाई कई बच्चे पैदा करने वाले मुस्लिमों को पहुँच जाए। पार्टी घुसपैठियों का समर्थन करती है, इसने CAA का विरोध किया। पश्चिम बंगाल से लेकर दिल्ली तक कॉन्ग्रेस पार्टी घुसपैठियों को प्रश्रय देती है।
🚩एक तो भारत खुद ही इस्लामी ताकतों से परेशान है, ऊपर से बड़ी संख्या में म्यांमार-बांग्लादेश से रोहिंग्या घुसपैठियों के प्रति नरमी दिखा कर देश को तबाही की ओर धकेला जा रहा है। केंद्रीय मंत्री रहे कांतिलाल भूरिया कहते हैं कि पार्टी सत्ता में आने के बाद महिलाओं को एक-एक लाख रुपया देगी, 2 बीवी वालों को 2 लाख रुपए मिलेंगे। अब हिन्दू धर्म में तो बहुविवाह की इजाजत नहीं है। शरिया ही इसकी अनुमति देता है। और हाँ, मुस्लिमों को तो भारत में अपना अलग कानून चलाने की अनुमति भी है, उनके लिए ‘पर्नसल लॉ’ है।
🚩यही तो कारण है कि भाजपा अपने घोषणा-पत्र में UCC (समान नागरिक संहिता) लाने की बात करती है, जबकि कॉन्ग्रेस 2 बीवियों और ज़्यादा बच्चों वालों को प्रोत्साहित करती है। देश में सबके लिए समान कानून होना चाहिए, इसमें भला क्यों किसी को आपत्ति हो? महिला-पुरुष को बराबर अधिकार मिलें, इसमें कोई किसी को दिक्कत हो? लेकिन इस्लाम में तो मातृभूमि से पहले कुरान को रखा जाता है, स्वयं बाबासाहब भीमराव आंबेडकर कह गए हैं।
🚩केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि मुस्लिमों की हिस्सेदारी देश में 20% हो गई है। उनका कहना है कि ये सनातन को खत्म करने की साजिश है, घुसपैठियों को कॉन्ग्रेस ने अपना वोट बैंक बना रखा है। वास्तविक परिस्थितियाँ इससे भी भयावह हैं। भारत में कई छोटे-छोटे पाकिस्तान बन गए हैं जहाँ शरिया चलता है। जिस ‘सोने की चिड़िया’ को हजारों वर्षों से हिन्दुओं ने अपने खून-पसीने से सींच कर उपजाऊ बनाया, जिसे बहार से आक्रांता लूट-लूट कर ले गए, अब वो क्षेत्र भी हिन्दुओं के हाथों से चला जाए तो कैसा लगेगा?
🚩बार-बार ये कह कर मजाक बनाया जाता है कि धर्म कभी खतरे में था ही नहीं। अगर धर्म खतरे में नहीं था, फिर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान कट कर कैसे अलग हुए भारत से? इतना बड़ा क्षेत्र हिन्दुविहीन कैसे हो गया? बांग्लादेश में एक अफवाह पर देश भर में नवरात्री के पूजा-पंडालों पर हमले होते हैं, अफगानिस्तान से गुरुग्रंथसाहिब को वापस आना पड़ता है, पाकिस्तान वो तो आए दिन हिन्दू लड़कियों को उठा कर ले जाते हैं और जबरन धर्मांतरण-निकाह कर देते हैं, सरकार तक मंदिरों को गिराने में साथ देती है।
🚩कॉन्ग्रेस पार्टी ने शुरुआत से ही जो माहौल पैदा किया, ये सब उसका परिणाम है। जवाहरलाल नेहरू कहते थे कि राम-कृष्ण जैसे देवताओं ने गरीबी के सिवा और कुछ नहीं दिया। जिस देश की आत्मा में राम और कृष्ण बसते हों, वहाँ इस तरह के बयान से हिन्दू विरोधी उत्साहित नहीं होंगे तो और क्या। कभी राजीव गाँधी मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट देते हैं, कभी कॉन्ग्रेस सरकार ऐसा कानून लेकर आती है जिससे हिन्दू अपने ही तबाह धर्मस्थल को लेकर न्याय का दावा नहीं कर सकें।
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🚩और हाँ, ये आँकड़े तो सिर्फ 2015 तक के हैं। ‘लव जिहाद’ से लेकर कई अन्य तरह की आपराधिक घटनाएँ तो इसके बाद और भी तेज़ हो गईं, क्योंकि इसके लिए बाहर से फंडिंग तक आने लगा। अब तो सलमान खुर्शीद की भतीजी मारिया आलम ने ‘वोट जिहाद’ की अपील कर दी है। 2015 के बाद के 9 वर्षों में ही 2020 के फरवरी में दिल्ली में दंगे हुए, दिव्यांगों को मुस्लिम बनाने का नेटवर्क पकड़ा गया, औरंगजेब के महिमामंडन के लिए बुद्धिजीवियों को लगाया गया और ‘भारत से बाहर ‘भारत में मुस्लिम खतरे में हैं’ वाला माहौल दुनिया भर में बनाया गया।
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Sunday, May 12, 2024
हिंदू धर्म का सर्वोत्तम तीर्थ कोन सा है ?
13th May 2024
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🚩माँ गंगा पृथ्वी पर क्यों और कैसे आयी ?
🚩गंगा नदी उत्तर भारत की केवल जीवनरेखा नहीं, अपितु हिंदू धर्म का सर्वोत्तम तीर्थ है। ‘आर्य सनातन वैदिक संस्कृति’ गंगा के तट पर विकसित हुई, इसलिए गंगा हिंदुस्तान की राष्ट्ररूपी अस्मिता है एवं भारतीय संस्कृति का मूलाधार है। इस कलियुग में श्रद्धालुओं के पाप-ताप नष्ट हों, इसलिए ईश्वर ने उन्हें इस धरा पर भेजा है। वे प्रकृति का बहता जल नहीं; अपितु सुरसरिता (देवनदी) हैं। उनके प्रति हिंदुओं की आस्था गौरीशंकर की भांति सर्वोच्च है। गंगाजी मोक्षदायिनी हैं इसीलिए उन्हें गौरवान्वित करते हुए पद्मपुराण में (खण्ड ५, अध्याय ६०, श्लोक ३९) कहा गया है, ‘सहज उपलब्ध एवं मोक्षदायिनी गंगाजी के रहते विपुल धनराशि व्यय (खर्च) करनेवाले यज्ञ एवं कठिन तपस्या का क्या लाभ ?’ नारदपुराण में तो कहा गया है, ‘अष्टांग योग, तप एवं यज्ञ, इन सबकी अपेक्षा गंगाजी का निवास उत्तम है । गंगाजी भारत की पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ केंद्र बिंदु हैं, उनकी महिमा अवर्णनीय है।’
🚩मां गंगाजी की ब्रह्मांड में उत्पत्ति:-
🚩‘वामनावतार में श्री विष्णु ने दानवीर बलीराजा से भिक्षा के रूप में तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि इस बात से अनभिज्ञ थे कि स्वयं भगवान श्री विष्णु ही वामन के रूप में आए हैं, राजा ने उसी क्षण भगवान वामन को तीन पग भूमि दान की। भगवान वामन ने विराट रूप धारण कर पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पग में अंतरिक्ष व्याप लिया। दूसरा पग उठाते समय वामन के (श्रीविष्णु के) बाएं पैर के अंगूठे के धक्के से ब्रह्मांड का सूक्ष्म-जलीय कवच टूट गया। उस छिद्र से गर्भोदक की भांति ‘ब्रह्मांड के बाहर के सूक्ष्म-जल ने ब्रह्मांड में प्रवेश किया। यह सूक्ष्म-जल ही गंगा है। गंगाजी का यह प्रवाह सर्वप्रथम सत्यलोक में गया।ब्रह्मदेव ने उसे अपने कमंडलु में धारण किया। तदुपरांत सत्यलोक में ब्रह्माजी ने अपने कमंडलु के जल से श्रीविष्णु के चरणकमल धोए। उस जल से गंगाजी की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात गंगाजी की यात्रा सत्यलोक से क्रमशः तपोलोक, जनलोक, महर्लोक, इस मार्ग से स्वर्गलोक तक हुई। जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी है) इन दिनों में गंगाजी में गोता मारने से विशेष सात्विकता, प्रसन्नता और पुण्यलाभ होता है।
🚩पृथ्वी पर गंगाजी की उत्पत्ति:
🚩सूर्यवंश के राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ आरंभ किया। उन्हों ने दिग्विजय के लिए यज्ञीय अश्व भेजा एवं अपने 60 सहस्त्र (हजार) पुत्रों को भी उस अश्व की रक्षा हेतु भेजा। इस यज्ञ से भयभीत इंद्रदेव ने यज्ञीय अश्व को कपिल मुनि के आश्रम के निकट बांध दिया। जब सगर पुत्रों को वह अश्व कपिल मुनि के आश्रम के निकट प्राप्त हुआ, तब उन्हें लगा, ‘कपिलमुनि ने ही अश्व चुराया है’। इसलिए सगर पुत्रों ने ध्यानस्थ कपिल मुनि पर आक्रमण करने की सोची । कपिलमुनि को अंतर्ज्ञान से यह बात ज्ञात हो गई तथा अपने नेत्र खोले। उसी क्षण उनके नेत्रों से प्रक्षेपित तेज से सभी सगर पुत्र भस्म हो गए। कुछ समय पश्चात सगर के प्रपौत्र राजा अंशुमन ने सगर पुत्रों की मृत्यु का कारण खोजा एवं उनके उद्धार का मार्ग पूछा। कपिल मुनि ने अंशुमन से कहा, “गंगाजी को स्वर्ग से भूतल पर लाना होगा। सगर पुत्रों की अस्थियों पर जब गंगाजल प्रवाहित होगा, तभी उनका उद्धार होगा !’’ मुनिवर के बताए अनुसार गंगा को पृथ्वी पर लाने हेतु अंशुमन ने तप आरंभ किया। अंशुमन की मृत्यु के पश्चात उसके सुपुत्र राजा दिलीप ने भी गंगावतरण के लिए तपस्या की। अंशुमन एवं दिलीप के हजार वर्ष तप करने पर भी गंगावतरण नहीं हुआ, परंतु तपस्या के कारण उन दोनों को स्वर्ग लोक प्राप्त हुआ। (वाल्मीकि रामायण, काण्ड १, अध्याय ४१, २०-२१)
🚩‘राजा दिलीप की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर गंगामाता ने राजा भगीरथ से कहा, ‘‘मेरे इस प्रचंड प्रवाह को सहना पृथ्वी के लिए कठिन होगा। अतः तुम भगवान शंकर को प्रसन्न करो।’’ आगे भगीरथ की घोर तपस्या से शंकर प्रसन्न हुए तथा भगवान शंकर ने गंगाजी के प्रवाह को जटा में धारण कर उसे पृथ्वी पर छोडा। इस प्रकार हिमालय में अवतीर्ण गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे हरिद्वार, प्रयाग आदि स्थानों को पवित्र करते हुए बंगाल के उपसागर में (खाडी में) लुप्त हुईं।’
🚩बता दे कि जिस दिन गंगाजी की उत्पत्ति हुई वह दिन ‘गंगा जयंती’ (वैशाख शुक्ल सप्तमी) हैं और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी ) के नाम से जाना जाता है।
🚩जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है : एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।। उन्होंने भी ‘गंगाष्टक’ लिखा है, गंगा की महिमा गायी है। रामानुजाचार्य, रामानंद स्वामी, चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बड़ी महिमा गायी है। कई साधु-संतों, अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे।
🚩अब तो विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे।
🚩ऋषिकेश में स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसीको हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं। इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है। वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें। किंतु गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं। तीव्र व दृढ़ श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है।
🚩सन् 1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था। उसने वाराणसी से गंगाजल लिया। उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है – ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है।’
🚩दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था।
🚩‘आइने अकबरी’ में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदर सहित उसका पान करते थे। वे गंगाजल को अमृत मानते थे।’ औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे। शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे।
🚩कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं। अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है। जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब हो जाता है।
🚩रुड़की विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं।’
🚩फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा!
🚩संत तुलसीदासजी कहते हैं : गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।। (श्रीरामचरित. अयो. कां. : 86.2)
🚩सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरनेवाली माँ गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं : गंगोत्री, हर की पौड़ी (हरिद्वार), प्रयागराज त्रिवेणी, काशी और गंगासागर। गंगा दशहरे के दिन गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है।
🚩गंगाजी की वंदना करते हुए कहा गया है :
🚩संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोऽस्तु ते । तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमो नमः ।।
🚩‘देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करनेवाली हैं। आप जीवनरूपा हैं। आप आधिभौतिक,आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करनेवाली तथा प्राणों की स्वामिनी हैं। आपको बार-बार नमस्कार है।’
🚩गंगा नदी को कुछ सालों से इतना गन्दा किया जा रहा है कि उसे अब स्वच्छ करने की अत्यधिक आवश्यकता हैं। ये जवाबदारी सरकार के साथ साथ हम आप सभी की हैं। हमें ध्यान रखना होगा कि हम गंगा नदी में कूड़ा करकट न डाले ओर नही ही किसी को डालने दे।
🚩जनता की मांग है की माँ गंगाजी की सफाई शीघ्रता से होनी चाहिए।
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Saturday, May 11, 2024
न्यायलय को इतना भी भेदभाव नहीं करना चाहिए.
12 May 2024
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🚩भारत देश में सबसे बड़ी मजाक बन गया है "कानून सबके लिए समान है" कानून समानता के लिए बनाया गया लेकिन कानून को चलाने वाले भेदभाव करने लगे है इसलिए जनता को कानून पर भरोसा उठता जा रहा हैं।
🚩आप नेता अरविंद केजरीवाल को इसलिए जमानत दी गई की उनको चुनवा प्रचार करना है, अगर इस तरीके से जमानत मिल जायेगी तो हर भ्रष्टाचारी नेता चुनवा के लिए जमानत हासिल कर देगा, इससे पहले लालू प्रसाद यादव को जमानत बीमारी ठीक करने को मिली लेकिन बाद में चुनाव का प्रचार करने लगे , जेल में बंद लाखों कैदी इसलिए बंद है की उनके पास पैसा नहीं है, राजनीतिक पहचान नही है उनके भी अपने घर के अनेक ज़रूरी काम होंगे लेकिन न्यायलय उनको जमानत नही दे रही , अगर कानून सभी के लिए समान होता तो उनको भी जमानत मिलनी चाहिए थी। नेता अभिनेता उद्योगपति ही नही आतंकवादियों को भी जमानत मिल जाति है लेकिन 12 साल से जोधपुर जेल में बंद 88 वर्षीय बुजुर्ग हिंदू संत आशाराम बापू को आजतक 1 दिन की रिहाई नही दी गई जबकि उनके पास निर्दोष होने के पुख्ता सबूत होने के बाजबूज भी पता नही न्यायलय और सरकार को उनके राष्ट्र और संस्कृति के कार्य करने से इतना परेशानी क्यों हो रही है जो आजतक रिहाई नही कर रहे हैं।
🚩बता दे की बंबई हाईकोर्ट ने धनशोधन मामले में गिरफ्तार जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल को स्वास्थ्य के आधार पर दो महीने के लिए अंतरिम जमानत दिया। लेकिन दूसरी ओर जिन्होंने पूरा जीवन तपस्या व समाज, देश और संस्कृति के उत्थान के कार्य में बिताये, धर्मांतरण पर रोक लगाई- ऐसे 88 वर्षीय हिन्दू संत आशारामजी बापू 11 साल से जेल में हैं उनका स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी एक दिन के लिए भी जमानत नहीं मिल पाई।
🚩बता दे की देशभर में कोरोना फैलानेवाले मौलाना साद को जमानत मिल गई, देश के ‘टुकड़े’ करने का नारा लगाने वाले कन्हैया कुमार को जमानत मिल गई, बलात्कार आरोपी बिशप फ्रेंको व तरुण तेजपाल को जमानत मिल गई, 65 गैर जमानती वारंट होने के बाद भी दिल्ली के इमाम बुखारी को आज तक अरेस्ट नहीं कर पाए, सोये हुए गरीबों को कुचलनेवाले सलमान खान को 1 घंटे में जमानत मिल गई, लेकिन भारतीय संस्कृति के उत्थान का कार्य करनेवाले 88 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 12 साल से आज तक न्यायालय जमानत नहीं दे पाया।
🚩आपको बता दें कि जिस केस में हिंदू संत आशारामजी बापू को सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई है जब उनके केस को पढ़ते हैं तो उसमें साफ है कि जिस समय की तथाकथित घटना आरोप लगाने वाली लड़की ने बताई है वह उस समय अपने मित्र से फोन पर बात कर थी जिसकी कॉल डिटेल भी है और आशारामजी बापू एक कार्यक्रम में थे, जहां पर 50-60 लोग भी मौजूद थे जिन्होंने गवाही भी दी है; मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की को एक खरोंच तक नहीं आने का प्रमाण है और एफआईआर में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं है, केवल छेड़छाड़ का आरोप है।
🚩आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी आश्रम में एक फैक्स भी आया था, जिसमें भेजनेवाले ने साफ लिखा था कि 50 करोड़ दो नहीं तो लड़की के केस में जेल जाने के लिए तैयार रहो।
🚩बता दें कि स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व हिंदू संत आसाराम बापू ने किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश में 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोले, करोड़ों लोगों को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण आज वे जेल में हैं और उन्हें जमानत हासिल नहीं हो पा रही है।
🚩भारत में समाज, संस्कृति व राष्ट्र उत्थान के लिए कार्य करना गुनाह है- ऐसा जनता को लग रहा है, क्योंकि बड़े-बड़े अपराधियों को जमानत हासिल हो जाती है लेकिन कोई राष्ट्रहित के कार्य कर रहा है और उसपर षड्यंत्र के तहत जूठे आरोप लगे हैं फिर भी उनको बेल नहीं, जेल ही मिलती है। ऐसे कई उदाहरण हैं।
🚩जनता की मांग है की हिंदू संत आशाराम बापू और आम जनता जिनके पास केस लड़ने के पैसे नही है उनको रिहा करना चाहिए।
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Friday, May 10, 2024
रिपोर्ट : 56 प्रतिशत बीमारियों की वजह खराब खान-पान
10 May 2024
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🚩उत्तम स्वास्थ्य का आधार है यथा योग्य आहार-विहार एवं विवेकपूर्वक व्यवस्थित जीवन। बाह्य चकाचौंध की ओर अधिक आकर्षित होकर हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं इसलिए हमारा शरीर रोगों का घर बनता जा रहा है।
🚩‘चरक संहिता’ में कहा गया हैः
आहाराचारचेष्टासु सुखार्थी प्रेत्य चेह च।
परं प्रयत्नमातिष्ठेद् बुद्धिमान हित सेवने।।
🚩'इस संसार में सुखी जीवन की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान व्यक्ति आहार-विहार, आचार और चेष्टाएँ हितकारक रखने का प्रयत्न करें।'
🚩उचित आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य – ये तीनों वात, पित्त और कफ को समान रखते हुए शरीर को स्वस्थ व निरोग बनाये रखते हैं, इसीलिए इन तीनों को उपस्तम्भ माना गया है। अतः आरोग्य के लिए इन तीनों का पालन अनिवार्य है।
🚩आईसीएमआर की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 56.4 प्रतिशत बीमारियों की वजह खराब खानपान है। इन्हें देखते हुए ICMR ने खाने और पोषण से जुड़ी 17 डाइटरी गाइडलाइंस जारी की हैं। इनका उद्देश्य जरूरी पोषण को सुनिश्चित करना और मोटापे-डायिटीज जैसी बीमारियों से लोगों को दूर रखना है। दरअसल आईसीएमआर के तहत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन (NIN) ने ये रिपोर्ट बनाई है। रिपोर्ट के मुताबिक अच्छी डाइट रखने और फिजिकल एक्टिविटीज बनाए रखने से दिल की बीमारियों और हाइपरटेंशन जैसी स्थितियों से बहुत हद तक बचा जा सकता है, साथ ही टाइप-2 डायबिटीज से भी 80 प्रतिशत तक सुरक्षा मिलती है.
🚩प्री-मैच्योर मौतों को रोकने के लिए जरूरी है हेल्दी लाइफस्टाइल:
रिपोर्ट कहती है कि 'अच्छी लाइफस्टाइल अपनाने से समय से पहले होने वाली मौतों की बड़ी संख्या को रोका जा सकता है। दरअसल बहुत ज्यादा प्रोसेस्ड फूड्स, जिनमें बड़ी मात्रा में शुगर और फैट होता है, जब उन्हें लगातार व्यक्ति खाता है, ऊपर से फिजिकल एक्टिविटीज भी बहुत सीमित होती हैं, तो शरीर में माइक्रोन्यूट्रीएंट की कमी होने लगती है, साथ में मोटापा भी घेर लेता है।'
🚩गाइडलाइंस की अहम बातें:
एनआईएन ने नमक कम खाने, फैट और ऑयल सीमित मात्रा में लेने, एक्सरसाइज करने, शुगर और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड को कम करने की सलाह दी है।
एनआईएन का सुझाव है कि मोटापे से बचने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की जरूरत है। साथ ही फूड लेबल्स में लिखी जानकारी को ठीक ढंग से पढ़कर इनफॉर्म्ड च्वाइस अपनाने की सलाह दी है।
🚩आईसीएमआर के डायरेक्टर डॉक्टर राजीव बहल कहते हैं, 'बीते कुछ दशकों में भारतीय लोगों की खान-पान की आदतों में बहुत जबरदस्त बदलाव आया है। इससे नॉन-कम्युनिकेबल बीमारियों की मात्रा बढ़ेगी, जबकि कुपोषण की कुछ मौजूदा समस्याएं जस के तस बरकरार हैं।'
🚩बैलेंस डाइट में 45 प्रतिशत कैलोरी अनाज और मोटे-अनाज से होनी चाहिए। जबकि 15 प्रतिशत कैलोरी दालों, बीन्स (फलियों) आदि से आनी चाहिए। बाकी कैलोरीज सब्जियों, फलों और दूध से आनी चाहिए।
🚩अशुद्ध और अखाद्य भोजन, अनियमित रहन-सहन, संकुचित विचार तथा छल-कपट से भरा व्यवहार – ये विविध रोगों के स्रोत हैं। कोई भी दवाई इन बीमारियों का स्थायी इलाज नहीं कर सकती। थोड़े समय के लिए दवाई एक रोग को दबाकर, कुछ ही समय में दूसरा रोग उभार देती है। अतः अगर सर्वसाधारण जन इन दवाइयों की गुलामी से बचकर, अपना आहार शुद्ध, रहन-सहन नियमित, विचार उदार तथा व्यवहार प्रेममय बनायें रखें तो वे सदा स्वस्थ, सुखी, संतुष्ट एवं प्रसन्न बने रहेंगे। आदर्श आहार-विहार और विचार-व्यवहार ये चहुँमुखी सुख-समृद्धि की कुंजियाँ हैं।
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Thursday, May 9, 2024
परशुरामजी कौन थे आज भारत को उनकी आवश्यकता क्यों है ???
9 May 2024
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🚩भगवान परशुरामजी का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी क्षत्राणी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अंशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुरामजी कहलाये।
🚩शक्तिधर परशुरामजी का चरित्र एक ओर जहाँ शक्ति के केन्द्र सत्ताधीशों को त्यागपूर्ण आचरण की शिक्षा देता है वहीं दूसरी ओर वह शोषित, पीड़ित, क्षुब्ध जनमानस को भी उसके शक्ति और सामर्थ्य का एहसास दिलाता है। शासकीय दमन के विरूद्ध वह क्रान्ति का शंखनाद है। उनका जीवन सर्वहारा वर्ग के लिए अपने न्यायोचित अधिकार प्राप्त करने की मूर्तिमंत प्रेरणा भी देता है। वह राजशक्ति पर लोकशक्ति का विजयघोष है।
🚩आज स्वतंत्र भारत में सैकड़ों-हजारों सहस्रबाहु देश के कोने-कोने में विविध स्तरों पर सक्रिय हैं। ये लोग कहीं साधु-संतों की हत्या करते हैं, अपमानित करते हैं या कहीं न कहीं न्याय का आडम्बर करते हुए भोली जनता को छल रहे हैं; कहीं उसका श्रम हड़पकर अबाध विलास में ही राजपद की सार्थकता मान रहे हैं, तो कहीं अपराधी माफिया गिरोह खुलेआम आतंक फैला रहे हैं। तब असुरक्षित जन-सामान्य की रक्षा के लिए आत्म-स्फुरित ऊर्जा से भरपूर व्यक्तियों के निर्माण की बहुत आवश्यकता है। इसकी आदर्श पूर्ति के निमित्त परशुरामजी जैसे प्रखर व्यक्तित्व विश्व इतिहास में विरले ही हैं। इस प्रकार परशुरामजी का चरित्र शासक और शासित दोनों स्तरों पर प्रासंगिक है।
🚩शस्त्र शक्ति का विरोध करते हुए अहिंसा का ढोल चाहे कितना ही क्यों न पीटा जाये, उसकी आवाज सदा ढोल के पोलेपन के समान खोखली और सारहीन ही सिद्ध हुई है। उसमें ठोस यथार्थ की सारगर्भितता कभी नहीं आ सकी।
🚩सत्य,हिंसा और अहिंसा के संतुलन बिंदु पर ही केन्द्रित है। कोरी अहिंसा और विवेकहीन पाशविक हिंसा- दोनों ही मानवता के लिए समान रूप से घातक हैं। आज जब हमारे साधु-संत और राष्ट्र की सीमाएं असुरक्षित हैं; कभी कारगिल, कभी कश्मीर, कभी बांग्लादेश तो कभी देश के अन्दर नक्सलवादी शक्तियों के कारण हमारी अस्मिता का चीरहरण हो रहा है, तब परशुरामजी जैसे वीर और विवेकशील व्यक्तित्व के नेतृत्व की देश को आवश्यकता है।
🚩गत शताब्दी में कोरी अहिंसा की उपासना करने वाले हमारे नेतृत्व के प्रभाव से हम जरुरत के समय सही कदम उठाने में हिचकते रहे हैं। यदि सही और सार्थक प्रयत्न किया जाए तो देश के अन्दर से ही प्रश्न खड़े होने लगते हैं।
🚩परिणाम यह है,कि हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों और व्यवस्थापकों की धमनियों का रक्त इतना ठंडा हो गया,कि देश की जवानी को व्यर्थ में ही कटवाकर भी वे आत्मसंतोष और आत्मश्लाघा का ही अनुभव होता है।अपने नौनिहालों की कुर्बानी पर वे गर्व अनुभव करते हैं।उनकी वीरता के गीत तो गाते हैं,किन्तु उनके हत्यारों से बदला लेने के लिए उनका खून नहीं खौलता! प्रतिशोध की ज्वाला अपनी चमक खो बैठी है। शौर्य के अंगार तथाकथित संयम की राख से ढंके हैं। शत्रु-शक्तियां सफलता के उन्माद में सहस्रबाहु की तरह उन्मादित हैं !
🚩…लेकिन आज परशुरामजी अनुशासन और संयम के बोझ तले मौन हैं।
🚩 राष्ट्रकवि दिनकर ने सन् 1962 ई. में चीनी आक्रमण के समय देश को ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ शीर्षक से ओजस्वी काव्यकृति देकर सही रास्ता चुनने की प्रेरणा दी थी। युग चारण ने अपने दायित्व का सही-सही निर्वाह किया। किन्तु राजसत्ता की कुटिल और अंधी स्वार्थपूर्ण लालसा ने हमारे तत्कालीन नेतृत्व के बहरे कानों तक उसकी पुकार ही नहीं आने दी। पांच दशक बीत गये। इस बीच एक ओर साहित्य में परशुराम के प्रतीकार्थ को लेकर समय पर प्रेरणाप्रद रचनाएं प्रकाश में आती रहीं और दूसरी ओर सहस्रबाहु की तरह विलासिता में डूबा हमारा नेतृत्व राष्ट्र-विरोधी षड़यंत्रों को देश के भीतर और बाहर दोनों ओर पनपने का अवसर देता रहा।
🚩परशुरामजी पर केन्द्रित साहित्यिक रचनाओं के संदेश को व्यावहारिक स्तर पर स्वीकार करके हम साधारण जनजीवन और राष्ट्रीय गौरव की रक्षा कर सकते हैं।
🚩महापुरूष किसी एक देश, एक युग, एक जाति या एक धर्म के नहीं होते। वे तो समूचे राष्ट्र की, सम्पूर्ण मानवता की, समस्त विश्व की, विभूति होते हैं। उन्हें किसी भी सीमा में बाँधना ठीक नहीं। दुर्भाग्य से हमारे यहां स्वतंत्रता में महापुरूषों को स्थान, धर्म और जाति की बेड़ियों में जकड़ा गया है। विशेष महापुरूष , वर्ग-विशेष के द्वारा ही सत्कृत हो रहे हैं। एक समाज विशेष ही विशिष्ट व्यक्तित्व की जयंती मनाता है। अन्य जन उसमें रूचि नहीं दर्शाते, अक्सर ऐसा ही देखा जा रहा है। यह स्थिति दुभाग्यपूर्ण है। महापुरूष चाहे किसी भीदेश, जाति, वर्ग, धर्म आदि से संबंधित हो, वो सबके लिए समान रूप से पूज्य व उनके आदर्श सभी के लिए अनुकरणीय होने ही चाहिए ।
🚩इस संदर्भ में भगवान परशुरामजी को, जो उपर्युक्त विडंबनापूर्ण स्थिति के चलते केवल ब्राह्मण वर्ग तक सीमित हो गए हैं, समस्त शोषित वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत क्रान्तिदूत के रूप में स्वीकार किया जाना समय की माँग है । भगवान परशुराम सभी शक्तिधरों के लिए संयम के अनुकरणीय आदर्श हैं ।
🚩भा माने -अध्यात्म
रत माने – उसमें रत रहने वाले
“जिस देश के लोग अध्यात्म में रत रहते हैं उसका नाम है भारत।”
🚩भारत की गरिमा सदा उसकी संस्कृति व साधु-संतों से ही रही है। भगवान भी बार-बार जिस धरा पर अवतरित होते आये हैं, वो भूमि भारत की भूमि है। किसी भी देश को माँ कहकर संबोधित नहीं किया जाता पर भारत को “भारत माता” कहकर संबोधित किया जाता है, क्योंकि यह देश आध्यात्मिकता का शिरोमणी देश है, संतों महापुरुषों का देश है। भौतिकता के साथ-साथ यहाँ आध्यात्मिकता को उससे कहीं अधिक बढ़कर ही महत्व दिया गया है। पर आज की पीढ़ी के पाश्चात्य कल्चर की ओर बढ़ते कदम इसकी गरिमा को भूलते चले जा रहे हैं; संतों महापुरुषों का महत्व, उनके आध्यात्मिक स्पन्दन भूलते जा रहे हैं।
🚩संत और समाज के बीच खाई खोदने में एक बड़ा वर्ग सक्रिय है। ईसाई मिशनरियां सक्रिय हैं, कुछ मीडिया सक्रिय है, विदेशी कम्पनियाँ सक्रिय हैं, विदेशी फण्ड से चलने वाले NGOs सक्रिय हैं, जिहादी सक्रिय हैं, कई राजनैतिक दल व नेता सक्रिय हैं; क्योंकि इनका उद्देश्य है- भारतीय संस्कृति को मिटाकर पश्चिमी सभ्यता लाने का जिससे विदेशी कंपनियों की प्रोडक्ट की बिक्री भारी मात्रा में होगी और धर्मान्तरण भी जोरों शोरों से होगा, फिर उनका वोटबैंक बढ़ जायेगा और देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ लेंगे।
🚩इतने सब वर्ग जब एक साथ सक्रिय होंगे तो किसी के भी प्रति गलत धारणाएं समाज के मन में उत्पन्न करना बहुत ही आसान हो जाता है और यही हो रहा है हमारे संत समाज के साथ।
🚩पिछले कुछ सालों से एक दौर ही चल पड़ा है हिन्दू संतों को लेकर। किसी संत की हत्या कर दी जाती है या किसी संत को झूठे केस में सालों जेल में रखा जाता है फिर विदेशी फण्ड से चलने वाली मीडिया उनको अच्छे से बदनाम करके उनकी छवि समाज के सामने इतनी धूमिल कर देती है कि समाज उन झूठे आरोपों के पीछे की सच्चाई तक पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता।
🚩अब समय है कि समाज को जागना होगा- भारतीय संस्कृति व साधु-संतों के साथ हो रहे अन्याय को समझने के लिए। अगर अब भी हिन्दू मूक – दर्शक बनकर देखता रहा तो हिंदुओं का भविष्य खतरे में है। इसलिए आज के समय में भगवान परशुराम की आवश्कता है।
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