Saturday, August 24, 2024

"भारतीय मसालों के छुपे स्वास्थ्य लाभ: मौसम के अनुसार कैसे लाभ उठाएँ?"

 25 August 2024

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🚩"भारतीय मसालों के छुपे स्वास्थ्य लाभ: मौसम के अनुसार कैसे लाभ उठाएँ?" 


🚩 *भारतीय मसालों के स्वास्थ्य लाभ: 

मौसम के अनुसार उपयोग और फायदे*

भारतीय मसालों का भारतीय रसोई में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ये न केवल हमारे भोजन का स्वाद और रंग-रूप बढ़ाते है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत फायदेमंद होते है। सदियों से भारतीय मसालों का उपयोग औषधीय गुणों के कारण भी किया जाता रहा है। ये मसाले न केवल बीमारियों से बचाने में मदद करते है बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा और शारीरिक दोषों को संतुलित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। आइए, जानते है कि कैसे भारतीय मसाले हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते है और मौसम के अनुसार इनके उपयोग से हमें क्या फायदे मिल सकते है।


🚩 भारतीय मसाले और उनके स्वास्थ्य लाभ


🚩 *हल्दी (Turmeric):*  

हल्दी में करक्यूमिन नामक तत्व होता है जो सूजन को कम करने, चोट के दर्द में आराम देने और इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती है। सर्दियों में इसका सेवन शरीर को गर्म रखता है और सर्दी-खांसी से बचाव करता है।


🚩 *जीरा (Cumin):*  

जीरा पाचन तंत्र को सुधारने और शरीर में गैस की समस्या को कम करने में मदद करता है। गर्मियों में जीरे का पानी पीना शरीर को ठंडक प्रदान करता है और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है, जिससे गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन से बचा जा सकता है।


🚩 *अदरक (Ginger) और सौंठ (Dry Ginger):*  

अदरक और सौंठ दोनों ही सर्दी-जुकाम, गले की खराश, और पाचन समस्याओं में अत्यधिक लाभकारी होते है। अदरक ताजा होने पर और सौंठ सूखी होने पर अपने औषधीय गुणों से शरीर को गर्म रखती है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है।


🚩 *काली मिर्च (Black Pepper):*  

काली मिर्च का उपयोग पाचन को सुधारने, खांसी-जुकाम से राहत दिलाने और मेटाबॉलिज्म को तेज करने के लिए किया जाता है। यह शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है और सर्दियों में शरीर को गर्म रखती है।


🚩 *धनिया (Coriander):*  

धनिया के बीज और पत्ते में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है जो त्वचा को चमकदार बनाते है और शरीर में फ्री रेडिकल्स से लड़ते है। गर्मियों में धनिया का सेवन शरीर को ठंडक प्रदान करता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है।


🚩 *लौंग (Clove):*  

लौंग में एंटीबैक्टीरियल गुण होते है जो दांत दर्द, गले की खराश, और सर्दी-जुकाम के इलाज में सहायक होते है। इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।


🚩 *मेथी (Fenugreek):*  

मेथी के बीज और पत्तों का सेवन पाचन तंत्र को सुधारने, डायबिटीज में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने, और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में मदद करता है। सर्दियों में मेथी का सेवन शरीर को गर्म रखता है और जोड़ों के दर्द से राहत दिलाता है।


🚩 *सरसों (Mustard):*  

सरसों के बीज और तेल का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। सरसों का तेल त्वचा और बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है और इसका उपयोग जोड़ों के दर्द में राहत दिलाने के लिए भी किया जाता है।


🚩 *इलायची (Cardamom):*  

इलायची का सेवन पाचन तंत्र को सुधारता है और मुंह की दुर्गंध को दूर करता है। यह मानसिक तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने में भी सहायक होती है।


🚩 *अजवाइन (Carom Seeds):*  

अजवाइन का उपयोग पेट की गैस, अपच, और दर्द में राहत के लिए किया जाता है। यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है और शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। सर्दियों में इसका सेवन शरीर को गर्मी प्रदान करता है।


🚩मौसम के अनुसार मसालों का उपयोग


🚩 *सर्दियों में उपयोगी मसाले:*  

सर्दियों में अदरक, हल्दी, काली मिर्च, लौंग, और मेथी जैसे मसालों का सेवन शरीर को गर्म रखता है और ठंड से बचाता है। ये मसाले सर्दी, खांसी, और जोड़ों के दर्द से भी राहत दिलाते है।


🚩 *गर्मियों में उपयोगी मसाले:*  

गर्मियों में जीरा, धनिया, इलायची, और सौंफ का उपयोग शरीर को ठंडक प्रदान करता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है। ये मसाले शरीर को हाइड्रेटेड रखते है और गर्मी से बचाव करते है।


🚩प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद में भारतीय मसालों की भूमिका


🚩 *आयुर्वेदिक उपचार में:*  

भारतीय मसाले आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हल्दी, अदरक, और काली मिर्च जैसे मसाले वात, पित्त, और कफ दोषों को संतुलित करते है। ये मसाले शरीर के दोषों को संतुलित करते हुए प्राकृतिक चिकित्सा में सहायक होते है।


🚩 *रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना:*  

मसाले जैसे हल्दी, काली मिर्च, और अदरक में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते है। ये मसाले शरीर को संक्रमण से बचाने में सहायक होते है।


🚩 *डिटॉक्सिफिकेशन:*  

धनिया, सौंफ, और जीरा जैसे मसाले शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने और पाचन तंत्र को साफ रखने में मदद करते है। ये मसाले शरीर को डिटॉक्सिफाई करने और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में सहायक होते है।


🚩 *वजन नियंत्रण और मानसिक स्वास्थ्य:*  

दालचीनी, मेथी, और अजवाइन जैसे मसाले वजन घटाने में मदद करते है और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारते है। ये मसाले तनाव और चिंता को कम करने में सहायक होते है और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाते है।


🚩 निष्कर्ष


भारतीय मसाले न केवल हमारे भोजन का स्वाद और सुगंध बढ़ाते है , बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभकारी होते है। ये मसाले मौसम के अनुसार शरीर को अनुकूल बनाने में मदद करते है और विभिन्न बीमारियों से बचाव में सहायक होते है। हमें अपने दैनिक आहार में इन मसालों को शामिल करना चाहिए ताकि हम न केवल स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकें, बल्कि एक स्वस्थ और निरोगी जीवन भी जी सकें। भारतीय मसालों का उपयोग कर हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते है और प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ उठा सकते है।



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Friday, August 23, 2024

भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी

 24 August 2024

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🚩 *भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी:*



🚩भवानी अष्टकम एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो आद्याशक्ति माँ भवानी को समर्पित है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जो महान भारतीय संत और दार्शनिक थे। भवानी अष्टकम में आठ श्लोक होते है, जिनमें शंकराचार्य ने माँ भवानी से अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त किया है। 


🚩 *भवानी अष्टकम की रचना कैसे हुई:*


🚩आदिगुरु शंकराचार्य एक बार शाक्तमत का खंडन करने के लिए कश्मीर गए थे। लेकिन, कश्मीर में उनकी तबीयत खराब हो गई और उनके शरीर में कोई ताकत नहीं रही। वे एक पेड़ के पास लेटे हुए थे, तभी वहां से एक ग्वालिन सिर पर दही का बर्तन लेकर गुजरी। शंकराचार्य का पेट जल रहा था और वे बहुत प्यासे थे। उन्होंने ग्वालिन से दही मांगने के लिए उसे अपने पास आने का इशारा किया।


🚩ग्वालिन ने थोड़ी दूर से कहा कि आप यहां दही लेने आओ। आचार्य ने धीरे से कहा, "मुझमें इतनी दूर आने की शक्ति नहीं है।" इस पर ग्वालिन हंसते हुए बोली, "शक्ति के बिना कोई एक कदम भी नहीं उठाता और आप शक्ति का खंडन करने निकले है ?"

 

🚩ग्वालिन की बात सुनते ही आचार्य की आंखें खुल गईं। वे समझ गए कि यह ग्वालिन कोई साधारण महिला नहीं, बल्कि भगवती स्वयं है ,जो उन्हें शक्ति के महत्त्व का एहसास कराने आई है। शंकराचार्य के मन में शिव और शक्ति के बीच का जो अंतर था, वह मिट गया और उन्होंने शक्ति के सामने समर्पण कर दिया। उनके मुख से निकला, "गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।"


🚩समर्पण का यह स्तवन "भवानी अष्टकम" के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो अद्भुत है। शिव स्थिर शक्ति है और भवानी उनमें गतिशील शक्ति है। दोनों अलग-अलग है , जैसे दूध और उसकी सफेदी। नेत्रों पर अज्ञान का जो आखिरी पर्दा था, वह भी माँ ने ही हटाया था, इसलिए शंकर ने कहा, "माँ, मैं कुछ नहीं जानता।"


🚩 *भवानी अष्टकम के श्लोक:*


1. *न तातो न माता न बन्धुर्न दाता  

  न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।  

  न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


2. *भवाब्धावपारे महादुःखभीरु  

  प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।  

  कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


3. *न जानामि दानं न च ध्यानयोगं  

  न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।  

  न जानामि पूजां न च न्यासयोगं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


4. *न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं  

  न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।  

  न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


5. *कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः  

  कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।  

  कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


6. *प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं  

  दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।  

  न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


7. *विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे  

  जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।  

  अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


8. *अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो  

  महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।  

  विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


🚩 *भवानी अष्टकम की विशेषताएँ:*


🚩1. *भक्ति और समर्पण का भाव:* इस स्तोत्र में शंकराचार्य ने माँ भवानी के प्रति अपनी भक्ति को बहुत ही मार्मिक और विनम्र शब्दों में व्यक्त किया है। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से बताया है कि संसार के सारे बंधनों और समस्याओं से मुक्ति केवल माँ भवानी की कृपा से ही संभव है।


🚩2. *माँ भवानी की महिमा का वर्णन:* भवानी अष्टकम के श्लोकों में देवी भवानी की महिमा का सुंदर और प्रभावशाली वर्णन किया गया है। इसमें माँ को समस्त सृष्टि की जननी, पालनकर्ता और संरक्षक के रूप में पूजा जाता है।


🚩3. *आध्यात्मिक मार्गदर्शन:* यह स्तोत्र साधकों को आत्मसमर्पण और शरणागति का मार्ग दिखाता है। शंकराचार्य ने अपने आप को असहाय और अज्ञानी बताते हुए माँ भवानी से प्रार्थना की है कि वे उनकी रक्षा करें और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ाएं।


🚩4. *साधकों के लिए प्रेरणा:* भवानी अष्टकम साधकों के लिए एक प्रेरणादायक स्तोत्र है, जो उन्हें भक्ति और विश्वास के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। 


🚩5. *पाठ का महत्व:* इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक को मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और माँ भवानी की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों और संकटों से रक्षा करने में भी सहायक माना जाता है।


🚩भवानी अष्टकम के श्लोक सरल और संगीतमय होते है, जिससे भक्तों के मन में माँ भवानी के प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना और गहरी होती है।



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Thursday, August 22, 2024

श्रीकृष्ण की 16 कलाएं: एक दिव्य व्यक्तित्व का आदर्श

 23 August 2024

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श्रीकृष्ण की 16 कलाएं: एक दिव्य व्यक्तित्व का आदर्श


श्रीकृष्ण को सनातन धर्म में पूर्ण अवतार माना गया है, जिनकी 16 कलाएं विशेष रूप से वर्णित है। इन कलाओं के माध्यम से उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श स्थापित किए और धर्म, कर्म, प्रेम और भक्ति का मर्म समझाया। श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का विस्तार से वर्णन करते हुए, हम उनके जीवन और उनके व्यक्तित्व की महिमा का दर्शन कर सकते है।


1. धृति (धैर्य): धृति का अर्थ है कठिनाइयों का सामना करते हुए भी मन को स्थिर रखना। श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को धृति की शिक्षा दी, जब अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था। कृष्ण ने उसे अपने कर्तव्यों का पालन करने का उपदेश दिया और बताया कि हर परिस्थिति में धैर्य रखना ही सच्चा धर्म है।


2. मति (बुद्धि): मति का अर्थ है बुद्धि या विवेक, जिससे व्यक्ति सही और गलत का निर्णय कर सके। श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा उदाहरण भगवतगीता में मिलता है, जहाँ उन्होंने अर्जुन को ज्ञान का उपदेश दिया और उसे जीवन के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया। उनकी मति का ही प्रभाव था कि वे हर समस्या का समाधान खोज निकालते थे।


3. उमा (लक्ष्मी/समृद्धि): उमा, जिन्हें लक्ष्मी भी कहा जाता है, समृद्धि और वैभव की देवी है। श्रीकृष्ण का जीवन समृद्धि का प्रतीक था। उनके जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं रही, चाहे वह धन की हो या प्रेम और मित्रता की। वे सभी के लिए सुख और समृद्धि का आशीर्वाद लेकर आए थे 


4. करुणा (दया): करुणा का अर्थ है सभी प्राणियों के प्रति दया और सहानुभूति रखना। श्रीकृष्ण का हृदय करुणा से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई बार अपने शत्रुओं के प्रति भी दया दिखाई। उदाहरण के लिए, जब कंस की मृत्यु का समय आया, तब भी श्रीकृष्ण ने उसे मोक्ष का मार्ग दिखाया।


5. वीर्य (शक्ति): वीर्य का अर्थ है शक्ति और साहस। श्रीकृष्ण ने बचपन में ही पूतना, शकटासुर और कालिया नाग जैसे असुरों का संहार किया। उनकी शक्ति का यह गुण महाभारत के युद्ध में भी दिखाई दिया, जब उन्होंने अर्जुन का सारथी बनकर कौरवों की पूरी सेना का सामना किया।


6. अहिंसा (अहिंसा): श्रीकृष्ण का जीवन अहिंसा का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने सदैव शांति और प्रेम का संदेश दिया। हालांकि महाभारत के युद्ध में वे शामिल थे, परंतु उनका उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करना था, जो अहिंसा की उच्चतम अवस्था मानी जाती है।


7. विनय (विनम्रता): श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व विनम्रता से भरा हुआ था। वे राजा होते हुए भी गोपियों और ग्वालों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने कभी भी अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग नहीं किया और सदैव अपने भक्तों के साथ विनम्र रहे।


8. कान्ति (आकर्षण): श्रीकृष्ण का आकर्षण केवल उनके शारीरिक सौंदर्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके व्यक्तित्व का आकर्षण था। उनके आकर्षण से ही वे गोपियों के प्रिय थे और उनके अनुयायी उनके प्रेम और भक्ति में मग्न रहते थे।


9. विद्या (ज्ञान): श्रीकृष्ण को सर्वज्ञ माना जाता है। वे चारों वेदों और सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। भगवतगीता में दिया गया उनका उपदेश आज भी विश्वभर में ज्ञान का अद्वितीय स्रोत माना जाता है। उनका ज्ञान न केवल आध्यात्मिक था बल्कि उन्होंने राजनीति, धर्म और समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी महत्वपूर्ण शिक्षा दी।


10. वितर्क (तर्क): श्रीकृष्ण की तर्कशक्ति अद्वितीय थी। उन्होंने अपने जीवन में हर समस्या का समाधान तर्क और विवेक से किया। उनका तर्कशक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना और उसे धर्म का वास्तविक अर्थ समझाना है।


11. सत्य (सत्यता): श्रीकृष्ण ने सदैव सत्य का पालन किया। उनका जीवन सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का उदाहरण है। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए कई बार कठिन निर्णय लिए परंतु सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए।


12. श्री (लक्ष्मी/वैभव): श्रीकृष्ण को लक्ष्मी का वरदान प्राप्त था। वे स्वयं धन और वैभव के अधिष्ठाता थे। उनके जीवन में कोई भी भौतिक सुख-सुविधा की कमी नहीं थी और उन्होंने अपने भक्तों को भी इसी प्रकार का आशीर्वाद दिया।


13. शोभा (सौंदर्य): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में अनोखा सौंदर्य था। उनका रूप तो आकर्षक था ही, परंतु उनका आंतरिक सौंदर्य और अधिक मोहक था। उनके आचरण और विचारों की शोभा से वे सभी के प्रिय बने।


14. गाम्भीर्य (गंभीरता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक गम्भीरता थी, जो उन्हें अन्य सभी से अलग बनाती थी। वे हमेशा सोच-समझकर निर्णय लेते थे और हर परिस्थिति में स्थिर और गंभीर बने रहते थे। उनकी गंभीरता का यह गुण उनकी महानता का प्रतीक था।


15. धैर्य (धीरज): धैर्य श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का मुख्य गुण था। उन्होंने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया परंतु वे कभी विचलित नहीं हुए। उनका धैर्य उन्हें हर परिस्थिति में अडिग बनाए रखता था और उन्होंने अपने भक्तों को भी धैर्य का महत्व समझाया।


16. तेज (तेजस्विता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक अद्वितीय तेज था। यह तेज उनके ज्ञान, शक्ति और भक्ति से उत्पन्न हुआ था। उनके तेज से ही उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सभी उनकी ओर आकर्षित हो जाते थे और उनके मार्गदर्शन में धर्म का पालन करते थे।


 निष्कर्ष


श्रीकृष्ण की 16 कलाएं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करती है और हमें यह सिखाती है कि एक संपूर्ण और संतुलित जीवन कैसे जिया जाए। उनकी शिक्षाएं और उनका जीवन आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। इन कलाओं के माध्यम से श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि कैसे व्यक्ति जीवन में धैर्य, सत्य, विनम्रता और करुणा जैसे गुणों को अपनाकर धर्म, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चल सकता है। उनका जीवन और उनके आदर्श हमें सदैव सही मार्ग पर चलने और धर्म की रक्षा करने की प्रेरणा देते है।


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Wednesday, August 21, 2024

बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा

 22 August 2024

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🚩बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा...🤔

दुनियां भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है और एक आप है कि दुनियां भर में तलाश कर रहे है...



🚩 ये कमाल का पौधा आपके आसपास, बगल में लगा हुआ है, लेकिन लोग ड्राई फ्रूट, दवाओं और छायादार वृक्षों के पीछे भाग रहे है। ये अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है साहब जो अपने आप में एक इकोसिस्टम है।वैसे, गूलर यानी उमर के विषय में एक कहावत है...


🚩आंखी देख के माखी न निगली जाए!

सहगी ऊमर फोड़ खे न खाय!!

इस देशी कहावत के अनुसार अगर ऊमर/गूलर को फोड़कर खाया जाए तो हवा लगते ही इस में कीड़े पड़ जाते है। इसलिए इसे बिना फोड़े ही खाया जाता है। लेकिन सच तो यह है, कि इसमें छोटे छोटे कीड़े (wasp) मौजूद रहते ही है। वनस्पति विज्ञान की भाषा में गूलर का फल हायपेन्थोडीयम कहलाता है, जिस में फूल/ पुष्पक्रम के आधारित भाग मिलकर एक बड़े कटोरे या बॉल जैसी संरचना बना लेते है।इस गोलाकार फल जैसी संरचना के भीतर कई नर और मादा पुष्प/ जननांग रहते है, जिनमें परागण और संयुग्मन के बाद बीज बन जाते है। 

🚩फल के परिपक्व होने के पहले उसपर विशेष प्रकार की मक्खी सहित कई कीटक प्रवेश कर जाते है। कई बार वे अपना जीवन चक्र भी यहीं पूर्ण करते है। जैसे ही फल टूटकर जमीन से टकराता है, यह फट जाता है और कीड़े मुक्त हो जाते है। ऐसा न भी हो तो कीट एक छिद्र करके बाहर निकल जाते है। 

🚩चलिए,अब चर्चा करते है, इसके औषधीय महत्व की। हमारे गाँव के बुजुर्गों के अनुसार इसके फलों को खाने से गजब की ताकत मिलती है और बुढापा थम सा जाता है। मतलब,अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है। ऐसी कहावत है कि ऊमर के पेड़ के नीचे से बिना इसे खाए नहीं गुजर सकते है। इसकी छाल को जलाकर राख को कंजी के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते है। दूध का प्रयोग चर्म रोगों में रामबाण माना जाता है। दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है। कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते है। पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है। 

🚩वहीं एक ओर इसके पेड़ को घर पर या गाँव में लगाना वर्जित है, शायद भूतों से इसे जोड़ते है। लेकिन, वास्तव में यह दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधि है। वास्तु के अनुसार दूध और कांटे वाले पौधे घर पर लगाना उचित नहीं होता। 

🚩बुद्धिजीवियों का मानना है कि वास्तव में इसे पक्षियों और जानवरों के पोषण के लिए छोड़ने के लिए ऐसी मान्यताएं बना दी गई होगी, जिससे लोग इसके फलों और पेड़ का अत्यधिक दोहन न कर सकें। पक्षीयों के लिए तो यह वरदान है और पक्षी ही इसे फैलाते भी है। व्यवहारिक रूप से यह पक्षियों का पसंदीदा है तो पक्षियों की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी इसे घर से दूर लगाना सही प्रतीत होता है।

🚩इसकी कोमल फलियों को सब्जियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जो चिकित्सा का एक अनुप्रयोग है। 

ऐसा कहा जाता है, कि दुनियां में किसी ने गूलर का फूल नहीं देखा है।


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Tuesday, August 20, 2024

जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का महत्त्व,जीवन और उत्सव

 21 August 2024

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🚩जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का महत्त्व,जीवन और उत्सव


🚩जन्माष्टमी,भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। यह पर्व श्रावण मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में आता है। जन्माष्टमी विशेष रूप से कृष्ण भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में समर्पित होता है।


🚩भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनके अवतार


🚩भगवान श्रीकृष्ण,विष्णु के आठवें अवतार है। उनका जन्म मथुरा में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कई अद्भुत लीलाओं और घटनाओं से भरा हुआ है जो उनके दिव्य और अद्वितीय स्वरूप को दर्शाते है।


🚩1. कृष्ण की बाल लीलाएं लाएँ:  

भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं अत्यंत प्रसिद्ध है। उनके बचपन में माखन चोरी की घटनाएं, गोपालक की भूमिका निभाना और पूतना,कंस और अन्य राक्षसों का वध करना उनके दिव्य गुणों का परिचायक है। माखन चोरी की लीलाएं उनकी चंचलता और नटखट स्वभाव को दर्शाती है जबकि राक्षसों का वध उनके शौर्य और बल का प्रतीक है।


🚩2. गोवर्धन पूजा:  

कृष्ण ने अपनी युवावस्था में गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों को इंद्रदेव के क्रोध से बचाया था। यह घटना उनकी शक्ति और उनके प्रति भक्तों की भक्ति का परिचायक है।गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है।


🚩3. रासलीला:  

भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का वर्णन भी बहुत प्रसिद्ध है। रासलीला में कृष्ण ने गोपियों के साथ नृत्य किया जो उनके भक्ति, प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक है। रासलीला के माध्यम से कृष्ण ने यह सिखाया कि भक्ति और प्रेम में कोई भेदभाव नहीं होता और यह प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा को उच्चता की ओर ले जाता है।


🚩4. भगवद्गीता:  

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया।भगवद्गीता, भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का संग्रह है,धर्म,कर्म,योग और भक्ति की गहराई से भरी हुई है। इस में कृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण उपदेश दिए।


🚩जन्माष्टमी पर होने वाली विशेष पूजा और अनुष्ठान


🚩1. रात्रि जागरण और भजन कीर्तन:  

जन्माष्टमी की रात विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। भक्तगण रातभर जागरण करते है।श्रीकृष्ण के भजन और कीर्तन गाते है और भगवान की पूजा करते है। इस रात,भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विशेष रूप से रात के 12 बजे की जाती है, जब उनका जन्म हुआ था।


🚩2. बालकृष्ण की झाँकी:  

इस दिन, विशेष रूप से छोटे बच्चों को भगवान कृष्ण के रूप में सजाया जाता है। वे बालकृष्ण की भूमिका निभाते है और विभिन्न झाँकियों में हिस्सा लेते है, जिसमें माखन-मिश्री, मिठाई ई. चुराने का खेल भी शामिल होता है।


🚩3. दही हांडी:  

जन्माष्टमी के अवसर पर "दही हांडी" का आयोजन विशेष रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में किया जाता है। इस में एक बड़े बर्तन में दही,मक्खन और अन्य मिठाइयां भरी जाती है और इसे ऊँचाई पर लटकाया जाता है। फिर, लोग एक मानव पिरामिड बनाकर दही हांडी को तोड़ने का प्रयास करते है। यह आयोजन भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला को स्मरण करता है।


🚩4. व्रत और उपवास:  

इस दिन भक्तगण उपवास रखते है और केवल फलों और दूध का सेवन करते है। रात को पूजा के बाद विशेष प्रसाद का वितरण किया जाता है।


🚩जन्माष्टमी के सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू


🚩जन्माष्टमी केवल धार्मिक पूजा तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर रंग-बिरंगी सजावट, नृत्य और नाटकों का आयोजन किया जाता है। स्कूलों और सामाजिक संगठनों द्वारा भी इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते है,जिनमें कृष्ण के जीवन की लीलाओं का मंथन होता है।


🚩संक्षेप में


🚩जन्माष्टमी,भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी और उनकी शिक्षाओं को मान्यता देने का पर्व है। यह दिन भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है और यह हमें श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन और उनके उपदेशों को अपनाने की प्रेरणा देता है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की अद्भुत लीलाएं और उनके उपदेश जीवन में सुख, समृद्धि और धार्मिक आस्था को बढ़ाते है।


🚩जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा आप पर बनी रहे और आपके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन हो।


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Monday, August 19, 2024

संस्कृत दिवस: महत्त्व, हिन्दू संस्कृति में योगदान और धार्मिक ग्रंथों में इसकी भूमिका

 20 August 2024

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🚩संस्कृत दिवस: महत्त्व, हिन्दू संस्कृति में योगदान और धार्मिक ग्रंथों में इसकी भूमिका


संस्कृत, जिसे 'देववाणी' के रूप में जाना जाता है, न केवल भारत की बल्कि पूरी दुनियां की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषाओं में से एक है। यह भाषा भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन की आत्मा मानी जाती है। संस्कृत दिवस प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य संस्कृत भाषा के महत्त्व को उजागर करना और इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना है। 


🚩 संस्कृत दिवस का इतिहास और उद्देश्य


संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने और इसके महत्त्व को समझाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1969 में संस्कृत दिवस की शुरुआत की। यह दिन संस्कृत भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने और नई पीढ़ी को इसके अध्ययन के लिए प्रेरित करने का एक प्रयास है। संस्कृत दिवस का मुख्य उद्देश्य इस प्राचीन भाषा की धरोहर को सहेजना और इसे जन-जन तक पहुँचाना है। 


🚩 संस्कृत का हिन्दू संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों में महत्त्व


🚩 1. वेदों की भाषा:


संस्कृत भाषा का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण योगदान वेदों के रूप में है। वेद, जिन्हें सनातन धर्म का मूल आधार माना जाता है, संस्कृत में ही लिखे गए है। ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद—ये चारों वेद हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है और इन्हें समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है।


🚩 2. उपनिषद और दर्शन:


संस्कृत भाषा में ही उपनिषदों और दर्शनशास्त्र का सृजन हुआ, जो हिन्दू धर्म के गहन दार्शनिक विचारों को प्रस्तुत करते है। उपनिषदों में आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष और कर्म के सिद्धांतों की गहन व्याख्या की गई है। भगवद्गीता, जो महाभारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, संस्कृत में ही रची गई है और इसे हिन्दू धर्म का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है।


🚩3. पुराण और महाकाव्य:


रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों और पुराणों की रचना संस्कृत में हुई है। रामायण, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा, हिन्दू संस्कृति और धर्म का एक अनमोल ग्रंथ है। महाभारत, जिसे महर्षि वेदव्यास ने संस्कृत में लिखा, न केवल धर्म और अधर्म की लड़ाई का वर्णन करता है, बल्कि इसमें भगवद्गीता जैसी महत्वपूर्ण शिक्षाएँ भी समाहित है।


🚩 4. अनुष्ठान और मंत्र:


संस्कृत हिन्दू धर्म के अनुष्ठानों, पूजा-पाठ और यज्ञों में उपयोग होने वाले मंत्रों की भाषा है। ये मंत्र वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों से लिए गए हैं और इन्हें संस्कृत में ही उच्चारित किया जाता है। संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से होने वाली ध्वनि तरंगों को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करने वाला माना जाता है।


🚩 5. हिन्दू संस्कृति का संरक्षण:


संस्कृत भाषा हिन्दू संस्कृति के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भाषा उन मूल्यों, सिद्धांतों और रीतियों को संजोने का कार्य करती है, जो सनातन धर्म की नींव है। संस्कृत के माध्यम से ही हिन्दू धर्म के कई महान संतों, ऋषियों और मुनियों ने अपने ज्ञान और शिक्षा का प्रसार किया।


🚩 6. शास्त्रों और स्मृतियों की रचना:


धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, योगशास्त्र, और अन्य विविध शास्त्रों की रचना संस्कृत में हुई है। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, और अन्य स्मृतियाँ भी संस्कृत में लिखी गई हैं, जो समाज के नियम और नीतियों का मार्गदर्शन करती है।


🚩 7. आध्यात्मिक और धार्मिक धरोहर:


संस्कृत भाषा में रचित धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित रखा है। ये ग्रंथ न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का मार्गदर्शन करते है बल्कि वे जीवन के प्रत्येक पहलू में नैतिकता, धर्म और सदाचार को भी सिखाते है।


🚩 संस्कृत दिवस पर होने वाले कार्यक्रम


संस्कृत दिवस पर विभिन्न शिक्षण संस्थानों, विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में संस्कृत के महत्त्व को उजागर करने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इनमें संस्कृत श्लोक पाठ, निबंध लेखन प्रतियोगिता, भाषण, वाद-विवाद और संस्कृत नाट्य प्रस्तुतियाँ शामिल होती है। इसके साथ ही, संस्कृत शिक्षकों और विद्वानों को सम्मानित करने के लिए विशेष समारोह भी आयोजित किए जाते है।


🚩 संस्कृत का योगदान और भविष्य


संस्कृत न केवल अतीत में बल्कि वर्तमान में भी हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। आधुनिक युग में संस्कृत के प्रति रुचि फिर से जागरित हो रही है। कई देशों में संस्कृत के अध्ययन और शोध के लिए संस्थान स्थापित किए गए है। इसके साथ ही योग, आयुर्वेद और अन्य भारतीय परंपराओं के पुनर्जागरण के साथ-साथ संस्कृत भी पुनः वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक होती जा रही है।


संस्कृत दिवस हमें हमारी प्राचीन धरोहर की ओर लौटने और संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने का एक अवसर प्रदान करता है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम संस्कृत के अध्ययन को अपने जीवन का अंग बनाएं और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का प्रयास करें।


🚩 संस्कृत दिवस की प्रासंगिकता


आज के युग में जब भारतीय संस्कृति और परंपराएँ वैश्विक मंच पर पहचान बना रही हैं, संस्कृत दिवस का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यह दिवस हमें स्मरण दिलाता है कि संस्कृत न केवल हमारी पहचान का हिस्सा है बल्कि यह हमारी जड़ों से जुड़े रहने और दुनियां को हमारी प्राचीन संस्कृति और ज्ञान से परिचित कराने का माध्यम भी है।


🚩संस्कृत भाषा को जीवित रखें, इसे सीखें और सिखाएं। संस्कृत दिवस पर इस अद्वितीय धरोहर का सम्मान करें और इसे आगे बढ़ाने का संकल्प लें।


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Sunday, August 18, 2024

भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए फूहड़ TV धारावाहिकों का बहिष्कार आवश्यक

 19 August 2024

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🚩भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए फूहड़ TV धारावाहिकों का बहिष्कार आवश्यक


🚩भारतीय संस्कृति, जिसे "भाई-बहन संस्कृति" के रूप में भी जाना जाता है, हमारी सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें परिवार के हर सदस्य के प्रति सम्मान, प्रेम, और आदर का विशेष स्थान होता है। भाई-बहन का रिश्ता भारतीय संस्कृति में स्नेह, देखभाल, और आपसी जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह रिश्ता केवल खून का नहीं, बल्कि एक भावना का है जो पूरे समाज में सद्भाव और सहयोग का संदेश फैलाता है।


 🚩भाई-बहन संस्कृति और उसके मूल्य:

रिश्तों में सम्मान: भारतीय समाज में, भाई-बहन का रिश्ता अत्यधिक महत्व रखता है। इसमें एक-दूसरे के प्रति गहरा सम्मान और स्नेह होता है, जो पारिवारिक एकता को मजबूत करता है। यह रिश्ता न केवल परिवार की नींव को मजबूत करता है, बल्कि समाज में भी आपसी सहयोग और समझ को बढ़ावा देता है।


🚩- परिवार की मजबूती: भाई-बहन का रिश्ता परिवार की मजबूती का एक प्रमुख आधार है। भाई अपनी बहन की रक्षा करता है और बहन अपने भाई की देखभाल करती है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो जीवन के हर पड़ाव पर साथ देता है, चाहे कोई भी परिस्थिति हो। इस रिश्ते का महत्व राखी जैसे त्योहारों में विशेष रूप से दिखता है, जहाँ भाई अपनी बहन की सुरक्षा का वचन देता है।


🚩- सामाजिक संरचना का आधार: भाई-बहन संस्कृति भारतीय समाज की संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह संस्कृति पारिवारिक एकता को बढ़ावा देती है और समाज को एक साथ जोड़े रखने में मदद करती है। हमारे समाज में यह विश्वास किया जाता है कि मजबूत परिवार ही एक मजबूत समाज का निर्माण करते हैं।


🚩धारावाहिकों का नकारात्मक प्रभाव:

आजकल टीवी धारावाहिकों ने भारतीय समाज में एक गहरी और नकारात्मक छाप छोड़ी है। यह धारावाहिक न केवल हमारे पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि हमारे समाज के नैतिक आधार को भी हिला रहे हैं। भारतीय संस्कृति, जो हमेशा से अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और पारिवारिक मूल्यों के लिए जानी जाती रही है, अब इन धारावाहिकों की वजह से खतरे में है।


🚩आजकल के अधिकांश धारावाहिकों में अवैध संबंधों और अनैतिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन कहानियों में रिश्तों की पवित्रता को तोड़ा जा रहा है और पारिवारिक संबंधों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जहाँ एक ओर, बच्चे अपनी माँ की दूसरी शादी की तैयारी में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर, पिता का ध्यान किसी और महिला पर केंद्रित है। ऐसी कहानियाँ समाज के ताने-बाने को कमजोर कर रही हैं और एक विकृत विचारधारा को बढ़ावा दे रही हैं।


🚩यह केवल पारिवारिक संबंधों तक ही सीमित नहीं है। आधुनिकता के नाम पर, इन धारावाहिकों ने नैतिकता और शीलता की सभी सीमाओं को पार कर दिया है। इनके माध्यम से समाज में बेशर्मी और अनैतिकता को सामान्य बना दिया गया है। धारावाहिकों के निर्माता TRP की लालच में ऐसे विषयों को परोस रहे हैं जो न केवल भारतीय समाज के मूल्यों को धूमिल कर रहे हैं, बल्कि नई पीढ़ी को भी गलत दिशा में ले जा रहे हैं।


🚩इसलिए, यह आवश्यक है कि हम ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार करें जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों का विध्वंस कर रहे हैं। हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ऐसे सीरियलों को अपने घरों में जगह नहीं देंगे। अगर हम समय रहते नहीं जागे, तो हमारी भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्य पूरी तरह से नष्ट हो सकते हैं।


🚩अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर यह निर्णय लें कि हम उन धारावाहिकों को नहीं देखेंगे जो हमारे समाज और संस्कृति को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। हमारे पारंपरिक मूल्य और रीति-रिवाज हमारी धरोहर हैं, और हमें उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार कर हम न केवल अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और नैतिक समाज का निर्माण भी करेंगे।


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