Wednesday, August 28, 2024

पनीर के फायदे और नुकसान

29August 2024

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🚩 पनीर के फायदे और नुकसान


पनीर, जो आज के दौर में एक लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है,आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा के अनुसार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है। आयुर्वेद में इसे "निकृष्टतम भोजन" कहा गया है, जिसे पशुओं को भी नहीं खिलाना चाहिए। पनीर, दूध को फाड़कर या उसके प्राकृतिक रूप को विकृत करके बनाया जाता है। जिस तरह हम सड़ी हुई सब्जी नहीं खाते,उसी तरह पनीर भी एक तरह से सड़ा हुआ दूध ही है। 


🚩पनीर का भारतीय इतिहास में अभाव  

भारतीय इतिहास में पनीर का कोई उल्लेख नहीं मिलता,क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारत में दूध को विकृत करने की मनाही रही है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं दूध को फाड़कर कुछ बनाने से बचती है।


🚩पनीर खाने के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव  

आयुर्वेद के अनुसार,विकृत दूध से बने खाद्य पदार्थ जैसे पनीर, लिवर और आंतों के लिए हानिकारक होते है।आधुनिक चिकित्सा शोध भी इस बात की पुष्टि करते है कि पनीर खाने से पाचनतंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है,जिससे पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती है। पनीर में मौजूद प्रोटीन को पचाना जानवरों के लिए भी कठिन होता है, फिर मनुष्य इसे कैसे पचा सकते है? इससे कब्ज, फैटी लीवर, और IBS (इर्रिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती। इसके अतिरिक्त,पनीर के अत्याधिक सेवन से रक्त में थक्के जमने का खतरा रहता है, जो ब्रेन हैमरेज और हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है।


🚩पनीर और हार्मोनल  असंतुलन  

पनीर का अत्यधिक सेवन हार्मोनल असंतुलन भी पैदाकर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हाइपोथायरायडिजम जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, महिलाओं में गर्भधारण करने की क्षमता भी कम हो सकती है।


🚩पनीर की लोकप्रियता और इसके व्यंजन  

आजकल पनीर का उपयोग कढ़ाई पनीर,शाही पनीर,मटर पनीर, चिली पनीर आदि अनेक प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है। यह समोसे, पकौडे और बर्गर में भी व्यापक रूप  प्रयोग होता है। भारतीय लोग पनीर के इतने शौकीन हो चुके है कि बिना पनीर खाए उन्हें भोजन अधूरा लगता है। 


🚩पनीर और मिलावट का खतरा  

यह भी देखा गया है कि बाजार में मिलने वाले पनीर में अक्सर मिलावट की जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए और भी हानिकारक होता है। अतः, यदि आप पनीर का सेवन करना चाहते है तो घर पर ही इसे तैयार करें ताकि आप मिलावट और अन्य स्वास्थ्य जोखिमों से बच सकें।


🚩पनीर के बारे में सोचें  

अगली बार, जब भी आप पनीर खाने का विचार करें, तो यह जरूर सोचें कि क्या यह वास्तव में आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है या केवल स्वाद के लिए ही आप इसका सेवन कर रहे है। 


🚩निष्कर्ष  

पनीर को लेकर आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के विचारों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने आहार में इसके उपयोग पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए, हमें यह समझना चाहिए कि पनीर का सेवन हमारे शरीर के लिए अधिक हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए, सेहतमंद जीवनशैली अपनाने के लिए हमें पनीर से दूर रहना चाहिए।


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Tuesday, August 27, 2024

ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य

 28 August 2024

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🚩ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य


🚩ॐ पर्वत, जिसे 'आदि कैलाश' के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। यह पर्वत अपनी अनोखी विशेषता के कारण दुनियांभर के तीर्थयात्रियों, साहसिक पर्यटकों और पर्वतारोहियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पर्वत की अनूठी बात यह है कि इसकी हिमाच्छादित चोटियों पर प्राकृतिक रूप से 'ॐ' का चिन्ह अंकित है, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक है।


🚩'ॐ' का यह प्रतीक मात्र एक आकृति नहीं, बल्कि एक दिव्य संदेश है जो आध्यात्मिकता, ध्यान और साधना का मार्ग दिखाता है। हिन्दू धर्म में 'ॐ' को सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्र माना गया है। जब लोग इस पर्वत पर 'ॐ' के चिन्ह को देखते है,तो उन्हें ऐसा लगता है मानो साक्षात भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा हो। यह पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा के मार्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां से कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का भी आभास होता है।


🚩 ॐ पर्वत के आस-पास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहां पर हिमालय की ऊंची चोटियों के साथ-साथ हरे-भरे जंगल,गहरी घाटियां और निर्मल जलधाराएं मिलती है जो इस स्थान को एक स्वर्गीय धाम का आभास कराती है। यहां का वातावरण शुद्ध और शांतिपूर्ण है, जो ध्यान और साधना के लिए आदर्श माना जाता है। 


🚩ॐ पर्वत की यात्रा काफी चुनौतीपूर्ण मानी जाती है क्योंकि यहां पहुंचने के लिए कठिन पहाड़ी रास्तों और अनिश्चित मौसम का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, तीर्थयात्री और पर्यटक यहां की यात्रा करते है क्योंकि यहां पहुंचने के बाद उन्हें एक अलग ही आध्यात्मिक शांति और संतोष का अनुभव होता है। यात्रा के दौरान, यात्री भारतीय सेना और आईटीबीपी (इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस) के गाइडेंस में सुरक्षित रहते है,जो यात्रा को सुरक्षित और सफल बनाने में मदद करते है।


🚩यह भी मान्यता है कि जो लोग ॐ पर्वत की यात्रा करते है,वे अपने जीवन में आध्यात्मिक उत्थान और शांति की प्राप्ति करते है। यहां का हर एक दृश्य,चाहे वह हिमाच्छादित पहाड़ हो,बर्फीली हवा हो या फिर 'ॐ' का दिव्य प्रतीक—सब कुछ एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव कराता है।


🚩अतः, ॐ पर्वत न केवल एक प्राकृतिक चमत्कार है बल्कि यह एक ऐसा स्थान है जहां आध्यात्मिक ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्तियों का अद्भुत संगम होता है। यह स्थान अपने आप में एक जीवंत मंदिर की तरह है, जो न केवल भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि यह जीवन की गहरी सच्चाइयों और दिव्यता की ओर भी मार्गदर्शन करता है।

🚩इस प्रकार, ॐ पर्वत न केवल प्राकृतिक सुंदरता का धाम है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक केंद्र भी है जो भारत की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक धरोहर को संजोए हुए है। यहां की यात्रा हर भारतीय के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव है, जो आत्मा को शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

जो भी इस पवित्र पर्वत की यात्रा करता है वह अपने जीवन में अनंत शांति और सुख का अनुभव करता है।


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Monday, August 26, 2024

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश: हमारे जीवन में कैसे लाए?

 27 August 2024

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🚩श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश: हमारे जीवन में कैसे लाए?



🚩श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद शामिल है। यह संवाद कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि पर होता है जहां अर्जुन अपने ही रिश्तेदारों और दोस्तों के खिलाफ युद्ध करने को लेकर दुविधा में होते है। श्रीकृष्ण उन्हें कर्तव्य,धर्म,भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में सिखातें है। ये उपदेश न केवल अर्जुन के लिए बल्कि सभी के लिए मार्गदर्शन का स्रोत है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता के मुख्य सिद्धांत और उन्हें दैनिक जीवन में कैसे लागू करें:


🚩1. कर्तव्य पालन (धर्म):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि हर किसी का जीवन में एक कर्तव्य या उद्देश्य होता है, जिसे "धर्म" कहा जाता है। हमें अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाना चाहिए, बिना परिणाम की चिंता किए।  

   - कैसे लागू करें: समझें कि आपके जीवन में आपकी जिम्मेदारियां क्या है—चाहे वह एक छात्र,माता-पिता या कार्यकर्ता के रूप में हो—और उन्हें समर्पण और ईमानदारी से निभाएं। उदाहरण के लिए,यदि आप एक छात्र है,तो अंकों की चिंता किए बिना अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करे। प्रयास करना परिणाम से अधिक महत्वपूर्ण है।


🚩2. निस्वार्थ कर्म (कर्म योग):

   - सिद्धांत: गीता हमें बिना किसी इनाम या पहचान की इच्छा के निस्वार्थ कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। श्रीकृष्ण कहते है कि हमें कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उसके फल पर।  

   - कैसे लागू करें:अच्छे कर्मों का अभ्यास करे, जैसे कि किसी की मदद कर करना या बिना किसी प्रत्याशा के स्वयंसेवा करना। यह पड़ोसी की मदद करना, दान करना, या किसी मित्र की बिना प्रशंसा की आशा के सहायता करना हो सकता है। यह आपको परिणामों से कम जुड़ाव और भीतर से अधिक शांति प्रदान करता है।


🚩3. ईश्वर की भक्ति (भक्ति योग):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण ईश्वर की भक्ति के महत्व पर जोर देते है। वे अर्जुन को पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित होने और विश्वास रखने के लिए प्रेरित करते है।  

   - कैसे लागू करें: नियमित प्रार्थना, ध्यान, या भक्ति गीतों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध बनाएं। विश्वास करें कि ईश्वर आपको मार्गदर्शन कर रहे है और जो कुछ भी होता है, एक कारण के लिए होता है। आप अपने दैनिक कार्यों को भी, चाहे वे कितने भी साधारण क्यों न हों, ईश्वर को अर्पण के रूप में समर्पित कर सकते है।


🚩4.ज्ञान और विवेक (ज्ञान योग):

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम वास्तव में कौन है—कि हमारी आत्मा (आत्मा) शाश्वत है और ईश्वर का अंश है।  

   - कैसे लागू करें:आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन करने, उनके अर्थ पर चिंतन करने और ध्यान करने में समय बिताएं। यह समझने की कोशिश करें कि भौतिक वस्तुएं और अहंकार अस्थाई है, जबकि आत्मा शाश्वत है। यह जागरूकता कठिन परिस्थितियों में भी आपको शांत और स्थिर रहने में मदद कर सकती है।


🚩5. सफलता और असफलता में समानता (समत्व): 

   - सिद्धांत: गीता अच्छे और बुरे समय दोनों में संतुलित मन बनाए रखने की सलाह देती है। श्रीकृष्ण सिखाते है कि किसी को भी सफलता या असफलता में शांत और संयमित रहना चाहिए।  

   - कैसे लागू करें: अपने मन को स्थिर रखने के लिए ध्यान और मनन का अभ्यास करें। जब आप चुनौतियों या असफलताओं का सामना करते है, तो बहुत अधिक परेशान होने की कोशिश न करें। याद रखें कि अच्छे और बुरे दोनों समय अस्थाई होते है।


🚩6. आसक्ति का त्याग (वैराग्य):

   - सिद्धांत:गीता हमें लोगों,संपत्ति और परिणामों से मुक्त होने का आग्रह करती है। आसक्ति अक्सर दुःख का कारण बनती है।  

   - कैसे लागू करें: अपनी चीज़ों और रिश्तों का आनंद लें, लेकिन उनके प्रति बहुत अधिक निर्भर न रहें। उदाहरण के लिए, अपनी चीज़ों की सराहना करें, लेकिन उन्हें अपनी पहचान न बनने दें। समझें कि परिवर्तन जीवन का हिस्सा है, और इसे अनुग्रहपूर्वक स्वीकार करने का अभ्यास करें।


🚩7. ईश्वर की योजना में विश्वास:

   - सिद्धांत: श्रीकृष्ण सिखाते है कि सब कुछ ईश्वर की दिव्य योजना के अनुसार होता है और हमें इस ब्रह्मांडीय व्यवस्था पर विश्वास करना चाहिए।  

   - कैसे लागू करें:जब चीजें आपके अनुसार नहीं होती है, तो याद रखें कि ईश्वर की योजना पर विश्वास करें। विश्वास रखें कि हर घटना के पीछे एक उच्च उद्देश्य होता है, और ईश्वर की इच्छा के सामने आत्मसमर्पण करना सीखें। यह विश्वास शांति लाता है और चिंता को कम करता है।


🚩8. मानवता की सेवा (सेवा):- सिद्धांत: दूसरों की निस्वार्थ सेवा करना ईश्वर की सेवा करने के समान है। गीता करुणा और दूसरों की मदद को एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में महत्व देती है।  

   - कैसे लागू करें:अपने समुदाय के लोगों की मदद करने के तरीके खोजें, चाहे वह दान, स्वयंसेवा, या सरल सहायता कार्यों के माध्यम से हो। सेवा के हर अवसर को ईश्वर के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने और दुनियां में सकारात्मक योगदान देने के एक तरीके के रूप में देखें।


🚩निष्कर्ष:


🚩श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेश व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों है। वे हमें एक सार्थक जीवन जीने के तरीके के बारे में मार्गदर्शन करते है, जो उद्देश्य, भक्ति, और आंतरिक शांति से भरा होता है। इन उपदेशों का पालन करके,हम अपने जीवन में संतुलन पा सकते है,दूसरों की सेवा कर सकते है और अपने आध्यात्मिक मार्ग से जुड़े रह सकते है। चाहे आप उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी के लिए मार्गदर्शन के रूप में देखें या ईश्वर से दिव्य निर्देशों के रूप में, गीता के सिद्धांत किसी भी व्यक्ति को एक बेहतर, अधिक संतोषजनक जीवन जीने में मदद कर सकते है।


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Sunday, August 25, 2024

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: महत्व, पौराणिक कथाएं व्रत की विधि और जीवन के पाठ

 26 August 2024

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: महत्व, पौराणिक कथाएं व्रत की विधि और जीवन के पाठ


द्वापर युग में भाद्रपद मास, कृष्णपक्ष, अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा के कारागार में वासुदेव और देवकी के पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। उनके अष्टमी तिथि की रात्रि में अवतार लेने का प्रमुख कारण उनका चंद्रवंशी होना बताया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का दिन ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ के नाम से प्रसिद्ध है, जो भारत और विश्वभर में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।


 पौराणिक मान्यताएं और जन्माष्टमी व्रत का महत्व


🚩 स्कन्दपुराण के अनुसार, जो भी व्यक्ति जानबूझकर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत नहीं करता, वह अगले जन्म में जंगल में सर्प और व्याघ्र (बाघ) के रूप में जन्म लेता है। यह पौराणिक मान्यता व्रत के महत्व को दर्शाती है और इस व्रत को करने की प्रेरणा देती है ताकि जीवात्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके और पुनर्जन्म से मुक्ति मिल सके।


🚩 ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि अट्ठाइसवें चतुर्युगी के द्वापरयुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। व्रत के संबंध में यह भी कहा गया है कि यदि दिन या रात में थोड़ा भी रोहिणी नक्षत्र न हो तो विशेष रूप से चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करना चाहिए। इससे भक्तों को अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।


🚩 भविष्यपुराण में उल्लेख है कि भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत जो मनुष्य नहीं करता, वह अगले जन्म में क्रूर राक्षस के रूप में जन्म लेता है। केवल अष्टमी तिथि में उपवास करने का प्रावधान है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो उसे 'जयंती' नाम से पुकारा जाता है। ‘जयंती’ तिथि को व्रत रखने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है।


🚩 वह्निपुराण का कहना है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि थोड़ी भी रोहिणी नक्षत्र की कला हो, तो उसे जयंती नाम से ही संबोधित किया जाता है। इस स्थिति में विशेष प्रयत्न के साथ उपवास करने का महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।


 श्रीकृष्ण के जीवन से मिलने वाले ज्ञान और जीवन के महत्वपूर्ण पाठ


भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वे हमें दैनिक जीवन में भी मार्गदर्शन करती है। उनकी शिक्षाएं भगवतगीता में संग्रहित है, जो जीवन के हर पहलू पर गहन दृष्टिकोण प्रदान करती है।


🚩 कर्तव्य पालन: श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जिसमें उन्होंने कर्तव्य पालन का महत्व बताया। उन्होंने सिखाया कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से करना चाहिए, बिना फल की चिंता किए। यह शिक्षा आज भी जीवन में कर्मयोग का मार्ग दिखाती है।


🚩 अहंकार का त्याग: श्रीकृष्ण ने हमेशा अहंकार और घमंड को त्यागने की बात कही है। उनका मानना था कि अहंकार इंसान को उसके मूल उद्देश्य से भटका देता है। जीवन में सादगी और नम्रता को अपनाने से ही सच्ची सफलता प्राप्त होती है।


🚩 समता का भाव: श्रीकृष्ण ने जीवन में समता का भाव बनाए रखने की बात कही है। सुख और दुःख हार और जीत, लाभ और हानि — इन सभी में समता रखना एक सच्चे योगी का लक्षण है। यह भाव हमें मानसिक स्थिरता और शांति प्रदान करता है।


🚩 प्रेम और भक्ति का महत्व: भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों के साथ अपने प्रेमपूर्ण संबंधों के माध्यम से भक्ति का महत्व बताया। उन्होंने राधा और गोपियों के साथ अपने संबंधों के माध्यम से दिखाया कि सच्चे प्रेम और भक्ति से भगवान को पाया जा सकता है। 


🚩 संसार के मोह से मुक्ति: श्रीकृष्ण ने गीता में बताया कि मनुष्य को संसार के मोह से मुक्त होना चाहिए। उन्होंने बताया कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है। इसलिए,जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकलने के लिए हमें आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए और अपने सच्चे स्वरूप को पहचानना चाहिए।


🚩 साहस और धैर्य: श्रीकृष्ण ने जीवन के कठिन क्षणों में भी धैर्य और साहस बनाए रखने की प्रेरणा दी। चाहे वह बाल लीलाओं में पूतना वध हो या कंस का अंत, श्रीकृष्ण ने हर स्थिति में धैर्य और साहस का परिचय दिया। यह सिखाता है कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए धैर्य और साहस अत्यंत आवश्यक है।


🚩 निर्भयता का पाठ: श्रीकृष्ण ने कहा कि भक्त को निडर रहना चाहिए। उन्होंने अपने जीवन से सिखाया कि भय को त्यागकर ही मनुष्य अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। चाहे वह कालिया नाग का दमन हो या कंस के अत्याचारों का अंत,श्रीकृष्ण ने हर जगह निर्भयता का प्रदर्शन किया।


 जन्माष्टमी व्रत का पालन और पूजा विधि


जन्माष्टमी व्रत का पालन करने वाले भक्त पूरी रात जागरण करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन में लीन रहते है। इस दिन विशेष रूप से भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण किया जाता है। भक्तजन व्रत रखकर भगवान को माखन-मिश्री, फल, फूल आदि का भोग लगाते है। अर्धरात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है और नए वस्त्र पहनाकर झूला झुलाया जाता है। 


श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें दिखाती है कि सच्चा धर्म वही है जो व्यक्ति को उसके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करे और उसे सत्य,अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी न केवल भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव है बल्कि यह उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं और जीवन के उच्च मूल्यों को अपनाने का भी संकल्प है।


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Saturday, August 24, 2024

"भारतीय मसालों के छुपे स्वास्थ्य लाभ: मौसम के अनुसार कैसे लाभ उठाएँ?"

 25 August 2024

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🚩"भारतीय मसालों के छुपे स्वास्थ्य लाभ: मौसम के अनुसार कैसे लाभ उठाएँ?" 


🚩 *भारतीय मसालों के स्वास्थ्य लाभ: 

मौसम के अनुसार उपयोग और फायदे*

भारतीय मसालों का भारतीय रसोई में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ये न केवल हमारे भोजन का स्वाद और रंग-रूप बढ़ाते है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत फायदेमंद होते है। सदियों से भारतीय मसालों का उपयोग औषधीय गुणों के कारण भी किया जाता रहा है। ये मसाले न केवल बीमारियों से बचाने में मदद करते है बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा और शारीरिक दोषों को संतुलित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। आइए, जानते है कि कैसे भारतीय मसाले हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते है और मौसम के अनुसार इनके उपयोग से हमें क्या फायदे मिल सकते है।


🚩 भारतीय मसाले और उनके स्वास्थ्य लाभ


🚩 *हल्दी (Turmeric):*  

हल्दी में करक्यूमिन नामक तत्व होता है जो सूजन को कम करने, चोट के दर्द में आराम देने और इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती है। सर्दियों में इसका सेवन शरीर को गर्म रखता है और सर्दी-खांसी से बचाव करता है।


🚩 *जीरा (Cumin):*  

जीरा पाचन तंत्र को सुधारने और शरीर में गैस की समस्या को कम करने में मदद करता है। गर्मियों में जीरे का पानी पीना शरीर को ठंडक प्रदान करता है और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है, जिससे गर्मी के मौसम में डिहाइड्रेशन से बचा जा सकता है।


🚩 *अदरक (Ginger) और सौंठ (Dry Ginger):*  

अदरक और सौंठ दोनों ही सर्दी-जुकाम, गले की खराश, और पाचन समस्याओं में अत्यधिक लाभकारी होते है। अदरक ताजा होने पर और सौंठ सूखी होने पर अपने औषधीय गुणों से शरीर को गर्म रखती है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है।


🚩 *काली मिर्च (Black Pepper):*  

काली मिर्च का उपयोग पाचन को सुधारने, खांसी-जुकाम से राहत दिलाने और मेटाबॉलिज्म को तेज करने के लिए किया जाता है। यह शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है और सर्दियों में शरीर को गर्म रखती है।


🚩 *धनिया (Coriander):*  

धनिया के बीज और पत्ते में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है जो त्वचा को चमकदार बनाते है और शरीर में फ्री रेडिकल्स से लड़ते है। गर्मियों में धनिया का सेवन शरीर को ठंडक प्रदान करता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है।


🚩 *लौंग (Clove):*  

लौंग में एंटीबैक्टीरियल गुण होते है जो दांत दर्द, गले की खराश, और सर्दी-जुकाम के इलाज में सहायक होते है। इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।


🚩 *मेथी (Fenugreek):*  

मेथी के बीज और पत्तों का सेवन पाचन तंत्र को सुधारने, डायबिटीज में ब्लड शुगर को नियंत्रित करने, और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में मदद करता है। सर्दियों में मेथी का सेवन शरीर को गर्म रखता है और जोड़ों के दर्द से राहत दिलाता है।


🚩 *सरसों (Mustard):*  

सरसों के बीज और तेल का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है। सरसों का तेल त्वचा और बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है और इसका उपयोग जोड़ों के दर्द में राहत दिलाने के लिए भी किया जाता है।


🚩 *इलायची (Cardamom):*  

इलायची का सेवन पाचन तंत्र को सुधारता है और मुंह की दुर्गंध को दूर करता है। यह मानसिक तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने में भी सहायक होती है।


🚩 *अजवाइन (Carom Seeds):*  

अजवाइन का उपयोग पेट की गैस, अपच, और दर्द में राहत के लिए किया जाता है। यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है और शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। सर्दियों में इसका सेवन शरीर को गर्मी प्रदान करता है।


🚩मौसम के अनुसार मसालों का उपयोग


🚩 *सर्दियों में उपयोगी मसाले:*  

सर्दियों में अदरक, हल्दी, काली मिर्च, लौंग, और मेथी जैसे मसालों का सेवन शरीर को गर्म रखता है और ठंड से बचाता है। ये मसाले सर्दी, खांसी, और जोड़ों के दर्द से भी राहत दिलाते है।


🚩 *गर्मियों में उपयोगी मसाले:*  

गर्मियों में जीरा, धनिया, इलायची, और सौंफ का उपयोग शरीर को ठंडक प्रदान करता है और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है। ये मसाले शरीर को हाइड्रेटेड रखते है और गर्मी से बचाव करते है।


🚩प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद में भारतीय मसालों की भूमिका


🚩 *आयुर्वेदिक उपचार में:*  

भारतीय मसाले आयुर्वेदिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हल्दी, अदरक, और काली मिर्च जैसे मसाले वात, पित्त, और कफ दोषों को संतुलित करते है। ये मसाले शरीर के दोषों को संतुलित करते हुए प्राकृतिक चिकित्सा में सहायक होते है।


🚩 *रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना:*  

मसाले जैसे हल्दी, काली मिर्च, और अदरक में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते है। ये मसाले शरीर को संक्रमण से बचाने में सहायक होते है।


🚩 *डिटॉक्सिफिकेशन:*  

धनिया, सौंफ, और जीरा जैसे मसाले शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकालने और पाचन तंत्र को साफ रखने में मदद करते है। ये मसाले शरीर को डिटॉक्सिफाई करने और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में सहायक होते है।


🚩 *वजन नियंत्रण और मानसिक स्वास्थ्य:*  

दालचीनी, मेथी, और अजवाइन जैसे मसाले वजन घटाने में मदद करते है और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारते है। ये मसाले तनाव और चिंता को कम करने में सहायक होते है और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाते है।


🚩 निष्कर्ष


भारतीय मसाले न केवल हमारे भोजन का स्वाद और सुगंध बढ़ाते है , बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभकारी होते है। ये मसाले मौसम के अनुसार शरीर को अनुकूल बनाने में मदद करते है और विभिन्न बीमारियों से बचाव में सहायक होते है। हमें अपने दैनिक आहार में इन मसालों को शामिल करना चाहिए ताकि हम न केवल स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले सकें, बल्कि एक स्वस्थ और निरोगी जीवन भी जी सकें। भारतीय मसालों का उपयोग कर हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते है और प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ उठा सकते है।



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Friday, August 23, 2024

भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी

 24 August 2024

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🚩 *भवानी अष्टकम के बारे में जानकारी:*



🚩भवानी अष्टकम एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो आद्याशक्ति माँ भवानी को समर्पित है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जो महान भारतीय संत और दार्शनिक थे। भवानी अष्टकम में आठ श्लोक होते है, जिनमें शंकराचार्य ने माँ भवानी से अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त किया है। 


🚩 *भवानी अष्टकम की रचना कैसे हुई:*


🚩आदिगुरु शंकराचार्य एक बार शाक्तमत का खंडन करने के लिए कश्मीर गए थे। लेकिन, कश्मीर में उनकी तबीयत खराब हो गई और उनके शरीर में कोई ताकत नहीं रही। वे एक पेड़ के पास लेटे हुए थे, तभी वहां से एक ग्वालिन सिर पर दही का बर्तन लेकर गुजरी। शंकराचार्य का पेट जल रहा था और वे बहुत प्यासे थे। उन्होंने ग्वालिन से दही मांगने के लिए उसे अपने पास आने का इशारा किया।


🚩ग्वालिन ने थोड़ी दूर से कहा कि आप यहां दही लेने आओ। आचार्य ने धीरे से कहा, "मुझमें इतनी दूर आने की शक्ति नहीं है।" इस पर ग्वालिन हंसते हुए बोली, "शक्ति के बिना कोई एक कदम भी नहीं उठाता और आप शक्ति का खंडन करने निकले है ?"

 

🚩ग्वालिन की बात सुनते ही आचार्य की आंखें खुल गईं। वे समझ गए कि यह ग्वालिन कोई साधारण महिला नहीं, बल्कि भगवती स्वयं है ,जो उन्हें शक्ति के महत्त्व का एहसास कराने आई है। शंकराचार्य के मन में शिव और शक्ति के बीच का जो अंतर था, वह मिट गया और उन्होंने शक्ति के सामने समर्पण कर दिया। उनके मुख से निकला, "गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी।"


🚩समर्पण का यह स्तवन "भवानी अष्टकम" के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो अद्भुत है। शिव स्थिर शक्ति है और भवानी उनमें गतिशील शक्ति है। दोनों अलग-अलग है , जैसे दूध और उसकी सफेदी। नेत्रों पर अज्ञान का जो आखिरी पर्दा था, वह भी माँ ने ही हटाया था, इसलिए शंकर ने कहा, "माँ, मैं कुछ नहीं जानता।"


🚩 *भवानी अष्टकम के श्लोक:*


1. *न तातो न माता न बन्धुर्न दाता  

  न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।  

  न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


2. *भवाब्धावपारे महादुःखभीरु  

  प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।  

  कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


3. *न जानामि दानं न च ध्यानयोगं  

  न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।  

  न जानामि पूजां न च न्यासयोगं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


4. *न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं  

  न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।  

  न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


5. *कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः  

  कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।  

  कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


6. *प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं  

  दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।  

  न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


7. *विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे  

  जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।  

  अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


8. *अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो  

  महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।  

  विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं  

  गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥*


🚩 *भवानी अष्टकम की विशेषताएँ:*


🚩1. *भक्ति और समर्पण का भाव:* इस स्तोत्र में शंकराचार्य ने माँ भवानी के प्रति अपनी भक्ति को बहुत ही मार्मिक और विनम्र शब्दों में व्यक्त किया है। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से बताया है कि संसार के सारे बंधनों और समस्याओं से मुक्ति केवल माँ भवानी की कृपा से ही संभव है।


🚩2. *माँ भवानी की महिमा का वर्णन:* भवानी अष्टकम के श्लोकों में देवी भवानी की महिमा का सुंदर और प्रभावशाली वर्णन किया गया है। इसमें माँ को समस्त सृष्टि की जननी, पालनकर्ता और संरक्षक के रूप में पूजा जाता है।


🚩3. *आध्यात्मिक मार्गदर्शन:* यह स्तोत्र साधकों को आत्मसमर्पण और शरणागति का मार्ग दिखाता है। शंकराचार्य ने अपने आप को असहाय और अज्ञानी बताते हुए माँ भवानी से प्रार्थना की है कि वे उनकी रक्षा करें और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ाएं।


🚩4. *साधकों के लिए प्रेरणा:* भवानी अष्टकम साधकों के लिए एक प्रेरणादायक स्तोत्र है, जो उन्हें भक्ति और विश्वास के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। 


🚩5. *पाठ का महत्व:* इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक को मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और माँ भवानी की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों और संकटों से रक्षा करने में भी सहायक माना जाता है।


🚩भवानी अष्टकम के श्लोक सरल और संगीतमय होते है, जिससे भक्तों के मन में माँ भवानी के प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना और गहरी होती है।



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Thursday, August 22, 2024

श्रीकृष्ण की 16 कलाएं: एक दिव्य व्यक्तित्व का आदर्श

 23 August 2024

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श्रीकृष्ण की 16 कलाएं: एक दिव्य व्यक्तित्व का आदर्श


श्रीकृष्ण को सनातन धर्म में पूर्ण अवतार माना गया है, जिनकी 16 कलाएं विशेष रूप से वर्णित है। इन कलाओं के माध्यम से उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श स्थापित किए और धर्म, कर्म, प्रेम और भक्ति का मर्म समझाया। श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का विस्तार से वर्णन करते हुए, हम उनके जीवन और उनके व्यक्तित्व की महिमा का दर्शन कर सकते है।


1. धृति (धैर्य): धृति का अर्थ है कठिनाइयों का सामना करते हुए भी मन को स्थिर रखना। श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को धृति की शिक्षा दी, जब अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था। कृष्ण ने उसे अपने कर्तव्यों का पालन करने का उपदेश दिया और बताया कि हर परिस्थिति में धैर्य रखना ही सच्चा धर्म है।


2. मति (बुद्धि): मति का अर्थ है बुद्धि या विवेक, जिससे व्यक्ति सही और गलत का निर्णय कर सके। श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा उदाहरण भगवतगीता में मिलता है, जहाँ उन्होंने अर्जुन को ज्ञान का उपदेश दिया और उसे जीवन के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराया। उनकी मति का ही प्रभाव था कि वे हर समस्या का समाधान खोज निकालते थे।


3. उमा (लक्ष्मी/समृद्धि): उमा, जिन्हें लक्ष्मी भी कहा जाता है, समृद्धि और वैभव की देवी है। श्रीकृष्ण का जीवन समृद्धि का प्रतीक था। उनके जीवन में कभी भी कोई कमी नहीं रही, चाहे वह धन की हो या प्रेम और मित्रता की। वे सभी के लिए सुख और समृद्धि का आशीर्वाद लेकर आए थे 


4. करुणा (दया): करुणा का अर्थ है सभी प्राणियों के प्रति दया और सहानुभूति रखना। श्रीकृष्ण का हृदय करुणा से भरा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई बार अपने शत्रुओं के प्रति भी दया दिखाई। उदाहरण के लिए, जब कंस की मृत्यु का समय आया, तब भी श्रीकृष्ण ने उसे मोक्ष का मार्ग दिखाया।


5. वीर्य (शक्ति): वीर्य का अर्थ है शक्ति और साहस। श्रीकृष्ण ने बचपन में ही पूतना, शकटासुर और कालिया नाग जैसे असुरों का संहार किया। उनकी शक्ति का यह गुण महाभारत के युद्ध में भी दिखाई दिया, जब उन्होंने अर्जुन का सारथी बनकर कौरवों की पूरी सेना का सामना किया।


6. अहिंसा (अहिंसा): श्रीकृष्ण का जीवन अहिंसा का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने सदैव शांति और प्रेम का संदेश दिया। हालांकि महाभारत के युद्ध में वे शामिल थे, परंतु उनका उद्देश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करना था, जो अहिंसा की उच्चतम अवस्था मानी जाती है।


7. विनय (विनम्रता): श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व विनम्रता से भरा हुआ था। वे राजा होते हुए भी गोपियों और ग्वालों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने कभी भी अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग नहीं किया और सदैव अपने भक्तों के साथ विनम्र रहे।


8. कान्ति (आकर्षण): श्रीकृष्ण का आकर्षण केवल उनके शारीरिक सौंदर्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके व्यक्तित्व का आकर्षण था। उनके आकर्षण से ही वे गोपियों के प्रिय थे और उनके अनुयायी उनके प्रेम और भक्ति में मग्न रहते थे।


9. विद्या (ज्ञान): श्रीकृष्ण को सर्वज्ञ माना जाता है। वे चारों वेदों और सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। भगवतगीता में दिया गया उनका उपदेश आज भी विश्वभर में ज्ञान का अद्वितीय स्रोत माना जाता है। उनका ज्ञान न केवल आध्यात्मिक था बल्कि उन्होंने राजनीति, धर्म और समाज के विभिन्न पहलुओं पर भी महत्वपूर्ण शिक्षा दी।


10. वितर्क (तर्क): श्रीकृष्ण की तर्कशक्ति अद्वितीय थी। उन्होंने अपने जीवन में हर समस्या का समाधान तर्क और विवेक से किया। उनका तर्कशक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना और उसे धर्म का वास्तविक अर्थ समझाना है।


11. सत्य (सत्यता): श्रीकृष्ण ने सदैव सत्य का पालन किया। उनका जीवन सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का उदाहरण है। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए कई बार कठिन निर्णय लिए परंतु सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए।


12. श्री (लक्ष्मी/वैभव): श्रीकृष्ण को लक्ष्मी का वरदान प्राप्त था। वे स्वयं धन और वैभव के अधिष्ठाता थे। उनके जीवन में कोई भी भौतिक सुख-सुविधा की कमी नहीं थी और उन्होंने अपने भक्तों को भी इसी प्रकार का आशीर्वाद दिया।


13. शोभा (सौंदर्य): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में अनोखा सौंदर्य था। उनका रूप तो आकर्षक था ही, परंतु उनका आंतरिक सौंदर्य और अधिक मोहक था। उनके आचरण और विचारों की शोभा से वे सभी के प्रिय बने।


14. गाम्भीर्य (गंभीरता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक गम्भीरता थी, जो उन्हें अन्य सभी से अलग बनाती थी। वे हमेशा सोच-समझकर निर्णय लेते थे और हर परिस्थिति में स्थिर और गंभीर बने रहते थे। उनकी गंभीरता का यह गुण उनकी महानता का प्रतीक था।


15. धैर्य (धीरज): धैर्य श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का मुख्य गुण था। उन्होंने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया परंतु वे कभी विचलित नहीं हुए। उनका धैर्य उन्हें हर परिस्थिति में अडिग बनाए रखता था और उन्होंने अपने भक्तों को भी धैर्य का महत्व समझाया।


16. तेज (तेजस्विता): श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में एक अद्वितीय तेज था। यह तेज उनके ज्ञान, शक्ति और भक्ति से उत्पन्न हुआ था। उनके तेज से ही उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि सभी उनकी ओर आकर्षित हो जाते थे और उनके मार्गदर्शन में धर्म का पालन करते थे।


 निष्कर्ष


श्रीकृष्ण की 16 कलाएं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करती है और हमें यह सिखाती है कि एक संपूर्ण और संतुलित जीवन कैसे जिया जाए। उनकी शिक्षाएं और उनका जीवन आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। इन कलाओं के माध्यम से श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि कैसे व्यक्ति जीवन में धैर्य, सत्य, विनम्रता और करुणा जैसे गुणों को अपनाकर धर्म, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चल सकता है। उनका जीवन और उनके आदर्श हमें सदैव सही मार्ग पर चलने और धर्म की रक्षा करने की प्रेरणा देते है।


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