Sunday, November 10, 2024

यश, कीर्ति, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए



11 November 2024  

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यश, कीर्ति, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए


🚩 भीष्म पंचक व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है।


🚩 इस साल यह व्रत 11 नवम्बर 2024 से 15 नवम्बर 2024 तक रहेगा।


🚩 इस व्रत में कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी से कार्तिक माह की देव पूर्णिमा तक व्रती को अन्न का त्याग करना होता है एवं फल और दूध पर रहना होता है और 5 दिन तक भीष्म पितामह को अर्घ्य देना होता है।


🚩 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है।


🚩 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे। अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।


🚩 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्म पंचक व्रत’ कहलाता है। जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है। यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है। निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है।


🚩 भीष्म पंचक व्रत कथा: 


🚩 कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी। तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी। उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए। इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्म पंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी। 


🚩 इसी संदर्भ में एक और कथा है…


🚩 महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे, तब भगवान कृष्ण पाँचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्मजी ने पाँच दिनों तक राज धर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, “पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ। जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।”


🚩 भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए? 


🚩 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए:


सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने।  

भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे।।


🚩 ‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ।’ (स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)


🚩 अर्घ्य के जल में थोड़ा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें। ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ़ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ…’ – ऐसी प्रार्थना करें।


🚩 इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें। कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें।


🚩 इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है।


🚩 पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है।


🚩 इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।


🚩 जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है:


वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च।  

अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे।।  

वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।  

अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे।।


🚩 जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ। वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ।


🚩 इस व्रत के दिनों में इस बार देवउठी एकादशी 12 नवम्बर 2024 को है। इस दिन भगवान नारायण जागते हैं। इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए:


उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज।  

उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु॥


🚩 ‘हे गोविन्द! उठिए, उठिए, हे गरुड़ध्वज! उठिए, हे कमलाकांत! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये।’ (साभार: संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा ऋषि प्रसाद पत्रिका)


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Saturday, November 9, 2024

आंवला नवमी (अक्षय नवमी): सौभाग्य, स्वास्थ्य और समृद्धि का पर्व

 9 November 2024

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🚩  आंवला नवमी (अक्षय नवमी): सौभाग्य, स्वास्थ्य और समृद्धि का पर्व



🚩आंवला नवमी जिसे अक्षय नवमी भी कहते हैं, हिंदू धर्म में विशेष रूप से पूजनीय पर्व है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे अमृत के समान गुणकारी और अक्षय पुण्य देने वाला माना गया है। आंवला नवमी का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण भी छिपे हैं।


🚩आंवला नवमी का पौराणिक महत्व


🔸 प्राचीन कथाओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु का निवास आंवला वृक्ष में होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। स्कंद पुराण के अनुसार, आंवला नवमी पर इस वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।


🔸 एक अन्य कथा के अनुसार, आंवला नवमी पर सत्ययुग की शुरुआत हुई थी, और इसी दिन भगवान विष्णु ने सृष्टि के पालन का कार्य संभाला था। इस कारण आंवला वृक्ष को अक्षय पुण्य और शुभता का प्रतीक माना गया है।


🚩आंवला नवमी का धार्मिक महत्व


🔸 वृक्ष की पूजा का महत्त्व: हिंदू धर्म में आंवला वृक्ष को अत्यधिक पवित्र माना गया है। इस वृक्ष के नीचे पूजा करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

🔸अक्षय पुण्य का प्रतीक: अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा और उसके फल का सेवन करने से व्यक्ति को असीमित पुण्य प्राप्त होता है।

🔸 सौभाग्य और समृद्धि का वरदान: मान्यता है कि आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा से सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन विशेष रूप से माता लक्ष्मी की कृपा भी मिलती है।


🚩 आंवला नवमी पूजा विधि


🔸 व्रत और स्नान: आंवला नवमी के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।

🔸 आंवला वृक्ष का चयन: पास के किसी आंवला वृक्ष का चयन करें, जहां जाकर पूजा कर सकें। यदि आंवला वृक्ष उपलब्ध न हो तो घर पर आंवला फल का प्रयोग भी किया जा सकता है।

🔸 वृक्ष के नीचे पूजा: आंवला वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं, अक्षत, पुष्प, और कुमकुम अर्पित करें। वृक्ष के तने को हल्दी और कुमकुम से तिलक करें।

🔸 परिक्रमा और कथा: आंवला वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और आंवला नवमी की कथा सुनें या पढ़ें। मान्यता है कि इस दिन कथा सुनने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

🔸 भोजन: इस दिन आंवला का सेवन करना विशेष लाभकारी माना गया है। पूजा के पश्चात आंवला से बने पकवान या आंवला फल का सेवन करें। कुछ लोग इस दिन वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन भी करते हैं, जिससे उन्हें दैवीय आशीर्वाद प्राप्त होता है।


🚩आंवला नवमी के लाभ


🔸सभी कष्टों का नाश: आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के कष्ट और समस्याएं दूर होती हैं।

🔸 स्वास्थ्य में सुधार: आंवला आयुर्वेद में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, क्योंकि इसमें विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।

🔸आध्यात्मिक उन्नति: आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा से मन में शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इससे व्यक्ति की आत्मा को शुद्धता प्राप्त होती है।

🔸 धन, संपत्ति और सौभाग्य: इस दिन पूजा करने से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे धन, संपत्ति, और सौभाग्य में वृद्धि होती है।


🚩आंवला नवमी के वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ


आंवला को स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है। यह विटामिन सी से भरपूर होता है और इसके नियमित सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। इसके सेवन से त्वचा, बाल, और पाचन तंत्र को भी फायदा मिलता है।


🔸 रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है: आंवला के सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे सर्दी, जुकाम और अन्य बीमारियों से सुरक्षा मिलती है।

🔸 त्वचा और बालों के लिए लाभकारी: आंवला त्वचा में निखार लाने और बालों को मजबूत बनाने में सहायक होता है। यह एंटी-एजिंग गुणों से भरपूर है जो त्वचा को जवां बनाए रखने में मदद करता है।

🔸पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है: आंवला का सेवन पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है और कब्ज जैसी समस्याओं से बचाव करता है।

🔸 एंटीऑक्सीडेंट गुण: आंवला में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो शरीर से विषैले तत्वों को निकालकर कोशिकाओं को स्वस्थ बनाते हैं।


🚩 गौ सेवा के साथ आंवला नवमी

कुछ परंपराओं में आंवला नवमी के दिन गौ माता की सेवा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन गौ माता को आंवला और गुड़ खिलाने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। संत श्री आशारामजी बापू के अनुयायी भी इस दिन गौ सेवा और आंवला वृक्ष की पूजा को महत्व देते हैं।


🚩 निष्कर्ष


आंवला नवमी एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभकारी है। इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा और उसके सेवन से जहां एक ओर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, वहीं दूसरी ओर यह हमारी शारीरिक और मानसिक सेहत को भी सुदृढ़ करता है। इस आंवला नवमी पर हम सभी प्रण लें कि प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए इन आशीर्वादों का आदर करेंगे, आंवला का नियमित सेवन करेंगे और अपने जीवन को स्वस्थ, खुशहाल और समृद्ध बनाएंगे।


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Friday, November 8, 2024

गोपाष्टमी : गायों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का पर्व

 09 November 2024

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🚩गोपाष्टमी : गायों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का पर्व



🚩गोपाष्टमी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। यह दिन गौ माता की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है और इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन गौ माता की पूजा करने से सुख, समृद्धि और जीवन में शांति का आशीर्वाद मिलता है। गोपाष्टमी का संबंध श्रीकृष्ण के जीवन से है, जब वे गोचारण के लिए पहली बार व्रजभूमि पर गए थे। इसे विशेष रूप से गोकुल, मथुरा और वृंदावन जैसे स्थानों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।


🚩गोपाष्टमी का इतिहास :

गोपाष्टमी का पर्व प्राचीन काल से ही गौ माता के महत्व को दर्शाता आया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने जब बाल्यकाल में अपने मित्रों के साथ गायों को चराने का कार्य किया, तभी से गोपाष्टमी का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन व्रज के निवासियों ने श्रीकृष्ण को गोपाल (गायों के रक्षक) के रूप में सम्मानित किया। इस अवसर पर श्रीकृष्ण ने बताया कि गायों की सेवा करना मानव जीवन का परम कर्तव्य है क्योंकि गौ माता हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था में योगदान देती है।


🚩गोपाष्टमी का महत्व : 

🔸धार्मिक महत्व : गौ माता हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखती है। वे जीवनदायिनी है और उन्हें ‘कामधेनु’ का रूप माना गया है, जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है। गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

🔸आध्यात्मिक महत्व : गायों की सेवा से मन में शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।कहा जाता है कि गाय की सेवा करने वाले पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है

🔸पर्यावरणीय महत्व : गौ माता हमारे पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि  गौ माता का गोबर और मूत्र जैविक खेती के लिए लाभकारी है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और विषैले रसायनों के उपयोग से बचा जा सकता है।


🚩गोपाष्टमी पूजा विधि : 

🔸स्नान और पवित्रता - गोपाष्टमी के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को साफ करें।

🔸गौ माता की सजावट : गायों को अच्छे से स्नान कराएं उनके सींगों और पूंछ को रंगीन कपड़ों या फूलों से सजाएं। उन्हें तिलक करें और सुंदर वस्त्र पहनाएं।

🔸गौ पूजा : गायों के सामने दीपक जलाएं और अक्षत, फूल, और धूप-दीप चढ़ाकर उनकी पूजा करें। गायों को हरी घास, गुड़ और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ अर्पित करें।

🔸परिक्रमा : गौ माता की सात बार परिक्रमा करें और उनसे अपने परिवार की सुख-शांति की कामना करें।

🔸गोदान : इस दिन गोदान का विशेष महत्व होता है। अगर संभव हो तो किसी गरीब या जरूरतमंद को गौदान करें, या गौशाला में दान करें।


🚩गोपाष्टमी के लाभ :

🔸 सुख - समृद्धि : गौ माता की पूजा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है। यह माना जाता है कि गौ माता की कृपा से घर में लक्ष्मी जी का वास होता है।

🔸आरोग्य : गाय के पास रहना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। गोमूत्र और गोबर से बने उत्पाद रोगों से लड़ने में सहायक होते है और इनका उपयोग आयुर्वेद में भी होता है।

🔸परिवार की शांति : गौ माता की सेवा करने से परिवार में शांति और सौहार्द बना रहता है। उनका आशीर्वाद परिवार की सुरक्षा और कल्याण के लिए लाभकारी होता है।

🔸धन और समृद्धि का आशीर्वाद : गोदान करने से जीवन में आर्थिक समृद्धि आती है और धन की कोई कमी नहीं रहती। यह भी मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन किए गए दान का अनंत गुना फल प्राप्त होता है।


🚩गोपाष्टमी : एक समर्पण का पर्व - गोपाष्टमी का पर्व हमें यह सिखाता है कि गौमाता का हमारे जीवन में कितना महत्व है। उनके प्रति श्रद्धा और सेवा का भाव रखना हमारा कर्तव्य है। संत श्री आशारामजी बापू ने भी गौसेवा के महत्व को कई बार अपने सत्संगों में बताया है और समाज को गौरक्षा के प्रति जागरूक किया है। उनका मानना है कि गौ माता की सेवा से जीवन में सुख, समृद्धि और संतोष की प्राप्ति होती है।


🚩इस गोपाष्टमी पर हम सभी प्रण लें कि हम गौ माता का सम्मान करेंगे, उनकी रक्षा करेंगे और अपने जीवन में उनकी सेवा को प्रमुखता देंगे। गोपाष्टमी न केवल एक पर्व है बल्कि यह हमें गौ माता के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का भी बोध कराता है।


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Thursday, November 7, 2024

एटीएम कार्ड के महत्व और सुरक्षा उपाय : आरबीआई के नए नियमों के साथ जानें,कैसे सुरक्षित रखें अपना खाता

 08 November 2024

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 ✴️ एटीएम कार्ड के महत्व और सुरक्षा उपाय : आरबीआई के नए नियमों के साथ जानें,कैसे सुरक्षित रखें अपना खाता


 ✴️आज के डिजिटल युग में एटीएम कार्ड बैंकिंग के लिए अनिवार्य साधन बन गया है। इसके जरिए, हम नकद निकाल सकते है, ऑनलाइन खरीदारी कर सकते है और कई अन्य बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठा सकते है। लेकिन अगर इसे सावधानी से न रखा जाए, तो धोखाधड़ी और अनधिकृत लेन-देन का जोखिम बढ़ जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एटीएम कार्ड के उपयोग और सुरक्षा के लिए कुछ नए नियम बनाए है। आइए, जानते है इन नियमों और एटीएम कार्ड सुरक्षा से जुड़ी अहम जानकारियां।


✴️आरबीआई के एटीएम कार्ड से जुड़े महत्वपूर्ण नियम


▪️मोबाइल नंबर पंजीकरण अनिवार्य : सभी खाताधारकों को अपने खाते से मोबाइल नंबर लिंक करना अनिवार्य है। यह बैंक को किसी भी संदेहास्पद गतिविधि की स्थिति में ग्राहक से संपर्क करने में सहायक होता है। यदि आपका मोबाइल नंबर पंजीकृत नहीं है, तो आपका एटीएम कार्ड बंद हो सकता है। उदाहरण के लिए, बैंक ऑफ इंडिया ने अपने ग्राहकों के लिए 31 अक्टूबर 2030 तक का समय दिया है।

▪एटीएम कार्ड खोने पर तुरंत ब्लॉक करवाएं: यदि आपका एटीएम कार्ड खो जाए, तो उसे तुरंत ब्लॉक करना आवश्यक है ताकि कोई अनधिकृत व्यक्ति आपके खाते का दुरुपयोग न कर सके। इसे एसएमएस या बैंक की आईवीआर (IVR) सेवा के माध्यम से ब्लॉक किया जा सकता है।

▪️पुराने कार्ड की जगह नए कार्ड का उपयोग : यदि आपका बैंक नया एटीएम कार्ड जारी करता है, तो पुराने कार्ड का उपयोग तुरंत बंद कर दें। पुराने कार्ड से लेन-देन करने पर धोखाधड़ी का खतरा बढ़ सकता है।


✴️एटीएम कार्ड ब्लॉक करने की प्रक्रिया : अगर एटीएम कार्ड खो जाए या चोरी हो जाए, तो उसे तुरंत ब्लॉक करवाने के लिए नीचे दिए गए तरीकों का इस्तेमाल करें :


▪️एसएमएस द्वारा अगर आपका खाता भारतीय स्टेट बैंक (SBI) में है, तो अपने पंजीकृत मोबाइल नंबर से एसएमएस भेजकर कार्ड ब्लॉक कर सकते हैं। उदाहरण :

“BLOCK XXXX” (जहां XXXX आपके कार्ड के अंतिम चार अंक है) लिखकर 567676 पर भेजें।

आपको एक पुष्टि संदेश मिलेगा कि आपका कार्ड ब्लॉक कर दिया गया है।

आईवीआर सेवा के माध्यम से भारतीय स्टेट बैंक के ग्राहकों के लिए टोल फ्री नंबर 1800-112-211 है। इस पर कॉल कर एटीएम कार्ड ब्लॉक करने के विकल्प का चयन करें। प्रक्रिया पूरी होने पर आपको एक पुष्टिकरण एसएमएस प्राप्त होगा।


✴️एटीएम कार्ड खोने पर सुरक्षा उपाय :


▪️ अपने खाते की जानकारी की तुरंत जांच करें।अगर आपको लगता है कि आपके खाते में अनधिकृत लेन-देन हो सकता है, तो तुरंत खाते का बैलेंस और लेन-देन की जानकारी चेक करें।

▪️पिन और गोपनीय जानकारी साझा न करें

किसी अजनबी के साथ अपने एटीएम कार्ड का पिन साझा न करें। याद रखें, बैंक या कोई भी आधिकारिक संस्था आपसे कभी पिन या पासवर्ड की मांग नहीं करेगी।

▪️नई पिन सेट करें

अगर आपने नया एटीएम कार्ड लिया है, तो तुरंत पिन सेट करें। अगर पहले से मौजूद पिन का पता किसी को लग गया हो, तो तुरंत उसे बदलें।


✴️ आरबीआई नियमों का असर और लाभ : आरबीआई के इन नियमों का उद्देश्य खाताधारकों को एक सुरक्षित बैंकिंग अनुभव प्रदान करना है। इन नियमों से न केवल बैंक और ग्राहक के बीच बेहतर संवाद संभव हो सकेगा बल्कि धोखाधड़ी के मामलों में भी कमी आएगी। मोबाइल नंबर पंजीकरण के चलते बैंक किसी भी संदेहास्पद गतिविधि पर आपको अलर्ट कर सकेगा, जिससे आपके खाते की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।


✴️ध्यान रखने योग्य बातें


▪️अपने एटीएम कार्ड को सुरक्षित रखें और इसे अनधिकृत लोगों से दूर रखें।

▪️ बैंक खाते का बैलेंस और लेन-देन नियमित रूप से चेक करें।

▪️संदेहास्पद कॉल या संदेशों का उत्तर न दें जिनमें एटीएम कार्ड की जानकारी मांगी जा रही हो।


✴️आरबीआई के इन नए नियमों को समझना और उनका पालन करना आपकी बैंकिंग सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा।आपकी जागरूकता ही आपकी सुरक्षा की कुंजी है। एटीएम कार्ड का सुरक्षित और सावधानीपूर्वक उपयोग करें ताकि आप निश्चिंत होकर अपने बैंकिंग कार्यों का लाभ उठा सकें।


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Wednesday, November 6, 2024

छठ (स्कंध षष्ठी) पूजा का महत्व, पौराणिक कथा और पूजन विधि

 07 November 2024

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🚩छठ (स्कंध षष्ठी) पूजा का महत्व, पौराणिक कथा और पूजन विधि :


🚩छठ पूजा, जिसे स्कंध षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है,हिंदू धर्म की एक विशेष और पवित्र परंपरा है। यह पूजा सूर्यदेव और सूर्यपुत्री छठी माता को समर्पित है। यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा के दौरान भक्त, सूर्यदेव की उपासना करते है और अपने परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना करते है।


🚩पौराणिक महत्व :

छठ पूजा का पौराणिक महत्व अत्यंत गहरा है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे थे, तब माता सीता ने अयोध्या में राज्याभिषेक से पहले गुरु वशिष्ठ जी की आज्ञा से छठ पूजा की थी। इस पूजा के माध्यम से उन्होंने भगवान सूर्यदेव और छठी माता का आशीर्वाद प्राप्त किया था ताकि अयोध्या में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे। तभी से यह पूजा महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान के रूप में प्रचलित हो गई और इसे हर वर्ष कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।


🚩छठ पूजा का पौराणिक इतिहास :

छठ पूजा का उल्लेख विभिन्न पौराणिक कथाओं में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में, जब पांडवों को अपने राज्य से वंचित होकर वन में जाना पड़ा , तब द्रौपदी ने छठ पूजा की थी। यह पूजा उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आईं, और उनके कष्ट दूर हुए। इस पूजा का उल्लेख ऋग्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में भी किया गया है, जहां सूर्यदेव को ऊर्जा और जीवन का स्रोत मानकर उनकी उपासना का वर्णन मिलता है। छठ पूजा के समय सूर्यदेव को जल चढ़ाने की परंपरा और ध्यान का महत्व, वैदिक काल से ही प्रचलित है।


🚩छठ पूजा की विधि :

छठ पूजा चार दिनों का त्योहार है और हर दिन इसकी विशेष धार्मिक प्रक्रिया होती है। इस पूजा में नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है और श्रद्धालु बहुत ही संयमित एवं पवित्र भाव से इसका अनुष्ठान करते है।


🔸 पहला दिन – नहाय खाय

छठ पूजा के पहले दिन को ‘नहाय खाय’ कहा जाता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते है और शुद्ध भोजन ग्रहण करते है। भोजन में कद्दू की सब्जी, चने की दाल और चावल शामिल होते है। यह भोजन पूरी तरह से सात्विक होता है और इसमें लहसुन और प्याज का प्रयोग नहीं होता।

🔸 दूसरा दिन – खरना

दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद पूजा के रूप में गुड़ से बने खीर, रोटी और फलों का सेवन करते है। इस दिन का भोजन विशेष रूप से घर के पवित्र स्थान पर बनाया जाता है और इसे छठी माता को अर्पित किया जाता है।

🔸 तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन, जिसे ‘संध्या अर्घ्य’ कहा जाता है, श्रद्धालु सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या अन्य जलाशय के किनारे एकत्र होते है और अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते है। इस अर्घ्य में ठेकुआ, चावल के लड्डू और विभिन्न फलों का भोग होता है। व्रतधारी पानी में खड़े होकर संध्या अर्घ्य देते है और इस दौरान परिवार के अन्य सदस्य भी उपस्थित रहते है।

🔸 चौथा दिन – उषा अर्घ्य

अंतिम दिन को ‘उषा अर्घ्य' कहा जाता है। इस दिन प्रात:काल में उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। यह पूजा जलाशय के किनारे संपन्न होती है। व्रतधारी अपने संकल्प को पूर्ण करने के बाद व्रत तोड़ते है और इस पवित्र अनुष्ठान को समाप्त करते है।


🚩छठ पूजा का महत्व और लाभ :

छठ पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है।इस पूजा के दौरान श्रद्धालु संयम, पवित्रता और तपस्या का पालन करते है। यह पूजा हमें जीवन में धैर्य, तप और अनुशासन का महत्व सिखाती है। सूर्यदेव को ऊर्जा का स्रोत माना जाता है और छठ पूजा के माध्यम से हम उनकी कृपा प्राप्त कर अपने जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और शांति का आह्वान करते है।


🔸 सूर्य की ऊर्जा का लाभ – माना जाता है कि सूर्यदेव की आराधना करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और यह पूजा सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा को आत्मसात करने का एक पवित्र माध्यम है।

🔶 पारिवारिक सुख और समृद्धि – छठ पूजा के माध्यम से परिवार में सुख, समृद्धि और शांति का संचार होता है। सूर्यदेव और छठी माता का आशीर्वाद जीवन की कठिनाइयों को दूर करता है और हमें कष्टों से मुक्त करता है।

🔶 सकारात्मकता का संचार – छठ पूजा के दौरान मन,शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।चार दिन के इस व्रत में संयम,ध्यान और साधना के कारण मानसिक शांति प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


🚩 निष्कर्ष :

छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह एक ऐसी परंपरा है जो श्रद्धालुओं को अनुशासन, श्रद्धा और समर्पण का पाठ पढ़ाती है। यह हमें सिखाती है कि कैसे ईश्वर के प्रति आस्था और विनम्रता से हम अपने जीवन को सुखमय और समृद्ध बना सकते है।


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Tuesday, November 5, 2024

कार्तिक मास में दीपदान : महत्व, नियम और इसके अद्भुत लाभ

 06 November 2024

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🚩कार्तिक मास में दीपदान : महत्व, नियम और इसके अद्भुत लाभ


🚩हिंदू धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। इसे पवित्र और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर महीना माना गया है। इस महीने में दीपदान करने की परंपरा भी बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण है। दीपदान का उद्देश्य न केवल भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करना है, बल्कि जीवन में सुख-सौभाग्य, धन-धान्य, और आरोग्य का आह्वान करना भी है।


🚩कार्तिक मास में दीपदान का महत्व

1.सुख और सौभाग्य की प्राप्ति- मान्यता है कि कार्तिक महीने में दीपदान करने से घर में सुख और समृद्धि का वास होता है। दीपों का प्रकाश जीवन से अज्ञानता, दुःख और बुराई के अंधकार को दूर करता है और घर-परिवार में सुख, शांति और ज्ञान का संचार होता है।


2. अकाल मृत्यु का भय होता है दूर - कार्तिक मास में दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह महीना सबसे शुभ माना गया है,जिससे जीवन में सुरक्षा और शांति का अनुभव होता है।


3. नवग्रह दोष का निवारण- इस मास में दीपदान से नवग्रहों के दोष भी शांत होते है। दीपदान करने से ग्रहों का संतुलन होता है और उनका सकारात्मक प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इससे जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती है।


4.पितरों का आशीर्वाद -कार्तिक मास में दीप जलाने से देवी-देवताओं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह एक प्रकार से पितृ तर्पण का कार्य है, जिससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद हमारे परिवार पर बना रहता है।


5. विष्णु लोक में स्थान- जो व्यक्ति मंदिरों में दीपदान करते है,उनके बारे में मान्यता है कि उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिलता है। यह लोक, मोक्ष का स्थान है, और वहां जाने से पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है।


6. नरक से मुक्ति - जो लोग दुर्गम और एकांत जगहों पर दीपदान करते है,  उनके लिए कहा गया है कि वे कभी नरक में नहीं जाते। यह पुण्य उन्हें अशुभ फल से दूर रखता है और उनके जीवन को मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।


🚩दीपदान के नियम और अनुष्ठान


1.विशेष स्थानों पर दीपदान-कार्तिक मास में दीपदान मंदिरों, नदियों, तुलसी के पौधे, आंवले के पेड़, पोखर, कुएं, बावड़ी, और तालाब के किनारे करना शुभ माना गया है। इन स्थानों पर दीप जलाने से वातावरण पवित्र होता है और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


2.सुबह-शाम का दीपदान-इस महीने में हर सुबह जल्दी उठकर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। रात में “आकाश दीप” का दान करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। आकाश दीप का अर्थ है ऊंचाई पर दीपक जलाना, जो यह दर्शाता है कि हम अपने जीवन के अंधकार को दूर कर रहे है।


3. गंगा स्नान का महत्व-कार्तिक मास में गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। इस महीने में गंगा स्नान करके दीपदान करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। गंगा का पवित्र जल हमारे पापों को दूर कर मन और आत्मा को शुद्ध करता है।


🚩दीपदान का आध्यात्मिक महत्व-दीपदान करने से जीवन में आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह हमारे जीवन के अंधकार को दूर कर हमें धर्म और सत्य की ओर ले जाता है। दीप का प्रकाश यह संदेश देता है कि जैसे दीपक अंधकार को हराने के लिए जलता है, वैसे ही हमें अपने जीवन की कठिनाइयों को धैर्य और सकारात्मकता से हराना चाहिए।


🚩निष्कर्ष 

कार्तिक मास में दीपदान करने से न केवल धार्मिक लाभ होतें है बल्कि यह हमारे मन को शांति और संतोष से भर देता है। इस महीने का हर दिन हमें जीवन की सरलता, पवित्रता और शुभ कर्मों का महत्व सिखाता है।


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Monday, November 4, 2024

क्या निचली अदालतों के न्यायधीशों के निर्णय संदेहास्पद है❓

 05 November 2024

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🚩क्या निचली अदालतों के न्यायधीशों के निर्णय संदेहास्पद है❓


🚩जी हां, ये चौकाने वाली बात है, लेकिन सच है। हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत के न्यायाधीश प्रायः अपनी प्रतिष्ठा बचाने या अपने कैरियर की संभावनाओं की रक्षा करने के लिए, कई मामलों में निर्दोष व्यक्तियों को दोषी ठहरा देतें है।


🚩इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक कानून लाने का आह्वान किया है, जिसके तहत आपराधिक मामलों में गलत तरीके से दोषारोपण करके, झूठा मुकदमा चलाने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही और निर्दोष व्यक्तियों को मुआवजा दिया जा सके।


🚩 क्योंकि, यह एक गंभीर मुद्दा है, जो न केवल न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है, बल्कि उन निर्दोष लोगों के जीवन को भी प्रभावित करता है जिन पर गलत तरीके से आरोप लगाए जातें है। ऐसे में एक कानून बनाने से न केवल न्याय प्रणाली में सुधार होगा, बल्कि यह उन लोगों को भी न्याय दिलाने में मदद करेगा जो गलत तरीके से पीड़ित हुए है।"


🚩 विष्णु तिवारी जी का केस सबको पता है, की उन्हें २० साल बाद न्याय मिला तब तक उनका पूरा परिवार दुःख, अपमान और सामाजिक रोष की बलि चढ़ चुका था। उनकी, खुद की पूरी जिंदगी, नाहक, सलाखों के पीछे बर्बाद हो चुकी थी और अब उनके लिए तथाकथित प्रतिष्ठित समाज में कोई स्थान नहीं रहा।


ऐसे, और भी कई केसेस है, जहां निचली अदालत के गलत फैसले के कारण निर्दोषों की खुद की जिंदगी के साथ-साथ, उनके पूरे परिवार की जिदंगी बर्बाद हो चुकी है।


ऐसे ही एक प्रसिद्ध संत, श्री आसारामजी बापू को भी निचली अदालत ने बिना किसी ठोस सबूत के, पिछले ११ सालों से सलाखों के पीछे रखा है। जहां उन पर, जोधपुर और अहमदाबाद के दो झूठे,बेहद फर्जी केस में, बापू की निर्दोषत्व के कई प्रमाण होने के बावजूद, उन्हें अजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।


जबकि, दोनों केसों के फैसले में खुद जज ने स्वीकारा है कि आसाराम बापू के खिलाफ कोई अहम सबूत नहीं है और इसके बावजूद, सिर्फ और सिर्फ लड़की के मौखिक बयान को आधार मान कर, बेहद झूठे केस में उनको सजा सुनाई गई है।


अब, यहां सवाल उठता है, कि जब बापू आसाराम निर्दोष छूटकर बाहर आएंगे, तब उनके जीवन के पिछले ११ सालों की भारपाई कौन कर पाएगा ? उनके निर्दोष होने के बावजूद जो बदनामी हुई है,क्या उसका मुआवजा चुकाया जा सकता है?


🚩 निष्कर्ष 


न्यायपालिका की विश्वसनीयता बढ़ाने और निर्दोषों पर हुए अन्याय की अंशतः भरपाई करने के लिए, निर्दोषों को मुआवजा और गलत दोषारोपण करके सजा दिलवाने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए ताकि भविष्य में न्यायधीशों के गलत फैसले से, किसी निर्दोष की जिंदगी बर्बाद न हो पाएं।


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