Monday, January 22, 2018

श्री राम मंदिर की तरह माँ सरस्वती का प्रकटस्थल पर भी कब्जा किया हुआ है, जानिए इतिहास

January 22, 2018

इस्लामी आक्रमणकारियों ने जिस प्रकारसे अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि, मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं काशी के विश्वनाथ मंदिर को बलपूर्वक ले लिया था , उसी प्रकार का प्रयत्न वे धार (मध्यप्रदेश) की भोजशाला के विषय में कर रहे हैं । भोजशाला, अर्थात विद्या की देवी सरस्वती का प्रकटस्थल ! अपने अनेक प्रकार की विद्याओं का जनक भारतीय विश्वविद्यालय ! महापराक्रमी राजा भोज की तपोभूमि ! इस सरस्वतीदेवी के मंदिर में आज प्रत्येक शुक्रवार को ‘नमाज’ पढी जाती है । सहस्रों वर्ष से चल रहा इस भोजशाला मुक्ति का संघर्ष आज भी जारी है । अधर्मी शासन मतों की तुष्टीकरण राजनीति से प्रेरित होकर हिन्दुओं के आस्था केंद्रों की उपेक्षा कर रहा है । 
Like the Shri Ram Mandir, the premises of Mother Saraswati has also been captured, know history

सरस्वती देवी की प्रकटस्थली, अर्थात वाग्देवी मंदिर का इतिहास ! 

‘पूर्वकाल में मालवा राज्यके (वर्तमान मध्यप्रदेश के) परमार वंश में महापराक्रमी और महाज्ञानी राजा भोज (शासनकाल वर्ष 1010 से 1065) हुए । इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सरस्वती देवीने उन्हें दर्शन दिए थे ।  तत्पश्चात, राजा भोजने सुप्रसिद्ध मूर्तिकार मनथलद्वारा संगमरमर पत्थर से देवी की शांतमुद्रा में मनमोहक मूर्ति बनवाई । राजा भोज को जिस स्थानपर वाग्देवी के अनेक समय दर्शन हुए थे, उसी स्थानपर इस मूर्ति की स्थापना की गई

केवल सरस्वती देवी  प्रकटस्थली नहीं, अपितु भारत का सबसे बडा विश्वविद्यालय ! 

 राजा भोज ने ‘सरस्वतीदेवी की उपासना’, ‘हिन्दू जीवनदर्शन’ एवं ‘संस्कृत प्रसार’के लिए वर्ष 1034 में धार में भोजशाला का निर्माण किया । इस भोजशाला में भारतका सबसे बडा विश्वविद्यालय और विश्व  प्रथम संस्कृत अध्ययन केंद्र बना । इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश के 1 सहस्र 400 विद्वानों ने अध्यात्म, राजनीति, आयुर्वेद चिकित्सा, व्याकरण, ज्योतिष, कला, नाट्य, संगीत, योग, दर्शन इत्यादि विषयों का ज्ञान प्राप्त किया था । इसके अतिरिक्त इस विद्यालय में वायुयान, जलयान, चित्रकशास्त्र (कैमरा), स्वयंचलित यंत्र इत्यादि विषयों में भी सफल प्रयोग किए गए थे । एक सहस्र वर्षपूर्व राजा भोजके किए हुए कार्य को भारतीय शासकों ने दुर्लक्षित किया था, किंतु आज भी विश्व उसे आश्चर्यभरी दृष्टिसे देख रहा है । इस विषय में संसार के 28 विश्वविद्यालयों में अध्ययन और प्रयोग किए जा रहे हैं ।


राजा भोज के राज्य की अखंडता पर कपटसे आघात करनेवाला कमाल मौलाना’ 

राजा भोज के असामान्य कर्तृत्व के कारण उनके राज्यपर आक्रमण करने का साहस किसी को नहीं होता था । उनकी मृत्यु के लगभग 200 वर्ष पश्चात, इस राज्य की अखंडता पर पहला आघात किया सूफी संत के रूप में घूमनेवाले कमाल मौलाना ने ! वर्ष 1269 में मालवा में आए इस मौलाना ने यहां 36 वर्ष रहकर राज्य के तथा यहां के सर्व गुप्त मार्गों की जानकारी एकत्र की । इस काल में उसने इस्लाम का प्रचार, तंत्र-मंत्र, जादूटोना, गंडा-डोरा का योजनाबद्ध प्रयोग कर सैकडों हिन्दुओं को मुसलमान बनाया । इस स्थिति का अनुचित लाभ उठाते हुए अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा राज्यपर आक्रमण कर दिया ।

इस्लाम को अस्वीकार करनेवाले 1200 विद्वानों को यज्ञकुंड में जलाकर हत्या करनेवाला और वाग्देवी की मूर्ति का अंगभंग करनेवाला अलाउद्दीन खिलजी 

अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1305 में मालवा राज्यपर आक्रमण कर दिया । यह आक्रमण रोकने के लिए राजा महलकदेव और सेनापति गोगादेव जी-जानसे लडे । भोजशाला के आचार्यों और विद्यार्थियोंने भी खिलजीकी सेना का प्रतिकार किया । किंतु, इस युद्ध में वे पराजित हुए । खिलजीने 1200 विद्वानों को बंदी बनाकर इनके समक्ष प्रस्ताव रखा -‘इस्लाम धर्म अपना लो’ अथवा ‘मृत्यु’के लिए तैयार हो जाओ । उसने, मुसलमान बनना अस्वीकार करनेवालों की हत्या कर उनके शवों को भोजशाला के यज्ञकुंड में फेंक दिया तथा जिन लोगों ने मृत्युसे भयभीत होकर मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया, ऐसे कुछ मुट्ठी भर लोगों को विष्ठा स्वच्छ करने के कार्य में लगा दिया । खिलजी ने भोजशाला सहित हिन्दुओं के अनेक मानबिंदु स्थानों को उद्ध्वस्त किया । उसने वाग्देवी की मूर्ति का भी अंग-भंग किया तथा मालवा राज्य में इस्लामी शासन आरंभ किया ।

श्री सरस्वती मंदिर के कुछ भागका मस्जिद में रूपांतर करनेवाला हिन्दूद्वेषी दिलावर खां गोरी

खिलजी के पश्चात गोरीने वर्ष 1401 में मालवा राज्य को अपना राज्य घोषित किया तथा सरस्वती मंदिर का कुछ भाग मस्जिद में रूपांतरित कर दिया ।

भोजशाला को मस्जिद में बनाने के लिए उसे खंडित करने का प्रयत्न करनेवाला तथा कमाल मौलाना को महान बतानेवाला महमूदशाह खिलजी

गोरी के पश्चात महमूदशाह खिलजी ने वर्ष 1514 में भोजशाला को खंडित कर वहां मस्जिद बनाने का प्रयत्न किया । महमूदशाह के इस कुकृत्य का राजपूत सरदार मेदनीराय ने प्रबल प्रत्युत्तर दिया । इस प्रत्युत्तर की विशेषता यह थी कि महमूदशाह को चुनौती देने के लिए सरदार मेदनीराय ने मालवा राज्य के वनवासियों को प्रेरित किया । धर्मयुद्ध की प्रेरणा से संगठित वनवासियों की सहायता से मेदनीराय ने महमूदशाह के सहस्रों सैनिकों को मार डाला तथा 900 सैनिकों को बंदी बना लिया । अंततः, इस पराजय से भयभीत महमूदशाह ने गुजरात पलायन किया ।

महमूदशाह तो भाग गया; किंतु कमाल मौलाना की मृत्यु के 204 वर्ष पश्चात उसने अपने शासनकाल में, भोजशाला की बाहरी भूमिपर अवैध अधिकार कर वहां पर उसकी कब्र बना दी । यह कब्र आज भी हिन्दुओं के लिए सिरदर्द बनी हुई है । आज इस कब्र के आधारपर देवी सरस्वती के मंदिर को कमाल मौलाना की मस्जिद बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ।  प्रत्यक्ष में वर्ष 1310 में कमाल मौलाना की मृत्यु के पश्चात उसे कर्णावती (अहमदाबाद), गुजरात में दफना दिया गया ।

हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर मंदिर को मस्जिद में रूपांतरित करनेवाले (मौलाना) दिग्विजय सिंह !

सैकडों वर्ष से आरंभ भोजशाला पर आक्रमण के इतिहास में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात, 12.5.1997 को एक नया मोड आया, जब कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक अध्यादेश जारी कर अपना हिन्दूद्वेष प्रकट किया । इस अध्यादेश के अनुसार भोजशालाकी सर्व प्रतिमाओं को हटा दिया गया । वहां हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया गया । दिग्विजय सिंह का हिन्दूद्वेष इतने पर ही नहीं थमा, उन्होंने भोजशाला को मस्जिद होने की मान्यता दे डाली । उन्होंने, भोजशाला की रक्षा हेतु पराक्रमी हिन्दू राजाओं के और सैनिकों के बलिदान का अनादर करते हुए भोजशाला मुसलमानों को दे डाली । भोजशाला में नमाज पढने की अनुमति देकर उसे भ्रष्ट भी किया गया । इस अध्यादेश से पूर्व भोजशाला में हिन्दुओं की पूजा-अर्चनापर प्रतिबंध था; परंतु प्रवेश की अनुमति थी । यह अनुमति भी इस अध्यादेशद्वारा समाप्त कर दी गई । हिन्दुओं को वर्ष में केवल एक दिन वसंत पंचमीपर विविध प्रतिबंधात्मक नियमों के साथ भोजशाला में प्रवेश की अनुमति दी गई ।

वर्ष 2002 में तो हिन्दुओं को वर्ष में एक दिन दी गई भोजशाला प्रवेश की अनुमति में भी बाधा डाली गई । इस वर्ष की वसंत पंचमी समीप आनेपर कमाल मौलाना के जन्मदिन को निमित्त बनाकर भोजशाला में नमाज, कव्वाली और लंगर का आयोजन किया गया । तत्कालीन कांग्रेसी शासनने भी हिन्दुओंपर पहलेसे अधिक कडा नियम बनाकर धर्मांधों को  प्रोत्साहित किया । इस परिवर्तित नियम के अनुसार वसंत पंचमी के दिन हिन्दुओं को दिनके 1 बजेतक ही पूजा-अर्चना करने की तथा मंदिर में अकेले प्रवेश करने की अनुमति दी गई । सबके लिए एक ढोलक, एक ध्वनिक्षेपक और ध्वज भी एक होगा । दोपहर 2 बजे के पश्चात मुसलमानोंका कव्वाली और लंगर का कार्यक्रम आरंभ होगा, यह आदेश प्रशासन ने जारी किया ।

न्यायोचित धार्मिक अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाले हिन्दुओं पर किए गए अगणित अत्याचार !

हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन करनेवाले प्रशासनिक आदेशको अमान्य कर सहस्रों हिन्दू भोजशाला में पूजा करने आए । उस दिन राजकीय अवकाश होनेके कारण हिन्दुओंको अपनी न्यायोचित मांगोंके लिए भी कोई मंच उपलब्ध नहीं था । हिन्दूद्वेषी शासकोंके आदेशसे पुलिस कर्मियोंने यज्ञ करने भोजशालामें जानेवाले युगलोंको रोका, गालियां दी तथा महिलाओंके हाथसे पूजाकी थाली छीनकर फेंक दी । हिन्दुओंको धक्के मारकर पीछे ढकेला तथा बिना कोई पूर्वसूचना दिए श्रद्धालुओंपर लाठी प्रहार किया । यह सब सहकर भी हिन्दुओंने कठोर विरोध करते हुए भोजशालामें यज्ञ और सरस्वतीदेवीकी महाआरती पूर्ण की । हिन्दुओंके इस सफल कृत्यसे क्रुद्ध कांग्रेसी राज्यशासनने देवीकी पूजा करनेके अपराधमें 40 कार्यकर्ताओंपर पुलिसकी दैनंदिनीमें असत्य आरोप प्रविष्ट किए । शासनकी इस दमननीतिका प्रत्युत्तर देनेके लिए सहस्रों लोगोंने धार जनपदके सर्व पुलिस थानोंका घेराव कर अपनेआपको बंदी बनवाया । तत्पश्चात, सत्याग्रहके रूपमें प्रत्येक मंगलवारको भोजशालाके बाहर मार्गमें आकर ‘सरस्वती वंदना’ और ‘हनुमान चालीसा पढना’ प्रारंभ किया गया ।

असंख्य अत्याचारोंका भय त्यागकर भोजशालाको मुक्त करनेके ध्येयसे व्यापक संगठन खडा करनेवाले धर्माभिमानी हिन्दू !

कांग्रेसी शासनकी दमननीतिका अनुभव करनेवाले हिन्दुओंने किसी भी परिस्थितिमें वर्ष 2003 तक भोजशाला हिन्दुओंके लिए मुक्त करनेके उद्देश्यसे व्यापक जनजागरण कर ‘धर्मरक्षक संगम’ सभा आयोजित करनेका निश्चय किया । इन सभाओंको व्यापक जन समर्थन मिलता देखकर घबराए दिग्विजय सिंह शासनने ‘धर्मरक्षक संगम’को विफल बनानेके लिए प्रयत्न आरंभ कर दिए । कांग्रेसी शासनने अत्यंत निम्नस्तरपर जाकर निम्नानुसार दुष्टताका हथकंडा अपनाकर हिन्दुओंके संगठनमें बाधाएं उपस्थित करनेका प्रयत्न किया –

1 शासनने, इस कार्यक्रमके प्रचारके लिए चिपकाए गए 20 सहस्र भित्ति-पत्रकोंको पुलिसकर्मियोंके हाथों फडवा दिया अथवा उनपर कोलतार पोतवा दिया । 

2. वसंत पंचमी समीप आनेपर ही राज्य शासनने ‘ग्राम संपर्क  अभियान’ आरंभ कर उसमें 19 सहस्र हिन्दू राजकीय सेवकोंको नियुक्त किया । 

३. ‘धर्मरक्षक संगमके कार्यक्रममें उपद्रव एवं बमविस्फोट होंगे’,यह भय फैलाकर लोगोंको कार्यक्रममें जानेसे रोका ।  

4. वसंत पंचमीके केवल पांच दिन पूर्व धारस्थित सर्व धर्मशाला, पाठशाला, ‘लॉज’ और बसगाडियोंको अधिगृहीत कर लिया गया तथा निजी वाहनवालोंको धमकाया ।  

5. गांवोंमें 5 सहस्र सैनिकोंका पथसंचलन (परेड) करवाकर भयका वातावरण उत्पन्न किया ।

6. वसंत पंचमीके दिन राज्यशासनने 16 केंद्रोंमें 32 विभागोंसे संबंधित जनसमस्याओंका निवारण करनेके लिए शिविरोंका आयोजन किया । इस शिविरमें प्रस्तुत की गई सभी समस्याओंका निवारण तुरंत किया, जिन्हें पहले करनेमें अनेक फेरे मारने पडते थे । इसी प्रकार, इस शिविरमें सहस्रों लोगोंको निःशुल्क भोजन दिया ।

कांग्रेसी शासनके उपर्युक्त हिन्दूद्रोही षड्यंत्रको विफल करते हुए 1 लाखसे अधिक हिन्दू धर्माभिमानी ‘धर्मरक्षा संगम’में उपस्थित हुए थे । इस सभामें शासनको चेतावनी दी गई कि वह भोजशालाको हिन्दुओंके लिए प्रतिबंधमुक्त करे । इस आंदोलनकी तीव्रता देखकर तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन और सांस्कृतिक मंत्री श्री. जगमोहनने भोजशालाको प्रतिबंधमुक्त करनेके लिए मध्यप्रदेशके मुख्यमंत्रीको पत्र लिखा था । तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंहने इस पत्रको कूडेके डिब्बेमें फेकते हुए भोजशालाको कमाल मौलानाकी मस्जिद घोषित कर वहां पूजा करने जानेवाले हिन्दुओंको कारागृहमें डाल दिया तथा उन्हें जानसे मारनेकी धमकी भी दी । यह शासन इतनेपर ही नहीं रुका; उसने पुलिसबलका प्रयोग कर हिन्दुओंका दमन आरंभ कर दिया । इन सर्व अत्याचारोंमें भी अडिग रहकर हिन्दुओंने संगठित होकर जो संघर्ष किया, उसके परिणामस्वरूप 698 वर्ष पश्चात 8.4.2003 को प्रतिदिन दर्शन और प्रत्येक मंगलवारको केवल अक्षत-पुष्पके साथ भोजशालामें प्रवेशको स्वीकृति दी गई । भोजशाला सरस्वती देवीका मंदिर है, यह शासनने स्वीकार किया । वर्षमें केवल वसंतपंचमीपर कुछ प्रतिबंधोंके साथ पूजा करनेकी अनुमति दी गई । दूसरी ओर मुसलमानोंको प्रति शुक्रवार नमाज पढनेकी अनुमति दी गई, जो आजतक चल रही है ।

हिन्दुओंके वसंत पंचमीके उत्सवमें नमाज पढनेकी अनुमति देनेवाला मुसलमानप्रेमी भाजपा शासन !

वर्ष 2003 के पश्चात थोडी-थोडी स्वीकृत मांगोंको मानकर हिन्दू भोजशालामें दर्शनके लिए जाने लगे थे । वर्षमें एक ही दिन वसंत पंचमीको उन्हें वास्तविक अर्थोंमें भोजशालामें विधि-विधानसे पूजा-अर्चना करनेकी अनुमति थी । वर्ष 2006 में शुक्रवारको ही वसंत पंचमी आनेके कारण हिन्दुओंने राज्यशासनसे मांग की कि आजके दिन यहां नमाज न पढने दी जाए, केवल हिन्दुओंको पूजाकी अनुमति मिले, जिसे शासनने अमान्य कर दिया । भारतीय जनता पार्टीके मुख्यमंत्री शिवराज सिंहने मुसलमानोंको संतुष्ट रखनेके लिए तथा अपने दलकी धर्मनिरपेक्ष छवि बनानेके लिए भोजशालाकी यज्ञाग्नि बुझाकर मुसलमानोंको नमाज पढनेकी अनुमति दी । भाजपा नेताओंने हिन्दुओंको फुसलाकर भोजशाला खाली करवाई । दूसरी ओर संत और उपस्थित हिन्दुओंपर गोलियां बरसा कर उन्हें वहांसे भगा दिया गया । इस मार-पीटमें 74 हिन्दू गंभीर रूपसे घायल हुए । हिन्दुओंको पीटनेके साथ-साथ 164 हिन्दुओंपर हत्याके प्रयत्न करनेका अपराध भी प्रविष्ट कर दिया । वहीं, मुसलमानोंको पुलिसके वाहनोंमें बैठाकर वहां नमाज पढनेके लिए सब प्रकारसे सहायता की ।

सरस्वती देवीको बंदीगृहमें रखनेवाले भाजपाके मुख्यमंत्री !

वर्ष 2006 के पश्चात पुनः वर्ष 2011 में  भाजपा शासनका हिन्दूद्वेषी रूप दिखा । राजा भोजकी जन्मशताब्दीपर धारके हिन्दुओंने सरस्वती देवीकी भव्य पालकी यात्रा आयोजित की थी । ‘लंदनके संग्रहालयमें रखी वाग्देवीकी मूर्तिको लाकर भोजशालामें स्थापित करूंगा’, ऐसी गर्जना करनेवाले; किंतु सत्तामदसे उन्मत्त भाजपाने मंदिरमें स्थापित वाग्देवीकी नवीन मूर्तिका अधिग्रहण कर बंदीगृहमें डाल दिया; पालकी यात्राके समारोहपर प्रतिबंध लगा दिया एवं इस समारोहका आयोजन करनेवाले कार्यकर्ताओंको भी कारागृहमें डाल दिया । इन कुकृत्योंका जब हिन्दुओंने तीव्र विरोध किया, तब यह मूर्ति हिन्दुओंको हस्तांतरित कर कार्यकर्ताओंको कारागृहसे मुक्त किया गया ।

वाग्देवीकी मूर्तिका पुनः अधिगृहण करनेवाले प्रशासनके षड्यंत्रमें सम्मिलित न होनेवाले हिन्दुत्ववादियोंको यातनाएं देनेवाला भाजपा शासन !

वर्ष 2012 में भाजपा शासनने पुनः वसंत पंचमीके पूर्व वाग्देवीकी मूर्तिको बंदीगृहमें डालकर सरस्वती जन्मोत्सवपर प्रतिबंध लगा दिया । शासनके इस कृत्यका असमर्थन करनेवाले संघ कार्यकर्ताओंके परिजनोंकी दुर्दशा की गई । तब मूर्तिको कारागृहसे मुक्त करनेके तथा जन्मोत्सवके लक्ष्यसे प्रेरित हिन्दुओंने आमरण अनशन प्रारंभ किया । लोकतंत्रद्वारा स्वीकृत अनशनसमान शांतिपूर्ण मार्गसे होनेवाले आंदोलनको भी शासनने कुचल दिया । स्तोत्र : हिन्दू जन जागृति https://www.hindujagruti.org/hindi/news/1140.html#1

आज हिन्दुओंको अपना धर्मिक अधिकार प्राप्त  करनेके लिए  प्रभावशाली हिन्दू संगठनकी आवश्यकता है। तभी मुगलों द्वारा कब्जा किये हिये मन्दिर मिलेगें नही तो सरकार या न्यायालय कोई सहायता नही करेंगे।

Sunday, January 21, 2018

सोशल मीडिया पर जनता बता रही है बापू आसारामजी का केस बोगस है

January 21, 2018
दिल्ली, कमला नेहरू मार्केट पुलिस थाने में हिन्दू संत आसाराम बापू के खिलाफ छेड़छाड़ के आरोप के तहत जीरो एफआईआर 19 अगस्त 2013 को मध्यरात्रि 2:45 पर दर्ज होती है, उसके बाद लोकनायक अस्पताल, दिल्ली के डॉ. राजेन्द्र कुमार व डॉ. शैलजा वर्मा द्वारा लड़की की मेडिकल जाँच हुई ।
31 अगस्त 2013 को रात्रि 12 बजे हिन्दू संत आशाराम बापू को इंदौर (मध्यप्रदेश) से गिरफ्तार करके जोधपुर सेंट्रल जेल में न्यायिक हिरासत में रखा गया। जिसे अभी करीब 4 साल 4 महीने हो गए हैं । जोधपुर सेशन कोर्ट में चल रहा उनका केस अंतिम पड़ाव पर है।  इन सवा 4 सालों में उनके खिलाफ अभीतक एक भी पुख्ता सबूत नही मिला है । फिर भी उनको न्यायिक हिरासत में रखा जा रहा है, इसलिए जनता आक्रोश में है और आज सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद करते हुए फिर से बापू आसारामजी के लिए जमानत और रिहाई की मांग कर रही है ।

Public on the social media is telling people the case of Bapu Asaramji is bogas

इनका कहना है कि ये न्याय व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप है जो अभिनेता सलमान खान को दोष सिद्ध होने पर भी तुरतं जमानत देता है, पत्रकार तरुण तेजपाल को आरोप सिद्ध होने पर भी छोड़ देता है, अमीर विजय माल्या को 9000 करोड़ लेकर भागने पर भी मजे से घूमने की आजादी देता है । अरबों का घोटाले करने वाले नेताओं को भी जमानत देता  है, पर 81वर्षीय बुजुर्ग हिन्दू संत बापू आशारामजी क्यों जमानत तक नहीं देता जबकि उनकी निर्दोषता के सैकड़ों प्रमाण कानून के सामने हैं और उनके द्वारा हुए समाज उत्थान के कार्यों से भी सरकार अनभिज्ञ नहीं है ।
सुब्रमण्यम स्वामी जी के अनुसार लड़की FIR में जिस समय छेड़छाड़ की घटना का आरोप लगाती है उस समय की कॉल डिटेल के अनुसार लड़की अपने मित्र से लंबी चर्चा पर थी ।
डॉ. शैलजा की मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार लड़की के शरीर पर एक भी खरोंच का निशान नहीं पाया गया ।
और कुछ ऐसे तथ्य सामने आये हैं जो अत्यंत संदेहास्पद हैं ।
-FIR घटना के 5 दिन बाद की गई ।
- FIR करते समय हुई वीडियो रिकॉर्डिंग गायब कर दी गई ।
- FIR और उसकी कार्बन कॉपी में अंतर पाया गया ।
- रजिस्टर के कई पन्ने फाड़ें गए।
- FIR 2 दिन बाद न्यायालय में यानि 21 अगस्त को पेश की गई ।
- अलग-अलग सर्टिफिकेट में लड़की की अलग-अलग डेट ऑफ बर्थ पाई गई ।
आज दिन भर ट्वीटर पर #BogusCaseOnBapuj हैशटैग टॉप ट्रेंड में रहने के साथ-साथ आसारामजी बापू keyword भी टॉप पर ट्रेंड करता रहा ।
जिसमें जनता द्वारा अलग-अलग प्रतिक्रिया देकर बापू आशारामजी के केस को बोगस बताया गया और जमानत की मांग के साथ-साथ उन्हें जल्द रिहा करने की मांग की गई ।
हम अपने पाठकों के समक्ष कुछ नमूने रखते हैं ।
1} जयंत कहते है कि कथित घटना की लड़की के रजिस्ट्रेशन फॉर्म,उसके LIC के कागजातों की तिथि से उसके बालिग होने की पुष्टि होती है,तो कानून ने क्यों Asaram Bapu Ji को जेल भेजा?
#BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/jay_om9/status/955033584099672064
2} नंदकिशोर लिखते है कि सामान्य जनता भी संत Asaram Bapu Ji के पीछे हो रहे षड्यंत्र से वाकिफ है पर सरकार क्यों नही? #BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/Nands90940180/status/955034041501102080
3} संजीत ने लिखा है कि कथित घटना के वक्त लड़की को Sant Asaram Bapu Ji के कमरे में जाते हुए किसी ने देखा ही नहीं इतने बड़े पुख्ता सबूत के बावजूद वे कारावास भेज दिए गए। क्यों?
#BogusCaseOnBapuji https://twitter.com/Micky27S/status/955031609387892736?s=08
4} कृष्णा लिखती हैं कि लड़की की आयु से सम्बंधित जांच में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का भी उलंघ्नन किया गया,कानूनी देख रेख में, उद्देश्य था Asaram Bapu Ji को फँसा कर जेल भिजवाना।
#BogusCaseOnBapuji https://twitter.com/KriSHnA_1052/status/955032058153390080
5} शंकर ने लिखा है कि MEDIA द्वारा लगातार मिशनरियों से पैसे खाये जा रहे हैं Sant Asaram Bapu Ji की उज्ज्वल छवि खराब करने हेतु।
#BogusCaseOnBapuji https://twitter.com/ShankarJio/status/955031023191912448?s=08
6} अशोकि कह रहे हैं कि वाह ! हमारी PAID MEDIA !!
जो दिखाया उसका केस से कोई लेना-देना नहीं है;
और जो इस बोगस केस का मुख्य तथ्य है, उसे लोगों को बताया नहीं !!
#BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/ashokihariom/status/955029894274072576
7} मोहित ने लिखा है कि छेड़छाड़ के केस में मेडिकल जांच और POCSO केस में उम्र का दाखला महत्वपूर्ण माना जाता हैं जो दोनो भी लड़की के खिलाफ हैं...लड़की के बालिग होने पर केस ही नही बनते! #BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/MehraMohit20/status/955036655580262401?s=09
8} पूनम लिखती हैं कि एक निर्दोष संत को जेल क्यों !!
क्या इसकी जाँच नहीं होनी चाहिए थी -
-> इंवेस्टिगेशन ऑफिसर चंचल मिश्रा द्वारा कॉल कॉल डिटेल्स को मिटाना
-> ASI पुष्पलता द्वारा FIR के पन्नों को फाड़ा जाना;
-> लड़की व संदिग्ध व्यक्ति के बीच एक महीने में 1055 SMS होना
#BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/poonamrajveer/status/955039486324359169?s=08
9} वारिचा कहती हैं कि बाल की खाल निकालने में माहिर हमारी न्यायपालिका को संत श्री Asaram Bapu Ji के बोगस केस में न्याय देने में विलंब क्यों ?
जबकि निर्दोषता के सब सबूत पहले ही कोर्ट में पेश किये जा चुके हैं.. आश्चर्य है !
#BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/Varicha9/status/955036647057313792
10} मिहिर लिख रहे हैं कि अन्य धर्मों के लोग भी आज Sant Asaram Bapu Ji की निर्दोषता जान चुके हैं उनकी BAIL हेतु आवाज उठा रहे है पर सरकार ही गूंगी बहरी है शायद।
#BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/mvjoshi2978/status/955045521814568960?s=08
11} गार्गी ने क्या खूब लिखा है गार्गी लिखती हैं कि कमाल की न्याय व्यवस्था !!
पद्मावत पर फैसला रातो रात
और श्री राम कबसे बैठे तिरपाल में
न्याय के इंतजार में।
और लोग पूछते हैं आसाराम बापू निर्दोष हैं तो जेल में क्यो हैं। अभी तक फैसला क्यो नही आया?
दर्द तो हमारा भी यही है कि अभी तक फैसला क्यों नही आया?
#BogusCaseOnBapuji
https://twitter.com/gargi088/status/954969548448346112
जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि बापू आशारामजी को जेल में भारत की कई जानी-मानी हस्तियां मिलकर आई जिनमें मुख्य डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, सुदर्शन न्यूज़ के सुरेश चव्हाणके, स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल, वंजारा जी, साध्वी सरस्वती, महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती, साध्वी देवा ठाकुर आदि रहे ।
गौरतलब है कि जबसे बापू आशारामजी को न्यायिक हिरासत में भेजा गया है तबसे लेकर आजतक उनको जमानत दिलवाने के लिए अनगिनत धरने व रैलियां निकाली गई, समय-समय पर सोशल मीडिया पर ट्रेंड चले, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के नाम से ज्ञापन भी दिये गये लेकिन अभीतक उनको न्यायालय द्वारा राहत नही मिली ।
जिसके कारण आज फिर जनता में न्यायालय और सरकार के प्रति आक्रोश देखा गया । अब देखना ये है कि लोकतांत्रिक देश में सरकार और न्यायालय तक जनता की आवाज कब पहुँचती है ??

Saturday, January 20, 2018

सिनेमाघरों का फैसला: गुजरात में नही चलेगी पद्मावत फिल्म, करनी सेना ने भी दी धमकी

January 20, 2018

पद्मावती फिल्म के संजय भंसाली ने जबसे शूटिंग शुरू की है तब से विवादों में घिरा हुआ है, माँ पद्मावती के साथ खिलवाड़ हिन्दुओं को पसंद नही है इसलिए उसका पुरजोर से विरोध कर रहे है।

आपको बता दें कि कुछ दिन पहले सेंसर बोर्ड ने पद्मावती नाम बदलकर पद्मावत कर दिया, फिर भी कई राज्यों ने बेन करके रखा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऑडर दे दिया कि सभी राज्यों में चलनी चाहिए अब उसको हरि झंडी मिल गई है ।

 यहाँ सोचने वाली बात ये है कि आम जनता का 20-20 साल तक कोर्ट में केस चलता है फिर भी उनको न्याय नही मिलता, लेकिन पद्मावत फ़िल्म को 36 घण्टे में ही फैसला दे दिया गया कि सभी राज्यों में रिलीज की जाये, ये आम जनता के साथ धोखा नहीं तो और क्या है ??? जिसे आम जनता समझ रही है ।
Decision of cinemas: Padmavat film will not run in Gujarat, Karani army also threatens

सुप्रीम कोर्ट ने पद्मावत को सभी राज्यों में चलाने का आदेश तो दे दिया लेकिन गुजरात सिनेमाघरों के मालिकों ने एक अहम निर्णय लेते हुए कहा है कि #पद्मावत गुजरात राज्य के सिनेमाघरों में नहीं दिखाएंगे। 

गुजरात में मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन की बैठक हुई और सिनेमा हॉल के मालिकों ने भंसाली की फिल्म पद्मावत का बहिष्कार कर दिया, सिनेमा हॉल मालिकों ने ऐलान किया कि वो भंसाली की फिल्म अपने सिनेमा हॉल में लगाएंगे ही नहीं, न लगेगी भंसाली की फिल्म और न ही इस बेहूदा फिल्म को कोई देखेगा ।

सिनेमा हॉल के मालिकों ने फिल्मी धंधे को नहीं बल्कि हिन्दू स्वाभिमान को महत्त्व दिया  है, मीडिया के लोग भंसाली की फिल्म का समर्थन कर रहे हैं, बहुत से नेता भी भंसाली की फिल्म का समर्थन कर रहे हैं, ये समर्थन इसलिए कर रहे हैं क्यूंकि भंसाली ने करोडो रुपए का खर्च इनपर भी किया है, पर गुजराती सिनेमा हॉल मालिकों ने हिन्दू स्वाभिमान को झुकने नहीं दिया और भंसाली की बेहूदा फिल्म पद्मावत का बहिष्कार कर दिया ।

 सर्वोच्य न्यायपालिका ने 25 जनवरी को इस फिल्म को देश भर के सिनमाघरों में रिलीज करने के आदेश दे दिए है। लेकिन कोर्ट के इस फैसले का पूरे देश में हिन्दू समाज विरोध कर रहा है। लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जल्दबाजी में यह निर्णय लिया है। इससे पहले भी देश में उन फिल्मों को बैन किया गया है, जिनमें इतिहास के साथ छेड़-छाड़ की गयी थी, तो कोर्ट ने इस बार क्यूँ पद्मावत को बैन नहीं किया? क्या सुप्रीम कोर्ट पर उनके ही जजों द्वारा लगाये आरोप सही है? वहीं कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि कोर्ट का ये निर्णय निंदनीय है।

करणी सेना के लोकेंद्र सिंह कालवी ने कहा है कि पद्मावत फिल्म अगर सिनेमा हॉल में लग गई तो यह मेरी मृत्यु के समान होगी। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि किसी भी पिक्चर हॉल को खून से लिखे इतिहास पर कालिख नहीं पोतने देंगे।

कालवी ने फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली पर निशाना साधते हुए कहा कि मुंबई में बैठे कुछ लोग अपने मन मुताबिक इतिहास को परिभाषित कर रहे हैं, जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। कालवी ने कहा कि भंसाली के पैसों से ज्यादा हमारी माताओं, बहनों की इज्जत है। जिसे किसी भी हाल में सिनेमाघरों में प्रदर्शित नहीं होने देंगे, चाहे इसके लिए जान ही क्यूँ न देनी पड़े । उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि यह फिल्म लगी तो बहुत कुछ जल जाएगा।

बता दें कि उपदेश राणा ने तो पद्मावत फ़िल्म चलने पर फेसबुक पर लाइव आकर आत्मदाह करने को कहा है ।

पूरे हिन्दुस्तान में पद्मावत फ़िल्म का विरोध हो रहा है लेकिन न सरकार सुन रही है और न ही न्यायालय।
भारत में सबसे मजबूत भावना हिन्दुओं की ही है वो कभी आहत होती ही नहीं है, या यूँ कहें सत्ता के दलाल और दोगले मिलार्ड हिन्दुओं की भावना को भावना समझते ही नहीं हैं।

🚩#हिन्दू धर्म के #खिलाफ #बॉलीवुड की #घिनौनी #साजिश...
   
🚩#हिंदूधर्म को #नष्ट #करने के लिये #बॉलीवुड में अनेकों #प्रयास किये जा रहे हैं और जब विषय हमारी श्रद्धाओं का होता है तो बॉलीवुड,मीडिया अक्सर उसे गलत ढंग से दर्शाता है जैसे मूवी में डाकूओं और विलेन  का तिलक लगाना, मूर्ति पूजा को गलत ठहराना, गंदे-गंदे एक्शन और गानों में राम नाम और श्रीकृष्ण नाम को रटना, साधुओं को पाखंडी साबित करने का प्रयास करना, धार्मिक भजनों पर महिलाओं को नग्न करके नचाना आदि...!!!

🚩आज के युवावर्ग में अपनी हिन्दू संस्कृति के प्रति कूट कूट कर #नकारात्मकता भरी जा रही है और नशे और #चरित्रहीनता का शिकार बनाया जा रहा है।

🚩धार्मिक स्तर पर उनके विश्वास को तोडा जा रहा है।

🚩उदाहरण के तौर पर बेहतरीन शराबी गानों को परोसना और उसमें नग्न महिलाओं को भड़कीले तरीके से नचाना आदि ।

🚩ये सब देखकर कम उम्र के युवा निर्णय लेने की क्षमता को खोते जा रहे हैं और इन भद्दे और वेश्यावृति के अश्लील गानों पर थिरकते हैं और अपने व्यक्तित्व को भी उन्हीं के अनुसार ढाल रहे हैं।

🚩उन्हें देखकर स्पष्ट है कि मैकॉले ने जो सपना देखा था भारत को धार्मिक और चारित्रिक रुप से नष्ट करके गुलाम बनाये रखने का, आज वह सत्य प्रतीत हो रहा है।

🚩परन्तु भारत कोई जमीन का टुकडा नहीं अपितु ये हमारे महान ऋषि मुनियों और वीरों के तप और बलिदान से सींची धरोहर है।

🚩हमें खुशी है कि आज उन्हीं ऋषियों और वीरों की संतानों ने फिर जन्म लिया है और वही इन गलत कृत्यों का विरोध भी कर रहे हैं और अगर हम सभी संगठित हो जायें तो शीघ्र ही इन सभी बुराईयों को जड़ से उखाड कर फैंक सकते हैं ।

🚩#बॉलीवुड केवल #हिन्दू #भगवान, #देवी-देवता और #साधू-संतों के #विरोध में ही क्यों? 
अन्य धर्मों के लिए #क्यों #नही?

🚩आओ संगठित होकर #चरित्रहीनता की  खाई में गिराने वाले #बॉलीवुड और #मीडिया को #मुँहतोड़ #जबाब दें,और अपने #देश को #विश्वगुरु के पद तक पहुँचाने में सहयोगी हो।

🚩उठाइये अपनी आवाज अभी से #बॉलीवुड #मुर्दाबाद, #हिन्दू संस्कृति #जिंदाबाद ।


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Friday, January 19, 2018

कश्‍मीरी पंडितों पर भयंकर अत्याचार, 20 जनवरी को काफिर करार दिया गया था

January 19, 2018

🚩20 जनवरी जब-जब यह तारीख आती है, #कश्‍मीरी #पंडितों के जख्‍म हरे हो जाते हैं। यही वह तारीख है जिसने #जम्‍मू कश्‍मीर में बसे कश्‍मीरी पंडितों को अपने ही #देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर कर दिया। इस तारीख ने उनके लिए जिंदगी के मायने ही बदल दिए थे।

🚩कश्‍मीरी पंडितों को बताया काफिर!!

🚩20 जनवरी 1999 को कश्‍मीर की मस्जिदों से कश्‍मीरी पंडितों को काफिर करार दिया गया। #मस्जिदों से लाउडस्‍पीकरों के जरिए ऐलान किया गया, 'कश्‍मीरी पंडित या तो मुसलमान धर्म अपना लें, या चले जाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें।' यह ऐलान इसलिए किया गया ताकि #कश्‍मीरी पंडितों के घरों को पहचाना जा सके और उन्‍हें या तो इस्‍लाम कुबूल करने के लिए मजबूर किया जाए या फिर उन्‍हें मार दिया जाए।
Fierce tyranny on Kashmiri Pandits was declared kaphar on January 20

🚩14 सितंबर, 1989 को बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या से कश्मीर में शुरू हुए आतंक का दौर समय के साथ और वीभत्स होता चला गया।

🚩टिक्कू की हत्या के महीने भर बाद ही जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनाने वाले सेवानिवृत्त सत्र #न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई। फिर 13 फरवरी को श्रीनगर के टेलीविजन #केंद्र के निदेशक लासा कौल की निर्मम हत्या के साथ ही आतंक अपने चरम पर पहुंच गया था। उस दौर के अधिकतर #हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओं और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की।

🚩1989 के बाद कश्मीर घाटी में हिन्दुओं के साथ हुए नरसंहार से कश्मीरी पंडित और सिख भी वहां से पलायन कर गए। कश्मीर में वर्ष 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोडकर चले गए। उस समय हुए नरसंहार में हजारों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। #आतंकियों ने #सामूहिक #बलात्कार किया और उसके बाद मार-मारकर उनकी #हत्या कर दी। घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में बडी संख्या में महिलाओं और लडकियों के साथ सामूहिक बलात्कार और #लड़कियों के #अपहरण किए गए। 

🚩कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। आतंकी संघटन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड दी। करोडों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोडकर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी ।

🚩घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई थी। कश्मीर में आतंकवाद के चलते लगभग 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे। कभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक क्षेत्र में हिन्दुओं और शियाओं की तादाद बहुत होती थी परंतु वर्तमान में वहां हिन्दू तो एक भी नहीं बचा और शिया समय-समय पर पलायन करके भारत में आते रहे जिनके आने का क्रम अभी भी जारी है ।

🚩विस्थापित कश्मीरी पंडितों का एक संघटन है ‘पनुन कश्मीर’ ! इसकी स्थापना सन 1990 के दिसंबर माह में की गई थी। इस संघटन की मांग है कि, कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कश्मीर घाटी में अलग राज्य का निर्माण किया जाए। पनुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे। परंतु 1989 से 1995 के बीच नरसंहार का एक ऐसा दौर चला कि, पंडितों को कश्मीर से पलायन होने पर मजबूर होना पडा ।

🚩आंकडों के अनुसार, इस नरसंहार में 6,000 कश्मीरी पंडितों को मारा गया। 7,50,000 पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। 1,500 मंदिर नष्ट कर दिए गए। कश्मीरी पंडितों के 600 गांवों को इस्लामी नाम दिया गया। केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल 808 परिवार रह रहे हैं तथा उनके 59,442 पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं। कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन से पहले से पहले वहां उनके 430 मंदिर थे। अब इनमें से मात्र 260 सुरक्षित बचे हैं जिनमें से 170 मंदिर क्षतिग्रस्त हैं !

🚩डर की वजह से वापस लौटने से कतराते!!

🚩आज भी कश्‍मीरी पंडितों के अंदर का #डर उन्‍हें वापस लौटने से रोक देता है। #कश्‍मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ने से पहले अपने घरों को कौड़‍ियों के दाम पर बेचा था। 28 वर्षों में कीमतें तीन गुना तक बढ़ गई हैं। आज अगर वह वापस आना भी चाहें तो नहीं आ सकते क्‍योंकि न तो उनका घर है और न ही घाटी में उनकी जमीन बची है। 

केंद्र #सरकार कब हिंदुओं के नाम से जाने वाले हिंदुस्तान में हिंदुओं को #सुरक्षित करेगी ?

🚩कश्मीरी पंडितों की आज की स्थिति

🚩आज 4.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने देश में ही शरणार्थी की तरह रह रहे हैं।  पूरे देश या विदेश में कोई भी नहीं है उनको देखने वाला । उनके लिए तो मीडिया भी नहीं है जो उनके साथ हुए अत्याचार को बताये । कोई भी सरकार या पार्टी या संस्था नहीं है जो कि विस्थापित कश्मीरियों को उनके पूर्वजों के भूमि में वापस ले जाने की बात करे । कोई भी नहीं इस दुनिया में जो कश्मीरी पंडितो के लिए "न्याय" की मांग करे । पढ़े लिखे कश्मीरी पंडित आज भिखारियों की तरह पिछले 24 सालो से टेंट में रह रहे है । उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं, पीने के लिए पानी तक की समस्या है। भारतीय और विश्व की मीडिया, मानवाधिकार संस्थाए गुजरात दंगो में मरे 750 मुस्लिमों (310 मारे गए हिन्दुओं को भूलकर) की बात करते हैं, लेकिन यहाँ तो कश्मीरी पंडितों की बात करने वाला कोई नहीं है क्योकि वो हिन्दू हैं। 20,000 कश्मीरी हिन्दू तो केवल धूप की गर्मी सहन न कर पाने के कारण मर गए क्योकि वो कश्मीर के ठन्डे मौसम में रहने के आदी थे ।

🚩अभी तो उच्चतम न्यायालय ने कश्मीर में 27 वर्ष पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की दोबारा जांच के निर्देश देने से इनकार कर दिया है । अब तो कश्मीरी पंडितों के लिये कोई चारा नहीं बचा है।

🚩कश्मीरी पंडितो और भारतीय सेना के खिलाफ भारतीय मीडिया का षड्यंत्र -

🚩आज देश के लोगों को कश्मीरी पंडितों के मानवाधिकारों के बारे में भारतीय मीडिया नहीं बताती है लेकिन आंतकवादियों के मानवाधिकारों के बारे में जरुर बताती है । आज सभी को यह बताया जा रहा था है कि #ASFA नामक कानून का #भारतीय सेना #द्वारा काफी ज्यादा #दुरूपयोग किया जाता है । कश्मीर में अलगाववादी संगठन मासूम लोगों की हत्या करते है और भारतीय सेना के जवान जब उन आतंकियों के खिलाफ कोई करवाई करते हैं, तो यह अलगाववादी नेता अपने खरीदी हुई मीडिया की सहायता से चीखना चिल्लाना शुरू कर देते हैं, कि देखो हमारे ऊपर कितना अत्याचार हो रहा है !

🚩हिंदुस्तान में #सेक्युलर राजनीति #सेक्युलर नेता, #सेक्युलर लोकतंत्र, #सेक्युलर संविधान, #सेक्युलर न्यायापालिका से हिन्दुओं को उम्मीद रखने की जरूरत नही है क्योंकि ये कभी हिंदुओं की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरेंगे ।

🚩 #हिंदुओं को सरकार, #न्यायालय द्वारा कोई सहायता या न्याय न मिलने का एक कारण ये भी है कि हिंदुओं में एकता नही है, जिस दिन #एकता हो जायेगी उस दिन से सब सही हो जाएगा ।

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Thursday, January 18, 2018

12 लाख रुपये आयकर भरनेवाला, आयआयटी इंजीनियर नौकरी छोड़कर लेगा दीक्षा

January 18, 2018

भारत एक आध्यात्मिक देश है । आध्यात्मिक जगत की गहराइयों में पहुँचाने वाले ऋषि-मुनियों ने ऐसी खोजें की है कि आज का वैज्ञानिक कल्पना भी नही कर सकता, आज के कई वैज्ञानिक तो ऋषि-मुनियों की खोजी हुई खोजों को उनके साहित्य द्वारा पढ़कर खोज करते हैं और अपने नाम का लेबल लगा देते हैं, लेकिन ऋषि-मुनियों ने योग-साधना द्वारा कितनी खोजें की, उस पर प्रकाश नहीं डालते ।
Income tax refund of 12 lakh rupees, IIT engineer will quit job

आज की युवापीढ़ी भी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित है और अशांत, खिन्न , चिंतामय जीवन व्यतीत कर रही है । अपनी चिंताओं को मिटाने के लिये शराब का सहारा लेते हैं, व्यसन करते हैं, क्लबों में जाना अपनी शान समझते हैं, सुखी रहने के लिए पार्टियो में जाना, फिल्में देखना,व्यभिचार करना उनके जीवन का अंश बन गया है पर इससे आज तक किसी के दुःख दूर नही हुए बल्कि इससे वैमनस्यता बढ़ी है, आत्महत्याएं बढ़ी हैं, खिन्नता बढ़ी है ।

जीवन जीने की सही शैली तो हमें हमारे ऋषि मुनियों से ही मिली है इसलिए भारत अपने ऋषि मुनियों के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है । वास्तविक सुख का स्त्रोत तो भीतर ही है । अगर आज का मानव अपने सनातन सत्य की ओर, अपनी वास्तविकता की ओर वापिस आ जाये तो जिस सुख के लिए वो दर-दर की ठोकरें खा रहा है वो तो उसके घर की चीज हो जाये ।

इतिहास में कई उदाहरण मिलते है जो नश्वर जगत का आकर्षण छोड़कर शाश्वत परमात्मा का सुख पाने के लिए निकल पड़े और उन्होंने ही फिर जगत का कल्याण किया है । आज भी सच्चे संत इस धरा पर हैं जिनके मार्गदर्शन में लाखों नहीं करोड़ों का जीवन सदमार्ग पर चल पड़ा है ।

राजा भर्तृहरि की तरह बाहर का सुख तुच्छ समझकर आंतरिक सुख की अनुभूति करने के लिए इंजीनियर संकेत पारेख ने दीक्षा लेने का निर्णय लिया है ।

आयआयटी मुंबई से पढाई कर चुके 29 वर्ष के केमिकल इंजीनियर संकेत पारेख की जिंदगी अपने सीनियर से ऑनलाइन चैट करने के बाद पूरी तरह से बदल चुकी है । उनके पास बहुत अच्छी नौकरी थी और वह यूएस से पोस्ट ग्रेजुएशन करने की योजना बना रहे थे । परंतु चैटिंग के बाद अब वह उन 16 लोगों में शामिल हैं जोकि बोरीवली (मुंबई) में 22 जनवरी को दीक्षा ले रहे हैं ! ये सभी जैन आचार्य युगभूषण सुरीजी से शिक्षा ले रहे थे ।

पारेख वैष्णव परिवार से संबंध रखते हैं परंतु वो आयआयटी में अपने सीनियर भाविक शाह की वजह से जैन धर्म की आेर रुझान रखने लगे । भाविक ने 2013 में दीक्षा ली थी । पारेख ने कहा कि वह पहले नास्तिक थे और वह अपने करियर के लिए बहुत गंभीर थे परंतु उन्होंने जब से दीक्षा लेने का मन बनाया है तब से वह शांति अनुभव कर रहे हैं !

पारेख ने बताया कि मैं भाविक के साथ चैटिंग कर रहा था जोकि कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा में 2010 में इंटर्नशिप कर रहे थे । उस समय मैं फाइनल ईयर में था, यह सामान्य चैटिंग थी, मुझे नहीं पता था कि आत्मा के ज्ञान के विषय में कैसे बात करनी है !

यह पहली बार था जब मैं इस विषय के बारे में सोच रहा था । मैं इसमें गहराई से उतरता गया और जैन धर्म के प्रति पढना शुरू किया । उन्होंने बताया कि अब मैंने सारे गैजेट्स का प्रयोग करना छोड दिया है । अब वो कंप्यूटर का प्रयोग भी नहीं करते, जिससे वो चैटिंग किया करते थे ।

पारेख ने अपनी पगार के बारे में नहीं बताया हालांकि उन्होंने कहा कि वह 12 लाख रुपये हर साल इनकम टैक्स भर रहे थे । पारेख ने बताया कि उनके पिता की कुछ वर्ष पहले मृत्यु हो चुकी है । इसलिए उन्होंने अपनी मां और बडी बहन को बताया कि वह दीक्षा लेना चाहते हैं । उन्होंने अपनी मां से कहा कि बस यही एक माध्यम है जिससे वो खुश रह सकते हैं । हालांकि शुरुआत में मां को मनाना मुश्किल था !

जिनका आध्यात्मिक स्तर अच्छा है, वही एेसा विचार कर सकते है । अध्यात्म यह कृती का शास्त्र है । अध्यात्म में बताए गए सूत्र जब तक कृती में नहीं लाए जाते, तब तक उनका महत्त्व मनुष्य को पता नहीं चलता । एेसा होते हुए भी तथाकथित बुद्धीजीवी एवं आधुनिकतावादी जिनका अध्यात्म के विषयमें कोर्इ अभ्यास नहीं है, वह इसपर टीका करते है ।

इतिहास में कई उदाहरण मिलते है जो नश्वर जगत का आकर्षण छोड़कर श्वासत परमात्मा का सुख पाने के लिए निकल पड़े और उन्होंने ही फिर जगत का कल्याण किया है ।

ऐसे ही एक थी मल्लिकायनाथ

जैन धर्म में कुल 24 तीर्थांकर हो चुके हैं। उनमें एक राजकन्या भी तीर्थंकर हो गयी, जिसका नाम था मल्लियनाथ। राजकुमारी मल्लिका इतनी खूबसूरत थी कि कई राजकुमार व राजा उसके साथ ब्याह रचाना चाहते थे लेकिन वह किसी को पसंद नहीं करती थी आखिरकार उन राजकुमारों व राजाओं ने आपस में एकजुट मल्लिका के पिता को किसी युद्ध में हराकर उसका अपहरण करने की योजना बनायी।

मल्लिका को इस बात का पता चल गया। उसने राजकुमारों व राजाओं को कहलवाया कि 'आप लोग मुझ पर कुर्बान हैं तो मैं भी आप सब पर कुर्बान हूँ। तिथि निश्चित करिये। आप लोग आकर बातचीत करें। मैं आप सबको अपना सौंदर्य दे दूँगी।"

इधर मल्लिका ने अपने जैसी ही एक सुन्दर मूर्ति बनवायी एवं निश्चित की गयी तिथि से दो-चार दिन पहले से वह अपना भोजन उसमें डाल देती थी। जिस महल में राजकुमारों व राजाओं को मुलाकात देनी थी, उसी में एक ओर वह मूर्ति रखवा दी गयी। निश्चित तिथि पर सारे राजा व राजकुमार आ गये। मूर्ति इतनी हूबहू थी कि उसकी ओर देखकर राजकुमार विचार ही कर रहे थे कि 'अब बोलेगी... अब बोलेगी....' इतने में मल्लिका स्वयं आयी तो सारे राजा व राजकुमार उसे देखकर दंग रह गये कि 'वास्तविक मल्लिका हमारे सामने बैठी है तो यह कौन है ?"

मल्लिका बोलीः "यह प्रतिमा है। मुझे यही विश्वास था कि आप सब इसको ही सच्ची मानेंगे और सचमुच में मैंने इसमें सच्चाई छुपाकर रखी है। आपको जो सौंदर्य चाहिए वह मैंने इसमें छुपाकर रखा है।" यह कहकर ज्यों ही मूर्ति का ढक्कन खोला गया, त्यों ही सारा कक्ष दुर्गन्ध से भर गया। पिछले चार-पाँच दिन से जो भोजन उसमें डाला गया था, उसके सड़ जाने से ऐसी भयंकर बदबू निकल रही थी कि सब 'छि...छि...छि...' कर उठे।

तब मल्लिका ने वहाँ आये हुए राजाओं व राजकुमारों को सम्बोधित करते हुए कहाः "भाइयो ! जिस अन्न, जल, दूध, फल, सब्जी इत्यादि को खाकर यह शरीर सुन्दर दिखता है, मैंने वे ही खाद्य-सामग्रियाँ चार-पाँच दिनों से इसमें डाल रखी थीं। अब ये सड़कर दुर्गन्ध पैदा कर रही हैं। दुर्गन्ध पैदा करने वाली इन खाद्यान्नों से बनी हुई चमड़ी पर आप इतने फिदा हो रहे हो तो इस अन्न को रक्त बनाकर सौंदर्य देने वाला वह आत्मा कितना सुंदर होगा।"

मल्लिका की इस सारगर्भित बातों का राजा एवं राजकुमारों पर गहरा असर हुआ और उन्होंने कामविकार से अपना पिण्ड छुड़ाने का संकल्प किया। उधर मल्लिका संत-शरण में पहुँच गयी और उनके मार्गदर्शन से अपने आत्मा को पाकर मल्लियनाथ तीर्थंकर बन गयी। आज भी मल्लियनाथ जैन धर्म के प्रसिद्ध उन्नीसवें तीर्थंकर के रूप में सम्मानित होकर पूजी जा रही हैं।

Wednesday, January 17, 2018

अमेरिका वैज्ञानिकों ने किया शोध, संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से बढती है स्मरणशक्ति

January 17, 2018

भारतवासियों को पता है कि संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है । हिन्दुआें के धर्मग्रंथ भी इसी भाषा में है । संस्कृत को हम देववाणी भी कहते है । प्राचीन काल में शिक्षा इसी भाषा में दी जाती थी । इसलिए प्राचीन काल के लोग संस्कारी, चारित्र्यवान, शिलवान, धर्मपरायण, कर्तव्यनिष्ठ थे। परंतु जैसे ही मेकॉले की शिक्षा पद्धती भारत में आर्इ, भारतीय  महान संस्कृत को भारतवासी भुल गए । 

मेकाॅले की मॉडर्न शिक्षाप्रणाली से भारत में समाज अधोगती की आेर जाता दिखार्इ दे रहा है। जिसके परिणाम आज सभी आेर भ्रष्ठाचार, बलात्कार, व्यभीचार, घोटाले पनप रहे है । यह किसकी देन है ? आज जहां भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति तथा संस्कृत भाषा को पिछडापन मानकर पाश्चिमी सभ्यता को चुन रहे है, वही पश्चिमी लोग भारत की महान संस्कृती तथा संस्कृत भाषा की आेर आकर्षित हो रहे है । 
US scientists do research, enhances memory of Sanskrit mantras

विदेशी संस्कृत भाषा पर संशोधन कर रहे है एवं भारतीय संस्कृती की महानता विश्व के सामने ला रहे है । इसके कर्इ उदाहरण हमने देखे है । एेसा ही एक संशोधन आज हम देखेंगे । जिससे आपको अपने भारतीय होनेपर गर्व महसुस होगा । 

एक अमेरिकी पत्रिका में दावा किया गया है कि, वैदिक मंत्रों को याद करने से दिमाग के उसे हिस्से में बढोतरी होती है जिसका काम संज्ञान लेना है, यानी की चीजों को याद करना है ।

डॉ. जेम्स हार्टजेल नाम के न्यूरो साइंटिस्ट के इस शोध को साइंटिफिक अमेरिकन नाम के जरनल ने प्रकाशित किया है । न्यूरो साइंटिस्ट डॉ. हार्टजेल ने अपने शोध के बाद ‘द संस्कृत इफेक्ट’ नाम का टर्म तैयार किया है । वह अपने रिपोर्ट में लिखते हैं कि भारतीय मान्यता यह कहती है कि वैदिक मंत्रों का लगातार उच्चारण करने और उसे याद करने का प्रयास करने से स्मरणशक्ति और सोच बढती है । इस धारणा की जांच के लिए डॉ. जेम्स और इटली के ट्रेन्टो यूनिवर्सिटी के उनके साथी ने भारत स्थित नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के डॉ. तन्मय नाथ और डॉ. नंदिनी चटर्जी के साथ टीम बनाई ।

द हिन्दू’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, एक्सपर्ट की इस टीम ने 42 वॉलंटियर्स को चुना, जिनमें 21 प्रशिक्षित वैदिक पंडित (22 साल) थे । इन लोगों ने 7 सालों तक शुक्ला यजुर्वेद के उच्चारण में पारंगत प्राप्त की थी । ये सभी पंडित देहली के एक वैदिक विद्यालय के थे । जबकि एक कॉलेज के छात्रों में 21 को संस्कृत उच्चारण के लिए चुना गया । इस टीम ने इन सभी 42 प्रतिभागियों के ब्रेन की मैपिंग की । इसके लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया । नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर के पास मौजूद इस तकनीक से दिमाग के अलग अलग हिस्सों का आकार की जानकारी ली जा सकती है ।

टीम ने जब 21 पंडितों और 21 दूसरे वालंटियर्स के ब्रेन की मैपिंग की तो दोनों में काफी अंतर पाया गया । उन्होंने पाया कि वे छात्र जो संस्कृत उच्चारण में पारंगत थे उनके दिमाग का वो हिस्सा, जहां से याददाश्त, भावनाएं, निर्णय लेने की क्षमता नियंत्रित होती है, वो ज्यादा सघन था । इसमें ज्यादा अहम बात यह है कि दिमाग की संरचना में ये परिवर्तन तात्कालिक नहीं थे बल्कि वैज्ञानिकों के अनुसार, जो छात्र वैदिक मंत्रों के उच्चारण में पारंगत थे उनमें बदलाव लंबे समय तक रहने वाले थे । इसका अर्थ यह है कि संस्कृत में प्रशिक्षित छात्रों की याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता, अनुभूति की क्षमता लंबे समय तक कायम रहने वाली थी ।


आपको बता दे कि संस्कृत में 1700 धातुएं, 70 प्रत्यय और 80 उपसर्ग हैं, इनके योग से जो शब्द बनते हैं, उनकी #संख्या 27 लाख 20 हजार होती है। यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ते हैं तो उनकी संख्या लगभग 769 करोड़ हो जाती है। #संस्कृत #इंडो-यूरोपियन लैंग्वेज की सबसे #प्राचीन भाषा है और सबसे वैज्ञानिक भाषा भी है। इसके सकारात्मक तरंगों के कारण ही ज्यादातर श्लोक संस्कृत में हैं। भारत में संस्कृत से लोगों का जुड़ाव खत्म हो रहा है लेकिन विदेशों में इसके प्रति रुझाान बढ़ रहा है ।

संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं, जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।  इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएं ग्रहण करने में सहायता मिलती है। वैदिक ग्रंथों की बात छोड़ भी दी जाए, तो भी #संस्कृत भाषा में #साहित्य की रचना प्राचीनकाल से निरंतर होती आ रही है। संस्कृत केवल एक भाषा मात्र नहीं है, अपितु एक विचार भी है। #संस्कृत एक #भाषा मात्र नहीं, बल्कि एक #संस्कृति है और #संस्कार भी है। #संस्कृत में विश्व का #कल्याण है, #शांति है, #सहयोग है और #वसुधैव कुटुंबकम की भावना भी है ।

सभी भारतवासियों को मेकाॅले की मॉडर्न शिक्षाप्रणाली को त्याग करके संस्कृत भाषा का महत्त्व समझकर शिक्षा एवं सभी जगा उसे बढावा देने हेतु प्रयास करने का संकल्प करें।

Tuesday, January 16, 2018

चीन में ईसाई मिशनरियां करवा रहे थे धर्मान्तरण, सरकार ने उड़ा दिया चर्च

January 16, 2018

भारत में भले कोई कितना भी देशविरोधी काम करे उसपर कोई कार्यवाही नही होती, पर जो देशहित या हिंदुत्व की बात करता है उसपर ही कार्यवाही होती है । यहां उल्टा चलता है लेकिन चीन में ऐसा नही है जो देशविरोधी काम करता दिखता है उससे सख्ती से निपटा जाता है और उसपर तुरन्त कार्यवाही की जाती है ।

चीन की सरकार ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक जिहादियों के प्रति बहुत सख्त हो गयी है, मस्जिदों पर तो तरह तरह के रोक है ही, और पिछले 2 साल में 5000 से ज्यादा मस्जिदों को तोड़ कर टॉयलेट और अन्य चीजें बना दी गई है, और अब चीन ने एक बड़े चर्च को डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया है

शांक्सी राज्य में चीन की सरकार ने वहां के मेगा चर्च को जिसमे 50,000 लोगों के बैठने की क्षमता थी, उसे उड़ा दिया है । इसके लिए पुलिस ने डायनामाइट का उपयोग किया है, कट्टरपंथी मिशनरियों के आतंक से परेशान होकर ही चीन ने ये फैसला किया है और डायनामाइट से चर्च को उड़ा दिया है, और जो लोग विरोध कर रहे थे उन्हें जेलों में ठूस दिया है ।
Christian missionaries in China were converting, government blew up church

चीनी सरकार का कहना है कि ये चर्च विदेशी पैसा ले रहा था जिससे चीन में धर्मांतरण का खेल चलाया जा रहा था साथ ही चीन विरोधी गतिविधियां भी चलाई जा रही थी, इस चर्च की जांच करी गयी और आरोप सही पाए गए यहाँ विदेशी पैसे से धर्मांतरण और राष्ट्रविरोध का खेल चल रहा था, कई सारी गिरफ्तारियां भी की गयी और पुलिस ने डायनामाइट लगाकर चर्च को उड़ा दिया है ।

चीनी सरकार का ये भी कहना है कि अन्य चर्चों पर भी उसकी नजर है और जहाँ पर भी धर्मांतरण और राष्ट्रविरोध का खेल चलेगा, वहां भी यही कार्यवाही की जाएगी, राष्ट्रविरोधियों को गिरफ्तार किया जायेगा और चर्च को उड़ा दिया जायेगा ।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चीन में मस्जिदें और चर्चों पर सरकार की सख्त नजर है, सिर्फ मौलानाओं पर ही नहीं चीन ईसाई मिशनरियों पर भी सख्त नजर रखता है और ऐसी कड़ी कार्यवाही करने से पीछे नहीं हटता । ( स्त्रोत : दैनिक भारत)

भारत में तो ईसाई मिशनरियां खुल्ला धर्मान्तरण करवा रही है, हिन्दू देवी-देवताओं को गालियां बोल रही है, हिन्दू साधु-संतों को जेल में भिजवा रही है, कान्वेंट स्कूलों में भारत माता की जय बोलने को मना कर रही है, मेहंदी नही लगाने देती, हिन्दू त्यौहार मनाने को मना करते है, यहाँ तक कि हिन्दू त्यौहारों पर छुट्टियां भी नही दी जाती हैं और भारत माता की जय बोलने और हिन्दू त्यौहार मनाने पर उनको स्कूल से बाहर किया जाता है फिर भी सरकार उनपर कोई कार्यवाही नही करती है ।

मीडिया में भी ईसाई मिशनरियों का भारी फंडिग रहता है इसलिए मीडिया चर्च के पादरी कितने भी दुष्कर्म करें, उनके खिलाफ नही दिखाती जबकि कोई हिन्दू साधु-संत पर झूठा आरोप भी लग जाता है तो उसपर 24 घण्टे खबरें चलाती है।

यहां कितने भी हिन्दू मन्दिर तोड़ दिए जाएं मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन एक भी चर्च तोड़ दिया तो हल्ला मचा देती है । चीन आदि देशों में ऐसी दुर्दशा नही है केवल भारत में ही है और उसका मुख्य कारण है कि हमारे नेता वोटबैंक की लालच में ईमानदारी से अपना कर्तव्य पालन नहीं करते ।

अभी भी सरकार और जनता को सतर्क रहना चाहिए जो भी धर्मांतरण या देशविरोधी कार्य करता है उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए तभी देश की संस्कृति टिकेगी नही तो देश की संस्कृति को खतरा है ।