January 19, 2018
20 जनवरी जब-जब यह तारीख आती है, #कश्मीरी #पंडितों के जख्म हरे हो जाते हैं। यही वह तारीख है जिसने #जम्मू कश्मीर में बसे कश्मीरी पंडितों को अपने ही #देश में शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर कर दिया। इस तारीख ने उनके लिए जिंदगी के मायने ही बदल दिए थे।
कश्मीरी पंडितों को बताया काफिर!!
20 जनवरी 1999 को कश्मीर की मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों को काफिर करार दिया गया। #मस्जिदों से लाउडस्पीकरों के जरिए ऐलान किया गया, 'कश्मीरी पंडित या तो मुसलमान धर्म अपना लें, या चले जाएं या फिर मरने के लिए तैयार रहें।' यह ऐलान इसलिए किया गया ताकि #कश्मीरी पंडितों के घरों को पहचाना जा सके और उन्हें या तो इस्लाम कुबूल करने के लिए मजबूर किया जाए या फिर उन्हें मार दिया जाए।
Fierce tyranny on Kashmiri Pandits was declared kaphar on January 20 |
14 सितंबर, 1989 को बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या से कश्मीर में शुरू हुए आतंक का दौर समय के साथ और वीभत्स होता चला गया।
टिक्कू की हत्या के महीने भर बाद ही जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनाने वाले सेवानिवृत्त सत्र #न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई। फिर 13 फरवरी को श्रीनगर के टेलीविजन #केंद्र के निदेशक लासा कौल की निर्मम हत्या के साथ ही आतंक अपने चरम पर पहुंच गया था। उस दौर के अधिकतर #हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओं और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की।
1989 के बाद कश्मीर घाटी में हिन्दुओं के साथ हुए नरसंहार से कश्मीरी पंडित और सिख भी वहां से पलायन कर गए। कश्मीर में वर्ष 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोडकर चले गए। उस समय हुए नरसंहार में हजारों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। #आतंकियों ने #सामूहिक #बलात्कार किया और उसके बाद मार-मारकर उनकी #हत्या कर दी। घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में बडी संख्या में महिलाओं और लडकियों के साथ सामूहिक बलात्कार और #लड़कियों के #अपहरण किए गए।
कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। आतंकी संघटन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड दी। करोडों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोडकर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी ।
घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई थी। कश्मीर में आतंकवाद के चलते लगभग 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित विस्थापित हो गए और वे जम्मू सहित देश के अन्य हिस्सों में जाकर रहने लगे। कभी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के एक क्षेत्र में हिन्दुओं और शियाओं की तादाद बहुत होती थी परंतु वर्तमान में वहां हिन्दू तो एक भी नहीं बचा और शिया समय-समय पर पलायन करके भारत में आते रहे जिनके आने का क्रम अभी भी जारी है ।
विस्थापित कश्मीरी पंडितों का एक संघटन है ‘पनुन कश्मीर’ ! इसकी स्थापना सन 1990 के दिसंबर माह में की गई थी। इस संघटन की मांग है कि, कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कश्मीर घाटी में अलग राज्य का निर्माण किया जाए। पनुन कश्मीर, कश्मीर का वह हिस्सा है, जहां घनीभूत रूप से कश्मीरी पंडित रहते थे। परंतु 1989 से 1995 के बीच नरसंहार का एक ऐसा दौर चला कि, पंडितों को कश्मीर से पलायन होने पर मजबूर होना पडा ।
आंकडों के अनुसार, इस नरसंहार में 6,000 कश्मीरी पंडितों को मारा गया। 7,50,000 पंडितों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। 1,500 मंदिर नष्ट कर दिए गए। कश्मीरी पंडितों के 600 गांवों को इस्लामी नाम दिया गया। केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार, कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के अब केवल 808 परिवार रह रहे हैं तथा उनके 59,442 पंजीकृत प्रवासी परिवार घाटी के बाहर रह रहे हैं। कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन से पहले से पहले वहां उनके 430 मंदिर थे। अब इनमें से मात्र 260 सुरक्षित बचे हैं जिनमें से 170 मंदिर क्षतिग्रस्त हैं !
डर की वजह से वापस लौटने से कतराते!!
आज भी कश्मीरी पंडितों के अंदर का #डर उन्हें वापस लौटने से रोक देता है। #कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ने से पहले अपने घरों को कौड़ियों के दाम पर बेचा था। 28 वर्षों में कीमतें तीन गुना तक बढ़ गई हैं। आज अगर वह वापस आना भी चाहें तो नहीं आ सकते क्योंकि न तो उनका घर है और न ही घाटी में उनकी जमीन बची है।
केंद्र #सरकार कब हिंदुओं के नाम से जाने वाले हिंदुस्तान में हिंदुओं को #सुरक्षित करेगी ?
कश्मीरी पंडितों की आज की स्थिति
आज 4.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने देश में ही शरणार्थी की तरह रह रहे हैं। पूरे देश या विदेश में कोई भी नहीं है उनको देखने वाला । उनके लिए तो मीडिया भी नहीं है जो उनके साथ हुए अत्याचार को बताये । कोई भी सरकार या पार्टी या संस्था नहीं है जो कि विस्थापित कश्मीरियों को उनके पूर्वजों के भूमि में वापस ले जाने की बात करे । कोई भी नहीं इस दुनिया में जो कश्मीरी पंडितो के लिए "न्याय" की मांग करे । पढ़े लिखे कश्मीरी पंडित आज भिखारियों की तरह पिछले 24 सालो से टेंट में रह रहे है । उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं, पीने के लिए पानी तक की समस्या है। भारतीय और विश्व की मीडिया, मानवाधिकार संस्थाए गुजरात दंगो में मरे 750 मुस्लिमों (310 मारे गए हिन्दुओं को भूलकर) की बात करते हैं, लेकिन यहाँ तो कश्मीरी पंडितों की बात करने वाला कोई नहीं है क्योकि वो हिन्दू हैं। 20,000 कश्मीरी हिन्दू तो केवल धूप की गर्मी सहन न कर पाने के कारण मर गए क्योकि वो कश्मीर के ठन्डे मौसम में रहने के आदी थे ।
अभी तो उच्चतम न्यायालय ने कश्मीर में 27 वर्ष पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की दोबारा जांच के निर्देश देने से इनकार कर दिया है । अब तो कश्मीरी पंडितों के लिये कोई चारा नहीं बचा है।
कश्मीरी पंडितो और भारतीय सेना के खिलाफ भारतीय मीडिया का षड्यंत्र -
आज देश के लोगों को कश्मीरी पंडितों के मानवाधिकारों के बारे में भारतीय मीडिया नहीं बताती है लेकिन आंतकवादियों के मानवाधिकारों के बारे में जरुर बताती है । आज सभी को यह बताया जा रहा था है कि #ASFA नामक कानून का #भारतीय सेना #द्वारा काफी ज्यादा #दुरूपयोग किया जाता है । कश्मीर में अलगाववादी संगठन मासूम लोगों की हत्या करते है और भारतीय सेना के जवान जब उन आतंकियों के खिलाफ कोई करवाई करते हैं, तो यह अलगाववादी नेता अपने खरीदी हुई मीडिया की सहायता से चीखना चिल्लाना शुरू कर देते हैं, कि देखो हमारे ऊपर कितना अत्याचार हो रहा है !
हिंदुस्तान में #सेक्युलर राजनीति #सेक्युलर नेता, #सेक्युलर लोकतंत्र, #सेक्युलर संविधान, #सेक्युलर न्यायापालिका से हिन्दुओं को उम्मीद रखने की जरूरत नही है क्योंकि ये कभी हिंदुओं की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरेंगे ।
#हिंदुओं को सरकार, #न्यायालय द्वारा कोई सहायता या न्याय न मिलने का एक कारण ये भी है कि हिंदुओं में एकता नही है, जिस दिन #एकता हो जायेगी उस दिन से सब सही हो जाएगा ।
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It is the duty of Government & Judiciary to deliver justice to Kashmiri Pandits.
ReplyDeleteWhy justice awaited for them since long time?