Wednesday, January 31, 2018

सदना पीर संत रविदास को बनाने आया था मुसलमान, खुद बन गया हिन्दू

January 31, 2018

सिकंदर लोदी के शासनकाल की बात है । सदना पीर उन दिनों एक जाना-माना पीर था । सिकंदर लोदी के दरबार में भी उसकी प्रसिद्धि हो चुकी थी । परंतु हिन्दू समाज में संत रविदास की बहुत प्रतिष्ठा थी ।
एक दिन सदना पीर ने सोचा कि ‘आजकल रविदास का बड़ा नाम हो रहा है... मीराबाई जैसी रानी भी इनको मानती हैैै । मैं इनको समझाऊँ कि काफिरों की परंपरा छोड़ दें और कुरानशरीफ पढ़ें, कलमा पढ़ें । यदि ये मान गये तो सिकंदर लोदी से इनका बहुमान करा दूँगा । फिर इनको माननेवाले हजारों हिन्दू मुसलमान बन जायेंगे, जिससे हमारी जमात बढ़ जायेगी ।’
ऐसा सोचकर वह संत रविदास के पास गया और बोला : ‘‘आप काफिरों की तरह यह क्या बुतपरस्ती (मूर्तिपूजा) करते हैं ? पत्थर की मूर्ति के आगे बैठकर ‘राम-राम’ रटते रहते हैं ? आप हमारे साथ चलिये, कुरानशरीफ पढ़कर उसका फायदा उठाइये । हम आपको सुलतान से पीर की पदवी दिलवायेंगे ।’’
Sadan Peer Sant Ravidas came to make Muslims, himself became Hindu

सदना पीर ने हिन्दू धर्म की निन्दा में कुछ और भी बातें कहीं । जब वह कह चुका तब रविदासजी ने कहा : ‘‘मैंने तेरी सारी बातें सुनीं, सदना पीर ! अगर तेरे में साधुताई है, पीरपना है तो तुझे मेरी बात सुननी ही चाहिए । 
किसी व्यक्ति, किसी पीर-पैगंंबर या ईश्वर के बेटे द्वारा बनाया हुआ धर्म, धर्म नहीं एक संप्रदाय है । किंतु सनातन धर्म कोई संप्रदाय नहीं है । इसमें सभी मनुष्यों की भलाई के सिवाय कोई बात नहीं है ।
खुदा कलाम कुरान बताओ, फिर क्यों जीव मारकर खाओ?
खुदा नाम बलिदान चढ़ाओ, सो अल्लाह को दोष लगाओ ?
दिनभर रोजा नमाज गुजारें, संध्या समय पुनः मुर्गी मारें ?
भक्ति करे फिर खून बहावे, पामर किस विधि दोष मिटावे ?
जिसमें जीव हिंसा लिखी, वह नहीं खुदा कलाम ।
दया करे सब जीव पर, सो ही अहले इसलाम ।।
आप कहते हैं कि ‘हिन्दू बुतपरस्ती करते हैं, मूर्तिपूजक हैं, मूर्ख हैं । खुदाताला निराकार है ।’ तो भाई ! सुन लो :
निराकार तुम खुदा बताओ, कुरान खुदा का कलाम ठहराओ ।
कलाम कहै तो बनै साकारा, फिर कहाँ रहा खुदा निराकारा ?
कलमा को खुदाताला के वचन कहते हो तो ये वचन तो साकार के हैं । निराकार क्या बोलेगा ?’’ 
सदना पीर व रविदास के बीच इसलाम धर्म और सनातन धर्म की चर्चा लम्बे समय तक होती रही । सदना पीर की समझ में रविदास की बात आ गयी कि जीते-जी मुक्ति और अपना आत्मा-परमात्मा ही सार है । जिस सार को मंसूर समझ गये, उन्हें अनलहक की अनुभूति हुई, वही सनातन धर्म सर्वोपरि सत्य है ।
संत रविदास की रहस्यमयी बातें सुनकर सदना पीर को सद्बुद्धि प्राप्त हुई । सदना पीर ने कहा : ‘‘मरने के बाद कोई हमारी खुशामद करेगा और बाद में हमें मुक्ति मिलेगी, यह हम मान बैठे थे । हम सदा मुक्तात्मा हैं, इस बात का हमें पता ही नहीं था । अब आप हमें सनातन धर्म की दीक्षा दीजिये ।’’
उसने संत रविदास से दीक्षा ली और उसका नाम रखा गया - रामदास ।
सिकंदर लोदी को जब इस बात का पता चला तो उसने संत रविदास को बुलवाकर पहले तो खूब डाँटा, फिर प्रलोभन देते हुए कहा : ‘‘अभी भी रामदास को फिर से सदना पीर बना दो तो हम आपको ‘रविदास पीर’ की ऊँची पदवी दे देंगे । सदना पीर आपका चेला और आप उनके गुरु । मेरे दरबार में आप दोनों का सम्मान होगा और हम आपको मुख्य पीर का दर्जा देंगे ।’’
‘‘मुख्य पीर का दर्जा तुम दोगे तो हमें तो तुम्हारी अधीनता स्वीकारनी पड़ेगी । जो सारे विश्व को बना-बनाके, नचा-नचाके मिटा देता है उस परमेश्वर से तुम्हारा प्रताप ज्यादा मानना पड़ेगा तो यह मुक्ति हुई कि गुलामी ? सुन ले भैया ! 
वेद धर्म है पूरन धर्मा, वेद अतिरिक्त और सब भर्मा । 
वेद धर्म की सच्ची रीता, और सब धर्म कपोल प्रतीता ।।
वेदवाक्य उत्तम धरम, निर्मल वाका ज्ञान ।
यह सच्चा मत छोड़कर, मैं क्यों पढ़ूँ कुरान ?
और धर्म तो पीर-पैगंबरों ने बनाये हैं लेकिन वैदिक धर्म सनातन है । ऐसा धर्म छोड़कर मैं तुम्हारी खुशामद क्यों करूँगा ? 
तुम मुझे मुसलमान बनाना चाहते हो लेकिन मैं मनुष्य का बनाया हुआ मुसलमान क्यों बनूँ ? ईश्वर द्वारा बनाया हुआ मैं जन्मजात सनातन हिन्दू हूँ । ईश्वर के बनाये पद को छोड़कर मैं इंसान के बनाये पद पर क्यों गिरूँ ? नश्वर के लिए शाश्वत को क्यों छोड़ूँ ?
श्रुति शास्त्र स्मृति गाई, प्राण जायँ पुनि धर्म न जाई ।
कुरान बहिश्त न चाहिए, मुझको हूर हजार ।।
वेद धर्म त्यागूँ नहीं, जो गल चलै कटार ।
वेद धर्म है पूरण धर्मा, करि कल्याण मिटावै भर्मा ।।
सत्य सनातन वेद हैं, ज्ञान धर्म मर्याद ।
जो ना जाने वेद को, वृथा करै बकवाद ।।
तुम चाहो तो मेरा सिर कटवा दो, पत्थर बाँधकर मुझे यमुनाजी में फिंकवा दो । ऐसा करोगे तो यह शरीर मरेगा लेकिन मेरा आत्मा-परमात्मा तो अमर है ।’’


यह सुन सिकंदर लोदी आगबबूला होकर बोलाः ‘‘हद हो गयी, फकीर ! अब आखिरी निर्णय कर । या तो गला कटवाकर तेरा कीमा बनवा दूँ या तो मुसलमान बन जा तो पूजवा दूँ । सिकंदर तेरे भाग्य का विधाता है ।’’
‘‘मैंने तुम्हारी बातें सुनीं, अब तुम मेरी बात भी सुनो : तुम्हारी धमकियों से मैं डरनेवाला नहीं हूँ ।
मैं नहीं दब्बू बाल गँवारा, गंगत्याग महूँ ताल किनारा ।।
प्राण तजूँ पर धर्म न देऊँ । तुमसे शाह सत्य कह देऊँ ।।
चोटी शिखा कबहुँ नहीं त्यागूँ । वस्त्र समान देह भल त्यागूँ ।।
कंठ कृपाण का करौ प्रहारा । चाहै डुबावो सिंधु मंझारा ।।
तुम भले मुझे गंगा में डलवा दो या पत्थर बाँधकर तालाब में फिंकवा दो ।’’
‘‘इतना बेपरवाह ! इतना निर्भीक ! तू मौत को बुला रहा है ? सिपाहियो ! इसके पैरों में जंजीरें और हाथों में हथकड़ियाँ डालकर इसे कैदखाने में ले जाओ । इसका कीमा बनवायें या जल में डुबवायें, इसका निर्णय बाद में करेंगे ।’’
रविदासजी को कैद किया गया पर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी । वे तो हरिनाम जपते रहे, अपने अमर आत्मा के भाव में मस्त रहे और सब कुछ प्रभु के भरोसे छोड़ते हुए बोले : ‘प्रभु ! यदि तेरी यही मर्जी है तो तेरी मर्जी पूरण हो ।’ शरीर तो उनका कैदखाने में है लेकिन मन है प्रभु में ! 
भगवान ने सोचा कि ‘जिसने मेरी मर्जी में अपनी मर्जी को मिला दिया है, उसको अगर सिकंदर लोदी कुछ कष्ट पहुँचायेगा तो सृष्टि के नियम में गड़बड़ हो जायेगी ।’ 
सिकंदर लोदी सुबह-सुबह नमाज पढ़ने गया तो उसने देखा कि सामने रविदास खड़े हैं । वह बोला : ‘ऐ काफिर ! तू यहाँ कहाँ से आ गया ?’ उसने मुड़कर देखा तो रविदास ! दो-दो रूप ! फिर तीसरी ओर देखा तो वहाँ भी रविदास ! जिस भी दिशा में देखता, रविदास-ही-रविदास दिखायी देते । वह घबरा गया ।
उसने आदेश दिया : ‘‘सिपाहियो ! संत रविदास को बाइज्जत ले आओ ।’’
संत रविदास की जंजीरें खोल दी गयीं । सिकंदर उनके चरणों में गिरकर, गिड़गिड़ाकर माफी माँगने लगा : ‘‘ऐ फकीर ! गुस्ताखी माफ करो । अल्लाह ने आपको बचाने के लिए अनेकों रूप ले लिये थे । मैं आपको नहीं पहचान पाया, मैंने बड़ी गलती की । आप मुझे बख्श दें ।’’
संत रविदास : ‘‘कोई बात नहीं, भैया ! ईश्वर की ऐसी ही मर्जी होगी ।’’
जिसने जंजीरों में जकड़कर कैदखाने में डाल दिया, उसीके प्रति महापुरुष के हृदय से आशीर्वाद निकल पड़े कि ‘भगवान तुम्हारा भला करे ।’
कैसे हैं सनातन हिन्दू धर्म के संत !
(स्त्रोत: संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से )
आज जो राष्ट्रविरोधी ताकतों द्वारा राजनीति फायदा के लिए जो नये नेता उभर रहे है और दलितों के मसीहा बोलते है और संत रविदास के नाम लेकर दलितों को हिन्दू धर्म से दूर कर रहे है उनको संत रविदास की आत्मा धिक्कार दे रही होगी, संत रविदास जी की आत्मा बोल रही होगी कि हमनें तो सनातन हिन्दू धर्म को बचाने के लिए अनेक यातनाएं सही लेकिन हिन्दू धर्म का त्याग नही किया लेकिन आज कुछ नेता अपने फायदे के लिए जो हिन्दू धर्म में बंटवारा करके देश के टुकड़े करना चाहते है उनको तो नर्क में भी जगा नही मिल पायेंगी।
दलित समाज से विनंती है कि आप किसी भी नेता के बहकावे न आवे महान संत रविदास जी के मार्ग पर चलकर अपना कल्याण करें और देश की अखंडता बनाये रखें यही बड़ी सेवा है ।

2 comments:

  1. Historical initiative to celebrate'Matri Pitri Pujan Diwas'on 14 February instead of Valentines Day. Superb 👌

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  2. ये सारी कहानी झूठी है समाज में गलत जानकारी फैला रहे हो।
    रैदास जी को इसी सनातन धर्म और ब्रहमणो ने खूब नीचा दिखाया वो इसका समर्थन करेंगे भला। delete this article.

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