Thursday, April 9, 2020

पाक में हिंदुओं को राशन नहीं मिलेगा, जानिए अंबेडकर और जोगेन्द्र नाथ ने क्या कहा था ??


09 अप्रैल 2020

🚩आज सारा विश्व कोरोना के महासंकट से ग्रस्त है। पाकिस्तान आज भी वहीं खड़ा है जहां 1947 मे खड़ा था। इस तरह की खबरें आ रही हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं को सरकारी राशन नहीं दिया जा रहा है। उन्हे साफ साफ कह दिया गया है कि यह राशन केवल मुसलमानों के लिए है। इनमें अधिकांश वह हिंदू दलित हैं जो 1947 मे पाकिस्तान मे फंस  गए थे। क्योंकि इनसे सफाई करवाने का काम लिया जाता है इसलिए इन्हे मुस्लिम नहीं बनाया जाता। कुछ दलित हिन्दू तो ईसाई बन गए थे।

🚩भारत में अल्पसंख्यकों के साथ यदि ऐसा होता तो हमारे यहां के सेक्युलरवादी छाती पीट पीट कर रोने लगते, मानवाधिकार वाले भी दौडकर आते, चूंकि बात पाकिस्तान के हिन्दुओं की है, इसलिए अब कोई कुछ नहीं बोलता !

🚩1-  इस विषय मे अंबेडकर जी का पत्र --

18.12.1947 को नेहरू के नाम बाबा साहब का पाकिस्तान से दलितों को भारत में लाने के लिए लिखा पत्र

प्रिय जवाहर लाल जी,
*मेरे पास पाकिस्तान छोड़कर भारत आने वाले तथा पाकिस्तान सरकार द्वारा रोके गये तथा बंधक बनाये गये दलित वर्गों के द्वारा अपनी अनेक व्यथाओं को व्यक्त करने वाले ढेर सारे पत्र आ रहे हैं। अत: मैं यह अनुभव करता हूँ कि समय आ गया है कि मैं आपको उनकी तकलीफों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करूं। इसका उद्देश्य यह है कि मैं आपको इन घटनाओं के विषय में कुछ विचार प्रस्तुत करूं कि क्या हो रहा है और क्या करने की आवश्यकता है। मैं नीचे उनकी तकलीफों के कारणों का वर्णन कर रहा हूं तथा उन सावधानियों का भी जिनके द्वारा उनकी परेशानियों को समाप्त किया जा सकता है।*

*🚩पाकिस्तान सरकार दलितों को सीमा से बाहर जाने से रोकने का हर सम्भव प्रयत्न कर रही है। इसके पीछे कारण यह है कि वह चाहते हैं कि दलित वर्ग वहीं रह कर उनके लिए निम्न कोटि वाले कार्य करता रहे तथा भूमिहीन मजदूर की भांति पाकिस्तान के जमींदारों के लिए काम करता रहे। पाकिस्तान सरकार विशेष रूप से सफाई कर्मचारियों को रोके रखना चाहती है, जिसको उसने अनिवार्य सेवा से सम्बंधित घोषित कर दिया है और बिना एक महीने की अग्रिम नोटिस दिए उनको छोड़ने को तैयार नहीं है। MEO नामक संगठन दलित शर्णार्थियों की मदद के लिए कुछ सार्थक सिद्ध हुआ है, जो पाकिस्तान छोड़ने के लिए उत्सुक हैं। किंतु मैं समझता हूं कि पाकिस्तान की सरकार MEO को अनुमति प्रदान नही कर रही है कि वह दलितों के सीधे सम्पर्क में आकर भारत आने वाले दलितों की सहायता कर सके। फलत: दलितों द्वारा पाकिस्तान छोड़ने की प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है और कहीं कहीं तो बिल्कुल ठप्प है। मुझे यह भी ज्ञात हुआ है कि MEO जल्दी ही बंद होने वाला है। यदि यह शंका सच होती है तो पाकिस्तान से दलितों का आना बिल्कुल असंभव हो जायेगा*

*🚩2) पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के साथ मिलकर अनुसूचित जाति संघ को पूर्वी बंगाल में स्थापित किया। उस समय पूर्वी बंगाल की राजनीति में दलित और मुस्लिम समुदाय का वर्चस्व था... मंडल ने सांप्रदायिक मामलों पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच अत्याधिक राजनैतिक अंतर पाया। जब 1946 में सांप्रदायिक दंगे फैल गए तब जिन्ना के कहने पर उन्होंने पूर्वी बंगाल के सभी क्षेत्रों में यात्रा किया और दलितों को मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में भाग न लेने के लिए तैयार किया। उन्होंने दलितों को समझाया कि मुस्लिम लीग के साथ विवाद में कांग्रेस के लोग दलितों को इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत विभाजन के बाद मंडल पाकिस्तान के संविधान सभा के सदस्य और अस्थायी अध्यक्ष बने और पाकिस्तान के प्रथम कानून और श्रम मंत्री बने। 1947 से 1950 तक वह पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी कराची में रहे, 1950 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को अपना इस्तीफा देने के बाद मंडल वापस भारत लौट आये। अपने इस्तीफे में मंडल ने पाकिस्तानी प्रशासन के हिंदू विरोधी कार्यों का विस्तृत हवाला दिया। उन्होंने अपने त्याग पत्र में सामाजिक अन्याय और अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार से संबंधित घटनाओं का विस्तृत उल्लेख किया। जब पाकिस्तान बना तो मंडल के कहने पर लाखों दलित पाकिस्तान चले गये क्योंकि मंडल को विश्वास था कि मुसलमान उनका साथ देंगे और उन्हें अपनाएंगे लेकिन उनके साथ क्या हुआ, इसे जानना और समझना बहुत जरूरी है। 1946 में अंतरिम सरकार बनी तो कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अपने प्रतिनिधियों को मंत्रीपद के लिए चुना और मुस्लिम लीग ने जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम भेजा. पाकिस्तान बनने के बाद मंडल को कानून और श्रम मंत्री बनाया गया क्योंकि वह मुहम्मद अली जिन्ना के बहुत करीबी थे और असम के सयलहेट को पाकिस्तान में मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था। 3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सयलहेट को जनमत संग्रह से यह तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का। उस इलाके में हिंदू मुस्लिम की संख्या बराबर थी। जिन्ना ने उस इलाके में मंडल को भेजा और मंडल ने वहां दलितों का मत पाकिस्तान के पक्ष में झुका दिया जिसके बाद सयलहेट पाकिस्तान का हिस्सा बना जो आज बांग्लादेश में है। पाकिस्तान निर्माण के कुछ वक्त बाद ही गैर मुस्लिमो को निशाना बनाया जाने लगा। हिन्दुओ के साथ लूटमार, बलात्कार की घटनाएँ सामने आने लगी. मंडल ने इस विषय पर सरकार को कई खत लिखे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी। जोगेंद्र नाथ मंडल को बाहर करने के लिये उनकी देशभक्ति पर संदेह किया जाने लगा. मंडल को इस बात का एहसास हुआ कि जिस पाकिस्तान को उन्होंने अपना घर समझा था अब वह उनके रहने लायक नहीं है. मंडल बहुत आहात हुए क्योंकि उन्हें विश्वास था पाकिस्तान में दलितों के साथ अन्याय नहीं होगा। लगभग दो साल में ही दलित-मुस्लिम एकता का मंडल का ख्बाब टूट गया। जिन्ना की मौत के बाद मंडल 8 अक्टूबर, 1950 को लियाकत अली खां के मंत्री मंडल से त्याग पत्र देकर भारत आ गये।*

*🚩जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने खत में मुस्लिम लीग से जुड़ने और अपने इस्तीफे की वजह को स्पष्ट किया। मंडल ने अपने खत में लिखा, “बंगाल में मुस्लिम और दलितों की एक जैसी हालात थी, दोनों ही पिछड़े और अशिक्षित थे। मुझे आश्वस्त किया गया था मुस्लिम लीग के साथ मेरे सहयोग से ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे बंगाल की बड़ी आबादी का भला होगा और हम सब मिलकर ऐसी आधारशिला रखेंगे जिससे साम्प्रदायिक शांति और सौहादर्य बढ़ेगा। इन्ही कारणों से मैंने मुस्लिम लीग का साथ दिया। 1946 में पाकिस्तान के निर्माण के लिये मुस्लिम लीग ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ मनाया था. जिसके बाद बंगाल में भीषण दंगे हुए।कलकत्ता के नोआखली नरसंहार में पिछड़ी जाति समेत कई हिन्दुओ की हत्याएं हुई, सैकड़ों ने इस्लाम कबूल लिया। हिंदू महिलाओं का बलात्कार, अपहरण किया गया। इसके बाद मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया. मैने हिन्दुओ के भयानक दुःख देखे फिर भी मैंने मुस्लिम लीग के साथ सहयोग की नीति को जारी रखा। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनने के बाद मुझे मंत्रीमंडल में शामिल किया गया। मैंने ख्वाजा नजीममुद्दीन से बात कर ईस्ट बंगाल की कैबिनेट में दो पिछड़ी जाति के लोगो को शामिल करने का अनुरोध किया। उन्होंने मुझसे ऐसा करने का वादा भी किया लेकिन इसे टाल दिया गया जिससे मै बहुत हताश हुआ. मंडल ने अपने खत में पाकिस्तान में दलितों पर हुए अत्याचार की कई घटनाओं जिक्र किया उन्होंने लिखा, “गोपालगंज के पास दीघरकुल में एक मुस्लिम की झूठी शिकायत पर स्थानीय नामशूद्र परिवारों के साथ क्रूर अत्याचार किया गया. पुलिस के साथ मिलकर स्थानीय मुसलमानों ने नामसूद्र समाज के लोगो को पीटा और घरों को लूटा। एक गर्भवती महिला की इतनी बेरहमी से पिटाई की गयी कि उसका मौके पर ही गर्भपात हो गया, निर्दोष हिन्दुओ विशेष रूप से पिछड़े समुदाय के लोगो पर सेना और पुलिस ने हिंसा को बढ़ावा दिया. सयलहेट जिले के हबीबगढ़ में निर्दोष हिंदू पुरुषो और महिलाओं को पीटा गया. सेना ने न केवल निर्दोष हिंदुओं को बेरहमी से मारा बल्कि उनकी महिलाओं को सैन्य शिविरों में भेजने के लिए मजबूर किया ताकि वो सेना की कामुक इच्छाओं को पूरा कर सके। मैं इस मामले को आपके संज्ञान में लाया था, मुझे इस मामले में रिपोर्ट के लिये आश्वस्त किया गया लेकिन रिपोर्ट नहीं आई”। मंडल आगे लिखते हैं, “खुलना जिले के कलशैरा में सशस्त्र पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो ने निर्दयता से हिंदुओं के पूरे गाँव पर हमला किया. कई महिलाओं का पुलिस, सेना और स्थानीय लोगो द्वारा बलात्कार किया गया। मैने 28 फरवरी 1950 को कलशैरा और आसपास के गांवों का दौरा किया। जब मैं कलशैरा में गया तो देखा वह स्थान खंडहर में बदल चुका है। लगभग 350 घरों को ध्वस्त कर दिया गया था, मैंने तथ्यों के साथ आपको यह सूचना दिया। ढाका में नौ दिनों के प्रवास के दौरान मैंने दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया। नारायणगंज और चंटगाँव के बीच रेल पटरियों पर निर्दोष हिन्दुओ की हत्याओं ने मुझे अंदर से झकझोर दिया। मैंने पूर्वी बंगाल के मुख्यमंत्री से मुलाकात कर दंगा रोकने के लिये जरूरी कदमों को उठाने का आग्रह किया। 20 फरवरी 1950 को मैं बरिसाल पहुंचा। यहाँ की घटनाओं के बारे में जानकर में चकित था। बड़ी संख्या में हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया और महिलाओं से बलात्कार किया गया। मैंने जिले के सभी दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया, मधापाशा के जमींदार के घर में 200 लोगो की मौत हुई और 40 घायल थे। मुलादी में एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि वहां 300 हिंदुओं का कत्लेआम हुआ। मैंने खुद वहां नर कंकाल देखे जिन्हें गिद्ध और कुत्ते खा रहे थे. वहां पुरुषो की हत्याओं के बाद लड़कियों को आपस में बाँट लिया गया. राजापुर में 60 लोग मारे गये. बाबूगंज में हिंदुओं की सभी दुकानों को लूटकर आग लगा दिया गया। पूर्वी बंगाल के दंगे में 10,000 से अधिक हिंदुओं की हत्याएं हुई। अपने आसपास महिलाओं और बच्चो को विलाप करते हुए देख मेरा दिल पिघल गया और मैंने अपने आपसे पूछा, ‘क्या मै इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान आया था”। मंडल ने अपने खत में आगे लिखा, “पूर्वी बंगाल में आज क्या हालात हैं ? विभाजन के बाद 5 लाख हिंदुओं ने देश छोड़ दिया है. मुसलमानों द्वारा हिंदू वकीलों, हिंदू डॉक्टरों, हिंदू व्यापारियों, हिंदू दुकानदारों के बहिष्कार के बाद उन्हें आजीविका के लिये पलायन करने के लिये मजबूर करना पड़ा। मुझे मुसलमानों द्वारा हिंदुओं की बच्चियों के साथ बलात्कार की लगातार जानकारी मिल रही है. हिंदुओं द्वारा बेचे गये सामान की मुसलमान पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं। पाकिस्तान में इस समय न कोई न्याय है, न कानून का राज, इसीलिए हिंदू अत्यधिक चिंतित हैं. पूर्वी पाकिस्तान के अलावा पश्चिमी पाकिस्तान में भी ऐसे ही हालात हैं। विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में 1 लाख पिछड़ी जाति के लोग थे उनमे से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित किया गया है. मुझे एक लिस्ट मिली है जिसमे 363 मंदिरों और गुरूद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं .इनमे से कुछ को मोची की दुकान, कसाईखाना और होटलों में तब्दील कर दिया है मुझे जानकारी मिली है सिंध में रहने वाली पिछड़ी जाति की बड़ी संख्या को जबरन मुसलमान बनाया गया है। इन सबका कारण एक ही है। हिंदू धर्म को मानने के अलावा इनकी कोई गलती नहीं है”। जोगेंद्र नाथ मंडल ने अंत में लिखा, “पाकिस्तान की पूर्ण तस्वीर तथा उस निर्दयी एवं कठोर अन्याय को एक तरफ रखते हुए मेरा अपना अनुभव भी कम दुखदायी और पीड़ादायक नहीं है। आपने प्रधानमंत्री और संसदीय पार्टी के पद का उपयोग करते हुए मुझसे एक वक्तव्य जारी करवाया था, जो मैंने 8 सितम्बर को दिया था। आप जानतें हैं मेरी ऐसी मंशा नहीं थी कि मैं ऐसा असत्य और असत्य से भी बुरा अर्धसत्य वक्तव्य जारी करूं। जब तक मै मंत्री के रूप में आपके साथ और आपके नेतृत्व में काम कर रहा था मेरे लिये आपके आग्रह को ठुकरा देना मुमकिन नहीं था, पर अब मैं और अधिक झूठ दिखावा तथा असत्य को अपनी अंतरात्मा पर नहीं थोप सकता. मैंने अब निश्चय किया कि मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफा दूँ. मुझे उम्मीद है आप बिना किसी देरी के इसे स्वीकार करेंगे। आप इस्लामिक स्टेट के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अब इस पद को किसी को भी देने के लिये स्वतंत्र हैं”।*

*🚩पाकिस्तान में मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद जोगेंद्र नाथ मंडल भारत आ गये. कुछ वर्ष गुमनामी की जिन्दगी जीने के बाद 5 अक्टूबर, 1968 को पश्चिम बंगाल में उन्होंने अंतिम सांस ली...*

*🚩भारत मे जो लोग भीम-मिम भाई-भाई भाई कह रहे हैं और हिंदुओं और हिंदू देवी-देवताओं को जो गाली बोल रहे है, दलितों को हिंदुओं से अलग समझ रहे है और आपस में जातिवादी में बांटकर तोड़ रहे हैं*
*उन सभी को भीमराव आंबेडकर और जोगेन्द्र नाथ मंडल की बातों पर ध्यान देना चाहिए नही तो फिर पछतावे के सिवाय कुछ नही मिलेगा।*

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हिंदुओं की घर वापसी रोकने के लिए बनी थी तबलीग जमात -आर्यवीर

05 अप्रैल 2020

*🚩पिछले दो सप्ताह के कुछ समाचारों को क्रमबद्ध रूप से पढ़िए।  निजामुद्दीन दिल्ली में तब्लीग जमात के कार्यक्रम में हज़ारों लोगों का देश और विदेश से एकत्र होना। उनमें से कई सौ का कोरोना वायरस से पीड़ित होना। उन पीड़ितों का सारे देश में फैल जाना।  उनमें से अनेकों की कोरोना से मौत हो जाना।   प्रशासन द्वारा मस्जिदों को खाली करने का आदेश देना। राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार अजित डोबाल द्वारा रात के दो बजे हस्तक्षेप कर निजामुद्दीन में मस्जिद को खाली करवाना। दिल्ली से गए सारे देश में फैले जमात के सदस्यों और उनके संपर्क में आने वालों को खोजने का सरकार द्वारा कार्यक्रम चलाना। निजामुद्दीन से पकड़े गए जमात के लोगों द्वारा बसों से पुलिस वालों पर थूकना। नजरबंद जमात के लोगों द्वारा उनकी सेवा कर रहे डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ के साथ हाथापाई और उन पर थूकना। जमात के लोगों के वीडियो का सामने आना कि अधिक से अधिक मस्जिदों में इकट्ठे हो क्यूंकि क़ुरान पढ़ने, नमाज़ करने और एक ही बर्तन के पानी से वजू करने से कोरोना ठीक हो जाता हैं। अर्बन नक्सली मीडिया का तब्लीग़ के इतिहास के बारे में महिमामंडन करना कि तब्लीग़ एक धार्मिक आंदोलन है। इसकी स्थापना विशुद्ध रूप से इस्लाम की विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए की गई थी।*

*🚩मगर तबलीग़ के बारे में आपको उसकी स्थापना के मूल उद्देश्य, उसका लक्ष्य और उसकी कार्यप्रणाली के विषय में कोई नहीं बताएगा।*

*🚩1947 में तब्लीग़ के दो टुकड़े गए एक भारत और दूसरा पाकिस्तान बन गया।  1971 के बाद इसके तीसरे टुकड़े का नाम बंगलादेश बन गया। बंगलादेश की जमात का नाम आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए सामने आया था। पाकिस्तान में तब्लीग़ इस्लामिक शरिया को लागू करने की बात करती है और अल्पसंख्यक हिन्दू, ईसाईयों को इस्लाम कबूल करने का न्योता देती है। सच्चाई यह है कि यह धार्मिक नहीं अपितु मज़हबी आंदोलन है। इसको चलाने वाले धार्मिक गुरु नहीं अपितु मज़हबी मौलाना है। इसकी स्थापना मुसलमानों में प्रचार के लिए नहीं अपितु मुसलमानों को गैर मुसलमानों को इस्लाम की दावत देने के लिए हुई थी। 1929 से पहले रंगीला रसूल प्रकरण में, 1939 में हैदराबाद में निज़ाम के मज़हबी अत्याचार के विरुद्ध आर्यसमाज के आंदोलन में, 1945 में सिंध की मुस्लिम लीगी सरकार का सत्यार्थ प्रकाश के 14 वें समुल्लास के विरुद्ध आंदोलन में ,1947 में पाकिस्तान निर्माण में तब्लीग ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था।*

*🚩तबलीग की स्थापना मुगल काल में मुस्लिम बने उन हिन्दुओं को वापस हिन्दू बनने से रोकने के लिये की गई थी। जिन्होंने परतंत्रता काल में आत्मरक्षा के लिये इस्लाम स्वीकार कर लिया था, अपने हिन्दू रीति रिवाज नहीं छोड़े थे और निरन्तर अपने पूर्वजों के धर्म में लौटने के लिए प्रयत्नशील थे।आर्यसमाज के शीर्घ नेता, शुद्धि और हिन्दू संगठन आंदोलन के प्रणेता अमर बलिदानी स्वामी श्रद्धानंद अपनी पुस्तक 'हिन्दू संगठन' में लिखते हैं कि ~*
*🚩‘शताब्दियों से आगरा और उसके आसपास के मलकाना राजपूतों में हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा और विश्वास चला आता था और कुछ शिक्षित राजपूत एक चौथाई  शताब्दी से भी अधिक समय से यह प्रयत्न कर रहे थे कि उन्हें हिन्दुओं में पुनः सम्मिलित कर लिया जाये।’* *(स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 65)*
*1905 से पूर्व कुछ मलकाने राजपूत प्रायश्चित् आदि करके हिन्दुओं में सम्मिलित हो गये थे। 1905 से 1910 तक कुछ उत्साही राजपूतों ने ‘राजपूत शुद्धि सभा’ का गठन करके लगभग 1132 मलकानों की घर वापसी कराई थी।‘मुसलमान बनाने वाली एजेन्सियों के प्रतिवृत्तों और विवरणों से यह भी प्रकट होता है कि मुस्लिम मलकानों को धर्म परिवर्तन न करने देने के लिए मुसलमानों की ओर से बहुतेरे प्रलोभन दिये गए पर मलकान इसकी उपेक्षा करते रहे और इस बात पर निरन्तर बल देते रहे कि उन्हें पुनः हिन्दुओं में सम्मिलित कर लिया जावे।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 66) अधिकांश हिन्दू राजपूतों की उदासीनता इस कार्य में बाधा भी उपस्थित कर रही थी। आर्यसमाज के लोग हिन्दू राजपूतों को अपने मलकाने भाईयों की भावनाओं के प्रति निरन्तर संवेदनशील होने के लिये प्रेरित कर रहे थे। 31 दिसम्बर 1922 को मेवाड़ में शाहपुराधीश सर नाहरसिंह की अध्यक्षता में आयोजित क्षत्रिय महासभा की मीटिंग में एक ‘नरम’ सा प्रस्ताव पास किया गया जिसकी कहीं चर्चा भी नहीं हुई। जनवरी 1923 के प्रारम्भ में ‘हिन्दू’ साप्ताहिक में एक छोटा सा समाचार प्रकाशित हुआ कि साढे चार लाख मुसलमान राजपूतों ने हिन्दुत्व ग्रहण करने का प्रार्थना पत्र दिया है और क्षत्रिय महासभा ने उस पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। परन्तु हिन्दुओं ने इस पर भी उन मलकान राजपूतों के करुण क्रन्दन पर ध्यान नहीं दिया।*
*🚩पर इस घटना चक्र से मुसलमान उत्तेजित हो उठे। ‘जहाँ तक मुझे स्मरण है, विरोध प्रकट करने के लिये प्रथम सभा लाहौर जिले के पट्टी गांव में हुई थी। इस सभा में देवबंद के मौलवियों ने भयंकर विद्वेषात्मक भाषण दिये और हिन्दुओं को धमकाते हुए कहा गया कि यदि हिन्दुओं ने इस्लाम में दीक्षित मलकान राजपूतों को शुद्ध करने का प्रयत्न किया तो हिन्दू मुस्लिम एकता चीर चीर करके भंग कर दी जायेगी।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: वही) इस मीटिंग की रिपोर्ट अमृतसर के मुस्लिम दैनिक ‘वकील’ के 17 फरवरी 1923 के अंक में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद दर्जनों मुस्लिम प्रचारक आगरा, मथुरा और भरतपुर के मलकान गांवों में घुस गए। फरवरी के आरम्भ में 50 से भी अधिक मौलवी वहाँ कार्य करने लगे थे और उन सब उलेमाओं ने मिलकर एक सुसंगठित संस्था का निर्माण कर लिया। इनके भयंकर प्रयत्नों और विषैले भाषणों ने सोये हुए हिन्दुओं को धक्का मारकर जगा दिया। आधे दर्जन से अधिक राजपूतों और स्वयंसेवकों ने स्वयं घूम घूम कर इन प्रयत्नों को जांचा और 13 फरवरी 1923 को विभिन्न हिन्दू और राजपूत सभाओं के प्रतिनिधियों का एक अधिवेशन बुलाया गया। स्वामी श्रद्धानन्द सहित, सनातन धर्म, आर्य समाज, सिख और जैन संस्थाओं को भी आमंत्रित किया गया। इसमें केवल मलकाने ही नहीं मूला जाट और गूजर, नव मुुस्लिम ब्राह्मण और बनिया आदि का भी प्रश्न उठा जो शुद्ध होने को उत्सुक थे।*
*🚩मुसलमानों का एक जबरदस्त संगठन था जो पूर्ण उत्साह और विद्वेष के साथ काम कर रहा था। ‘जमीयत हिदायत उल इस्लाम’ की ओर से इससे पहले ही (जिसका स्वामी जी को बाद में पता चला) इस कार्य के लिए एक लाख रूपये की अपील निकाली गई। जमीयत उल उलेमा के प्रधान मौलाना किफायतुल्ला  ने 9 फरवरी 1923 की बैठक में इस अपील का समर्थन और संपुष्टि की। (दैनिक ‘खिलाफत’ का अंक 37) सैंकड़ों मौलवी और मुस्लिम कार्यकर्ता आगरा तथा निकटस्थ प्रदेशों में जमा होने लगे थे।*
*🚩‘यदि हमें मलकानों, मूलों तथा अन्य अपने भाईयों की धार्मिक सुरक्षा की तनिक भी चिन्ता करनी थी तो यह नितान्त आवश्यक था कि हम भी एक मजबूत संगठन तैयार करते।’ (स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 67) स्वामी श्रद्धानन्द के प्रस्ताव पर इस संगठन का नाम ‘भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा’ रखा गया। एक प्रबंध समिति भी बनाई गई और स्वामी श्रद्धानन्द जी को ही इसका प्रधान निर्वाचित किया गया।*
*🚩अस्तु, 25 फरवरी को मलकानों का प्रथम जत्था शुद्ध किया गया। ये मलकान ग्रांड ट्रंक रोड पर स्थित ‘रैंभा’ गांव के थे, जो आगरा से 13 मील पर है। ‘यह मेरा सौभाग्य था कि अकस्मात् मुझे प्रथम बार उन तथाकथित मुस्लिम राजपूतों के सच्चे हिन्दू घरों को देखने का अवसर मिला और उनके रहन सहन की हिन्दू पद्धति मेरे हृदय पर अंकित हो गई।’* *(स्वामी श्रद्धानन्द: हिन्दू संगठन पृष्ठ 69)*
*🚩अन्ततः मुगल काल में कई लोगों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था, लेकिन फिर भी वो लोग हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज को ही अपना रहे थे। उन्हें घर वापसी से रोकने और हिन्दू रीति रिवाजों को अपनाने से रोककर कट्टर मुसलमान बनाने के लिये किये जा रहे प्रयत्नों को व्यवस्थित रूप देने के लिए मौलाना इलियास अल-कांधलवी ने 1926-27 में तबलीग का गठन किया था। इसका मूल उद्देश्य मुसलमानों को मूल इस्लाम (कट्टरवाद) से जोड़े रखना और गैर मुसलमानों को इस्लाम की दावत देना (मतान्तरण) है।*
*🚩‘हिन्दू संगठन’ पुस्तक: स्वामी श्रद्धानन्द (एक जेहादी ने 23 दिसम्बर 1926 को बीमारी की अवस्था में बिस्तर पर लेटे हुए स्वामी जी की धोखे से गोली मार कर हत्या कर दी थी। यह पुस्तक 1924 में प्रकाशित हुई थी। इसका नवीन संस्करण हिंदी और अंग्रेजी में आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली द्वारा 2016 में प्रकाशित किया गया है और यह इंटरनेट पर भी उपलब्ध है।*
*🚩आज भी तब्लीग का कार्य उसी स्थापित नीति के अनुसार चल रहा है। वर्ष भर तब्लीग के प्रचारक गांव-गांव ,देहात-देहात, क़स्बा-क़स्बा,शहर-शहर, महानगर-महानगर घूमते हैं। मुसलमानों को संगठित करना, उन्हें कट्टर बनाना, उन्हें मज़हबी चिन्हों को अपनाने और शरिया अनुसार जीवन जीने की प्रेरणा देना, गैर मुसलमानों को इस्लाम की खूबियों को कैसे बताया जाये ऐसा सिखाना, उन्हें साल में कुछ दिन अवैतनिक दीनी प्रचार करने की प्रेरणा देना, इस्लामिक साहित्य का भिन्न भिन्न भाषाओँ में प्रचार करना, सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेश में प्रचार करना। ये जमात के अनावृत कार्य हैं।*
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*🚩परन्तु हिन्दू समाज में स्वामी श्रद्धानन्द द्वारा चलाये गए शुद्धि (घर वापसी) और हिन्दू संगठन जैसा कार्यक्रम दूर दूर तक देखने को नहीं मिलता। वो या तो जातिवाद के विषवृक्ष की छांव में गहरी नींद में सोया पड़ा है अथवा भोग-विलास के मीठे जहर का पान कर बेसुध पड़ा है। उसके नेता धर्मरक्षा से अधिक अपने आपको चमकाने में सलंग्न हैं।*
*🚩पाठकों ध्यान दो। आपकी भविष्य के लिए क्या तैयारी है? आपकी आने वाली पीढ़ी धर्मरक्षा के लिए कितनी प्रेरित है? आपकी कौम में धर्मरक्षा के लिए आत्म-बलिदान की कितनी भावना है?  इस देश की मिट्टी बलिदान मांग रही है। उठो माँ भारती के वीर सपूतों। श्री राम और श्री कृष्ण की संतानों। शिवाजी और प्रताप के वंशजों। मुण्डकोपनिषद के सन्देश का पुन: स्मरण करो- उठो, जागो और तैयार हो जाओ !*
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जानिए रामानंद सागर ने रामायण की शुरुआत कैसे करी और कितना संघर्ष करना पड़ा?

06 अप्रैल 2020

🚩फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए 1976 में स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन में पहली बार उन्होंने रंगीन टी.वी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलीविजन के माध्यम से लोगों को दिखाना होगा। 

🚩भारत में टी.वी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश में होने लगा था। 1984 में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।

🚩इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।

🚩जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल 'विक्रम और बेताल' लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।

🚩दूरदर्शन 'रामायण' दिखाने पर सहमत था किंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली। ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा।  हालांकि राजीव गांधी के हस्तक्षेप से विरोध शांत हो गया।

🚩इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघपन दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा। एक बार तो रामायण के संवादों को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया। ये वहीं समय था जब रामानंद सागर जैसे निर्माताओं के पैर दुबई के अंडरवर्ल्ड के कारण उखड़ने लगे थे। दुबई का प्रभाव बढ़ रहा था, जो आगे जाकर दाऊद इंडस्ट्री में परिवर्तित हो गया।

🚩1986 में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने सूचना व प्रसारण का पदभार संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई। 25 जनवरी 1987 को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था। दूरदर्शन के दिन बदल गए। राम की कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू लगने लगा।

🚩इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन में कभी किसी ने हाय-हेलो नहीं किया। उनको सीता मानकर ही सम्मान दिया जाता था।

🚩अब नटराज स्टूडियो साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते। एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है। साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। वह गरज कर बोला ' तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है। हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।'

🚩आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला। आज इतिहास पुनरावृत्ति कर रहा है। उस समय जनता स्वयं कर्फ्यू लगा देती थी, आज कोरोना ने लगवा दिया है। उस समय दस करोड़ लोग इसे देखते थे, कल इससे भी अधिक देखेंगे। उन करोड़ों की सामूहिक चेतना हिमालय के उन गुरु तक पुनः पहुंच सकेगी। शायद फिर कोई युवा साधु चला आए और हम कोरोना से लड़ रहे इस युद्ध मे विजयी बन कर उभरें। कल चले राम बाण, और कोरोना का वध हो।

सत्यम शिवम सुन्दरम बरसों बाद दूरदर्शन पर लौटा है।

🚩अस्सी के दशक में भारत में पहली बार रामायण जैसे हिन्दू धार्मिक सीरियलों का दूरदर्शन पर प्रसारण शुरू हुआ... और नब्बे के दशक आते आते महाभारत ने ब्लैक एंड वाईट टेलीविजन पर अपनी पकड मजबूत कर ली, यह वास्तविकता है की जब रामयण दूरदर्शन पर रविवार को शुरू होता था... तो सड़कें, गलियाँ सूनी हो जाती थी।

🚩अपने आराध्य को टीवी पर देखने की ऐसी दीवानगी थी कि रामायण सीरियल में राम बने अरुण गोविल अगर सामने आ जाते तो लोगों में उनके पैर छूने की होड़ लग जाती... इन दोनों धार्मिक सीरियलों ने नब्बे के दशक में लोगों पर पूरी तरह से जादू सा कर दिया...पर धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों से ये ना देखा गया नब्बे के दशक में कम्युनिस्टों ने इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से की... कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में एक समुदाय के प्रभुत्व को बढ़ावा देने वाली चीजें दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर कैसे आ सकती हैं ??? इससे हिन्दुत्ववादी माहौल बनता है... जो कि धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा है।

🚩इसी वजह से सरकार को उन दिनों “अकबर दी ग्रेट ”..... टीपू सुलतान.... अलिफ़ लैला.... और ईसाईयों के लिए “दयासागर“ जैसे धारावाहिकों की शुरुवात भी दूरदर्शन पर करनी पड़ी।

🚩सत्तर के अन्तिम दशक में जब मोरार जी देसाई की सरकार थी और लाल कृष्ण अडवानी सूचना और प्रसारण मंत्री थे... तब हर साल एक केबिनट मिनिस्ट्री की मीटिंग होती थी जिसमें विपक्षी दल भी आते थे.... मीटिंग की शुरुवात में ही एक वरिष्ठ कांग्रेसी जन उठे और अपनी बात रखते हुये कहा कि.... ये रोज़ सुबह साढ़े छ बजे जो रेडियो पर जो भक्ति संगीत बजता है... वो देश की धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है... इसे बंद किया जाए,, बड़ा जटिल प्रश्न था उनका... उसके कुछ सालों बाद बनारस हिन्दू विद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने की मांग भी उठी... स्कूलों में रामायण और हिन्दू प्रतीकों और परम्पराओं को नष्ट करने के लिए.... सरस्वती वंदना कांग्रेस शासन में ही बंद कर दी गई... महाराणा प्रताप की जगह अकबर का इतिहास पढ़ाना... ये कांग्रेस सरकार की ही देन थी.... केन्द्रीय विद्यालय का लोगो दीपक से बदल कर चाँद तारा रखने का सुझाव कांग्रेस का ही था... भारतीय लोकतंत्र में हर वो परम्परा या प्रतीक जो हिंदुओं के प्रभुत्व को बढ़ावा देता है उसको सेकुलरवादियों के अनुसार धर्म निरपेक्षता के लिए खतरा है... किसी सरकारी समारोह में दीप प्रज्वलन करने का भी ये विरोध कर चुके हैं... इनके अनुसार दीप प्रज्वलन कर किसी कार्य का उद्घाटन करना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है.... जबकि रिबन काटकर उद्घाटन करने से देश में एकता आती है... कांग्रेस यूपीए सरकार के समय हमारे राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन से “सत्यम शिवम सुन्दरम” को हटा दिया गया था,

●ये भूल गए है कि ये देश पहले भी हिन्दू राष्ट्र था और आज भी है ये स्वयं घोषित हिन्दू देश है... आज भी भारतीय संसद के मुख्यद्वार पर “धर्म चक्र प्रवार्ताय अंकित है.... राज्यसभा के मुख्यद्वार पर “सत्यं वद--धर्मम चर“ अंकित है.... भारतीय न्यायपालिका का घोष वाक्य है “धर्मो रक्षित रक्षितः“.... और सर्वोच्च न्यायलय का अधिकारिक वाक्य है, “यतो धर्मो ततो जयः“ यानी जहाँ धर्म है वही जीत है.... आज भी दूरदर्शन का लोगो... सत्यम शिवम् सुन्दरम है।

●ये भूल गए हैं कि आज भी सेना में किसी जहाज या हथियार टैंक का उद्घाटन नारियल फोड़ कर ही किया जाता है...
●ये भूल गए है कि भारत की आर्थिक राजधानी में स्थित मुंबई शेयर बाजार में आज भी दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है...
*●ये कम्युनिस्ट भूल गए है कि स्वयं के प्रदेश जहाँ कम्युनिस्टों का 34 साल शासन रहा, वो बंगाल.... वहां आज भी घर घर में दुर्गा पूजा होती है...*
*●ये भूल गए है की इस धर्म निरपेक्ष देश में भी दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वयं भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति राम-लक्ष्मण की आरती उतारते है... और ये सारे हिंदुत्ववादी परंपराए इस धर्मनिरपेक्ष मुल्क में होती है...*
*🚩हे धर्म को अफीम समझने वाले कम्युनिस्टों....! तुम धर्म को नहीं जानते.... . और इस सनातन धर्मी देश में तुम्हारी शातिर बेवकूफी अब ज्यादा दिन तक चलेगी नहीं। अब भारत जाग रहा है, अपनी संस्कृति को पहचान रहा है।*
*🚩जय श्रीराम ।।🚩*
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Wednesday, April 8, 2020

कोरोना’ जैसे विषाणुओं को रोकने का रामबाण इलाज "अग्निहोत्र"

08 अप्रैल 2020

*🚩वेदकाल से भारत में यज्ञकर्म किए जाते हैं । भारतीय संस्कृति में यज्ञयागों का आध्यात्मिक लाभ तो है ही, परंतु वैज्ञानिक स्तर पर भी अनेक लाभ होते हैं, यह अब विज्ञान द्वारा सिद्ध हो रहा है । इसमें एक सहज सरल और प्रतिदिन किया जानेवाला यज्ञ है ‘अग्निहोत्र’ ! हिन्दू धर्म मानवजाति को दी हुई यह एक अमूल्य देन है । अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की बड़ी मात्रा में शुद्धि होती है । इतना ही नहीं, उसे करनेवाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी होती है । साथ ही वास्तु और पर्यावरण की भी रक्षा होती है ।*

*🚩अग्निहोत्र प्राचीन वेद-पुराणों में वर्णित एक साधारण धार्मिक संस्कार है, जो प्रदूषण को अल्प करने तथा वायुमंडल को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने हेतु किया जाता है ।*

*🚩अग्निहोत्र के कारण निर्माण होनेवाले औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक किटाणुओं के बढने पर प्रतिबंध लगता है, तथा उनका अस्तित्व नष्ट होने में सहायता होती है । इसलिए ही वर्तमान में जगभर में उत्पात मचानेवाले ‘कोरोना वायरस’ के संकट पर ‘अग्निहोत्र’ एक रामबाण उपाय हो सकता है। इस पार्श्‍वभूमि पर सभी हिन्दू बंधू सभी प्रकार की वैद्यकीय जांच, उपचार, प्रतिबंधात्मक उपाय इत्यादि करते हुए देश में ‘करोना’ का प्रादुर्भाव रोकने के लिए तथा समाज को अच्छा आरोग्य और सुरक्षित जीवन जीने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करें, ऐसा आह्वान हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने किया है ।*

*🚩अग्निहोत्र करने के लिए किसी भी पुरोहित को बुलाने की, दानधर्म करने की आवश्यकता नहीं होती । इसके लिए कोई भी बंधन नहीं है । सामान्य व्यक्ति यह विधि घर, खेत, कार्यालय में मात्र 10 मिनट में कहीं भी कर सकता है । इसका खर्च भी अत्यल्प है । अग्निहोत्र नित्य करने से धर्माचरण तो होगा ही, परंतु पर्यावरण के साथ ही समाज की भी रक्षा होगी ।*
*‘अग्निहोत्र’ के संदर्भ में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं । उसकी विपुल जानकारी इंटरनेट के माध्यम से हम प्राप्त कर सकते हैं ।*

*🚩फ्रान्स के ट्रेले नाम के वैज्ञानिक ने हवन पर किए अनुसंधान में हवन करने से वातावरण में 96 प्रतिशत घातक विषाणु और किटाणू कम होना दिखाई दिया है; उस विषय में ‘एथ्नोफार्माकोलॉजी 2007’ के जर्नल में शोधनिबंध प्रकाशित हुआ था । ‘नेशनल केमिकल लेबोरेटरी’ इस संस्था के निवृत्त ज्येष्ठ शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे द्वारा किए गए अनुसंधान के अनुसार अग्निहोत्र के कारण वातावरण में सूक्ष्म किटणुओं की वृद्धि 90 प्रतिशत से कम हुई है; प्रदूषित हवा के घातक सल्फरडाय ऑक्साईड के प्रमाण दस गुना कम होता है; पौधों की वृद्धि नियमित की अपेक्षा अधिक होती है; अग्निहोत्र की विभूति कीटाणुनाशक होने से घाव, त्वचारोग इत्यादि के लिए अत्यंत उपयुक्त है; पानी के कीटाणु और क्षार का प्रमाण 80 से 90 प्रतिशत कम करती है । इसलिए अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने अग्निहोत्र का स्वीकार किया है ।उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसका निष्कर्ष प्रकाशित किया है ।* *स्त्रोत : हिंदु जन जागृति*

*🚩हमारी संस्कृति को हम भूल गए हैं इसलिए आज हमें घरों में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है नहीं तो आज अगर घर घर हवन होता, तुलसी, पीपल आदि होते, देशी गाय होती, महापुरुषों के अनुसार अपना रहन-सहन बनाया होता तो कोरोना जैसे भयंकर वायरस हमें छू भी नहीं सकते थे !! हमारी संस्कृति इतनी महान है बस अब शीघ्र उसपर लौटने की आवश्यकता है नहीं तो इससे भी अधिक भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ।*

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