Saturday, November 7, 2020

दीपावली पर खरीदारी कर रहे हैं तो इन बातों का ध्यान रखें, इस बारे एक ट्रेंड भी टॉप में चला..

07 नवंबर 2020


उल्लास, आनंद, प्रसन्नता बढ़ाने वाले हमारे पर्वों में पर्वों का पुंज दीपावली अग्रणी स्थान पर है। भारतीय संस्कृति के ऋषि-मुनियों, संतों की यह दूरदृष्टि रही है, जो ऐसे पर्वों के माध्यम से वे समाज को वास्तविक आत्मिक आनंद, शाश्वत सुख के मार्ग पर ले जाते थे।




दीपावली पर हम खुश होते हैं व खुशियां बाँटते हैं, दीपावली पर हम घर में नया सामान, पटाखें, मिठाई आदि की खरीदारी करते है। यह सामान खरीदने में एक सावधानी जरूर रखें शनिवार को इस पर ट्रेंड चला था #हिंदू_दीपावली_हिंदू_सामान जो दिनभर टॉप में रहा और करीब एक लाख से ऊपर ट्वीट हुई थी दूसरा भी शनिवार शाम को टॉप में #चीन_मुक्त_दीपावली ट्रेंड चला।

ट्वीटर पर इस ट्रेंड के माध्यम से जनता बता रही थी कि दीपावली त्योहार हिंदुओ का है इसलिए हिंदुओं की दुकानों से ही सामान खरीदें क्योंकि जो दीपावली मनाते है उन्हीं से ही सामान खरीदें अर्थात हिंदुओं की दुकान से ही सामान खरीदें एवं चीन का भी सामान नहीं खरीदें क्योंकि भारतवासियों के पैसे से ही चीन समृद्ध हो रहा है और भारत के खिलाफ ही साजिश करता है।

ट्वीट के माध्यम से बताया गया था कि विदेशी कंपनियों की हिन्दू धर्म के प्रति कोई आस्था नहीं होती है इसलिए हिन्दुओं के सबसे बड़े त्योहार पर सिर्फ देश के बने हुए सामान और वो भी दिपावली मनाने वालों से ही खरीदने का संकल्प लें।

बताया गया कि हमें चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहिए इससे हम उससे बिना लड़े जीत सकते हैं। बिजली का सामान हो या सजावटी सामान हो, या फिर अन्य सामान, राष्ट्र निर्मित ही होना चाहिए। ऐसा देश हित में होगा।

एक यूजर ने बताया कि इस वर्ष की दीपावली देश में निर्मित सामान से ही मनानी है यही सच्ची दिवाली होगी। देश का पैसा देश के कार्यों में लगे ऐसा शुभ संकल्प होना चाहिए। ये दीपावली आपकी आध्यात्मिक दीपावली हो।
#हिन्दू_दीपावली_हिन्दू_सामान #चीन_मुक्त_दीपावली

इस तरीके से अपील करती हुई लाखों ट्वीट हुई जिसके जरिये बताया गया कि हिंदुओ से ही सामान खरीदें एवं चीन का नहीं बल्कि भारतीय स्वदेशी ही सामान खरीदें।

दूसरी बात की दीपावली में कुछ लोग देवी-देवताओं के छायाचित्र वाले पटाखें फोडते हैं । देवता का छायाचित्र प्रत्यक्ष देवता ही हैं। जिस समय हम पटाखें फोडते हैं, उस समय उस छायाचित्र के टुकडे होते हैं, अर्थात हम उस देवता का अनादर ही करते हैं। श्रीलक्ष्मी के छायाचित्र वाले, साथ ही राष्ट्रभक्तों के छायाचित्र वाले पटाखें फोडना, इससे हमें पाप लगता है । इस दीपावली को हम ऐसे पटाखें खरीदेंगे ही नहीं। साथ ही ऐसे पटाखे खरीदने वालों का प्रतिरोध कर उनका प्रबोधन करेंगे, वास्तव में यह देवता की भक्ति है । ऐसा करने से हम पर देवता की कृपा होगी । बच्चो, क्या हमारे माता-पिता के छायाचित्र वाले पटाखे हम फोडेंगे ? नहीं न ! देवता हम सभी की रक्षा करते हैं । हमें शक्ति एवं बुदि्ध प्रदान करते हैं; अतएव इस दीपावली को हम यह अनादर रोकने का निश्चय करें ।

तीसरी बात यह है कि दीपावली पर मिठाई तो खरीदते ही है तो क्यो न इस बार गाय के दूध से बनी मिठाई खरीदे जिससे हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा, गौशालाओं में आमदनी भी अच्छी होगी और गौरक्षा भी होगी इसलिए इस बार जितना हो सके देशी गाय के दूध की मिठाई को खरीदें, खाएं एवं बांटे।

चौथी बात है कि आपके पास कोई हिंदू गरीब परिवार है तो आसपास के सभी हिंदू मिलकर उसकी सहायता जरुर करें जिससे वे भी अपनी दीपावली अच्छे से मना सकें।

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Friday, November 6, 2020

हिन्दू दुर्दशा : हिन्दुओं की समानता के लिए पेश हुए विधेयक पर कोई चर्चा नहीं

06 नवंबर 2020


लोकसभा में एक अनोखा बिल विचार के लिए पड़ा हुआ है। ये बिल 226/2016 है। संविधान के अनुच्छेद 25-30 की सही व्याख्या तथा अनुच्छेद 15 में गलत संशोधन को रद्द करने से संबंधित है। इसे भाजपा सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह ने निजी विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया था। यह मार्च 2017 से लोकसभा में विचार के लिए लंबित है।




ठीक ऐसा ही विधेयक सैयद शहाबुद्दीन ने दसवीं लोक सभा में अप्रैल 1995 में रखा था। ये बिल 36/1995 था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 30 के उपबन्धों में जहाँ-जहाँ ‘सभी अल्पसंख्यक’ लिखा हुआ था, उसे बदल कर ‘भारतीय नागरिकों का कोई भी वर्ग’ करने का प्रस्ताव दिया था। उनके विधेयक का मूल पाठ (नं 36/1995) पढ़ कर उसका महत्व समझा जा सकता है।

शहाबुद्दीन ने अपने विधेयक के उद्देश्य में भी स्पष्ट किया था कि वर्तमान रूप में अनुच्छेद 30 केवल अल्पसंख्यकों पर लागू होती है। जबकि एक विशाल और विविधता भरे समाज में लगभग सभी समूह चाहे जिनकी पहचान धर्म, संप्रदाय, फिरका, भाषा और बोली किसी आधार पर होती हो, व्यवहारिक स्तर पर कहीं ना कहीं अल्पसंख्यक ही होता है, चाहे किसी खास स्तर पर वह बहुसंख्यक ही क्यों ना हो। आज विश्व में सांस्कृतिक पहचान के उभार के दौर में हर समूह अपनी पहचान बनाने के प्रति समान रूप से चिंतित है और अपनी पसंद की शैक्षिक संस्था बनाने की सुविधा चाहता है। इसीलिए, यह उचित होगा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के दायरे में देश के सभी समुदाय और हिस्से सम्मिलित किये जाए।

शहाबुद्दीन ने यह भी लिखा था कि जो बहुसंख्यकों को प्राप्त नहीं, वैसी विशेष सुविधा अल्पसंख्यक समूहों को देने के लिए अनुच्छेद 30 की निंदा होती रही है। अतः बहुसंख्यकों को भी अपनी शैक्षिक संस्थाएं बनाने, चलाने का समान अधिकार मिलना चाहिए।

यह हिन्दू समाज विशेषकर इसके नेताओं की अचेतावस्था का प्रमाण है कि वह विधेयक यूँ ही पड़ा-पड़ा खत्म हो जाने दिया गया। उसे पारित करना आसान था, जिसे तब सबसे प्रखर मुस्लिम नेता ने पेश किया था। उसे पारित कर अल्पसंख्यकवाद की जड़ खत्म हो सकती थी क्योंकि उसी धारा के विकृत पाठ ने हिन्दुओं को अनेक सुविधाओं से वंचित किया है। यद्यपि संविधान-निर्माताओं का आशय वह नहीं था। संविधान सभा की बहस दिखाती है कि उनकी चिंता मात्र यह थी कि किसी अल्पसंख्यक को अपनी सांस्कृतिक, शैक्षिक विरासत से वंचित ना रहना पड़े। लेकिन समय के साथ उस अनुच्छेद का विकृत अर्थ कर डाला गया कि वह अधिकार केवल अल्पसंख्यकों को है। इस तरह अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकारी वर्ग बनाकर नेहरू नेतृत्व वाली कांग्रेस ने हिन्दू-विरोध को संवैधानिक रूप दे दिया। फिर अन्य दल भी वोटबैंक की राजनीति के लोभ में गिर गए। इसीलिए आश्चर्य से अधिक यह लज्जा की बात है कि 1995 में सैयद शहाबुद्दीन द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण अवसर को तमाम हिन्दू नेताओं ने गँवा दिया।

वैसा ही एक और विधेयक 226/2016 विधेयक लोकसभा में 2017 से लंबित है। उसमें अनुच्छेद 26-30 के बारे में वहीं मांग है कि इन अनुच्छेदों को देश के सभी लोगों पर समान रूप से लागू माना जाए ताकि केवल विशेष समूहों को वित्तीय सहायता, केवल हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जा, हिन्दू ज्ञान-ग्रंथों को स्कूल-कॉलेज की शिक्षा से बहिष्कृत किए रखने तथा अपने शैक्षिक संस्थान चलाने में भेदभाव जैसी गड़बड़ियाँ दूर हों। अन्यथा भारत में ही हिन्दू दूसरे दर्जे के नागरिक बने रहने के लिए अभिशप्त रहेंगे।

भारतीय संविधान के अनुसार देश का कोई धर्म नहीं होता। देश को हर धर्म का बराबर सम्मान करना चाहिए। देश को किसी भी धार्मिक स्वतंत्रता, आस्था और श्रद्धा में दखल नहीं करना चाहिए। साक्ष्यों से पता चलता है आज़ादी के बाद कि बहुसंख्यकों (हिन्दू) के अधिकारों का हनन कर अल्पसंख्यकों को फायदा पहुँचाया गया। इस भेदभाव से बहुसंख्यक वर्ग में भारी रोष है। ये देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। हिन्दुओं को समानता दिलाने के लिए विधेयक 226/2016 में ये मुख्य संशोधन सुझाए हैं 👇🏻

(1) अनुच्छेद 15 के खंड 5 को रद्द किया जाए जो 2005 में संविधान के 93वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया। इसके अनुसार राज्य को सामाजिक एवं अशैक्षिणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिये शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश से में सहायता प्रदान करने का प्रावधान है जो अल्पसंख्यक वर्ग की शिक्षा संस्थाओं से भिन्न हो। तो इससे बस हिन्दुओं के शिक्षा संस्थानों का शोषण हो रहा है और मुस्लिमों के शिक्षण संस्थानों की तरफ कोई उंगली भी नहीं उठाता।

(2) अनुच्छेद 26 अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के भेदभाव बिना धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों को स्थापित करने और बनाए रखने के लिए, अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने और संपत्ति का स्वामित्व रखने और प्रबंधन करने का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों में भी यहीं मिलता है। संविधान के मौजूदा अनुच्छेद 26 को खंड (1) को फिर से वर्गीकृत किया जाए और निम्न खंड क्रमशः डाले जाए 👇🏻

(a) अनुच्छेद 25 में निहित कुछ भी होने के बावजूद, राज्य किसी भी धार्मिक संप्रदाय द्वारा धार्मिक या धर्मार्थ प्रयोजनों पर नियंत्रण, प्रतिबंध और प्रबंधित नहीं करेगा।

(b) राज्य कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो धार्मिक सम्प्रदाय को नियंत्रित करने, प्रशासन या प्रबंधन करने में सक्षम बनाता है।  अगर कोई भी कानून इस खंड के उल्लंघन में बनाया गया, इस तरह के उल्लंघन की सीमा तक शून्य हो जाएगा।

(3) संविधान के मौजूदा अनुच्छेद 27 के खंड (1) को फिर से इस रूप में वर्गीकृत किया जाए जिससे भारत के किसी भी कोष का देश या देश के बाहर विशेष धर्म पर खर्च ना किया जा सके।

(4) संविधान के अनुच्छेद 28 में, खंड (3) के बाद, निम्नलिखित खंड डाला जाए जिससे किसी भी शिक्षण संस्थान में पारंपरिक भारतीय ज्ञान या प्राचीन ग्रंथों को पढ़ाने से पूरी तरह से या आंशिक रूप से कोई बाधा ना रहे।

(5) संविधान के अनुच्छेद 29 में सीमांत शीर्षकों में, "अल्पसंख्यकों के हितों" शब्दों की जगह "सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार" शब्दों को प्रतिस्थापित किया जाए।

(6) संविधान के अनुच्छेद 30 में👇🏻

(a) "अल्पसंख्यकों" शब्द की जगह सीमांत शीर्षक में "नागरिकों के सभी वर्गों, चाहे धर्म या भाषा पर आधारित हों" शब्द प्रतिस्थापित किए जाए।

(b) खंड (1) में "अल्पसंख्यकों" शब्द की जगह "नागरिकों के वर्गों" शब्द को प्रतिस्थापित किया जाए।

(c) "अल्पसंख्यक" शब्द की जगह क्लॉज (1 ए) में "नागरिकों का एक वर्ग" शब्द को प्रतिस्थापित किया जाए।

(d) खंड (2) में "अल्पसंख्यक" शब्द की जगह "नागरिकों का एक वर्ग" शब्द को प्रतिस्थापित किया जाए।

क्या विडंबना है कि हिन्दुओं की यह दुर्दशा ब्रिटिश राज में नहीं, कांग्रेस राज में शुरू की गई।

डॉ. सत्यपाल सिंह का विधेयक पूरी तरह समानता-परक है। यह किसी समुदाय को मिले हुए किसी अधिकार से वंचित नहीं करता, बल्कि सबको वही अधिकार देने की माँग करता है। स्वभाविक है कि इससे भारत में सांप्रदायिक भेदभाव की राजनीति कमजोर होगी और लोगों में सामंजस्य बढ़ेगा।

अभी तक अनुच्छेद 26-30 की विकृत व्याख्या ने सब कुछ बिगाड़ रखा है। अनुच्छेद 28 का विकृत अर्थ करके स्कूलों में रामायण, महाभारत पढाना प्रतिबंधित रखा गया है। जबकि ईसाई और मुस्लिम अपने-अपने शैक्षिक संस्थाओं में बाइबिल और कुरान जमकर पढ़ाते हैं। इस भेदभाव के कितने गंभीर दुष्परिणाम हुए, इसका भान भी पार्टी-ग्रस्त हिन्दुत्ववादियों को नहीं है। दिनो-दिन हिन्दू परिवारों के बच्चे धर्महीन, विचारहीन और हिन्दू-द्वेषी बनते जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि आरंभ से ही उन्हें हिन्दू ज्ञान से वंचित रखा जाता है। इसलिए वे समय के साथ ईसाई, कम्युनिस्ट, इस्लामी, भोगवादी, पश्चिम-परस्त विचारों से भर जाते हैं। वे उन्हीं बातों को ‘शिक्षा’ समझते हैं क्योंकि तमाम औपचारिक-अनौपचारिक माध्यमों से उन्हें वहीं सब जानने, सुनने को मिलता रहा।

आखिर क्या कारण कि जेएनयू, एनडीटीवी, फ्रंटलाइन, ईपीडब्ल्यू, आदि नामी बौद्धिक अड्डों से हिन्दू-द्वेषी प्रचार चलाने वाले लगभग सभी जन हिन्दू परिवारों से हैं? वैसे ही इस्लाम-द्वेषी मुस्लिम या चर्च-द्वेषी ईसाई प्रोफेसर, पत्रकार, बुद्धिजीवी क्यों नहीं मिलते? सारे प्रभावशाली बुद्धिजीवी केवल हिन्दू-निंदक हैं। इसका सबसे बड़ा कारण हिन्दू ज्ञान को शिक्षा से बाहर रखना ही है। मुस्लिम और ईसाई बुद्धिजीवी इस्लामी और ईसाई साहित्य या परंपरा के विरुद्ध कुछ नहीं बोलते। उनकी शिक्षा में उन जड़-मतवादों के प्रति भी सम्मान रखना सिखाया गया है। जबकि हिन्दुओं की शिक्षा उलटी कर दी गई है।

उसी तरह अनुच्छेद 26 सभी धार्मिक समूहों को अपने धार्मिक संस्थान बनाने, चलाने का अधिकार देती है। सुप्रीम कोर्ट ने अनेक फैसलों में स्पष्ट कहा है कि यह अधिकार निरपवाद रूप से सभी समुदायों को है। जैसे, ‘रत्तीलाल पनाचंद गाँधी बनाम बंबई राज्य’ (1952) मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि किसी धार्मिक संस्था के संचालन का अधिकार उसी धर्म-संप्रदाय के व्यक्तियों का है। उनसे छीनकर किसी भी अन्य या सेक्यूलर प्राधिकरण को देना उस अधिकार का उल्लंघन है, जो संविधान ने दिया है। ‘पन्नालाल बंसीलाल पित्ती बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ (1996) में भी सुप्रीम कोर्ट ने वहीं कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 जो अधिकार इस्लाम, ईसाई धर्मावलंबियों को देती है, उससे हिन्दुओं को वंचित नहीं करती है। ऐसे कई न्यायिक निर्णय और हैं।

किन्तु व्यवहार में क्या होता रहा? यही कि हमारी सरकारें, जब चाहे हिन्दू मंदिरों, मठों, संस्थाओं की संपत्ति पर कब्जा कर लेती हैं। फिर उसे ‘सेक्यूलर’ ढंग से चलाती और उसकी आय का दुरूपयोग करती है। कहीं-कहीं सरकार हिन्दू मंदिरों की आय से हिन्दू-विरोधियों की सहायता करती है। जैसे, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में। बहाना मंदिरों में कुव्यवस्था का होता है, किन्तु घातक गड़बड़ी कर रहे चर्च, मस्जिदों, मदरसों, आदि पर भी सरकार कभी हाथ नहीं डालती। जबकि गैर-कानूनी कामों में लिप्त चर्च, मस्जिदों, मदरसों के समाचार आते रहे हैं।

फिर अनुच्छेद 27 के अनुसार भारतीय नागरिकों को किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने के लिए टैक्स नहीं देना है। लेकिन यहाँ कई प्रधानमंत्री ‘देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार’ होने जैसी बातें करते रहे हैं। कोई नेता हज सब्सिडी बढ़ाता है, कोई हज हाऊस बनवाता है, कोई हज का विमान-भाड़ा घटाता है। साथ ही, अल्पंसख्यक मंत्रालय, आयोग, शिक्षा संस्थान, कोचिंग संस्थान, विशेष छात्रवृत्तियाँ आदि बनती गई जो व्यवहारतः केवल विशेष धर्म-मतावलंबियों के लिए होती हैं। अर्थात् एक मजहब विशेष को बढ़ावा देने के लिए टैक्स धन का दुरुपयोग।

इस प्रकार अनुच्छेद 25 से 30 तक का पाठ और व्यवहार हिन्दू-विरोधी हो गया है। कितनी विचित्र बात है कि राम-मंदिर और गंगा जी की सफाई की चिन्ता करने वाले हिन्दूवादी इन धाराओं पर एक मामूली विधेयक पास करने की जरूरत महसूस नहीं करते। जबकि ये धाराएं देश में सारी हिन्दू विरोधी गड़बड़ियों को संस्थागत रूप देने का बहाना बन गई है। इस विधेयक को पास करने में विशेष बहुमत की जरूरत भी नहीं। वर्तमान राजनीतिक वातावरण में हरेक दल इसका विरोध करने में संकोच करेगा। क्योंकि इस विधेयक को पास करने में जबरदस्त हिन्दू गोलबंदी की संभावना है। फिर भी क्या डॉ. सत्यपाल सिंह के विधेयक का हश्र वही होगा जो शहाबुद्दीन के विधेयक का हुआ था? -डॉ. शंकर शरण

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Thursday, November 5, 2020

अर्णब गिरफ्तारी मामला : क्या अंग्रेजों व मुग़लों का सपना साकार हो रहा है?

05 नवंबर 2020


रिपब्लिक भारत चैनल के चीफ एडीटर अर्णब गौस्वामी की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थन में कई लोग सड़कों पर आ गए। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी गिरफ्तारी की निंदा की और ज़ी न्यूज़ के पत्रकार सुधीर चौधरी भी उनके समर्थन में आये सभी का एक ही कहना है कि अर्नब गौस्वामी के पालघर के साधुओं की हत्या, सुशांत सिंह राजपूत की हत्या आदि हिंदुत्व के मुद्दे उठाने पर पुराने केस का आधार बनाकर बदले की भावना से महाराष्ट्र सरकार कार्यवाही कर रही है।




आपने महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई आदि का इतिहास पढ़ा होगा उसमें अंग्रेज और मुग़ल हिंदुओं को आपस मे कैसे भिड़ाते हैं। उस समय हिंदू आपस में नहीं बंटते तो मुगल और अंग्रेज भारत में राज कर ही नहीं सकते थे। कुछ सत्ता लोलुप हिंदू मुग़लो और अंग्रेजो के हाथ बिक जाते थे जिसके कारण देशभक्त हिंदू हार जाते थे। आज भी वही स्थिति है।

महाराष्ट्र में शिवसेना के मुख्यमंत्री है और कार्यवाही की जा रही है हिंदुत्व के मुद्दे उठाने वाले पत्रकार अर्णब गौस्वामी की। इसके मूल में जायेगे तो पता चलेगा कि इसके पीछे हाथ होगा राष्ट्र विरोधी ताकतों का क्योंकि उनको भारत में अपना राज कायम करना है, इसलिए वे लोग "फुट डालो और राज करो" का रूल्स अपना रहे हैं जिसके कारण हम लड़ते रहे और उनकी सत्ता कायम बनी रहे।

केवल एक अर्नब की ही बात नही है, चलो अर्णब पहले हिंदू विरोधी थे वे भी सब जानते ही है लेकिन अब हिंदू जागरूक हुए तो वे हिंदुओं के मुद्दे उठाने लगे उसके लिए उनको धन्यवाद है लेकिन सुदर्शन न्यूज़ के मुख्य संपादक श्री सुरेश चव्हाणके करीब 15 साल से सतत हिंदुओं के लिए आवाज उठा रहे है। उनको लव जिहाद का मुद्दा लेकर 1 नवम्बर को दिल्ली में धरना देने पर गिरफ्तार कर लिया पर उनके समर्थन में कोई आया नहीं और न ही कोई बड़े नेताओँ ने निंदा की ।

यह तो पत्रकारों की बात हो गई लेकिन 50 वर्ष से समाज, हिंदू संस्कृति व राष्ट्र के उत्थान के लिए कार्य करने व धर्मान्तरण की कमर तोड़ने वाले, लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाने वाले, राहुल गांधी का पप्पू नाम रखने वाले ओर सोनिया मेडम भारत छोड़ो का नारा देने वाले, 14 फ़रवरी को वेलेंटाइन डे को खत्म करके मातृ-पितृ पूजन लाने वाले, करोड़ों लोगों को व्यभिचार और व्यसनों को छुड़ाकर विदेशी कम्पनियों को अरबो-खबरों का घाटा करवाने वाले और विदेशो में भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले और करोड़ो हिंदुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक करने वाले 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू पर झूठे केस लगाकर आधी रात को जब गिरफ्तार किया जाता है तब पूरी मीडिया उनके खिलाफ हल्ला बोलती है केवल सुदर्शन न्यूज़ को छोड़कर क्योंकि उन सभी चैनलों को विदर्शों से भारी फंडिग मिलती है तब बापू आशारामजी के पक्ष में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, श्री अशोक सिंघल जैसे कुछ नेता आये बाकी सब चुपचाप बैठ गए इससे राष्ट्र विरोधी ताकतों को बल मिल गया ओर धर्मांतरण वालो की फिर से दुकानें चालू हो गई, विदेशी कंपनियों का घाटा अब नहीं होने लगा फिर से वे अपना साम्राज्य बढ़ाने लगी क्योंकि मिशनरी चाहती है की जितना ज्यादा धर्मांतरण होगा उतना ही उनकी वोटबैंक बढ़ेगी ओर विदेशी कंपनियों को भी भारत मे काफी मुनाफ़ा होगा इन सबको भोले भारतवासी नहीं समझने के कारण हिंदू संत आशारामजी बापू को मीडिया की झूठी खबरे देखकर उनको गलत बोलने लगे जबकि वास्तविकता कोई जानने के प्रयास नहीं किया।

शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, डीजी वंजारा, स्वामी असीमानंद आदि आदि सभी एक एक करके निशाने पर लिया गया और सालो भर जेल में भेजा गया लेकिन उनके समर्थन में हिंदू नहीं आये।

हमारा कहने का तात्पर्य इतना है कि राष्ट्र विरोधी ताकते हमारे हिंदू योद्धाओं को एक एक करके खत्म कर रहे है उनका मुख्य उद्देश्य यही है कि भारत मे उनका साम्राज्य स्थापना करना है उसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते है पैसे फेक कर मीडिया में बदनामी कवाएग, जेल में ठूस देंगे, हत्या करवा देंगे इसलिए अभी भी समय है किसी भी हिंदुनिष्ठ पर षडयंत्र तरह अत्याचार किया जाए तो सभी को एकजुट होकर उसका विरोध करना चाहिए तभी अपना देश व अस्तित्व बचा पाएंगे।

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Wednesday, November 4, 2020

गाय के गोबर से बनाए गए दीये से आया आदिवासियों के जीवन में उजाला

04 नवंबर 2020



भारतीय गाय को माता का दर्जा यू ही नहीं दिया गया है, गाय माता वातावरण को शुद्ध करती है, स्वास्थ्य लाभ देती है और साथ साथ में रोजगार भी देती है बस उसका सही तरीका पता होना चाहिए।




आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के धार जिले के छोटे से गांव नावदापुरा के युवक कमल पटेल ने इसे चरितार्थ कर दिखाया है। कमल ने जब क्षेत्र के आदिवासी परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट देखा तो इंटरनेट पर उनकी मदद का जरिया खोजना शुरू किया। थोड़े प्रयास से तरकीब मिल गई। कमल को गाय के गोबर से दीपक बनाने का तरीका पता चला।

एक गाय रखने वाले परिवार को हो रही दो हजार रुपये प्रति माह की आय।

कमल ने पहले खुद दीपक बनाना सीखा फिर गांव के पांच लोगों को सिखाया। इन्होंने क्षेत्र के 25 आदिवासी परिवारों को प्रशिक्षण दिया। धार्मिक रूप से पवित्र माने जाने वाले गाय के गोबर से बने दीपक बिकने लगें। अब एक गाय रखने वाले परिवार को इससे दो हजार रुपये प्रति माह की आय हो रही है।

गाय के जिस गोबर को फेंक देते हैं, उसी से कमाई भी कर सकते हैं।

स्नातक के दूसरे साल के बाद पढ़ाई छोड़ चुके कमल ने शहीद टंटिया मामा गो सेवा समिति बनाकर आदिवासी गोपालकों को इससे जोड़ा। इन परिवारों को बताया गया कि गाय के जिस गोबर को वे फेंक देते हैं, उसी से कमाई भी कर सकते हैं। प्रशिक्षण लेने वाले परिवारों की करीब 50 गायें अब कामधेनु बन गई हैं। उनका गोबर, घी, दीपक व बाती में उपयोग हो रहा है। कमल ने प्रत्येक परिवार को प्रति गाय 500 दीपक बनाने का कार्य सौंपा है।

मदद के लिए बढ़े हाथ

एक संस्था ने भी मदद के लिए हाथ बढ़ाया और चार रुपये में एक दीपक खरीदने का प्रस्ताव दिया है। दीपावली के त्योहार को देखते हुए गोबर से बने 12 दीपक, रुई और गाय के घी से बनीं 12 बातियों के बॉक्स को 75 रुपये में बेचा जा रहा है। कमल बताते है एक दीपक का वजन महज 10 ग्राम है। यह पानी में भी तैर सकता है। अब बड़े स्तर पर दीपक की बिक्री के लिए सांवरिया फाउंडेशन के सहयोग से मार्केटिंग की जाएगी।

इस तरह तैयार किए जाते हैं दीपक-

- गाय के गोबर के कंडे (उपले) बनाकर उसे एक मशीन में ग्राइंड कर बारीक चूरा तैयार किया जाता है।

- इसमें थोड़ा सा लकड़ी का बुरादा, गो-मूत्र व कुछ मात्रा में मुल्तानी मिट्टी मिलाकर पेस्ट तैयार किया जाता है।

- महाराष्ट्र से आनलाइन मंगाई गई मशीन के सांचों में इस पेस्ट को डाला जाता है।

- सांचों से दीपक निकालकर सुखाए जाते हैं और फिर कई रंगों से रंगे जाते हैं। इस तरह इको फ्रेंडली दीपक तैयार हो जाते हैं।

हमने कभी सोचा नहीं था कि यह भी हो सकता है : गो पालक

गो पालक शांता बाई व लक्ष्मी बाई बताती हैं कि हमने कभी सोचा नहीं था कि इस तरह गोबर से दीपक बना सकते हैं। इससे हमें आय होगी और हमारी दीपावली खुशियों वाली होगी। वहीं, मुन्नीबाई बताती हैं कि यह कार्य हम लोग सामूहिक रूप से कर रहे हैं। इसमें हमारे बच्चे भी मदद कर रहे हैं। इससे होने वाली आय से दीपावली पर बच्चों के लिए नए कपड़े भी खरीदे जा सकेंगे।

आप भी अपने स्थानों पर ऐसा अभियान शुरू कर सकते है, इससे वातावरण की शुद्धि होगी, गौ रक्षा होगी, रोजगार मिलेगा और स्वास्थ्य लाभ भी मिलेगा एक साथ सभी कार्य होंगे।

आपको बता दें कि परमाणु विकिरण से बचने में गाय का गोबर उपयोगी होता है। भारतीय गाय के गोबर-गोमूत्र में रेडियोधर्मिता को सोखने का गुण होता है और गोबर को शरीर पर मलकर स्नान करने से बहुत से चर्मरोग दूर हो जाते हैं। गोमय स्नान को पवित्रता और स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है। इस प्रकार भारतीय गाय की अनेक अदभुत विशेषताएँ हैं।

आज से आप भी गौमाता की महत्ता सजकर गाय के दूध-दही, घी, गौमूत्र, गोबर से सभी तक पहुचाने का दिव्य कार्य करके सभी को स्वास्थ्य प्रदान कर सकते है व रोजगार भी प्राप्त कर सकते हैं।

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Tuesday, November 3, 2020

इस घटना से आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे, इसके बाद कोई लड़की लव जिहाद में नहीं फंसेगी

03 नवंबर 2020


लव जिहाद स्लो पोइजन है। सेक्युलर बनी हिन्दू लड़कियां नहीं जान पाती हैं कि आगे उनका जीवन कितना नारकीय होगा। वे कल्पना भी नहीं कर सकती हैं। इस घटना से सीख लेनी चाहिए कि लव जिहाद में फंसने वाली लड़कियों की क्या हालत होती है।




मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पास लोइया गांव में शबी अहमद के खेत से एक कुत्ता किसी मानव अंग को लेकर भाग रहा था। कुत्ते को मानव अंग लेकर भागते हुए ईश्वर पंडित ने देखा और उन्हें शक हुआ। पुलिस को सूचना दी गयी। पुलिस ने आकर शबी अहमद के खेत की खुदाई की तो एक लाश मिली। लाश किसी महिला की थी जिसका सिर और दोनों हाथ गायब थे।

पुलिस ने लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम करवाया और हत्यारे की खोजबीन शुरु कर दी। हत्यारे को पकड़ना इतना आसान न था क्योंकि लाश का सिर गायब था। इसलिए उस लाश की शिनाख्त भी नहीं हो सकती थी। गांव के आसपास ऐसी कोई महिला गायब भी नहीं थी जिसकी हत्या पर शक जाता हो।

तब वहां के एस एस पी साहनी ने एक तरक़ीब सोची, उन्होंने सोचा हो न हो लड़की कहीं बाहर से गांव में लाई गई है। गांव में कोई कुछ बताने को तैयार न था। एसएसपी साहनी ने तय किया कि गांव के जितने भी लड़के गाँव से बाहर नौकरी करते हैं वहां जाकर छानबीन की जाए। वहां के सभी थानों से संपर्क करके पता किया जाए कि क्या वहां किसी लड़की के गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज है ?

एसएसपी साहनी की ये योजना काम कर गयी और पंजाब में लुधियाना से एक 23 वर्षीय युवती के गायब होने की सूचना मिली। लुधियाना के मोतीनगर थाने में इस युवती के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज थी जो कि बी.कॉम द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। इसके बाद पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए जो जांच पड़ताल की उससे जो कहानी निकलकर सामने आयी वो इस प्रकार है।

एकता देशवाल संभ्रांत और आधुनिक परिवार की लड़की थी जो बी.कॉम द्वितीय वर्ष की छात्रा थी और वहीं उससे टकराया शाकिब अहमद। शाकिब वहां नौकरी करता था लेकिन उसने अपना काम और पहचान दोनों एकता से छिपाई। उसने एकता को अपना नाम "अमन" बताया।

उसे अपने प्रेम जाल में ऐसा फंसाया कि एकता उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो गयी। अमन ने उससे कहा कि वह घर से गहने लेकर आ जाए और वो लोग वहां से कहीं दूर जाकर नई जिन्दगी शुरु करेंगे।

वह अमन के झांसे में आ गयी और करीब 15 से 25 लाख कीमत के गहने और नकद लेकर वह घर से फरार हो गयी। अमन उसे लेकर सीधा मेरठ के दौराला पहुंचा जो कि एक कस्बा है।

वहां किराये पर एक कमरा लेकर दोनों करीब एक महीने तक रहे। इसके बाद ईद के मुबारक मौके पर अमन उसे लेकर अपने घर आ गया जहां एकता को उसकी असलियत सामने आयी कि वो अमन नहीं बल्कि शाकिब है। अमन का भांडा फूटते ही एकता को बड़ा झटका लगा।

ईद के दिन दोनों में दिनभर झगड़ा होता रहा। शाकिब अब समझ गया कि अब इसे रास्ते से हटाने का समय आ गया है। बिना उसे रास्ते से हटाये 25 लाख के गहने उसके नहीं होंगे और उसका लव जेहाद का मकसद भी पूरा नही होगा ! कही लड़की भाग गई तो भांडा भी फूट जाएगा और 25 लाख का घाटा हो जाएगा। इसलिए शाकिब ने ईद की उसी रात उसके हत्या की योजना बनाई। ईद की रात उसने एकता को कोल्डड्रिंक में नशीली दवा पिलाकर बेहोश कर दिया। इसके बाद उसी बेहोशी की हालत में वह कुछ शांतिदूत समुदाय के दोस्तों और अपने परिवार के लोगों के साथ मिलकर खेत पर ले गया जहां शाकिब ने बेहोशी की हालत में अल्लाह हु अकबर की तकबीर के साथ एकता की गला काटकर हत्या कर दी।

गला काटने के बाद उसके दोनों हाथ भी काट दिये गये क्योंकि एकता ने अपने एक हाथ पर अपना नाम और दूसरे पर अपने प्यार "अमन" का नाम गुदवा रखा था। शाकिब को शक था कि अगर पुलिस को ये सबूत मिल गया तो भांडा फूट सकता है। लेकिन अमन गलत साबित हुआ। सालभर लगा लेकिन उसका भांडा फूटा। सिर कटी लाश के रहस्य से पर्दा उठ चुका है और शाकिब अपने दोस्तों और परिवार के कुछ लोगों सहित पुलिस की गिरफ्त आया बाद में वो पुलिस की पिस्टल लेकर भागा और सिपाही को गोली मार दी बाद में उसका इनकाउंटर हो गया।

इस वीडियो में एकता देशवाल के मां-बाप हैं और वीडियो में जो सामने टेबल कपड़ों में लपेटकर रखा गया है यह वही फावड़ा है जिससे गड्ढा खोदकर एकता की सिरकटी लाश को दफन किया गया था।

खुलासा ये भी है कि एकता की हत्या में शाकिब का भाई मुस्सरत, पिता मुस्तकीम, भाभी रेशमा और इस्मत की पत्नी मुस्सरत भी शामिल थे। सब ने मिलकर उस मासूम लड़की को पहले नंगा किया। फिर उसके दोनों हाथ काटे। सिर काटा और हाथ और सिर को पास के तालाब में फेंक दिया। सिर कटी लाश को जमीन में दफन कर दिया।

इंतहा तो ये है कि इसके बाद भी शाकिब एकता का मोबाइल ऑपरेट करता रहा। उसका फेसबुक एकाउण्ट चलाता रहा। एकता बनकर वह एकता के घरवालों को मैसेज की रिप्लाई भी करता रहा और घरवालों को लगता रहा कि बेटी भागकर जरूर गयी है लेकिन अमन के साथ खुश है। लेकिन 20 मई को जब पहली बार पुलिस का फोन आया तो सच्चाई सामने आयी। अब कर भी क्या सकते हैं? बेटी हाथ से जा चुकी है। सामने है तो कफन में लिपटा वो सीलबंद फावड़ा जिससे उनके बेटी की कब्र खोदी गयी थी।‘’

इस घटना से सबक सीखना चाहिए हर लड़की और उसके मां-बाप को नहीं तो अंजाम क्या होगा देख लीजिए।

आपको बता दें कि रिपब्लिक भारत पर लव जिहाद पर debate में आतिक़ उर रहमान कह रहा है कि तुम हिंदुओं के संस्कार और परवरिश में खोट होता है जो तुम्हारी लड़कियाँ हमारे लड़कों के साथ भाग जाती हैं । हमारी लड़कियाँ क्यों नहीं भागती??? तुम लोग अपनी लड़कियों को नहीं संभाल पाते और बात करते हो #LoveJihad की। तुम्हारे परवरिश में कमी है , हमारे परवरिश में कमी नहीं है ??

शर्म से डूब मर जाना चाहिए हिंदुओं को 2 कौड़ी का आदमी हमारी परवरिश और संस्कार को ललकार रहा है । मां-बाप कब अपने बच्चों को पहले धर्म के संस्कार देंगे? और लव जिहाद का शिकार बनने वाली हमारी हिन्दू लड़कियाँ गोबर खाती हैं क्या ?

इन लोगों के कारण हिंदुओं की पगड़ी  सरेआम रौंद दी जाती है लेकिन इन चंद लड़कियों को शर्म नहीं। हिंदू ही लड़कियाँ क्यों नालीवादी बनती हैं ??

कितने आत्म विश्वास से वह कह रहा है कि हमारी परवरिश में कमी नहीं है , हिंदुओं की परवरिश में कमी है।

इन घटनाओं को देखकर आज ही अपने बच्चों को धर्म के संस्कार देना शुरू करें और भारतीय संस्कृति के अनुसार कपड़े रहन सहन बनाएं जिसके कारण किसी बेटी को नारकीय जीवन जीना न पड़े।

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Monday, November 2, 2020

मीडिया ट्रायल पर न्यायालय की फटकार, लेकिन एकतरफा क्यों?

02 नवंबर 2020


अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में रिपब्लिक चैनल के तरीके को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, ‘सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की या उसकी हत्या हुई?, इस मामले की जांच जब चल रही थी तो आप अपने चैनल पर चिल्ला-चिल्लाकर उसे हत्या कैसे करार दे रहे थे। किसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए और किसकी नहीं, इस बात को लेकर आप लोगों से राय या जनमत कैसे मांग रहे थे? क्या यह सब आपके अधिकार क्षेत्र की बात है?’




अदालत ने रिपब्लिक टीवी के वकील से कहा, ‘क्या आपको नहीं पता कि हमारे संविधान में जांच का अधिकार पुलिस को दिया गया है? आत्महत्या के मामले के नियम क्या आप लोगों को नहीं पता हैं? यदि नहीं पता हैं तो सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) के नियमों को पढ़ लीजिये।’

अदालत ने बेहद सख़्त लहजे में कहा कि एक मृत व्यक्ति को लेकर भी आप लोगों के मन में कोई भावना नहीं है! जांच भी आप करो, आरोप भी आप लगाओ और फ़ैसला भी आप ही सुनाओ! तो अदालतें किसलिए बनी हैं? अदालत ने कहा, ‘हम पत्रकारिता पर रोक लगाना भी नहीं चाहते लेकिन दायरे में रहकर।’

आपको बता दें कि न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) ने भी इंडिया टुडे समूह के हिंदी भाषा समाचार चैनल आजतक, ज़ी न्यूज़, न्यूज़ 24 और इंडिया टीवी को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की असंवेदनशील और सनसनीखेज रिपोर्टिंग के लिए माफी माँगने का आदेश दिया था जिसका चैनलों ने अनुपालन किया है और अपने चेनलों पर माफी मांगी।

अब बड़ा सवाल आता है कि जब आम जनता अथवा हिंदूनिष्ठ पर मीडिया ट्रायल चलता है तब कोई न्यायालय उसको फटकार नही लगाते हैं और न ही ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी माफी मांगने को बोलती है।

उसका उदाहरण है आरुषि मर्डर केस जिसमे मीडिया ट्रायल के दबाव में आकर सेशन कोर्ट ने तलवार दंपति को उम्रकैद की सजा सुना दी । लेकिन हाईकोर्ट ने 9 साल बाद निर्दोष बरी किया।

दूसरा ममाला है हिंदू संत आशारामजी बापू के गुजरात अहमदबाद गुरुकुल में पढ़ने वाले दो बच्चों की 2008 में संदिग्ध मौत हो गई, उसको लेकर बिकाऊ मीडिया ने तांत्रिक विद्या से मारा ऐसा करके खूब उछाला, सीआईडी ने और सुप्रीम कोर्ट ने उनको क्लीन चिट दे दी कि उनके वहाँ कोई भी तांत्रिक विद्या नही होती है उसके बाद भी मीडिया ट्रायल चलता रहा।

इस प्रकरण में निष्‍पक्ष जांच का भरोसा देते हुए गुजरात सरकार ने जांच के लिए सेवानिवृत्त न्‍यायाधीश डीके त्रिवेदी आयोग का गठन किया। ग्‍यारह साल बाद आई इस रिपोर्ट में बच्‍चों की मौत डूबने से होना बताया है तथा बच्‍चों पर तंत्र विधि तथा आश्रम में तांत्रिक क्रियाओं के कोई सबूत नहीं मिलना बताया है। आयोग ने साफ बताया कि बच्‍चों के शरीर से अंग गायब होने के भी सबूत नहीं मिले हैं।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी जाँच आयोग में बयानों के दौरान संत श्री आसारामजी आश्रम पर झूठे, मनगढ़ंत आरोप लगानेवाले लोगों के झूठ का भी विशेष जाँच में पर्दाफाश हो गया है ।

दूसरा की हिंदू संत आशारामजी बापू के खिलाफ जोधपुर केस हुआ है उसमें भी लड़की ने साफ बताया है कि मेरे साथ बलात्कार नही हुआ है और मेडिकल के रिपोर्ट में भी साफ आया है कि उसके साथ कोई भी टच भी नही किया गया है लेकिन मीडिया ने इस बात को नही बताया और "बलात्कारी बाबा" कहकर अनेक झूठी अफवाहों को फैलाया गया लेकिन किसी न्यायालय ने मीडिया को फटकार नही लगाई यहाँ तक कि फटकार लगाना तो दूर की बात मीडिया के दबाव में आकर सेशन कोर्ट ने उनको आजीवन उम्रकैद सुना दी जबकि उनके पास निर्दोष होने के प्रमाण होते हुए भी यह बात उनके वकील सज्जनराज सुराणा ने मीडिया में खुलकर बताई थी।

बापू आशारामजी के आश्रम में एक फेक्स भी आया था कि 50 करोड़ दो नही तो लड़कियों के झूठे केस में फंसने के लिए तैयार रहो दूसरा की भोलानन्द उर्फ विनोद गुप्ता ने भी बताया कि मीडिया में मुझे बापू आशारामजी के खिलाफ बोलने के लिए करोड़ो रूपये का ऑफर दिया गया था।

यह सब प्रमाण होते हुए भी आजतक बापू आशारामजी के खिलाफ षडयंत्र करने वालों पर कार्यवाही नहीं हुई और न ही मीडिया ट्रायल को रोका गया लेकिन सुशांत हत्या के मामले में तुंरत फटकार दिया व माफी मंगवाई।

वैसे कई जज बोल चुके हैं कि मीडिया ट्रायल के कारण जजों पर प्रभाव पड़ता है और फ़ैसला निष्पक्ष नही दे पाते हैं और स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल ने भी बताया था कि मीडिया ट्रायल एक षडयंत्र है। जो हमारे साधु-संतों को बदनाम करने के लिए विदेश से भारी फंडिग आती है उस पर रोक लगानी चाहिए।

आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी के 100 साल बाद हिंदू संत आशारामजी बापू ने शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश में 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोलें, करोड़ो लोगो को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण उन पर मीडिया ट्रायल किया गया और षड्यंत्र के तहत आज वे जेल में हैं।

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Sunday, November 1, 2020

भारतीय संस्कृति : मौसम के बदलाव में छिपे हैं अनगिनत वैज्ञानिक तथ्य

01 नवंबर 2020


प्राणी मात्र के संरक्षण, संवर्धन के ज्ञान से अनुस्यूत वेदों का अनुसरण करने वाली भारतीय संस्कृति में पर्वों की एक लंबी पंक्ति है। पर्व या उत्सव किसी संस्कृति की समृद्धता को द्योतित करते हैं। जो संस्कृति जितनी वैभवशाली होती है, उसमें उतने ही पर्व होते हैं और पर्व भी केवल मनोरंजन के लिए नहीं अपितु अन्वर्थ है। पर्व शब्द संस्कृत की ‘पृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है पूर्ण करने वाला, तृप्त करने वाला। पहाड़ को भी पर्वत कहते हैं क्योंकि वह भी पर्व वाला है अर्थात् उसका निर्माण भी कालखण्ड में धीरे-धीरे हुआ है।




गन्ने के एक-एक भाग को भी पर्व (पौरी) कहते हैं, उसका प्रत्येक भाग मिलकर पूर्ण मिठास, तृप्ति को प्राप्त कराता है। इसी प्रकार वर्ष पर्यन्त प्राकृतिक दिवस विशेष को पर्व कहा जाता है क्योंकि ये दिवस विशेष हमें पूर्ण करने वाले तथा तृप्त करने वाले होते हैं। भारतीय संस्कृति व्यक्ति प्रधान नहीं अपितु समष्टि प्रधान है, अत: वह प्रकृति के परिवर्तन को उत्सव के रूप में मनाती है।

मानव प्रकृति का एक अंग है। वह प्रकृति ही उसे पूर्ण बनाती है, उस प्रकृति को जान करके ही व्यक्ति अपना समुन्नत विकास कर सकता है। भारतीय ऋषि-ज्ञान परंपरा ने बहुत गहन अध्ययन और प्रयोगों के उपरांत उनसे मिलने वाले परिणामों को देखते हुए जन सामान्य को अनुसरण करने के लिए कुछ पर्व के रूप में दिवस निर्दिष्ट किए। मानव और प्रकृति में जब तक सामंजस्य है, तब तक मानव स्वस्थ और दीर्घ जीवन जी सकता है- यह तथ्य भारतीय मनीषी बहुत पहले जान चुके थे। अत: भारतीय समाज प्रकृति की पूजा करता है और पूजा का अर्थ होता है “यथायोग्य व्यवहार करना”।

भारतीय समाज जानता था कि प्रकृति का शोषण नहीं बल्कि “तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः” त्याग पूर्वक भोग करना चाहिए। यही त्याग पूर्वक भोग ही प्रकृति की पूजा है, जिसमें किसी प्राणी की हिंसा नहीं अपितु समर्पण होता है। व्यक्ति दैनंदिन की व्यस्तता में यह भूल सकता है अत: पर्व के रूप में उस दिन विशेष को वह पुन: स्मरण करता है और अपने परिश्रम के उपरांत प्राप्त फल के लिए धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रसन्न हो कर मिल बाँट कर खाता है। अतः ये पर्व मानव जीवन में न्यूनताओं को पूर्ण करने वाले होते हैं। जिनको भारतीय मानव समुदाय बड़ी प्रसन्नता उत्साह के साथ मनाता है।

हम सब होली दिवाली इत्यादि बड़े पर्व से परिचित हैं इसी श्रृंखला में शरद पूर्णिमा भी एक पर्व है और उसके बाद प्रारम्भ होने वाला कार्तिक मास का प्रात:स्नान। पृथ्वी की परिभ्रमण और परिक्रमण गति के कारण वर्ष में दो बार वह सूर्य के सबसे समीप होती है । ग्रीष्म ऋतु में उसकी समीपता रस की शोषक का कारक बनती है तो शरद ऋतु में उसकी समीपता रस की पोषक है।

आयुर्वेद में इस काल को विसर्ग काल कहा जाता है- “जनयति आप्यमंशम् प्राणिनां च बलमिति विसर्ग:’ अर्थात् इसमें वायु की रुक्षता कम हो जाती है और चन्द्रमा का बल बढ़ जाता है। सूर्य जब दक्षिणायन होता है तो उत्तरी गोलार्ध में पड़ने के कारण भारतवर्ष सूर्य से दूर हो जाता, जिससे भूभाग शीतल रहता। इस काल में चन्द्रमा भी पृथ्वी के सबसे अधिक समीप होता है और वह समस्त संसार पर अपनी सौम्य एवं स्निग्ध किरणें बिखेर कर जगत को निरंतर तृप्त करता रहता है।

शरद ऋतु में चन्द्रमा पूर्ण बली होकर जलीय स्नेहांश को बढ़ाने लगता है, जिससे द्रव्यों में मधुर रस की वृद्धि होती है और उसके उपयोग से प्राणियों के शरीर में बल की वृद्धि होने लगाती है। चन्द्रमा के साहचर्य से वायु भी अपने योगवाही गुण के कारण चन्द्रमा के शैत्य आदि गुणों की वृद्धि कराती है। शरद ऋतु के प्रारम्भ में दिन थोड़े गर्म और रातें शीतल हो जाया करती हैं। आयुर्वेद के अनुसार “वर्षाशीतोचिताङ्गानां सहसैवार्करश्मिभि:।

तप्तानामचितं पित्तं प्राय: शरदि कुप्यति” अर्थात् वर्षा ऋतु में शरीर वर्षाकालीन शीत का अभ्यस्त रहता है और ऐसे शरीरांगों पर जब सहसा शरद ऋतु के सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो शरीर के अवयव संतप्त हो जाते हैं और वर्षा ऋतु में संचित हुआ पित्त शरद ऋतु में प्रकुपित हो सकता है। अत: प्रकृति के इस परिवर्तन को देखते हुए मनुष्य को अपने आहार-विहार, पथ्य-अपथ्य का ध्यान रखना चाहिए। इसका प्रारम्भ नवरात्रि के उपवास से ही हो जाता है।

भारतीय समाज में शरद पूर्णिमा के बाद प्रारम्भ होने वाले कार्तिक मास में ब्रह्म मुहूर्त में शीतल जल के स्नान की परम्परा है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ चरक संहिता में इस जल को ‘हंसोदक’ कहा गया है क्योंकि दिन के समय सूर्य की किरणों से तपा और रात के समय चन्द्रमा की किरणों के स्पर्श से शीतलकाल स्वभाव में पका हुआ होने से निर्दोष एवं अगस्त्यतारा के उदय होने के प्रभाव से निर्विष हो जाता है।

‘हंस’ शब्द से सूर्य, चन्द्रमा और हंस पक्षी इन तीनों का ग्रहण होता है अत: सूर्य और चन्द्रमा दोनों की किरणों के संपर्क से शुद्ध हुए जल को भी हंस-उदक कहा जाता है। उस जल में स्नान करना, उसका पान करना और उसमें डुबकी लगाना अमृत के सामान फल देने वाला होता है। हमारे पूर्वजों ने इस परंपरा का बड़ी श्रद्धा और निष्ठा से निर्वहण किया है और हम तक सुरक्षित पहुँचाया है।

ये पर्व प्रवाही काल का साक्षात्कार है। मनुष्य द्वारा ऋतु को बदलते देखना, उसकी रंगत पहचानना, उस रंगत का असर अपने भीतर अनुभव करना पर्व का लक्ष्य है। हमारे पर्व-त्यौहार हमारी संवेदनाओं और परंपराओं का जीवंत रूप हैं, जिन्हें मनाना या यूँ कहें कि बार-बार मनाना, हर वर्ष मनाना हमारे लिए गर्व का विषय है। पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जहाँ मौसम के बदलाव की सूचना भी पर्व तथा त्योहारों से मिलती है।

इन मान्यताओं, परंपराओं और विचारों में हमारी सभ्यता और संस्कृति के अनगिनत वैज्ञानिक तथ्य छुपे हैं। जीवन के अनोखे रंग समेटे हमारे जीवन में रंग भरने वाली हमारी उत्सवधर्मिता की सोच, मन में उमंग और उत्साह के नए प्रवाह को जन्म देती है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाए जाने वाले सभी त्यौहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम और एकता को बढ़ाते हैं।

त्योहारों और उत्सवों का संबंध किसी जाति, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है। सभी त्यौहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धि प्रदान करना है। प्रत्‍येक त्‍यौहार अलग अवसर से संबंधित है, कुछ वर्ष की ऋतुओं का, फसल कटाई का, वर्षा ऋतु का अथवा पूर्णिमा का स्‍वागत करते हैं। दूसरों में धार्मिक अवसर, ईश्‍वरीय सत्‍ता/परमात्‍मा व संतों के जन्‍म दिन अथवा नए वर्ष की शुरुआत के अवसर पर मनाए जाते हैं।



भारतीय संस्कृति कितनी सूक्ष्म रूप से मनुष्य की रक्षा करने के लिए कैसे दिव्य कार्य कर रही है वे आज के वैज्ञानिक सोच भी नही सकते है अतः इसका पालन करके अपना जीवन का सर्वागीण विकास कर सकते है।

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