Wednesday, January 13, 2021

मकर संक्रांति और सूर्य उपासना द्वारा अपना जीवन तेजस्वी बना सकते है

13 जनवरी 2021


 मकर संक्रांति नैसर्गिक पर्व है । किसी व्यक्ति के आने-जाने से या किसी के अवतार के द्वारा इस पर्व की शुरुआत नहीं हुई है । प्रकृति में होने वाले मूलभूत परिवर्तन से यह पर्व संबंधित है और प्रकृति की हर चेष्टा व्यक्ति के तन और मन से संबंध रखती है । इस काल में भगवान भास्कर की गति उत्तर की तरफ होती है । अंधकार वाली रात्रि छोटी होती जाती है और प्रकाश वाला दिन बड़ा होता जाता है ।




पुराणों का कहना है कि इन दिनों देवता लोग जागृत होते हैं । मानवीय 6 महीने दक्षिणायन के बीतते हैं, तब देवताओं की एक रात होती है । उत्तरायण के दिन से देवताओं की सुबह मानी जाती है ।

ऋग्वेद में आता है कि सूर्य न केवल सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक, प्रवर्त्तक एवं प्रेरक हैं वरन् उनकी किरणों में आरोग्य वर्धन, दोष-निवारण की अभूतपूर्व क्षमता विद्यमान है । सूर्य की उपासना करने एवं सूर्य की किरणों का सेवन करने से कई प्रकार के शारीरिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

जितने भी सामाजिक एवं नैतिक अपराध हैं वे विशेषरूप से सूर्यास्त के पश्चात अर्थात् रात्रि में ही होते हैं । सूर्य की उपस्थिति मात्र से ही दुष्प्रवृत्तियां नियंत्रित हो जाती हैं । सूर्य के उदय होने से समस्त विश्व में मानव, पशु-पक्षी आदि क्रियाशील होते हैं । यदि सूर्य को विश्व-समुदाय का प्रत्यक्ष देव अथवा विश्व-परिवार का मुखिया कहें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

वैसे तो सूर्य की रोशनी सभी के लिए समान होती है परन्तु उपासना करके उनकी विशेष कृपा प्राप्त कर व्यक्ति सामान्य लोगों की अपेक्षा अधिक उन्नत हो सकता है तथा समाज में अपना विशिष्ट स्थान बना सकता है ।

सूर्य एक शक्ति है । भारत में तो सदियों से सूर्य की पूजा होती आ रही है । सूर्य तेज और स्वास्थ्य के दाता माने जाते हैं । यही कारण है कि विभिन्न जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के लोग दैवी शक्ति के रूप में सूर्य की उपासना करते हैं ।

सूर्य की किरणों में समस्त रोगों को नष्ट करने की क्षमता विद्यमान है । सूर्य की प्रकाश – रश्मियों के द्वारा हृदय की दुर्बलता एवं हृदय रोग मिटते हैं । स्वास्थ्य, बलिष्ठता, रोगमुक्ति एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए सूर्योपासना करनी ही चाहिए ।

सूर्य नियमितता, तेज एवं प्रकाश के प्रतीक हैं । उनकी किरणें समस्त विश्व में जीवन का संचार करती हैं । भगवान सूर्य नारायण सतत् प्रकाशित रहते हैं । वे अपने कर्त्तव्य पालन में एक क्षण के लिए भी प्रमाद नहीं करते, कभी अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होते । प्रत्येक मनुष्य में भी इन सदगुणों का विकास होना चाहिए । नियमितता, लगन, परिश्रम एवं दृढ़ निश्चय द्वारा ही मनुष्य जीवन में सफल हो सकता है तथा कठिन परिस्थितियों के बीच भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है ।

सूर्य बुद्धि के अधिष्ठाता देव हैं । सभी मनुष्यों को प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक लोटा जल सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए । अर्घ्य देते समय इस बीजमंत्र का उच्चारण करना चाहिएः ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः । इस प्रकार मंत्रोच्चारण के साथ जल देने से तेज एवं बौद्धिक बल की प्राप्ति होती है ।

सूर्योदय के बाद जब सूर्य की लालिमा निवृत्त हो जाय तब सूर्याभिमुख होकर कंबल अथवा किसी विद्युत कुचालक आसन् पर पद्मासन अथवा सुखासन में इस प्रकार बैठें ताकि सूर्य की किरणें नाभि पर पड़े । अब नाभि पर अर्थात् मणिपुर चक्र में सूर्य नारायण का ध्यान करें ।

यह बात अकाट्य सत्य है कि हम जिसका ध्यान, चिन्तन व मनन करते हैं, हमारा जीवन भी वैसा ही हो जाता है । उनके गुण हमारे जीवन में प्रकट होने लगते हैं ।

नाभि पर सूर्यदेव का ध्यान करते हुए यह दृढ़ भावना करें कि उनकी किरणों द्वारा उनके दैवी गुण आप में प्रविष्ट हो रहे हैं । अब बायें नथुने से गहरा श्वास लेते हुए यह भावना करें कि सूर्य किरणों एवं शुद्ध वायु द्वारा दैवीगुण मेरे भीतर प्रविष्ट हो रहे हैं । यथासामर्थ्य श्वास को भीतर ही रोककर रखें । तत्पश्चात् दायें नथुने से श्वास बाहर छोड़ते हुए यह भावना करें कि मेरी श्वास के साथ मेरे भीतर के रोग, विकार एवं दोष बाहर निकल रहे हैं । यहाँ भी यथासामर्थ्य श्वास को बाहर ही रोककर रखें तथा इस बार दायें नथुने से श्वास लेकर बायें नथुने से छोड़ें । इस प्रकार इस प्रयोग को प्रतिदिन दस बार करने से आप स्वयं में चमत्कारिक परिवर्तन महसूस करेंगे । कुछ ही दिनो के सतत् प्रयोग से आपको इसका लाभ दिखने लगेगा । अनेक लोगों को इस प्रयोग से चमत्कारिक लाभ हुआ है ।

सूर्य की रश्मियों में अद्भुत रोगप्रतिकारक शक्ति है । दुनिया का कोई वैद्य अथवा कोई मानवी इलाज उतना दिव्य स्वास्थ्य और बुद्धि की दृढ़ता नहीं दे सकता है, जितना सुबह की कोमल सूर्य-रश्मियों में छुपे ओज-तेज से मिलता है ।

भगवान सूर्य तेजस्वी एवं प्रकाशवान हैं । उनके दर्शन व उपासना करके तेजस्वी व प्रकाशमान बनने का प्रयत्न करें । ऐसे निराशावादी और उत्साहहीन लोग जिनकी आशाएँ, भावनाएँ व आस्थाएँ मर गयी हैं, जिन्हें भविष्य में प्रकाश नहीं, केवल अंधकार एवं निराशा ही दिखती है ऐसे लोग भी सूर्योपासना द्वारा अपनी जीवन में नवचेतन का संचार कर सकते हैं ।

क्या करें मकर संक्रांति को..???

मकर संक्रांति या उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।

तिल का महत्व :-

विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है ।

★ तिल के तेल से स्नान करना ।
★ तिल का उबटन लगाना ।
★ पितरों को तिलयुक्त तेल अर्पण करना।
★ तिल की आहुति देना ।
★ तिल का दान करना ।
★ तिल का सेवन करना।

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Tuesday, January 12, 2021

मकर संक्रांति के बारे में ये जरूर जाना ले, अनुपम लाभ होगा

12 जनवरी 2021


हिन्दू संस्कृति अति प्राचीन संस्कृति है, उसमें अपने जीवन पर प्रभाव पड़ने वाले ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गये हैं । इसमें से एक है  मकर संक्रांति..!! इस साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जायेगी ।




सनातन हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है ।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं ।

ईसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है । कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है ।

सूर्य पर आधारित हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व माना गया है । वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है । होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्यौहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है । मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय ।

सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है । इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं । यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहें इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है ।

विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है:-

उत्तर प्रदेश : मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है । सूर्य की पूजा की जाती है । चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है ।

गुजरात और राजस्थान : उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है ।

आंध्रप्रदेश : संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है ।

तमिलनाडु : किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है । घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है ।

महाराष्ट्र : लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं ।

पश्चिम बंगाल : हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है ।

असम : भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है ।*

*पंजाब : एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है । धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है ।

इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इसे माने तो नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। इसी 21 मार्च के आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों को ठीक नहीं माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।

मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।

दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है । सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है । पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है । इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है ।

क्या हम इसमें सुधार कर सकते हैं?


क्या ये हमारे लिए उपयुक्त चयन का मौका है ?


स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। (श्लोक-24-25) 

क्या करें मकर संक्रांति को..???

मकर संक्रांति या उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।

मकर संक्रांति के दिन साल का पहला पुष्य नक्षत्र है मतलब खरीदारी के लिए बेहद शुभ दिन ।

उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के इन नामों का जप विशेष हितकारी है ।

ॐ मित्राय नमः । ॐ रवये नमः ।
ॐ सूर्याय नमः । ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः । ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । ॐ मरीचये नमः ।
ॐ आदित्याय नमः । ॐ सवित्रे नमः ।
ॐ अर्काय नमः ।  ॐ भास्कराय  नमः ।
ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।

ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।  इस मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना करनी चाहिए। उनका चिंतन करके प्रणाम करना चाहिए। इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, निरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे।

यदि इस दिन नदी तट पर जाना संभव नहीं है, तो अपने घर के स्नानघर में पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल मिश्रित जल से स्नान करें । साथ ही समस्त पवित्र नदियों व तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र और भगवान भास्कर का ध्यान करें । साथ ही इस जन्म के पूर्व जन्म के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति हेतु क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें । जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता.... वह 7 जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है ।

तिल का महत्व :-

विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है ।

★ तिल के तेल से स्नान करना ।
★ तिल का उबटन लगाना ।
★ पितरों को तिलयुक्त तेल अर्पण करना।
★ तिल की आहुति देना ।
★ तिल का दान करना ।
★ तिल का सेवन करना।

ब्रह्मचर्य बढ़ाने के लिए :-

ब्रह्मचर्य रखना हो, संयमी जीवन जीना हो, वे उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का सुमिरन करें, जिससे बुद्धि में बल बढ़े ।
ॐ सूर्याय नमः... ॐ शंकराय नमः...
ॐ गं गणपतये नमः... ॐ हनुमते नमः...
ॐ भीष्माय नमः... ॐ अर्यमायै नमः...
ॐ... ॐ...

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Monday, January 11, 2021

नन द्वारा चर्च में ‘पाप का प्रायश्चित’ करने पर पादरी करते है रेप

11 जनवरी 2021


भारत मे साधु-संत देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं उनको साजिश के तहत बदनाम किया जाता है, झूठे केस में जेल भेजा जाता है और मीडिया द्वारा तथा "आश्रम" जैसी फिल्में बनाकर उनको बदनाम किया जाता है। वहीं दूसरी ओर जो मौलवी व ईसाई पादरी मासूम बच्चे-बच्चियों और ननों के साथ रेप करते हैं उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं फिर भी मीडिया, प्रकाश झा जैसे बिकाऊ निर्देशक इसको देखकर आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं क्योंकि इनको पवित्र हिन्दू साधु-संतो को बदनाम करने के पैसे मिलते है और हिंदू सहिष्णु हैं तो इन षडयंत्र को सहन कर लेते हैं।




सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (जनवरी 8, 2021) को केरल की ईसाई महिलाओं की एक रिट याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, जिसमें मालंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च में अनिवार्य कन्फेशन (अपने पापों को पादरी के सामने प्रायश्चित करना) की परम्परा को चुनौती दी गई है। याचिका में इसे धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया गया है। मुख्य याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में संशोधन कर और नए फैक्ट्स आलोक में लाने की अनुमति भी दे दी है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस रमासुब्रमण्यन की पीठ इस मामले को सुनेगी।
 
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कन्फेशन के एवज में पादरी यौन फेवर माँगते हैं, सेक्स करने को कहते हैं।
इन महिलाओं का कहना था कि उन्हें अपने चुने हुए पादरी के समक्ष भी कन्फेशन करने दिया जाए। साथ ही ये भी कहा गया कि ईसाई महिलाओं के लिए कन्फेशन अनिवार्य करना असंवैधानिक है, क्योंकि पादरियों द्वारा इसे लेकर ब्लैकमेल करने की घटनाएँ सामने आई हैं। केरल और केंद्र की सरकारों को भी इस मामले में पक्ष बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत के अटॉर्नी जनरल केसी वेणुगोपाल से भी प्रतिक्रिया माँगी है। AG ने बताया कि ये मामला मालंकारा चर्च में जैकोबाइट-ऑर्थोडॉक्स गुटों के संघर्ष से उपज कर आया है।

ये संघर्ष भी सुप्रीम कोर्ट पहुँचा था, लेकिन तीन जजों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला दे दिया था। मुकुल रोहतगी ने ध्यान दिलाया कि ऐसे मामले संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ ये भी देखना होगा कि क्या कन्फेशन एक अनिवार्य धार्मिक प्रक्रिया हुआ करती थी। किसी बिलिवर की ‘राइट टू प्राइवेसी’ का धार्मिक प्राधिकरण के आधार पर पादरी द्वारा उल्लंघन किया जा सकता है या नहीं, उन्होंने इस पर भी विचार करने की सलाह दी।

उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ पादरी महिलाओं द्वारा किए गए कन्फेशन का गलत इस्तेमाल करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, जिस पर रोहतगी ने कहा कि वो याचिका में संशोधन कर ऐसी घटनाओं को जोड़ेंगे। कन्फेशन को लेकर इससे पहले भी याचिकाएँ आ चुकी हैं। कन्फेशन के अंतर्गत लोग पादरी की उपस्थिति में अपने ‘पापों’ को लेकर प्रायश्चित करते हैं।

केरल के एक नन ने अपनी आत्मकथा में आरोप लगाया था कि एक पादरी अपने कक्ष में ननों को बुला कर ‘सुरक्षित सेक्स’ का प्रैक्टिकल क्लास लगाता था। इस दौरान वह ननों के साथ यौन सम्बन्ध बनाता था। उसके ख़िलाफ़ लाख शिकायतें करने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा। उसके हाथों ननों पर अत्याचार का सिलसिला तभी थमा, जब वह रिटायर हुआ। सिस्टर लूसी ने लिखा था कि उनके कई साथी ननों ने अपने साथ हुई अलग-अलग घटनाओं का जिक्र किया और वो सभी भयावह हैं। ऐसे तो हजारों पादरियों पर अपराध साबित हो चुके है कि ये लोग बच्चों एवं ननों का यौन शोषण करते हैं।

कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता का पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मो की  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पादरियों द्वारा किये गए इस कुकृत्य के लिए माफी माँगी थी । 

हिंदू धर्म के पवित्र साधु-संतों को पर झूठे आरोप लगाए जाते ह, झूठी कहानियां बनाकर मीडिया द्वारा बदनाम किया जाता है लेकिन इन सही अपराधों को मीडिया आज छुपा रही है, सेक्युलर, लिबरल्स सब मौन बैठे है।

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Sunday, January 10, 2021

विश्व हिंदी दिवस क्यो मनाया जाता है? हिंदी भाषा कितनी महान है?

10 जनवरी 2021


 हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।




 दुनिया में पहला विश्व हिंदी दिवस भारत में नहीं बल्कि नार्वे में मनाया गया था । नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने तथा दूसरा और तीसरा विश्व हिन्दी दिवस भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ला की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था।

 इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में, रविवार 10 जनवरी 2010 को, विश्व हिन्दी सचिवालय, शिक्षा, संस्कृति एवं मानव संसाधन मन्त्रालय, भारतीय उच्चायोग, इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र तथा हिन्दी संगठन के मिले-जुले सहयोग से विश्व हिन्दी दिवस 2010 मनाया गया।

 जिसमें मुख्य अतिथि हंगरी के भारोपीय शिक्षा विभाग से आई हुई डॉ. मारिया नेज्यैशी थी इस उपलक्ष्य पर विश्व हिन्दी सचिवालय की एक रचना (एक विश्व हिन्दी पत्रिका) का भी लोकार्पण गणराज्य के राष्ट्रपति माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ जी के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर कविता-प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, सम्मान उन सभी नवोदित कवियों का वास्तव में रहा जिनको अपनी कलात्मकता प्रेषित करने का एक मंच प्राप्त हुआ।

 विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 अपने अधिकतर भाषण अंग्रेजी में ही देने वाले भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी, 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।

 हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जा रही है

 दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।

 2005 में दुनिया के 160 देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी। लेकिन 2015 में दुनिया के 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब हिंदी बोलने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है। चीन के 20 विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है।

 भारत देश में 78 फीसद लोग बोलते हैं, हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है। लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है।

 चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है। दुनिया में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है।

 भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है। भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।

 हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो बाकायदा "विश्व हिंदी सचिवालय" की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है।

 आपको बता दें कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपनी सिफारिशों में सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में से धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और भारतीय भाषाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर शामिल करने पर जोर दिया है। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की सुविधा देने पर जोर दिया गया है।

 हिंदी भाषा इसलिये दुनिया में प्रिय बन रही है क्योंकि इस भाषा को देवभाषा संस्कृत से लिया गया है जिसमें मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। जबकि अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द केवल 10,000 ही हैं ।

 हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।

 इंटरनेट पर अंग्रेजी को पछाड़कर राज करेगी हिंदी

गूगल और केपीएमजी की एक संयुक्त रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2021 में इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का राज होगा । हिंदी, बांग्ला, मराठी, तमिल और तेलुगु आदि भारतीय भाषाओं के यूजर्स तेजी से बढ़ेंगे और अंग्रेजी के दबदबे को खत्म कर देंगे । अभी हमें भी इंटरनेट पर अंग्रेजी नही बल्कि राष्ट्र भाषा का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए।

 विदेशों में हिन्दी भाषा का उपयोग बढ़ रहा है लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि हमारे देश में ही कुछ आधुनिकता प्रेमी बोलने में संकोच करते हैं, कुछ वकील और संसद हिंदी नहीं बोलना जानते हैं।

 आज मैकाले की वजह से ही हमने मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । लेकिन आज दुनिया में हिंदी भाषा का महत्व जितना बढ़ रहा है उसको देखकर समझकर हमें भी हिंदी भाषा का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।

 अपनी राष्ट्र एवं मातृभाषा की गरिमा को पहचानें ।

सरकारी विभाग, एवं इंटरनेट आदि सभी स्तर पर हिंदी का उपयोग करना चाहिए एवं अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुँमुखी विकास में सहभागी बनें ।

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Saturday, January 9, 2021

अंग्रेजों के खून से भर दिया तालाब और भगा दिया था दिल्ली से राजा नाहर सिंह ने

 09 जनवरी 2021


भारत की स्वतंत्रता के गौरवशाली इतिहास के सही पन्ने वो नहीं जो हमें पढ़ाये या कहा जाय तो रटाये जा रहे हैं.. स्वतंत्रता के वो पन्ने भी हैं जिन्हें हम जानते भी नही है। बहुत कम लोगो को पता होगा राजा नाहर सिंह जी के इतिहास के बारे में जिनका आज बलिदान दिवस है ..




हरियाणा के उस राजा का बलिदान दिवस है जिसने अंग्रेजों के खून से बल्लभगढ के तालाब का रंग लाल कर दिया था। महाराजा नाहर सिंह के नाम से अंग्रेज थर थर कांपते थे। उन्होंने अंग्रेजो के अपनी रियासत में आने पर भी प्रतिबंध का फरमान जारी कर दिया था जो उस समय बड़े बड़े राजाओं के भी बस की बात नही थी।

जिसके कारण दिल्ली ने 134 दिन तक आजादी की सबेर देखी थी।

जिसने अंग्रेजों को हराकर अपने आस पास के क्षेत्र को आजाद कर लिया था। वह राजा जिसने शिव मंदिर में अंग्रेजों को देश से बाहर करने की कसम खाई थी।

वह राजा कोई और नहीं बल्कि हरियाणा के बल्लभगढ जाट रियासत के राजा नाहर सिंह थे जिनके नाम पर कुछ दिन पहले ही बल्लभगढ में राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन किया गया था। इससे पहले उनके नाम पर एक इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम है शहर में एक द्वार है और बस स्टैंड का नाम भी उन्ही के नाम से हैं।

बल्लभगढ में उनका महल, किला, हवेलियां व अन्य चीजें  आज भी शान से खड़ी उनकी वीरता की गवाही दे रही है।

राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया था उसी वीरता के बल पर आज उन्हें शेर ए हरियाणा, आयरन गेट ऑफ दिल्ली और 1857 के सिरमौर जैसे अलंकारों से सुसज्जित किया जाता है।

राजा नाहर सिंह ने 1857 की क्रांति को जगाने के लिए देश भर के राजाओ की बैठक (मीटिंग) में हिस्सा लिया बहुत से राजाओ को क्रांति में शामिल होने के लिए उकसाया।

जब 1857 कि क्रांति के लिए नेतृत्व की मांग की जाने लगी तो सबसे आगे उन्ही का नाम था परन्तु मुस्लिम क्रांतिकारियो को इस मुहिम में जोड़ने के लिए बहादुर शाह जफर का नाम आगे किया गया। हालांकि जफर और राजा नाहर सिंह में बहुत कम बनती थी उसके बावजूद भी उन्होंने देश के लिए अपने मतभेद भुलाकर क्रांतिकारियों के निर्णय का सम्मान किया।

वे देश के एकमात्र ऐसे राजा थे जिनकी रियासत सुरक्षित होने कर बावजूद में 1857 की क्रांति में भाग लिया था।

मीटिंग में 1857 की क्रांति का दिनांक फिक्स कर दिया गया उनको दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया।

परन्तु 10 मई को ही क्रांतिकारी सैनिक मंगल पांडे की फांसी के साथ ही क्रांति समय से पहले भड़क उठी।

उस समय राजा साहब की बेटी का विवाह तय हो चुका था। लेकिन उन्होंने इसकी जरा भी परवाह न करते हुए इस भव्य कार्यक्रम को रद्द कर दिया और राजकुमार की तलवार से ही अपनी बेटी का विवाह करवाकर क्रांति में कूद पड़े।

उनकी रियासत क्रांतिकारियों के लिए सबसे बड़ी सुरक्षित स्थली थी जहां उनके लिए दरवाजे खुले थे क्योंकि उन्होंने अपने राज्य में अंग्रेजो के बिना अनुमति प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था जो उस समय का बहुत ही साहसिक कदम था।

उन्होंने अपने राज्य में ऐलान कर दिया था कि कोई भी अंग्रेज विरोधी क्रांतिकारी राज्य में आये तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाए उसकी हर सम्भव सहायता की जाए उनको खाने का सामान व अन्य सामान बाजार से बिना पैसे दिया जाए उसका भुगतान राज्य के खजाने से कर दिया जाएगा।

मंगल पाँडें की रेजिमेंट के क्रांतिकारी भी उनके राज्य में घुस आए थे तो उन्होंने शरण दी व उनमें से ज्यादातर ब्राह्मण थे इसलिए उन्हें उन्होंने हर गांव में में एक एक दो दो परिवार बसा दिए ताकि अंग्रेज उन पर एक साथ हमला न कर सके और वे अपनी जीविका भी कमा सके। आज भी उन ब्राह्मणों के वंशज उन गांवों में बसे हुए हैं।

उन्होंने पलवल फरीदाबाद गुड़गांव के अंग्रेज अधिकृत क्षेत्रो पर हमला करके अंग्रेजो को मारकर भगा दिया।

उन्होंने क्रांतिकारियो के साथ मिलकर दिल्ली को आजाद करवा लिया व जफर को दिल्ली का कार्यभार सम्भालवा दिया।

राया मथुरा के क्रान्तिकारी देवी सिंह को उन्होंने राजा की पदवी दिलवाई। जगह जगह के क्रांतिकारियों को मदद दी।

राजा के समय दिल्ली पर अंग्रेजो ने हमले किये परन्तु उन्होंने उन्हें 134 दिन तक दिल्ली में नहीं घुसने दिया। अंग्रेज उन्हें आयरन वॉल ऑफ दिल्ली के नाम से पुकारने लगे थे और समझ गए थे के उनके होते दिल्ली पर कब्जा करना असम्भव है। अंत में जफर के एक साथी इलाहिबख्श की गद्दारी से अंग्रेजो ने जफर को बंदी बना लिया बल्लभगढ पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण राजा को बल्लभगढ पहुंचना पड़ा।

वहां उन्होंने वहां पहुंचकर अंग्रेजो से इतना भयंकर युद्ध किया के पास स्थित एक तालाब का रंग अंग्रेजो के खून से लाल हो गया था।अंग्रेजो को मारकर हरा दिया । मगर उनकी अनुपस्थिति में अंग्रेजो ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

अंग्रेजो ने राजा को बंदी बनाने के लिए छल का सहारा लिया। उन्होंने जफर के खास इलाहिबख्श व अन्य को भेजकर कहलवाया कि जफर ने उन्हें बुलाया है और वे अंग्रेजो से सन्धि करना चाहते हैं। जाट राजा छल को समझ न पाये। वे अपने कुछ 500 सैनिको के साथ दिल्ली पहुंचे। वहां अंग्रेजो ने रात्रि के अंधेरे में रास्ते में उन पर अचानक आक्रमण कर दिया सभी सैनिक वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए। राजा को बंदी बना लिया गया। उनके कुछ नजदीकी अंग्रेज अधिकारियो ने उन्हें समझाने की कोशिश की के वे अंग्रेजो के आगे झुक जाए व उनसे दोस्ती कर ले तो उन्हें उनका राज वापिस कर दिया जाएगा और उन्हें सजा नहीं होगी।

लेकिन राजा ने साफ मना कर दिया कि वे अपने देश के दुश्मनों के आगे नहीं झुकेंगे। उन्हें राज व अपने जीवन की तनिक भी परवाह नहीं एक नाहर सिंह मरेगा तो माँ भारती को आजाद करवाने वाले लाखों नाहर सिंह पैदा हो जाएंगे।

अंत में 9 जनवरी 1858 को राजा व उनके सेनापति भूरा सिंह वाल्मीकि को दिल्ली के चांदनी चौक पर सरेआम फांसी दे दी गई। उनके जनता के लिए अंतिम शब्द थे कि क्रांति की ये चिंगारी बुझने मत देना।

महान क्रन्तिकारी महाराजा नाहर सिंह अपनी वीरता और देशभक्ति का किस्सा हमारे बीच छोड़ गए। उनके नाम पर हर साल मेला भी लगता है। भारत मे लुटेरे, आक्रमणकारी मुगलों और अंग्रेजों का का इतिहास पढ़ाया जाता है पर ऐसे लोगो का नहीं पढ़ाया जाता हैं।

माँ भारती के वीर सपूत शहीद राजा नाहर सिंह पर पूरे भारतवर्ष को हमेशा गर्व रहेगा। राजा नाहर सिंह जी के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम।

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Friday, January 8, 2021

हिंदुओं के धार्मिक स्थल तोड़े जा रहे हैं लेकिन अन्य धर्मों के नहीं...

08 जनवरी 2021


दिल्ली के चाँदनी चौक में सरकारी तन्त्र ने हनुमान मंदिर तोड़ दिया। यदि मन्दिर गलत तरीके से बना है तो उसे स्थानांतरित किया जा सकता है। दिल्ली में मस्जिद-दरगाह- मजार है जो रेलवे लाइन के रास्ते में है लेकिन इसको नहीं तोड़ा गया।




पुरे भारत में इस तरह की अनेक मस्जिद पीर की मजार, दरगाह और ईदगाह मिल जाएंगी जो रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड या मुख्य सड़क की जगह को घेर कर पिछले 70 साल मे बनाई गई हैं। यदि भारत के कानून का धर्म या मजहब से कुछ लेना देना नहीं है तो फिर इस तरह के मन्दिर मस्जिद हटाने चाहिए। मजारों और मस्जिदों के लिए नियम बदल दिए जाते हैं। यह एक तरफा सेक्युलरिज्म बेहद खतरनाक है।

सऊदी अरब जैसे देश में सड़कें इत्यादि बनवाने के लिए खुलेआम मस्जिद तुड़वाया जाता है। एक बार सऊदी अरब के सुल्तान को अपना महल बनाना था उसके लिए उसे जगह चाहिए थी तो उसने कहा कि बिलाल मस्जिद को तोड़ डालो, महल बनाने के लिए जबकि इस मस्जिद में पैगम्बर मुहम्मद नमाज पढ़ते थे ! जब सऊदी अरब में "पैगम्बर मुहम्मद की मस्जिद" को तोड़कर दूसरी जगह बनवाया जा सकता है तो भारत मे क्यों सेक्युलरिज़्म के नाम पर कब्जे हो रहे हैं?

मुज़फ़्फ़रपुर रेलवे स्टेशन प्लेटफॉर्म न.4 पर बनी जीन्नात(जीन्न) मस्जिद है। कहते है ये मस्जिद रातों रात बना मिला था। प्लेटफार्म न. 4 पर L शेप मे ट्रेक बना है और ट्रेन घुम कर स्टेशन पंहुचती है ? मुस्लिम आबादी यहां से कम से कम 1.5 कि.मी दुर है। इस मस्जिद के आसपास कोई बस्ती/महल्ला नहीं है जहां के लोग सदा यहां नमाज पढ़ते हो पर सुबह 4 बजे तक के भी नमाज मे मस्जिद भड़ी रहती है।

फरवरी 2018 मे मुजफ्फरनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनी मस्जिद हटाई गई। इसके लिए एक फ्लाई ओवर का का निर्माण 10 साल से रुका हुआ था। उसके कारण सड़क एक्सीडेंट मे लगभग 80 मौते हो चुकी थी। इस मस्जिद की वजह से हाईवे पर रेलवे लाइन के ऊपर बना फ्लाईओवर अधर में था। इसके लिए सरकार को 35 लाख रुपए मुआवजा देना पड़ा था।

इन्दिरा गांधी हवाई अड्डा -हवाई अड्डे के टी-2 रनवे नं 10 व 28 पर बनी पीर रोशन खान व काले खान की मजार का रख-रखाव ही नहीं मुस्लिम श्रद्धालुओं को वहां दर्शन कराने के लिए जी.एम.आर. कंपनी अपने वाहन व अन्य सुविधाएं देती है मजारों के कारण रनवे को 'शिफ्ट' किया गया है।

कब्रों पर सिर पटकने वाले हिन्दू ही ज्यादा होते हैं, गुरुवार को बाहरी लोगों (people not working at airport) के लिए भी दर्शन के खास इंतजाम GMR करता है।

दक्षिण दिल्ली में पालम हवाई अड्डे के निकट, सुप्रसिद्ध होटल रेडीसन के सामने स्थित है एक गांव नांगल देवता। इस गांव के दोनों छोर पर मन्दिरों व संतों की समाधियों की एक अविरल श्रृंखला है। मन्दिरों के साथ बगीचे व पेड़ों ने उसे एक आध्यात्मिक व रमणीक स्थल के रूप में प्रसिद्ध किया है। मन्दिर के गुम्बद, उसकी स्थापत्य कला और दीवारों का ढांचा मन्दिर की प्राचीनता का बखान करता है। किन्तु अब नांगल देवत नाम का वह ऐतिहासिक गांव अस्तित्व में नहीं है और प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों को कभी भी ध्वस्त किया जा सकता है। यह सब हो रहा है इंदिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के नाम पर, जिसके लिए जी.एम.आर. नामक कम्पनी को ठेका दिया गया है।

1964-65 में जब पालम हवाई अड्डे का विस्तार हुआ तब गांव की बेहद उपजाऊ लगभग 12,000 बीघे जमीन नांगल देवत के ग्रामवासियों से छीन ली गई। इसके बाद सन् 1972 में गांव की आबादी को वहां से कहीं अन्यत्र चले जाने का नोटिस थमा दिया गया, किन्तु एक बड़े जन आन्दोलन की सुगबुगाहट की भनक लगने पर सरकार को अपना फैसला टालना पड़ा। लेकिन सरकार कहां चुप बैठने वाली थी, उसने सन् 1986 में सभी को गांव खाली करने का आदेश दे दिया गया। तब 360 गांवों की पंचायत बुलाई गई, लोगों ने संघर्ष किया। 1998 तक यह मामला निचली न्यायालय में चला। एकदिन 2007 में भवन निर्माण कम्पनी जी.एम.आर. ने भारी संख्या में पुलिस बल लगाकर चारों ओर से बुलडोजर चला दिये और मन्दिर परिसर को छोड़ पूरे गांव को मलवे के ढेर में बदल दिया। लोगों को अपना सामान भी घरों से निकालने का समय नहीं दिया गया। जुलाई, 2007 में जी.एम.आर. ने 28 एकड़ में फैले भव्य मन्दिरों, संतों की समाधियों व शमशान भूमि को अपने कब्जे में ले लिया। धीरे-धीरे जी.एम.आर. ने मन्दिर को न सिर्फ चारों ओर से लोहे की टिन से सील कर दिया बल्कि वहां अपने आराध्य की पूजा-अर्चना करने आने वाले भक्तों को भी रोकना प्रारम्भ कर दिया।

आज वहां न तो भक्तों के अन्दर जाने का सुगम रास्ता है और न ही वाहन खड़े करने के लिए व्यवस्था। सुरक्षा के भारी-भरकम ताम-झाम देखकर लोग काफी हैरान-परेशान हैं। इन मंदिरों के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा का अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चारों ओर से भगवान के घर को सीखचों में बन्द करने के बावजूद लोगों ने 'बाउण्ड्री' के नीचे जमीन में गड्ढे खोदकर वहां से मन्दिर में प्रवेश का रास्ता बना लिया है। हर वृहस्पतिवार व अमावस्या के दिन यहां भक्तों का मेला लगा रहता है। श्राद्ध पक्ष में कनागती अमावस्या के दिन तो यहां बड़ा भारी मेला अब भी लगता है, जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों के लाखों लोग अपने-अपने पितरों का तर्पण यहां आकर करते हैं।

कानून सभी के लिए समान है तो सभी के धर्मस्थल तोड़ने चाहिए न कि केवल हिंदुओं के ही, सरकार, न्यायालय को इसपर ध्यान देना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Thursday, January 7, 2021

एनर्जी ड्रिंक का शोध में सामने आयी भयंकर जानकारी.

07 जनवरी 2021


आज कल बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर व्यक्ति फास्ट फुड, जंक फुड, कोल्ड ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक जैसे आधुनिक आहार के आदी हो चुके हैं। ऐसे लोगों की आंखे खोलनेवाला यह शाेध महत्त्वपूर्ण है ।




आजकल यंग जेनरेशन को एनर्जी ड्रिंक पीना बहुत भाता है, उनका मानना है इसे पीने से बॉडी को इंटेन्‍ट एनर्जी मिलती है और वह पढ़ाई या पार्टी बिना थके कर लेते हैं लेकिन ये बात गलत है क्योंकि एनर्जी ड्रिंक्स का सेवन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, रक्तचाप, मोटापा और गुर्दे की क्षति समेत कई गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है।

लंदन : अगर आप भी एनर्जी ड्रिंक पीते हैं, तो सावधान हो जाइए ! दरअसल, एक नए शोध से पता चलता है कि एनर्जी ड्रिंक से युवाओं में नकारात्मक दुष्प्रभाव हो सकते हैं । कनाडा के ओंटारियो में वाटरलू विश्वविद्यालय में किए गए शोध में कहा गया है कि ऐसे ड्रिंक्स की बिक्री 16 वर्ष से कम उम्र के युवाओं को करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

 हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 12 से 24 वर्ष के 55 प्रतिशत बच्चों को एनर्जी ड्रिंक पीने के बाद स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या मिली थी। इनमें हार्ट रेट तेज होने के साथ ही दिल के दौरे शामिल थे। शोधकर्ताओं ने 2,000 से अधिक युवाओं से पूछा कि वे रेड बुल या मॉन्सटर जैसे एनर्जी ड्रिंक को कितनी बार पीते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अन्य कैफीनयुक्त पेय की तुलना में जिस तरह से एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया जाता है, उसे देखते हुए एनर्जी ड्रिंक अधिक खतरनाक हो सकते हैं। शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया था उनमें से 24.7 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि उनके दिल की धडकन तेज हो गई थी ।

वहीं, 24.1 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसे पीने के बाद उन्हें नींद नहीं आ रही थी। इसके अलावा, 18.3 प्रतिशत लोगों ने सिरदर्द, 5.1  प्रतिशत मितली, उल्टी या दस्त और 3.6 प्रतिशत लोगों ने छाती के दर्द का अनुभव किया। हालांकि, शोधकर्ताओं के बीच चिंता का कारण यह था कि इन युवाओं ने एक या दो एनर्जी ड्रिंक ही लिए थे फिर भी उन्हें ऐसे प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव हो रहा था ।

अध्ययन के बारे में प्रोफेसर डेविड हैमोंड ने कहा कि फिलहाल ऊर्जा पेय खरीदनेवाले बच्चों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। किराने की दुकानों में बिक्री के साथ ही बच्चों को टार्गेट करते हुए इसके विज्ञापन बनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि इन उत्पादों के स्वास्थ्य प्रभावों की निगरानी बढ़ाने की जरूरत है ! स्त्रोत : नई दुनिया

एक ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। अध्ययन में यह जानकारी निकलकर सामने आई है कि अक्सर एनर्जी ड्रिंक्स को शराब के साथ लिया जा रहा है। अधिकांश एनर्जी ड्रिंक्स के अवयवों में पानी, चीनी, कैफीन, कुछ विटामिन, खनिज और गैर-पोषक उत्तेजक पदार्थ जैसे गुआरना, टॉरिन तथा जिन्सेंग आदि #शामिल रहते हैं।

एनर्जी ड्रिंक्स में लगभग 100 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है, जो नियमित कॉफी की तुलना में आठ गुना अधिक होता है। कॉफी में 12 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है। एनर्जी ड्रिंक्स में उपरोक्त सभी स्वास्थ्य जोखिम इसमें मौजूद चीनी और कैफीन की उच्च मात्रा के कारण होता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष पद्म श्री डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, एनर्जी ड्रिंक्स शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। उनमें कैफीन की अधिक मात्रा होने से युवाओं एवं बूढ़े लोगों में हृदय ताल, रक्त प्रवाह और रक्तचाप की समस्याएं हो सकती हैं। इन पेय पदार्थो में तौरीन नामक एक तत्व होता है, जो कैफीन के प्रभाव को बढ़ाता है। इसके अलावा, जो लोग शराब के साथ एनर्जी ड्रिंक्स पीते हैं, वे इसके प्रभाव में अधिक शराब पी जाते हैं। एनर्जी ड्रिंक्स लेने से शराब पीने का पता नहीं लग पाता, जिस कारण से लोग अधिक पीने के लिए प्रेरित होते हैं।

18 वर्ष से कम उम्र के लोगों, गर्भवती महिलाओं, कैफीन के प्रति संवेदनशील लोगों, एडीएचडी के लिए निर्धारित दवा जैसे एडर आदि लेने वालों के लिए एनर्जी ड्रिंक्स खास तौर पर अधिक नुकसानदेह होते हैं।

अमेरिका में हुए एनर्जी ड्रिंक से संबंधित एक सर्वेक्षण के अनुसार कैफीन लेने से दौरा पड़ने और सनक की समस्‍या होती है व कई बार तो मौत भी हो जाती है। अगर इसे आप सॉफ्ट ड्रिंक मानते हैं तो ये गलत है। एनर्जी ड्रिंक में मिली कैफीन सीधे दिमाग पर असर करती है, ऐसे में बच्चों का इसे पीने पर पाबंदी होनी चाहिए।

एनर्जी ड्रिंक में 640 मिग्रा कैफीन

विशेषज्ञों के अनुसार, हाई एनर्जी ड्रिंक के एक कैन में अमूमन 13 चम्‍मच चीनी और दो कप कॉफी के बराबर की कैफीन होती है। इस मात्रा से आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि एक बर में इतनी सारी कैलोरी और कैफीन मानव शरीर और दिमाग के लिए खतरा पैदा करने के लिए काफी है। जबकि कई बार तो युवा एक दिन में 3-4 कैन एनर्जी ड्रिंक पी लेते हैं। इसमें लगभग 640 मिग्रा कैफीन की मात्रा होती है, जबकि एक वयस्‍क भी एक दिन में केवल 400 मिग्रा कैफीन ही ऑब्जर्व कर सकता है।

एनर्जी ड्रिंक के दुष्‍प्रभावों को जानना जरूरी है। 

1) कैफीन पर निर्भरता : यह बात सामान्‍य है कि कैफीन की मात्रा, एनर्जी ड्रिंक में मिली हुई होती है। एनर्जी ड्रिंक को पीने से पता नहीं चलता है कि हमारे शरीर में कैफीन की कितनी मात्रा पहुंचती है। एक बार अगर शरीर को कैफीन की लत लग गई तो अन्‍य समस्‍याएं भी खड़ी हो सकती है। इसलिए इसे न पीना ही बेहतर विकल्‍प है।

2) नींद न आना : एनर्जी ड्रिंक को पीने से ज्‍यादा एनर्जी आने के कारण रात में भी नींद न आने की समस्‍या पैदा हो सकती है। शरीर और दिमाग थक जाते है लेकिन नींद नहीं आती है जिसके चलते उलझन होती है। जो लोग प्रतिदिन एनर्जी ड्रिंक का सेवन करते है, उन्हें ऐसी समस्‍या का सामना अक्‍सर झेलना पड़ता है। 

3) मूड पर प्रभाव : अध्‍ययनों से यह बात स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि एनर्जी ड्रिंक पीने से व्‍यक्ति के मूड पर प्रभाव पड़ता है और उसका मूड स्‍वींग होता रहता है। इसके सेवन से शरीर में फील गुड कराने वाना सेरोटोनिन घट जाता है जिससे व्‍यक्ति को अवसाद हो जाता है या उसका मूड उखड़ा-उखड़ा रहता है। 

4) शुगर बढ़ना : एनर्जी ड्रिंक में भरपूर मात्रा में शुगर मिली होती है। एक ड्रिंक में लगभग 13 चम्‍मच चीनी होती है जो शरीर में शुगर लेवल को बढा देती है जिससे कई प्रकार की गंभीर समस्‍याएं होने का खतरा रहता है। इसके सेवन से डिहाईड्रेशन, प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव, खराब दांत आदि पर भी असर पड़ता है। 

5) अंगो पर तनाव : एनर्जी ड्रिंक के सेवन से शरीर के सभी अंगो पर स्‍ट्रेस पड़ता है क्‍योंकि वह थक जाते हैं और उन्‍हे आराम नहीं मिल पाता है। अगर आप शरीर को स्‍वस्‍थ और खुशहाल बनाना चाहते हैं तो एनर्जी ड्रिंक का सेवन न करें। 

एनर्जी ड्रिंक को हेल्‍दी ड्रिंक का विकल्‍प कभी न बनायें और न ही इसे अपनी आदत बनायें। इसकी जगह ताजे फल और फलों का जूस पीने से अधिक एनर्जी बढ़ती है और शरीर स्वस्थ्य रहता है।

आज कल टीवी अखबारों, चलचित्रों, फिल्मों द्वारा पश्चिमी संस्कृति का महिमामंडन हो रहा है जिसके कारण आज बचपन से ही उनसे प्रभावित हो जाते है और अपने जीवन को निस्तेज कर देते हैं अतः आप ऐसी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण नही करें । ताजा फलों का रस, देशी गाय का दूध, घी, गौझरन आदि का उपयोग करके स्वस्थ्य सुखी और सम्मानित जीवन जीये ।

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