Thursday, February 24, 2022

ऑस्ट्रेलिया की लड़की ने संत आशाराम बापू के बारे में कही बड़ी बात...

ऑस्ट्रेलिया की लड़की ने संत आशाराम बापू के बारे में कही बड़ी बात...

https://youtu.be/YwELDddpR44


01 जुलाई 2021

azaadbharat.org


हिन्दू धर्मगुरु आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष की है, 8 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। कुछ समय पहले वे कोरोना संक्रमित हुए थे, एलोपैथी दवाई दी गई जिसका उनपर प्रतिकूल असर हुआ और उनका हीमोग्लोबिन 3.7 चला गया था। काफी समय इलाज चला, उसके बाद वापिस उनको जेल भेज दिया गया। उनकी शारीरिक स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है। 



इस विषय को लेकर ऑस्ट्रेलिया की लड़की ग्रेलोरे सैनी ने कहा "सारी दुनिया कोरोना वायरस पैंडेमिक के प्रकोप से जूझ रही है। मैंने सुना है कि भारत देश के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया है कि भारतीय जेलों में जो कैदी हैं उनको बेल या पैरोल पर छोड़ दिए जाए। क्योंकि जेलों  में बहुत भीड़ है। कोरोना काल में इतनी भीड़ में साफ़ सफाई रखना मुश्किल होगा इसलिए जेलों की भीड़ कम करने के लिए जिससे कि कोरोना के रोकथाम में मदद हो, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किया है।" 


आगे कहा कि आसाराम बापूजी, जो कि एक वृद्ध 85 साल के व्यक्ति  हैं, वो कोरोना पॉजिटिव हो गए थे कुछ समय पहले। वो अब भी जेल में हैं और उनको बेल या पैरोल अब तक नहीं दी गई है। 

हम जानते हैं कि कोरोना वायरस वयस्क अथवा वृद्ध लोगों के लिए ज़्यादा खतरनाक है। जब आसारामजी बापू 85 साल के हैं और कोविड19 पॉजिटिव हो गए थे तो उनको अब तक बेल पे छोड़ा क्यों नहीं गया?


वो एक अति वृद्ध व्यक्ति हैं जिनको जेल जैसी भीड़ भरी जगह में रखा गया है। अन्य बहुत सारे अपराध करनेवाले कैदियों को छोड़ा गया है तो आसाराम बापूजी को क्यों नहीं छोड़ा? 

मेरी प्रशासन से विनती है कि आप प्लीज आसाराम बापूजी को बेल अथवा पैरोल पे छोड़ दें। धन्यवाद!


आपको स्पष्ट बता देते हैं कि जिस समय लड़की ने छेड़छाड़ का आरोप लगाया है उस समय तो वो अपने मित्र से कॉल पर बात कर रही थी और बापू आशारामजी किसी कार्यक्रम में व्यस्त थे, वहाँ पर 50-60 लोग भी थे, उन्होंने कोर्ट में गवाही भी दी है, लड़की का कॉल डिटेल भी दिया गया है फिर भी उनको जेल में रखना कहां तक उचित है?

https://youtu.be/V0sr9yHj1Go


उनको साजिश के तहत फंसाना और बाहर नहीं आने देना- उसके मुख्य कारण ये हैं:-


1). लाखों धर्मांतरित ईसाइयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर धर्म के संस्कार, मकान, जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करानेवालों का धंधा चौपट हो गया।


2). कत्लखाने जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।


3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।


4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाइयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया।


5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी-तेजस्वी बनाया।


6). इंग्लैंड, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया।


7). वैलेंटाइन डे का कुप्रभाव रोकने हेतु "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।


8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।


9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।


10). नशामुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसनमुक्त कराया।


11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए।


12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी", बाबा रामदेव, मोरारी बापू, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।


13. बच्चों के लिए "बाल संस्कार केंद्र", युवाओं के लिए "युवा सेवा संघ", महिलाओं के लिए "महिला उत्थान मंडल" खोलकर उनका जीवन धर्ममय व उन्नत बनाया।


ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं।


हिंदू संत आशाराम बापू पर जिस तरह से षड्यंत्र हुआ है उसको देखते हुए और उनके द्वारा किए गये राष्ट्र-संस्कृति व समाज उत्थान के सेवाकार्य तथा उनकी उम्र का ध्यान रखते हुए न्यायालय और सरकार को उन्हें शीघ्र रिहा करना चाहिए।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, February 23, 2022

अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन 1855 से शुरू हो गया था जिसका मिटा दिया इतिहास...

30 जून 2021

azaadbharat.org


भारत की आज़ादी के प्रथम प्रयास 1855 में सन्थाल पहले ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अंग्रेजों को समय दिया देश छोड़ कर भाग जाने का ... ये किसी भी अंग्रेज के लिए चौंक जाने जैसी बात थी। 



सवाधीनता संग्राम में 1855 ई. एक मील का पत्थर है; पर वस्तुतः यह समर इससे भी पहले प्रारम्भ हो गया था। वर्तमान झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में हुआ 'संथाल हूल' या 'संथाल विद्रोह' इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। संथाल परगना उपजाऊ भूमि वाला वनवासी क्षेत्र है। वनवासी स्वभाव से धर्म और प्रकृति के प्रेमी तथा सरल होते हैं। इसका जमींदारों ने सदा लाभ उठाया है। कीमती वन उपज लेकर उसीके भार के बराबर नमक जैसी सस्ती चीज देना वहां आम बात थी। अंग्रेजों के आने के बाद ये जमींदार उनसे मिल गये और संथालों पर दोहरी मार पड़ने लगी। घरेलू आवश्यकता हेतु लिये गये कर्ज पर कई बार साहूकार 50 से 500 प्रतिशत तक ब्याज ले लेते थे।

 

1789 में संथाल क्षेत्र के एक वीर बाबा तिलका मांझी ने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध कई सप्ताह तक सशस्त्र संघर्ष किया था। उन्हें पकड़कर अंग्रेजों ने घोड़े की पूंछ से बांधकर सड़क पर घसीटा और फिर उनकी खून से लथपथ देह को भागलपुर में पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी।


1855 में ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध महान संथाल विद्रोह हुआ था। संथाल विद्रोह को संताली भाषा में ‘संताल हूल’ कहते हैं। संथाल परगना का पूर्ववर्ती नाम ‘दामिनी को’ था यह नाम ब्रिटिश शासकों ने दिया था। ‘दामिनी को’ क्षेत्र पहले बीहड़ जंगल था। अंग्रेज शासक जंगल की कटाई कर खेती लायक जमीन बनाने के लिए आसपास के क्षेत्र के संताल आदिवासियों को मजदूरी करने के लिए प्रलोभन देकर लाए थे।


सथाल आदिवासियों ने पहले अंग्रेजी हुकूमत के आदेशानुसार जंगल-झाड़ साफ किया और खेती लायक जमीन बनाई। उस जमीन पर जब संथालों ने खेती करनी शुरू की तो ‘दिकू महाजन’ लगान वसूलने लगे। इसके साथ ही ब्रिटिश पुलिस संथालों पर अत्याचार व शोषण करने लगे। जब संथालों पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा शोषण, जुल्म, अन्याय, अत्याचार की अति हो गई, तब संथालों को विद्रोह के लिए विवश होना पड़ा। उस समय दुमका स्थित बरहेट प्रखंड के अंतर्गत भोगनाडीह गांव में चुन्नू मुर्मू की छह संतानें थीं, जिनमें चार लड़के और दो लड़कियां थीं। चार भाइयों और दो बहनों के नाम थे- सिद्धू मुर्मू, कान्हू मुरमू, चांद मुर्मू, भैरव मुर्मू, फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू। इन सगे भाई-बहनों ने संथाल समाज के लोगों को जागृत किया, संगठित किया और ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह के लिए ललकारा। 1855 में 30 जून काे भोगनाडीह गांव स्थित एक विशाल मैदान में संथाल जनजाति के लोग एकत्र हुए थे जिनका नेतृत्व सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू कर रहे थे। उस दिन दोनों भाइयों ने ब्रिटिश शासकों को ललकारा और संथाल हूल के लिए ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया। उसी दिन यह संकल्प लिया गया कि हमारी मेहनत की कमाई खेती-बाड़ी, जल-जंगल-जमीन हमारी है। अंग्रेजों की गुलामी अब हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। इस उद्घोष के साथ उसी दिन से संथाल विद्रोह की शुरुआत हुई।


इससे बौखला कर शासन ने उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया, पर ग्रामीणों के विरोध के कारण वे असफल रहे। अब दोनों भाइयों ने सीधे संघर्ष का निश्चय कर लिया। इसके लिए शालवृक्ष की टहनी घुमाकर क्रांति का संदेश घर-घर पहुंचा दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि उस क्षेत्र से अंग्रेज शासन लगभग समाप्त ही हो गया। इससे उत्साहित होकर एक दिन 50,000 संथाल वीर अंग्रेजों को मारते-काटते कोलकाता की ओर चल दिये। यह देखकर शासन ने मेजर बूरी के नेतृत्व में सेना भेज दी। पांच घंटे के खूनी संघर्ष में शासन की पराजय हुई और संथाल वीरों ने पकूर किले पर कब्जा कर लिया। सैकड़ों अंग्रेज सैनिक मारे गये। इससे कम्पनी के अधिकारी घबरा गये। अतः पूरे क्षेत्र में 'मार्शल लॉ' लगाकर उसे सेना के हवाले कर दिया गया।

 

अब अंग्रेजी सेना को खुली छूट मिल गयी। अंग्रेजी सेना के पास आधुनिक शस्त्रास्त्र थे, जबकि संथाल वीरों के पास तीर-कमान जैसे परम्परागत हथियार, अतः बाजी पलट गयी और चारों ओर खून की नदी बहने लगी। इस युद्ध में लगभग 20,000 वनवासी वीरों ने प्राणाहुति दी। प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार हंटर ने इस युद्ध के बारे में अपनी पुस्तक 'एनल्स ऑफ रूरल बंगाल' में लिखा है, ''संथालों को आत्मसमर्पण जैसे किसी शब्द का ज्ञान नहीं था। जबतक उनका ड्रम बजता रहता था, वे लड़ते रहते थे। जबतक उनमें से एक भी शेष रहा, वह लड़ता रहा। ब्रिटिश सेना में एक भी ऐसा सैनिक नहीं था, जो इस साहसपूर्ण बलिदान पर शर्मिन्दा न हुआ हो।''

 

इस संघर्ष में सिद्धू और कान्हू के साथ उनके अन्य दो भाई चांद और भैरव भी वीरगति को प्राप्त हो गये। इस घटना की याद 30 जून को प्रतिवर्ष 'हूल दिवस' मनाया जाता है। कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक 'नोट्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में इस घटना को जनक्रांति कहा है। भारत सरकार ने भी वीर सिद्धू और कान्हू की स्मृति को चिरस्थायी बनाये रखने के लिए एक डाक टिकट जारी किया है। आज भारत के शौर्य के उन सभी सितारों को उनके उद्घोष दिवस पर उन्हें बारम्बार नमन।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

चर्च में 993 मासूम बच्चों का किया यौनशोषण, सेक्युलर और मीडिया मौन !

29 जून 2021

azaadbharat.org


जब भी किसी पवित्र हिंदू साधु-संत पर कोई झूठा आरोप लगता है तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया इस तरह खबर चलाती है कि जैसे सुप्रीम कोर्ट में अपराध सिद्ध हो गया हो, सेक्युलर भी जोरों से चिल्लाने लगते हैं और हिंदू धर्म पर टिप्पणियां करने लगते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इल्जाम लगते ही न्यूज चालू हो जाती है, अनेक झूठी कहानियां बन जाती हैं। इससे तो यह सिद्ध होता है कि मीडिया को इस बात का पहले ही पता होता है कि कौन-से हिन्दू साधु-संत पर कौन-सा इल्जाम लगने वाला है और उनके खिलाफ किस तरीके से झूठी कहानियां बनाकर खबरें चलानी है? ऐसा लगता है- यह सब पहले से ही तय कर लिया जाता होगा!



वहीं, दूसरी ओर किसी मौलवी या ईसाई पादरी पर आरोप सिद्ध हो जाये, तभी भी न मीडिया खबर दिखाती है और ना ही सेक्युलर कुछ बोलते हैं। इससे साफ होता है कि ये गैंग केवल हिंदुत्व के खिलाफ है।


चर्च में यौन शोषण...


जिस चर्च के बारे में कहा जाता था कि वहां जीसस की शिक्षाएं दी जाती हैं, लोगों को सच का मार्ग दिखाया जाता है, वहां के पादरी एक तरह से जीसस के दूत की तरह हैं उस चर्च में वर्षों से ऐसा भयानक पाप हो रहा था, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। लोगों ने उस चर्च में अपने बच्चों को इसलिए भेजा था ताकि वह चर्च के ईसाई पादरियों के पास रहकर जीसस की शिक्षाओं को ग्रहण करेंगे लेकिन वहां तो कुछ और ही होता था। जिन पादरियों को जीसस का दूत समझा जाता था, वो पादरी हैवान बन चुके थे। चर्च को बलात्कार का अड्डा बना दिया गया था जहां 1 हजार के करीब बच्चों का यौन शोषण किया गया।



मामला पोलैंड के एक कैथोलिक चर्च का है जहां एक नई रिपोर्ट में 300 बच्चों के यौन शोषण का मामला सामने आया है। मीडिया सूत्रों से 28 जून 2021 को नाबालिगों के शोषण को लेकर जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, 1958 से लेकर 2020 तक करीब 292 पादरियों ने 300 बच्चों का यौन शोषण किया। इनमें लड़के और लड़कियाँ, दोनों ही शामिल थे। 2018 के मध्य से लेकर 2020 तक इनमें से कई हालिया मामलों की शिकायत चर्च प्रशासन से भी की गई।


कई पीड़ितों, उनके परिवारों और पादरियों के अलावा मीडिया और सूत्रों के हवाले से ये रिपोर्ट तैयार की गई है। हाल ही में वारसॉ में पोलैंड के कैथोलिक चर्च के मुखिया आर्कबिशप वोजसिक पोलाक ने पीड़ितों से माफ़ी माँगते हुए कहा कि आशा है कि वो पादरियों को क्षमा कर देंगे। उन्होंने बताया कि वो पहले भी माफ़ी माँग चुके हैं। कुल मिला कर चर्च को 368 बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट सौंपी गई है।


बता दें कि इनमें से 144 मामलों को तो वेटिकन के ‘कॉन्ग्रिगेशन ऑफ डॉक्ट्रिन ऑफ फेथ’ ने भी शुरुआती जाँच में पुष्ट माना है। 368 में से 186 की अभी भी जाँच की जा रही है। हालाँकि, वेटिकन ने इनमें से से 38 मामलों को फर्जी मान कर उन्हें नकार दिया है। यौन प्रताड़ना के इन मामलों की जाँच कर रहे अधिकारी ने बताया कि उनके पास कई रिपोर्ट्स आई हैं। इस तरह की पिछली रिपोर्ट मार्च 2019 में जारी की गई थी।


इससे पहले चर्च की जो पहली रिपोर्ट आई थी, उसमें 1990-2018 के बीच के मामलों के बारे में बताया गया था। इस दौरान करीब 382 पादरियों द्वारा 625 नाबालिग बच्चों का यौन शोषण किया गया। ताज़ा रिपोर्ट में केवल उसके बाद खुलासा हुए मामलों को ही शामिल किया गया है। इस तरह चर्च में कुल 993 बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट सामने आ चुकी है। इनमें से 42 यौन शोषक पादरी ऐसे हैं, जिनके नाम पहली रिपोर्ट में भी दर्ज थे और उनके नाम दूसरी रिपोर्ट में भी मौजूद हैं।


https://twitter.com/SudarshanNewsTV/status/1409767191117926408?s=19


ऐसे तो मौलवियों व पादरियों पर यौन शोषण के हजारों मामले हैं लेकिन मीडिया का कैमरा व तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग इसपर मौन हो जाता है जबकि किसी साधु-संत पर साजिश के तहत झूठे आरोप लगे तो भी मीडिया चिल्लाने लगती है। ऐसे बिकाऊ मीडिया की बातों में आकर हिंदू धर्मगुरुओं के खिलाफ गलत टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan


facebook.com/ojaswihindustan


youtube.com/AzaadBharatOrg


twitter.com/AzaadBharatOrg


.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

भामाशाह ने देश-धर्म की रक्षा के लिए जो किया वो आज के धनाढ्य कब समझेंगे?

28 जून 2021

azaadbharat.org


दान की चर्चा होते ही भामाशाह का नाम स्वयं ही मुँह पर आ जाता है। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी सब जमा पूँजी अर्पित करनेवाले दानवीर भामाशाह का जन्म अलवर (राजस्थान) में 28 जून, 1547 को हुआ था। उनके पिता थे श्री भारमल तथा माता श्रीमती कर्पूरदेवी थीं। श्री भारमल, राणा साँगा के समय रणथम्भौर के किलेदार थे। अपने पिता की तरह भामाशाह भी राणा परिवार के लिए समर्पित थे।



एक समय ऐसा आया जब अकबर से लड़ते हुए राणा प्रताप को अपनी प्राणप्रिय मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। वे अपने परिवार सहित जंगलों में रह रहे थे। महलों में रहनेवाले और सोने-चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट भोजन करनेवाले महाराणा के परिवार को अपार कष्ट उठाने पड़ रहे थे। राणा को बस एक ही चिन्ता थी कि किस प्रकार फिर से सेना जुटाएँ, जिससे अपने देश को मुगल आक्रमणकारियों के चंगुल से मुक्त करा सकें।


इस समय राणा के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या धन की थी। उनके साथ जो विश्वस्त सैनिक थे, उन्हें भी काफी समय से वेतन नहीं मिला था। कुछ लोगों ने राणा को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी, पर राणा जैसे देशभक्त एवं स्वाभिमानी को यह स्वीकार नहीं था। भामाशाह को जब राणा प्रताप के इन कष्टों का पता लगा, तो उनका मन भर आया। उनके पास स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन था। उन्होंने यह सब राणा के चरणों में अर्पित कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने 25 लाख रु. तथा 20,000 अशर्फियाँ राणा को दीं। राणा ने आँखों में आँसू भरकर भामाशाह को गले से लगा लिया।


राणा की पत्नी महारानी अजवान्दे ने भामाशाह को पत्र लिखकर इस सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। इस पर भामाशाह रानी जी के सम्मुख उपस्थित हो गये और नम्रता से कहा कि मैंने तो अपना कर्त्तव्य निभाया है। यह सब धन मैंने देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाये, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य ही होगा। महारानी यह सुनकर क्या कहतीं, उन्होंने भामाशाह के त्याग के सम्मुख सिर झुका दिया।


उधर जब अकबर को यह घटना पता लगी, तो वह भड़क गया। वह सोच रहा था कि सेना के अभाव में राणा प्रताप उसके सामने झुक जायेंगे, पर इस धन से राणा को नयी शक्ति मिल गयी। अकबर ने क्रोधित होकर भामाशाह को पकड़ लाने को कहा। अकबर को उसके कई साथियों ने समझाया कि एक व्यापारी पर हमला करना उसे शोभा नहीं देता। इस पर उसने भामाशाह को कहलवाया कि वह उसके दरबार में मनचाहा पद ले ले और राणा प्रताप को छोड़ दे, पर दानवीर भामाशाह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अकबर से युद्ध की तैयारी भी कर ली। यह समाचार मिलने पर अकबर ने अपना विचार बदल दिया।


भामाशाह से प्राप्त धन के सहयोग से राणा प्रताप ने नयी सेना बनाकर अपने क्षेत्र को मुक्त करा लिया। भामाशाह जीवनभर राणा की सेवा में लगे रहे। महाराणा के देहान्त के बाद उन्होंने उनके पुत्र अमरसिंह के राजतिलक में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इतना ही नहीं, जब उनका अन्त समय निकट आया, तो उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया कि वह अमरसिंह के साथ सदा वैसा ही व्यवहार करे, जैसा उन्होंने राणा प्रताप के साथ किया है।


आज के हिन्दू समाज को अपने बच्चों को लोरियों में राणा प्रताप और भामाशाह के त्याग और तपस्या की कहानियाँ अवश्य सुनानी चाहिए ताकि उन्हें यह मालूम हो सके कि उनके पूर्वजों ने कितने त्याग कर अपने वैदिक धर्म की रक्षा की थी।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

सच क्या है? वास्को दी गामा ने भारत को खोजा या लुटा?

27 जून 2021

azaadbharat.org


हमारे देश में पढ़ाई जानेवाली किसी भी इतिहास की पुस्तक को उठाकर देखिये। वास्को दी गामा को भारत की खोज करने का श्रेय देते हुए इतिहासकार उसके गुणगान करते दिखेंगे। उस काल में जब यूरोप से भारत के मध्य व्यापार केवल अरब के माध्यम से होता था। उसपर अरबवासियों का प्रभुत्व था। भारतीय मसालों और रेशम आदि की यूरोप में विशेष मांग थी। पुर्तगालवासी वास्को दी गामा समुद्र के रास्ते अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगाते हुए भारत के कप्पाड तट पर 14, मई, 1498 को कालीकट, केरल पहुँचा। केरल का यह प्रदेश समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र था। स्थानीय निवासी समुद्र तट पर एकत्र होकर गामा के जहाज को देखने आये क्यूंकि गामा के जहाज की रचना अरबी जहाजों से अलग थी। 



करल के उस प्रदेश में शाही जमोरियन राजपरिवार के राजा समुद्रीन का राज्य था। राजा अपने बड़े से शाही राजमहल में रहता था। गामा अपने साथियों के साथ राजा के दर्शन करने गया। रास्ते में एक हिन्दू मंदिर को चर्च समझ कर गामा और उसके साथी पूजा करने चले गए। वहां स्थित देवीमूर्ति को उन्होंने मरियम की मूर्ति समझा और पुजारियों के मुख से श्री कृष्ण के नाम को सुनकर उसे क्राइस्ट का अपभ्रंश समझा। गामा ने यह सोचा कि लम्बे समय तक यूरोप से दूर रहने के कारण यहाँ के ईसाइयों ने कुछ स्थानीय रीति रिवाज अपना लिए हैं। इसलिए ये लोग यूरोप के ईसाइयों से कुछ भिन्न मान्यताओंवाले हैं। गामा की सोच उसके ईसाईयत के प्रति पूर्वाग्रह से हमें परिचित करवाती है। 


राजमहल में गामा का भव्य स्वागत हुआ। उसका 3000 सशस्त्र नायर सैनिकों की टुकड़ी ने अभिवादन किया। गामा को तब तक विदेशी राजा के राजदूत के रूप में सम्मान मिल रहा था। सलामी के पश्चात गामा को राजा के समक्ष पेश किया गया। जमोरियन राजा हरे रंग के सिंहासन पर विराजमान था। उनके गले में रत्नजड़ित हीरे का हार एवं अन्य जवाहरात थे जो उनकी प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करते थे। गामा द्वारा लाये गए उपहार अत्यंत तुच्छ थे। राजा उनसे प्रसन्न नहीं हुआ। फिर भी उसने सोने, हीरे आदि के बदले मसालों के व्यापार की अनुमति दे दी। स्थानीय अरबी व्यापारी राजा के इस अनुमति देने के विरोध में थे। क्यूंकि उनका इससे व्यापार पर एकाधिकार समाप्त हो जाता। गामा अपने जहाज़ से वापिस लौट गया। उसकी इस यात्रा में उसके अनेक समुद्री साथी काल के ग्रास बन गए। उसका पुर्तगाल वापिस पहुंचने पर भव्य स्वागत हुआ। उसने यूरोप और भारत के मध्य समुद्री रास्ते की खोज जो कर ली थी। आधुनिक लेखक उसे भारत की खोज करनेवाला लिखते हैं। भारत तो पहले से ही समृद्ध व्यापारी देश के रूप में संसार भर में प्रसिद्ध था। इसलिए यह कथन यूरोपियन लेखक की पक्षपाती मानसिकता को प्रदर्शित करता है। 


पर्तगाल ने अगली समुद्री यात्रा की तैयारी आरम्भ कर दी। इस बार लड़ाकू तोपों से सुसज्जित 13 जहाजों और 1200 सिपाहियों का बेड़ा भारत के लिए निकला। कुछ महीनों की यात्रा के पश्चात यह बेड़ा केरल पहुंचा। कालीकट आते ही पुर्तगालियों ने राजा के समक्ष एक नाजायज़ शर्त रख दी कि राजा केवल पुर्तगालियों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध रखेंगे। अरबों के साथ किसी भी प्रकार का व्यापार नहीं करेंगे। राजा ने इस शर्त को मानने से इंकार कर दिया। झुंझलाकर पुर्तगालियों ने खाड़ी में खड़े एक अरबी जहाज को बंधक बना लिया। अरबी व्यापारियों ने भी पुर्तगालियों की शहर में रुकी टुकड़ी पर हमला बोल दिया। पुर्तगालियों ने बल प्रयोग करते हुए दस अरबी जहाजों को बंधक बनाकर उनमें आग लगा दी। इन जहाजों पर काम करनेवाले नाविक जिन्दा जलकर मर गए। पुर्तगाली यहाँ तक नहीं रुके। उन्होंने कालीकट पर अपनी समुद्री तोपों से बमबारी आरम्भ कर दी। यह बमबारी दो दिनों तक चलती रही। कालीकट के राजा को अपना महल छोड़ना पड़ा। यह उनके लिया अत्यंत अपमानजनक था। पुर्तगाली अपने जहाजों को मसालों से भरकर वापिस लौट गए। यह उनका हिन्द महासागर में अपना वर्चस्व स्थापित करने का पहला अभियान था। 


गामा को एक अत्याचारी एवं लालची समुद्री लुटेरे के रूप में अपनी पहचान स्थापित करनी थी। इसलिए वह एक बार फिर से आया। इस बार अगले तीन दिनों तक पुर्तगाली अपने जहाजों से कालीकट पर बमबारी करते रहे। खाड़ी में खड़े सभी जहाजों और उनके 800 नाविकों को पुर्तगाली सेना ने बंधक बना लिया। उन बंधकों की पहले जहाजों पर परेड करवाई गई। फिर उनके नाक-कान, बाहें काटकर उन्हें तड़पा तड़पाकर मारा गया। अंत में उनके क्षत-विक्षत शरीरों को नौकाओं में डालकर तट पर भेज दिया गया। जमोरियन राजा ने एक ब्राह्मण संदेशवाहक को उसके दो बेटों और भतीजे के साथ सन्धि के लिए भेजा गया। गामा ने उस संदेशवाहक के अंग भंग कर, अपमानित कर उसे राजा के पास वापिस भेज दिया। और उसके बेटों और भतीजे को फांसी से लटका दिया।  पुर्तगालियों का यह अत्याचार केवल कालीकट तक नहीं रुका। वेश्चिमी घाट के अनेक समुद्री व्यापार केंद्रों पर अपना कहर बरपाते हुए गोवा तक चले गए। गोवा में उन्होंने अपना शासन स्थापित किया। यहाँ उनके अत्याचार की एक अलग दास्तान फ्रांसिस ज़ेवियर नामक एक ईसाई पादरी ने लिखी। 

    

पर्तगालियों का यह अत्याचार केवल लालच के लिए नहीं था। इसका एक कारण उनका अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करना भी था। इस मानसिकता के पीछे उनका ईसाई और भारतीयों का गैरईसाई होना भी एक कारण था। इतिहासकार कुछ भी लिखें मगर सत्य यह है कि वास्को दी गामा एक नाविक के भेष में दुर्दांत, अत्याचारी, ईसाई लुटेरा था। खेद है वास्को डी गामा के विषय में स्पष्ट जानकारी होते हुए भी हमारे देश के साम्यवादी इतिहासकार उसका गुणगान कर उसे महान बनाने पर तुले हुए हैं। इतिहास का यह विकृतिकरण हमें संभवत: विश्व के किसी अन्य देश में नहीं मिलेगा। 

 - डॉ विवेक आर्य


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

नशा करने के कितने नुकसान और छोड़ने से कितने फायदे होते हैं- जान लीजिये...

26 जून 2021

azaadbharat.org


विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2016 में कहा था- ‘‘दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (11 देशों, जिसमें भारत शामिल है) में करीब 24.6 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं और 29 करोड़ से थोड़े कम तंबाकू का धुआंरहित स्वरूप में सेवन करते हैं।



उन्होंने कहा, ‘‘तंबाकू से हर साल क्षेत्र में 13 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जो 150 मौत प्रति घंटे के बराबर है।’’

WHO के मुताबिक तंबाकू सेवन और धूम्रपान से दुनिया में हर 6 सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत होती है।


बीसवीं सदी के अंत तक सिगरेट पीने के कारण 6 करोड़ 20 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे।


विकसित देशों में हर छठी मौत सिगरेट के कारण होती है। महिलाओं में सिगरेट पीने के बढ़ते चलन के कारण यह आँकड़ा और बढ़ा है।


तम्बाकू से होनेवाले दुष्परिणाम-


निकोटीन, टार और कार्बन-मोनोऑक्साइड जैसे हानिकारक केमिकल से युक्त तंबाकू जितना आपके फेफड़ों और चेहरे को प्रभावित करता है  उतना ही हानिकारक आपके नाजुक दिल के लिए भी होता है।


तबाकू का सेवन करनेवाले के मुँह से बदबू तो आती है, लेकिन उसके साथ ही उसको मुंह और गले में भयानक कैंसर की भी संभावना होती है। तंबाकू में मौजूद निकोटीन पूरे शरीर में रक्त की पूर्ति करनेवाली महाधमनी को प्रभावित करता है। यह फेफड़ों को भी काफी हद तक प्रभावित करता है जिससे श्वास संबंधी समस्याएं आम हो जाती हैं।



धम्रपान से बच्चों पर भयंकर असर...


जिन घरों में धूम्रपान आम होता है, उन घरों के बच्चे न चाहते हुए भी जन्म से ही 'धूम्रपान' की ज्यादतियों के शिकार हो जाते हैं।  धूम्रपान का धुआँ बच्चों में निमोनिया या पल्मोनरी ब्रोंकाइटिस अर्थात साँस के साथ उठनेवाली खाँसी की समस्या पैदा कर सकता है। बच्चों के मध्यकर्ण में अधिक पानी भर सकता है, उन्हें सुनने की अथवा वाचा की समस्या पैदा हो सकती है।


धूम्रपान के धुएँ में पलने वाले बच्चों के फेफड़े कम क्षमता से काम करते हैं। इसी वजह से उनकी रोगप्रतिरोधक प्रणाली भी कमजोर होती है। बच्चों का सामान्य विकास अवरुद्ध हो जाता है। उनका वजन और ऊँचाई दूसरों के मुकाबले कम होती है। जिन्होंने जीवन में कभी भी धूम्रपान नहीं किया हो उन्हें पैसिव स्मोकिंग के कारण फेफड़ों के कैंसर होने का 20-30 प्रतिशत जोखिम होता है।


दारू से नुकसान-


डॉ. टी.एल. निकल्स लिखते हैं- "जीवन के लिए किसी भी प्रकार और किसी भी मात्रा में अल्कोहल की आवश्यकता नहीं है। दारू से कोई भी लाभ होना असंभव है। दारू से नशा उत्पन्न होता है लेकिन साथ ही साथ अनेक रोग भी पैदा होते हैं। जो लोग सयाने हैं और सोच समझ सकते हैं, वे लोग मादक पदार्थों से दूर रहते हैं। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी है, इससे बुद्धिपूर्वक सोचकर उसे दारू से दूर रहना चाहिए।"


दारू पीनेवालों की स्त्रियों की कल्पना करो। उनको कितना दुःख सहन करना पड़ता है। शराबी लोग अपनी पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव करते हैं। दारू पीनेवाला मनुष्य मिटकर राक्षस बन जाता है। वह राक्षस भी शक्ति एवं तेज से रहित होता है। उसके बच्चे भी कई प्रकार से निराशा महसूस करते हैं। सारा परिवार पूर्णतया परेशान होता है। दारू पीनेवालों की इज्जत समाज में कम होती है। ये लोग योग तथा भक्ति के अच्छे मार्ग पर नहीं चल सकते। आदमी ज्यों-ज्यों अधिक दारू पीता है त्यों-त्यों अधिकाधिक कमजोर बनता है। 


दारू पीने के अनेकों नुकसान को लेकर 6 अक्टूबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवा पीढ़ी में शराब पीने की बढ़ती समस्या पर चिंता जताते हुए कहा था कि यदि इस बुराई को नहीं रोका गया तो अगले 25 साल में समाज तबाह हो जाएगा।


दारू के शौकीन लोग कहते हैं कि दारू पीने से शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और उत्तेजना आती है। परन्तु उनका यह तर्क बिल्कुल असंगत है। थोड़ी देर के लिए कुछ उत्तेजना आती है लेकिन अन्त में दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।


जीव विज्ञान के ज्ञाताओं का कहना है कि शराबियों के रक्त में अल्कोहल मिल जाता है अतः उनके बच्चों को आँख का कैन्सर होने की संभावना है। दस पीढ़ी तक की कोई भी संतान इसका शिकार हो सकती है। शराबी अपनी खाना-खराबी तो करता ही है, दस पीढ़ियों के लिए भी विनाश को आमंत्रित करता है।


वयसन छोड़ने के अनेक फायदे...


1. नशा बंद करने के 12 मिनट के भीतर ही आपकी उच्च हृदय गति (हाई बी.पी) और रक्त चाप में कमी (लो बी.पी) दिखने लगेगी। 12 घंटे बाद अपने खून में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर घटकर सामान्य पर पहुंच जाएगा। वहीं दो से 12 हफ्तों में आपके शरीर के भीतर खून के प्रवाह और फेफड़ों की क्षमता बढ़ जाएगी।


2. नशा छोड़े हुए एक साल बीतते-बीतते आप में दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा धूम्रपान करनेवालों की तुलना में आधा तक रह जाएगा। वहीं पांच साल तक पहुंचने पर मस्तिष्काघात का खतरा नॉन के स्तर पर पहुंच जाएगा।


3. दस साल तक अपने-आपको व्यसन से दूर रखने पर आपमें फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा धूम्रपान करनेवाले की तुलना में आधे पर पहुंच जाएगा। वहीं मुंह, गले, मूत्राशय, गर्भाशय और अग्नाशय में कैंसर का खतरा भी कम हो जाएगा।


4. नशा छोड़ने पर आपकी जीवन-प्रत्याशा में भी इजाफा होगा। अगर आप 30 वर्ष की उम्र से पहले ही धूम्रपान की लत से तौबा कर लेते हैं तो धूम्रपान करनेवालों की तुलना में आपकी जीवन प्रत्याशा करीब 10 साल तक बढ़ जाएगी, लेकिन धूम्रपान छोड़ने में देर करने से आपकी जिंदगी भी छोटी होती चली जाएगी।


5. धूम्रपान छोड़ने से आप में नपुंसकता की आशंका कम होती है। इसके अलावा महिलाओं में गर्भधारण में कठिनाई, गर्भपात, समय से पहले जन्म या जन्म के समय बच्चे का वजन बेहद कम होने जैसी समस्याएं भी कम होती है।


6. आपके व्यसन से तौबा करने पर आपके बच्चों में भी सेकंड हैंड स्मोक से होनेवाली श्वास संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।


7. धूम्रपान छोड़ना आपकी जेब के लिए भी फायदेमंद है। मान लें- अगर आप औसतन प्रतिदिन 10 सिगरेट पीते हैं और एक सिगरेट की कीमत 10 रुपये है, तो आप सालभर में ही 36,500 रुपये बस धूम्रपान में ही फूंक डालते हैं। इन पैसों से आप कुछ तो बेहतर काम कर ही सकते हैं।


वयसन छोड़ने के उपाय-


अजवाइन साफ कर इसे नींबू के रस और काले नमक में दो दिन तक भींगने के लिए छोड़ दें, फिर इसे सुखा लें और इसके बाद इसको मुंह में घंटों रखकर तंबाकू को खाने जैसी अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं।

अगर आपको तंबाकू खाने की तलब काफी ज्यादा है तो आप बारीक सौंफ के साथ मिश्री के दाने मिलाकर धीरे-धीरे चूस सकते हैं।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

सॉफ्टड्रिंक पीते हैं तो सावधान, सबसे बड़े खिलाड़ी ने दिए खतरे के संकेत !

25 जून 2021

azaadbharat.org


पर्तगाल के स्टार फुटबॉलर व कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो का एक विडियो सोशल मिडिया में खूब बवाल मचा रहा है। एक प्रेस कांफ्रेंस में रोनाल्डो ने कांफ्रेंस टेबल पर रखी हुई दो कोक की बोतलों को अपने सामने से हटा दिया और कहा- 'कोक नहीं, पानी पियो।'



उनके ऐसा करने से कंपनी को करीब 4 बिलियन डॉलर यानि 293 अरब रुपये का नुकसान हो गया। वैसे, नुकसान से याद आया कि कोल्ड ड्रिंक के पीने के बाद क्या होता है- आप जानते हैं?


नहीं ?? तो फिर ये देख लीजिए –


कोल्ड ड्रिंक पीने के महज़ 10 मिनट बाद आपके शरीर में 10 चम्मच शुगर चली जाती है। 20 मिनट बाद शरीर में इंसुलिन का फ्लो बढ़ने लगता है जिसे कंट्रोल करने के लिए आपका लिवर एक्स्ट्रा शुगर को फैट में बदल देता है। 


40 मिनट में साफ्ट ड्रिंक में मौजूद कैफिन आपके शरीर में घुलने लगता है, ब्लड़ प्रेशर बढ़ने लगता है, 45 मिनट बाद शरीर में डोपामाईन केमिकल बढ़ जाता है।

ये केमिकल ड्रग्स की तरह दिमाग पर असर करता है और 60 मिनट बाद सॉफ्ट ड्रिंक में मौजूद फॉस्फोरिक एसिड अपना असर दिखाता है, शरीर में पानी की कमी होने लगती है।


रकिए...!! और सुनिए...


 हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की स्टडी से पता चला है- 'सॉफ्ट ड्रिंक से फैट तो बढ़ता ही है साथ ही ये आपके लिए जानी दुश्मन होती है।'


सॉफ्ट ड्रिंक पीने से हर साल दुनिया में दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती है।

लोग डायबिटीज के शिकार भी होते  हैं।

लगभग 6 हज़ार लोग कैंसर का शिकार होते हैं और लगभग 44 हज़ार लोग दिल की बीमारियों का शिकार होकर मर जाते हैं।


हावर्ड यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध के मुताबिक कोल्ड ड्रिंक (पेप्सी, कोकाकोला) या डिब्बाबंद जूस और हेल्थ ड्रिंक पीने से न सिर्फ ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है बल्कि इंसुलिन के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होने लगती है। इससे व्यक्ति धीरे-धीरे डायबिटीज और हृदयरोगों (हार्टअटैक) की चपेट में आने लगता है।


य तो आप समझ ही गए होंगे कि सॉफ्ट ड्रिंक पीने से आपकी बॉडी पर क्या असर पड़ता है तो उसकी जगह नारियल पानी, ताजे फलों का जूस, गुलाब शरबत, नींबू शरबत, पलाश शरबत पियें और पिलाइये जिससे आप और मेहमान भी स्वस्थ रहें और आपका पैसा भी कम खर्च होगा तथा पैसा विदेश में न जाकर देश में ही रहेगा।


भारतवासियों ! घर के बनाये पेय पदार्थों का सेवन कर खुद भी स्वस्थ रहें और अपनी मेहनत से कमाए पैसे का भी सही और उचित जगह उपयोग करके देश को समृद्ध बनायें।


Official  Links:

Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan

facebook.com/ojaswihindustan

youtube.com/AzaadBharatOrg

twitter.com/AzaadBharatOrg

.instagram.com/AzaadBharatOrg

Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ