19 july 2018
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भारतीय राज्य संविधान के अनुच्छेद 26 (ड) के अनुसार भारतीय जनता को धार्मिक विषयों का व्यवस्थापन संभालने के लिए पूर्णरूप से स्वतंत्र है। ऐसा होते हुए भी लाखों भाविकों की श्रद्धा को ठेस पहुंचाकर सरकार मंदिरों का सरकारीकरण करना चाहती है।
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शिवसेना ने महाराष्ट्र सरकार के कानून के जरिये शनि शिंगणापुर मंदिर पर नियंत्रण करने के निर्णय पर मंगलवार को सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि, उसने (महाराष्ट्र सरकार ने) मस्जिदों और चर्च को छोड दिया है ।
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अहमदनगर जिले में स्थित मंदिर पर नियंत्रण के लिए कानून बनाने की सरकार की योजना के विरोध में शिवसेना विधायकों ने महाराष्ट्र विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया । विधायकों का तर्क है कि उस्मानाबाद जिले के प्रसिद्ध तुलजाभवानी मंदिर सहित सरकार द्वारा नियंत्रित मंदिरों में अधिकारियों की ‘लूट’ देखी जा सकती है । प्रकाश सुर्वे, प्रकाश फतरपेकर, सदानंद चव्हाण और भारत गोगवाले सहित अन्य विधायकों ने नारेबाजी की और आरोप लगाया कि सरकार केवल मंदिरों पर नियंत्रण कर रही है और चर्च तथा मस्जिदों को छोड रही है ।
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Maharashtra government is controlling temples, not in mosque and church: Shivsena |
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गोगवाले ने कहा कि सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि मंदिरों के प्रबंधन में कोई अनियमितता नहीं हो परंतु शनि मंदिर का सरकारीकरण नहीं होना चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की नजर केवल मंदिरों पर है और इस मुद्दे पर उसे अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि राज्य विधानमंडल का मॉनसून सत्र अभी नागपुर में चल रहा है ।
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सरकार केवल मंदिरों के धन पर आंखें गड़ाए राजकीय असंतुष्टों का पुनर्वसन करने हेतु सुव्यवस्थापन के नाम पर केवल हिन्दुओं के ही मंदिर नियंत्रण में ले रही है। पंढरपुर का श्री विठ्ठल मंदिर, मुंबई का श्री सिद्धीविनायक मंदिर, तुळजापुर का श्री भवानी मंदिर, कोल्हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर, शिर्डी का साईबाबा मंदिर, पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति के अंतर्गत कोल्हापुर, सांगली एवं सिंधुदुर्ग जिलों के 3067 मंदिरों का सरकार ने अतिक्रमण किया है। सरकारीकरण हुए इन मंदिरों में प्रचंड मात्रा में आर्थिक अपहार और भ्रष्टाचार हुआ है ।
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इसके कुछ उदाहरण . . .
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1.* पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान समिति : इस समिति के पास 25 हजार एकड भूमि में से 8 हजार एकड भूमि लापता है देवस्थानों के जेवरात-अलंकारों की कहीं प्रविष्टि नहीं, 25 वर्षों से लेखापरीक्षण नहीं !
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2.* श्री विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर समिति, पंढरपुर :इस मंदिर की 1200 एकड भूमि होते हुए भी गत 25 वर्षों से वह नियंत्रण में नहीं, इसके साथ ही एक रुपये का उत्पन्न भी मंदिर को नहीं मिलता; मंदिर की गोशाला का गोधन कसाईयों को बेच दिया गया !
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3.* श्री भवानी मंदिर, तुळजापुर : इस मंदिर समिति के बडे-बडे घोटालों की सीआयडी जांच चल रही है !
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ऐसी ही स्थिति सरकारीकरण हुए अन्य सभी मंदिरों की है। मंदिर में भाविकों द्वारा अर्पित दान का उपयोग धर्मप्रसार हेतु नहीं अपितु मुसलमान एवं ईसाई पंथियों के लिए किया गया है। अंधाधुंद कार्यभार कर मंदिरों में हुए करोडों रुपयों का भ्रष्टाचार उजागर होने पर भी उसे बडी सहजता से अनदेखा कर सरकार ने शिंगणापुर के श्री शनैश्वर देवस्थान के सरकारीकरण का आदेश दिया है। अब मुंबई के श्री मुंबादेवी मंदिर पर भी वक्रदृष्टि पड़ी है !
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सरकारीकरण हुए मंदिरों में अपेक्षित पवित्रता नहीं रखी जाती है। अनेक स्थानों पर पूर्व से चली आ रहीं अनेक प्रथा-परंपराओं को तोडा जा रहा है, वंशपरंपरागत पुजारियों को हटाकर धर्मशास्त्र न जाननेवाले वेतन लेनेवाले पुजारियों को नियुक्त करने का प्रयत्न सभी मंदिरों में हो रहा है। सरकारी नियम से नियुक्त किए गए पुजारियों को धार्मिक प्रथा-परंपराओं की कितनी जानकारी है, यह तो भगवान ही जानें !
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हिन्दू मंदिर, चैतन्य और सात्त्विकता के केंद्र होते हैं। इस सात्त्विकता को टिकाने के लिए मंदिरों की पवित्रता को संजोना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ! यदि सरकार ऐसी अर्थहीन पद्धति से मंदिरों का कारोबार करेगी, तो ऐसे लोगों पर भगवान कभी प्रसन्न होंगे अथवा उनका कोप होगा, यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं। इसलिए वंशपरंपरागत पुजारी एवं प्रथा-परंपराएं, मंदिरों में कायम रखी जाएं।
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स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहलवानेवाला शासन मस्जिदों और चर्च के सरकारीकरण का विचार नहीं करता केवल मंदिरों का ही सरकारीकरण कर रहा है। यह हिन्दू समाज पर किया जानेवाला अन्याय और सामाजिक भेदभाव है।
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हिन्दू मन्दिरों पर सरकारी नियंत्रण और मस्जिदों, चर्च को खुली छूट, ये कैसा सेक्युलरवाद ?
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सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार सरकार के मंदिर सरकारीकरण का प्रयत्न असंवैधानिक है। इसलिए सरकारीकरण हुए सभी मंदिर सरकार भक्तों के स्वाधीन करे, वंशपरंपरागत पुजारियों की परंपरा कायम रखते हुए मंदिरों में धार्मिक प्रथा-परंपराओं में मनमानी परिवर्तन न करे ।
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मंदिर की संपत्ति का उपयोग हिन्दूहित के लिए नहीं किया जाता । इससे हिन्दू आर्थिक दृष्टि से निर्बल बन रहे हैं । हिन्दुआें के धर्मांतरण का यह एक बडा कारण है । मंदिरों का प्रशासन पुनः यदि हिन्दुआें के पास आ गया तो उससे हिन्दुआें में आत्मविश्वास जागृत होगा तथा मंदिरों की संपत्ति का उपयोग हिन्दूहित के लिए ही किया जाएगा । इस संपत्ति का उपयोग हिन्दुआें को पारंपरिक शस्त्रविद्या, शिक्षा आदि अनेक विषय की शिक्षा देने के लिए किया जा सकता है । स्तोत्र : हिन्दू जन जागृति समिति
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Official Azaad Bharat Links:
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