29 july 2018
गाय के गोबर में लक्ष्मी और गौझरन में गंगा का वास होता है । जबकि आयुर्वेद में गौझरन के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। गौझरन का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का नियमित सेवन करने से कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से थोड़े से गौमूत्र का भी सेवन करते हैं उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली कई बीमारियां दूर ही रहती हैं। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।
गौझरन की उपयोगिता देखकर आज मांग बढ़ गई है जिसके कारण मांग बढ़ने से राजस्थान में दूध से भी ज्यादा गौझरन महंगा होने लगा है ।
आपको बता दे कि सिर्फ दूध ही नहीं बल्कि गोमूत्र भी इन दिनों राजस्थान के किसानों की आमदनी का बड़ा साधन बन गया है। राजस्थान में गोमूत्र की अचानक इतनी डिमांड बढ़ गई है कि किसान हाई ब्रिड गाय जैसे गिर और थरपार्कर का गोमूत्र थोक बाजार में 15 से 30 रुपए प्रति लीटर तक बेच रहे हैं। वहीं गाय का दूध का रेट 22 रुपए से लेकर 25 रुपए प्रति लीटर तक है। आलम यह है कि दूध से महंगा गोमूत्र बिक रहा है। यही वजह है कि राज्य के किसान अचानक मालामाल हो गए हैं। कई इलाकों में किसानों की आय में 30 फीसदी से ज्यादा मुनाफा देखने को मिला है ।
बताया जा रहा है कि राजस्थान में गाय की गिर और थरपारकर जैसी कुछ प्रजातियों के गोमूत्र की डिमांड काफी है। एक ओर जहां किसानों को गाय के दूध के लिए 22-25 रुपए तक ही मिल पाते हैं वहीं गौमूत्र के लिए प्रति लीटर 15-30 रुपए का दाम आसानी से मिल जाता है।
खाद और दवाओं में होता है इस्तेमाल
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, जयपुर के रहने वाले किसान कैलाश गुर्जर बताते हैं कि गौमूत्र का इस्तेमाल जैविक कृषि के लिए होता है। इस क्षेत्र में काम करने वाले तमाम लोग उनसे गौमूत्र खरीदते हैं और इसी कारण उनकी आय में करीब 30 फीसदी का मुनाफा भी हुआ है। कैलाश के मुताबिक गौमूत्र का इस्तेमाल केमिकल युक्त खाद के एक विकल्प के रूप में होता है। इसके अलावा दवा और तमाम धार्मिक कामों में भी इसका इस्तेमाल होता है।
खुले में 50 रुपए प्रति लीटर बिक रहा गोमूत्र
राजस्थान के दूध विक्रेता ओमप्रकाश मीणा के मुताबिक... उन्होंने जयपुर में गिर गायों की गौशाला से गोमूत्र खरीदना शुरू किया है। मीणा का कहना है कि आम बाजार में जैविक कृषि या अन्य कामों को लिए गौमूत्र को 30 से 50 रुपए प्रति लीटर की कीमत में बेचा जा रहा है और इससे किसानों की आय में अच्छा मुनाफा भी देखने को मिल रहा है। मीणा का कहना है कि गौमूत्र से जैविक कृषि के क्षेत्र में बड़ा बदलाव भी देखने को मिल रहा है। मीणा के मुताबिक... बहुत से लोग गौमूत्र को दवाई और धार्मिक कामों में इस्तेमाल करते हैं। यज्ञ और जनेऊ संस्कार में इसका उपयोग सबसे ज्यादा है।
कृषि विश्वविद्यालय भी करता है गोमूत्र की खरीद...
राजस्थान सरकार के अधीन आने वाली उदयपुर की महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रद्यौगिकी विश्वविद्यालय भी अपने ऑर्गेनिक फॉर्मिंग प्रोजेक्ट के लिए हर महीने करीब 350 से 500 लीटर गौमूत्र खरीदती है। गोमूत्र की इस खरीद के लिए विश्वविद्यालय ने राज्य की कई गौशालाओं से अनुबंध भी किया है। हर महीने करीब 15000-20000 रुपए का गौमूत्र खरीदा जाता है। विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर उमा शंकर के मुताबिक... गौमूत्र किसानों के लिए अतिरिक्त आय का एक साधन है। स्त्रोत : ज़ी न्यूज़
आपको बता दे कि कुछ समय पहले जूनागढ़ एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को करीब चार साल की रिसर्च में फूड टेस्टिंग के दौरान करीब 400 गिर गायों के टॉयलेट के रिसर्च पर गायों के यूरिन में गोल्ड मिला है।
इन सभी गायों के पेशाब में 3 मिलीग्राम से लेकर 10 मिली ग्राम तक सोना पाया गया।
डॉ. गोलकिया ने बताया कि अभी तक गाय के पेशाब में सोना होने की बात हमने सिर्फ प्राचीन शास्त्रों में ही पढ़ी थी। इसका अभी तक कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं था। इस बात को सिद्ध करने के लिए हमने करीब 400 गायों के यूरिन की जांच की। इनके यूरिन में हमें सोने के कण मिले। डॉ. गोलकिया ने बताया कि गाय के टॉयलेट में से इस सोने को कैमिकल प्रकिया के जरिए निकाला जा सकता है। इस सोने को लिक्विड से सॉलिड में भी बदला जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने गिर की गाय के यूरिन में करीब 5100 पदार्थ मिले। इनमें से करीब 388 पदार्थ खासतौर से मेडिसिनल वैल्यू रखते हैं। ये पदार्थ कई तरह की बड़ी बीमारियों के इलाज में काम आ सकते हैं।
गिर की गाय पर हुए इस रिसर्च के बाद अब यही टीम भारत भर की 39 स्वदेशी गायों पर अपनी जांच करेगे। गोलकिया ने बताया कि गौ मूत्र प्राचीन काल से ही अनमोल था। इस रिसर्च के बाद वो और भी खास हो गया है।
भारत देश की विडंबना है कि हमारे शास्त्रों में ऋषि मुनियों द्वारा लिखी गई जब हमारे संत बताते है तब हम नही मानते है पर वही बात आज के वैज्ञानिक बोलते है तो आँख बंद करके मानते है ।
गौझरन की तरह और भी अनेक बाते है जो हमारे संत बताते है पर उनकी और कोई ध्यान नही देता है । आज भी हमारे शास्त्रों में अनमोल कुंजियां है पर हमारा दुर्भाग्य है कि टीवी, अखबार देखकर आज के चकाचौंध के युग में हम उसका लाभ नही उठा रहे है और पाश्चात संस्कृति के पीछे भाग रहे है ।
वर्तमान में हिन्दुस्तानियो को अपनी दिव्य संस्कृति को अपनाना चाहिए और पाश्चात संस्कृति को अलविदा कर देना चाहिए जिसके कारण हमारा जीवन स्वस्थ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जी सके ।
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