11 जून 2019
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कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं । विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-
6 नवम्बर 1556 को 14 साल की आयु में अकबर ने पानीपत की लड़ाई में भाग लिया था । हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया । उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी । तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से बेहोश हेमू का सिर काट लिया । एक गैर मुस्लिम को मौत के घाट उतारने के कारण अकबर को गाजी के खिताब से नवाजा गया । हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड़ को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया । जिससे नए बादशाह की रहमदिली सबको पता चल सके । अकबर की सेना दिल्ली में मारकाट कर अपने पूर्वजों की विरासत का पालन करते हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनाकर जीत का जश्न बनाया गया । अकबर ने हेमू के बूढ़े पिता को भी कटवा डाला और औरतों को शाही हरम में भिजवा दिया। अपने आपको गाज़ी सिद्ध कर अकबर ने अपनी “महानता” का परिचय दिया था[i] ।
हुमायूँ की बहन की बेटी सलीमा (जो अकबर की रिश्ते में बहन थी) का निकाह अकबर के पालनहार और हुमायूँ के विश्वस्त बैरम खान के साथ हुआ था । इसी बैरम खान ने अकबर को युद्ध पर युद्ध जीतकर भारत का शासक बनाया था । एक बार बैरम खान से अकबर किसी कारण से रुष्ट हो गया । अकबर ने अपने पिता तुल्य बैरम खान को देश निकाला दे दिया । निर्वासित जीवन में बैरम खान की हत्या हो गई। पाठक इस हत्या के कारण पर विचार कर सकते है । अकबर यहाँ तक भी नहीं रुका । उसने बैरम खान की विधवा, हुमायूँ की बहन और बाबर की पोती सलीमा के साथ निकाह कर अपनी “महानता” को सिद्ध किया[ii]।
बुंदेलखंड की रानी दुर्गावती की छोटी सी रियासत थी। न्यायप्रिय रानी के राज्य में प्रजा सुखी थी । अकबर की टेढ़ी नज़र से रानी की छोटी सी रियासत भी बच न सकी । अकबर अपनी बड़ी से फौज लेकर रानी के राज्य पर चढ़ आया । रानी के अनेक सैनिक अकबर की फौज देखकर उसका साथ छोड़ भाग खड़े हुए । पर फिर हिम्मत न हारी । युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए रानी तीर लगने से घायल हो गई। घायल रानी ने अपवित्र होने से अच्छा वीरगति को प्राप्त होना स्वीकार किया। अपने हृदय में खंजर मारकर रानी ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अकबर का रानी की रियासत पर अधिकार तो हो गया । मगर रानी की वीरता और साहस से उसके कठोर हृदय नहीं पिघला । अपने से कहीं कमजोर पर अत्याचार कर अकबर ने अपनी “महानता” को सिद्ध किया था[iii]।
थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था । दोनों ने अकबर के समक्ष विवाद सुलझाने का निवेदन किया । अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले । उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी । जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया । और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला । फिर अकबर महान जोर से हंसा । अकबर के जीवनी लेखक के अनुसार अकबर ने इस संघर्ष में खूब आनंद लिया । इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ अकबर के इस कुकृत्य की आलोचना करते हुए उसकी इस “महानता” की भर्त्सना करते हैं[iv]।
अकबर ने इतिहास के सबसे बड़े कत्लेआम में से एक चित्तौड़गढ़ का कत्लेआम अपने हाथों से अंजाम दिया था। चित्तौड़ के किले में 8000 वीर राजपूत योद्धा के साथ 40000 सहायक रुके हुए थे । लगातार संघर्ष के पश्चात भी अकबर को सफलता नहीं मिली । एक दिन अकबर ने किले की दीवार का निरिक्षण करते हुए एक प्रभावशाली पुरुष को देखा । अपनी बन्दुक का निशाना लगाकर अकबर ने गोली चला दी । वह वीर योद्धा जयमल थे । अकबर की गोली लगने से उनकी अकाल मृत्यु हो गई । राजपूतों ने केसरिया बाना पहना । चित्तोड़ की किले से धुँए की लपटे दूर-दूर तक उठने लगी । यह वीर क्षत्राणीयों के जौहर की लपटें थीं ।
सूरत की एक घटना का अबुल फजल ने अपने लेखों में वर्णन किया हैं। एक रात अकबर ने जम कर शराब पी। शराब के नशे में उसे शरारत सूझी और उसने दो राजपूतों को विपरीत दिशा से भाग कर वापिस आएंगे और मध्य में हथियार लेकर खड़े हुए व्यक्ति को स्पर्श करेंगे । जब अकबर की बारी आई तो नशे में वह एक तलवार को अपने शरीर में घोंपने ही वाला था तभी अपनी स्वामी भक्ति का प्रदर्शन करते हुए राजा मान सिंह ने अपने पैर से तलवार को लात मार कर सरका दिया । अन्यथा बाबर के कुल के दीपक का वही अस्त हो गया होता । नशे में धूत अकबर ने इसे बदतमीजी समझ मान सिंह पर हमला बोल दिया और उसकी गर्दन पकड़ ली । मान सिंह के उस दिन प्राण निकल गए होते अगर मुजफ्फर ने अकबर की ऊँगली को मरोड़ कर उसे चोटिल न कर दिया होता । हालांकि कुछ दिनों में अकबर की ऊँगली पर लगी चोट ठीक हो गई । अपने पूर्वजों की मर्यादा का पालन करते हुए "महान" अकबर ने यह सिद्ध कर दिया की वह तब तक पीता था, जब तक उससे न संभला जाता था[vi]।
एक युद्ध से अकबर ने लौटकर हुसैन कुली खान द्वारा लाये गए युद्ध बंधकों को सजा सुनाई। मसूद हुसैन मिर्जा (जिसकी आँखे सील दी गई थी) की आँखें खोलने का आदेश देकर अकबर साक्षात पिशाच के समान बंधकों पर टूट पड़ा । उन्हें घोड़े,गधे और कुत्तों की खाल में लपेट कर घुमाना, उन पर मरते तक अत्याचार करना, हाथियों से कुचलवाना आदि अकबर के प्रिय दंड थे । निस्संदेह उसके इन विभित्स अत्याचारों में कहीं न कहीं उसके तातार पूर्वजों का खूंखार लहू बोलता था। जो उससे निश्चित रूप "महान" सिद्ध करता था[vii]।
अकबर घोर विलासी, अय्याश बादशाह था। वह सुन्दर हिन्दू युवतियों को अपनी यौनेच्छा का शिकार बनाने की जुगत में रहता था। वह एक "मीना बाजार" लगवाता था। उस बाजार में केवल महिलाओं का प्रवेश हो सकता था और केवल महिलाएं ही समान बेचती थी। अकबर छिप कर मीणा बाज़ार में आने वाली हिन्दू युवतियों पर निगाह रखता था। जिसे पसन्द करता था उसे बुलावा भेजता था।
धूर्त अकबर पसीने से तरबतर हो उठा। हाथ जोड़कर बोला, "मुझे माफ करो, रानी। मैं भविष्य में कभी ऐसा अक्षम्य अपराध नहीं करूंगा।"
अकबर किरण देवी के चरणों में पड़ा थर-थर कांप रहा था। उसने किरण देवी से अपने प्राणों की भीख मांगी और मीना बाजार को सदा के लिए बंद करना स्वीकार किया। इस प्रकार से मीना बाजार के नाटक पर सदा-सदा के लिए पटाक्षेप पड़ गया था। भारत के शहंशाह अकबर हिन्दू ललना के पांव तले रुदते हुए अपनी महानता को सिद्ध कर रहा था[viii]।
सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।
[i] Akbar the Great Mogul- Vincent Smith page No 38-40
[ii] Ibid p.40
[iii] Ibid p.71
[iv] Ibid p.78,79
[v] Ibid p.89-91
[vi] Ibid p.89-91
[vii] Ibid p.116
[viii] Glimpses of glory by Santosh Shailja, Chap. Meena Bazar p.122-124
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