16 सितंबर 2019
जगन्नाथ पुरी में 12 वीं शताब्दी से अविरत धर्म कार्य की धुरी बने कई महत्वपूर्ण मठ-मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। इसे कुछ भी कर के तत्काल रोका जाना चाहिए। भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर की सुरक्षा के बहाने उन्हीं मठों को निशाना बनाया जा रहा है जिन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर को औरंगज़ेब और कई आतताइयों से बचाया था। उसके लिए यही मठ मंदिर ढाल बने। उसमें रहने वाले साधु और भक्तों ने बलिदान दिए। उनकी उपस्थिति का अर्थ मंदिर की चिर काल तक सुरक्षा थी । परंतु जिन्होंने शताब्दियों तक जगन्नाथ मंदिर को बचाया, आज दुर्भाग्य से उन्हीं मठों को बचाने वाला कोई नहीं है !
उसे तोड़ने वाली स्वयं उड़ीसा सरकार है। जिन मठों को दर्जनों देशों से आए आक्रमणकारी तोड़ नहीं पाए, जिसे शतकों तक यहाँ राज करने वाले मुग़ल और ब्रिटिश तोड़ नहीं पाए, उन्हें आज स्वयं सरकार तोड़ रही है। वह भी क़ानून के डंडे से; विकास के नाम पर और सुरक्षा का बहाना बना कर। बाक़ायदा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीपी दास की समिति बना कर, उसकी सिफारिशों के आधार पर। वास्तव में, क़ानूनी दिखाने वाला यह अभियान क़ानूनी नहीं बल्कि सुल्तानी है। दुश्मनों के हमलों से भी ज़्यादा ख़तरनाक है। क्रूर, निष्ठुर और अन्यायी है। करोड़ों हिन्दुओं की आस्था पर सरकारी हमला है।
जगन्नाथ पुरी हिंदुस्थान के उन चुनिंदा धर्म स्थलों में से एक है जहाँ विदेशी पर्यटक सबसे अधिक आते हैं।
देशी पर्यटक भी ज़्यादा आते हैं। जीवन में एक बार भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करें , यही हर हिंदू की श्रद्धा और अपेक्षा होती है। कई सुविधाओं के अभाव के प्रभाव के बग़ैर शताब्दियों से करोड़ों भक्त पुरी में जाते रहे हैं। आज भी जा रहे हैं। ओडिशा की पर्यटन आय के साथ ही इस क्षेत्र के लोगों की आय का यह बड़ा केंद्र है। भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है। संपूर्ण भारत वर्ष और संसार के कोने-कोने में रहने वाले श्रद्धालु इस यात्रा को पर्व की तरह मनाते हैं। लाखों-करोड़ों श्रद्धालु इस पुनीत भव्य रथयात्रा में भागीदारी करते हैं। श्रद्धालुओं के अतिरिक्त बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। यह यात्रा 100 से अधिक देशों में भी निकली जाती है।
इस धर्म नगरी में जब सरकारें भी नहीं थी, तब भी और जब सत्तायें धर्म विरोधी थी तब भी; इन्हीं मठों ने करोड़ों भक्तों को सेवा, सुरक्षा और आश्वस्ति दी है। इसमें कई शताब्दी पुराने ऐसे मठ हैं, जिन्हें स्वयं सरकार को धरोहर संपत्ति के तौर पर विकसित करना चाहिए। परंतु आज वही मठ अज्ञान और षड्यंत्रों की बलि चढ़ रहे हैं , जिनके चौखट पर कई देशी-विदेशी महात्माओं ने माथा टेका है, उसे ख़ाली करने और तोड़ने के लिए जूते पहने सिपाहियों की फ़ौज रौंद रही है, जिसके दीवारों से हाथी आश्रय लेते थे, उन्हीं दीवारों को बुलडोज़र से तोड़ा जा रहा है।
इन मठों के विराट गौरवशाली और प्रेरणादायी अतीत है। इसमें ऐसे मठ हैं, जिसकी स्थापना 900 वर्ष पूर्व परम पूजनीय रामानुजाचार्य जी ने की थी। 1866 की बाढ़ में इसी मठ ने पूरे ओडिशा को खाना खिलाया था, जिसमें सम्पूर्ण ओडिशा को तीन दिनों तक राशन देने की क्षमता आज भी है। कई आपदाओं में सैकड़ों बार यही मठ सहायता के लिए आगे आए हैं।
इसी मठ से कई विद्यालय और महाविद्यालय चलाए जाते हैं। आज भी लाखों लोगों के लिए यहाँ अन्न क्षेत्र चलाते हैं। 1921 में ओड़िया संस्कृति को बचाने के लिए बनायी गयी रघुनन्दन पुस्तकालय को भी तोड़ा गया है। चौदहवीं शताब्दी में बना लिंगुली मठ, दसनामी नागा सम्प्रदाय मठ को भी तोड़ा गया है।
धर्म और अध्यात्म में पुरातन मान्यताओं को ही परम्परा मान कर उसे संजोया जाता है। उसके संरक्षण की ज़िम्मेवारी सरकार और सत्ता की होती है, परंतु वही उसे तोड़ने पर उतारू हो जाए तो कौन बचाए?
इन्हीं मठों ने ईसाई मिशनरियों के चंगुल से ओडिशा के ग़रीब अशिक्षित आदिवासियों को बचाया। उनकी सेवा और सहायता के मोह जाल में फंसने नहीं दिया। उनके विदेशी धन पर इनका स्वदेशी धन लगाया गया। परंतु उन्हीं के षड्यंत्र के सामने वही मंदिर-मठ धराशयी हो गए हैं।
यह सब करने के लिए जो कारण बताए गए वह भ्रामक है। 500 करोड़ का विकास करने के लिए खुली-खुली जगह ही क्यों चाहिए? विश्व भर के पुराने स्थान छोटे गलियों में हैं। उतनी छोटी गालियाँ यह पहले से नहीं है। 75 मीटर तक का परिसर ख़ाली करना, वहां तक वीआईपी वाहन जाना मठ से ज़्यादा जरूरी नहीं है। आख़िर विकास की परिभाषा क्या है? अन्य देश अपने ऐसे क्षेत्र को संरक्षित-सुरक्षित करने के लिए उसे तोड़ते नहीं। अमेरिका ने वाशिंगटन ग्राम को एक इंच भी तोड़े बिना वहां वाशिंगटन डीसी शहर बसाया। विश्व के सबसे आधुनिक और प्रगतिशील समझे जाने वाले पेरिस की पुरातन गलियां संकरी है, तो उन्होंने गाड़ियों को अंदर जाने से पाबंदी लगायी, परंतु तोड़ा नहीं।
सुरक्षा के नाम पर तोड़-फोड़ तो सबसे बड़ा बहाना है, पाखंड है। हमलावर जब सबसे सुरक्षित संसद भवन, या सेना के बेस पठानकोट पर हमला कर सकते हैं, तो कही पर भी कर सकते हैं ! यह कोई पुराना ज़माना नहीं कि क़िले के पहले गहरे खंडहर बनाए जाए। अक्षरधाम मंदिर पर हमले के बाद उसकी सुरक्षा के लिए क्या-क्या तोड़ा गया? संसद के पास के राष्ट्रपति भवन को तोड़ा? प्रधानमंत्री का घर भी खुले में नहीं है। उसके लिए तो एक साधारण मज़ार नहीं हटायी गयी। 75 मीटर खुले क्षेत्र का उलटा सुरक्षा के लिए छल है। परंतु अपने देश में सुरक्षा के बहाने कुछ भी करने का खेल खेला जाता है।
इसमें एक और बहुत बड़ा दुःखद पहलु है। जो मठ मंदिर तोड़े जा रहे हैं, वह अधिकतर दक्षिण भारत के हैं । कुछ लोगों को विशेषकर ओड़िया दल बीजू जनता दल को प्रादेशिक अस्मिता का सुरक्षा कवच भी मिला है, तोड़ फोड़ में! परंतु धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में इस प्रकार का तुच्छ खेल भगवान या भक्त को कभी स्वीकार्य नहीं होगा। इसी मंदिर कि रक्षा के लिए सुदूर पश्चिम से छत्रपति शिवाजी ने व्यवस्था की, इंदौर की महारानी आहिल्या बाई ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया। मैं आशा करता हूँ, स्थानीय लोग इस प्रादेशिक षड्यंत्र को समझ कर इसके विरुद्ध खड़े होंगे।
कुछ मठ मंदिरों को पुरुषार्थी मुखिया नहीं मिले हैं , तो कइयों पर राजनीति सवार है। कइयों पर पैसे के लालची विश्वस्त हैं जो मुंहमांगी राशि लेकर कहीं पर भी जाने को तैयार है।
इस परिस्थिति में अखंड हिंदू समाज को आगे आकर इस तथाकथित विकास के आतंकवाद का विरोध करना चाहिए। मैं तो इसके लिए खुल कर साम- दाम- दंड- भेद के लिए तैयार हूँ ही , जो आएगा उसके साथ, जो नहीं आएगा। उसके सिवा और जो विरोध करेगा उसके विरोध को तोड़ कर हमें इन प्राचीनतम मठों और मंदिरों को बचाना है - सुरेश चव्हाणके
इस प्रकरण में पुरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु निश्चलानंद सरस्वतीजी ने कहा है कि ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी.पी. दास के नेतृत्व में समिति ने मंदिर की चारों ओर 75 मीटर क्षेत्र को खाली करने का परामर्श दिया था; परंतु श्री. दास ने मेरे साथ इस संदर्भ में कभी चर्चा नहीं की । श्री जगन्नाथ मंदिर के साथ इन मठों की परंपरा जुड़ी है । इन मठों का संचालन स्वतंत्ररूप से होना चाहिए । सरकार ने जो बड़ी संख्या में मठों को तोड़ने का निर्णय लिया, उनका विस्थापन कैसे किया जाए इसका नियोजन करना चाहिए था । विकास के नामपर प्राचीन मठों को तोड़ने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ।
श्री जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र में स्थित मठ और मंदिरों को अवैध प्रमाणित कर उन्हें गिराने की अयोग्य कार्यवाही तुरंत रोकनी चाहिए ।
अबतक जिन प्राचीन मठों को तोड़ा गया है, उनका ओडिशा सरकार द्वारा पुनर्निर्माण किया जाए और इससे हुई हानि की भरपाई की जाए, साथ ही प्राचीन मूर्तियां और परंपराआें के संवर्धन हेतु प्रयास किए जाए ।
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