22 अक्टूबर 2019
*इस्लाम के आखिरी पैगंबर मुहम्मद ने जिहाद यानी गैर मुसलमानों के खिलाफ धर्मयुध्द की सफलता के लिये तीन महत्वपूर्ण रणनीति निर्धारित की है:*
*1- धोखेबाजी*
*2- आतंक , और*
*3- पहले हमले की पहल*
*यही इस्लाम की नैतिकता है। मुहम्मद ने बुखारी , हदीस संख्या 1213 , के अनुसार लड़ाई का नाम धोखा रखा है। हर मुसलमान के जीवन में यह इस्लामी दर्शन शांति और युध्द काल दोनों में समान रूप से कायम रहता है। चूंकि कुरानी दर्शन जिहाद है, जो काफिरों के विरुद्ध चौतरफा लड़ाई है, इसलिये धोखेबाजी का आचरण उसके जीवन का अभिन्न अंग होता है। कमलेश तिवारी की हत्या के पीछे भी यही कुरानी दर्शन और सुन्नत है। स्वयं मुहम्मद का जीवन इसका गवाह है। कैसे ? संक्षेप में :*
*मदीना में आसमा नामक कवियित्री की मुहम्मद ने बस इसलिये हत्या करवाई कि उसने मुहम्मद के खिलाफ तुकबंदी की थी।मदीना में ही एक सौ साल के वृद्ध यहूदी कवि अबू अफाक थे। उन्होंने ने भी मुहम्मद के खिलाफ कविता बनाई थी। उनकी हत्या हो गई। एक कवि जिनका नाम काब इब्न अशरफ था उसकी भी धोखे से इन्हीं कारणों के चलते हत्या करवा दी।फिर अपने अनुयायियों को यहूदियों की खुली हत्या की छूट दे दी। तब इब्न सुनैना नामके व्यापारी की उसी के टुकड़ों पर पल रहे एक मुसलमान ने हत्या कर दी। कवि नाजिर इब्न हरीथ को गिरफ्तार कर बस इसलिये कत्ल कर डाला गया कि उसने मुहम्मद की चुनौती स्वीकार करते हुये उन्हीं जैसी आयत बनाकर सुना दिया था। जो भी विचारशील थे और मुहम्मद की किसी भी रुप में स्वस्थ आलोचना भी करते थे उनकी धोखे से हत्या करवा देना नियम बन गया था। खैबर से मदीना आते हुये 28 यहूदियों की बिना किसी उकसावे के धोखे से हत्या करा दी गयी। उनका धन लूटा गया और औरतों को मुसलमानों में बांटा गया। बानू कुरेज़ा नामक यहूदी कबीले के 800 लोगों को गिरफ्तार कर दिन भर कसाई की तरह काटा गया और एक विशाल कब्र में भर दिया गया। कैनुका और बानू नाजिर नामक दो यहूदी कबीलों को सिर्फ इस्लाम न मानने के कारण, उनका सब कुछ लूटकर, मदीना से बेदखल कर दिया गया। मुहम्मद के जीवन काल में ही इस्लाम मानने को विवश करने के लिये काफिरों के विरूध्द तीन या चार को छोड़कर बयासी एकतरफा हमले किये गये। इनमें हत्या, लूट, अपहरण और विध्वंश का नंगा नाच हुआ। बेटे ने इस्लाम न माने जाने पर अपने पिता की हत्या की भी इस्लामिक कसम खाई। काफिर औरत की छाती से लगे दूध पीते बच्चे को झटके से अलग कर उसकी मां के सीने में खंजर भोंक दिया गया। मुर्शिदाबाद में तो मां के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां सहित नहीं बक्शा गया। उपर्युक्त सूची मात्र ही इस्लामी आतंक को दिखलाने के लिये पर्याप्त है।*
*स्पष्ट है कि कुरान, हदीस और मुहम्मद के क्रियाकलापों से शिक्षा ग्रहण कर मुसलमान छल-कपट और जिहाद से संपोषित जिहाद का पालन शांति और युध्दकाल दोनों में करते है। जब संख्या बल कम हो यह जिहाद अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होना है। अल्लाह ने भी अन्य कई आयतों के अलावा यह भी फरमाया है कि वह काफिरों के दिल में दहशत पैदा करेगा। कमलेश तिवारी की जघन्य हत्या का मकसद भी दहशत फैलाना ही है।*
*तीसरी रणनीति है पहले आक्रमण करना जब काफिर मुस्लिम योजना से बिलकुल अनजान और असावधान हों। ब्रि. मलिक ने ओहद की लड़ाई की समीक्षा में बताया कि कठिन परिस्थिति में भी मुहम्मद ने, जिसमें वो पराजित हुये, दांत भी टूटे और जान बची, पहले हमले की कार्यवाही शत्रु के हाथ नहीं जाने दी। यही रणनीति सभी मुस्लिम दंगों में देखी जाती है। जब गैर मुसलमान बिना किसी संदेह के निश्चिंततापूर्वक अपने कार्य में लगे रहते हैं मुसलमान उनपर हमला कर कत्ल ए आम मचा देते हैं। कमलेश तिवारी के साथ भी यही किया गया।*
*यह भी लगे हाथ समझ लेना जरुरी है कि मुसलमान और गैर मुसलमान के बीच संघर्ष का लगभग स्थाई कारण राजनीतिक और आर्थिक न होकर धर्म ही है। यह भी हमारी कोरी भ्रांति और झूठा प्रचार है कि गरीबी, और बेरोजगारी के चलते मुसलमान जिहादी और आतंकवादी बन रहे हैं। कमलेश तिवारी की हत्या के लिये 51लाख का फतवा कैसे एक गरीब मुसलमान जारी कर सकता है ?*
*ओसामा बिन लादेन से मशहूर पाकिस्तानी पत्रकार रहीमुल्ला यूसुफज़ई , ए बी सी के पत्रकार जान मिलर एवं अरबी पत्रिका निदा-उल-इस्लाम द्वारा किए गये साक्षात्कारों के आधार पर कुछ चुनिंदा सवाल-जवाब "मुस्लिम आतंकवाद बनाम अमरीका" (वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली-11002) नामक पुस्तक में प्रकाशित किये गये हैं। एक प्रश्न में ओसामा से पूछा गया:*
*" आप एक बहुत धनी घराने से सबंधित होने के बावज़ूद भी आराम की ज़िंदगी छोड़कर युध्द और कष्टों के बीच जीवन गुजार रहे हैं। अमरीकियों को यह बहुत अटपटा लगता है।*
*उत्तर - यह समझना बहुत मुश्किल है, खास तौर से उनके लिये जो इस्लाम को नहीं समझते। हमारे धर्म का यह विश्वास है कि अल्लाह ने हमें इसलिये बनाया कि हम उसकी इबादत करें। उसी ने हमें यह मजहब दिया। अल्लाह का आदेश है कि सर्वोच्चता कायम करने के लिये हम जिहाद करें। पश्चिम में यह झूठा प्रचार किया जाता है कि गरीबी के कारण लोग जिहादी बन रहे हैं।इसमें बहुत से धनीमानी युवा भी जुड़ चुके है।"*
*कमलेश तिवारी की हत्या के पीछे अल्ल्लाह का काफिरों के विरुद्ध यही जिहाद करने का आदेश है। यह आदेश हम सभी काफिरों के मारे जाने तक वैध, लागू और पाक है। यह सभी मुसलमानों पर फर्ज है। इसप्रकार हम देखते हैं कि कुरान, हदीस और सीरत-अन-नबी सम्मत इस्लामिक योजनाओं और क्रियाकलापों का जो चित्र उभरता है उसमें हर मुस्लिम कार्रवाई की जड़ में उसका मजहब ही था, है और कयामत तक रहेगा।*
*पर इतिहास की लंबी कालावधि में मुस्लिम चरित्र को देखकर भी हिंदू बुद्धिजीवियों, हिंदू राजनीतिज्ञों, हिंदू धर्म गुरुओं और हिंदू धर्म व्यवसाइयों ने कभी इस्लाम का गहन अध्ययन करने, उसके उद्देश्यों, कार्य योजनाओं और कार्यक्रमों - धोखेबाजी , आतंक , अचानक हमला - को इस्लाम के ही धर्मग्रंथों से और इसके खूनी इतिहास को समझने और हिंदुओं को समझाने का प्रयास ही नहीं किया। जब ऐसा नहीं किया तो उसके हमलों से बचने का उपाय कैसे करता ? इसीलिये हिंदू समाज इस्लाम के हाथों सदा कुचला गया- बिना समुचित प्रतिरोध के अनवरत। आज हिंदू अपने ही देश में अस्तित्व रक्षा की समस्या से ग्रसित है और तथाकथित हिंदू बुद्धिजीवी सामाजिक अस्तित्व की चिंता से मुक्त जीविकोर्पाजन तक ही सिमटा है। कमलेश तिवारी की हत्या इसका ज्वलंत प्रमाण है।*
*अगर हिंदू समाज को इस्लाम के उद्देश्यों, शिक्षाओं और कार्यविधियों का ज्ञान होता तो वह विभाजन पूर्व कोलकटा की सड़कों और गलियों में भेड़-बकरियों की तरह काटा नहीं जाता। वह पहले से बचाव के साधनों और उपायों का प्रयोग कर हमलावरों का विनाश कर पाता। मालदा में मुसलमान क्या करेगा उसको समझ हथियार बंद होकर तैयार रहता। देश के विभिन्न हिस्सों में जुम्मे की नमाज के बाद उपद्रवियों को सबक सिखा पाता। लखनऊ के नाकाम हिंडोला में जुम्मे की नमाज के बाद मुसलमान कमलेश तिवारी के साथ करेगा करेगा उसे पता होता। वह इसके लिये तैयार होता। कमलेश तिवारी के हत्यारों को हत्या के पहले या बाद मौके पर ही काट डालता। धार्मिक जुलूस निकालते समय हर तरीके से बचाव के लिये तैयार रहता। मुस्लिम परस्त सरकारों का क्या रवैया होगा, प्रशासनिक अधिकारियों के क्या निर्णय होंगे, मीडिया और सिकुलर बुध्दिजीवी क्या विषवमन करेंगे इसके लिये पहले से तैयार रहता। मुस्लिम नेता और मौलवी कैसी भाषा बोलेगा और मस्जिदों के माध्यम से मुसलमानों को क्या निर्देश देगा। मुस्लिम गुंडों को मजहबी मुजाहिदीन का सम्मान देकर कैसे थाने से छुड़ायेगा। ट्रकों पर लाठी, भाला, गड़ांसा, आग लगाने के सामानों को लादकर हिंदू विनाश के लिये उसे स्वयं जगह-जगह भेजने की व्यवस्था कैसे करेगा। तब हिंदू को पता होता कि ये लोग कैसे कैसे अत्याचार, दुराचार करेंगे और क्यों करेंगे। यह भी पता होता कि अपने किये हुये दुराचारों के लिये मुसलमान मुर्शिदाबाद के हिंदू भुक्तभोगी पर ही उल्टा दोषारोपण भी करेंगे। किसी समस्या के समाधान के लिये पहला कदम है उसे समझना। अगर समस्या का रुप सामाजिक है तो सामाजिक तौर पर एकजुट होकर समझना और एक होकर अपने बचाव की तैयारी रखना। अपने बचाव के लिये हर हालत में तैयार रहना गैर कानूनी भी नहीं है।*
*भूमिका में जो ऊपर लिखा गया है वो बेमतलब नहीं है। मकसद है पिछले करीब सौ सालों से भारत में करोड़ों हिंदू,सिख और बौद्धोंका जो वीभत्स कत्ल ए आम हुआ वह इसी इस्लामी फितरत - धोखेबाजी, आतंक , अचानक हमले- के कारण ही हुआ। इस फितरत को समझकर पूर्व तैयारी के साथ पलटवार कर हम इस इस्लामी फितरत को बहुत आसानी से पराजित कर सकते हैं।*
*कमलेश तिवारी की हत्या भी इसी इस्लामी फितरत- धोखेबाजी, आतंक, अचानक हमले- के कारण हुयी। उनकी हत्या का कारण उनका मोहम्मद के बारे में दिया बयान ही सिर्फ नहीं है। उनका काफिर होना ही प्रर्याप्त था उनके कत्ल के लिये। जिस धवन ने मुसलमानों की ओर से राम जन्मभूमि पर बहस की, जो अखिलेश यादव, अंबेडकरवादी, कांग्रेसी और समाजवादी गैर मुसलमान मुसलमानों के पैरोकार बने हुये हैं वो सब इस्लाम की नज़र में काफिर होने के कारण कत्ल के लायक ही हैं। इन सबका भी अंततोगत्वा वहीं हश्र होना है जो कमलेश तिवारी का हुआ। -अरुण लवानिया*
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