Monday, September 30, 2024

सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध - पितरों को प्रसन्न करने का आखिरी अवसर और श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय

 1st October 2024

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🚩सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध - पितरों को प्रसन्न करने का आखिरी अवसर और श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय 


🚩हिंदू धर्म में पितरों का सम्मान और उनका तर्पण एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। सर्वपितृ दर्श अमावस्या, जिसे महालय भी कहा जाता है, पितरों को प्रसन्न करने का अंतिम दिन होता है। यह अमावस्या पितृ पक्ष का समापन करती है और उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है जिन्होंने अपने पितरों का श्राद्ध उनकी पुण्यतिथि पर नहीं कर पाया हो। इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी और यह पितरों की आत्मा की तृप्ति और सद्गति के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।


🚩सर्वपितृ अमावस्या का महत्व : पितृ पक्ष में 16 दिनों तक लोग अपने पितरों का तर्पण और श्राद्ध करते है और सर्वपितृ अमावस्या इस अवधि का समापन करती है। यह तिथि उन सभी पितरों के लिए होती है जिनका श्राद्ध किसी कारणवश न हो पाया हो, चाहे उनकी पुण्यतिथि ज्ञात न हो। इस दिन श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से पितरों की आत्माएं संतुष्ट होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति पूरे पितृ पक्ष में श्राद्ध करने में असमर्थ हो, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपने पितरों को तृप्त कर सकता है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय और पितरों की सद्गति  

सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर पितरों की सद्गति और मोक्ष के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय, जिसे "ज्ञान-विज्ञान योग" कहा जाता है, विशेष रूप से प्रासंगिक है। भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में अर्जुन को ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाते है। वे कहते है कि जो लोग श्रद्धा और भक्ति से पितरों का तर्पण और श्राद्ध करते है उनके पितर सद्गति की ओर बढ़ते है और मोक्ष प्राप्त करते है। 


🚩भगवान श्रीकृष्ण का यह उपदेश बताता है कि पितरों की संतुष्टि के लिए मनुष्य का कर्तव्य क्या होना चाहिए और किस प्रकार उनके प्रति श्रद्धा और तर्पण करके उन्हें मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाया जा सकता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ किया गया तर्पण पितरों की आत्माओं को संतुष्टि प्रदान करता है और वे अपने परिजनों को आशीर्वाद देते है। 


🚩श्राद्ध और तर्पण का महत्व :  

श्राद्ध और तर्पण विधियां जो विशेष रूप से सर्वपितृ अमावस्या पर की जाती है, पितरों के मोक्ष और सद्गति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराने, पिंड दान करने और जल तर्पण करने से पितरों की आत्माएं तृप्त होती है। यदि किसी व्यक्ति ने अपने पितरों का श्राद्ध पूरे पितृ पक्ष में नहीं किया हो तो सर्वपितृ अमावस्या पर किया गया श्राद्ध सभी पितरों के लिए किया जा सकता है।


🚩पितरों की सद्गति और मोक्ष का मार्ग : श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण यह भी बताते है कि भक्ति और श्रद्धा के साथ पितरों का स्मरण और उनके लिए श्राद्ध करना ही उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। जब पितरों को विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण अर्पित किया जाता है तो उन्हें सद्गति प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।


🚩सर्वपितृ अमावस्या का शुभ मुहूर्त :  इस वर्ष 2 अक्टूबर 2024 को सर्वपितृ अमावस्या का शुभ मुहूर्त पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दिन उन सभी के लिए एक अंतिम अवसर है जो अपने पितरों का ऋण चुकाना चाहते है और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में समृद्धि लाना चाहते है। 


🚩पितरों की प्रसन्नता का साधन - तर्पण, पिंड दान और भक्ति : श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, तर्पण और श्राद्ध के साथ-साथ पितरों के प्रति सच्ची भक्ति का भाव ही उनकी सद्गति का वास्तविक मार्ग है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन विधिपूर्वक इन सभी विधियों का पालन करके हम अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते है।


🚩इस प्रकार, सर्वपितृ अमावस्या का दिन न केवल पूर्वजों का सम्मान करने का अवसर है, बल्कि श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय में बताए गए मोक्ष के मार्ग पर चलकर पितरों की सद्गति प्राप्त करने का भी शुभ समय है।


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Sunday, September 29, 2024

जातीय जनगणना और भारत का सामाजिक भविष्य

 30 सितंबर 2024

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🚩जातीय जनगणना और भारत का सामाजिक भविष्य 


🚩जातीय जनगणना का मुद्दा आजकल काफी चर्चा में है। यह एक ऐसा विषय है जिसे लेकर देश में अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच बहस छिड़ी हुई है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों है और इसे कब तक टाला जा सकता है?


🚩जातीय जनगणना की आवश्यकता : जातीय जनगणना केवल आंकड़ों का संग्रहण नहीं है, यह समाज के विभिन्न वर्गों के जीवनस्तर को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। अगर, जातीय जनगणना आज नहीं होगी तो कल होगी, अगर कल नहीं होगी तो परसों होगी, लेकिन एक दिन यह अवश्य होगी। इसे टालने का प्रयास केवल देश की वास्तविक समस्याओं से आंखें मूंदने जैसा है।


🚩यह जनगणना एक बंद मुट्ठी की तरह है, जो यदि खुल गई, तो उससे देश की सामाजिक और आर्थिक असमानताओं का सच सामने आ सकता है। कांग्रेस जैसे दल इस मुद्दे से बचने का प्रयास कर रहे है क्योंकि इसका घाटा उन्हें ही होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय सर्वे कराकर इसे सार्वजनिक कर दिया, लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस ने जातीय सर्वे कराया था और आज तक उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं दिखाई।


🚩जातीय जनगणना का राजनीतिक आयाम : जो नेता भाजपा के इसके विरोध में बयानबाजी कर रहे है , वे या तो सामाजिक ज्ञान से अज्ञानी हैं या फिर मूर्खता कर रहे है।वास्तविकता यह है कि, जातीय जनगणना भाजपा ही कराएगी। भाजपा ने हर मौके पर सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण फैसले किए है। पहले एक राष्ट्रवादी मुस्लिम को राष्ट्रपति बनाया, फिर दलित को और तीसरी बार आदिवासी को यह सम्मान मिला। भाजपा ने बाबा साहब अम्बेडकर और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर उनके योगदान को सराहा, जो कि कांग्रेस कभी नहीं कर सकी।  


🚩कांग्रेस ने पीढ़ी दर पीढ़ी प्रधानमंत्री पद को अपने परिवार के पास ही रखा और जब अन्य लोगों को मौका मिला भी, तो वे उच्च वर्ग के ही थे। कांग्रेस का वास्तविक उद्देश्य यथास्थितिवाद को बनाए रखना है, जो देश की प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है।


🚩भाजपा की नीतियां और यथास्थितिवाद से संघर्ष : जब तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, देश में बुनियादी सुविधाओं की स्थिति बेहद खराब थी। दो लेन की सड़क को ही हाईवे माना जाता था और गांवों में बिजली पहुंचाना ग्रामीणों का अधिकार नहीं बल्कि एक कृपा समझा जाता था।भाजपा ने सत्ता में आते ही इन यथास्थितिवादी धारणाओं को तोड़ा और लोगों को उनके अधिकारों का एहसास कराया।


🚩गैस सिलेंडर,फोन कनेक्शन,ट्रांसफॉर्मर लगवाना, इंदिरा आवास,शौचालय निर्माण – ये सब कांग्रेस के समय में लोगों को एहसान लगते थे। लेकिन भाजपा ने इन्हें जनता के अधिकारों के रूप में प्रस्तुत किया। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें बनवाईं, बिजली पहुंचाई और हर जरूरतमंद के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित किया।


🚩जातीय जनगणना का महत्व : जातीय जनगणना का मुख्य उद्देश्य सामाजिक असमानताओं को दूर करना और समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है। यह कांग्रेस के यथास्थितिवाद के जड़मूल को हिला देगा। जातीय जनगणना से सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस और गांधी परिवार को होगा। पी चिदंबरम का यह बयान कि "जैसे-जैसे इस देश में लोकतंत्र गहरा होता जाएगा, वैसे-वैसे कांग्रेस कमजोर होती जाएगी", शत-प्रतिशत सत्य प्रतीत होता है।


🚩निष्कर्ष : जातीय जनगणना से समाज में कोई भूकंप नहीं आएगा, बल्कि यह सामाजिक संतुलन और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसे आज नहीं तो कल भाजपा ही पूरा करेगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह है कि वे इस जनगणना को उत्तर प्रदेश में शुरू कर इसे आगे बढ़ाएं और समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त करें।


🚩जातीय जनगणना का होना केवल समय की बात है और यह समाज को नए सिरे से परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।


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Saturday, September 28, 2024

भारत का विभाजन: धार्मिक आधार और राष्ट्र की चुनौती

 29th September 2024

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▪भारत का विभाजन: धार्मिक आधार और राष्ट्र की चुनौती



▪1947 में जब सीरिल जॉन रेडक्लिफ ने अविभाजित भारत के नक्शे पर दो रेखाएं खींची, तब भारत और पाकिस्तान का जन्म हुआ। भारत का आधार उन इलाकों पर रखा गया, जहां मुसलमान बहुसंख्यक नहीं थे। वहीं, मुसलमान बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया गया। यह विभाजन एक धार्मिक विभाजन था, जिसमें भारत और पाकिस्तान को धर्म के आधार पर अलग किया गया। 


▪विभाजन का सिद्धांत और भारत की नींव पर संकट :

विभाजन का मूल सिद्धांत यही था कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक होंगे, वे पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे। इसलिए, अगर आज भारत के किसी राज्य में आबादी की धार्मिक संरचना बदलती है, तो यह भारत के संविधान और उसकी नींव पर सीधा हमला है। यह केवल धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा नहीं है, बल्कि भारत की सभ्यता और उसके अस्तित्व का प्रश्न है। 


▪यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे हर भारतीय नागरिक को गंभीरता से लेना चाहिए। यह केवल राजनीतिक दलों के बीच की प्रतिस्पर्धा नहीं है, बल्कि राष्ट्र के भविष्य से जुड़ा सवाल है। यह भारतीय लोकतंत्र और एकता के सिद्धांतों को कमजोर करने का प्रयास है।


▪ 1946 के चुनाव और मुस्लिम लीग का दबदबा :

विभाजन से पहले के घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए यह समझना जरूरी है कि 1946 के चुनावों में मुस्लिम लीग ने बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल किया था, यहां तक कि उन इलाकों से भी जहां यह स्पष्ट था कि वे पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनेंगे। तमिलनाडु और केरल के मुसलमानों ने भी मुस्लिम लीग के उम्मीदवारों को जीताया, जबकि जिन्ना ने कभी यह दावा नहीं किया कि ये क्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे।


▪यह मुस्लिम समुदाय द्वारा धर्म के आधार पर लिया गया निर्णय था, जिसने भारत के

 विभाजन की नींव रखी। भारतीय मुसलमानों ने धर्म के आधार पर मुस्लिम लीग के थोक भाव उम्मीदवार जिताए, जिससे विभाजन की मांग और भी मजबूत हो गई। 


▪मुस्लिम लीग का दबदबा और पाकिस्तान का निर्माण :

विभाजन से पहले,अविभाजित पंजाब और बंगाल के मुसलमानों में मुस्लिम लीग का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ा। हालांकि, मुस्लिम लीग का दबदबा बहुत देर से शुरू हुआ, लेकिन इसका प्रभाव गहरा था। इससे अंग्रेजों को यह साबित करने में मदद मिली कि मुसलमान और हिंदू एक ही राष्ट्र में नहीं रह सकते। यही कारण था कि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का गठन हुआ। 


▪संविधान सभा और सरदार पटेल की दृढ़ता :

विभाजन के बाद, मुस्लिम लीग के कई प्रतिनिधि पाकिस्तान जाने के बजाए भारत की संविधान सभा में शामिल हो गए। इन 28 प्रतिनिधियों ने संविधान सभा में मांग की कि मुसलमानों को फिर से "सैपरेट इलैक्टोरेट" दिया जाए, ताकि मुस्लिम सांसद और विधायक केवल मुस्लिम वोटों से चुने जा सकें। 


▪यह उस विचारधारा का प्रतीक था, जिसने विभाजन को बढ़ावा दिया था। लेकिन इस मांग के खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल ने दृढ़ता से अपना विरोध जताया। 28 अगस्त 1947 को संविधान सभा में दिए गए अपने प्रसिद्ध भाषण में पटेल ने कहा, "अगर ये सब चाहिए तो पाकिस्तान चले जाओ! यहां हम 'एक राष्ट्र' बना रहे हैं। इसमें मैं किसी को बाधा नहीं डालने दूंगा।"


▪भारत की एकता और भविष्य की दिशा : 

पटेल के इस वक्तव्य ने स्पष्ट कर दिया कि भारत एक राष्ट्र है और यहां धर्म के आधार पर किसी को विशेष अधिकार नहीं दिए जाएंगे। भारत का निर्माण एक ऐसे राष्ट्र के रूप में हुआ था, जहां सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग एक साथ मिलकर रह सकें। 


 ▪हालांकि,आज भी कुछ तत्व भारतीय समाज में विभाजन की भावना को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। यह राष्ट्र की एकता के लिए गंभीर चुनौती है और इसे सख्ती से रोकने की आवश्यकता है।


▪निष्कर्ष :

1947 में भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आज भी हम उस विभाजनकारी मानसिकता को आगे बढ़ने दें। हमें यह समझना होगा कि भारत का निर्माण एक समावेशी राष्ट्र के रूप में हुआ था, जहां सभी धर्मों और समुदायों के लोग साथ रह सकें। 


▪धार्मिक संरचना में कोई भी बदलाव, जो भारी है कि वह अपने राष्ट्र की सुरक्षा और उसकी एकता के प्रति सचेत रहे।


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Friday, September 27, 2024

भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक और सामाजिक न्याय की चुनौतियां

 28 September 2024

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♻भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक और सामाजिक न्याय की चुनौतियां 


♻भारतीय राजनीति में धर्म और जाति की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीतियां अक्सर इन आधारों पर ही तय होती है। विशेष रूप से जब किसी दल को किसी क्षेत्र या राज्य में एकमुश्त अल्पसंख्यक वोट मिलता है,तो यह 20% या उससे अधिक का चुनावी लाभ प्रदान करता है। अगर, इसमें कुछ प्रभावशाली जातियों का समर्थन जुड़ जाए, तो चुनावी जीत की संभावना और भी बढ़ जाती है। ऐसे में उम्मीदवार की जाति को ध्यान में रखकर समीकरण आसानी से बन जाता है। 


♻ अल्पसंख्यक वोट बैंक और चुनावी समीकरण


♻जब कोई राजनीतिक दल अल्पसंख्यक वोट बैंक पर निर्भर होता है, तो अन्य समुदायों, विशेष रूप से वंचित हिंदू समुदायों को चुनावी समीकरण से बाहर रखने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। ऐसी स्थितियों में,उन दलों को इन वंचित समूहों तक अपना आधार बढ़ाने की आवश्यकता नहीं महसूस होती। यह न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है बल्कि भारतीय लोकतंत्र में समरसता और विविधता को भी कमजोर करता है।


♻ सामाजिक न्याय और राजनीतिक उदासीनता


♻वंचित समुदायों की अनदेखी की यह प्रवृत्ति कई बार बड़े सामाजिक न्याय के मुद्दों पर भी देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए:

▪- एससी-एसटी कर्मचारियों का डिमोशन।

▪- मंडल कमीशन की सिफारिशों को 1990 तक लागू न करना।

▪- NEET ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण को शामिल न करना।

▪- बाबा साहब अंबेडकर और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने में देरी।

▪- मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की कोशिश।

▪- 2011 में जामिया में एससी और एसटी आरक्षण का समाप्त होना।


♻ये सभी घटनाएं तब घटित हुईं जब सत्ताधारी दल अल्पसंख्यक वोटों पर अधिक निर्भर थे। इसका स्पष्ट अर्थ है कि जब दल को अल्पसंख्यक वोट बैंक से मजबूत समर्थन मिलता है,तो वह सामाजिक न्याय की पहल से दूर हो जाता है और वंचित समुदायों की जरूरतों को नजरंदाज करता है।


♻ विविधता और समरसता का अभाव


♻♻जो राजनीतिक दल अल्पसंख्यक वोट बैंक पर निर्भर नहीं होते, उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा जातियों और समूहों को अपने साथ जोड़ने की ज़रूरत होती है। ऐसा इसलिए नहीं कि वे सामाजिक न्याय के प्रति अधिक जागरूक होते है,बल्कि चुनावी गणित में खुद को संतुलित करने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ता है।अगर, उन्हें अल्पसंख्यक वोट का 20% हिस्सा नहीं मिलता, तो वे केवल विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच समरसता स्थापित कर ही सत्ता तक पहुंच सकते है। 


 ♻ गैर-कांग्रेस सरकारें और सामाजिक न्याय की पहल


♻ इसीलिए,अधिकांश महत्वपूर्ण सामाजिक न्याय की पहलें गैर-कांग्रेसी सरकारों के तहत ही लागू हुई है। बीजेपी, जनता पार्टी, जनता दल और डीएमके जैसे दलों की सरकारों ने सामाजिक न्याय के विभिन्न कदम उठाए है,जो सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में मददगार रहे है। 


♻अल्पसंख्यक वोट बैंक का राजनीतिक प्रभाव


♻यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत में सबसे बड़े अल्पसंख्यक की जनसंख्या 15% से कम है, लेकिन उनकी एकजुट वोटिंग उन्हें सबसे ताकतवर राजनीतिक दबाव समूह बना देती है। ऐतिहासिक रूप से, जिस दल को अल्पसंख्यक वोट का समर्थन मिला है, वही सत्ता में आया है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का समर्थन जिस पार्टी को जाता है, वही पार्टी सरकार बनाती है। समय-समय पर उन्होंने कांग्रेस, वामपंथ और तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया है और हर बार सत्ता का परिवर्तन हुआ है।


 ♻भारतीय लोकतंत्र की विकृतियां 


♻धार्मिक पहचान के आधार पर अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट देना भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी विकृतियों में से एक है। यह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत है,जहाँ हर समुदाय को समान अधिकार और प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। यह विकृति न केवल राजनीतिक असंतुलन पैदा करती है, बल्कि सामाजिक न्याय और समरसता की धारणा को भी नुकसान पहुंचाती है।


♻ निष्कर्ष


♻भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक और जातिगत समीकरणों की भूमिका ने सामाजिक न्याय और समरसता को कमजोर किया है। ऐसे में,राजनीतिक दलों को सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है,ताकि भारतीय लोकतंत्र का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सके और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हो।


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Thursday, September 26, 2024

कोकिलाक्ष: आयुर्वेदिक औषधि और इसके चमत्कारी लाभ

 27th September 2024

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🚩कोकिलाक्ष: आयुर्वेदिक औषधि और इसके चमत्कारी लाभ

🚩कोकिलाक्ष क्या है? 


आयुर्वेद,जो कि भारतीय चिकित्सा पद्धति का प्राचीन और समृद्ध स्रोत है, उसमें कई औषधियों का उल्लेख मिलता है जो प्राकृतिक रूप से शरीर को स्वस्थ और रोगमुक्त बनाने में सहायक होती है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण औषधि है कोकिलाक्ष, जिसे तालमखाना के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेदीय निघण्टु एवं संहिताओं में कोकिलाक्ष का उल्लेख प्राप्त होता है। चरक-संहिता में शुक्रशोधन महाकषाय के अंतर्गत इसका उल्लेख मिलता है। यह औषधि शरीर की पोषण क्षमता को बढ़ाने और विभिन्न बीमारियों के इलाज में सहायक होती है।


🚩कोकिलाक्ष के औषधीय गुण

कोकिलाक्ष के पत्ते, जड़ और बीज तीनों का ही आयुर्वेद में औषधीय महत्व है। इसके पत्ते मधुर, कड़‍वे और शोफ(Dropsy), दर्द, विष,पीलिया, कब्ज,मूत्र रोग और वात को कम करने में सहायक होते है। इसकी जड़ शीतल,दर्दनिवारक और मूत्रल होती है जो मूत्र संबंधी समस्याओं को दूर करती है। वहीं,इसके बीज कड़वे,ठंडे तासीर के और गर्भ को पोषण देने वाले होते है।


🚩कोकिलाक्ष का मुख्य उपयोग यौन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग शरीर की कमजोरी,मूत्र संबंधी विकार, पीलिया और पाचन तंत्र की समस्याओं में भी लाभकारी होता है।


🚩कोकिलाक्ष के फायदे 

कोकिलाक्ष का उपयोग कई तरह की बीमारियों के इलाज में किया जाता है। इसके कुछ प्रमुख फायदे निम्नलिखित है :


1. 🚩खांसी में फायदेमंद  

मौसम के बदलाव से होने वाली खांसी से राहत पाने के लिए कोकिलाक्ष के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से आराम मिलता है। 1-2 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से खांसी में राहत मिलती है।


2.🚩सांस संबंधी समस्याओं में लाभकारी

अगर किसी को सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, तो कोकिलाक्ष के बीज का चूर्ण शहद और घी के साथ लेने से तुरंत आराम मिलता है। यह उपाय श्वास की तकलीफों में बहुत प्रभावी है।


3. 🚩जलोदर में लाभकारी

पेट में जल या प्रोटीन का ज्यादा जमाव होने के कारण पेट फूलने और दर्द होने की समस्या को जलोदर कहा जाता है। इस स्थिति में तालमखाना की जड़ से बना काढ़ा बहुत प्रभावी होता है। 10-20 मिलीलीटर काढ़े का सेवन जलोदर में लाभकारी होता है। यह काढ़ा लीवर और मूत्राशय से संबंधित समस्याओं में भी सहायक है।


4. 🚩रक्त विकारों में लाभकारी  

रक्त विकारों से परेशान व्यक्तियों के लिए कोकिलाक्ष का सेवन भी बहुत फायदेमंद होता है। 1-2 ग्राम कोकिलाक्ष बीज का चूर्ण सेवन करने से रक्त संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है।


5. 🚩मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभकारी  

मूत्र रोगों में दर्द,जलन,मूत्र का रुक-रुक कर आना या मूत्र का कम आना जैसी समस्याएं बहुत आम है। कोकिलाक्ष का सेवन इन समस्याओं को दूर करने में कारगर है।गोखरू, तालमखाना और एरण्ड की जड़ का मिश्रण दूध के साथ लेने से मूत्र संबंधी विकारों में काफी आराम मिलता है।  


🚩तालमखाना के बीज के फायदे

तालमखाना या कोकिलाक्ष के बीज औषधीय गुणों से भरपूर होते है। इनका उपयोग कई तरह की यौन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है। इसके बीज ठंडे तासीर के होते है , जो शरीर की कमजोरी को दूर करने में मदद करते है। गर्भपोषण के लिए भी इन बीजों का सेवन लाभकारी होता है।


🚩निष्कर्ष  

कोकिलाक्ष या तालमखाना एक बहुआयामी आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका प्रयोग प्राचीन काल से किया जाता रहा है। इसके पत्ते, जड़ और बीज सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते है। चाहे वह खांसी,सांस संबंधी समस्या हो मूत्र विकार हो या रक्त विकार,कोकिलाक्ष इन सभी बीमारियों का प्राकृतिक और प्रभावी इलाज प्रदान करता है। हालांकि, इसका सेवन चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए ताकि इसका पूर्ण लाभ मिल सके और स्वास्थ्य बेहतर हो सके।


🚩आयुर्वेद के समृद्ध ज्ञान का यह अनुपम उदाहरण कोकिलाक्ष आज भी कई लोगों के लिए प्राकृतिक उपचार का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है।


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Tuesday, September 24, 2024

जीवित्पुत्रिका व्रत: महत्व,विधि एवं कथा

 25 सितम्बर 2024

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🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत: महत्व,विधि एवं कथा


जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया व्रत संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने पुत्रों की रक्षा और उनके समृद्ध भविष्य के लिए रखा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत के बिहार,उत्तर प्रदेश,झारखंड और नेपाल में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। 


🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व:

जीवित्पुत्रिका व्रत का प्रमुख उद्देश्य संतान की लंबी आयु, उनके स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करना है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते है और माता का आशीर्वाद उन्हें हमेशा सुरक्षा प्रदान करता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए विशेष रूप से फलदायक माना जाता है। 


🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत की विधि


1. स्नान और संकल्प : व्रत के दिन माताएं सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लेती है। संकल्प में यह निश्चय किया जाता है कि वे पूरे दिन बिना अन्न-जल के व्रत रखेंगी और अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करेंगी।


2. 🚩पूजा सामग्री : इस व्रत की पूजा में चंदन, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, धान, कच्चा सूत और मिट्टी की मूर्तियां (जीवित्पुत्रिका देवी और भगवान जीमूतवाहन की) आवश्यक होती है।


3. 🚩पूजन विधि : पूजन के समय भगवान जीमूतवाहन और जीवित्पुत्रिका देवी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। मिट्टी से बनी मूर्ति को साफ स्थान पर स्थापित किया जाता है फिर धूप, दीप, चंदन और फूल अर्पित किए जाते है। व्रति माताएं अपनी संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए विशेष रूप से प्रार्थना करती है।


4. 🚩कथा श्रवण : व्रत के दौरान जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनना और सुनाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कथा श्रवण से व्रत की पूर्णता मानी जाती है। 


5. 🚩दिवस-निशा व्रत : इस व्रत को विशेष रूप से कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें माताएं बिना अन्न और जल ग्रहण किए पूरा दिन और रात व्रत रखती है। व्रत का समापन अगले दिन सूर्योदय के बाद होता है।


🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा :

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा, भगवान जीमूतवाहन से जुड़ी है। कथा के अनुसार, जीमूतवाहन एक धर्मपरायण और परोपकारी राजा थे। एक बार वे वन में घूम रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक स्त्री अपने पुत्र को बचाने के लिए रो रही है। जब उन्होंने उस स्त्री से इसका कारण पूछा, तो उसने बताया कि उनका पुत्र नागवंश का है और हर वर्ष गरुड़ देवता को नागों में से एक को बलिदान के रूप में देना पड़ता है। 


🚩जीमूतवाहन ने उस स्त्री की पीड़ा को महसूस किया और अपने जीवन को बलिदान करने का निर्णय लिया। उन्होंने गरुड़ देवता से कहा कि वे इस बार नाग की जगह उन्हें ही खा लें। गरुड़ ने जब जीमूतवाहन की इस महानता को देखा तो वह प्रभावित हुए और उन्होंने वचन दिया कि वे अब कभी नागों को नहीं खाएंगे। इस प्रकार, जीमूतवाहन के बलिदान और करुणा के कारण नागों की सुरक्षा हुई। 


🚩कहा जाता है कि इस कथा को सुनने और इस व्रत को विधिपूर्वक करने से माताओं की संतान पर आने वाले सभी संकट टल जाते है और वे दीर्घायु होते है।


🚩 निष्कर्ष

जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं की संतान के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और त्याग का प्रतीक है। इस व्रत में माताएं बिना अन्न और जल के अपने बच्चों की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। जीमूतवाहन की कथा🙏 हमें त्याग, परोपकार और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।


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Monday, September 23, 2024

असम के कानून पर उठे विवाद की सच्चाई

 24 सितम्बर 2024

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🔷असम के कानून पर उठे विवाद की सच्चाई


असम में हाल ही में पारित "The Assam Compulsory Registration of Muslim Marriage and Divorce Bill, 2024" को लेकर विवाद चल रहा है। इस बिल का उद्देश्य निकाह और तलाक का अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराना है, जिसके जरिए बाल विवाह, बिना सहमति के विवाह और बहुविवाह जैसी समस्याओं पर रोक लगाई जा सके।

🔷मुस्लिम समुदाय के कुछ हिस्सों ने इसे भेदभावपूर्ण करार दिया है।लेकिन वास्तविकता यह है कि मुस्लिम समुदाय को पहले ही कई कानूनी लाभ मिले हुए है। उदाहरण के लिए,वर्तमान में निकाह का सर्टिफिकेट काजी द्वारा दिया जाता है जबकि हिंदू विवाह के लिए यह अधिकार पंडित को नहीं है। हिंदुओं को अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन सरकारी अधिकारियों के पास कराना पड़ता है जिसका कोई विरोध नहीं होता।  

🔷यहां तक कि आर्य समाज मंदिरों में होने वाले विवाह को भी सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया लेकिन काजियों के अधिकार को चुनौती नहीं दी गई। क्यों?

🔷निकाह और अनुबंध (Contract) : मुस्लिम समुदाय का कहना है कि निकाह एक अनुबंध (Contract) है। लेकिन,अनुबंध की शर्तें और पात्रता Indian Contract Act, 1872 में स्पष्ट रूप से परिभाषित है। इसके अनुसार, अनुबंध करने वाले की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए और व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति 21 वर्ष से कम है और उसे कोर्ट द्वारा गार्जियन नियुक्त किया गया तो उसे नाबालिग माना जाएगा और वह अनुबंध नहीं कर सकता।साथ ही, रजिस्ट्रेशन के समय लड़के और लड़की को यह साबित करना होगा कि वे असम के नागरिक है, जिससे अवैध प्रवासियों (बांग्लादेशी) का पर्दाफाश हो सकता है।


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Sunday, September 22, 2024

शरद ऋतु: रोगों की माता

23 September 2024

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 🚩शरद ऋतु: रोगों की माता


🚩शरद ऋतु, वर्षा ऋतु के बाद आने वाली ऋतु है, जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से विशेष रूप से संवेदनशील मानी जाती है। इस समय वातावरण में गर्मी और उमस बनी रहती है और मौसम में अचानक बदलाव होते है,जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इस कारण शरद ऋतु को अक्सर "रोगों की माता" कहा जाता है। इस समय खासतौर पर पित्तज और वातज रोगों का खतरा अधिक होता है, जैसे बुखार, जुकाम, खांसी, पेट के रोग, त्वचा संबंधी समस्याएं, आदि।


🚩हालांकि, उचित आहार और विहार (जीवनशैली) अपनाकर हम इस समय होने वाले रोगों से आसानी से बच सकते है। आइए जानते है, शरद ऋतु में रोगों से सुरक्षा के लिए कौन से आहार और विहार अपनाने चाहिए।


🚩 शरद ऋतु में उचित आहार :


1. 🚩हल्का और पचने वाला भोजन : इस समय पाचन शक्ति कमजोर रहती है, इसलिए हल्का और सुपाच्य भोजन लेना चाहिए। मूंग की दाल, खिचड़ी और दलिया जैसे सादे और हल्के आहार सर्वोत्तम माने जाते है।


2. 🚩पित्तशामक आहार : शरद ऋतु में पित्त दोष बढ़ता है, इसलिए पित्त को शांत करने वाले आहार लेना चाहिए। इस दौरान ठंडी तासीर वाले भोजन जैसे नारियल पानी, खीरा, तरबूज और अनार का सेवन फायदेमंद होता है।


3. 🚩ताजे फल और सब्जियां : ताजे मौसमी फल जैसे सेब, अमरूद, और पपीता खाना चाहिए। सब्जियों में लौकी, तोरई, और टिंडा का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।


4. 🚩जल का सेवन : इस समय शरीर में पानी की कमी न हो इसका विशेष ध्यान रखें। दिनभर में पर्याप्त मात्रा में साफ और उबला हुआ पानी पिएं।


5. 🚩सात्विक भोजन : तामसिक भोजन (ज्यादा तला-भुना, मांसाहार) और मसालेदार खाने से परहेज करें। सात्विक और सादा भोजन जैसे दही, छाछ, और घी का सेवन पित्त को नियंत्रित करने में मदद करता है।


🚩 शरद ऋतु में उचित विहार (जीवनशैली)


1. 🚩नियमित दिनचर्या : इस मौसम में नियमित दिनचर्या अपनाना बहुत जरूरी है। समय पर सोना, जागना, और भोजन करना शरीर के लिए लाभकारी होता है।


2. 🚩योग और व्यायाम : हल्के योगासन और प्राणायाम करना चाहिए, ताकि शरीर की ऊर्जा बनी रहे और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार हो। इस समय ताड़ासन, भुजंगासन और अनुलोम-विलोम प्राणायाम फायदेमंद होते है।


3. 🚩ध्यान और शांति : मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी जरूरी है। ध्यान और शांत वातावरण में समय बिताने से मन और शरीर को आराम मिलता है, जिससे रोगों का खतरा कम हो जाता है।


4. 🚩शीतल जल से स्नान : शरद ऋतु में शीतल जल से स्नान करना पित्त दोष को शांत करता है और शरीर को ठंडक प्रदान करता है। स्नान के बाद तिल के तेल की मालिश भी लाभकारी होती है।


5. 🚩कपड़ों का चयन : हल्के और आरामदायक कपड़े पहनें ताकि शरीर को सही तापमान मिल सके। इस समय सिंथेटिक कपड़ों से बचें, सूती कपड़े उत्तम माने जाते है।


###🚩शरद ऋतु में क्या न करें


1. 🚩तेल-मसालेदार भोजन से बचें : इस समय भारी और मसालेदार भोजन से दूर रहें, क्योंकि यह पाचन तंत्र पर असर डालता है और पित्त को बढ़ाता है।


2. रात में ठंडे पदार्थ न लें: रात के समय ठंडे पदार्थों का सेवन जैसे ठंडा पानी,आइसक्रीम आदि से परहेज करें, इससे कफ और गले की समस्याएं हो सकती है।


3. 🚩अत्यधिक शारीरिक परिश्रम न करें : इस ऋतु में अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने से शरीर थकावट महसूस करता है। अधिक श्रम से शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है, जो रोगों को निमंत्रण देती है।


4. 🚩अत्यधिक धूप में न जाएं : धूप में ज्यादा देर रहना शरीर में पित्त की वृद्धि करता है। धूप में बाहर निकलने से बचें और सिर को ढककर रखें।


🚩निष्कर्ष


🚩शरद ऋतु में रोगों से बचाव के लिए सही आहार और जीवनशैली का पालन करना आवश्यक है। इस समय शरीर की विशेष देखभाल करने से न केवल हम रोगों से बचे रहते है, बल्कि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है। सात्विक आहार, नियमित योग, और शांत मन इस ऋतु को स्वस्थ और सुखद बनाने में सहायक है।


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Saturday, September 21, 2024

चातुर्मास में क्या करें और क्या न करें

 22 September 2024

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###🚩 चातुर्मास में क्या करें और क्या न करें


चातुर्मास,हिन्दू धर्म में चार महीनों का विशेष समय होता है, जो देवशयनी एकादशी से शुरू होकर देवउठनी एकादशी तक चलता है। इस समय को आध्यात्मिक साधना, तपस्या और धार्मिक कर्मकांड के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह काल विशेष रूप से शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए उपयुक्त माना गया है। आइए, जानते है कि इस दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं।


### 🚩चातुर्मास में क्या करें


1. 🚩साधना और ध्यान : चातुर्मास के दौरान साधना और ध्यान का विशेष महत्व है। इस समय अधिक से अधिक भगवान का स्मरण करें और ध्यान में लीन रहें।

   

2. 🚩व्रत और उपवास : इस काल में व्रत करना पुण्यकारी माना जाता है। सोमवार, प्रदोष,एकादशी, पूर्णिमा,अमावस्या आदि पर व्रत रखने से विशेष फल मिलता है। 


3. 🚩मंत्र जाप : इस समय मंत्र जाप जैसे "ॐ नमः शिवाय" या "ॐ विष्णवे नमः" का जप करना चाहिए। यह मानसिक शांति और आत्मिक विकास में सहायक होता है।


4. 🚩सादा भोजन : सादा, सात्विक और हल्का भोजन ग्रहण करें। इस समय तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए। हरी सब्जियों,दाल और अनाज का सेवन करना लाभकारी माना जाता है।


5. 🚩सेवा और दान : इस समय गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करें। गायों को भोजन देना, ब्राह्मणों को दान देना और भूखों को अन्नदान करना चातुर्मास में पुण्यकारी माना जाता है।


6. 🚩धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन : इस समय श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, महाभारत और अन्य धर्मग्रंथों का अध्ययन करने से आत्मिक शुद्धि होती है।


###🚩 चातुर्मास में क्या न करें


1. 🚩तामसिक भोजन से बचें : चातुर्मास के दौरान मांस,मछली,अंडा और शराब का सेवन वर्जित होता है। यह काल आत्मशुद्धि का है और इन चीजों से मन अशांत होता है।


2. 🚩विवाह और नए कार्य न करें : चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश या नए काम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। यह समय आत्मसंयम और साधना के लिए होता है।


3. 🚩पेड़ों की कटाई न करें : इस समय वृक्षों की कटाई भी वर्जित मानी जाती है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए चातुर्मास का यह नियम बहुत महत्वपूर्ण है।


4. 🚩झूठ और क्रोध से दूर रहें : झूठ बोलना और क्रोध करना इस समय मन और आत्मा के लिए नुकसानदायक होता है। इस काल में जितना हो सके, शांत और सकारात्मक रहना चाहिए।


5. 🚩अति दिखावा न करें : धार्मिकता और साधना में दिखावा करने से बचें। सच्चे मन से की गई पूजा और साधना का ही फल मिलता है।


###🚩निष्कर्ष

चातुर्मास का समय आत्मिक और शारीरिक शुद्धि के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान संयम, साधना, सेवा और त्याग का पालन करना चाहिए। जो व्यक्ति चातुर्मास में दिए गए नियमों का पालन करता है उसे जीवन में शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। 


🚩आइए, हम सब इस चातुर्मास को सच्ची भक्ति,सेवा और ध्यान के साथ बिताएं और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाएं।


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Friday, September 20, 2024

श्राद्ध का महत्व एवं आवश्यकता

 21 September 2024

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🚩श्राद्ध का महत्व एवं आवश्यकता


🚩श्राद्ध, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर है। यह विशेष रूप से पितृ पक्ष में किया जाता है, जिसमें हम अपने पूर्वजों को याद करते है और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है। श्राद्ध का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हमारे पूर्वजों को शांति मिले और उनका आशीर्वाद हमें हमेशा मिलता रहे।


 🚩तिथि अनुसार श्राद्ध करने का फल : श्राद्ध का फल तिथि के अनुसार बदलता है। हर दिन अलग-अलग तिथियों में विभिन्न पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। सही तिथि पर श्राद्ध करने से न केवल हमारे पूर्वजों को शांति मिलती है, बल्कि यह परिवार में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य भी लाता है।


🚩किसका श्राद्ध किस तिथि को करें : पितृ पक्ष,15 दिनों का एक महत्वपूर्ण समय है जिसमें हर दिन विभिन्न पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। यहां कुछ तिथियों का विवरण दिया गया है :


1. 🚩प्रथम तिथि (पितृ पक्ष प्रारंभ): अपने पिता का श्राद्ध

2. 🚩दूसरी तिथि: दादा का श्राद्ध

3. 🚩तीसरी तिथि : नाना का श्राद्ध

4. 🚩चौथी तिथि : नानी का श्राद्ध

5. 🚩पांचवीं तिथि : श्वसुर का श्राद्ध

6. 🚩 छठी तिथि : माताजी का श्राद्ध

7. 🚩सातवीं तिथि : परिवार के अन्य पूर्वजों का श्राद्ध

8. 🚩आठवीं तिथि :दादी का श्राद्ध

9. 🚩नौवीं तिथि : चाचा या मामा का श्राद्ध

10. 🚩दशमी तिथि :भाई का श्राद्ध

11. 🚩ग्यारहवीं तिथि : बहन का श्राद्ध

12. 🚩बारहवीं तिथि : सभी पूर्वजों का श्राद्ध

13. 🚩तेरहवीं तिथि : विशेष रूप से जिनका श्राद्ध करना है, उनका श्राद्ध

14. 🚩चौदहवीं तिथि : सभी को समर्पित श्राद्ध

15. 🚩अमावस्या (पूर्णिमा) : सभी पूर्वजों का अंतिम श्राद्ध


🚩श्राद्ध के लिए उत्तम समय : कुतपकाल


🚩श्राद्ध के लिए कुतपकाल का समय बहुत महत्वपूर्ण है।कुतपकाल का समय ब्रह्म मुहूर्त के बाद और सूर्यास्त से पहले का होता है। इस समय में किए गए श्राद्ध का फल अधिक शुभ माना जाता है। इसलिए, कोशिश करें कि श्राद्ध का अनुष्ठान कुतपकाल में ही करें।


🚩श्राद्ध पक्ष में पालन करने वाले नियम

श्राद्ध पक्ष में कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है, जैसे :


1. 🚩शुद्धता : श्राद्ध के दौरान शुद्धता बनाए रखें। स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें।

2. *🚩पिता का आह्वान : अपने पिता का आह्वान करें और उनका नाम लें।

3. तर्पण:जल और तिल का तर्पण करें, ताकि पूर्वजों को शांति मिले।

4. भोजन :श्राद्ध में भोग अर्पित करें और अपने परिवार के सदस्यों को भी भोजन कराएं।

5. सद्भावना : i

6. श्राद्ध करते समय सकारात्मकता और सद्भावना का ध्यान रखें।


🚩निष्कर्ष

श्राद्ध केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने परिवार और समाज के प्रति कितना जिम्मेदार होना चाहिए। श्राद्ध का सही तरीके से पालन करके हम अपने पूर्वजों को शांति दे सकते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते है। 

आइए, हम सब श्राद्ध का महत्व समझें और इसे अपने जीवन में सही तरीके से लागू करें।


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Thursday, September 19, 2024

🚩आईएनएस अरिघाट की प्रमुख विशेषताएं

 20 सितंबर 2024

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🚩आईएनएस अरिघाट की प्रमुख विशेषताएं


🚩भारतीय नौसेना ने गुरुवार, 29 अगस्त 2024 को अपनी दूसरी परमाणु मिसाइल पनडुब्बी आईएनएस अरिघाट को विशाखापट्टनम में शामिल किया। यह पनडुब्बी भारत की सामरिक और समुद्री सुरक्षा क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में एक और बड़ा कदम है। आईएनएस अरिघाट के शामिल होने से भारत की परमाणु त्रि-आयामी (न्यूक्लियर ट्रायड) क्षमता पूरी होती है,जो देश को जल,थल और वायु से परमाणु हमले करने में सक्षम बनाती है। यह भारत के परमाणु प्रतिरोध को और भी प्रभावशाली बनाता है, जिससे दुश्मनों को हमले से पहले दो बार सोचने पर मजबूर किया जा सकता है। 


1. 🚩स्वदेशी तकनीक से सुसज्जित : आईएनएस अरिघाट पूरी तरह से भारतीय विशेषज्ञता और तकनीक से तैयार की गई पनडुब्बी है। इसमें कई स्वदेशी प्रणालियां और उपकरणों का इस्तेमाल किया गया है, जिससे यह पनडुब्बी बेहद उन्नत और विश्वसनीय बनती है। यह भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता का एक जीता-जागता उदाहरण है।


2. 🚩आकार और क्षमता : यह पनडुब्बी 112 मीटर लंबी है और इसका वज़न लगभग 6,000 टन है। इसका विशाल आकार और मजबूती इसे लंबी अवधि तक समुद्र में सक्रिय रहने की क्षमता प्रदान करता है। साथ ही, इसमें अत्याधुनिक सोनार और रडार तकनीकें लगी है,जिससे दुश्मन की पनडुब्बियों और युद्धपोतों का पता लगाने की इसकी क्षमता अत्याधिक सटीक है।


3. 🚩मिसाइल प्रणाली : आईएनएस अरिघाट में K-15 'सागरिका' मिसाइलें  लगी है, जिनकी मारक क्षमता 750 किलोमीटर है। यह मिसाइलें पानी के भीतर से भी दुश्मन के लक्ष्यों पर सटीक वार कर सकती है। इसके अलावा, इस पनडुब्बी में भविष्य में अधिक शक्तिशाली और लंबी दूरी की मिसाइलों को भी समायोजित करने की क्षमता है, जिससे भारत की सामरिक पहुंच और बढ़ेगी।


4. 🚩परमाणु प्रतिरोध : आईएनएस अरिघाट की सबसे बड़ी ताकत इसका परमाणु प्रतिरोध क्षमता है। यह पनडुब्बी किसी भी संभावित हमले के खिलाफ भारत को मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करती है। इसका मुख्य उद्देश्य दुश्मन को यह संदेश देना है कि किसी भी तरह की आक्रामक कार्रवाई का जवाब बेहद विनाशकारी हो सकता है। यह पनडुब्बी भारत की परमाणु नीति ‘पहले इस्तेमाल न करने’ (No First Use) की रक्षा करते हुए परमाणु प्रतिरोध को बनाए रखती है।


5. 🚩हिंद महासागर में उपस्थिति : हिंद महासागर क्षेत्र में आईएनएस अरिघाट की उपस्थिति भारत के सामरिक हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण साबित होगी। यह पनडुब्बी हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की उपस्थिति को और अधिक सुदृढ़ करेगी, खासकर जब क्षेत्र में चीन और अन्य देशों की सैन्य गतिविधियां बढ़ रही है। इसके साथ ही यह पनडुब्बी समुद्री व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी बड़ी भूमिका निभाएगी।


6. 🚩रणनीतिक संतुलन और शांति स्थापना : इस पनडुब्बी के शामिल होने से क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन बना रहेगा। यह न केवल भारत की सुरक्षा को बढ़ाएगा, बल्कि यह क्षेत्रीय शांति को बनाए रखने में भी मदद करेगा। परमाणु प्रतिरोध और सामरिक संतुलन की वजह से किसी भी संभावित युद्ध की संभावना कम हो जाती है, जिससे शांति स्थापित करने में सहायता मिलती है।


🚩अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं : आईएनएस अरिघाट के शामिल होने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की बढ़ती रणनीतिक क्षमता ने इस क्षेत्र में भारतीय नौसेना की बढ़ती ताकत को रेखांकित किया है। यह पनडुब्बी न केवल भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा करेगी, बल्कि क्षेत्रीय सामरिक संतुलन भी सुनिश्चित करेगी। 


हालांकि, चीन ने इस कदम पर असंतोष जाहिर किया है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग के लिए नहीं किया जाना चाहिए। चीनी विशेषज्ञों ने भी भारत को अपनी ताकत का इस्तेमाल जिम्मेदारी से करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि भारत को इस नई ताकत का उपयोग क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में योगदान के लिए करना चाहिए, न कि सिर्फ शक्ति प्रदर्शन के लिए।


 🚩भारत की परमाणु पनडुब्बियों की वैश्विक तुलना :

आईएनएस अरिघाट का समावेश भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में रखता है,जिनके पास अत्याधुनिक परमाणु पनडुब्बियां है।वर्तमान में अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन ही ऐसे देश है जिनके पास इस प्रकार की पनडुब्बियां है। भारत का इस सूची में शामिल होना उसकी वैश्विक सैन्य प्रतिष्ठा को और मजबूत करता है। यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और इसकी समुद्री ताकत को और अधिक प्रतिष्ठित बनाता है।


🚩सामरिक बढ़त :

भारत के परमाणु ट्रायड की पूर्णता से न केवल भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ी है बल्कि यह देश की सामरिक स्थिति को भी मजबूत करता है। आईएनएस अरिघाट जैसी पनडुब्बियों से भारत को किसी भी प्रकार के समुद्री खतरे का सामना करने में 👍आसानी होगी, चाहे वह किसी भी देश से हो। यह पनडुब्बी न केवल रक्षा के क्षेत्र में बल्कि देश की रणनीतिक और कूटनीतिक स्थिति को भी और मजबूती प्रदान करती है।


 🚩निष्कर्ष :

आईएनएस अरिघाट का भारतीय नौसेना में शामिल होना भारत की समुद्री सुरक्षा और सामरिक ताकत के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा। यह पनडुब्बी भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की क्षमता को और अधिक सुदृढ़ करेगी। इसके साथ ही, यह भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और सुरक्षा नीति को भी मजबूत बनाएगी, जिससे देश की सुरक्षा और स्थिरता को दीर्घकालिन फायदा होगा।


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Wednesday, September 18, 2024

शालिग्राम: हिन्दू धर्म में पवित्रता और शक्ति का प्रतीक

 18 सितम्बर 2024

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🚩शालिग्राम: हिन्दू धर्म में पवित्रता और शक्ति का प्रतीक


🚩शालिग्राम-हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है, जिसे धार्मिक अनुष्ठानों में भगवान विष्णु के रूप में पूजा जाता है। इसकी प्राप्ति नेपाल की काली गण्डकी नदी के तट पर होती है, जहां यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। शालिग्राम के पत्थरों में विशिष्ट चक्र और आकृतियाँ होती है, जिन्हें भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।


 🚩शालिग्राम का धार्मिक महत्व

शालिग्राम का हिन्दू धर्म में अत्याधिक धार्मिक महत्व है। इसे भगवान विष्णु का अनन्त रूप माना जाता है और इसे साक्षात् भगवान का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम की पूजा करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। शालिग्राम को घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। 


 🚩पौराणिक कथाएँ और शालिग्राम का महत्व

शालिग्राम के महत्व का वर्णन अनेक पौराणिक कथाओं में मिलता है। एक कथा के अनुसार, देवी तुलसी के पति जलंधर के वध के बाद भगवान विष्णु ने शालिग्राम के रूप में अपनी उपस्थिति की घोषणा की। जलंधर, जो भगवान शिव के एक भक्त थे, का जन्म समुद्र में हुआ था और वह भगवान विष्णु के खिलाफ एक युद्ध में मारा गया था। तुलसी की तपस्या और उनके प्रति भगवान विष्णु की भक्ति के कारण, उन्होंने स्वयं को शालिग्राम रूप में बदल लिया ताकि तुलसी और विष्णु की पूजा हमेशा एक साथ की जा सके। यही कारण है कि तुलसी विवाह में शालिग्राम को भगवान विष्णु के रूप में स्थापित किया जाता है।


 🚩शालिग्राम के प्रकार और उनके महत्व

शालिग्राम विभिन्न प्रकार के होते है और प्रत्येक प्रकार का अपना विशिष्ट धार्मिक महत्व होता है। कुछ प्रमुख शालिग्राम के प्रकार निम्नलिखित है:

1. 🚩लक्ष्मी-नारायण शालिग्राम : यह शालिग्राम लक्ष्मी और नारायण का प्रतीक है। इसकी पूजा से धन,सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

   

2. 🚩वराह शालिग्राम : भगवान विष्णु के वराह अवतार का प्रतीक है। इसे पूजा करने से ज्ञान और समृद्धि मिलती है।


3. 🚩नरसिंह शालिग्राम : भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का प्रतीक है। इसे पूजा करने से भय का नाश होता है और साहस की प्राप्ति होती है।


4. 🚩वामन शालिग्राम : भगवान विष्णु के वामन अवतार का प्रतीक है। इसे पूजा करने से व्यक्ति को विनम्रता और धैर्य की प्राप्ति होती है।


 🚩शालिग्राम पूजा के नियम और विधियां 

शालिग्राम की पूजा विशेष विधि-विधान से की जाती है। शालिग्राम को स्वच्छ जल से स्नान कराकर, चन्दन, पुष्प, तुलसी पत्र और नैवेद्य अर्पित किए जाते है। शालिग्राम को स्नान कराते समय विष्णु सहस्रनाम का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। पूजा के दौरान भक्तों को ध्यान रखना चाहिए कि शालिग्राम की पूजा केवल पवित्रता और शुद्धता के साथ की जानी चाहिए। इसके साथ ही शालिग्राम को कभी भी लोहे या किसी अन्य धातु के पात्र में नहीं रखा जाना चाहिए।


 🚩शालिग्राम और वास्तु शास्त्र

शालिग्राम का वास्तु शास्त्र में भी विशेष महत्व है। इसे घर में रखने से वास्तुदोष समाप्त होते है और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सद्भाव बना रहता है। शालिग्राम को पूजा स्थान में स्थापित करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है। 


 🚩आध्यात्मिक और मानसिक लाभ

शालिग्राम की पूजा करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त होती है। शालिग्राम की उपासना से व्यक्ति के अंदर भक्तिभाव और सकारात्मकता का संचार होता है। इसके साथ ही, यह मनुष्य को उसके जीवन के उद्देश्य की ओर मार्गदर्शन करता है और उसे ईश्वर की उपासना की ओर प्रेरित करता है।


 🚩निष्कर्ष

शालिग्राम हिन्दू धर्म में अत्याधिक पवित्र और धार्मिक महत्व का प्रतीक है। यह भगवान विष्णु का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है और इसकी पूजा से अनेक लाभ प्राप्त होते है। शालिग्राम की पूजा करने से न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ होते है बल्कि यह मानसिक शांति और जीवन में सकारात्मकता का भी संचार करता है। इसलिए, हिन्दू धर्म में शालिग्राम का महत्व अत्याधिक है और इसे सदियों से पूजा जाता रहा है।


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शंख: हिन्दू धर्म में इसका दिव्य महत्व और अद्भुत रहस्य:

19th September 2024 
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हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र प्रतीक है "शंख" ! इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा विधियों और समारोहों में किया जाता है। यह केवल एक साधारण शंख नहीं है बल्कि एक दिव्य और ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है।आइए, जाने शंख का महत्व और इसके पीछे की अद्भुत बातें : 🚩1. शंख का धार्मिक महत्व और धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयोग : शंख का उपयोग हिन्दू धर्म के पूजा और अनुष्ठानों में सदियों से किया जाता है। इसे पूजा के दौरान बजाया जाता है,जिससे वातावरण शुद्ध और पवित्र हो जाता है। शंख बजाने से एक दिव्य ध्वनि उत्पन्न होती है जो वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। 🚩भगवान विष्णु का प्रतीक : भगवान विष्णु के चार प्रमुख प्रतीकों में शंख भी शामिल है। विष्णु के शंख का नाम "पांपदम" है। यह शंख उनके दिव्य अस्त्रों में से एक है और इसे उनकी महिमा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। 🚩पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक : शंख का जल पूजा के लिए उपयोग किया जाता है,जो घर और पूजा स्थल को पवित्र करने का कार्य करता है। इसे पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। 🚩2. शंख के ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भ 🚩सागर मंथन की घटना : पौराणिक कथाओं के अनुसार, सागर मंथन के दौरान जब अमृत की प्राप्ति हुई, तब एक दिव्य शंख भी प्रकट हुआ। यह यू शंख भगवान विष्णु के पास गया और उनके साथ जुड़ गया। 🚩महाभारत और रामायण में संदर्भ : महाभारत और रामायण में भी शंख का उल्लेख मिलता है।महाभारत में श्रीकृष्ण और बाकी सभी प्रमुख कौरव पांडवों के पास अपने अपने शंख थे जो उन्होंने युद्ध में बजाए। रामायण में भगवान राम के शंख की ध्वनि से राक्षसों की नींद उड़ी और वे युद्ध के लिए तैयार हो गए। 🚩3. शंख का विज्ञान और तंत्र 🚩ध्वनि चिकित्सा: शंख बजाने की ध्वनि को विज्ञान के अनुसार भी सकारात्मक ऊर्जा का संचारक माना गया है। यह ध्वनि उच्च और निम्न आवृत्तियों के साथ मिलकर वातावरण को शुद्ध करती है और मन को शांति प्रदान करती है। 🚩वास्तु शास्त्र में महत्व : वास्तु शास्त्र के अनुसार, शंख का स्थान और उसकी ध्वनि घर की सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है। इसे घर के उत्तरी या उत्तर-पूर्वी दिशा में रखा जाता है। 🚩 4. शंख का आधुनिक उपयोग अध्यात्मिक और धार्मिक आयोजन : शंख का उपयोग आज भी धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में किया जाता है। यह पूजा के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और भक्तों को एक दिव्य अनुभव प्रदान करता है। 🚩सजावट और डिजाइन : शंख का उपयोग आधुनिक सजावट और डिजाइन में भी किया जाता है। इसे विभिन्न धार्मिक प्रतीकों और आभूषणों के रूप में उपयोग किया जाता है। 🚩निष्कर्ष शंख न केवल हिन्दू धर्म के धार्मिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण है बल्कि इसका ऐतिहासिक, पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। यह एक दिव्य ध्वनि का स्रोत है जो शुद्धता, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। शंख का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर आधुनिक सजावट तक में किया जाता है, जो इसके महत्त्व और अद्भुतता को दर्शाता है। 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4

Monday, September 16, 2024

श्राद्ध की महिमा

 17 सितम्बर 2024

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🚩श्राद्ध की महिमा



श्राद्ध , एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक परंपरा है जो पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए की जाती है। यह श्राद्ध कर्म,विशेष रूप से पितृपक्ष में किया जाता है, जो आमतौर पर प्रत्येक साल, आश्वयुज मास की पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है और सोला दिन तक चलता है। श्राद्ध का यह रूप विशेष रूप से आत्मिक उन्नति और परिवार की भलाई के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

🚩 श्राद्ध की महत्व 

1. 🚩पूर्वजों की आत्मा की शांति : श्राद्ध का मुख्य उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए होता है। इस दिन उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने परिजनों के लिए आशीर्वाद प्रदान करते है।


2. 🚩परिवारिक समृद्धि : श्राद्ध के दौरान की गई पूजा और दान से परिवार को समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इसे परिवार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।


3. 🚩आध्यात्मिक उन्नति : श्राद्ध की विधि में भाग लेने से व्यक्ति की आत्मिक उन्नति होती है। यह कर्म और पुण्य का स्रोत होता है, जो व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करता है।


4. 🚩सामाजिक और नैतिक मूल्य : श्राद्ध परंपरा के माध्यम से परिवार और समाज में आदर्श,सम्मान, और नैतिक मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया जाता है। यह परंपरा हमें अपने पूर्वजों की याद को बनाए रखने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की प्रेरणा देती है।


 🚩श्राद्ध के प्रकार


1. 🚩पिंड दान : पिंड दान श्राद्ध का एक प्रमुख हिस्सा है। इसमें विशेष रूप से चावल और काले तिल से बने पिंडों की पूजा की जाती है। ये पिंड पूर्वजों की आत्मा को समर्पित किए जाते है और उनके तृप्ति के लिए दान किए जाते है।


2.🚩तर्पण : तर्पण की प्रक्रिया में जल,तिल और अन्य पूजा सामग्री का उपयोग करके पूर्वजों को सम्मानित किया जाता है। इसे विशेष रूप से पितृपक्ष के दौरान किया जाता है और इसे पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करने का तरीका माना जाता है।


3. 🚩ब्राह्मण भोजन और दान : इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना भी एक महत्वपूर्ण क्रिया है। यह परंपरा समाज और पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने का तरीका है। ब्राह्मणों को अच्छे भोजन और दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है।


4. 🚩गौ दान : कुछ स्थानों पर,श्राद्ध के दिन गौ दान भी किया जाता है।इसमें गौ माता को खाद्य पदार्थ दिए जाते है, जो पितरों की आत्मा की शांति और पुण्य के लिए किया जाता है।


🚩पितृपक्ष (पितृ पक्ष)

पितृपक्ष, श्राद्ध की परंपरा का एक विशेष समयावधि है जो हर साल आश्वयुज मास की पूर्णिमा के दिन से शुरू होती है और अमावस्या तक चलती है। इस अवधि में विशेष रूप से पूर्वजों की पूजा और सम्मान के लिए कार्य किए जाते है। 


1. 🚩समय और महत्व : पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते है। यह समय विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए होता है जिन्होंने इस अवधि में अपने पूर्वजों की पूजा और तर्पण किया होता है।


2. 🚩विशेष अनुष्ठान : पितृपक्ष के दौरान प्रत्येक दिन विशेष पूजा विधियों का पालन किया जाता है। इसमें पिंड दान,तर्पण और अन्य धार्मिक क्रियाएं शामिल होती है जिनके माध्यम से पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है।


3. 🚩परिवारिक एकता : पितृपक्ष परिवारिक एकता और सामूहिक समर्पण का प्रतीक है। इस दौरान परिवार के सदस्य एकत्र होकर पूर्वजों की पूजा करते है और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करते है।


 🚩श्राद्ध की विधि


1. 🚩तैयारी : श्राद्ध के दिन, घर की सफाई और शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। पूजा के स्थान को अच्छे से साफ किया जाता है और वहां एक विशेष पूजा पाटी तैयार की जाती है।


2. 🚩पूजा सामग्री : श्राद्ध के लिए विशेष पूजा सामग्री जैसे कि पिंड, काले तिल, जौ,दूध,पानी,फल और पकवान तैयार किए जाते है। इनका उपयोग पूजा में और दान के रूप में किया जाता है।


3. 🚩पिंड दान : पिंड दान की प्रक्रिया में विशेष रूप से चावल और काले तिल से बने पिंडों की पूजा की जाती है। ये पिंड पूर्वजों की आत्मा को समर्पित किए जाते है।


4. 🚩पंडित का आह्वान : आमतौर पर इस दिन पंडित को आमंत्रित किया जाता है जो पूजा विधि का संचालन करता है। पंडित के द्वारा मंत्रोच्चारण और पूजा के अन्य विधि पूरी की जाती है।


5. 🚩ब्राह्मण भोजन और दान : पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना भी श्राद्ध की महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह दान समाज और पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक तरीका है।


6. 🚩अभिवादन और प्रार्थना : पूजा के बाद, व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की भलाई के लिए प्रार्थना करता है। यह प्रार्थना परिवारिक एकता और समृद्धि की कामना करती है।


🚩निष्कर्ष

श्राद्ध का आयोजन केवल धार्मिक कृत्य नहीं है बल्कि यह पूर्वजों के प्रति सम्मान और उनकी आत्मा की शांति के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है। यह न केवल परिवार की सुख-शांति और समृद्धि का कारण बनता है, बल्कि समाज में नैतिक और आदर्श मूल्यों को भी बढ़ावा देता है। श्राद्ध की यह परंपरा, हमें अपने पूर्वजों की याद को हमेशा बनाए रखने और उनके प्रति आभार प्रकट करने की प्रेरणा देती है।


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विश्वकर्मा पूजा का महत्व और विधि

 17 सितम्बर 2024


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🚩*विश्वकर्मा पूजा का महत्व और विधि*



🚩विश्वकर्मा पूजा, जिसे विश्वकर्मा जयंती के नाम से भी जाना जाता है, हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है। यह पूजा विश्वकर्मा जी, जो सृष्टि के निर्माता और निर्माण कला के देवता माने जाते हैं, की आराधना के रूप में की जाती है। भगवान विश्वकर्मा को वास्तुकला, यांत्रिकी और सभी प्रकार की तकनीकी कला के जनक माना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से औद्योगिक और निर्माण क्षेत्रों में कार्यरत लोग अपने उपकरणों, मशीनों और कार्यस्थलों की पूजा करते हैं ताकि उन्हें सफलता, समृद्धि और उन्नति प्राप्त हो।


🚩भगवान विश्वकर्मा का परिचय

पुराणों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा ने स्वर्ग, द्वारिका नगरी, हस्तिनापुर, सोने की लंका, पुष्पक विमान और अन्य अद्भुत रचनाओं का निर्माण किया था। वह देवताओं के प्रमुख शिल्पकार और ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं। उनकी भक्ति से लोग अपने व्यापार, कामकाज और उद्योगों में कुशलता, तरक्की और शांति की कामना करते हैं।


पूजा की तैयारी

विश्वकर्मा पूजा के दिन सभी उपकरणों और मशीनों को अच्छे से साफ किया जाता है। लोग अपने कार्यस्थलों को सजाते हैं और पूजा के लिए एक विशेष स्थान निर्धारित करते हैं। पूजा के दौरान भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना की जाती है।


 🚩पूजा की विधि

1. *स्नान और शुद्धिकरण*: सुबह स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनें और शुद्ध मन से पूजा की तैयारी करें।

2. *स्थान की शुद्धि*: पूजा स्थल को साफ कर फूलों से सजाएं और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।

3. *मूर्ति की स्थापना*: भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर रखें।

4. *पूजन सामग्री*: फूल, धूप, दीप, नारियल, पान, सुपारी, अक्षत (चावल), मिठाई, फल, और पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, और शक्कर) को पूजा के लिए तैयार रखें।

5. *मंत्र उच्चारण*: भगवान विश्वकर्मा की स्तुति और पूजा के दौरान उनके लिए निम्न मंत्रों का जाप करें:

   

  🚩 "ॐआधार शक्तपे नमः, ॐ कूमयि नमः, ॐ अनन्तम नमः, पृथिव्यै नमः"


6. *आरती*: पूजा के बाद भगवान विश्वकर्मा की आरती करें और प्रसाद बांटें। इस दिन के बाद मशीनों और औजारों का उपयोग नहीं किया जाता, उन्हें पूरे दिन के लिए आराम दिया जाता है।

7. *विशेष भोज*: कुछ स्थानों पर इस दिन विशेष सामूहिक भोज या प्रसाद वितरण का आयोजन भी किया जाता है।


🚩 विश्वकर्मा पूजा का सामाजिक और आर्थिक महत्व

इस पूजा का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह श्रम और निर्माण कार्यों की पूजा के रूप में समाज में तकनीकी कुशलता और औद्योगिक विकास का प्रतीक है। उद्योगों और फैक्ट्रियों में इस दिन कर्मचारियों के बीच सामूहिक एकता और समर्पण की भावना बढ़ती है। 


🚩इसके अलावा, विश्वकर्मा पूजा नए विचारों, नवाचारों और उत्पादन क्षमता में वृद्धि की प्रेरणा देती है। यह श्रमिकों और कारीगरों के लिए उनके कार्य में समर्पण और उनकी मेहनत की सराहना का दिन है।


🚩निष्कर्ष

विश्वकर्मा पूजा न केवल धार्मिक, बल्कि व्यावसायिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि हमारे औजार, मशीनें, और काम का सम्मान करना कितना आवश्यक है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा से हम अपने कार्यों में निपुणता, सृजनशीलता और सफलताओं की प्राप्ति की कामना करते हैं।



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Sunday, September 15, 2024

"गणेश जी के शस्त्र: दिव्य शक्ति और उनके आध्यात्मिक महत्व"

 16 सितम्बर 2024

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🚩"गणेश जी के शस्त्र: दिव्य शक्ति और उनके आध्यात्मिक महत्व"


भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि और सुख के देवता के रूप में पूजा जाता है, के पास कई शस्त्र है जो उनके दिव्य गुणों और कार्यों का प्रतीक है। उनके ये शस्त्र न केवल उनके शक्ति और नियंत्रण का प्रतिनिधित्व करते है,बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित करते है।आइए, जाने गणेश जी के प्रमुख शस्त्र और उनके आध्यात्मिक महत्व के बारे में:


 🚩1. हथौड़ा (अक्ष)

हथौड़ा गणेश जी की शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है। यह विघ्नों को दूर करने में सक्षम होने का संकेत देता है। यह हथौड़ा भगवान गणेश की क्षमता को दर्शाता है कि वे हर कठिनाई को समाप्त कर सकते है और जीवन को सही दिशा में ले जा सकते है।


 🚩2. त्रिशूल (त्रिशूल)

त्रिशूल भगवान गणेश के हाथ में एक महत्वपूर्ण शस्त्र है जो उनकी शक्ति, स्थिरता और निर्णय क्षमता का प्रतीक है। यह त्रिशूल दैवीय शक्ति और तंत्र के तीन गुणों—सत्त्व, रजस और तमस— का प्रतिनिधित्व करता है। यह शक्ति, भौतिक और आध्यात्मिक स्तर पर समग्र नियंत्रण का संकेत है।


 🚩3. सर्प (नाग)

सर्प गणेश जी के गले में एक आभूषण के रूप में होता है और यह जीवन के अनिश्चितता और परिवर्तनशीलता को दर्शाता है। यह सर्प उनके ज्ञान और ध्यान की गहराई को भी दर्शाता है जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है।


 🚩4. चूहे (मूषक)

गणेश जी का वाहन चूहा होता है, जो उनके शस्त्रों में से एक नहीं बल्कि उनका वाहन और सहायक है। चूहा वाणी,समर्पण और विनम्रता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भगवान गणेश हर स्थिति को अपनी इच्छा के अनुसार नियंत्रित करने में सक्षम है।


 🚩5. पंखा (चन्दन)

गणेश जी के पास पंखा भी होता है, जो ठंडक और शांति का प्रतीक है। यह पंखा भगवान गणेश के समर्पण और उनके शांतिपूर्ण स्वभाव को दर्शाता है, जो सभी प्रकार के तनाव और अशांति को समाप्त करने की शक्ति रखता है।


 🚩अध्यात्मिक महत्व

गणेश जी के शस्त्र न केवल उनके दिव्य शक्ति को दर्शाते है बल्कि वे आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी प्रदान करते है :

- 🚩संकल्प और स्थिरता : गणेश जी के शस्त्र हमें संकल्प लेने और स्थिरता बनाए रखने की प्रेरणा देते है , जो जीवन की कठिनाइयों को पार करने में मदद करता है।

- 🚩समय की धारा : ये शस्त्र हमें समय के सही उपयोग और उसके अनुसार कार्य करने की सलाह देते है, जिससे हम अपनी मंजिल तक पहुंच सकें।

- 🚩आध्यात्मिक सुरक्षा : गणेश जी के शस्त्र हमारे जीवन को आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करते है और हमें आंतरिक शांति की प्राप्ति में सहायता करते है।


🚩भगवान गणेश के शस्त्र उनकी शक्तियों और गुणों का प्रतीक है और वे हर भक्त के जीवन में समृद्धि, शांति और सफलता लाने के लिए मार्गदर्शन करते है।


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Saturday, September 14, 2024

"भगवान गणेश की महाभारत लेखन की रहस्यमय कथा: कैसे दिव्य बुद्धि ने रचा ऐतिहासिक महाकाव्य?"

 15th September 2024

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🚩"भगवान गणेश की महाभारत लेखन की रहस्यमय कथा: कैसे दिव्य बुद्धि ने रचा ऐतिहासिक महाकाव्य?"



🚩भगवान गणेश, जिनकी पूजा ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि के देवता के रूप में की जाती है, ने महाभारत की रचना में एक अद्वितीय भूमिका निभाई। इस दिव्य कथा को समझना हमें भगवान गणेश की असीम बुद्धि और समर्पण के महत्व को उजागर करता है। आइए, इस रहस्यमय कथा को विस्तार से जाने।

🚩महाभारत की दिव्य रचना-

महाभारत,भारतीय संस्कृति का एक अनमोल रत्न,महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाकाव्य है। लेकिन, इस महाकाव्य की लेखनी में भगवान गणेश की महत्वपूर्ण भूमिका ने इसे और भी अद्वितीय बना दिया। गणेश जी ने इस ग्रंथ को अपने दिव्य हस्ताक्षर से संपूर्णता प्रदान की, जिससे यह ग्रंथ हमारे समय तक सुरक्षित रहा।


🚩भगवान गणेश की भूमिका : एक अद्भुत कहानी


1. 🚩मंत्रणा और अनुग्रह : भगवान गणेश ने महाभारत की रचना करते समय, वेदव्यास जी को असीम ज्ञान और अनुग्रह प्रदान किया। महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी को इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रेरित किया और गणेश जी ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से ग्रंथ की सभी कथाओं और अंशों को सही तरीके से संकलित किया।


2.🚩रचनात्मक प्रक्रिया : पौराणिक कथाओं के अनुसार, वेदव्यास ने भगवान गणेश को यह वचन दिया था कि वे केवल सही शब्दों का चयन करेंगे और लेखन के दौरान कोई गलती नहीं होगी। भगवान गणेश ने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपने विशाल बुद्धि के साथ महाभारत को सटीकता से लिखा।


3. 🚩सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण :  गणेश जी की इस भूमिका से महाभारत का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व बढ़ गया। उनकी उपस्थिति ने यह सुनिश्चित किया कि ग्रंथ में सभी आध्यात्मिक और धार्मिक पहलुओं का सही वर्णन हो। गणेश जी ने महाभारत के प्रत्येक श्लोक और अध्याय को अपनी दिव्य उपस्थिति से प्रकाशित किया।


4. 🚩साक्षात्कार और संवाद : गणेश जी के साथ वेदव्यास की संवाद प्रक्रिया भी अद्वितीय रही। गणेश जी ने न केवल लेखन में सहायता की बल्कि उन्होंने वेदव्यास को कथा के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए भी प्रेरित किया। इस संवाद ने महाभारत की गहराई और व्यापकता को सुनिश्चित किया।


 🚩महाभारत की रचना का परिणाम : भगवान गणेश की सहायता से महाभारत का लेखन एक दिव्य अनुभव बन गया। इस महाकाव्य ने भारतीय संस्कृति और धर्म के विभिन्न पहलुओं को उद्घाटित किया। गणेश जी की भूमिका ने यह सुनिश्चित किया कि महाभारत में केवल कहानी नहीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण सत्य और सिद्धांत भी शामिल हों।


 🚩निष्कर्ष : भगवान गणेश की महाभारत  में लेखन की भूमिका एक रहस्यमय और प्रेरणादायक कथा है। उनकी दिव्य बुद्धि और समर्पण ने इस महाकाव्य को उत्कृष्टता और दिव्यता प्रदान की। गणेश जी की यह भूमिका हमें यह सिखाती है कि किसी भी महान कार्य को सिद्ध करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और अनुग्रह की आवश्यकता होती है। इस रहस्यमय कथा से हम भगवान गणेश की महानता और उनके योगदान को समझ सकते है,जो आज भी हमारे जीवन में मार्गदर्शक और प्रेरणादायक है।


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Friday, September 13, 2024

राष्ट्रभाषा दिवस

 14 September 2024 

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🚩राष्ट्रभाषा दिवस


हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि) को 14 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा ने देश की आधिकारिक भाषा के रूप में मंजूरी दी थी। इसके उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस (National Hindi Day) मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त, 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है, जो हिंदी के वैश्विक प्रसार को सम्मानित करता है।


🚩भारत के संविधान के अनुच्छेद 343(1) के तहत, यह स्पष्ट किया गया है कि "भारत संघ की भाषा हिंदी होगी और इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाएगा।" हिंदी दिवस का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा को बढ़ावा देना और इसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है। यह दिन हमें हिंदी भाषा के महत्व, इसकी वर्तमान स्थिति और भविष्य में इसके सामने आने वाली चुनौतियों पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है।


🚩हिंदी भाषा केवल एक संचार का माध्यम नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं की गहरी जड़ें समेटे हुए है। हिंदी, भारत की विविधता में एकता को प्रकट करने वाली कड़ी है। यह हमारी पहचान और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हिंदी न केवल हमें एक-दूसरे से जोड़ने का सरल माध्यम है बल्कि यह हमारे देश की सांस्कृतिक और भावनात्मक धरोहर का भी प्रतीक है।


 🚩हिंदी का सांस्कृतिक और राष्ट्रीय महत्व:स्वतंत्र राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा से होती है। किसी भी राष्ट्र की विचारधारा,भावनाएं,रीति-रिवाज और संस्कृति उसकी अपनी भाषा में सुरक्षित रहती है। जिस राष्ट्र की अपनी भाषा नहीं होती, उसकी संस्कृति और साहित्य भी सुरक्षित नहीं रह सकते। हिंदी भाषा,भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। हिंदी दिवस का मुख्य उद्देश्य इस बात पर जोर देना है कि जब तक हम अपने दैनिक जीवन और सरकारी कार्यों में हिंदी का पूर्ण रूप से उपयोग नहीं करेंगे, तब तक हिंदी का विकास संभव नहीं है।


🚩उद्देश्य:हिंदी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि हम साल में एक दिन यह याद करें कि हिंदी को पूरी तरह से अपनाने के बिना इसका वास्तविक विकास नहीं हो सकता। इस दिन विशेष रूप से सरकारी कार्यालयों में हिंदी के उपयोग पर बल दिया जाता है, ताकि अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग हो सके।


🚩भारत में विविध भाषाओं और संस्कृतियों के चलते कोई एक राष्ट्रभाषा नहीं है,लेकिन हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। संविधान के भाग 17 में हिंदी के लिए प्रावधान दिए गए है और 14 सितंबर1949 को हिंदी को यह अधिकार मिला था। तब से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो हमें अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान और समर्पण का अहसास कराता है।


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Thursday, September 12, 2024

हिन्दू धर्म में सप्तऋषि और उनका आकाशगंगा में स्थान

 13th September 2024

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🚩हिन्दू धर्म में सप्तऋषि और उनका आकाशगंगा में स्थान



🚩सप्त ऋषि, हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते है। ये ऋषि ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते है और सृष्टि की संरचना, वेदों के ज्ञान, तथा धार्मिक परंपराओं के संस्थापक है। सप्त ऋषियों के नाम है : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कश्यप, अत्रि, गौतम, जमदग्नि, और भृगु । 


🚩सप्त ऋषियों का परिचय


1. वशिष्ठ (Vashistha) : वशिष्ठ ऋषि भगवान राम के गुरु थे और राजा दशरथ के राजगुरु के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने "वशिष्ठ संहिता" की रचना की, जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन है।


2. विश्वामित्र (Vishwamitra) : विश्वामित्र पहले क्षत्रिय थे जिन्होंने कठोर तपस्या के बाद ब्रह्मर्षि की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने गायत्री मंत्र की रचना की और भगवान राम के गुरु भी थे।


3. कश्यप (Kashyapa) : कश्यप ऋषि को सभी जीवों के जनक के रूप में माना जाता है। उन्होंने विभिन्न जीवों की उत्पत्ति की और "कश्यप संहिता" की रचना की।


4. अत्रि (Atri) : अत्रि ऋषि "अत्रेय" गोत्र के प्रवर्तक है। उनकी रचना "अत्रि संहिता" में योग और ध्यान की विधियों का विस्तार और से वर्णन है।


5. गौतम (Gautama): गौतम ऋषि "न्याय दर्शन" के प्रवर्तक थे और उन्होंने "गौतम संहिता" की रचना की। वे धर्म, दर्शन, और न्याय के सिद्धांतों के विस्तार के लिए प्रसिद्ध है।


6. जमदग्नि (Jamadagni): जमदग्नि ऋषि भगवान परशुराम के पिता थे और उन्होंने "जमदग्नि संहिता" की रचना की। वे धनुर्विद्या और तपस्या के लिए विख्यात है।


7. भृगु (Bhrigu): भृगु ऋषि ज्योतिष और तंत्र के ज्ञाता माने जाते है। उनकी रचना "भृगु संहिता" ज्योतिष के क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।


🚩आकाशगंगा में सप्त ऋषियों का स्थान

हिन्दू धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार, सप्त ऋषियों को आकाश में एक विशेष स्थान प्राप्त है। सप्त ऋषि तारा मंडल (या सप्तर्षि मंडल) खगोलशास्त्र और हिन्दू पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।


🚩सप्त ऋषि तारा मंडल का उल्लेख आकाश में सात प्रमुख तारों के समूह के रूप में किया जाता है। यह तारा समूह पश्चिमी आकाश में दिखाई देता है और इसे पश्चिमी खगोलशास्त्र में "बिग डिपर" या "उर्सा मेजर" नक्षत्र के रूप में जाना जाता है। भारतीय खगोलशास्त्र में, सप्त ऋषि तारामंडल को दिशा निर्धारण और समय की गणना के लिए अत्यधिक महत्व दिया गया है।


🚩सप्त ऋषि तारा मंडल के तारों का विवरण


1. अत्रि  

2. वशिष्ठ  

3. विश्वामित्र  

4. गौतम  

5. जमदग्नि  

6. कश्यप  

7. भृगु  


इन सात तारों का प्रतिनिधित्व सप्त ऋषियों द्वारा किया जाता है और ये आकाश में एक विशेष संरचना में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ये सप्त ऋषि आकाश में अपनी स्थिति को दर्शाते है और उनकी उपस्थिति से तारा मंडल की संरचना और व्यवस्था को समझाया जाता है।


🚩धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व


1. धार्मिक दृष्टिकोण: सप्त ऋषि तारा मंडल, हिन्दू धर्म में धर्म और आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इसे देखकर धर्म और ज्ञान के महत्व को समझा जाता है।


2. कालगणना और तिथि निर्धारण: सप्त ऋषि तारा मंडल का उपयोग हिन्दू कैलेंडर और तिथि निर्धारण में भी किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों और पर्वों के समय की गणना के लिए इसे उपयोगी माना जाता है।


3. सांस्कृतिक प्रतीक: यह तारा मंडल भारतीय संस्कृति और प्राचीन खगोलशास्त्र का प्रतीक है। प्राचीन भारतीय खगोलज्ञों ने इसकी संरचना और उपयोग का ज्ञान प्राप्त किया और इसका वर्णन अपने ग्रंथों में किया।


4. यात्री और नाविकों के लिए मार्गदर्शन: प्राचीन काल में, सप्त ऋषि तारा मंडल का उपयोग यात्रा और नाविकों द्वारा दिशा निर्धारण के लिए किया जाता था। यह आकाशीय संकेतों के रूप में कार्य करता था और यात्राओं के मार्ग को निर्धारित करने में मदद करता था।


निष्कर्ष: सप्त ऋषि हिन्दू धर्म के मूल स्तंभ है और उनका आकाशगंगा में विशेष स्थान भी अत्याधिक महत्वपूर्ण है। सप्त ऋषियों और उनके तारा मंडल का धार्मिक, सांस्कृतिक और खगोलशास्त्रीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्व है। ये ऋषि और उनका तारा मंडल न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानवता और ज्ञान के प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण है।



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Wednesday, September 11, 2024

🚩रुद्राक्ष का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व

 12 सितम्बर 2024

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🚩रुद्राक्ष का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व


🚩रुद्राक्ष एक अत्यंत महत्वपूर्ण बीज है,जिसे हिन्दू धर्म में भगवान शिव के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। रुद्राक्ष की पूजा और उपयोग प्राचीन भारतीय परंपराओं और तांत्रिक विद्या में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व को समझना इसके प्रभावी उपयोग के लिए आवश्यक है।


 🚩सही रुद्राक्ष की पहचान


1. 🚩 बीज की सतह :

   सही रुद्राक्ष की सतह पर स्पष्ट और समान गड्ढे (मुख) होने चाहिए। रुद्राक्ष के बीज पर जितने अधिक मुख होंगे, वह उतना ही अधिक शक्तिशाली माना जाता है। 


2. 🚩 आकार और रंग :

   रुद्राक्ष का आकार सामान्यतः गोल या अंडाकार होता है। इसका रंग सामान्यतः भूरे या काले रंग के होते है। यदि रुद्राक्ष का रंग असामान्य है या बीज पर रंग की धब्बे है, तो यह संकेत हो सकता है कि यह असली नहीं है।


3. 🚩 स्पर्श और वजन :

   असली रुद्राक्ष को छूने पर ठोस और वजनदार महसूस होता है। यह सामान्यतः हल्का नहीं होता। यदि रुद्राक्ष हल्का लगता है या उसकी सतह पर दाग-धब्बे है, तो यह नकली हो सकता है।


4. 🚩गंध :

   असली रुद्राक्ष में एक विशेष प्राकृतिक सुगंध होती है। यदि रुद्राक्ष में कोई असामान्य गंध हो, तो यह संदेहास्पद हो सकता है।


5. 🚩सही मुख की संख्या :

   रुद्राक्ष के विभिन्न मुख होते है, जैसे एकमुखी, दो मुखी, तीन मुखी आदि। प्रत्येक मुख का अलग-अलग महत्व है। सही मुख की पहचान करना और उसके अनुसार चयन करना महत्वपूर्ण है।


 🚩पौराणिक महत्व


1. 🚩शिव की तपस्या से उत्पत्ति :

 पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने कठोर तपस्या की, तब उनके आंसू धरती पर गिरे और रुद्राक्ष के बीज में परिवर्तित हो गए। इस प्रकार, रुद्राक्ष भगवान शिव की तपस्या का प्रतीक है और इसे भगवान शिव के आशीर्वाद का रूप माना जाता है।


2. 🚩 रुद्राक्ष का नामकरण :

   "रुद्राक्ष" नाम दो शब्दों से मिलकर बना है—"रुद्र" और "अक्ष"। "रुद्र" भगवान शिव के एक नाम का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि "अक्ष" का मतलब होता है बीज। इस प्रकार, रुद्राक्ष का अर्थ है "भगवान शिव का बीज"।


3. 🚩 सप्तर्षियों और पौराणिक कथाओं में उल्लेख :

   रुद्राक्ष का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, जैसे कि "पद्म पुराण" और "शिव पुराण" में। ये ग्रंथ रुद्राक्ष की महत्ता और इसके आध्यात्मिक लाभों को विस्तार से बताते है।


4. 🚩पंचमुखी रुद्राक्ष की विशेषता :

   पंचमुखी रुद्राक्ष, जिसे पांच मुखों वाला रुद्राक्ष कहा जाता है, भगवान शिव के पांच स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करता है। इसे विशेष रूप से शक्तिशाली और शुभ माना जाता है, और यह विभिन्न दैवीय शक्तियों के प्रतीक के रूप में पूजनीय है।


🚩आध्यात्मिक महत्व


1. 🚩आध्यात्मिक उन्नति :

   रुद्राक्ष का उपयोग ध्यान और साधना में किया जाता है। इसे पहनने से ध्यान की गहराई बढ़ती है और आत्मिक उन्नति होती है। रुद्राक्ष की माला जप और मंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण होती है, जिससे मानसिक शांति और ध्यान की शक्ति में वृद्धि होती है।


2. 🚩ध्यान और साधना :

   रुद्राक्ष की माला का उपयोग जप और ध्यान में किया जाता है। इसके द्वारा किए गए मंत्र जप और साधना अधिक प्रभावी होते है और आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।


 3.🚩चिकित्सकीय लाभ :

   रुद्राक्ष में औषधीय गुण भी होते है। इसे पहनने से तनाव, चिंता और मानसिक अशांति को दूर किया जा सकता है। यह शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार लाने में भी मदद करता है और कई मानसिक और शारीरिक रोगों के उपचार में उपयोगी है।


4. 🚩शक्ति और ऊर्जा :

   रुद्राक्ष का प्रत्येक मुख विशेष दैवीय शक्ति और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिए, एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के एक स्वरूप का प्रतीक होता है, जबकि दो मुखी रुद्राक्ष शिव और सती के युगल स्वरूप का प्रतीक होता है।


5. 🚩सकारात्मक ऊर्जा और सुरक्षा :

   रुद्राक्ष को पहनने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और यह व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है। यह घर और व्यक्तिगत जीवन में सुरक्षा और समृद्धि लाने में मदद करता है।


निष्कर्ष : रुद्राक्ष का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व अत्याधिक है। यह बीज भगवान शिव का दिव्य आशीर्वाद और शक्ति का प्रतीक है। इसके सही उपयोग से आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है। रुद्राक्ष की पूजा और साधना से जीवन में समृद्धि, शांति और सकारात्मकता का अनुभव होता है।


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Tuesday, September 10, 2024

राधाष्टमी : महत्व, कथा एवं बुधवारी अष्टमी का संयोग

 11 September 2024

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🚩राधाष्टमी : महत्व, कथा एवं बुधवारी अष्टमी का संयोग  


🚩राधाष्टमी का पर्व श्री राधा रानी के जन्मोत्सव के रूप में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। 2024 में यह पावन दिन 11 सितंबर को पड़ रहा है और इस दिन बुधवारी अष्टमी का संयोग भी बना हुआ है। राधाष्टमी का पर्व विशेष रूप से प्रेम और भक्ति की देवी श्री राधा रानी को समर्पित होता है। यह दिन उनके अद्वितीय प्रेम और समर्पण को भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रदर्शित करता है।  


🚩राधाष्टमी का महत्व 

श्री राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण की प्रेम और आह्लादिनी शक्ति के रूप में मानी जाती है। उनका प्रेम भक्ति का सर्वोच्च रूप है,जो निश्छल और शुद्ध है। राधाष्टमी के दिन भक्तगण श्री राधा और श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते है और उनके प्रेम को स्मरण करते है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से साधक के पाप दूर होते है और उसे भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।  


🚩राधाष्टमी की कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार, श्री राधा का जन्म व्रजभूमि के बरसाना गाँव में हुआ था। वे राजा वृषभानु और माता कीर्ति की पुत्री थी। श्री राधा का जन्म एक दिव्य घटना थी और वे भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका एवं शक्ति मानी जाती है। उनके और श्रीकृष्ण के बीच का प्रेम अत्यंत आत्मिक और दिव्य था, जो संसार के किसी भी भौतिक संबंध से परे है।  


🚩एक अन्य कथा के अनुसार, श्री राधा जन्म से अंधी थी, लेकिन जब भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी ओर देखा, तो उनकी दृष्टि वापस आ गई। राधा रानी और श्रीकृष्ण का प्रेम ब्रह्मांडीय और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है, जो भक्ति का उच्चतम रूप है।  


🚩बुधवारी अष्टमी का महत्व  

इस वर्ष,राधाष्टमी के दिन बुधवारी अष्टमी का संयोग पड़ रहा है,जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। बुधवारी अष्टमी का व्रत विशेष रूप से बुद्ध ग्रह की शांति और भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस दिन बुध ग्रह से संबंधित दोषों को दूर करने के लिए व्रत और पूजा की जाती है। 


🚩बुध ग्रह को बुद्धि,व्यापार, संचार और शिक्षा का कारक माना जाता है। इसलिए, बुधवारी अष्टमी पर व्रत रखने से व्यक्ति की मानसिक शक्ति और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है। साथ ही, यह व्रत व्यापार और आर्थिक मामलों में सफलता दिलाने वाला माना जाता है। जो व्यक्ति बुध ग्रह से पीड़ित होते है,उनके लिए इस दिन का विशेष महत्व है। बुधवारी अष्टमी पर गणेशजी की पूजा से विघ्न दूर होते है और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।  


🚩राधाष्टमी और बुधवारी अष्टमी की पूजा विधि  

1. प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।  

2. राधा-कृष्ण की मूर्तियों का पंचामृत से अभिषेक करें।  

3. धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।  

4. भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधा के नाम का जाप करें।  

5. बुध ग्रह की शांति के लिए गणेशजी की विशेष पूजा करें।  

6. व्रत कथा सुनें और आरती के बाद प्रसाद का वितरण करें।  

7. व्रतधारी सात्विक भोजन करें और बुध ग्रह से संबंधित उपाय भी करें।  


🚩निष्कर्ष

राधाष्टमी और बुधवारी अष्टमी का संयोग 11 सितंबर 2024 को इस दिन को अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है। श्री राधा रानी के जन्मोत्सव का यह पावन पर्व भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।वहीं, बुधवारी अष्टमी से व्यक्ति को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। राधाष्टमी पर श्री राधा-कृष्ण की पूजा करने से प्रेम और भक्ति में उन्नति होती है, जबकि बुधवारी अष्टमी पर गणेशजी की पूजा और बुध ग्रह के उपाय करने से जीवन की कठिनाइयां दूर होती है। इस दिन व्रत रखने से भक्तों को दोनों पर्वों का विशेष लाभ मिलता है, जो उन्हें भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।


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