Showing posts with label भारतीय. Show all posts
Showing posts with label भारतीय. Show all posts

Thursday, October 15, 2020

खुलासा : फेसबुक मार्क जुकरबर्ग ने नहीं !! एक भारतीय ने बनाया है !!

15 अक्टूबर 2020


देखा जाए तो आजतक दुनिया में जितनी खोजे हुई हैं वे सब भारतीयों ने ही की है... । उसमें हमारे ऋषि-मुनियों का ज्यादा योगदान रहा है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जितनी भी भारतीयों ने खोजे की उसको तथाकथित इतिहासकारों ने छुपा दी और उस खोज पर विदेशी लोगों की मुहर लगा दी। इसके कारण भारतीय आज अपनी संस्कृति पर गर्व करने की बजाय पाश्चात्य संस्कृति की तरफ प्रभावित हो जाता है।




अगर आपसे कहा जाए कि फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि एक भारतीय है, तो क्या आप इस बात पर भरोसा करेंगे ?? नहीं न, लेकिन ये सच है। इस भारतीय शख्स का नाम है 'दिव्य नरेंद्र'। नरेंद्र ने फेसबुक बनाया तो लेकिन उन्हें कभी भी इसका क्रेडिट नहीं मिला। नरेंद्र ने अपने दो अन्य साथियों के साथ मिलकर वो आइडिया डेवलप किया था, जिसे आज हम फेसबुक के नाम से जानते हैं। नरेंद्र ही वो पहले शख्स हैं, जिन्होंने जुकरबर्ग के खिलाफ विश्वासघात का मुकदमा किया था।

◆ कौन हैं नरेंद्र?

नरेंद्र का जन्म 1984 में न्यूयार्क के ब्रांक्स में हुआ था। नरेंद्र भारत से अमेरिका शिफ्ट हुए डॉक्टर दंपत्ति के बड़े बेटे हैं। साल 2000 में उन्होंने हार्वर्ड में दाखिला लिया और साल 2004 में वो अप्लाइड मैथमेटिक्स में ग्रेजुएट हुए।  इसके बाद उन्होंने MBA और कानून की भी पढाई की। नरेंद्र हार्वर्ड कनेक्शन (बाद में नाम कनेक्टयू) के सह-संस्थापक थे, जिसे उन्होंने कैमरुन विंकलेवोस और टेलर विंकलेवोस के साथ मिलकर बनाई थी। इस फार्मूला पर बना है फेसबुक नरेंद्र ने हावर्ड के अपने दो क्लासमेट के साथ मिलकर हार्वर्ड कनेक्ट सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट 21 मई 2004 में लांच की। जिसका नाम बाद में बदलकर कनेक्टयू कर दिया। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत दिसंबर 2002 में की गई। इस प्रोजेक्ट का पूरा फॉरमेट और अवधारणा वही है, जिस पर फेसबुक शुरू हुआ। कनेक्टयू वेबसाइट लांच हुई, हार्वर्ड कम्युनिटी के तौर पर इस पर काम शुरू किया फिर ये बंद हो गई। 

◆ ये थे पहले प्रोग्रामर

संजय मवींकुर्वे नाम के प्रोग्रामर के सबसे पहले हार्वर्ड कनेक्शन बनाने को कहा गया। संजय ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया लेकिन साल 2003 में उन्होंने इसे छोड़ दिया और गूगल चले गए। संजय के प्रोजेक्ट बीच में छोड़ने के बाद नरेंद्र ने विंकलेवोस और हार्वर्ड के स्टूडेंट और अपने दोस्त प्रोग्रामर विक्टर गाओ को साथ काम करने का प्रस्ताव दिया। विक्टर गाओ ने कहा कि वो इस प्रोजेक्ट का फुल पार्टनर बनने की बजाए पैसे पर काम करना चाहेंगे। इसके लिए नरेंद्र ने उन्हें 400 डॉलर दिए और उन्होंने वेबसाइट कोडिंग पर काम किया। लेकिन बाद में व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने खुद को इस प्रोजेक्ट से अलग कर लिया। 

◆ नरेंद्र ने किया था मार्क जुकरबर्ग को एप्रोच 

2003 में नवंबर में विक्टर के रिफरेंस पर विंकलेवोस और नरेंद्र ने मार्क जुकरबर्ग को एप्रोच किया कि वो उनके साथ काम करें। हालांकि जुकरबर्ग को काम के लिए एप्रोच करने से पहले ही नरेंद्र और विंकलेवोस इस पर काफी काम कर चुके थे। नरेंद्र के मुताबिक, कुछ दिनों बाद हमने काफी हद तक वो वेबसाइट डेवलप कर ली लेकिन हमें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि जैसे ही हम उसे कैंपस में लोगों को दिखाएंगे, वो लोगों के बीच हलचल पैदा करेगी। मार्क जुकरबर्ग ने जब हार्वर्ड कनेक्शन टीम से बात की तो टीम को वो काफी इंट्रेस्टेड लगे। जुकरबर्ग को वेबसाइट के बारे में बताया गया कि वे कैसे उसका किस तरह विस्तार करेंगे, कैसे उसे दूसरे स्कूलों और अन्य कैंपस तक ले जाएंगे। हालांकि, ये सारी जानकारियां गोपनीय थी, लेकिन मीटिंग में बताना जरूरी था।

◆ पार्टनर बनने के बाद दिया धोखा 

नरेंद्र के मुताबिक, मौखिक बातचीत के जरिए ही जुकरबर्ग उनके पार्टनर बन गए। इसके बाद जुकरबर्ग को प्राइवेट सर्वर लोकेशन और पासवर्ड के बारे में बताया गया, जिससे वेबसाइट का बचा काम और कोडिंग पूरी की जा सके। जुकरबर्ग के टीम में शामिल होने के बाद माना गया कि वो जल्द ही प्रोग्रामिंग के काम को पूरा कर देंगे और वेबसाइट लांच कर दी जाएगी। इन सारे कामों के समझने के कुछ ही दिन बाद जुकरबर्ग ने कैमरुन विंकलेवोस को ईमेल भेजा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें नहीं लगता कि प्रोजेक्ट को पूरा करना कोई मुश्किल होगा। जुकरबर्ग ने लिखा था कि मैंने वो सारी चीजें पढ़ ली हैं, जो मुझको भेजी गई हैं और मुझे इन्हें लागू करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। इसके बाद अगले दिन जुकरबर्ग ने एक और ईमेल भेजा, जिसमें लिखा था कि मैने सब कर लिया है और वेबसाइट जल्द ही शुरू हो जाएगी। लेकिन इसी के बाद से जुकरबर्ग धोखा देने लगे। 

◆जुकरबर्ग ने फोन कॉल्स किए इग्नोर

जुकरबर्ग ने धीरे-धीरे करके हार्वर्ड कनेक्ट टीम के फोन उठाने बंद कर दिए। न ही वो टीम के मेल के जवाब दे रहे थे। जुकरबर्ग ने ये जताना शुरू कर दिया कि वो किसी ऐसे काम में बिजी हो गए हैं कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है। इसके बाद 4 दिसंबर 2003 को जुकरबर्ग ने मेल किया और लिखा कि सॉरी मैं आप लोगों के कॉल के जवाब नहीं दे सका, मैं बहुत बिजी हूं। इसके बाद वो हर मेल में ऐसी ही बातें कहने लगे।
 
◆ चुपके से लॉन्च किया फेसबुक 

धीरे-धीरे जुकरबर्ग ने हावर्ड टीम के साथ मतभेद पैदा किए और अलग हो गए। इसी के बाद उन्होंने द फेसबुक डॉट कॉम के नाम से 4 फरवरी 2004 को नई वेबसाइट लांच कर दी। इस वेबसाइट में सबकुछ वही था, जो हार्वर्ड कनेक्ट के लिए डेवलप किया जा रहा था। ये सोशल नेटवर्क साइट भी हार्वर्ड स्टूडेंट्स के लिए ही थी, जिसका विस्तार बाद में देश के अन्य स्कूलों तक करना था। विंकलेवोस और नरेंद्र को इस बात का देरी से पता चला। जब उन्हें इस बात का पता चला तो नरेंद्र और उनके सहयोगियों की जुकरबर्ग से तीखी नोकझोंक हुई। यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए नरेंद्र को कोर्ट जाने की सलाह दी। कोर्ट ने माना आइडिया नरेंद्र का था यूनिवर्सिटी की सलाह मानकर नरेंद्र और विंकलेवोस कोर्ट में पहुंचे। साल 2008 में जुकरबर्ग ने इनसे समझौता किया और 650 लाख डॉलर की रकम दी। हालांकि, नरेंद्र इस समझौते से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि उनका तर्क था कि उस समय फेसबुक के शेयरों की जो बाजार में कीमत थी, उन्हें उसके हिसाब से हर्जाना नहीं दिया गया। लेकिन अमेरिकी कोर्ट के फैसले से इस बात को तो खुलासा हो गया था कि दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का आइडिया दिव्य नरेंद्र का था। 

◆ नरेंद्र चलाते हैं समजीरो नाम की कंपनी 

नरेंद्र अब अपनी कंपनी चलाते हैं, जिसका नाम समजीरो है। इस कंपनी को उन्होंने और हावर्ड के क्लामेट अलाप ने शुरू किया। ये कंपनी प्रोफेशनल निवेशक फंड, म्युचुअल फंड और प्राइवेट इक्विटी फंड पर काम करती है। नरेंद्र ने दो साल पहले एक अमेरिकन एनालिस्ट फोबे व्हाइट से शादी रचाई। 

फेसबुक तो एक नमूना है बाकी सर्जरी हो, हवाई जहाज हो, परमाणु हथियार हो अथवा बिजली से लेकर शरीर के स्वास्थ्य तक कि सारी खोजे हमारे ऋषि-मुनियों ने की है लेकिन आज हम असली इतिहास छुपाकर नकली इतिहास पढ़ाया जाता है जिसके कारण आज हम असली भारतीय खोजकर्ताओं को भुला रहे हैं, अब समय की मांग रहते हुए असली इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, June 24, 2020

चीन भूल गया क्या ? केवल 120 भारतीय जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को उतारा था मौत के घाट !

24 जून 2020

🚩चीन हमेशा भारत पर धोखे से वार करता आया है और गीदड़ धमकी देता रहता है जबकि अंदर से तो वो भी जानता है कि भारतीय सैनिकों के पराक्रम के आगे चीनी सैनिक टिक नही सकते इसलिए वे हमेशा पीठ पीछे वार करते हैं फिर भी हमारे सैनिकों ने ऐसा करारा जवाब दिया है कि सालों तक मुड़कर नही देखते हैं। 

🚩भारत से इतिहास के पन्ने पलटने की वकालत करने वाला चीन जब इन्हीं पन्नों में खुद को देखता है तो उसको घिन आने लगती है। साल 1962 नवंबर महीने का 18वां दिन, देश में दिवाली की धूम थी वहीं लद्दाख की बर्फ से ढकी चुशुल घाटी एक इतिहास रचने जा रही थी और इस बात की भनक किसी को लगी नहीं थी। तड़के साढ़े तीन बजे शांत घाटी में गोलियों की गंध घुलनी शुरू हो गई थी।

🚩पांच से छह हजार की संख्या में चीनी जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था। इस दौरान सीमा पर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली टुकड़ी देश की सीमा की सुरक्षा कर रही थी। इस टुकड़ी में केवल 120 जवान थे। लेकिन मुट्ठीभर जवान चीन को ऐसा सबक सिखाएंगे इस बात की कल्पना तो दुनिया ने नहीं की थी।

🚩अचानक हुए इस हमले में देखते ही देखते भारत माता के वीर सपूत चीनियों के लिए काल बन गए थे। भारतीय सेना के जवानों ने किस अंदाज में यह जंग लड़ी थी उसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 120 सैनिकों ने चीन के करीब 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। 

🚩इस टुकड़ी के पास न तो आधुनिक हथियार थे और न ही तकनीक। हथियार के नाम पर इनके पास थी सिर्फ वीरता। जिसका लोहा बाद में पूरी दुनिया ने माना। 120 जवानों की इस टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे। कहा जाता है कि गिन पाना मुश्किल था कि शैतान सिंह ने अकेले ही कितने चीनी सैनिकों को मार डाला था। इतना ही नहीं वो अपने साथियों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे थे। इसी बीच उन्हें कई गोलियां लगीं।

🚩दो सैनिक उन्हें उठाकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे तभी एक चीनी सैनिक ने आकर मशीनगन से उन पर हमला कर दिया। जब शैतान सिंह पर हमला हुआ तो उन्होंने अपने साथी सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया और खुद मशीनगन के सामने आ गए।

🚩इसके बाद सैनिकों ने शैतान सिंह को एक बड़े पत्थर के पीछे छुपा दिया। जब युद्ध खत्म हुआ तो उसी पत्थर के पीछे शैतान सिंह का शव मिला। उन्होंने अपने हाथों से मजबूत तरीके से बंदूक पकड़ रखी थी। टुकड़ी में 120 जवान और सामने दुश्मनों की फौज, बावजूद इसके मेजर के कुशल नेतृत्व के बूते 18 नवंबर 1962 का दिन इतिहास के अमर पन्नों में दर्ज हो गया। 

🚩इस लड़ाई में 114 भारतीय वीर सपूतों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। जबकि जीवित बचे छह जवानों को बंदी बना लिया। लेकिन वीर सपूतों ने चीन को यहां भी मात दी। चीनी सेना समझ ही नहीं पाई और सभी जवान बचकर निकल आए। इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था। वहीं मेजर को उनके शौर्य के चलते परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

🚩भारतीय सैनिकों के इस साहस को देखकर चीनी लोगों ने अपने घुटने टेक दिए और 21 नवंबर को उसने सीजफायर की घोषणा कर दी थी। यह तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है। जब भी भारतीय सैनिकों की वीरता और साहस की बात होती है तो ऐसा नहीं होता कि शैतान सिंह को याद न किया जाए।

🚩भारतीय सेना ने इतना अद्भुत पराक्रम केवल एक बार ही नही अनेकों बार दिखाया है।11 सितंबर 1967 में चीन ने धोखे से अटेक किया था तभी उनके 400 सैनिको को मौत के घाट उतार दिया था। जबकि भारत के केवल 70 जवान शहीद हुए थे। अभी हाल में चीन ने धोखे से वार किया उसका जवाब में उनके 40 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। 

🚩गीदड़ धमकी देने से पहले चीन को यह सब याद रखना चाहिए और अभी तो 2020 का भारत है, ड्रैगन बचेगा भी नही इसलिए चीन अपनी जुबान संभालकर खोले।

🚩सबसे अधिक हिन्दू सैनिक क्यों बचे ?

🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका के सहारा मरूस्थल में खाद्य आपूर्ति बंद हो जाने के कारण मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को तीन दिन तक अन्न जल कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। चारों ओर सुनसान रेगिस्तान तथा धूल-कंकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रेगिस्तान पार करते करते कुल सात सौ सैनिकों की उस टुकड़ी में से मात्र 210 व्यक्ति ही जीवित बच पाये। बाकी सभी भूख-प्यास के कारण रास्ते में ही मर गये।

🚩आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन जीवित सैनिकों में से 80 प्रतिशत अर्थात् 186 सैनिक हिन्दू थे। इस आश्चर्यजनक घटना का जब विश्लेषण किया गया तो विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला किः 'वे निश्चय ही ऐसे पूर्वजों की संतानें थीं जिनके रक्त में तप, तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता एवं संयम का प्रभाव रहा होगा। वे अवश्य ही श्रद्धापूर्वक कठिन व्रतों का पालन करते रहे होंगे।'

🚩हिन्दू संस्कृति के वे सपूत रेगिस्तान में अन्न जल के बिना भी इसलिए बच गये क्योंकि उन्होंने, उनके माता-पिता ने अथवा उनके दादा-दादी ने इस प्रकार की तपस्या की होगी। सात पीढ़ियों तक की संतति में अपने संस्कारों का अंश जाता है।

🚩भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सफलता दिलवा देती है और हमारे जवान हमेंशा उसका अनुसरण करते आये हैं इसलिए वे हमेंशा जीत हासिल कर लेते हैं। हमारी दिव्य सनातन हिंदू संस्कृति और वीर जवानों को नमन।

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/azaadbharat





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, June 21, 2020

भारतीय जवानों ने 18 चीनी सैनिको की उड़ा दी गर्दन, चीनी कर्नल को जिंदा पकड़ा।

21 जून 2020

🚩भारतीय जवानों की हमेशा शौर्यगाथा अमर रही हैं, सामने कैसा भी बड़ा दुश्मन हो और धोखे से वार करे लेकिन भारतीय जवानों में ऐसा जोश होता है कि दुश्मन के दांत खट्टे कर देते है, ऐसे कई युद्धों में हुआ है और आज भी हमारे जवानों के सामने किसी की ताकत नही है कि आँख उठाकर देखे। 

🚩आपको बता दे कि सोमवार को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने एक सोची-समझी साजिश के तहत भारतीय जवानों पर हमला किया। हालांकि चीन की पीएलए आर्मी की तरफ से अचानक हुए इस हमले में पहले भारत को बड़ा नुकसान हुआ, लेकिन उसके बाद जिस तरह से बिहार रेजीमेंट के जवानों ने मोर्चा संभाला, उसके बाद चीनी सैनिक भाग खड़े हुए।

🚩उस रात बिहार रेजीमेंट के जवानों की बहादुरी की कहानी, पूरी दुनिया में सैन्य अभियानों के लिए मिसाल बन गयी है। उस रात चीनी सैनिकों की तादाद भारतीय सेना की तुलना में पांच गुणा ज्यादा थी, लेकिन फिर भी हमारे बहादुर जवानों ने चीनी सेना को ऐसा मारा कि अब वह शांति से बातचीत को सुलझाने की बात कर रहा है।

🚩चीन को पता चल गया कि उसके सैनिकों में इतना दम नहीं है कि वह भारतीय फौज का मुकाबला कर सके, क्‍योंकि युद्ध हमेशा जज्‍बे से लड़ा जाता है, शौकिया नहीं।

🚩जानिए उस रात की पूरी कहानी

🚩अखबार डेक्कन हेराल्ड ने सैन्य सूत्रों के हवाले से बिहार रेजीमेंट की जवानों की शौर्यगाथा की पूरी कहानी छापी है। इस लड़ाई में बिहार रेजीमेंट के जवानों ने प्राचीन युद्ध कला का प्रयोग किया। भारत के जवानों को ऑर्डर मिले थे कि वह गलवान में बनाए गए चीनी सैनिकों द्वारा टेंट को हटाने की पुष्टि करें। इसी को देखते हुए कर्नल बी संतोष बाबू जवानों के साथ घटना स्‍थल पर पहुंचे। उन्‍होंने देखा कि चीनी सेना ने वहां से टेंट को नहीं हटाया तो उन्‍होंने इसका विरोध किया। इसी बीच बड़ी तादाद में वहां पर मौजूद चीनी सैनिकों ने उन पर हमला कर दिया। जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी मोर्चा संभालते हुए उनको जवाब देना शुरू किया।

🚩हालांकि इसी हिंसक झड़प में कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी. संतोष बाबू शहीद हो गए। जिसके बाद बिहार रेजीमेंट के सैनिकों के सब्र का बांध टूट गया। चीनी सैनिकों की तादाद बहुत ज्‍यादा थी, जिसके बाद भारतीय फौज ने पास की टुकड़ी को इस बारे में जानकारी दी और मदद मांगी। सूचना मिलने के तुरंत बाद ही भारतीय सेना का 'घातक' दस्ता मदद के लिए वहां पहुंचा। बिहार रेजीमेंट और घातक दस्ते के सैनिकों की कुल तादाद सिर्फ 60 थी, जबकि दूसरी तरफ दुश्मनों की तादाद काफी ज्यादा थी।

🚩सरकार की तरफ से जवानों को फायरिंग की मनाई थी, लेकिन कमांडिंग ऑफिसर की हत्या से आहत बिहार रेजीमेंट के जवान किसी भी हाल में चीनी सेना को सबक सीखाना चाहते थे। इसके लिए उन्‍होंने प्राचीन युद्ध शैली का प्रयोग करते हुए पत्थर, डंडा और भाले को हथियार बनाया।

🚩18 चीनी सैनिकों की तोड़ दी गर्दन

🚩बिहार रेजीमेंट के जवानों ने एक ही झटके में 18 चीनी सैनिकों की गर्दन तोड़ दी। एक सैन्य अधिकारी ने बताया, 'कम से कम 18 चीनी सैनिकों की गर्दन की हड्डी टूट चुकी थी और सर झूल रहा था। कुछ के चेहरे इतनी बुरी तरह से कुचल दिये गये थे कि उन्हें पहचान पाना संभव नहीं था। भारतीय सैनिकों का हमला इतना भयानक था कि चीनी भाग खड़े हुए और घाटियों में छिपने लगे।'

🚩ये लड़ाई लगभग चार घंटे तक चलती रही। चीनियों के पास तलवार और रॉड थे, जिनको छीनकर भारतीय सैनिकों ने उनपर हमला करना शुरू कर दिया। बिहार रेजीमेंट के जवानों का यह रौद्र रूप देखकर सैकड़ों की तादाद में मौजूद चीनी भागने लगे और घाटियों में जा छिपे, जिसके बाद भारतीय जवानों ने उनका पीछा करते हुए उन्‍हें चुन-चुनकर मारा। हालांकि वह इतने आगे चले गए थे कि उनमें से ही कुछ पकड़ लिये गए, जिन्हें शुक्रवार को चीन ने रिहा किया।

🚩सूत्रों ने ये भी बताया कि जब सोमवार को दोनों देश के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, उसमें भारत के जवान एक चीनी कर्नल को जिंदा पकड़कर लेकर आ गए थे। हालांकि बाद में शीर्ष अधिकारियों के बीच हुई बैठक के बाद उसे छोड़ दिया गया।

🚩केंद्रीय मंत्री और जनरल विक्रम सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है कि चीन ने हमारे 20 जवानों को घेरकर मार दिया। चीन कभी नहीं बताएगा कि उनके कितने जवान हताहत हुए हैं। लेकिन मुझे पूरा विश्‍वास हैं कि उनके जवानों के मरने की संख्‍या हमसे दोगुनी है।
आपको बता दे कि चीन और भारत के सैनिको द्वारा 11 सितंबर 1967 को धक्का मुक्की की एक घटना का संज्ञान लेते हुए नाथू ला से सेबु ला के बीच में तार बिछाने का फैसला लिया। जब बाड़बंदी का कार्य शुरु हुआ तो चीनी सैनिकों ने विरोध किया। इसके बाद चीनी सैनिक तुरंत अपने बंकर में लौट आए। कुछ देर बाद चीनियों ने मेडियम मशीन गनों से गोलियां बरसानी शुरु कर दी। प्रारंभ में भारतीय सैनिकों को नुकसान उठाना पड़ा पहले 10 मिनट में 70 सैनिक मारे गए।

लेकिन इसके बाद भारत की ओर से जो जवाबी हमला हुआ, उसमें चीन का इरादा चकनाचूर हो गया। सेबू ला एवं कैमल्स बैक से अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत ने जमकर आर्टिलरी पावर का प्रदर्शन किया । कई चीनी बंकर ध्वस्त हो गए और खुद चीनी आकलन के अनुसार भारतीय सेना के हाथों उनके 400 से ज्यादा जवान मारे गए। भारत की ओर से लगातार तीन दिनों तक दिन रात फायरिंग जारी रही। भारत चीन को कठोर सबक दे चुका था। चीन की मशीनगन यूनिट को पूरी तरह तबाह कर दिया गया था। 15 सितंबर को वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारियों के मौजूदगी में शवों की अदला बदली हुई।

🚩भारतीय जवानों के पास अन्य देशों के मुकाबले में पूरे साधन न होते हुए भी, माईनस टेम्परेचर में भी ऐसा शोर्य दिखाते है कि हर भारतीय अपने जवानों पर गर्व करने लगता है। हमारा कर्तव्य है कि कही भी भारतीय जवान दिखे तो उसका सम्मना करे उनको यथायोग्य मदद करें।

हम सोये चैन की नींद
वो सीमा पर जागें,
देख के उनकी हिम्मत,
मुश्किलें भी डर के भागे,

आने वाले हर संकट के आगे
खड़ा जो बन चट्टान है,
वो मेरे देश का जवान है।
हे जवान तुझे सलाम !
हे जवान तुझे सलाम !

देश के भीतर हो या सीमा पर,
रहते हरदम तैयार,
सुरक्षा को देशवासियों की,
समझा कभी ना भार,

अपना कर्तव्य निभाते हुए,
सहता जो कष्ट महान है,
वो मेरे देश का जवान है।
हे जवान तुझे सलाम !
हे जवान तुझे सलाम !

बीहड, बर्फीले ग्लेशियर,
कभी मरूस्थल जिसका घर है,
गर्मी, सर्दी, धूप, बरसात से
नहीं जिस को कोई डर है,

भारत माता का सच्चा सपूत,
जो मातृभूमि की शान है,
वो मेरे देश का जवान है।
हे जवान तुझे सलाम !
हे जवान तुझे सलाम !

हर सैनिक को जान से ज्यादा,
अपने वतन से प्यार है,
इसकी आन की खातिर,
हरदम मिटने को तैयार है,

देश के लिए शहीद होना,
जिसका इकलौता अरमान है,
वो मेरे देश का जवान है।
हे जवान तुझे सलाम !
हे जवान तुझे सलाम !

तुम्हारी देशभक्ति को नमन,
बहादुरी को सलाम,
मेरे देश के रखवाले,
कोटि- कोटि तुझको प्रणाम,

गर्व है हमें जिस पर रेखा,
जो हमारा अभिमान है,
वो मेरे देश का जवान है।
हे जवान तुझे सलाम !
हे जवान तुझे सलाम !

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/azaadbharat





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ